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डेली न्यूज़

  • 06 Mar, 2025
  • 33 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का वस्त्र उद्योग

प्रिलिम्स के लिये:

मानव निर्मित फाइबर, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, PM MITRA पार्क, गुणवत्ता नियंत्रण आदेश

मेन्स के लिये:

भारत का वस्त्र उद्योग, संभावनाएँ और चुनौतियाँ, संवृद्धि एवं विकास

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

बढ़ते घरेलू बाज़ार तथा बढ़ती वैश्विक रुचि के कारण भारत के वस्त्र उद्योग में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनने की क्षमता है।

  • हालाँकि इसमें उच्च उत्पादन लागत, अनियमित आपूर्ति शृंखला तथा स्थिरता संबंधी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

भारत के वस्त्र उद्योग के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • आर्थिक योगदान: भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वस्त्र उद्योग का 2.3% का योगदान है, जिसके वर्ष 2030 तक 5% तक पहुँचने का अनुमान है। 
  • वित्त वर्ष 24 तक इसकी औद्योगिक उत्पादन में 13% तथा निर्यात में 12% की हिस्सेदारी है और इसमें 4.5 करोड़ श्रमिक कार्यरत हैं। 
  • वित्त वर्ष 2024 में इस क्षेत्र का निर्यात 35.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा जिसमें अमेरिका, यूरोपीय संघ और संयुक्त अरब अमीरात प्रमुख बाज़ार थे।
  • वैश्विक वस्त्र व्यापार में स्थिति: भारत के पास विश्व स्तर पर दूसरी सबसे बड़ी वस्त्र विनिर्माण क्षमता है और वर्ष 2023 में यह वस्त्र तथा परिधान का छठा सबसे बड़ा निर्यातक रहा (वैश्विक व्यापार में 3.9% हिस्सेदारी)।
  • भारत, विश्व में कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है (वैश्विक कपास उत्पादन का 23.83%), जिसका उत्पादन वर्ष 2030 तक 7.2 मिलियन टन तक पहुँचने का अनुमान है।
    • भारत, विश्व में जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है और पॉलिस्टर, विस्कोस, नायलॉन एवं ऐक्रेलिक सहित मानव निर्मित फाइबर (MMF) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।

भारत के वस्त्र उद्योग के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ कौन सी हैं?

  • व्यापार समझौतों का अभाव: प्रमुख बाज़ारों के साथ वियतनाम और चीन जैसे देशों के मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) से उनके निर्यात अधिक प्रतिस्पर्द्धी हो जाते हैं। 
    • अमेरिका जैसे प्रमुख वस्त्र-उपभोग वाले क्षेत्रों के साथ भारत के इस प्रकार के FTA का अभाव है।
  • स्थिर विकास और घटता निर्यात: वस्त्र क्षेत्र में प्रतिवर्ष 1.8% की गिरावट आई (वित्त वर्ष 20-वित्त वर्ष 24) जबकि परिधान क्षेत्र में प्रतिवर्ष 8.2% की गिरावट आई।
    • परिधान निर्यात वित्त वर्ष 20 के 15.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर वित्त वर्ष 24 में 14.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया।
  • कच्चे माल का महँगा होना: सरकार द्वारा लगाए गए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) से पॉलिस्टर और विस्कोस का आयात प्रतिबंधित होता है, जिससे घरेलू धागा निर्माताओं को महँगे स्थानीय विकल्पों पर निर्भर रहना पड़ता है।
    • भारत में पॉलिएस्टर फाइबर की कीमत चीन की तुलना में 33-36% अधिक है, जबकि विस्कोस फाइबर 14-16% अधिक महँगा है।
  • निम्न निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता: उच्च श्रम लागत के कारण भारत में निर्मित वस्त्रों का निर्यात चीन और वियतनाम की तुलना में महँगा है।
    • चीन में ऊर्ध्वाधर एकीकृत आपूर्ति शृंखलाओं (कंपनी आपूर्तिकर्त्ताओं का स्वामित्व लेती है) के विपरीत, भारत की राज्यों में विस्तृत खंडित आपूर्ति शृंखला और जटिल सीमा शुल्क के कारण रसद लागत बढ़ जाती है और प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है।
    • इसके अतिरिक्त, बांग्लादेश, एक अल्प विकसित देश (LDC) के रूप में, शुल्क मुक्त निर्यात का लाभ उठाता है, तथा अधिमान्य व्यापार नीतियों के कारण कई बाज़ारों में भारत की तुलना में लागत लाभ प्राप्त करता है।
  • संधारणीयता संबंधी दबाव: वैश्विक ब्रांड पर्यावरण संबंधी सख्त मानदंड क्रियान्वित कर रहे हैं, जिसके तहत नवीकरणीय ऊर्जा का अधिक उपयोग, अपशिष्ट पुनर्चक्रण और कच्चे माल की ट्रेसबिलिटी की आवश्यकता होती है।
    • यूरोपीय संघ ने फैशन उद्योग को शामिल करते हुए अनेक नियमों (2021-2024) का प्रवर्तन किया है, जिससे भारत के वस्त्र निर्यात का लगभग 20% प्रभावित हुआ।

