चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
प्रिलिम्स के लिये:चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, OBOR, BRI, POK, मोतियों की माला, पनामा नहर, हिंद-प्रशांत क्षेत्र। मेन्स के लिये:चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा और भारत पर इसके प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
देश के ऊर्जा संकट से कुछ राहत पाने के लिये पाकिस्तान ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (China-Pakistan Economic Corridor- CPEC) के तहत 2.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के नाभिकीय रिएक्टर का उद्घाटन किया।
- यह 1100 मेगावाट क्षमता का विद्युत संयंत्र है, जो देश में सबसे सस्ती विद्युत का उत्पादन करेगा।
पृष्ठिभूमि:
- पाकिस्तान ने हाल ही में अपने राष्ट्रीय ग्रिड में खराबी के कारण राष्ट्रव्यापी विद्युत कटौती का सामना किया।
- यह देश वर्षों से ब्लैकआउट की स्थिति से जूझ रहा है और बढ़ती ऊर्जा लागत, कम विदेशी मुद्रा भंडार तथा सरकारी बजट पर दबाव का सामना कर रहा है।
- पाकिस्तान बढ़ी हुई ऊर्जा दरों के बदले बेलआउट हेतु अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) के साथ संवाद कर रहा है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार नौ वर्षों में सबसे कम हो गया है क्योंकि उच्च जीवाश्म ईंधन की लागत ने सरकार के बजट पर अत्यधिक दबाव डाला है।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा:
- CPEC चीन के उत्तर-पश्चिमी झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र और पाकिस्तान के पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को जोड़ने वाली बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का 3,000 किलोमीटर का लंबा मार्ग है।
- यह पाकिस्तान और चीन के बीच एक द्विपक्षीय परियोजना है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा, औद्योगिक एवं अन्य बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं के साथ राजमार्गों, रेलवे तथा पाइपलाइन्स के नेटवर्क के माध्यम से पूरे पाकिस्तान में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
- यह चीन के लिये ग्वादर बंदरगाह से मध्य-पूर्व और अफ्रीका तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करेगा ताकि चीन हिंद महासागर तक पहुँच प्राप्त कर सके तथा चीन बदले में पाकिस्तान के ऊर्जा संकट को दूर करने और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिये पाकिस्तान में विकास परियोजनाओं का समर्थन करेगा।
- CPEC, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक हिस्सा है।
- वर्ष 2013 में शुरू किये गए ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को भूमि एवं समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।
पाकिस्तान और चीन के लिये CPEC की चुनौतियाँ:
- पाकिस्तान:
- क्षेत्रीय असंतुलन: CPEC पाकिस्तान में कुछ क्षेत्रों और प्रांतों पर केंद्रित है, जिससे विकास एवं निवेश में क्षेत्रीय असंतुलन की चिंता बढ़ जाती है।
- ऋण जाल: बड़े पैमाने पर चीनी ऋण द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं का होना तथा इन ऋणों को चुका पाने की क्षमता पर प्रश्न के कारण पाकिस्तान का ऋण स्तर एक चिंता का विषय बन गया है। IMF के अनुसार, चीन अब पाकिस्तान का सबसे बड़ा लेनदार है, जिसके पास वर्ष 2021 में चीन के कुल विदेशी ऋण का 27.4% हिस्सा है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: CPEC के निर्माण में बड़े पैमाने की बुनियादी ढाँचा परियोजना के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं, जिनमें वनों की कटाई, जैवविविधता की हानि तथा वायु एवं जल प्रदूषण शामिल हैं।
- सामाजिक निहितार्थ: परियोजना के विकास ने स्थानीय समुदायों के विस्थापन तथा उनकी पारंपरिक आजीविका के नुकसान के साथ-साथ इस क्षेत्र में बढ़ते प्रवास एवं जनसंख्या के दबाव के प्रभाव के बारे में चिंताओं को जन्म दिया है।
- संप्रभुता की चिंता: कुछ विद्वानों ने पाकिस्तान में चीन के बढ़ते प्रभाव तथा देश की संप्रभुता एवं स्वतंत्रता से समझौता करने की परियोजना की क्षमता के बारे में चिंता जताई है।
- चीन:
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: चीनी श्रमिकों की सुरक्षा तथा क्षेत्र की स्थिरता CPEC की सफलता के लिये एक बड़ी चुनौती है।
