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बैड बैंक की अवधारणा: महत्त्व व चुनौतियाँ

  • 10 Jul 2020
  • 14 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में बैड बैंक की अवधारणा व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

वैश्विक महामारी COVID-19 के प्रतिकूल प्रभावों के कारण देश की आर्थिक गतिविधियाँ अत्यधिक दबाव में हैं। कई अर्थशास्त्रियों और वैश्विक एजेंसियों ने ​​भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति का उल्लेख किया है। मंदी की यह स्थिति विशेष रूप से बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी। अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण विभिन्न कंपनियों व सार्वजनिक तथा निज़ी बैंकों की बैलेंस सीट में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets) में वृद्धि हो सकती है। लॉकडाउन से पूर्व सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ 10 लाख करोड़ रुपये से नीचे आ गई थी, परंतु रेटिंग फर्म क्रिसिल (Crisil) के अनुसार, अब वित्तीय वर्ष 2020-21 के अंत तक सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों का मूल्य 11 लाख करोड़ रुपये को पार करने की उम्मीद है।

गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों से ‘बैड लोन’(ख़राब ऋण) और ‘बैड एसेट’ (खराब परिसंपत्तियाँ) में बेतहाशा वृद्धि हुई है, विदित है कि बैड लोन और बैड एसेट से ही मिलकर बनती हैं ‘गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ’। बैड लोन से बैंको के लाभांश में कमी आती है, फलस्वरूप बैंक के लिये ऋण देना मुश्किल हो जाता है। बैंको की साख़ दर में लगातार गिरावट, वर्तमान में एक महत्त्वपूर्ण चिंता बनी हुई है। गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की समस्या से निपटने के लिये हाल के वर्षों में एक नई अवधारणा निकलकर सामने आ रही जिसका नाम है “बैड बैंक”

क्या है बैड बैंक?

  • बैड बैंक की अवधारणा को बैंकों की वाणिज्यिक अचल संपत्ति पोर्टफोलियो (Commercial Real-Estate Portfolio) की समस्या का निदान करने के उद्देश्य से सर्वप्रथम वर्ष 1988 में मेल्लोन बैंक (Mellon Bank) के पिट्सबर्ग (Pittsburgh) मुख्यालय में प्रस्तुत किया गया था। 
  • बैड बैंक एक आर्थिक अवधारणा है जिसके अंतर्गत आर्थिक संकट के समय घाटे में चल रहे बैंकों द्वारा अपनी देयताओं को एक नए बैंक को स्थानांतरित कर दिया जाता है। ये बैड बैंक कर्ज़ में फँसी बैंकों की राशि को खरीद लेगा और उससे निपटने का काम भी इसी बैंक का होगा।
  • जब किसी बैंक की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ सीमा से अधिक हो जाती हैं, तब राज्य के आश्वासन पर एक ऐसे बैंक का निर्माण किया जाता है जो मुख्य बैंक की देयताओं को एक निश्चित समय के लिये धारण कर लेता है।

भारतीय बैंक संघ की अनुशंसाएँ

  • ‘भारतीय बैंक संघ’ (IBA) जो कि एक दबाव समूह है, नेप्रोजेक्ट सशक्तकी सिफारिशों को आधार बनाकर तीन संस्थाओं की स्थापना की सिफारिश की गई है-
    • परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी' (Asset Reconstruction Company- ARC): ARC एक विशेष वित्तीय संस्थान है जो बैंकों और वित्तीय संस्थानों की बैलेंस शीट को स्वच्छ और संतुलित रखने में उनकी सहायता करने के लिये उनसे गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों या खराब ऋण खरीदती है। दूसरे शब्दों में ARC बैंकों से खराब ऋण खरीदने के कारोबार में कार्यरत वित्तीय संस्थान हैं।
    • परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (Asset Management Company- AMC): AMC परिसंपत्तियों का प्रबंधन, जिसमें प्रबंधन का अधिग्रहण या परिसंपत्तियों के पुनर्गठन जैसे कार्य करेगी। 500 करोड़ रुपए से अधिक के फँसे ऋण के लिये AMC की स्थापना की जाएगी। AMC बैंकों द्वारा NPA घोषित किये हुए ऋण को खरीदेगा जिससे इस कर्ज़ का भार बैंकों पर नहीं पड़ेगा। यह कंपनी पूरी तरह से स्वतंत्र होगी। इसमें सरकार का कोई दखल नहीं होगा।  AMC सरकारी एवं निजी दोनों क्षेत्रों के निवेशकों से धन जुटाएगी।
    • वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Fund- AIF): परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी’ (AMC) को AIF के माध्यम से वित्त पोषित किया जाएगा। IBA ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से बैड लोन की प्राप्ति के लिये एक स्वतंत्र ARC के गठन की सिफारिश की है।

