माजुली मुखौटे, पांडुलिपि और नरसापुर क्रोशिया लेस शिल्प को मिला GI टैग का दर्जा
प्रिलिम्स के लिये:माजुली मुखौटा, माजुली पांडुलिपि चित्रकारी, क्रोशिया लेस शिल्प, भौगोलिक संकेतक मेन्स के लिये:बौद्धिक संपदा अधिकार, पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण |
स्रोत: द हिंदू
आंध्र प्रदेश के नरसापुर के पारंपरिक क्रोशिया लेस शिल्प को चीन के मशीन-निर्मित लेस उत्पादों से संरक्षण प्रदान करते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने के लिये भौगोलिक संकेतक का दर्जा प्रदान किया गया।
- इसी प्रकार सांस्कृतिक महत्त्व का संवर्द्धन और संरक्षण प्रदान करते हुए असम के माजुली मुखौटे तथा पांडुलिपि चित्रकारी को GI का दर्जा प्रदान किया गया।
- इन GI टैग का उद्देश्य पारंपरिक शिल्प को पुनर्जीवित करना और उनका संवर्द्धन करना है जिससे उनकी कालजयी विरासत का संरक्षण सुनिश्चित होता है।
नरसापुर क्रोशिया लेस शिल्प से संबंधित मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- नरसापुर क्रोशिया लेस शिल्प:
- क्रोशिया लेस शिल्प की शुरुआत वर्ष 1844 में हुई और इसे कई बाधाओ जैसे भारतीय अकाल (1899) तथा महामंदी (1929), का सामना करना पड़ा। 1900 के दशक के प्रारंभ में गोदावरी क्षेत्र में 2,000 से अधिक महिलाएँ लेस शिल्पकला में शामिल थीं जो इसकी सांस्कृतिक महत्त्व को उजागर करता है।
- इस शिल्प में विभिन्न आकार की क्रोशिया सलाई का उपयोग कर पतले सूती धागों के माध्यम से जटिल कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं।
- इस शिल्प के कारीगर लूप और इंटरलॉकिंग टाँके बनाने के लिये एकल क्रोशिया हुक का उपयोग करते हैं जिससे उत्कृष्ट लेस पैटर्न बनते हैं।
- नरसापुर का हस्त निर्मित क्रोशिया उद्योग लेस से निर्मित उत्पादों की एक विविध शृंखला का उत्पादन करता है जिनमें वस्त्र, घरेलू सामान और सहायक उपकरण जैसे डोयली, तकिया का कवर, कुशन का कवर, बेडस्प्रेड, टेबल-रनर, टेबल क्लॉथ, हैंड पर्स, कैप, टॉप, स्टोल, लैंपशेड तथा दीवार पर सजाई जाने वाली वस्तुएँ इत्यादि शामिल हैं।
- यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्राँस जैसे देशों में नरसापुर के क्रॉशिया लेस उत्पादों के निर्यात के साथ ये उत्पाद वैश्विक बाज़ारों में अपनी जगह बना रहे हैं।
- भौगोलिक संकेतक (GI) टैग:
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग ने संबद्ध शिल्प को भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री (GIR) में पंजीकृत किया तथा यह प्रामाणित किया कि यह शिल्प भौगोलिक रूप से गोदावरी क्षेत्र के पश्चिम गोदावरी तथा डॉ. बी.आर.अंबेडकर कोनसीमा के 19 मंडलों तक सीमित है।
- पश्चिम गोदावरी ज़िले में नरसापुर और पलाकोले लेस उत्पादों के प्रमुख व्यापार केंद्र हैं जबकि कोनसीमा क्षेत्र में रज़ोल तथा अमलापुरम इस शिल्प के प्रमुख केंद्र हैं।
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग ने संबद्ध शिल्प को भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री (GIR) में पंजीकृत किया तथा यह प्रामाणित किया कि यह शिल्प भौगोलिक रूप से गोदावरी क्षेत्र के पश्चिम गोदावरी तथा डॉ. बी.आर.अंबेडकर कोनसीमा के 19 मंडलों तक सीमित है।
- नरसापुर के कारीगरों के सम्मुख चुनौतियाँ:
- कोविड-19 महामारी के बाद से शिल्प बाज़ार स्थिर रहा है जिसके परिणामस्वरूप इन उत्पादों की मांग प्रभावित हुई है और उत्पादन में कमी आई है।
- हालाँकि इस शिल्प में 15,000 से अधिक महिलाएँ शामिल हैं किंतु लगभग 200 ही नियमित उत्पादन में सक्रिय रूप से शामिल हैं।
- चीन के मशीन-निर्मित लेस उत्पादों ने बाज़ार पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया है जिससे नरसापुर लेस उत्पादों की मांग के लिये एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है।
माजुली मुखौटे और माजुली पांडुलिपि पेंटिंग क्या हैं?
- माजुली मुखौटा:
- माजुली मुखौटे पारंपरिक तकनीकों पर आधारित हाथ द्वारा बारीकी से तैयार किये गए मुखौटे हैं।
- हस्तनिर्मित इन मुखौटों का प्रयोग परंपरागत रूप से भाओना (धार्मिक संदेशों के साथ मनोरंजन का एक पारंपरिक रूप) या नव-वैष्णव परंपरा के तहत भक्ति संदेशों के साथ नाटकीय प्रदर्शन में पात्रों को चित्रित करने के लिये किया जाता है, जो 15वीं-16वीं शताब्दी के सुधारक संत श्रीमंत शंकरदेव द्वारा शुरू की गई थी।
- मुखौटों में देवी-देवताओं, राक्षसों, जीव-जंतुओं और पक्षियों को चित्रित किया जा सकता है जिनमें रावण, गरुड़, नरसिम्हा, हनुमान, वराह, शूर्पनखा इत्यादि शामिल होते हैं।
- बाँस, मिट्टी, गोबर, कपड़ा, कपास और लकड़ी सहित विभिन्न सामग्रियों से बने मुखौटे का आकार सिर्फ चेहरे को ढकने से लेकर कलाकार के पूरे सिर तथा शरीर को ढकने तक होता है।
- पारंपरिक दस्तकार समसामयिक संदर्भों को अपनाने के लिये सात्रा (मठ) की सीमाओं से परे जाकर माजुली मुखौटा निर्माण का आधुनिकीकरण कर रहे हैं।
- सत्रों की स्थापना श्रीमंत शंकरदेव और उनके शिष्यों द्वारा धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक सुधार के केंद्र के रूप में की गई थी।
- माजुली, अपने 22 सत्रों के साथ, इन सांस्कृतिक प्रथाओं का केंद्र है। मुखौटा बनाने की परंपरा मुख्य रूप से चार सत्रों- समागुरी सत्र, नतुन समागुरी सत्र, बिहिमपुर सत्र और अलेंगी नरसिम्हा सत्र में पाई जाती है।
- माजुली पांडुलिपि पेंटिंग:
- पाल कला बौद्ध कला की शैली को संदर्भित करती है जो पूर्वी भारत के पाल साम्राज्य (8वीं-12वीं शताब्दी) में विकसित हुई थी। इसकी विशेषता इसके जीवंत रंग, विस्तृत कार्य और धार्मिक विषयों पर ज़ोर है।
- माजुली की पांडुलिपि पेंटिंग धार्मिक कला का एक रूप है जो पूजा पर केंद्रित द्वीप की वैष्णव संस्कृति से निकटता से जुड़ी हुई है।
- इस कला के सबसे शुरुआती उदाहरणों में से एक का श्रेय श्रीमंत शंकरदेव को दिया जाता है, जो असमिया में भागवत पुराण के आद्य दशम को दर्शाते हैं। माजुली के हर सत्र में इसका अभ्यास जारी है।
- माजुली पांडुलिपि पेंटिंग पाला स्कूल ऑफ पेंटिंग कला से प्रेरित हैं।
और पढ़ें: भारत का भौगोलिक संकेतक परिदृश्य, 17 से अधिक उत्पादों के लिये GI टैग
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किसे 'भौगोलिक संकेतक' का दर्जा प्रदान किया गया है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. भारत ने वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 को किसके दायित्वों का पालन करने के लिये अधिनियमित किया? (2018) (a) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भैषजिक कंपनियों के द्वारा आयुर्विज्ञान के पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने से भारत सरकार किस प्रकार रक्षा कर रही है? (2019) |
भारत में बढ़ते मोटापे की समस्या
प्रिलिम्स के लिये:विश्व स्वास्थ्य संगठन, बॉडी मास इंडेक्स, मोटापा, मिशन पोषण 2.0, मध्याह्न भोजन योजना, पोषण वाटिकाएँ, मेन्स के लिये:कुपोषण, भारत में कुपोषण से निपटने हेतु कदम, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
स्रोत:द हिंदू
चर्चा में क्यों?