- राजनीतिक विरोध: कुछ राजनीतिक दलों एवं समूहों द्वारा इसका विरोध किया गया है, जो पारदर्शिता की कमी तथा पाकिस्तान की संप्रभुता पर परियोजना के संभावित दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में चिंतित हैं।
भारत के लिये CPEC के निहितार्थ:
- भारत की संप्रभुता:
- भारत की संप्रभुता: भारत CPEC की लगातार आलोचना करता रहा है, क्योंकि यह गिलगित- बाल्टिस्तान के पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़रता है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच एक विवादित क्षेत्र है।
- इस आर्थिक गलियारे को कश्मीर घाटी के लिये एक वैकल्पिक सड़क लिंक के रूप में भी देखा जाता है, जो भारतीय सीमा पर स्थित है।
- यदि CPEC सफल होता है, तो यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तानी क्षेत्र की मान्यता को और सशक्त करेगा तथा 73,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर भारत के दावे को कमज़ोर करेगा, जहाँ 1.8 मिलियन से अधिक आबादी का निवास है।
- समुद्री मार्ग से व्यापार पर चीनी नियंत्रण:
- पूर्वी तट पर प्रमुख अमेरिकी बंदरगाह चीन के साथ व्यापार करने हेतु पनामा नहर पर निर्भर हैं।
- एक बार CPEC के पूरी तरह कार्यात्मक हो जाने के पश्चात् चीन उत्तर और लैटिन अमेरिकी उद्यमों के लिये एक 'छोटे एवं अधिक किफायती' व्यापार मार्ग की पेशकश करने की स्थिति में होगा, जिससे चीन को उन शर्तों को निर्धारित करने की शक्ति मिल जाएगी जिसके द्वारा अटलांटिक और प्रशांत महासागर में माल की अंतर्राष्ट्रीय आवाजाही हो सकेगी। ।
- चीन की मोतियों की माला (पर्ल ऑफ़ स्ट्रिंग) पहल:
- चटगाँव बंदरगाह (बांग्लादेश), हंबनटोटा बंदरगाह (श्रीलंका), पोर्ट सूडान (सूडान), मालदीव, सोमालिया और सेशेल्स में मौजूदा उपस्थिति के साथ ग्वादर बंदरगाह पर नियंत्रण कम्युनिस्ट राष्ट्र का हिंद महासागर पर पूर्ण प्रभुत्त्व स्थापित करता है।
- BRI और चीनी प्रभुत्त्व का व्यापार में सशक्त नेतृत्त्व:
- चीन की BRI परियोजना, जो बंदरगाहों, सड़कों और रेलवे के नेटवर्क के माध्यम से चीन तथा बाकी यूरेशिया के बीच व्यापार संपर्क पर केंद्रित है, की अक्सर इस क्षेत्र पर हावी होने की चीन की राजनीतिक योजना के रूप में व्याख्या की जाती है। CPEC उसी दिशा में एक बड़ा कदम है।
आगे की राह
- भारत को अपने रणनीतिक स्थान का लाभ उठाना चाहिये और लाभ अर्जित करने हेतु समान विचारधारा वाले देशों के साथ कार्य करना चाहिये जैसे-
- एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर भारत-जापान आर्थिक सहयोग हेतु समझौता है, यह भारत को महत्त्वपूर्ण रणनीतिक लाभ प्रदान करता है और चीन का मुकाबला करने हेतु सक्षम बना सकता है।
- ब्लू डॉट नेटवर्क, इसे संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है।
- यह वैश्विक बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु उच्च गुणवत्ता वाले, विश्वसनीय मानकों को बढ़ावा देने के लिये सरकारों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को एक साथ लाने की एक बहु-हितधारक पहल है।
- यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान देने के साथ-साथ विश्व स्तर पर सड़क, बंदरगाह एवं पुलों के लिये मान्यता प्राप्त मूल्यांकन एवं प्रमाणन प्रणाली के रूप में काम करेगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016) (a) अफ्रीकी संघ उत्तर: D व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. चीन-पकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी.पी.ई.सी.) को चीन की अपेक्षाकृत अधिक विशाल ‘एक पट्टी एक सड़क’ पहल के एक मूलभूत भाग के रूप में देखा जा रहा है। सी.पी.ई.सी. का संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत कीजिये और भारत द्वारा उससे किनारा करने के कारण गिनाइये। (2018) प्रश्न. चीन और पाकिस्तान ने एक आर्थिक गलियारे के विकास के लिये समझौता किया है। यह भारत की सुरक्षा के लिये क्या खतरा प्रस्तुत करता है? समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2014) प्रश्न. “चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को एशिया में संभाव्य सैन्य शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।” इस कथन के प्रकाश में उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2017) |
स्रोत: ब्लूमबर्ग
एक चुनाव में दो सीटों पर चुनाव लड़ने पर रोक नहीं
