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सामाजिक न्याय

भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध

  • 04 Feb 2025
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, प्रथम सूचना रिपोर्ट, समवर्ती सूची, आजीविका और उद्यम के लिये हाशिये पर पड़े व्यक्तियों के लिये सहायता, गरीबी, बेरोज़गारी

मेन्स के लिये:

भारत में कमज़ोर समूह, भीख मांगना, भारत में सामाजिक कल्याण के लिये कानूनी ढाँचा, भिक्षावृत्ति का अपराधीकरण।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

इस समस्या से निपटने और विस्थापित भिखारियों के लिये वैकल्पिक समाधान प्रदान करने के प्रयासों के तहत, उदाहरण के रूप में इंदौर का अनुसरण करते हुए, भोपाल, मध्य प्रदेश ने सभी सार्वजनिक स्थानों पर भिक्षावृत्ति पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।

भोपाल में भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया?

  • भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध का कारण: यातायात सिग्नल, धार्मिक स्थलों और पर्यटन स्थलों पर भिक्षावृत्ति की खबरों के कारण यह प्रतिबंध लगाया गया था, जिससे यातायात में बाधा उत्पन्न होती है और दुर्घटनाएँ होती हैं
  • अधिकारियों ने यह भी बताया कि कई भिखारी अन्य राज्यों से आते हैं और उनका आपराधिक रिकॉर्ड है या वे अवैध गतिविधियों में संलिप्त हैं, जिससे सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और आगे के खतरों को रोकने के लिये तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  • कानूनी कार्रवाई:
    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 163 (उपद्रव या आशंका वाले खतरे के अत्यावश्यक मामलों में आदेश जारी करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति) के तहत पूरे भोपाल ज़िले में भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
      • इसके अतिरिक्त, BNSS की धारा 223 उन लोगों को दंडित करती है जो लोक सेवकों द्वारा आधिकारिक रूप से दिये गए आदेशों की अवहेलना करते हैं।
    • यह प्रतिबंध इंदौर के कदम के बाद लगाया गया है, जहाँ इस वर्ष के प्रारंभ में इसी प्रकार का प्रतिबंध लगाया गया था, जिसमें उल्लंघनकर्त्ताओं के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करना भी शामिल था।

भिक्षावृत्ति से संबंधित कानूनी प्रावधान कौन-से है?

  • औपनिवेशिक कानून: वर्ष 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम ने खानाबदोश जनजातियों को अपराधी घोषित कर दिया तथा उन्हें भिक्षावृत्ति से जोड़ दिया।
  • वर्तमान विधिक ढाँचा: भारतीय संविधान के अनुसार संघ और राज्य सरकारों दोनों को समवर्ती सूची (सूची III, प्रविष्टि 15) के तहत आहिंडन अथवा वैग्रेंसी (भिक्षावृत्ति सहित), घुमंतू और प्रवासी जनजातियों पर विधि का निर्माण करने की अनुमति है।
    • भिक्षावृत्ति से संबंधित कोई केंद्रीय विधि नहीं है। इसके स्थान पर, कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 को आधार बनाकर विधि का निर्माण किया है।
      • इस अधिनियम में भिक्षुक को न केवल भिक्षा माँगने वाले व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, बल्कि इसके अंतर्गत ऐसी व्यक्ति भी शामिल हैं जो सड़कों पर प्रदर्शन करते हैं, जीविकोपार्जन हेतु वस्तुओं का विक्रय करते हैं अथवा निर्वाह के प्रत्यक्ष साधन के आभाव में निराश्रित होते हैं।
      • आहिंडन में भिक्षा माँगना भी शामिल है और अधिनियम के अनुसार इन गतिविधियों में शामिल व्यक्तियाँ सामाजिक उपद्रवी होते हैं।
  • विधिशास्त्र: दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में निर्णय सुनाया कि बॉम्बे अधिनियम की प्रवृत्ति मनमाना है और यह सम्मान से जीने के अधिकार का उल्लंघन है और निर्धनता को अपराध घोषित किये बिना इसका समाधान किये जाने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में सार्वजनिक स्थानों से भिक्षुकों को प्रतिबंधित किये जाने की मांग वाले एक लोकहित मुकदमे को खारिज़ कर दिया और निर्णय सुनाया कि भिक्षावृत्ति एक आपराधिक मुद्दा नहीं अपितु सामाजिक-आर्थिक समस्या है।
  • SMILE: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2022 में शुरू की गई आजीविका और उद्यम हेतु हाशिए पर स्थित व्यक्तियों की सहायता (SMILE) योजना का उद्देश्य वर्ष 2026 तक "भिक्षावृत्ति मुक्त" भारत की दिशा में कार्य करते हुए चिकित्सा देखभाल, शिक्षा तथा कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर भिक्षुकों का पुनर्वास करना है।
    • वर्ष 2024 तक, SMILE के तहत 970 व्यक्तियों का पुनर्वास किया गया, जिनमें बालकों की संख्या 352 थी।

नोट: 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में भिक्षुकों और आहिंडकों (Vagrants) की संख्या लगभग 413670 थी। भिक्षुकों की सर्वाधिक संख्या पश्चिम बंगाल में है, उसके बाद उत्तर प्रदेश और बिहार का स्थान है।

भारत में भिक्षावृत्ति के प्रचलन के क्या कारण है?