द लैंसेट में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन ने दुनिया भर में पिछले कुछ दशकों में बच्चों, किशोरों एवं वयस्कों में मोटापे की दर में चिंताजनक वृद्धि पर प्रकाश डाला है।
- यह व्यापक विश्लेषण विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से NCD के जोखिम कारकों पर सहयोग (NCD-RisC) द्वारा आयोजित किया गया था।
- अध्ययन में यह समझने हेतु बॉडी मास इंडेक्स पर गौर किया गया कि वर्ष 1990 से 2022 तक दुनिया भर में मोटापे और कम वज़न में परिदृश्य कैसे बदल गया है।
नोट:
- NCD-RisC दुनिया भर के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों का एक नेटवर्क है जो दुनिया के सभी देशों के लिये गैर-संचारी रोगों के प्रमुख जोखिम कारकों पर प्रमुख और समय पर डेटा प्रदान करता है।
अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- भारत के आँकड़े:
- मोटापा:
- लैंसेट ने जारी किये कि वर्ष 2022 में भारत में 5-19 वर्ष की आयु के 12.5 मिलियन बच्चों (7.3 मिलियन लड़के और 5.2 मिलियन लड़कियाँ) को अत्यधिक अधिक वज़न वाले के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जो वर्ष 1990 में 0.4 मिलियन की महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्शाता है।
- लड़कियों और लड़कों में मोटापे की श्रेणी के प्रसार के मामले में भारत वर्ष 2022 में दुनिया में 174वें स्थान पर था।
- वयस्क महिलाओं में मोटापे की दर वर्ष 1990 में 1.2% से बढ़कर वर्ष 2022 में 9.8% हो गई और इसी अवधि में पुरुषों में 0.5% से 5.4% हो गई।
- कुपोषण:
- भारत में भी अल्पपोषण की व्यापकता अधिक बनी हुई है, परिणामस्वरूप, भारत कुपोषण के उच्च "दोहरे बोझ" वाले देशों में से एक बन गया है।
- 13.7% महिलाएँ एवं 12.5% पुरुष कम वज़न वाले थे।
- दुबलापन, बच्चों में कम वज़न की एक माप जो लड़कियों में 20.3% की व्यापकता के साथ दुनिया में सबसे अधिक है।
- यह 21.7% की व्यापकता के साथ लड़कों में दूसरे स्थान पर था।
- भारत में भी अल्पपोषण की व्यापकता अधिक बनी हुई है, परिणामस्वरूप, भारत कुपोषण के उच्च "दोहरे बोझ" वाले देशों में से एक बन गया है।
- मोटापा:
- वैश्विक:
- विश्व भर में मोटापे से ग्रस्त बच्चों, किशोरों और वयस्कों की कुल संख्या एक अरब से अधिक हो गई है।
- कुल मिलाकर वर्ष 2022 में 159 मिलियन बच्चे और किशोर तथा 879 मिलियन वयस्क मोटापे से ग्रस्त थे।
- मोटापे में वृद्धि के कारण अधिकांश देशों में कम वज़न और मोटापे का संयुक्त भार बढ़ गया है, जबकि दक्षिण एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में कम वज़न और पतलापन प्रचलित है।
- वर्ष 2022 में, कैरेबियन पोलिनेशिया और माइक्रोनेशिया के द्वीप देशों तथा मध्य पूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका के देशों में कम वज़न व मोटापे का संयुक्त प्रसार सबसे अधिक था।
- वर्ष 2022 में पतलेपन और मोटापे की संयुक्त व्यापकता वाले देश पोलिनेशिया, माइक्रोनेशिया तथा कैरेबियन दोनों लिंगों हेतु एवं चिली व कतर लड़कों के लिये थे।
- भारत और पाकिस्तान जैसे दक्षिण एशिया के कुछ देशों में भी संयुक्त प्रसार अधिक था, जहाँ गिरावट के बावजूद पतलापन प्रचलित रहा।
- विश्व भर में मोटापे से ग्रस्त बच्चों, किशोरों और वयस्कों की कुल संख्या एक अरब से अधिक हो गई है।
- मोटापे में योगदान देने वाले कारक:
- महिलाओं में वज़न बढ़ने की संभावना अधिक होती है क्योंकि उनके पास अक्सर व्यायाम के लिये समय नहीं होता है और वे अपने परिवार के पोषण को अपने पोषण से अधिक प्राथमिकता देती हैं।
- घरेलू ज़िम्मेदारियों के कारण भी उन्हें कम नींद आती है।
- इसके अतिरिक्त अस्वास्थ्यकर जंक फूड पौष्टिक विकल्पों की तुलना में सस्ता और अधिक आसानी से उपलब्ध है, जिससे मोटापे की दर बढ़ जाती है, यहाँ तक कि तमिलनाडु, पंजाब तथा गोवा जैसे स्थानों में कम आय वाले लोगों में भी।
अधिक वज़न, पतलापन और मोटापा क्या हैं?
- बॉडी मास इंडेक्स:
- BMI वज़न-से-ऊँचाई (weight-to-height) का एक माप है जिसका प्रयोग आमतौर पर वयस्कों में कम वज़न, अधिक वज़न और मोटापे को वर्गीकृत करने के लिये किया जाता है।
- इसकी गणना किलोग्राम में वज़न को मीटर (किलो/वर्ग मीटर या kg/m²) में ऊँचाई के वर्ग से विभाजित करके की जाती है।
- उदाहरण के लिये, 58 किलोग्राम वज़न वाले और 1.70 मीटर लंबे वयस्क का बीएमआई 20.1 होगा (बीएमआई = 58 किलोग्राम / (1.70 मीटर ×1.70 मीटर))।
- मोटापा और अधिक वज़न:
- अधिक वज़न और मोटापे को असामान्य या अत्यधिक वसा संचय के रूप में परिभाषित किया गया है जो स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करता है।
- अधिक वज़न अत्यधिक वसा जमा होने की स्थिति है और मोटापा एक क्रॉनिक बीमारी है जो तब होती है जब शरीर अतिरिक्त कैलोरी को वसा के रूप में संग्रहीत करता है।
- मोटापा हृदय रोग, मधुमेह, मस्क्यूलोस्केलेटल विकार और कुछ कैंसर जैसी पुरानी बीमारियों के लिये एक प्रमुख जोखिम कारक है।
- बाल्यावस्था का मोटापा गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं और समय से पहले संबंधित बीमारियों के शुरू होने के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है।
- मोटापा कुपोषण के दोहरे बोझ का एक पक्ष है और आज दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र को छोड़कर हर क्षेत्र में अधिकांश लोग कम वज़न वाले लोगों की तुलना में मोटापे से ग्रस्त हैं।
- दुबलापन और कम वज़न:
- दुबलेपन और कम वज़न का तात्पर्य ऊँचाई के सापेक्ष शरीर का वज़न सामान्य वज़न से कम होना है। यह प्रायः अपर्याप्त कैलोरी सेवन या अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियों से जुड़ा होता है।
- कम वज़न अल्पपोषण के चार व्यापक उप-रूपों में से एक है।
- यदि किसी वयस्क का BMI 18 kg/m2 से कम है तो उसे कम वज़न का माना जाता है। स्कूल जाने वाले बच्चों और किशोरों को कम वज़न का माना जाता है यदि उनका BMI औसत से दो मानक विचलन कम है।
- अल्पपोषण चार व्यापक रूपों में परिलक्षित होता है: वेस्टिंग, स्टंटिंग, कम वज़न और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी।
- कम वज़न होने से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं, जिनमें ऑस्टियोपोरोसिस, त्वचा, बाल या दांतों की समस्याएँ, निरंतर बीमारियाँ, थकान, एनीमिया, अनियमित मासिक धर्म, समय-पूर्व जन्म, विकृत विकास और मृत्यु दर का जोखिम बढ़ना शामिल है।
पोषण सुधार से संबंधित भारत की क्या पहल हैं?