प्रिलिम्स के लिये:एक उम्मीदवार एक निर्वाचन क्षेत्र, चुनाव आयोग, जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम। मेन्स के लिये:दो निर्वाचन क्षेत्रों के लिये एक उम्मीदवार का मुद्दा। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने "संसदीय संप्रभुता" और "राजनीतिक लोकतंत्र" का मामला बताते हुए आम या विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से लड़ने से रोकने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
- याचिका में जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की धारा 33 (7) की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ डालना अनुचित है क्योंकि उम्मीदवार यदि दोनों सीटों पर जीत जाता है तो उसे एक सीट छोड़नी होगी तथा उपचुनाव अनिवार्य रूप से होगा।
वर्तमान कानून:
- जनप्रतिनिधित्त्व कानून (RPA) में ऐसा कोई प्रासंगिक प्रावधान नहीं है जिसके लिये इस मामले में न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता हो और यह मामला 'पूरी तरह से विधायी दायरे' और 'नीति के दायरे' में आता है।
- यह संसद की इच्छा पर निर्भर है जो यह निर्धारित करती है कि इस तरह के विकल्प देकर राजनीतिक लोकतंत्र को आगे बढ़ाया जाए है या नहीं।
- कई सीटों से चुनाव लड़ने के विभिन्न कारण हो सकते हैं, जिसमें विधायी क्षेत्र में संतुलन स्थापित करना तथा संसदीय लोकतंत्र को संवर्द्धित करना शामिल है।
- यह मुद्दा संसदीय संप्रभुता के दायरे में आता है।
- इसमें कहा गया है कि संसद ने वर्ष 1996 में कानून में संशोधन कर निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या दो तक सीमित कर दी थी, जबकि पहले एक उम्मीदवार कितनी भी सीटों पर चुनाव लड़ सकता था।
- संसद पहले ही हस्तक्षेप कर चुकी है। संसद निश्चित रूप से पुनः हस्तक्षेप कर सकती है। जब वह ऐसा करना उचित समझेगी तो कार्यवाही की जाएगी। किसी की ओर से निष्क्रियता का कोई प्रश्न ही नहीं है।
दोहरी उम्मीदवारी से संबंधित प्रावधान:
- जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की धारा 33(7) के अनुसार, एक उम्मीदवार अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ सकता है।
- वर्ष 1996 तक अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई थी तब दो निर्वाचन क्षेत्रों पर सीमा निर्धारण हेतु RPA में संशोधन किया गया था।
- वर्ष 1951 के बाद से कई राजनेताओं ने एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने के लिये इस कारक का उपयोग किया है- कभी प्रतिद्वंद्वी के वोट को विभाजित करने हेतु, कभी देश भर में अपनी पार्टी की शक्ति का दावा करने के लिये, कभी उम्मीदवार की पार्टी के पक्ष में निर्वाचन क्षेत्रों के आसपास के क्षेत्र में पक्ष में लहर पैदा करने हेतु और लगभग सभी दलों द्वारा धारा 33(7) का शोषण किया गया है।
दोहरी उम्मीदवारी से संबंधित मुद्दे:
- संसाधनों की बर्बादी:
- कई निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार करना और चुनाव लड़ना उम्मीदवार तथा सरकार दोनों के लिये संसाधनों एवं धन की बर्बादी हो सकती है।
- किसी एक निर्वाचन क्षेत्र को छोड़ने के बाद तुरंत वहाँ उपचुनाव कराया जाता है, जो सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ाता है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वड़ोदरा और वाराणसी दोनों सीटों पर जीत हासिल करने के बाद वड़ोदरा में अपनी सीट छोड़ दी, जिस कारण वहाँ उपचुनाव हुआ।
- हितों पर मतभेद:
- एक से अधिक ज़िलों में चुनाव लड़ने से हितों को लेकर मतभेद हो सकता है क्योंकि उम्मीदवार प्रत्येक ज़िले पर समान समय और ध्यान देने में सक्षम नहीं हो सकता है।
- विरोधाभासी प्रावधान:
- RPA की धारा 33(7) एक ऐसी स्थिति की ओर ले जाती है जहाँ इसे उसी अधिनियम के दूसरे खंड- विशेष रूप से धारा 70 द्वारा नकार दिया जाएगा।
- जबकि 33(7) उम्मीदवारों को दो सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति देता है, धारा 70 उम्मीदवारों को लोकसभा/राज्यसभा में दो निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्त्व करने से प्रतिबंधित करती है।
- मतदाताओं में भ्रम:
- विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता इस बात को लेकर भ्रमित हो सकते हैं कि कौन-सा उम्मीदवार उनका प्रतिनिधित्त्व करता है या उन्हें किसका समर्थन करना चाहिये।
- भ्रष्टाचार की धारणा:
- कई निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ने से उम्मीदवार के इरादों पर भी संदेह हो सकता है और यह आभास हो सकता है कि वह भ्रष्ट है, क्योंकि उम्मीदवार अपने चुने जाने की संभावना को पुष्ट करने के लिये ऐसा कर सकते हैं।
- लोकतंत्र के लिये खतरा:
- दोहरी उम्मीदवारी को लोकतंत्र के लिये खतरे के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि यह निष्पक्ष और समान प्रतिनिधित्त्व के सिद्धांत को कमज़ोर कर सकता है।
आगे की राह
- निर्वाचन आयोग ने धारा 33(7) में संशोधन की सिफारिश की ताकि एक उम्मीदवार को केवल एक सीट से चुनाव लड़ने की अनुमति मिल सके।
- ऐसा वर्ष 2004, 2010, 2016 और 2018 में किया गया था।
- एक ऐसी प्रणाली तैयार की जानी चाहिये जिसमें यदि कोई उम्मीदवार दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है और दोनों में जीत जाता है, तो वह किसी एक निर्वाचन क्षेत्र में बाद में कराए जाने वाले उपचुनाव का वित्तीय भार वहन करेगा।
- यह राशि विधानसभा चुनाव के लिये 5 लाख रुपए और लोकसभा चुनाव हेतु 10 लाख रुपए होगी।
- "एक व्यक्ति, एक वोट" का सिद्धांत भारतीय लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है। हालाँकि अब समय आ गया है कि इस सिद्धांत को "एक व्यक्ति, एक वोट; एक उम्मीदवार, एक निर्वाचन क्षेत्र" में संशोधित और विस्तारित किया जाए।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के उद्भव के आलोक में भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022) |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
PM कुसुम
प्रिलिम्स के लिये:PM कुसुम, ऑफ-ग्रिड सौर पंप, सौर ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा, कृषि श्रमिकों का सशक्तीकरण। मेन्स के लिये:PM कुसुम, इसका महत्त्व और चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (The Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) ने PM-कुसुम (प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान) के तहत ग्रामीण भारत में 30,000 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने की समय-सीमा बढ़ाकर मार्च 2026 कर दी है।
PM कुसुम:
- परिचय:
- पीएम-कुसुम योजना को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में ऑफ-ग्रिड सौर पंपों की स्थापना और ग्रिड से जुड़े क्षेत्रों में ग्रिड पर निर्भरता कम करने के लिये शुरू किया गया था।
- घटक:
- भूमि पर स्थापित 10,000 मेगावाट के विकेंद्रीकृत ग्रिडों को नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों से जोड़ना।
- 20 लाख सौर ऊर्जा चालित कृषि पंपों की स्थापना।
- ग्रिड से जुड़े 15 लाख सौर ऊर्जा चालित कृषि पंपों का सौरीकरण (Solarisation)।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य किसानों को उनकी शुष्क भूमि पर सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने और इसे ग्रिड को बेचने में सक्षम बनाना है।
- यह ग्रिड को अधिशेष सौर ऊर्जा बेचने की अनुमति देकर किसानों की आय बढ़ाने में भी मदद करता है।
उपलब्धियाँ:
योजना का महत्त्व:
- ऊर्जा तक पहुँच बढ़ाना:
- यह किसानों को अधिशेष सौर ऊर्जा को राज्यों को बेचने के लिये प्रोत्साहित करता है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी।
- इस योजना से ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत सुविधा की पहुँच बढ़ाने और कृषि तथा अन्य ग्रामीण गतिविधियों के लिये ऊर्जा का एक विश्वसनीय स्रोत प्रदान करने की उम्मीद है।
- जलवायु आपदा के प्रभावों को कम करने में मदद:
- यदि किसान अधिशेष विद्युत बेचने में सक्षम होते हैं, तो उन्हें विद्युत बचाने हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा, इससे भूजल का उचित और कुशल उपयोग होगा।
- इसके अलावा विकेंद्रीकृत सौर-आधारित सिंचाई सुविधा प्रदान कर प्रदूषण फैलाने वाले डीज़ल से निज़ात पाई जा सकती है।
- पूरी तरह से लागू होने पर पीएम-कुसुम कार्बन उत्सर्जन को प्रतिवर्ष 32 मिलियन टन CO2 तक कम कर देगी।
- रोज़गार और सशक्तीकरण:
- इस योजना के तहत सौर ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना, रखरखाव और संचालन के परिणामस्वरूप रोज़गार के अवसर उत्पन्न होने की उम्मीद है।
- इस योजना में ग्रामीण समुदायों को ऊर्जा उत्पादन और वितरण पर नियंत्रण प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाएगी।
