सामाजिक न्याय
जल जीवन मिशन (शहरी)
चर्चा में क्यों?
वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में सतत् विकास लक्ष्य-6 (SDG-6) के अनुसार, सभी शहरों में कार्यात्मक नल के माध्यम से घरों में पानी आपूर्ति की सार्वभौमिक कवरेज प्रदान कराने हेतु केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत जल जीवन मिशन (शहरी) योजना की घोषणा की गई है।
- यह जल जीवन मिशन (ग्रामीण) का पूरक है जिसके तहत वर्ष 2024 तक कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) के माध्यम से सभी ग्रामीण घरों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर जल की आपूर्ति की परिकल्पना की गई है।
प्रमुख बिंदु:
जल जीवन मिशन (शहरी) का उद्देश्य:
- नल और सीवर कनेक्शन की पहुँच सुनिश्चित करना :
- शहरी क्षेत्रों में अनुमानित 2.68 करोड़ घरेलू कार्यात्मक नल कनेक्शनों के अंतर को समाप्त करना।
- 500 अमृत शहरों में 2.64 करोड़ घरों को सीवर कनेक्शन/सेप्टेज की सुविधा प्रदान करना।
- जल निकायों का पुनरुत्थान :
- ताज़े पानी की स्थायी आपूर्ति बढ़ाना और शहरी जलभृत प्रबंधन योजना के माध्यम से पानी की गुणवत्ता में सुधार करना तथा बाढ़ की घटनाओं को काम करने के लिये ग्रीन स्पेस और स्पंज सिटी (Sponge city) का निर्माण करना।
- स्पंज सिटी (Sponge city) एक ऐसे शहर को कहते हैं जो शहरी जल प्रबंधन को शहरी नियोजन नीतियों और डिज़ाइनों द्वारा मुख्यधारा में लाने की क्षमता रखती है।
- चक्रीय जल अर्थव्यवस्था की स्थापना:
- उपचारित सीवेज के पुनर्चक्रण/पुन: उपयोग, जल निकायों के कायाकल्प और जल संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रत्येक शहर के लिये जल संतुलन योजना के विकास के माध्यम से पानी की चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।
जल जीवन मिशन (शहरी) की विशेषताएँ:
- नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग:
- जल के क्षेत्र में नवीनतम वैश्विक प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने हेतु एक प्रौद्योगिकी उप-मिशन को प्रस्तावित किया गया है।
- जन जागरूकता का प्रसार:
- जल संरक्षण के बारे में आम लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिये ‘सूचना, शिक्षा और संचार’ (IEC) अभियान का प्रस्ताव किया गया है।
- जल जीवन मिशन का प्रयास पानी के लिये एक जनांदोलन तैयार करना है, अर्थात् इसके तहत सभी लोगों को प्राथमिकता दी गई है।
- समान वितरण के लिये सर्वेक्षण:
- शहरों में एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया के माध्यम से जल के समान वितरण, अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग और जल निकायों का मानचित्रण तथा जल की मात्रा एवं गुणवत्ता का पता लगाने के लिये पेयजल सर्वेक्षण (Peyjal Survekshan) का कार्य किया जाएगा।
- शहरी स्थानीय निकायों की मज़बूती पर विशेष ज़ोर:
- गैर-राजस्व जल (Non-Revenue Water) को 20% से भी कम करने का प्रयास।
- गैर-राजस्व जल, किसी जल वितरण प्रणाली में उपलब्ध जल की कुल मात्रा और ग्राहकों को एक निर्धारित राजस्व पर उपलब्ध कराए जाने वाले जल की मात्रा के बीच का अंतर है। दूसरे शब्दों में कहें तो NRW वह जल है जिसकी उपलब्धता तो है परंतु वह ग्राहकों तक नहीं पहुँच पाता या उसकी गणना नहीं हो पाती।
- शहरों में जल की कम-से-कम 20% मांग और राज्य स्तर पर औद्योगिक जल की कम-से-कम 40% मांग को पूरा करने के लिये जल का पुनर्चक्रण
- दोहरी पाइपिंग प्रणाली को बढ़ावा देना।
- नगरपालिका बॉण्ड जारी कर धन जुटाना।
- जल निकायों का पुनरुत्थान।
- गैर-राजस्व जल (Non-Revenue Water) को 20% से भी कम करने का प्रयास।
- पीपीपी मॉडल को बढ़ावा देना:
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु 10 लाख से अधिक की आबादी वाले शहरों के लिये अपने कुल परियोजना निधि आवंटन की न्यूनतम 10% लागत के बराबर की परियोजनाओं को पीपीपी मॉडल के तहत पूरा करना अनिवार्य किया गया है।
- वित्तपोषण:
- केंद्रशासित प्रदेशों में 100% केंद्रीय वित्तपोषण।
- पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिये परियोजनाओं की कुल लागत में 90% का वित्तपोषण केंद्र सरकार द्वारा।
- 1 लाख से कम आबादी वाले शहरों के लिये केंद्रीय वित्तपोषण 50%, 1 लाख से 10 लाख तक की आबादी वाले शहरों के लिये एक-तिहाई केंद्रीय वित्तपोषण और दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के लिये 25% केंद्रीय वित्तपोषण किया जाएगा।
- परिणाम आधारित वित्तपोषण:
- परियोजनाओं के लिये सरकार द्वारा वित्तपोषण तीन चरणों (20:40:40) में किया जाएगा।
- योजना कार्यान्वयन के परिणामों के आधार पर ही तीसरी किस्त जारी की जाएगी।
शहरी विकास के लिये अन्य प्रयास:
- स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U)
- प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी)
- अमृत मिशन (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation -AMRUT)
- स्मार्ट सिटी मिशन (Smart City Mission)
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन केंद्र
चर्चा में क्यों?