- ईट राइट मेला
- फिट इंडिया मूवमेंट
- ईट राइट स्टेशन प्रमाणन
- मिशन पोषण 2.0
- मध्याह्न भोजन योजना
- पोषण वाटिकाएँ
- आँगनवाड़ी
- समेकित बाल विकास सेवा योजना
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
आगे की राह
- मोटापे और कम वज़न को अलग-अलग नहीं माना जाना चाहिये, क्योंकि कम वज़न-मोटापे का संक्रमण तेज़ी से हो सकता है, जिससे उनका संयुक्त बोझ अपरिवर्तित या अधिक हो सकता है।
- उन कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होगा जो स्वस्थ पोषण को बढ़ाते हैं, जैसे लक्षित नकद हस्तांतरण, स्वस्थ खाद्य पदार्थों के लिये सब्सिडी या वाउचर के रूप में खाद्य सहायता, मुफ्त स्वस्थ स्कूल भोजन और प्राथमिक देखभाल-आधारित पोषण संबंधी हस्तक्षेप।
- मोटापे से ग्रस्त लोगों को वज़न घटाने में सहायता की तत्काल आवश्यकता है।
- रोकथाम और प्रबंधन विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मोटापे की शुरुआत की उम्र कम हो गई है, जिससे जोखिम की अवधि बढ़ जाती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट की गणना के लिये IFPRI द्वारा उपयोग किये जाने वाले संकेतक निम्नलिखित में से कौन-सा/से है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अधीन बनाए गए उपबंधों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. आप इस मत से कहाँ तक सहमत हैं कि भूख के मुख्य कारण के रूप में खाद्य की उपलब्धता की कमी पर मुख्य फोकस भारत में अप्रभावी मानव विकास नीतियों से ध्यान हटा देता है? (2018) |
संसदीय विशेषाधिकार और संबंधित मामले
प्रिलिम्स के लिये:अविश्वास प्रस्ताव, संसदीय विशेषाधिकार, सर्वोच्च न्यायालय, संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 मेन्स के लिये:संसदीय विशेषाधिकार, संसद और राज्य विधानमंडल |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पी. वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य (CBI/Spe) मामला, 1998, जिसे झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) रिश्वत मामले के रूप में भी जाना जाता है, में 25 वर्ष पुरानी बहुमत की राय को बदल दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों द्वारा संरक्षित नहीं है।
- पिछले फैसले में कहा गया था कि रिश्वत लेने वाले सांसदों पर भ्रष्टाचार के लिये मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, यदि वे सहमति के अनुसार मतदान करते हैं या सदन में बोलते हैं।
पी. वी. नरसिम्हा राव मामला और सर्वोच्च न्यायालय का हालिया फैसला क्या था?
- मामले की पृष्ठभूमि:
- पी.वी. नरसिम्हा राव मामला 1993 के झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) रिश्वतखोरी मामले को संदर्भित करता है। इस मामले में कुछ सांसदों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध वोट करने के लिये रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था।
- इस मामले ने संसदीय प्रणाली के भीतर भ्रष्टाचार के आरोपों को उजागर किया, विधायी प्रक्रियाओं की अखंडता और निर्वाचित प्रतिनिधियों की जवाबदेही के बारे में चिंताएँ उत्पन्न कीं।
- 1998 मामले में न्यायालय की टिप्पणी:
- वर्ष 1998 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने सांसदों (संसद सदस्यों) और विधानसभा के सदस्यों (विधायकों) के लिये रिश्वत के मामलों में अभियोजन से छूट की स्थापना की, जब तक कि वे सौदेबाज़ी के अंत को पूरा नहीं करते।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ मत देने वाले रिश्वत लेने वालों को संसदीय विशेषाधिकार (अनुच्छेद 105(2)) के तहत आपराधिक मुकदमे से छूट दी गई थी।
- इस निर्णय ने शासन और संसदीय लोकतंत्र के कामकाज में स्थिरता के महत्त्व को रेखांकित किया।
- न्यायालय की टिप्पणी ने व्यक्तिगत जवाबदेही पर सरकार के सुचारु संचालन को प्राथमिकता दी, यह सुझाव दिया कि रिश्वतखोरी के लिये सांसदों पर मुकदमा चलाने से सरकार की स्थिरता संभावित रूप से बाधित हो सकती है।
- वर्ष 1998 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने सांसदों (संसद सदस्यों) और विधानसभा के सदस्यों (विधायकों) के लिये रिश्वत के मामलों में अभियोजन से छूट की स्थापना की, जब तक कि वे सौदेबाज़ी के अंत को पूरा नहीं करते।
- 2024 मामले में न्यायालय की टिप्पणी:
- 7-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पी. वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य मामले, 1998 के 5-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को बदल दिया।
- जिसमें यह स्थापित किया गया था कि संसद सदस्यों और विधान सभाओं के सदस्यों को छूट प्राप्त थी यदि वे इसके लिये रिश्वत लेने के बाद सदन में वोट देते थे।
- सर्वोच्च न्यायालय ने लोकतांत्रिक सिद्धांतों और शासन पर रिश्वतखोरी के हानिकारक प्रभाव पर ज़ोर दिया।
- न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि रिश्वत लेना एक अलग आपराधिक कृत्य है, जो संसद या विधानसभा के भीतर सांसदों के मूल कर्त्तव्यों से असंबंधित है।
- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 'लोक सेवक को रिश्वत देने से संबंधित अपराध' से संबंधित है।
- इसलिये संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के तहत प्रदान की गई छूट रिश्वतखोरी के मामलों तक विस्तारित नहीं होती है।
- यह निर्णय भारत में एक ज़िम्मेदार, उत्तरदायी और प्रतिनिधि लोकतंत्र के आदर्शों को बनाए रखने के लक्ष्य के साथ, केवल स्थिरता के बदले शासन में जवाबदेही एवं अखंडता को प्राथमिकता देने की दिशा में बदलाव का प्रतीक है।
- 7-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पी. वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य मामले, 1998 के 5-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को बदल दिया।
संसदीय विशेषाधिकार क्या हैं?