संबद्ध चुनौतियाँ:
- वित्तीय और लॉजिस्टिक्स मुद्दे:
- सौर ऊर्जा परियोजनाओं को स्थापित करने की लागत अधिक हो सकती है और यह आवश्यक वित्तपोषण को लेकर किसानों के समक्ष बाधक बन सकता है।
- यह मामला घरेलू उपकरणों की उपलब्धता का है। पंप घरेलू आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये एक चुनौती नहीं हैं, जबकि सौर पंपों की उपलब्धता अभी भी एक मुद्दा है।
- घटता भू-जल स्तर:
- विद्युत सब्सिडी के कारण विद्युत की आवर्ती लागत इतनी कम है कि किसान निरंतर जल को पंप करते रहते हैं और जिससे जल स्तर नीचे जा रहा है।
- सोलर इंस्टालेशन में जल स्तर गिरने की स्थिति में उच्च क्षमता वाले पंपों को अद्यतन करना अधिक कठिन काम है क्योंकि लोगों को नए सोलर पैनल लगाने होंगे, जो महँगे हैं।
- नियामक बाधाएँ और स्थिरता:
- ऐसी विनियामक बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं जो योजना के सुचारु कार्यान्वयन को रोकती हैं जैसे कि सौर ऊर्जा परियोजनाओं को ग्रिड से जोड़ने पर प्रतिबंध।
- विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा परियोजनाओं को ग्रिड के साथ एकीकृत करने से तकनीकी चुनौतियाँ और स्थिरता के मुद्दे सामने आ सकते हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है।
आगे की राह
- केंद्र और राज्यों के बीच आम सहमति इस विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा योजना की सफलता की कुंजी है। भारत में ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ा कोई भी सुधार तब तक प्रभावी रूप से लागू नहीं किया जा सकता, जब तक कि केंद्र, राज्य और अन्य सभी हितधारकों के बीच इस संदर्भ में आम सहमति न बन जाए।
- सिंचाई के लिये पारंपरिक डीज़ल या विद्युत चालित पंपों से सौर पंपों की तरफ बढ़ने के साथ ही किसानों को 'ड्रिप इरिगेशन' (Drip irrigation) जैसे आधुनिक उपायों को भी अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जिससे फसल उत्पादन में वृद्धि के साथ ही पानी और बिजली की भी बचत होगी।
- इस योजना के प्रभावी कार्यान्वयन और हितधारकों की इस पहल में गंभीरता के साथ भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये कार्यान्वयन की उच्च लागत तथा व्यापक रखरखाव की चुनौतियों को देखते हुए योजना की बेंचमार्क कीमतों को अधिक आकर्षक बनाना होगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020) |
स्रोत: द हिंदू
ई-न्यायालय एकीकृत मिशन मोड परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, ई-फाइलिंग, ई-न्यायालय एकीकृत मिशन मोड परियोजना, नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG) मेन्स के लिये:भारतीय न्यायपालिका का डिजिटलीकरण: चुनौतियाँ, समाधान |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने प्रौद्योगिकी का उपयोग करके न्याय तक पहुँच में सुधार के उद्देश्य से ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों के कंप्यूटरीकरण हेतु देश में ई-न्यायालय एकीकृत मिशन मोड परियोजना शुरू की।
ई-न्यायालय एकीकृत मिशन मोड परियोजना:
- परिचय और कार्यान्वयन:
- राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के हिस्से के रूप में यह परियोजना भारतीय न्यायपालिका के सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) विकास हेतु वर्ष 2007 से कार्यान्वित है।
- ई-न्यायालय परियोजना को भारत के सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति और न्याय विभाग के सहयोग से लागू किया जा रहा है।
- चरण:
- चरण I: इसे वर्ष 2011-2015 के दौरान लागू किया गया था।
- चरण II: इसे वर्ष 2015 में शुरू किया गया था जिसके तहत विभिन्न ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों को कंप्यूटरीकृत किया गया है।
परियोजना के तहत की गई पहल:
- नेटवर्क में सुधार: वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) परियोजना के तहत बेहतर बैंडविड्थ गति के साथ पूरे भारत में कुल कोर्ट कॉम्प्लेक्स के 99.4% को कनेक्टिविटी प्रदान की गई है।
- ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर: केस इंफॉर्मेशन सॉफ्टवेयर (CIS) फ्री एंड ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर (FOSS) पर आधारित है जिसे राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा विकसित किया गया है।