2 फरवरी, 2021 को विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetland Day) के अवसर पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय सतत् तटीय प्रबंधन केन्द्र (National Centre for Sustainable Coastal Management- NCSCM) के एक भाग के रूप में आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन केंद्र (Centre for Wetland Conservation and Management- CWCM) स्थापित करने की घोषणा की।
- प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस मनाया जाता है।
- 2 फरवरी, 1971 के दिन ही ईरान के रामसर शहर में आर्द्रभूमियों के संरक्षण से संबंधित रामसर अभिसमय/समझौते (Ramsar Convention) पर हस्ताक्षर किये गए, जिसकी 50वीं वर्षगाँठ वर्ष 2021 में मनाई जा रही है।
- वर्ष 2021 के लिये विश्व आर्द्रभूमि दिवस की थीम 'आर्द्रभूमि और जल' (Wetlands and Water) है।
प्रमुख बिंदु:
आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन केंद्र (CWCM) का महत्त्व:
- CWCM आर्द्रभूमि के विषय में विशिष्ट अनुसंधान आवश्यकताओं और इससे संबंधित ज्ञान एवं सूचनाओं की कमी आदि समस्याओं को संबोधित करेगा और आर्द्रभूमि के संरक्षण तथा प्रबंधन के लिये एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने में सहायता करेगा।
- यह केंद्र देश में आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिये नीति व नियामक ढाँचे, प्रबंधन योजना तथा लक्षित अनुसंधान को डिज़ाइन तथा कार्यान्वित करने में राष्ट्रीय एवं राज्य सरकारों की सहायता करेगा।
- यह प्रासंगिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ साझेदारी करने एवं नेटवर्क विकसित करने में मदद करेगा।
- यह केंद्र आर्द्रभूमि शोधकर्त्ताओं, नीति निर्माताओं, प्रबंधकों और उपयोगकर्त्ताओं के लिये एक ‘नॉलेज हब’ के रूप में कार्य करेगा।
आर्द्रभूमि:
- आर्द्रभूमियांँ पानी में स्थित मौसमी या स्थायी पारिस्थितिक तंत्र हैं। इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र (6 मीटर से कम ऊँचे ज्वार वाले स्थान) के अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे अपशिष्ट-जल उपचार तालाब और जलाशय आदि शामिल होते हैं।
- आर्द्रभूमियांँ कुल भू सतह के लगभग 6% हिस्से को कवर करती हैं। पौधों और जानवरों की सभी 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं।
आर्द्रभूमियों का महत्त्व:
- आर्द्रभूमियांँ हमारे प्राकृतिक पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये बाढ़ की घटनाओं में कमी लाती हैं, तटीय इलाकों की रक्षा करती हैं, साथ ही प्रदूषकों को अवशोषित कर पानी की गुणवत्ता में सुधार करती हैं।
- मानव विकास और ग्रह (पृथ्वी) पर जीवन के लिये वेटलैंड महत्त्वपूर्ण हैं। 1 बिलियन से अधिक लोग जीवित रहने के हेतु आर्द्रभूमियों पर निर्भर हैं।
- ये भोजन, कच्चे माल, दवाओं के लिये आनुवंशिक संसाधनों और जलविद्युत के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
- भूमि आधारित कार्बन का 30% पीटलैंड (एक प्रकार की आर्द्रभूमि) में संग्रहीत है।
- ये परिवहन, पर्यटन और लोगों की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक कल्याण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- कई आर्द्रभूमियाँ प्राकृतिक सुंदरता के क्षेत्र हैं और आदिवासी लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
खतरा:
- आर्द्रभूमियों पर गठित आईपीबीईएस (जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवा पर अंतर-सरकारी विज्ञान नीति प्लेटफॉर्म) के अनुसार, ये सबसे अधिक विक्षुब्ध पारिस्थितिकी तंत्रों में शामिल हैं।
- आर्द्रभूमि मानव गतिविधियों और ग्लोबल वार्मिंग के कारण जंगलों की तुलना में 3 गुना तेज़ी से समाप्त हो रही है।
- यूनेस्को के अनुसार, आर्द्रभूमि के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न होने से विश्व के उन 40% वनस्पतियों और जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जो इन आर्द्रभूमि में पाए जाते हैं या प्रजनन करते हैं।
- प्रमुख खतरे: कृषि, विकास, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन।
भारत में आर्द्रभूमियों की स्थिति:
- भारत में लगभग 4.6% भूमि आर्द्रभूमि के रूप में है जो 15.26 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करती है। भारत में 42 स्थल हैं जिन्हें आर्द्रभूमि के रूप में अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व (रामसर स्थल) का नामित किया गया है।