बैड बैंक का सिद्धांत महत्त्वपूर्ण क्यों?

  • सर्वप्रथम बैड बैंक की चर्चा वर्ष 2017 में प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण में किया गया। हाल ही में नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भी डूबते कर्ज से निपटने के लिये बैड बैंक की अवधारणा को बेहद जरूरी बताया है।
  • विदित है कि बैड बैंक, परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों (Asset Reconstruction Company- ARC) की तरह काम करेगा। बैड बैंक, एक ऐसा बैंक होगा जो दूसरे बैंकों के डूबते कर्ज को खरीदेगा। ध्यातव्य है कि बैड बैंक का नाम ‘पब्लिक सेक्टर एसेट रिहैबिलिटेशन एजेंसी’(Public Sector Asset Rehabilitation Agency) होगा और यह प्रयोग जर्मनी, स्वीडन, फ्रांस जैसे देशों में सफल रहा है।
  • दरअसल बैंकों (खासकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की) की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ तेज़ी से बढ़ीं हैं। वित्तीय वर्ष 2020-21 के अंत तक सकल गैर-प्रदर्शनकारी परिसंपत्ति 11 लाख करोड़ रुपए को पार करने की उम्मीद है। बैंकों के कुल ऋण का करीब 9.7 फीसदी गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों में तब्दील हो चुका है और करीब 80 फीसदी गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों में हैं। 
  • बैड बैंक के आने से दूसरे बैंकों से डूबते कर्ज़ को वसूलने का दबाव हट जाएगा। दूसरे बैंक नए ऋण देने पर ध्यान केन्द्रित कर पाएंगे। बैंकों को अपने डूबते कर्ज़ बैड बैंक को बेचने की सुविधा मिलेगी। डिफाल्टर कंपनियों की संपत्ति बेचने के काम में तेजी आएगी। बैंक अधिकारी परिसंपत्तियों की ज़ब्ती की जगह बैंकिंग गतिविधियों को सुचारू ढंग से चला पाएंगे। 

बैड बैंक से संबंधित चुनौतियाँ 

  • बैड बैंक की स्थापना में सबसे बड़ी समस्या बैंक में हिस्सेदारी को लेकर है। यह जानना दिलचस्प है कि समस्या निजी और सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों के अधिकतम भागीदारी से है।  
  • यदि बैड बैंक में सरकार की हिस्सेदारी अधिक हो तो बैंकों की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ इतनी अधिक हो गई हैं कि बैड बैंक के माध्यम से इनकी खरीद पर सरकार को उल्लेखनीय व्यय करना पड़ सकता है।
  • यदि बैड बैंक को निजी क्षेत्र के हवाले कर दिया गया, तो सबसे बड़ी समस्या गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों के मूल्य को लेकर हो सकती है। निजी क्षेत्र का बैड बैंक अपने लाभ को ध्यान में रखते हुए गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों का मूल्य तय करेगा।
  • यदि यह मूल्य बहुत अधिक हुआ, तो बैड बैंक का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा और यदि यह मूल्य बहुत ही कम हो गया, तो बैंकों को उनकी ऋण देयता के अनुपात में राशि नहीं मिल पाएगी।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के अनुसार, बैड बैंक की अवधारणा एक नैतिक संकट उत्पन्न कर सकती  है और बैंकों को अनुत्तरदायित्वपूर्ण उधार प्रथाओं को जारी रखने के लिये प्रोत्साहित करेगी।

NPA की समस्या समाधान के अन्य विकल्प?