  • आर्थिक कठिनाइयाँ: गरीबी, बेरोज़गारी और अल्परोज़गार भिक्षावृत्ति के प्रमुख कारण हैं।
    • हाशिए पर स्थित व्यक्तियों का गाँवों से शहरों की ओर पलायन करने से प्रायः निर्धनता की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे वे भिक्षावृत्ति के लिये विवश हो जाते हैं।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक कारक: जाति व्यवस्था के कारण ऐतिहासिक रूप से कुछ समुदायों का हाशियाकरण जारी है, जिससे उनके अवसर सीमित हो गए हैं।
    • कुछ संस्कृतियों के लिये भिक्षावृत्ति एक वंशानुगत व्यवसाय है (जैसे, नट, बाज़ीगर और सैन्स)।
  • शारीरिक एवं मानसिक दिव्यांगता: स्वास्थ्य देखभाल और पुनर्वास सेवाओं के अभाव के कारण दिव्यांग व्यक्तियों को भिक्षावृत्ति के लिये विवश होना पड़ता है।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: बाढ़, सूखा और भूकंप से लोगों को विस्थापन होता है, जिससे उनके लिये अत्यधिक निर्धनता और भिक्षावृत्ति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • संगठित भिक्षावृत्ति का गिरोह: मानव तस्कर और आपराधिक गिरोह महिलाओं और बच्चों का जबरन भिक्षावृत्ति के लिये शोषण करते हैं, जो अनुच्छेद 23 (मानव तस्करी, गुलामी या शोषण पर रोक) का उल्लंघन है।
    • शिशुओं को प्रायः रुग्ण दिखाने के लिये तथा सहानुभूति-प्रेरित दान बढ़ाने के लिये मादक दवाएँ दी जाती हैं।

भिक्षावृत्ति का समाज पर क्या परिणाम होता है?

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता जोखिम: भिक्षावृत्ति वाले स्थानों पर प्रायः स्वच्छता की कमी होती है, जिससे बीमारियाँ फैलती हैं।
  • अपराध और शोषण: संगठित भिक्षावृत्ति वाले गिरोह बाल तस्करी और जबरन श्रम में संलिप्त हैं। भिखारियों में नशीली दवाओं की लत और मादक द्रव्यों के सेवन का जोखिम अधिक है।
  • पर्यटन और शहरी क्षेत्र: शहरों में अनियंत्रित भिक्षावृत्ति से पर्यटन प्रभावित होता है और भारत की वैश्विक छवि को नुकसान पहुँचता है। 
    • सड़कों पर भिक्षावृत्ति की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण सुरक्षा संबंधी चिंताएँ और सार्वजनिक उपद्रव की शिकायतें बढ़ रही हैं।
  • मानवाधिकार उल्लंघन: कई भिखारियों को वैकल्पिक पुनर्वास के बिना भिक्षावृत्ति विरोधी कानूनों के तहत गिरफ्तार किया जाता है।
    • भिखारी की परिभाषा में औपनिवेशिक युग के पूर्वाग्रहों का प्रतिबिंबन जारी है, जिसमें प्रायः खानाबदोश जनजातियों और गरीबों को कानूनी कार्यवाही का लक्ष्य बनाया जाता है।  
    • ये कानून कभी-कभी अधिकारियों को गरीबों या शहरी सौंदर्य के साथ असंगत समझे जाने वाले लोगों को गिरफ्तार करने की शक्ति देते हैं।

आगे की राह

  • भिक्षावृत्ति वाले गिरोहों से निपटना: पुलिस, गैर-सरकारी संगठनों (NGO) और बाल कल्याण संगठनों के बीच बेहतर समन्वय के माध्यम से भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत भिक्षावृत्ति वाले गिरोहों को खत्म करने के लिये तस्करी विरोधी कानूनों का सख्ती से प्रवर्तन।
    • शोषणकारी भिक्षावृत्ति सिंडिकेट को दंडित करना। कारावास के बजाय पुनर्वास पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • सामुदायिक संवेदनशीलता: भिक्षावृत्ति को प्रोत्साहित करने के नुकसान के बारे में जागरूकता बढ़ाना और विश्वसनीय धर्मार्थ संस्थाओं और सामुदायिक परियोजनाओं के लिये दान को बढ़ावा देना, तथा यह सुनिश्चित करना कि पुनर्वास प्रयासों के लिये धन उपलब्ध हो।
  • शहरी नियोजन और निराश्रयों के लिये सहायता: बेहतर सुविधाओं के साथ सरकार द्वारा संचालित रात्रि आश्रयों (Run Night Shelters) की संख्या में वृद्धि करना।
    • भिखारियों को समाज में एकीकृत करने में सहायता के लिये कौशल प्रशिक्षण और रोज़गार के अवसर प्रदान करना।
  • नीतिगत ढाँचा: बेरोज़गारी और सामाजिक बहिष्कार जैसे अंतर्निहित मुद्दों को लक्षित करते हुए नीतियों का निर्माण करना, रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करना।
    • भिक्षावृत्ति की जटिल प्रकृति को संबोधित करने वाले समग्र समाधान तैयार करने के लिये सामाजिक न्याय, शहरी मामलों और श्रम जैसे मंत्रालयों के प्रयासों में समन्वय स्थापित करना।
  • स्थानीय साझेदारियाँ: पुनर्वासित व्यक्तियों के लिये स्थायी आजीविका प्रदान करने के लिये स्थानीय व्यवसायों और उद्योगों के साथ सहयोग करना, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित हो सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में भिक्षावृत्ति एक व्यक्तिगत पसंद के बजाय सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और नीतिगत विफलताओं का प्रतिबिंब है।" भारत में भिक्षावृत्ति की समस्या के समाधान के लिये संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिये। 

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