- रामसर स्थलों के रूप में घोषित आर्द्रभूमियों को सम्मेलन के सख्त दिशा- निर्देशों के तहत संरक्षण प्रदान किया गया हैं।
- वर्तमान में वैश्विक स्तर पर 2,300 से अधिक रामसर साइटस विद्यमान हैं।
- हाल ही में लद्दाख स्थित त्सो कार आर्द्रभूमि क्षेत्र (Tso Kar Wetland Complex) को भारत के 42वें रामसर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है।
- आर्द्रभूमियों का विनियमन आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 के तहत किया जाता है।
- केंद्रीय आर्द्रभूमि नियामक प्राधिकरण हेतु वर्ष 2010 में बनाए गए नियमों को राज्य-स्तरीय निकायों के साथ वर्ष 2017 में परिवर्तित किया गया तथा एक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि समिति का गठन किया गया जो सलाहकार की भूमिका में है।
- नए नियमों ने ‘आर्द्रभूमि’ की परिभाषा से कुछ वस्तुओं को हटा दिया जिसमें बैकवाटर (Backwater) लैगून (Lagoon), क्रीक (Creek) और एस्ट्रुअरीज़ (Estuaries) शामिल हैं।
- वर्ष 2017 के नियमों के तहत आर्द्रभूमि की पहचान करने की ज़िम्मेदारी राज्यों को सौंपी गई है।
सतत् तटीय प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय केंद्र
- अवस्थिति:
- इसका केंद्र चेन्नई (तमिलनाडु) में स्थित है।
- प्रभाग:
- इसमें भू-स्थानिक विज्ञान, रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली, तटीय पर्यावरण प्रभाव आकलन, तटीय एवं समुद्री संसाधनों का संरक्षण आदि विभिन्न अनुसंधान विभाग शामिल हैं।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य पारंपरिक तटीय और द्वीपीय समुदायों के लाभ एवं कल्याण के लिये भारत में तटीय व समुद्री क्षेत्रों के एकीकृत एवं स्थायी प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
- इसका उद्देश्य जनभागीदारी, संरक्षण प्रथाओं, वैज्ञानिक अनुसंधान और ज्ञान प्राप्ति के माध्यम से स्थायी तटों को बढ़ावा देना और वर्तमान तथा भावी पीढ़ी का कल्याण करना है।
- भूमिका:
- भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey Of India) और NCSCM ने बाढ़, कटाव तथा समुद्र-स्तर में वृद्धि की भेद्यता के मानचित्रण (Mapping) को शामिल करते हुए भारतीय तटीय सीमाओं के लिये खतरे की सीमा की मैपिंग की है।
- यह केंद्र, राज्य सरकारों और नीति निर्माण से संबद्ध अन्य हितधारकों को एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (Integrated Coastal Zone Management- ICZM) से संबंधित वैज्ञानिक मामलों में भी सलाह देता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
अनपेक्षित वाणिज्यिक संचार पर नियंत्रण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India-TRAI) को अनपेक्षित वाणिज्यिक संचार ( Unsolicited Commercial Communications- UCC) पर अंकुश लगाने हेतु न्यायालय द्वारा वर्ष 2018 में जारी किये गए विनियमन के ‘पूर्ण और सख्त’ कार्यान्वयन सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है।
- UCC का अर्थ ऐसे किसी भी वाणिज्यिक संचार से है, जिसका चयन स्वयं ग्राहक द्वारा नहीं किया जाता है, हालाँकि इसके दायरे में ट्रांज़ेकशन संदेश और केंद्र या राज्य सरकार या उसके द्वारा अधिकृत एजेंसियों के निर्देश पर प्रेषित कोई भी संदेश शामिल नहीं होता है।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- एक कंपनी द्वारा उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी कि उसके लाखों ग्राहकों को मोबाइल नेटवर्क को लेकर फिशिंग गतिविधियों (Phishing Activities) और दूरसंचार कंपनियों की विफलता के कारण धोखा दिया गया है जिसे रोकने के लिये कंपनी की वित्तीय स्थिति तथा प्रतिष्ठित को नुकसान हुआ है।
- कंपनी द्वारा यह दावा किया गया कि नियमों के तहत टेलीकॉम कंपनियों को अपने ग्राहक को डेटा तक पहुँच प्रदान करने से पहले उनके साथ पंजीकरण (जिसे पंजीकृत टेलीकॉम या RTMs कहा जाता है) की आवश्यकता होती है।
- फिशिंग एक साइबर अपराध (Cybercrime) है जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत रूप से ईमेल, टेलीफोन या संदेश द्वारा पहचान योग्य जानकारी, बैंकिंग और क्रेडिट कार्ड विवरण तथा पासवर्ड जैसे संवेदनशील डेटा प्रदान करने के लिये एक वैध संस्था के रूप में लक्षित से संपर्क किया जाता है।
- याचिका में दलील दी गई कि टेलीकॉम कंपनियांँ अनचाही कमर्शियल कम्यूनिकेशन की समस्या पर अंकुश लगाने के लिये टेलीकॉम कमर्शियल कम्युनिकेशंस कस्टमर प्रिवेंशंस रेगुलेशन (Telecom Commercial Communications Customer Preferences Regulations- TCCCPR) 2018 के तहत अपने दायित्वों का उल्लंघन कर रही हैं।