- परिचय:
- संसदीय विशेषाधिकार संसद के सदस्यों और उनकी समितियों को प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ एवं छूट हैं।
- ये विशेषाधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में परिभाषित हैं।
- अनुच्छेद 194 राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों को समान विशेषाधिकार की गारंटी देता है।
- इन विशेषाधिकारों के तहत, संसद सदस्यों को अपने कर्त्तव्यों के दौरान दिये गए किसी भी बयान या किये गए कार्य के लिये किसी भी नागरिक दायित्व (लेकिन आपराधिक दायित्व नहीं) से छूट दी गई है।
- संसद ने सभी विशेषाधिकारों को विस्तृत रूप से संहिताबद्ध करने के लिये कोई विशेष कानून नहीं बनाया है। वे पाँच स्रोतों पर आधारित हैं:
- संवैधानिक प्रावधान
- संसद द्वारा बनाये गए विभिन्न कानून
- दोनों सदनों के नियम
- संसदीय सम्मेलन
- न्यायिक व्याख्याएँ
- संसदीय विशेषाधिकार संसद के सदस्यों और उनकी समितियों को प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ एवं छूट हैं।
- व्यक्तिगत सदस्य के विशेषाधिकार:
- संसद में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता {अनुच्छेद 105(1)}
- किसी सदस्य को संसद या उसकी किसी समिति [अनुच्छेद 105(2)] में कही गई किसी बात या दिये गए वोट के संबंध में किसी भी न्यायालय में किसी भी कार्यवाही से छूट।
- किसी भी रिपोर्ट, पेपर, वोट या कार्यवाही {अनुच्छेद 105(2)} के संसद के किसी भी सदन के अधिकार के तहत या प्रकाशन के संबंध में किसी भी न्यायालय में कार्यवाही से किसी व्यक्ति को छूट।
- प्रक्रिया की किसी भी कथित अनियमितता के आधार पर संसद में किसी भी कार्यवाही [अनुच्छेद 122(1)] की वैधता की जाँच करने के लिये न्यायालयों पर प्रतिबंध।
- सदन या उसकी समिति की बैठक जारी रहने के दौरान और बैठक शुरू होने से चालीस दिन पूर्व व समाप्ति (सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 135A) के चालीस दिन बाद तक दीवानी मामलों में सदस्यों की गिरफ्तारी से मुक्ति।
- सदन का सामूहिक विशेषाधिकार:
- किसी सदस्य की गिरफ्तारी, हिरासत, दोषसिद्धि, कारावास और रिहाई की तत्काल सूचना प्राप्त करने का सदन का अधिकार।
- सभापति/अध्यक्ष की अनुमति प्राप्त किये बिना सदन के परिसर के भीतर गिरफ्तारी से छूट और कानूनी प्रक्रिया।
- सदन की गुप्त बैठक की कार्यवाही के प्रकाशन का संरक्षण।
- संसदीय समिति के समक्ष प्रस्तुत किये गए साक्ष्य और उसकी रिपोर्ट एवं कार्यवाही को कोई भी तब तक प्रकट या प्रकाशित नहीं कर सकता जब तक कि इन्हें सदन के समक्ष न रखा जाए।
- किसी संसदीय समिति के समक्ष दिये गए साक्ष्य और उसके प्रतिवेदन तथा उसकी कार्यवाही को को किसी के द्वारा तब तक प्रकट अथवा प्रकाशित नहीं किया जा सकता जब तक कि उन्हें सभा पटल पर न रख दिया गया हो।
- संसद सदस्य अथवा सभा के पदाधिकारी सभा की अनुमति के बिना न्यायालयों में सदन की कार्यवाही के संबंध में न तो कोई साक्ष्य दे सकते हैं, न ही कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सकते हैं।
नोट:
- केरल राज्य बनाम के.अजित केस, 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि, "विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ देश के सामान्य कानून से छूट का दावा करने का माध्यम नहीं हैं, विशेष रूप से आपराधिक कानून के मामले में जो प्रत्येक नागरिक की कार्रवाई को नियंत्रित करता है।"
- जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने केरल सरकार की अपने विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लेने की याचिका खारिज की जिन पर विधानसभा में आरोप लगाए गए थे।
संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ क्या हैं?
- यूनाइटेड किंगडम:
- वेस्टमिंस्टर की संसद को उक्त प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त हैं, जिनमें वाक् स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से उन्मुक्ति और अपनी कार्यवाही को विनियमित करने का अधिकार शामिल है।
- ये विशेषाधिकार कानून, सामान्य कानून और पूर्व निर्णय/उदाहरण के संयोजन के माध्यम से स्थापित किये जाते हैं।
- कनाडा:
- कनाडा की संसद ने भी अपने सदस्यों के लिये विशेषाधिकार का प्रावधान किया है जिनमें वाक् स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से उन्मुक्ति और विशेषाधिकार के उल्लंघन के लिये दंडित करने का अधिकार शामिल है।
- ये विशेषाधिकार संविधान अधिनियम, 1867 और कनाडा संसद अधिनियम में उल्लिखित हैं।
- ऑस्ट्रेलिया:ऑस्ट्रेलिया की संसद अपने संविधान में निहित विशेषाधिकारों के साथ समान सिद्धांतों का अनुपालन करती है। सदस्यों को वाक् स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से उन्मुक्ति और अपनी कार्यवाही को विनियमित करने का अधिकार प्राप्त है।
संसदीय विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने की क्या आवश्यकता है?
- संसदीय विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता:
- स्पष्टता और परिशुद्धता: विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने से संसदीय विशेषाधिकारों की स्पष्ट और सटीक परिभाषा सुनिश्चित होगी। यह किसी भी अस्पष्टता को दूर करते हुए विशेषाधिकारों के उल्लंघनों का स्पष्टीकरण करने में सहायता प्रदान करेगा।
- एक संविधि/कानून एक सटीक सीमा स्थापित करेगा जिसके प्रावधानों के अतिरिक्त विशेषाधिकार उल्लंघन के लिये कोई दंड नहीं दिया जा सकता है।
- विस्तारित उत्तरदायित्व: संसदीय विशेषाधिकार के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश बेहतर उत्तरदायित्व तंत्र की सुविधा प्रदान करेंगे जिससे सांसद अपने विशेषाधिकारों का ज़िम्मेदारीपूर्ण उपयोग करने में सक्षम होंगे और साथ ही उनकी उचित जाँच तथा निरीक्षण भी किया जा सकेगा।
- आधुनिकीकरण और अनुकूलन: संसदीय विशेषाधिकार को संहिताबद्ध करने से समकालीन शासन प्रथाओं और सामाजिक मानदंडों को प्रतिबिंबित करने के लिये मौजूदा कानूनों को अद्यतन तथा आधुनिक बनाने का अवसर मिलेगा जिससे यह सुनिश्चित होगा कि विधायी विशेषाधिकार तीव्रता से विकसित हो रहे राजनीतिक परिदृश्य में प्रासंगिक तथा प्रभावी बने रहेंगे।
- नियंत्रण एवं संतुलन: संहिताकरण से विशेषाधिकारों पर नियंत्रण और संतुलन स्थापित होगा, जिससे उनके दुरुपयोग को रोका जा सकेगा। इससे प्रेस की स्वतंत्रता में अनावश्यक कटौती पर भी रोक लगेगी।
- स्पष्टता और परिशुद्धता: विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने से संसदीय विशेषाधिकारों की स्पष्ट और सटीक परिभाषा सुनिश्चित होगी। यह किसी भी अस्पष्टता को दूर करते हुए विशेषाधिकारों के उल्लंघनों का स्पष्टीकरण करने में सहायता प्रदान करेगा।
- संसदीय विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता नहीं है:
