संपत्ति नष्ट करने के मामले में कोई संसदीय प्रतिरक्षा नहीं: सर्वोच्च न्यायालय
प्रिलिम्स के लिये:अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मेन्स के लिये:व्यक्तिगत विशेषाधिकार, सामूहिक विशेषाधिकार के संदर्भ में संसदीय विशेषाधिकार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने विधानसभा में आरोपित विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लेने की केरल सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है।
- वर्ष 2015 में सत्तारूढ़ केरल सरकार ने राज्य विधानसभा में सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने और बजट भाषण को बाधित करने वाले अपने विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामला वापस लेने हेतु सर्वोच न्यायालय से अपील की थी।
प्रमुख बिंदु:
याचिकाकर्त्ता की दलीलें:
- केरल सरकार ने यह तर्क देते हुए संसदीय विशेषाधिकार का दावा किया था कि घटना विधानसभा हॉल के अंदर हुई थी।
- याचिकाकर्त्ता ने आपराधिक अभियोजन हेतु छूट का दावा प्रस्तुत किया था।
- उन्होंने तर्क दिया था कि पुलिस द्वारा FIR दर्ज करने से पहले अध्यक्ष की पूर्व मंज़ूरी आवश्यक थी।
निर्णय के मुख्य बिंदु:
- संसदीय विशेषाधिकार का प्रयोग प्रतिरक्षा हेतु नहीं: जो विधायक तोड़फोड़ और सामान्य तबाही में लिप्त हैं, वे संसदीय विशेषाधिकार एवं आपराधिक अभियोजन से उन्मुक्ति का दावा नहीं कर सकते हैं।
- बर्बरता आवश्यक विधायी कार्रवाई नहीं है: सांसदों के पास ऐसे विशेषाधिकार होते हैं जो सार्वजनिक कार्यों को करने के लिये आवश्यक होते हैं।
- विधायी कार्य करने हेतु सदन के अंदर तोड़फोड़ और संपति को नष्ट करना आवश्यक नहीं है।
- बर्बरता और विरोध का अधिकार: विधानसभा में तोड़फोड़ की तुलना विपक्षी विधायकों के विरोध के अधिकार से नहीं की जा सकती।
- निर्वाचित विधायिका का कोई भी सदस्य आपराधिक कानून (लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984) के प्रतिबंधों से ऊपर होकर विशेषाधिकार या प्रतिरक्षा का दावा नहीं कर सकता है, यह सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है।
- सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने की तुलना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रयोग से नहीं की जा सकती।
- सार्वजनिक विश्वास बनाए रखना: विधायकों को अपना कर्तव्य निभाने के लिये सार्वजनिक विश्वास के मापदंडों के भीतर कार्य करना चाहिये।
- क्योंकि उन्होंने संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा की शपथ लेते हुए पदभार ग्रहण किया था।
- इसलिये उन्हें भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखना एवं अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिये।
संसदीय विशेषाधिकार के विषय में:
- संसदीय विशेषाधिकार व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से संसद सदस्यों द्वारा प्राप्त कुछ अधिकार तथा उन्मुक्तियाँ हैं, ताकि वे "अपने कार्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन" कर सकें।
- जब इनमें से किसी भी अधिकार और उन्मुक्ति की अवहेलना की जाती है तो अपराध को विशेषाधिकार का उल्लंघन कहा जाता है तथा यह संसद के कानून के तहत दंडनीय है।
- संविधान (संसद के लिये अनुच्छेद 105 और राज्य विधानसभाओं हेतु अनुच्छेद 194) में दो विशेषाधिकारों (संसद में बोलने की स्वतंत्रता तथा इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार) का उल्लेख है।
- लोकसभा नियम पुस्तिका के अध्याय 20 में नियम संख्या 222 और राज्यसभा नियम पुस्तिका के अध्याय 16 में नियम 187 के अनुरूप विशेषाधिकार को नियंत्रित करता है।
व्यक्तिगत विशेषाधिकार:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: संसद/राज्य विधानसभा के सदस्यों को वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है।
- किसी भी सदस्य से सदन की चारदीवारी के बाहर कहीं भी कार्य नहीं लिया जा सकता है (उदाहरणतः कानून की अदालत) या सदन और उसकी समितियों में विचार व्यक्त करने के लिये उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
- हालाँकि एक सदस्य को संसद में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विशेषाधिकार है, उसे संसद के बाहर इसे पेश करने का कोई अधिकार नहीं है।
- गिरफ्तारी से मुक्ति: किसी भी सदस्य को दीवानी मामले में सदन के स्थगन के 40 दिन पहले और बाद में तथा सदन के सत्र के दौरान भी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
- इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी सदस्य को उस सदन की अनुमति के बिना संसद की सीमा के भीतर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जिससे वह संबंधित है।
- गवाहों के रूप में उपस्थिति से छूट: संसद/विधानसभा के सदस्यों को भी गवाह के रूप में उपस्थित होने से स्वतंत्रता प्राप्त है।
सामूहिक विशेषाधिकार:
- वाद-विवाद और कार्यवाही प्रकाशित करने का अधिकार: संसद/विधानसभा आवश्यकता पड़ने पर प्रेस को अपनी कार्यवाही प्रकाशित करने से रोक सकती है।
- अजनबियों को बाहर करने का अधिकार: संसद/विधानसभा को किसी भी समय गलियारा (Galleries) से अजनबियों (कोई सदस्य या आगंतुक) को बाहर करने और बंद दरवाज़ों में बहस करने का अधिकार प्राप्त है।
- सदस्यों और बाहरी लोगों को दंडित करने का अधिकार: भारत में संसद/विधानसभा को सदन की अवमानना के दोषी लोगों को दंडित करने के लिये दंडात्मक शक्तियाँ दी गई हैं।