उच्च न्यायालयों का निर्देशन:
- भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) के लिये:
- UCC पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये TRAI द्वारा वर्ष 2018 में जारी विनियमन का "पूर्ण और सख्त" कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाए।
- दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के लिये (TSPs):
- TRAI द्वारा जारी TCCCPR 2018 का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।
टेलीकॉम कमर्शियल कम्युनिकेशंस कस्टमर प्रिवेंशंस रेगुलेशन (TCCCPR) 2018
- TCCCPR द्वारा दूरसंचार वाणिज्यिक संचार ग्राहक वरीयता विनियम, 2010 (Telecom Commercial Communications Customer Preference Regulations, 2010 को विस्थापित किया गया है ।
- इसे TRAI द्वारा भारत में 'अनपेक्षित वाणिज्यिक संचार' (UCC) को विनियमित करने के उद्देश्य से एक संशोधित नियामक ढांँचा प्रदान करने के उद्देश्य से जारी किया गया था।
- नए नियामक ढांँचे ने प्रदाताओं तक पहुंँचने के लिये नियंत्रण और नियामक शक्तियों को विकसित किया है, जिन्हें अब UCC की समस्या से निपटने हेतु अपने स्वयं के कोड ऑफ प्रैक्टिस (Codes of Practice- CoPs) को स्थापित करने की आवश्यकता है।
- यह ग्राहकों की प्राथमिकताओं की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करता है, जिसे संचार को सुगम बनाने और प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सक्षम बनाने हेतु डिस्ट्रीब्यूटेड लेज़र टेक्नोलॉजी ( Distributed Ledger Technology- DLT) का उपयोग कर उचित समय पर लागू किया जाना है।
- यह शिकायतों से निपटने के लिये क्लाउड-आधारित समाधानों का उपयोग, हेडर और प्रेफेरेंस के पंजीकरण तथा वाणिज्यिक संचार पारिस्थितिकी तंत्र में संस्थाओं के मध्य भूमिकाओं के स्वतः-आवंटन हेतु स्मार्ट अनुबंधों के उपयोग की सुविधा भी प्रदान करता है।
- TRAI की देख-रेख में रेगुलेटरी सैंडबॉक्स (Regulatory Sandboxes) में प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों का परीक्षण किया जाना आवश्यक है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
म्याँमार में सैन्य तख्तापलट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में म्याँमार में सैन्य तख्तापलट के बाद सेना ने सत्ता हासिल कर ली, ज्ञात हो कि वर्ष 1948 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से यह म्याँमार में तीसरा तख्तापलट है।
- म्याँमार में एक वर्ष की अवधि के लिये आपातकाल लागू कर दिया गया है और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता आंग सान सू की को हिरासत में लिया गया है।
- प्रायः ‘तख्तापलट’ का अर्थ हिंसक और अवैध रूप से लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार की शक्तियों को हथियाने से है।
म्याँमार
- अवस्थिति
- म्याँमार जिसे बर्मा के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण पूर्व एशिया में अवस्थित एक देश है, जो कि थाईलैंड, लाओस, बांग्लादेश, चीन और भारत आदि देशों के साथ अपनी सीमा साझा करता है।
- जनसांख्यिकी
- म्याँमार की आबादी लगभग 54 मिलियन है, जिनमें से अधिकांश बर्मी भाषी हैं, हालाँकि यहाँ कई अन्य भाषाएँ बोलने वाले लोग भी रहते हैं।
- धर्म
- यहाँ का मुख्य धर्म बौद्ध धर्म है। इसके अलावा देश में कई जातीय समूह भी हैं, जिनमें रोहिंग्या मुसलमान भी शामिल हैं।
- राजव्यवस्था
- म्याँमार को वर्ष 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। इसे वर्ष 1962 से वर्ष 2011 तक सशस्त्र बलों द्वारा शासित किया जाता रहा, वर्ष 2011 में नई सरकार के साथ नागरिक शासन की वापसी की शुरुआत हुई।
- 2010 के दशक में सैन्य शासन ने देश को लोकतंत्र की ओर स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। हालाँकि नई व्यवस्था के तहत सशस्त्र बल के अधिकारी सत्ता में बने रहे, लेकिन राजनीतिक विरोधियों को मुक्त कर दिया गया और चुनाव आयोजित करने की अनुमति दे दी गई।
- वर्ष 2015 के चुनावों में आंग सान सू की के दल राजनीतिक नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) को जीत हासिल हुई, यह देश के पहला स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव था, जिसमें कई दलों ने हिस्सा लिया था, इन चुनावों के बाद यह उम्मीद जगी थी कि म्याँमार लोकतांत्रिक व्यवस्था की और बढ़ रहा है।
प्रमुख बिंदु