- संसदीय स्वायत्तता पर अतिक्रमण का जोखिम: संसदीय विशेषाधिकार को संहिताबद्ध करने से संसदीय मामलों को अधिक न्यायिक जाँच या सरकारी हस्तक्षेप के अधीन करके संभावित रूप से विधायिका की स्वायत्तता पर अतिक्रमण हो सकता है।
- संवैधानिक आदेश के विरुद्ध: अनुच्छेद 122 न्यायालय पर संसद की कार्यवाही की जाँच न करने के प्रतिबंध से संबंधित है। इसमें आगे निम्नलिखित कहा गया है: प्रक्रिया की किसी भी कथित अनियमितता के आधार पर संसद में किसी भी कार्यवाही की वैधता पर प्रश्न नहीं उठाया जाएगा।
- लचीलेपन में कमी: संहिताकरण संसदीय विशेषाधिकार के लचीलेपन को सीमित कर सकता है, जिससे अप्रत्याशित परिस्थितियों अथवा बदलती राजनीतिक गतिशीलता के अनुकूल होना चुनौतीपूर्ण हो सकता है जिसके लिये विधायी मामलों हेतु अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता हो सकती है।
- जटिलता एवं लंबी प्रक्रिया: संसदीय विशेषाधिकार को संहिताबद्ध करने की प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली हो सकती है, जिसमें विधायकों, कानूनी विशेषज्ञों तथा नागरिक समाज संगठनों सहित हितधारकों के बीच व्यापक विचार-विमर्श एवं आम सहमति बनाने की आवश्यकता होती है।
आगे की राह
- सुचारु कामकाज सुनिश्चित करने के लिये सदस्यों को संसदीय विशेषाधिकार दिये जाते हैं। हालाँकि इन विशेषाधिकारों को मौलिक अधिकारों के साथ संरेखित किया जाना चाहिये, क्योंकि सांसद नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- यदि विशेषाधिकार इन अधिकारों से टकराते हैं, तो लोकतंत्र अपना सार खो देता है। सांसदों को विशेषाधिकारों का उपयोग ज़िम्मेदारी से किया जाना चाहिये और साथ ही इसके दुरुपयोग से भी बचना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. प्निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. "भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? क्या इसमें घृणास्पद भाषण भी शामिल है? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य स्वरूपों से थोड़ा अलग धरातल पर क्यों खड़ी हैं? व्याख्या कीजिये. (2014) |
मंदिर की खोज: चालुक्य के विस्तार का प्रमाण
प्रिलिम्स के लिये:बादामी के चालुक्य, मुदिमानिक्यम गाँव, गंडालोरनरू, आलमपुर में स्थित जोगुलंबा मंदिर, येलेश्वरम के जलमग्न स्थल, चालुक्य काल का वास्तुशिल्प डिज़ाइन, पुलिकेसिन II का एहोल अभिलेख मेन्स के लिये:चालुक्य राजवंश से संबंधित मुख्य विशेषताएँ |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
पब्लिक रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्ट्री, आर्कियोलॉजी एंड हेरिटेज (PRIHAH) के पुरातत्त्वविदों ने तेलंगाना के नलगोंडा ज़िले के मुदिमानिक्यम गाँव में एक दुर्लभ अभिलेख सहित बादामी चालुक्य काल के दो प्राचीन मंदिरों के अस्तित्व का पता लगाया है।
हालिया उत्खनन से संबंधित प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- मंदिर: गाँव के अंत में स्थित दोनों मंदिरों का कालक्रम 543 ईस्वी और 750 ईस्वी के बीच का है जो बादामी के चालुक्यों के शासनकाल को संदर्भित करता है।
- ये मंदिर रेखा नागर प्रारूप में निर्मित बादामी चालुक्य और साथ ही कदंब नागर शैली की विशेषताओं को प्रतिबिंबित करते हुए अद्वितीय स्थापत्य शैली का प्रदर्शन करते हैं।
- एक मंदिर के गर्भगृह में एक पनवत्तम (शिवलिंग का आधार) के अस्तित्व का पता लगाया गया है।
- दूसरे मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति पाई गई है।
- अभिलेख: खोज के दौरान एक अभिलेख भी प्राप्त हुआ जिसे 'गंडालोरनरू' (Gandaloranru) कहा जाता है जिसका कालक्रम 8वीं अथवा 9वीं शताब्दी ईस्वी का है।
- महत्त्व: पहले, आलमपुर के जोगुलाम्बा मंदिर और येलेश्वरम के जलमग्न स्थलों को बादामी चालुक्य प्रभाव का सबसे दूरवर्ती क्षेत्र माना जाता था।
- नई खोज से चालुक्य साम्राज्य की ज्ञात सीमाओं का काफी विस्तार हुआ है।
चालुक्य राजवंश से संबंधित प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- परिचय: चालुक्य राजवंश ने 6वीं से 12वीं शताब्दी तक दक्षिणी और मध्य भारत के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर शासन किया।
- इसमें तीन अलग-अलग राजवंश शामिल थे: बादामी चालुक्य, पूर्वी चालुक्य और पश्चिमी चालुक्य।
- वातापी (कर्नाटक में आधुनिक बादामी) से उत्पन्न बादामी के चालुक्यों ने 6वीं शताब्दी के प्रारंभ से 8वीं शताब्दी के मध्य तक शासन किया और पुलकेशिन द्वितीय के शासनकाल के दौरान अपने चरम पर पहुँच गए।
- पुलकेशिन द्वितीय के शासनकाल के बाद, पूर्वी चालुक्य पूर्वी दक्कन में एक स्वतंत्र साम्राज्य के रूप में उभरे, जो 11वीं शताब्दी तक वेंगी (वर्तमान आंध्र प्रदेश में) के आस-पास केंद्रित था।
- 8वीं शताब्दी में राष्ट्रकूटों के उदय ने पश्चिमी दक्कन में बादामी के चालुक्यों पर प्रभुत्व स्थापित किया।
- हालाँकि उनकी विरासत को उनके वंशजों, पश्चिमी चालुक्यों द्वारा पुनर्जीवित किया गया था, जिन्होंने 12वीं शताब्दी के अंत तक कल्याणी (कर्नाटक में आधुनिक बसवकल्याण) पर शासन किया था।
- नींव: पुलिकेशिन प्रथम (लगभग 535-566 ई.) को बादामी के पास एक पहाड़ी को मज़बूत करने एवं चालुक्य राजवंश के प्रभुत्व की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है।
- बादामी शहर की औपचारिक स्थापना कीर्तिवर्मन (566-597) द्वारा की गई थी, जो चालुक्य शक्ति एवं संस्कृति के केंद्र के रूप में कार्यरत थे।
- राजव्यवस्था एवं प्रशासन: चालुक्यों ने प्रभावी शासन के लिये अपने क्षेत्र को राजनीतिक इकाइयों में विभाजित करते हुए एक संरचित प्रशासनिक प्रणाली लागू की।
- इन प्रभागों में विषयम, राष्ट्रम, नाडु तथा ग्राम शामिल थे।
- धार्मिक संरक्षण: चालुक्य शैव और वैष्णव दोनों धर्मों के उल्लेखनीय संरक्षक थे।
- मुख्यधारा के हिंदू धर्म से परे, चालुक्यों ने जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म जैसे अन्य संप्रदायों को भी संरक्षण दिया, जो धार्मिक विविधता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का उदाहरण है।
- पुलिकेशिन द्वितीय के कवि-साहित्यकार रविकीर्ति एक जैन विद्वान थे।
- यात्री ह्वेन त्सांग के अनुसार चालुक्य क्षेत्र में कई बौद्ध केंद्र थे जिनमें हीनयान एवं महायान संप्रदाय के 5000 से अधिक अनुयायी रहते थे।
- मुख्यधारा के हिंदू धर्म से परे, चालुक्यों ने जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म जैसे अन्य संप्रदायों को भी संरक्षण दिया, जो धार्मिक विविधता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का उदाहरण है।
- स्थापत्य कला: ऐतिहासिक रूप से दक्कन में चालुक्यों ने नरम बलुआ पत्थरों को माध्यम बनाकर मंदिर निर्माण की तकनीक शुरू की थी।
- उनके मंदिरों को दो भागों में विभाजित किया गया है: उत्खनन से प्राप्त गुफा मंदिर एवं संरचनात्मक मंदिर।
- बादामी, संरचनात्मक एवं उत्खनन दोनों प्रकार के गुफा मंदिरों के लिये जाना जाता है।