नोट: वैश्विक वस्त्र और परिधान क्षेत्र का वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 6-8% का योगदान है (~ 1.7 बिलियन टन/वर्ष)।

  • वस्त्र उत्पादन, रंगाई और परिष्करण का कुल वैश्विक जल प्रदूषण में 20% का योगदान है और वस्त्र  उद्योग वर्ष 2020 में जल क्षरण और भूमि उपयोग का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत था।

आगे की राह

  • आपूर्ति शृंखला का सुदृढ़ीकरण: फाइबर से लेकर तैयार परिधान तक उत्पादन के संपूर्ण चक्र को शामिल करते हुए उर्द्धवाधर रूप से एकीकृत वस्त्र पार्क विकसित किये जाने की आवश्यकता है, जिससे रसद और उत्पादन लागत कम हो जाती है।
    • नियंत्रित आयात और कम घरेलू लागत हेतु पॉलिएस्टर और विस्कोस फाइबर पर QCO का पुनः आकलन करने की आवश्यकता है।
    • विखंडन और रसद लागत को कम करने के लिये "फाइबर-टू-फैशन" केंद्र विकसित किये जाने चाहिये।
  • श्रम समूह का पूर्णतम उपयोग: उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में अधिक पीएम मित्र पार्क स्थापित किये जाने चाहिए, जहाँ रोज़गार की मांग अधिक है।
    • चीन के मॉडल के समान कारखानों के निकट आवास बनाने से उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है, तथा निवल वेतन में सुधार हो सकता है एवं नौकरी छोड़ने की दर में कमी लाई जा सकती है।
  • नीतिगत सुधार: प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिये यूरोपीय संघ, अमेरिका और प्रमुख बाज़ारों के साथ अधिमान्य व्यापार समझौते सुनिश्चित करना।
  • MMF को बढ़ावा देना: MMF आधारित वस्त्र उत्पादन के लिये प्रोत्साहन देकर उच्च घरेलू MMF खपत को प्रोत्साहित करना।
  • संधारणीयता: MSME को सतत् विनिर्माण और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
    • अनुमानित रूप से फास्ट फैशन अपशिष्ट 2030 तक 148 मिलियन टन हो जाएगा, जिससे पुनर्नवीनीकृत वस्त्रों की मांग बढ़ेगी, यह एक ऐसा बाज़ार है जहाँ भारत के पास महत्त्वपूर्ण संभावनाएँ हैं और अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढाँचे का सुदृढ़ीकरण सतत् विकास के लिये महत्वपूर्ण होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. वस्त्र उद्योग भारत की आर्थिक वृद्धि में किस प्रकार योगदान देता है तथा इसे विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. पिछले दशक में भारत-श्रीलंका व्यापार के मूल्य में सतत् वृद्धि हुई है।
  2. भारत और बांग्लादेश के बीच होने वाले व्यापार में “कपड़े और कपड़े से बनी चीज़ों” का व्यापार प्रमुख है।
  3. पिछले पाँच वर्षों में, दक्षिण एशिया में भारत के व्यापार का सबसे बड़ा भागीदार नेपाल रहा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में अत्यधिक विकेंद्रीकृत सूती वस्त्र उद्योग के कारकों का विश्लेषण कीजिये। (2013)