सैन्य तख्तापलट के बारे में
- नवंबर 2020 में हुए संसदीय चुनाव में आंग सान सू की के राजनीतिक नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) को अधिकांश सीटें हासिल हुईं।
- वर्ष 2008 में सेना द्वारा तैयार किये गए संविधान के मुताबिक, म्याँमार की संसद में सेना के पास कुल सीटों का 25 प्रतिशत हिस्सा है और कई प्रमुख मंत्री पद भी सैन्य नियुक्तियों के लिये आरक्षित हैं।
- वर्ष 2021 की शुरुआत में जब नव निर्वाचित संसद का पहला सत्र आयोजित किया जाना था, तभी सेना द्वारा संसदीय चुनावों में भारी धोखाधड़ी का हवाला देते हुए एक वर्ष की अवधि के लिये आपातकाल लागू कर दिया गया।
वैश्विक प्रतिक्रिया
- चीन: चीन ने इस मामले पर स्पष्ट किया है कि म्याँमार में सभी पक्ष राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता बनाए रखने के लिये संविधान और कानूनी ढाँचे के तहत अपने मतभेदों को जल्द ही समाप्त कर लेंगे।
- अमेरिका: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने देश के सैन्य प्रतिनिधियों द्वारा तख्तापलट किये जाने के बाद म्याँमार पर प्रतिबंधों को फिर से लागू करने की धमकी दी और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से इस मामले पर एकजुटता की मांग की है।
- आसियान देश: आसियान की अध्यक्षता कर रहे ब्रुनेई ने म्याँमार में सभी पक्षों के बीच संवाद और सामंजस्य का आह्वान किया है तथा उनसे पुनः सामान्य स्थिति बहाल करने का आग्रह किया है।
- भारत की प्रतिक्रिया
- भारत भी म्याँमार में लोकतांत्रिक परिवर्तन की प्रक्रिया का समर्थन करता है।
- यद्यपि भारत ने म्याँमार के हालिया घटनाक्रम पर गहरी चिंता व्यक्त की है, किंतु म्याँमार की सेना से अपने संबंध खराब करना एक व्यवहार्य विकल्प नहीं होगा , क्योंकि म्याँमार के साथ भारत के कई महत्त्वपूर्ण आर्थिक और सामरिक हित जुड़े हैं।
म्याँमार में भारत के सामरिक हित
- म्याँमार की सेना के साथ भारत के संबंध
- म्याँमार के साथ भारत के सैन्य-राजनयिक संबंध भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
- वर्ष 2020 में म्याँमार में सेनाध्यक्ष और विदेश सचिव के हालिया दौरे की पूर्व संध्या पर म्याँमार ने सीमा पार से आने वाले 22 भारतीय विद्रोहियों को वापस भारत को सौंपा था, साथ ही भारत की और से म्याँमार को सैन्य हार्डवेयर, जिसमें 105 mm लाइट आर्टिलरी गन, नौसेनिक गनबोट और हल्के टॉरपीडो आदि की बिक्री बढ़ाने का भी निर्णय लिया गया था।
- दोनों देशों के बीच सहयोग का हालिया उदाहरण देखें तो म्याँमार द्वारा अपने टीकाकरण अभियान में भारत से भेजे गए कोरोना वायरस के टीके की 1.5 मिलियन खुराक का प्रयोग किया जा रहा है, जबकि वहाँ चीन की 3,00,000 खुराक पर फिलहाल के लिये रोक लगा दी गई है।
- म्याँमार में भारत के हित
- अवसंरचना और कनेक्टिविटी: भारत ने म्याँमार के साथ कई अवसंरचना और विकास संबंधी परियोजनाओं की शुरुआत की है, क्योंकि भारत म्याँमार को पूर्वी एशिया और आसियान देशों में प्रवेश के द्वार के रूप में देखता है।
- म्याँमार के राखीन प्रांत में वर्ष 2021 तक महत्त्वपूर्ण सित्वे बंदरगाह का परिचालन शुरू होने की उम्मीद जताई जा रही है।
- भारत द्वारा त्रिपक्षीय राजमार्ग (भारत-म्याँमार-थाईलैंड) और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट जैसे बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सहायता की जा रही है।
- कलादान परियोजना कोलकाता को म्याँमार के सित्वे और फिर म्याँमार की कलादान नदी से भारत के उत्तर-पूर्व को जोड़ेगी।
- दोनों देशों ने वर्ष 2018 में भूमि सीमा पार समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जिसके माध्यम से भारत-म्याँमार सीमा पर प्रवेश/निकास के दो अंतर्राष्ट्रीय बिंदुओं पर सीमा पार करने के लिये वैध दस्तावेज़ों वाले यात्रियों को यात्रा की अनुमति दी गई थी।
- अवसंरचना और कनेक्टिविटी: भारत ने म्याँमार के साथ कई अवसंरचना और विकास संबंधी परियोजनाओं की शुरुआत की है, क्योंकि भारत म्याँमार को पूर्वी एशिया और आसियान देशों में प्रवेश के द्वार के रूप में देखता है।
- सुरक्षा: भारत, म्याँमार में शरण ले रहे यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) जैसे उत्तर-पूर्व क्षेत्र के कुछ उग्रवादी समूहों को लेकर चिंतित है।
- भारत को उत्तर-पूर्व सीमा क्षेत्रों में सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने के लिये म्याँमार के समर्थन और उसके साथ समन्वय करने की आवश्यकता है।