- पत्तदकल एवं ऐहोल संरचनात्मक मंदिरों के लिये भी लोकप्रिय हैं।
- उनके मंदिरों को दो भागों में विभाजित किया गया है: उत्खनन से प्राप्त गुफा मंदिर एवं संरचनात्मक मंदिर।
- साहित्य:चालुक्य शासकों ने शास्त्रीय साहित्य एवं भाषा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए आधिकारिक शिलालेखों के लिये संस्कृत का उपयोग किया।
- संस्कृत की प्रमुखता के बावजूद, चालुक्यों ने कन्नड़ जैसी क्षेत्रीय भाषाओं के महत्त्व को भी स्वीकार किया और साथ ही उन्हें लोगों की भाषा के रूप में मान्यता दी।
- चित्रकला: चालुक्यों ने चित्रकला में वाकाटक शैली को अपनाया। बादामी में विष्णु को समर्पित एक गुफा मंदिर में चित्र पाए गए हैं।
पुलिकेसिन-II का ऐहोल शिलालेख:
- कर्नाटक के एहोल में मेगुडी मंदिर में स्थित, एहोल शिलालेख चालुक्य इतिहास और उपलब्धियों में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
- एहोल को भारतीय मंदिर वास्तुकला का उद्गम स्थल माना जाता है।
- प्रसिद्ध कवि रविकृति द्वारा तैयार किया गया, यह शिलालेख चालुक्य राजवंश, विशेष रूप से राजा पुलकेशिन-II को एक गीतात्मक श्रद्धांजलि है, जिसे सत्य (सत्यश्रय) के अवतार के रूप में सराहा जाता है।
- शिलालेख में विरोधियों पर चालुक्य वंश की विजय का वर्णन है, जिसमें हर्षवर्द्धन की प्रसिद्ध हार भी शामिल है।
भारत की कृषि सब्सिडी पर थाईलैंड की चिंता
प्रिलिम्स के लिये:विश्व व्यापार संगठन, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, शांति खंड, न्यूनतम समर्थन मूल्य, केर्न्स ग्रुप मेन्स के लिये:भारत की कृषि सब्सिडी पर थाईलैंड की चिंता, WTO सुधार, सब्सिडी बॉक्स के मुद्दे, WTO सुधारों पर भारत के सुझाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व व्यापार संगठन में थाईलैंड के राजदूत ने भारत पर सरकारी सब्सिडी द्वारा वित्तपोषित अनुचित रूप से न्यूनतम मूल्य पर चावल निर्यात करने का आरोप लगाया।
- थाईलैंड के अनुसार भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली, जिसके तहत सरकार उत्पादकों से आवश्यक खाद्य पदार्थ खरीदती है और उन्हें कम दरों पर जनता को बेचती है, वह लोगों के लिये नहीं बल्कि निर्यात बाज़ार पर "अधिग्रहण" करने के लिये है।
भारत की कृषि सब्सिडी को लेकर थाईलैंड की चिंताएँ क्या हैं?
- व्यापार विकृति और वैश्विक खाद्य मूल्य पर प्रभाव:
- थाईलैंड भारत के सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग कार्यक्रम को अत्यधिक सब्सिडी वाला मानता है, जो वैश्विक खाद्य मूल्यों को विकृत करता है।
- व्यापार विकृति एक ऐसी स्थिति है जहाँ कीमतें और उत्पादन उस स्तर से अधिक या कम होते हैं जो आमतौर पर प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में मौजूद होते हैं।
- सब्सिडी वाले कृषि उत्पादन से अधिक उत्पादन हो सकता है और कीमतें कम हो सकती हैं, जिससे थाईलैंड जैसे गैर-सब्सिडी वाले प्रतिस्पर्द्धियों के लिये वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाएगा।
- थाईलैंड भारत के सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग कार्यक्रम को अत्यधिक सब्सिडी वाला मानता है, जो वैश्विक खाद्य मूल्यों को विकृत करता है।
- WTO विनियमों का उल्लंघन:
- भारत द्वारा चावल सब्सिडी के लिये न्यूनतम सीमा का उल्लंघन WTO नियमों का उल्लंघन है। यह उल्लंघन न केवल प्रतिस्पर्द्धी परिदृश्य को प्रभावित करता है बल्कि कृषि पर WTO के समझौते द्वारा स्थापित निष्पक्ष व्यापार के सिद्धांतों को भी कमज़ोर करता है।
- WTO के नियम के अनुसार दिया जाने वाला समर्थन न्यूनतम 10% की सीमा के भीतर होना चाहिये। भारत ने WTO को सूचित किया कि सत्र 2019-20 में उसके चावल उत्पादन का मूल्य 46.07 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि उसने अनुमत 10% के मुकाबले 6.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर या 13.7% की सब्सिडी दी।
- भारत द्वारा चावल सब्सिडी के लिये न्यूनतम सीमा का उल्लंघन WTO नियमों का उल्लंघन है। यह उल्लंघन न केवल प्रतिस्पर्द्धी परिदृश्य को प्रभावित करता है बल्कि कृषि पर WTO के समझौते द्वारा स्थापित निष्पक्ष व्यापार के सिद्धांतों को भी कमज़ोर करता है।
- कृषि व्यापार उदारीकरण की इच्छा:
- केर्न्स समूह के हिस्से के रूप में, थाईलैंड कृषि व्यापार उदारीकरण का समर्थन करता है।
- समूह वैश्विक कृषि बाज़ारों को विकृत करने वाली व्यापार बाधाओं और सब्सिडी को कम करना चाहता है, जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के दायरे को खत्म करने या कम करने के लिये भारत के विरुद्ध पैरवी करना भी शामिल है।
विकास बॉक्स:
- WTO के तहत कृषि समझौते का अनुच्छेद 6.2, विकासशील देशों को घरेलू सहायता प्रदान करने में अतिरिक्त लचीलेपन की अनुमति देता है।
- इनमें निवेश सब्सिडी शामिल है जो आमतौर पर विकासशील देश के सदस्यों में कृषि के लिये उपलब्ध है, कृषि इनपुट सब्सिडी आमतौर पर विकासशील देश के सदस्यों में कम आय अथवा संसाधन गरीब उत्पादकों के लिये उपलब्ध है और साथ ही यह बढ़ते अवैध नशीले पदार्थों रोकने में फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने हेतु विकासशील देश के उत्पादकों के घरेलू समर्थन को भी शामिल करता है।
WTO सब्सिडी मानदंड से संबंधित भारत की चिंताएँ क्या हैं?
- विकसित देशों के साथ तुलना:
- भारत अमेरिका एवं यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों की तुलना में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी के बीच भारी अंतर पर ज़ोर देता है।
- भारत प्रत्येक किसान को बहुत कम 300 डॉलर की सब्सिडी देता है, लेकिन अमेरिका एवं यूरोपीय संघ प्रति किसान 40,000 अमेरिकी डॉलर तक की सब्सिडी की पेशकश कर सकते हैं।
- यह तुलना विकसित एवं विकासशील देशों के बीच किसानों को प्रदान की जाने वाली सहायता में असमानता को उजागर करती है।
- डी-मिनिमिस लिमिट का उल्लंघन:
- भारत स्वीकार करता है कि उसने सब्सिडी के लिये 10% न्यूनतम सीमा का उल्लंघन किया, जिससे वर्ष 2013 में स्थापित "शांति खंड" शुरू हो गया।
- विकासशील देशों को सब्सिडी स्तरों के उल्लंघन की चुनौती से बचाने के लिये बाली समझौते के तहत वर्ष 2013 में अंतरिम शांति खंड लागू किया गया था।
- हालाँकि भारत ने WTO में सब्सिडी की गणना के तरीके पर प्रश्न उठाते हुए कहा है कि इसकी गणना वर्ष 1986-88 की एक निश्चित और पुरानी कीमत पर की जाती है, जो सब्सिडी को अधिक आकलन करती है।
- भारत, कृषि पर WTO वार्ता में इसे बदलने की मांग कर रहा है।
- स्थायी समाधान की आवश्यकता:
- भारत, विकासशील देशों के एक समूह के साथ खाद्यान्न के लिये सार्वजनिक भंडारण के संबंध में स्थायी समाधान की वकालत करता है।
- इस समाधान का उद्देश्य विकासशील देशों को सब्सिडी स्तरों के उल्लंघन की चुनौतियों का सामना किये बिना कृषि सहायता हेतु अधिक लचीलापन प्रदान करना है।
केर्न्स ग्रुप एवं G-33 ग्रुप क्या हैं?