सामाजिक न्याय

मलिन बस्तियों के पुनर्विकास में चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

आश्रय का अधिकार, अनुच्छेद 21, स्लम पुनर्वास प्राधिकरण (SRA), फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI)। 

मेन्स के लिये:

स्लम पुनर्वास कानूनों की प्रभावकारिता, न्यायिक सक्रियता, रियल एस्टेट हितों एवं झुग्गीवासियों के अधिकारों के बीच संघर्ष।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (SC) के निर्देश के बाद, बॉम्बे उच्च न्यायालय (HC) ने महाराष्ट्र स्लम क्षेत्र अधिनियम, 1971 की अपनी तरह की पहली समीक्षा शुरू की है।

  • इस समीक्षा का उद्देश्य मलिन बस्तियों/झुग्गी/स्लम पुनर्विकास परियोजनाओं में देरी का कारण बनने वाली प्रणालीगत कमियों को दूर करना है, जिससे झुग्गीवासियों के आश्रय (अनुच्छेद 21) एवं आजीविका के अधिकार का उल्लंघन होता है।

महाराष्ट्र स्लम क्षेत्र (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम, 1971:

  • अधिनियम के प्रमुख प्रावधान:
    • महाराष्ट्र सरकार को किसी क्षेत्र को "स्लम क्षेत्र" घोषित करने तथा (आवश्यकतानुसार) अधिग्रहण करने का अधिकार दिया गया है।
    • निजी डेवलपर्स के माध्यम से पुनर्विकास की देखरेख के लिये स्लम पुनर्वास प्राधिकरण (SRA) की स्थापना का प्रावधान किया गया।
  • महाराष्ट्र स्लम पुनर्वास योजना 1995:
    • इसके अंतर्गत निजी डेवलपर्स, पुनर्विकास के लिये धन मुहैया कराते हैं तथा तैयार मकान निःशुल्क उपलब्ध कराते हैं। 
    • बदले में उन्हें निर्माण तथा बाज़ार में बिक्री के लिये कुछ अतिरिक्त क्षेत्र मिलता है।
    • झुग्गीवासियों के लिये मुफ्त आवास के बदले डेवलपर्स को उच्च फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) एवं बिक्री योग्य क्षेत्र जैसे प्रोत्साहन मिलते हैं।

मलिन बस्तियाँ क्या हैं?

  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, मलिन बस्ती शहर का एक जर्जर क्षेत्र है, जिसकी विशेषता अधः मानक आवासन, गरीबी होती है और यहाँ भूस्वामित्व सुरक्षा का अभाव होता है। 
    • मलिन बस्तियाँ अव्यवस्थित, अतिसंकुलित अथवा बहुजनाकीर्ण और उपेक्षित क्षेत्र हैं जो शहरी विकास प्रक्रियाओं के कारण अनियोजित और अनपेक्षित बस्तियों के रूप में अस्तित्व में आते हैं।
    • भारत की कुल शहरी आबादी में मलिन बस्तियों की 17.4% हिस्सेदारी है (जनगणना 2011)।
  • मलिन बस्तियों के विकास के कारण:
    • जनसंख्या वृद्धि और गरीबी के कारण नगरीय क्षत्रों के गरीब व्यक्ति मलिन बस्तियों में रहने के लिये विवश होते हैं तथा अनुमान है कि वर्ष 2026 तक कुल जनसंख्या का 40% शहरी क्षेत्रों में निवास करेगा, जिससे भूमि की मांग में अत्यधिक वृद्धि होगी।
    • क्षेत्रीय विकास असंतुलन के कारण अल्प विकसित राज्यों (बिहार और ओडिशा) से ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन महाराष्ट्र और गुजरात जैसे समृद्ध राज्यों की ओर बढ़ रहा है।
    • अकुशल शहरी स्थानीय निकाय, अनियोजित शहर प्रबंधन, तथा मलिन बस्तियों के विकास के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव से मलिन बस्तियों की स्थिति और खराब होती जा रही है।

मलिन बस्ती विकास की उपेक्षा के कारण कौन-सी समस्याएँ होती हैं?