- रोहिंग्या मुद्दा: भारत और बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में मौजूद रोहिंग्या शरणार्थियों की सुरक्षित, स्थायी और शीघ्र वापसी सुनिश्चित करने के लिये भारत ने अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।
- ‘रखाइन राज्य विकास कार्यक्रम’ (RSDP) के तहत की गई प्रगति के आधार पर भारत ने हाल ही में कार्यक्रम के चरण-III के तहत परियोजनाओं को अंतिम रूप देने का प्रस्ताव किया है, जिसमें कौशल प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना और कृषि तकनीक का उन्नयन शामिल है।
- निवेश: 1.2 बिलियन डॉलर के निवेश संबंधी आँकड़ों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि म्याँमार दक्षिण एशिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत के लिये काफी अधिक महत्त्व रखता है।
- ऊर्जा: दोनों देश ऊर्जा सहयोग के क्षेत्र में भी साझेदारी का विस्तार कर रहे हैं।
- हाल ही में भारत ने म्याँमार की श्वे तेल और गैस परियोजना में 120 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक के निवेश को मंज़ूरी दी है।
आगे की राह
भारत को दोनों देशों (भारत और म्याँमार) के लोगों के पारस्परिक विकास को सुनिश्चित करने लिये म्याँमार की वर्तमान सत्ता के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना चाहिये, साथ ही यह भी आवश्यक है कि भारत, म्याँमार के मौजूदा प्रचलित गतिरोध को समाप्त करने में सहायता करने के लिये संवैधानिकता और संघवाद से संबंधित अपने अनुभव साझा करे, जिससे इस समस्या को जल्द-से-जल्द हल किया जा सके।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
परिसंपत्ति पुनर्निमाण कंपनी
चर्चा में क्यों?
बजट 2021-22 में परिसंपत्ति पुनर्निमाण कंपनी (Asset Reconstruction Company- ARC) को राज्य के स्वामित्व वाले और निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है तथा कहा गया है कि सरकार इसमें कोई इक्विटी योगदान नहीं देगी।
- ARC जो कि खराब परिसंपत्तियों के प्रबंधन और बिक्री के लिये परिसंपत्ति पुनर्निमाण कंपनी होगी, 70 बड़े खातों में 2-2.5 लाख करोड़ रुपए की परिसंपत्तियों का प्रबंधन करेगी।
- इसे सरकार द्वारा स्थापित ‘बैड बैंक’ का संस्करण माना जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
परिसंपत्ति पुनर्निमाण कंपनी:
- उद्देश्य:
- यह एक विशेष वित्तीय संस्थान है जो बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ‘नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स’ (Non Performing Assets- NPAs) खरीदता है ताकि वे अपनी बैलेंसशीट को स्वच्छ रख सकें।
- यह बैंकों को सामान्य बैंकिंग गतिविधियों में ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। बैंकों द्वारा बकाएदारों पर अपना समय और प्रयास बर्बाद करने के बजाय वे ARC को अपना NPAs पारस्परिक रूप से सहमत मूल्य पर बेच सकते हैं।
- विधिक आधार:
- सरफेसी अधिनियम, 2002 (SARFAESI Act, 2002) भारत में ARCs की स्थापना के लिये कानूनी आधार प्रदान करता है।
- सरफेसी अधिनियम न्यायालयों के हस्तक्षेप के बिना गैर-निष्पदनकारी संपत्ति के पुनर्निर्माण में मदद करता है। इस अधिनियम के तहत बड़ी संख्या में ARCs का गठन और उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के साथ पंजीकृत किया गया, जिसे ARCs को विनियमित करने की शक्ति मिली है।
- ARCs के लिये पूंजी आवश्यकताएँ:
- वर्ष 2016 में सरफेसी अधिनियम में किये गए संशोधनों के अनुसार, एक ARC के पास न्यूनतम 2 करोड़ रुपए की स्वामित्व निधि होनी चाहिये।
- RBI ने वर्ष 2017 में यह राशि बढ़ाकर 100 करोड़ रुपए कर दी थी। ARC को अपनी जोखिम भारित परिसंपत्तियों के 15% का पूंजी पर्याप्तता अनुपात बनाए रखना होगा।
- जोखिम-भारित परिसंपत्तियों का उपयोग पूंजी की न्यूनतम राशि निर्धारित करने हेतु किया जाता है जिसे दिवालिया होने के जोखिम को कम करने के लिये बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा बनाए रखा जाना चाहिये।
नवीन ARC:
- आवश्यकता:
- मौजूदा ARCs में से केवल 3-4 पर्याप्त रूप से पूंजीकृत हैं, जबकि शेष एक दर्जन से अधिक अल्प पूंजीकृत हैं। तनावग्रस्त परिसंपत्तियों का तत्काल समाधान करने के लिये एक नई संरचना स्थापित करने की आवश्यकता है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि बेसलाइन परिदृश्य के तहत सितंबर 2020 में बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ सितंबर 2021 तक बढ़कर 13.5% हो सकती हैं, जो कि सितंबर 2020 में 7.5% थी।