- केर्न्स ग्रुप:
- स्थापना: वर्ष 1986 में केर्न्स, ऑस्ट्रेलिया में
- सदस्य: 19 कृषि निर्यातक देश, जिनमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, पाकिस्तान एवं न्यूज़ीलैंड आदि शामिल हैं।
- भारत, केर्न्स समूह का सदस्य नहीं है।
- मुद्रा: कृषि व्यापार के उदारीकरण के समर्थक है जिसका अर्थ कि वे आमतौर पर टैरिफ, सब्सिडी एवं अन्य व्यापार बाधाओं को कम करने का समर्थन करते हैं और साथ ही सीमाओं के पार कृषि उत्पादों के मुक्त प्रवाह में बाधा भी डालते हैं। उनका मानना है कि इससे दक्षता एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर सभी देशों को लाभ होगा।
- G-33 ग्रुप:
- गठन: इसका गठन वर्ष 2003 में आयोजित कैनकन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन से पूर्व किया गया।
- सदस्य: मूल रूप से इसमें 33 विकासशील देश शामिल थे किंतु वर्तमान में इसमें जिनमें भारत, चीन और क्यूबा सहित लगभग 48 देश शामिल हैं।
- रुख: यह समूह कृषि व्यापार वार्ता में विकासशील देशों के लिये विशेष प्रावधान का समर्थन करता है।
- उनका तर्क है कि विकासशील देशों को अपने घरेलू कृषि क्षेत्रों की सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अधिक लचीलेपन की आवश्यकता है, भले ही इसके लिये कुछ व्यापार बाधाओं को बनाए रखना पड़े।
- उन्होंने संबद्ध देशों की आजीविका और ग्रामीण विकास पर पूर्ण व्यापार उदारीकरण के संभावित नकारात्मक प्रभावों के संबंध में भी चिंता जताई।
विश्व व्यापार संगठन (WTO) का शांति समझौता क्या है?
- एक अंतरिम उपाय के रूप में विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने दिसंबर 2013 में 'पीस क्लॉज़/शांति समझौता' नामक एक तंत्र पर सहमति जताई और स्थायी समाधान के लिये बातचीत करने का संकल्प लिया।
- शांति उपबंध के तहत विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने विश्व व्यापार संगठन के विवाद समाधान फोरम में विकासशील राष्ट्रों द्वारा निर्धारित सीमा में किसी भी उल्लंघन को चुनौती देने से बचने पर सहमति व्यक्त की।
- यह उपबंध तब तक बना रहेगा जब तक कि खाद्य भंडारण के मुद्दे का स्थायी समाधान नहीं हो जाता।
आगे की राह
- भारत को सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग पर स्थायी समाधान की अपनी मांगों पर ज़ोर देने के लिये WTO के साथ वार्ता जारी रखनी चाहिये। इसमें प्रमुख हितधारकों के साथ द्विपक्षीय चर्चा और WTO की बैठकों तथा वार्ताओं में सक्रिय भागीदारी शामिल हो सकती है।
- भारत अन्य विकासशील देशों के साथ गठबंधन को सुदृढ़ कर सकता है जो कृषि सब्सिडी और समर्थन तंत्र के संबंध में समान चिंता तथा मांग को साझा करते हैं। G-33 ग्रुप जैसे गठबंधन स्थापित कर भारत अपने मुद्दों का प्रासार कर सकता है और WTO वार्ता के अंतर्गत अन्य देशों की सहायता से समूह में सौदेकारी के विकल्प का चयन कर सकता है।
- भारत को नीति मंचों, अनुसंधान संस्थानों और अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफॉर्मों के माध्यम से कृषि सब्सिडी तथा समर्थन तंत्र पर अपने रुख को बढ़ावा देना चाहिये। इसमें खाद्य सुरक्षा के महत्त्व और विकासशील देशों के लिये कृषि सहायता प्रदान करने में अनुकूलनीय होने की आवश्यकता पर प्रकाश डालना शामिल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत ने वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 को किसके दायित्त्वों का पालन करने के लिये अधिनियमित किया? (2018) (a) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन उत्तर: (d) प्रश्न. 'एग्रीमेंट ओन एग्रीकल्चर', 'एग्रीमेंट ओन द एप्लीकेशन ऑफ सेनेटरी एंड फाइटोसेनेटरी मेज़र्स और 'पीस क्लाज़' शब्द प्रायः समाचारों में किसके मामलों के संदर्भ में आते हैं; (2015) (a) खाद्य और कृषि संगठन उत्तर: (c) प्रश्न 3. निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में आपको कभी-कभी समाचारों में 'ऐम्बर बॉक्स, ब्लू बॉक्स और ग्रीन बॉक्स' शब्द देखने को मिलते हैं? (2016) (a) WTO मामला उत्तर: (a) प्रश्न 4. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न 5. ‘व्यापार-संबंधित निवेश उपायों’ (TRIMS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न 1. WTO एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जहाँ लिये गए निर्णय देशों को गहराई से प्रभावित करते हैं। WTO का क्या अधिदेश (मैंडेट) है और उसके निर्णय किस प्रकार बंधनकारी हैं? खाद्य सुरक्षा पर विचार-विमर्श के पिछले चक्र पर भारत के दृढ़-मत का समालोचनापूर्वकविश्लेष्ण कीजिये। (2014) प्रश्न 2. “WTO के अधिक व्यापक लक्ष्य और उद्देश्य वैश्वीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रबंधन तथा प्रोन्नति करना है। परंतु (संधि) वार्ताओं की दोहा परिधि मृतोंमुखी प्रतीत होती है जिसका कारण विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद है।'' भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस पर चर्चा कीजिये। (2016) प्रश्न 3. यदि 'व्यापार युद्ध' के वर्तमान परिदृश्य में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू. टी. ओ.) को ज़िंदा बने रहना है, तो उसके सुधार के कौन-कौन से प्रमुख क्षेत्र हैं, विशेष रूप से भारत के हित को ध्यान में रखते हुए? (2018) |
डेफकनेक्ट 2024
प्रिलिम्स के लिये:आत्मनिर्भरता, iDEX-डिफेंस इनोवेशन ऑर्गनाइज़ेशन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर सुरक्षा, मानव रहित हवाई यान iDEX के साथ नवीन प्रौद्योगिकियों का विकास मेन्स के लिये:डेफकनेक्ट 2024, स्वदेशीकरण तथा रक्षा के संबंध में सरकारी पहल |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा मंत्रालय द्वारा डेफकनेक्ट 2024 का आयोजन किया है, जिसका उद्देश्य रक्षा उत्पादन में नवाचार, उद्यमशीलता एवं आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है।
- यह आयोजन रक्षा प्रौद्योगिकी में नवीनतम प्रगति को प्रदर्शित करने, सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के साथ-साथ रक्षा स्टार्टअप में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
डेफकनेक्ट 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रौद्योगिकी प्रदर्शन:
- इस कार्यक्रम में iDEX-डिफेंस इनोवेशन ऑर्गनाइज़ेशन द्वारा आयोजित एक प्रौद्योगिकी शोकेस शामिल है, जहाँ विभिन्न स्टार्टअप कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स, साइबर सुरक्षा, मानव रहित हवाई यान और साथ ही पहनने योग्य प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में अत्याधुनिक नवाचार प्रस्तुत करते हैं।
- यह प्रदर्शन रक्षा प्रौद्योगिकी में योगदान करने के लिये भारतीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता को रेखांकित करता है।
- पैनल चर्चाएँ:
- डेफकनेक्ट 2024 रक्षा नवाचार एवं उद्यमिता से संबंधित प्रासंगिक विषयों पर पैनल चर्चा आयोजित करता है।