  • नगरीय क्षेत्रों में अवसरों का भ्रम: ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब व्यक्तियों के लिये बेहतर अवसरों के साथ मलिन बस्तियाँ आकर्षक हो सकती हैं, लेकिन सामान्यतः शहरी मलिन बस्तियों में जीवन की कठोर वास्तविकताएँ और चुनौतियाँ प्रच्छन्न होती हैं।
  • मलिन बस्ती क्षेत्रों में स्वास्थ्य जोखिम: मलिन बस्ती क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरों, विशेष रूप से टाइफाइड और हैजा जैसी जलजनित बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
  • सुभेद्य वर्ग का शोषण: मलिन बस्तियों में रहने वाली महिलाएँ और बच्चे प्रायः वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति और बाल तस्करी का शिकार होते हैं।
  • अपराध और सामाजिक उपेक्षा: प्रायः ऐसा माना जाता है कि शिक्षा, विधि प्रवर्तन और सामुदायिक सेवाओं पर  सरकार के अपर्याप्त ध्यान दिये जाने के कारण मलिन बस्तियों में अपराध की घटनाएँ अधिक होती हैं। 
  • इससे भुखमरी, कुपोषण और शिक्षा तक सीमित पहुँच जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

मलिन बस्ती पुनर्वास के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भूमि एवं कानूनी मुद्दे: भूमि अधिग्रहण और कानूनी मंजूरी में अक्सर नौकरशाही प्रक्रियाओं और नियामक प्राधिकरणों के कारण बाधा उत्पन्न होती है, जो मलिन बस्ती पुनर्वास संबंधी परियोजनाओं में प्रमुख बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
  • वित्तीय बाधाएँ: मलिन बस्ती पुनर्वास परियोजनाओं के लिये पर्याप्त वित्तीय निवेश प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि निजी डेवलपर्स अक्सर निवेश पर कम रिटर्न के कारण अनिच्छुक होते हैं। 
  • सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ: मलिन बस्ती समुदायों में पुनर्वास को प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों को अपने मज़बूत सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को खोने का डर रहता है।
  • पर्यावरणीय विचार: मलिन बस्तियों के पुनर्वास में पर्यावरणीय चुनौतियों में सीमित हरित स्थान और अपशिष्ट संचय शामिल हैं, क्योंकि मलिन बस्तियों में अक्सर उचित अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों का अभाव होता है, जिससे पर्यावरण प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है।
  • कार्यान्वयन और प्रशासन के मुद्दे: भूमि की लागत बढ़ाने के लिये डेवलपर्स द्वारा परियोजनाओं में देरी करने से मलिन बस्ती पुनर्वास में बाधा उत्पन्न होती है, जैसा कि मुंबई के SRA मॉडल में देखा गया है, जिसकी धीमी क्रियान्वयन प्रक्रिया और पारदर्शिता की कमी के लिये आलोचना की जाती है।

आगे की राह:

  • स्पष्ट विधिक ढाँचा: दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की भूमि पूलिंग नीतियों की तरह भूमि अधिग्रहण के लिये सुव्यवस्थित कानूनी ढाँचे को लागू करने से उचित मुआवजा और कानूनी स्पष्टता सुनिश्चित होती है।
  • नवीन वित्तीय मॉडल: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का उपयोग, जैसे कि मुंबई मलिन बस्ती पुनर्वास प्राधिकरण (SRA) मॉडल, सामाजिक प्रभाव सुनिश्चित करते हुए निजी निवेश को आकर्षित करता है।
  • सामुदायिक सहभागिता: जैसा कि यूएन-हैबिटेट के सहभागी स्लम उन्नयन कार्यक्रम में देखा गया है, नियोजन में समुदायों को शामिल करने से प्रतिरोध कम होता है तथा निवासियों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं का सम्मान होता है।
  • पर्यावरण एकीकरण: दिल्ली की कठपुतली कॉलोनी परियोजना की तरह हरित प्रथाओं को शामिल करने से मलिन बस्ती पुनर्वास में पर्यावरणीय स्थिति में सुधार होता है।
  • प्रभावी शासन और पारदर्शिता: शासन और पारदर्शिता को मज़बूत करना, जिसका उदाहरण अहमदाबाद की स्लम नेटवर्किंग प्रोजेक्ट (SNP) है, मलिन बस्ती पुनर्वास परियोजनाओं की प्रभावशीलता को बढ़ाता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत के शहरी क्षेत्रों में मलिन बस्तियों के लोगों के समक्ष आने वाली सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा इन चुनौतियों के समाधान हेतु उपाय बताइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