- कार्यशैली:
- ARC को ‘स्ट्रेस्ड एसेट्स’ का स्थानांतरण ‘नेट बुक वैल्यू’ पर होगा, जो कि इन एसेट्स के खिलाफ बैंकों द्वारा की गई ‘एसेट माइनस प्रोविज़निंग’ के मान के बराबर है। यह बैंकों को NPA के माध्यम से होने वाले नुकसान को कम करने में सक्षम बनाता है।
- ARC को बेचे जाने वाली गैर-निष्पादित संपत्तियों के लिये बैंकों को 15% नकद और 85% प्रतिभूति ‘रिसीप्ट्स’ प्राप्त होंगी।
- जब वाणिज्यिक बैंकों या वित्तीय संस्थानों की गैर-निष्पादित संपत्तियों को वसूली के उद्देश्य से ARC द्वारा अधिग्रहीत किया जाता है तब ARCs द्वारा प्रतिभूति ‘रिसीप्ट्स’ जारी की जाती है।
- मौजूदा निर्देशों के अनुसार, SARFAESI अधिनियम 2002 के तहत ‘ ‘क्वालिफाइड इंस्टीट्यूट बायर्स’ (Qualified Institutional Buyers-QIBs) द्वारा प्रतिभूति ‘रिसीप्ट्स’ में निवेश किया जाना प्रतिबंधित है।
- केंद्र सरकार द्वारा सहायता:
- हालाँकि सरकार ARC को कोई प्रत्यक्ष इक्विटी सहायता प्रदान नहीं करेगी, लेकिन यह संप्रभु गारंटी प्रदान कर सकती है जो नियामक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये आवश्यक हो सकती है।
संभावित लाभ:
- ये संस्थाएँ बैंक बैलेंसशीट में गैर-निष्पादनकारी सपत्तियों के भार को कम करेंगी और बाज़ार आधारित तरीकों से इन ‘बैड लोन्स’ का प्रबंधन करेंगी।
अन्य प्रस्तावित सुधार:
- विकास वित्तीय संस्थान:
- सरकार द्वारा प्रस्तावित विकास वित्तीय संस्थान (DFI) में ‘इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी लिमिटेड’ (IIFCL) का विलय किया जा सकता है, जो कि 3 वर्ष की लंबी अवधि में 5 लाख करोड़ रुपए. की ‘इन्फ्रा फंडिंग’ के लिये स्थापित की जा रही है। ।
- नेशनल बैंक फॉर फाइनेंसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट (NaBFID), प्रस्तावित DFI, नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (NIP) को सफल बनाने में सहायता प्रदान करेंगे।
- भारतीय रिज़र्व बैंक प्रस्तावित DFI को विनियमित करेगा, जो अपने प्रारंभिक वर्षों में सरकार के पूर्ण स्वामित्व में रहेगा।
- निजीकरण:
- दो राज्य स्वामित्व वाले बैंकों और एक बीमा कंपनी के निजीकरण के संबंध में कंपनियों को सरकार द्वारा परिभाषित प्रक्रिया के माध्यम से पहचाना जाएगा।
- पहले दौर में नीति आयोग द्वारा इसका चयन किया जाएगा, उसके बाद इसे सचिवों के मुख्य समूह के पास भेजा जाएगा और अंततः वैकल्पिक तंत्र द्वारा इसकी जाँच की जाएगी।
स्रोत-पीआईबी
सामाजिक न्याय
विवाह के लिये समान न्यूनतम आयु
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने दिल्ली और राजस्थान उच्च न्यायालयों में विवाह के लिये "समान न्यूनतम उम्र" (Uniform Minimum Age) घोषित करने के लंबित मामलों को अपने यहाँ ट्रांसफर करने की एक याचिका की जाँच का फैसला किया है।
- केंद्र सरकार ने महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु पर पुनर्विचार करने के लिये एक समिति भी बनाई है।
प्रमुख बिंदु
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) की अगुवाई वाली एक बेंच ने "सुरक्षित लैंगिक न्याय, लैंगिक समानता और महिलाओं की गरिमा" के लिये दायर याचिका पर सरकार को नोटिस जारी किया है।
- इस याचिका में विवाह की न्यूनतम आयु में विसंगतियों को दूर करने और इसको लिंग और धर्म से परे सभी नागरिकों के लिये एक समान बनाने के लिये केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।
- शादी की न्यूनतम उम्र अभी तक महिलाओं के लिये 18 और पुरुषों के लिये 21 वर्ष निर्धारित है।
- इस याचिका में विवाह की न्यूनतम आयु में विसंगतियों को दूर करने और इसको लिंग और धर्म से परे सभी नागरिकों के लिये एक समान बनाने के लिये केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।
- सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 139A के तहत दो या दो से अधिक उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित समान या काफी हद तक समान कानून से जुड़े मामले को अपने यहाँ स्थानांतरित करने की शक्ति है।
- यह तर्क दिया गया है कि विवाह के लिये अलग-अलग उम्र मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 21) तथा महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभावों को समाप्त करने हेतु अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women–CEDAW) पर भारत की प्रतिबद्धता के खिलाफ है।
भारत में विवाह से संबंधित वर्तमान कानून:
- हिंदुओं के लिये हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) लड़कियों हेतु विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिये न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है।
- हालाँकि बाल विवाह गैर-कानूनी नहीं है। नाबालिग के अनुरोध पर विवाह के समय अपराध को शून्य घोषित किया जा सकता है।
- इस्लाम में यौवन (Puberty ) प्राप्त करने वाले नाबालिग का विवाह वैध माना जाता है।
- लड़कियों और लड़कों की शादी की न्यूनतम सम्मति आयु (Age of Consent) को विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act, 1954), 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriage Act), 2006 द्वारा भी क्रमशः 18 और 21 वर्ष निर्धारित किया गया है।
लड़की और लड़का दोनों को एक सामना विवाह योग्य आयु का अधिकार:
- सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण: लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र बढ़ाना सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से लाभदायक है:
- मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio) को कम करने में।
- पोषण स्तर को सुधारने में।
- इससे महिलाओं को आजीविका, उच्च शिक्षा और आर्थिक प्रगति के नए अवसर प्राप्त होंगे। इस प्रकार एक अधिक समतावादी समाज का निर्माण हो सकता है।
- शादी की उम्र बढ़ने से विवाह की उम्र अधिक हो जाएगी और इससे स्नातक करने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि होगी जिससे महिला श्रम शक्ति भागीदारी अनुपात में सुधार होगा।
- स्नातक करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 9.8% के मौजूदा स्तर से कम-से- कम 5-7 प्रतिशत और बढ़ जाएगा।
- शादी की कानूनी उम्र अधिक होने पर लड़का और लड़की दोनों आर्थिक तथा सामाजिक रूप से लाभान्वित होंगे। महिलाएँ आर्थिक रूप से सशक्त होकर अपने हित में निर्णय ले सकेंगी।
लड़कियों की विवाह योग्य आयु बढ़ाने और इसे एक समान करने की तार्किकता:
- न्यूनतम उम्र अनिवार्य नहीं है: शादी की न्यूनतम उम्र का मतलब अनिवार्य उम्र नहीं है।
- यह दर्शाता है कि न्यूनतम उम्र से नीचे बाल विवाह करने पर कानून के तहत आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है।
- लड़कियों के अधिकारों को खतरा: लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने से इस उम्र तक उनके व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप रुकेगा।
- संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकारों पर अभिसमय (Conventions of Rights of Child) के अनुसार, बचपन बच्चों का एक विशेष और संरक्षित समय होता है, जिसमें प्रत्येक बच्चे को समान रूप से बढ़ने, सीखने, खेलने और सर्वांगीण विकास का वातावरण मिलना चाहिये।
- माता-पिता द्वारा कानून का दुरुपयोग: माता-पिता द्वारा बाल विवाह कानून का उपयोग बेटियों के खिलाफ किया गया है। यह माता-पिता द्वारा उन लड़कों को सज़ा देने का एक उपकरण बन गया है जिन्हें लड़कियाँ अपनी पसंद से पति चुनती हैं।
- अधिकांश स्व-व्यवस्थित (Self-Arranged) विवाह के मामलों को अदालत में ले जाया जाता है।
- जिनमें से केवल एक-तिहाई मामले अरेंज मैरिज (Arranged Marriage) से संबंधित होते हैं, जिन्हें कभी-कभी माता-पिता या पति द्वारा घरेलू हिंसा और दहेज जैसे मुद्दों के कारण विवाह विच्छेद कराने के लिये लाया जाता है।
- विवाहों की सामाजिक वैधता: भले ही कानून निर्दिष्ट आयु से पहले विवाह को शून्य घोषित कर दे, लेकिन अरेंज मैरिज की सामाजिक वैधता समुदाय की दृष्टि में बनी रहेगी।
- इससे उन लड़कियों की स्थिति खराब हो जाती है जो शादी के लिये निर्धारित कानूनी उम्र तक पहुँचने से पहले विधवा हो जाती हैं।
- कन्या भ्रूण हत्या में वृद्धि: लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाने से पुत्रों को अधिक वरीयता देने और उच्च गरीबी वाले देशों में कन्या भ्रूण हत्या तथा लिंग-चयनात्मक गर्भपात को बढ़ावा मिल सकता है।
आगे की राह
- सोच को बदलना:
- इस कानून से लोगों के मानसिक परिवर्तन के बाद ही ज़मीनी स्तर पर प्रभावी बदलाव लाया जा सकता है। जब तक मानसिक परिवर्तन नहीं होगा तब तक इस दिशा में कोई भी कानूनी पहल सफल नहीं हो सकती।
- रूढ़िबद्ध धारणा को बदलना:
- शादी के लिये उम्र बढ़ाना कानूनी रूप से भी ज़रूरी है, क्योंकि हमें इस विकृत मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि महिलाएँ समान उम्र के पुरुषों की तुलना में अधिक परिपक्व होती हैं और इसलिये उन्हें जल्द शादी करने की अनुमति दी जा सकती है।