- ये चर्चाएँ भारतीय रक्षा परिदृश्य, भविष्य के रुझान, स्टार्टअप के लिये अवसरों के साथ-साथ क्षेत्र में विविधता एवं समावेशन को बढ़ावा देने की रणनीतियों पर अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।
- महिला उद्यमियों का सम्मान:
- रक्षा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में महिला उद्यमियों के योगदान की मान्यता में डेफकनेक्ट 2024 में iDEX से जुड़ी महिला उद्यमियों के लिये एक विशेष सम्मान समारोह आयोजित किया जाता है।
- iDEX इंटर्नशिप कार्यक्रम:
- युवा प्रतिभा को निखारने एवं नवप्रवर्तकों की अगली पीढ़ी को तैयार करने के प्रयासों के तहत, डेफकनेक्ट 2024 ने iDEX पहल के अंर्तगत एक रोलिंग इंटर्नशिप कार्यक्रम शुरू किया है।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य रक्षा प्रौद्योगिकी में इच्छुक नवप्रवर्तकों को व्यावहारिक अनुभव एवं मार्गदर्शन प्रदान करना है।
- पहल की शुरुआत:
- डेफकनेक्ट 2024 रक्षा उत्पादन में नवाचार एवं आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन्न पहलों की शुरुआत का साक्षी है, जैसे ADITI (iDEX के साथ इनोवेटिव टेक्नोलॉजीज़ का एसिंग डेवलपमेंट) योजना तथा DISC 11 (डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज)।
- ये पहल एक जीवंत रक्षा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती हैं।
नोट:
- रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX):
- वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया iDEX, रक्षा उद्योग के आधुनिकीकरण में योगदान देने के लिये सरकार द्वारा की गई एक पहल है।
- इसका उद्देश्य उद्योगों (जिसमें MSME, स्टार्ट-अप, व्यक्तिगत इनोवेटर्स, अनुसंधान एवं विकास संस्थान और शिक्षाविद् शामिल हैं) को शामिल करके रक्षा और एयरोस्पेस में नवाचार तथा प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना है।
- iDEX को रक्षा नवाचार संगठन (Defence Innovation Organization- DIO) द्वारा वित्त पोषित और प्रबंधित किया जाएगा तथा यह DIO की कार्यकारी शाखा के रूप में कार्य करेगा।
- iDEX प्राइम व्यापक iDEX पहल के तहत एक विशिष्ट कार्यक्रम है, जो अधिक वित्तीय सहायता की आवश्यकता वाली बड़ी, अधिक जटिल चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करता है।
- वित्तीयन: iDEX प्राइम, iDEX के तहत अन्य कार्यक्रमों की तुलना में काफी अधिक अनुदान प्रदान करता है।
- विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये iDEX प्राइम के विभिन्न संस्करण मौजूद हैं:
- iDEX प्राइम (X): नियमित iDEX प्राइम की तुलना में इस संस्करण में बड़ी चुनौतियाँ और अनुदान हैं।
- iDEX प्राइम (स्प्रिंट): यह संस्करण भारतीय नौसेना के विशिष्ट समस्या विवरणों के लिये तेज़ विकास चक्र और छोटी समय सीमा पर केंद्रित है।
- रक्षा नवाचार संगठन (DIO):
- रक्षा नवाचार संगठन (DIO), कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 8 के तहत गठित एक गैर-लाभकारी संगठन है।
- इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। यह iDEX को उच्च स्तरीय नीति मार्गदर्शन प्रदान करता है।
iDEX के साथ इनोवेटिव टेक्नोलॉजीज़ का एसिंग डेवलपमेंट (ADITI) योजना क्या है?
- परिचय:
- वर्ष 2023-24 से 2025-26 की अवधि के लिये 750 करोड़ रुपए की ADITI योजना रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग (DDP) के रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX) ढाँचे के अंतर्गत आती है।
- योजना के तहत, स्टार्ट-अप रक्षा प्रौद्योगिकी में अपने अनुसंधान, विकास और नवाचार प्रयासों के लिये 25 करोड़ रुपए तक की अनुदान सहायता प्राप्त करने के पात्र हैं।
- यह योजना युवाओं के नवाचार को बढ़ावा देगी और देश को प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद करेगी।
- ADITI के पहले संस्करण में, 17 चुनौतियाँ- भारतीय सेना (3), भारतीय नौसेना (5), भारतीय वायु सेना (5) और रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (4) - लॉन्च की गई हैं।
- उद्देश्य:
- इसका लक्ष्य प्रस्तावित समय-सीमा में लगभग 30 डीप-टेक महत्त्वपूर्ण नीतिक प्रौद्योगिकियों का विकास करना है।
- इसमें आधुनिक सशस्त्र बलों की अपेक्षाओं और आवश्यकताओं एवं रक्षा नवाचार इकोसिस्टम की क्षमताओं के बीच के अंतर को पाटने के लिये एक 'टेक्नोलॉजी वॉच टूल' बनाने की भी परिकल्पना की गई है।
रक्षा क्षेत्र में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का क्या महत्त्व है?
- सामरिक लाभ:
- अत्याधुनिक तकनीक रक्षा क्षमता की वृद्धि के मामले में राष्ट्रों को रणनीतिक लाभ प्रदान करती है।
- उन्नत हथियार, अनुवीक्षण प्रणाली, संचार नेटवर्क और साइबर क्षमताएँ किसी देश की संभावित खतरों को रोकने तथा उसके हितों की रक्षा करने की क्षमता को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकती हैं।
- परिचालन प्रभावशीलता:
- अत्याधुनिक तकनीक सैन्य बलों को अधिक कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से संचालित करने में सक्षम बनाती है।
- इसमें सटीक-निर्देशित युद्ध सामग्री, उन्नत टोही और अनुवीक्षण प्रणालियाँ तथा परिष्कृत कमांड एवं नियंत्रण प्रणालियाँ शामिल हैं जो सभी प्रकार के मिशन की सफलता में योगदान करती हैं व संपार्श्विक क्षति की संभावना को कम करती हैं।
- अनुकूलनशीलता और लचीलापन:
- आधुनिक युग में युद्ध के दौरान अनुकूलनशीलता और लचीलापन महत्त्वपूर्ण है। अत्याधुनिक तकनीक आगामी खतरों और वातावरण में तेज़ी से अनुकूलनीय बनने में योगदान करती है।
- जिन प्रणालियों को शीघ्रता से उन्नत अथवा पुन: कॉन्फिगर किया जा सकता है वे वास्तविक समय में महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करती हैं।
- बल गुणक की भूमिका:
- उन्नत तकनीक एक बल गुणक के रूप में कार्य करती है जो अल्प क्षमताओं को उल्लेखनीय बल प्रदान करता है। उन्नत तकनीक के माध्यम से कोई अल्प किंतु सुदृढ़ बल एक बड़े, अल्प उन्नत प्रतिद्वंद्वी का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकता है।
- राष्ट्रीय संप्रभुता और स्वायत्तता:
- स्वदेशी अत्याधुनिक तकनीक पर भरोसा करने से देश की संप्रभुता और स्वायत्तता में वृद्धि होती है। महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकी के लिये विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को प्रभावित कर सकती है और रणनीतिक निर्णय करने की क्षमता को सीमित कर सकती है।
रक्षा क्षेत्र से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q. अटल नवप्रवर्तन (इनोवेशन) मिशन किसके अधीन स्थापित किया गया है? (2019) (a) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। मेन्स:Q. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020) Q. 'भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षाओं को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019) |