- NJDG डेटाबेस: राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) आदेशों, निर्णयों और मामलों का एक डेटाबेस है, जिसे ई-न्यायालय परियोजना के तहत एक ऑनलाइन मंच के रूप में विकसित किया गया है।
- यह सभी कंप्यूटरीकृत ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों की न्यायिक कार्यवाहियों/निर्णयों से संबंधित जानकारी प्रदान करता है।
- मामले की स्थिति की जानकारी उपलब्ध कराना: वर्ष 2020 में केंद्र और राज्य सरकारों, संस्थागत वादियों तथा स्थानीय सरकारों को लंबित निगरानी एवं अनुपालन में सुधार हेतु व NJDG डेटा तक पहुँच की अनुमति देने के लिये ओपन एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (API) पेश किये गए थे।
- वकीलों/वादकारियों को मामले की स्थिति, वाद सूची, निर्णय आदि पर वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करने हेतु 7 प्लेटफॉर्म बनाए गए हैं।
- इसके अलावा वकीलों और जजों के लिये मोबाइल एप के साथ इलेक्ट्रॉनिक केस मैनेजमेंट टूल्स (ECMT) बनाए गए हैं।
- आभासी न्यायालय: ट्रैफिक चालान मामलों को संभालने के लिये 17 राज्यों /केंद्रशासित प्रदेशों में 21 आभासी न्यायालय संचालित किये गए हैं।
- 21 आभासी न्यायालयों द्वारा 2.40 करोड़ से अधिक मामले निपटाए गए हैं।
- वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग: वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएँ न्यायालय परिसरों और संबंधित जेलों के मध्य भी सक्षम की गई हैं।
- लाखों मामलों की सुनवाई कर सर्वोच्च न्यायालय एक वैश्विक नेता के रूप में उभरा है।
- ई-फाइलिंग: उन्नत सुविधाओं के साथ कानूनी कागज़ात की इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग के लिये नई ई-फाइलिंग प्रणाली शुरू की गई है। वर्ष 2022 तक कुल 19 उच्च न्यायालयों ने ई-फाइलिंग के मॉडल नियमों को अपनाया है।
- समन के संबंध में: समन देने और जारी करने की प्रौद्योगिकी सक्षम प्रक्रिया के लिये राष्ट्रीय सेवा और इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियाओं की ट्रैकिंग (NSTEP) शुरू की गई है।
- इसे वर्तमान में 28 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया गया है।
- उपयोगकर्त्ता के अनुकूल पोर्टल: कई उपयोगकर्त्ता अनुकूल सुविधाओं के साथ एक नया "जजमेंट सर्च" पोर्टल प्रारंभ किया गया है। यह सुविधा सभी को नि:शुल्क प्रदान की जा रही है।
फेज III:
- ई-न्यायालय परियोजना का तीसरा चरण:
- ई-न्यायालय परियोजना चरण III के लिये मसौदा विज़न दस्तावेज़ को अंतिम रूप दे दिया गया है और ई-समिति, भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित किया गया है।
- यह चरण एक न्यायिक प्रणाली का उल्लेख करता है जो न्याय की मांग करने वाले या भारत में न्याय के वितरण का हिस्सा है जो प्रत्येक व्यक्ति के लिये अधिक किफायती, सुलभ, लागत प्रभावी, अनुमानित, भरोसेमंद और पारदर्शी है।
- यह एक ऐसी भारतीय न्यायिक प्रणाली को संदर्भित करती है जो न्याय मांगने वाले अथवा न्यायिक प्रशासन में भाग लेने वाले सभी के लिये अधिक सुलभ, किफायती, भरोसेमंद और पारदर्शी है।
- चरण III में नई विशेषताएँ:
- डिजिटल और पेपरलेस/कागज़ रहित न्यायालय का उद्देश्य न्यायालयी कार्यवाही को डिजिटल प्रारूप में लाना है।
- ई-न्यायालय में वादियों (Litigants) अथवा वकीलों की उपस्थिति की समस्या खत्म की जा सकती है।
- यातायात उल्लंघनों के अधिनिर्णयन से परे आभासी न्यायालयों के दायरे का विस्तार।
- मामलों की लंबितता के विश्लेषण के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और इसके सबसेट जैसे ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (OCR) आदि उभरती हुई तकनीकों का उपयोग, संभावित मुकदमेबाज़ी का पूर्वानुमान आदि।
संबंधित चिंताएँ और समाधान:
चिंताएँ |
समाधान |
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
कच्छ के रण में पर्यटन कार्य समूह
प्रिलिम्स के लिये:भारत की G20 प्रेसीडेंसी, कच्छ का रण, यूनेस्को विश्व विरासत स्थल, धौलावीरा, विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद, स्वदेश दर्शन योजना, मसौदा राष्ट्रीय पर्यटन नीति 2022, देखो अपना देश पहल, राष्ट्रीय हरित पर्यटन मिशन, वैश्विक निवेशक शिखर सम्मेलन। मेन्स के लिये:भारत में पर्यटन क्षेत्र की स्थिति, पर्यटन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, पर्यटन विकास से संबंधित सरकार की पहल, G20 और पर्यटन। |
चर्चा में क्यों?