Q. क्या भारतीय महानगरों में शहरीकरण गरीबों को और भी अधिक पृथक्करण और/या हाशिये पर ले जाता है? ((2023)

Q. भारत में शहरीकरण की तीव्र प्रक्रिया से उत्पन्न विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर चर्चा कीजिये। (2013)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नीति आयोग और क्वांटम कंप्यूटिंग

प्रिलिम्स के लिये:

क्वांटम कंप्यूटिंग, राष्ट्रीय क्वांटम मिशन, पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी (PQC), परमाणु घड़ियाँ, क्वांटम संचार

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन, क्वांटम कंप्यूटिंग में भारत की अन्य पहलें

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग के फ्रंटियर टेक हब (NITI-FTH) द्वारा "क्वांटम कंप्यूटिंग: नेशनल सिक्योरिटी इम्प्लीकेशन्स एंड प्रेपरेडनेस" शीर्षक से एक शोध पत्र जारी किया गया जिसमें भारत की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिये क्वांटम कंप्यूटिंग के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है और क्वांटम उन्नति की सहायता से राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिमों का निवारण करने हेतु बहुआयामी दृष्टिकोण का आह्वान किया गया है।

क्वांटम कंप्यूटिंग

  • क्वांटम कंप्यूटिंग का तात्पर्य प्रौद्योगिकियों के ऐसे वर्ग से है जिनसे क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों का उपयोग कर संगणना की जाती है और ऐसी क्षमताएँ प्राप्त होती हैं जो परंपरागत प्रौद्योगिकी से संभव नहीं हैं।
  • यह "क्यूबिट्स" (क्वांटम बिट्स) का उपयोग करके संगणना करता है, जो परमाणु स्तर पर पदार्थ के व्यवहार को निर्धारित करते हैं। ये प्रायिकतात्मक व्यवहार प्रदर्शित करते हैं, जिससे वे परंपरागत प्रौद्योगिकियों के दायरे से बाहर अन्य कार्यों को पूरा करने में सक्षम होते हैं, जबकि क्लासिकल प्रणालियाँ निर्धारणात्मक/निश्चयात्मक नियमों का पालन करती हैं। 

क्वांटम कंप्यूटिंग पर नीति आयोग की रिपोर्ट संबंधी मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • वैश्विक क्वांटम निवेश: समग्र विश्व में 30 से अधिक सरकारों द्वारा 40 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक का निवेश किया गया है। चीन 15 बिलियन अमरीकी डॉलर के निवेश के साथ अग्रणी है, उसके बाद अमेरिका और यूरोप का स्थान है।
  • भारत का परिदृश्य: क्वांटम प्रौद्योगिकी में देशज क्षमताओं का विकास करने हेतु और इस उभरते क्षेत्र में भारत को अग्रणी देश के रूप में स्थापित करने के लिये 6,003 करोड़ रुपए के बजट आवंटन के साथ राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM) शुरू किया गया।
  • निहितार्थ: इसके सैन्य और आसूचना क्षेत्रों में दोहरे उपयोग के अनुप्रयोग हैं, क्वांटम प्रौद्योगिकी एन्क्रिप्शन को परिवर्धित कर सकती है, अनुवीक्षण प्रणालियों में सुधार कर सकती है, और हथियारों का उन्नयन कर सकती है, जिससे राष्ट्रों को रक्षा तथा राष्ट्रीय सुरक्षा में तकनीकी बढ़त मिल सकती है।
    • आर्थिक दृष्टि से, इससे नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है, उच्च तकनीक वाले उद्योग का सृजन हो सकता है और साथ ही निवेश आकर्षित किया जा सकता है। 

क्वांटम कंप्यूटिंग पर नीति आयोग की रिपोर्ट में किन चुनौतियों का उल्लेख किया गया है?

