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भारतीय अर्थव्यवस्था

बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये वित्तीय संस्थान

  • 24 Aug 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने देश के बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण की ज़रूरतों को हल करने के लिये एक विकास वित्तीय संस्थान (Development Financial Institute-DFI) स्थापित करने का प्रस्ताव पेश किया है।

प्रमुख बिंदु

  • इस तरह की संस्था की स्थापना को एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है क्योंकि बैंकों के पास ऐसी परियोजनाओं को वित्त देने के लिये दीर्घकालिक धन नहीं होता है।
  • बैंक ऐसी परियोजनाओं के लिये ऋण नहीं दे सकते हैं क्योंकि इससे उनकी ऋण देने की क्षमता कम हो जाती है।

अवसंरचना संबंधित वित्त हेतु भारत को DFI की ज़रूरत क्यों है?

  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये इससे पूंजी प्रवाह में वृद्धि होगी और पूंजी बाज़ार सक्रिय होंगे।
  • दीर्घकालिक वित्त में सुधार करने के लिये।
  • अवसंरचना और आवास परियोजनाओं के लिये ऋणों की उपलब्धता बढ़ाने के लिये।
  • जैसा कि भारत में विकास बैंक नहीं है, DFI देश के लिये एक संस्थागत तंत्र की आवश्यकता को पूरा करेगा।
  • बुनियादी ढाँचे से संबंधित परियोजनाओं हेतु ऋण प्रवाह में सुधार किया जा सकेगा।

RBI ने वर्ष 2017 में यह भी निर्दिष्ट किया था कि विशिष्ट बैंक न केवल तेज़ी से विकसित होती भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक वित्तपोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं बल्कि दीर्घकालिक वित्तपोषण में विद्यमान अंतर को भी भर सकते हैं।

इस प्रकार यदि सरकार देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, क्षेत्रीय, ग्रामीण और पर्यावरणीय चिंताओं को हल करना चाहती है तो DFI की अवधारणा को पुनर्जीवित करना बुद्धिमानी होगी।

विकास वित्त संस्थान क्या है?

  • ये विकासशील देशों में विकास परियोजनाओं को वित्त प्रदान करने के लिये विशेष रूप से स्थापित संस्थान हैं।
  • इन बैंकों की पूंजी का स्रोत राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय विकास निधि है।
  • यह विभिन्न विकास परियोजनाओं को प्रतिस्पर्द्धी दर पर वित्त प्रदान करने की क्षमता रखता है।

यह वाणिज्यिक बैंकों से किस प्रकार भिन्न है?

  • यह वाणिज्यिक बैंकों के परिचालन मानदंडों के बीच एक संतुलन बनाता है, जिसमें एक ओर वाणिज्यिक बैंक और दूसरी ओर विकास संबंधी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं।
  • DFI केवल वाणिज्यिक बैंकों की तरह सादे ऋणदाता नहीं हैं, बल्कि ये अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के विकास में सहायक के रूप में भी कार्य करते हैं।

भारत में DFI का विकास:

  • भारत का पहला DFI भारतीय औद्योगिक निगम (IFC) था जिसे वर्ष 1948 में लॉन्च किया गया था।
  • IDBI, UTI, NABARD, EXIM बैंक, SIDBI, NHB, IIFCL आदि अन्य प्रमुख DFIs हैं।
  • बाद में इनमें से कई को ICICI बैंक, IDBI बैंक, आदि जैसे बैंकों में परिवर्तित कर दिया गया।

विकास वित्तीय संस्थान का वर्गीकरण:

  • सेक्टर विशिष्ट वित्तीय संस्थान: ये वित्तीय संस्थान एक विशेष क्षेत्र की परियोजनाओं को वित्त प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित होते हैं।
    • उदाहरण के तौर पर: NHB पूरी तरह से आवास परियोजनाओं से संबंधित है, EXIM बैंक आयात निर्यात कार्यों की ओर उन्मुख है।
  • निवेश संस्थान: ये व्यवसाय संचालन को सुविधाजनक बनाने के लिये डिज़ाइन की गई सेवाएँ प्रदान करने का कार्य करते हैं।
    • जैसे कि पूंजीगत व्यय वित्तपोषण (Capital Expenditure Financing) और इक्विटी ऑफरिंग्स (Equity Offerings), जिसमें इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) जैसे: LIC, GIC और UTI भी शामिल हैं।

स्रोत : द हिन्दू

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