  • सर्वप्रथम, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति और चयन व्यवस्था में बदलाव किये जाने की आवश्यकता है। इसके अंतर्गत कार्यकारी निदेशकों, बोर्ड के सदस्यों से लेकर अध्यक्ष तक सबके संदर्भ में बदलाव किये जाने की आवश्यकता है।  
  • दूसरे कदम के तौर पर वरिष्ठ बैंक कर्मचारियों के लिये मूल्यांकन परियोजना के तहत, आवश्यक प्रशिक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिये। नियमित बैंकिंग परिचालन की अपेक्षा वित्तीय परियोजनाओं में विभिन्न तरह के कौशल की आवश्यकता होती है।
  • तीसरा कदम सतर्कता विभागों को सुदृढ़ करने का होना चाहिये। वर्तमान समय में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में कोई प्रभावी सतर्कता तंत्र मौजूद नहीं है।
  • इस संबंध में चौथा कदम समयबद्ध जाँच की व्यवस्था का होना चाहिये। बड़े स्तर पर एनपीए के कुछ मामले ऐसे भी जो सार्वजनिक डोमेन में हैं या जहाँ जान-बुझकर चूक किये जाने के प्रमाण मौजूद हैं, ऐसे मामलों को केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation - CBI) को सौंप देना चाहिये, ताकि निष्पक्ष एवं समयबद्ध जाँच की जा सके।
  • किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक का मालिकाना हक सरकार के पास होता है और इसके प्रबंधन में भी सरकार की भूमिका बहुत अहम् होती है। आम तौर पर, बैंक बोर्ड की मीटिंग्स में सरकार का प्रतिनिधित्व वित्त मंत्रालय के नौकरशाहों द्वारा किया जाता है। यह कोई अनिवार्य घटक नहीं है कि इन अधिकारियों के पास बैंकिंग व्यवस्था से संबंधित अनुभव या ज्ञान होना आवश्यक हो। ऐसे में इनके द्वारा लिये जाने वाले निर्णय और की जाने वाली कार्यवाही की जवाबदेहिता का प्रश्न बहुत अहम् हो जाता है।
  • दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड (IBC), 2016 के अनुसार किसी ऋणी के दिवालिया होने पर एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसकी परिसंपत्तियों को अधिकार में लिया जा सकता है। 
    • IBC के हिसाब से, यदि 75 प्रतिशत कर्ज़दाता सहमत हों तो ऐसी किसी कंपनी पर 180 दिनों (90 दिन के अतिरिक्त रियायती काल के साथ) के भीतर कार्रवाई की जा सकती है, जो अपना कर्ज़ नहीं चुका पा रही।

निष्कर्ष 

भारत की बैंकिंग प्रणाली ऐसी चुनौती भरी पृष्ठभूमि में अपेक्षाकृत लंबे समय से कार्य कर रही है, जिसके कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की आस्ति गुणवत्ता, पूंजी पर्याप्तता तथा लाभ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जब तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रबंधन राजनेताओं और नौकरशाहों के प्रति निष्ठावान रहेंगे, तब तक व्यावसायिकता में उनकी कमी बनी रहेगी, इसलिये संपूर्ण बैंकिंग व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है। बैंकिंग व्यवस्था में समग्र सुधारों के उचित कार्यान्वयन के साथ ही बैड बैंक की अवधारणा पर बहस होनी चाहिये, जैसा की इंद्रधनुष योजना (IndraDhanush plan) में परिकल्पित किया गया है

प्रश्न- लगातार बढ़ते गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों की समस्या के संदर्भ में विचार करते हुए बैंड बैंक की अवधारणा पर प्रकाश डालिये। साथ ही इस समस्या के निस्तारण में बैड बैंक के अतिरिक्त अन्य उपायों पर भी चर्चा कीजिये।

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