भारत की G20 अध्यक्षता के हिस्से के रूप में गुजरात 7 से 9 फरवरी, 2023 तक कच्छ के रण में पहले पर्यटन कार्य समूह (TWG) की बैठक की मेज़बानी करेगा।
- ग्रामीण और पुरातात्त्विक स्थल पर्यटन का फोकस क्षेत्र होगा। इसके अतिरिक्त धौलावीरा जो कि यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल है, यह विदेशी प्रतिनिधियों के लिये दूसरा पर्यटन स्थल होगा।
G20 द्वारा पर्यटन क्षेत्र में हस्तक्षेप:
- भारत की जी20 अध्यक्षता में पर्यटन के लिये 5 परस्पर संबंधित प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं। तद्नुसार, इन पाँच प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ज़ोर दिया जाएगा:
- पर्यटन क्षेत्र का कायाकल्प
- डिजिटलीकरण की शक्ति का उपयोग करना
- कौशल के साथ युवाओं को सशक्त बनाना
- पर्यटन MSME/स्टार्टअप को बढ़ावा देना
- लक्ष्यों के रणनीतिक प्रबंधन पर पुनर्विचार।
- साथ ही G20 मंच के माध्यम से कई प्राथमिकताओं में से एक यह है कि वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) को कैसे प्राप्त किया जाएगा, इस बारे में आम सहमति तय करना।
- इसके एक भाग के रूप में स्थायी पर्यटन पर ज़ोर दिया जाएगा जो न केवल पर्यावरण के लिये बल्कि स्थानीय उद्यम के लिये अवसर पैदा करने हेतु भी महत्त्वपूर्ण है।
- G20 आयोजनों के लिये चुने गए विभिन्न स्थानों में ग्रामीण पर्यटन (लाडपुरा खास गाँव, मध्य प्रदेश), पुरातात्त्विक पर्यटन (धौलावीरा) और इको टूरिज़्म (खोनोमा गाँव, नगालैंड) आदि जैसे विभिन्न क्षेत्र शामिल होंगे।
- इसके साथ ही G20 अध्यक्षता का लाभ उठाने के लिये 3 मेगा पर्यटन संबंधी कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इनमें अप्रैल 2023 में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट, MICE अभिसमय और वर्ल्ड टूरिज़्म CEO फोरम की बैठक शामिल हैं।
भारत में पर्यटन क्षेत्र की स्थिति:
- परिचय:
- भारत अपनी विविध सांस्कृतिक विरासत, समृद्ध इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता हेतु जाना जाता है, यही कारण है कि यह प्रत्येक वर्ष लाखों घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करता है।
- भारत पर्यटन क्ष्रेत्र में विविधताओं से परिपूर्ण है, जिसमें इको-टूरिज़्म, परिभ्रमण, व्यवसाय, खेल, शैक्षिक, ग्रामीण और चिकित्सा यात्राएँ शामिल हैं।
- अर्थव्यवस्था में योगदान:
- विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद के अनुसार, वर्ष 2021 में सकल घरेलू उत्पाद में यात्रा और पर्यटन के कुल योगदान के मामले में भारत 6वें स्थान पर है।
- यात्रा और पर्यटन ने सकल घरेलू उत्पाद में 5.8% का योगदान दिया और इस क्षेत्र ने 32.1 मिलियन नौकरियाँ सृजित कीं, जो वर्ष 2021 की कुल नौकरियों के 6.9% के बराबर है।
- पर्यटन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:
- अवसंरचनात्मक बाधाएँ: भारत आवास, परिवहन और मनोरंजन सुविधाओं सहित गुणवत्तापूर्ण पर्यटक अवसंरचना की कमी का सामना कर रहा है, जो अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने की इसकी क्षमता को सीमित करता है।
- सुरक्षा और संरक्षण: भारत को पर्यटकों, विशेषकर महिलाओं की सुरक्षा और रक्षा के संबंध में चिंताओं का सामना करना पड़ा है जो संभावित पर्यटकों को देश में आने से रोक सकता है।
- मानकीकरण का अभाव: भारत को पर्यटन उद्योग में मानकीकरण की कमी का सामना करना पड़ता है, जिसमें आवास, टूर ऑपरेटर और परिवहन प्रदाता शामिल हैं, जो समग्र पर्यटक अनुभव को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
- भारत में पर्यटन से संबंधित पहलें:
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न 1. पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र को विकास पहलों और पर्यटन के ऋणात्मक प्रभाव से किस प्रकार पुनःस्थापित किया जा सकता है? (मुख्य परीक्षा- 2019) प्रश्न 2. पर्यटन की प्रोन्नति के कारण जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड राज्य अपनी पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं। समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2015) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
महामारी संधि का शून्य मसौदा