  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में कम फंडिंग: भारत ने NQM के लिये ₹6,003 करोड़ (~USD 750 मिलियन) आवंटित किये हैं, जो अन्य वैश्विक अभिनेताओं की तुलना में काफी कम है। यह क्वांटम इंफ्रास्ट्रक्चर, अत्याधुनिक शोध और प्रतिभा अधिग्रहण में प्रतिस्पर्द्धा करने की भारत की क्षमता को सीमित करता है।
    • बड़े पैमाने पर व्यावसायीकरण में वित्त की कमी के कारण बाधा उत्पन्न हो रही है, जिससे क्वांटम प्रभुत्व स्थापित करने के भारत के प्रयासों में देरी होती है।
  • कमज़ोर घरेलू आपूर्ति शृंखला: क्वांटम कंप्यूटिंग के लिये आवश्यक अत्यधिक विशिष्ट घटक, जैसे कि मज़बूत क्वांटम सर्किट बनाने हेतु उच्च शुद्धता वाली सामग्री और क्वांटम प्रोसेसर के शीतलन हेतु क्रायोजेनिक उपकरण, आवश्यक हैं। घरेलू विनिर्माण क्षमताओं की कमी के कारण भारत विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर बहुत अधिक निर्भर है।
  • सीमित स्टार्टअप और उद्योग भागीदारी: भारत का क्वांटम पारिस्थितिकी तंत्र काफी हद तक अकादमिक जगत द्वारा संचालित है, जबकि अमेरिका और यूरोप इसके विपरीत हैं, जहाँ गूगल, IBM और माइक्रोसॉफ्ट जैसी IT कंपनियाँ क्वांटम नवाचार को बढ़ावा देती हैं। 
  • निजी क्षेत्र के निवेश और उद्यम पूंजी वित्तपोषण का अभाव भारतीय क्वांटम नवाचारों की मापनीयता और व्यावसायीकरण को सीमित करता है।
  • साइबर सुरक्षा जोखिम: मौजूदा साइबर सुरक्षा ढाँचे पुराने हो जाएंगे, क्योंकि एक दिन क्वांटम कंप्यूटरों में वर्तमान एन्क्रिप्शन मानकों को प्रतिस्थापित करने की क्षमता होगी।
    • पारंपरिक एन्क्रिप्शन विधियों का उपयोग करके संग्रहीत संवेदनशील सरकारी, सैन्य, वित्तीय तथा व्यक्तिगत डेटा प्रभावित में होंगे।
  • ऑनलाइन बैंकिंग, डिजिटल भुगतान और सुरक्षित संचार से समझौता हो सकता है, जिससे आर्थिक अस्थिरता और साइबर फ्रॉड हो सकती है।
  • जाँच एवं अन्वेषण: क्वांटम कंप्यूटिंग सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGINT) में महत्त्वपूर्ण सुधार करेगी, जिससे राष्ट्रों को अभूतपूर्व पैमाने पर इंटरसेप्ट किये गए संचार को डिक्रिप्ट करने की अनुमति मिलेगी।
  • गोपनीय राजनयिक केबल, सैन्य रणनीतियाँ और वर्गीकृत खुफिया जानकारी उजागर हो सकती है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • क्वांटम डिक्रिप्शन क्षमताएं राष्ट्रों को साइबर युद्ध और सूचना संग्रहण में सामरिक बढ़त प्रदान करेंगी।
  • सैन्य रणनीति और युद्ध प्रौद्योगिकियों के संदर्भ में, क्वांटम प्रौद्योगिकी से संचालित रक्षा प्रणालियों वाले शत्रुओं को लाभ हो सकता है।

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन क्या है? 

  • राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM): केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 19 अप्रैल, 2023 को 2023-24 से 2030-31 की अवधि के लिये राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM) को मंजूरी दी।
  • इसका उद्देश्य वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना, उसका पोषण करना और उसे आगे बढ़ाना तथा क्वांटम प्रौद्योगिकी में एक जीवंत एवं नवीन पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
  • मुख्य उद्देश्य: 
    • क्वांटम कंप्यूटर का विकास: आठ वर्षों के दौरान, फोटोनिक और सुपरकंडक्टिंग प्रौद्योगिकी जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग करके 50-1000 भौतिक क्यूबिट के साथ मध्यवर्ती-स्तरीय क्वांटम कंप्यूटर विकसित करना।
    • सुरक्षित संचार: भारत में 2000 किमी से अधिक दूरी पर स्थित ग्राउंड स्टेशनों के बीच उपग्रह आधारित सुरक्षित क्वांटम संचार को सुनिश्चित करना।
      • अन्य देशों के साथ लंबी दूरी का सुरक्षित क्वांटम संचार सुनिश्चित करना। 
    • क्वांटम सेंसिंग और मेट्रोलॉजी: सटीक समय, संचार एवं नेविगेशन हेतु उच्च संवेदनशीलता वाले मैग्नेटोमीटर तथा परमाणु घड़ियों का विकास करना।
    • विषयगत केंद्रों (T-हब) की स्थापना: निम्नलिखित क्षेत्रों से संबंधित शीर्ष शैक्षणिक तथा राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास संस्थानों में 4 T-हब स्थापित करना: 

National Quantum Mission

क्वांटम कंप्यूटिंग पर नीति आयोग की क्या सिफारिशें हैं?

  • राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को उन्नत बनाना: वैश्विक क्वांटम प्रगति पर निरंतर नज़र बनाए रखने तथा संभावित खतरों का आकलन करने के क्रम में एक टास्क फोर्स की स्थापना करनी चाहिये।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव को रोकने के क्रम में उभरते क्वांटम खतरों की पहचान करने तथा उन्हें कम करने के लिये एक पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करनी चाहिये।
    • भविष्य के क्वांटम साइबर हमलों से सरकारी, वित्तीय तथा औद्योगिक डेटा को सुरक्षित करने के क्रम में पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी (PQC) संक्रमण योजना को लागू करना चाहिये।
  • अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: क्वांटम स्टार्टअप्स में तेज़ी लाने तथा स्वदेशी हार्डवेयर विकास को समर्थन देने के क्रम में अनुसंधान एवं विकास निधि में वृद्धि करनी चाहिये।
    • तीव्र व्यावसायीकरण हेतु शिक्षा और उद्योग के बीच के अंतराल को कम करने के क्रम में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • घरेलू आपूर्ति श्रृंखला को मज़बूत करना: क्रायोजेनिक प्रणालियों, उच्च शुद्धता वाली सामग्रियों एवं विशेष लेज़रों जैसे महत्त्वपूर्ण क्वांटम हार्डवेयर घटकों के लिये एक मज़बूत घरेलू विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना चाहिये।
    • क्वांटम चिप निर्माण और हार्डवेयर उत्पादन सुविधाओं में निवेश करके विदेशी आयात पर निर्भरता कम करनी चाहिये।
  • वैश्विक साझेदारी का विस्तार: अत्याधुनिक अनुसंधान, हार्डवेयर एवं विशेषज्ञता तक पहुँच प्राप्त करने के क्रम में अमेरिका, यूरोपीय संघ एवं जापान जैसे अग्रणी क्वांटम देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते करने चाहिये।
  • आवश्यक प्रौद्योगिकियों तक निर्बाध पहुँच सुनिश्चित करने के क्रम में महत्त्वपूर्ण क्वांटम घटकों पर लगे निर्यात नियंत्रण को लचीला बनाना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न

प्रश्न: क्वांटम प्रौद्योगिकी वैश्विक सुरक्षा एवं आर्थिक परिदृश्य को नया आकार देने में सक्षम है। क्वांटम कंप्यूटिंग द्वारा उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा करते हुए सुझाव दीजिये कि भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के क्रम में क्या उपाय करने चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न:  निम्नलिखित में से कौन-सा वह संदर्भ है जिसमें "क्यूबिट" शब्द का उल्लेख किया गया है?

(a) क्लाउड सेवाएँ
(b) क्वांटम कंप्यूटिंग
(c) दृश्य प्रकाश संचार तकनीक
(d) बेतार (वायरलेस) संचार तकनीक 

उत्तर: (b)


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