प्रिलिम्स के लिये:महामारी संधि का शून्य-मसौदा, WHO, Covid-19, पैथोजन एक्सेस और बेनिफिट-शेयरिंग सिस्टम, IHR मेन्स के लिये:स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये जोखिम पैदा करने वाली चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
वैश्विक और राष्ट्रीय महामारी से निपटने हेतु प्रयासों को बढ़ावा देने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी संधि का "शून्य-मसौदा" प्रकाशित किया है।
- इस संधि का उद्देश्य महामारी और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करना है।
- सहयोग और समानता के साथ कोविड-19 महामारी की रोकथाम में अंतर्राष्ट्रीय समाज की विफलता को स्वीकार करते हुए महामारी संधि का शून्य-ड्राफ्ट तैयार किया गया था।
मसौदा के प्रमुख घटक:
- वैश्विक सहयोग:
- यह महामारी और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपदाओं से निपटने के लिये बेहतर तैयारी और इनकी रोकथाम के लिये विश्वव्यापी समन्वय और सहयोग की मांग करता है।
- स्वास्थ्य प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण:
- यह सभी देशों में विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने की आवश्यकता पर बल देता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे महामारी और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के लिये बेहतर तरीके से तैयार हैं।
- शोध और विकास में निवेश:
- यह महामारी और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान टीके, निदान और उपचार जैसी आवश्यक स्वास्थ्य तकनीकों तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित करने पर बल देता है।
- यह स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाने का आह्वान करता है, विशेष रूप से उन बीमारियों हेतु जो वैश्विक स्वास्थ्य के लिये एक गंभीर खतरा पैदा करती हैं।
- सूचना साझा करने में पारदर्शिता:
- यह महामारी और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के संदर्भ में अधिक पारदर्शिता एवं जानकारी साझा करने का आह्वान करता है, जिसमें बीमारियों के प्रसार तथा हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता संबंधी डेटा शामिल है।
- पैथोजन एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग सिस्टम:
- WHO के तहत PABS का गठन किया गया है, जिससे महामारी की संभावना वाले सभी रोगजनकों के जीनोमिक क्रम को तंत्र में "समान स्तर" पर साझा किया जा सके।
- PABS प्रणाली नई दवाओं और वैक्सीन के अनुसंधान एवं विकास में रोगजनकों तथा उनके आनुवंशिक संसाधनों के ज़िम्मेदार और न्यायसंगत उपयोग को सुनिश्चित करने हेतु महत्त्वपूर्ण उपकरण है, साथ ही इन संसाधनों को प्रदान करने वाले देशों तथा समुदायों के अधिकारों एवं हितों को भी स्वीकार करता है।
- WHO के तहत PABS का गठन किया गया है, जिससे महामारी की संभावना वाले सभी रोगजनकों के जीनोमिक क्रम को तंत्र में "समान स्तर" पर साझा किया जा सके।
- लैंगिक असमानताओं की पहचान:
- हेल्थकेयर वर्कफोर्स में लैंगिक असमानताओं की पहचान करने में मसौदे का उद्देश्य समान वेतन पर ज़ोर देकर एवं नेतृत्त्व की भूमिका निभाने में महिलाओं के समक्ष विशिष्ट बाधाओं को दूर कर "सभी स्वास्थ्य तथा देखभाल कार्यकर्त्ताओं का सार्थक प्रतिनिधित्त्व, जुड़ाव, भागीदारी व सशक्तीकरण सुनिश्चित करना" है।
वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग हेतु मौजूदा ढाँचा:
- अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (International Health Regulations- IHR), अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक साधन है जो भारत सहित 196 देशों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है।
- इसका उद्देश्य रोगों के अंतर्राष्ट्रीय प्रसार को रोकने, उससे बचाव, नियंत्रण और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया प्रदान करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग करना है।
- यह एक व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है जो विश्वव्यापी प्रसार की क्षमता रखने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य घटनाक्रमों और आपात स्थितियों के प्रबंधन के मामले में विश्व के देशों के अधिकारों तथा दायित्त्वों को परिभाषित करता है।
- IHR, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को मुख्य वैश्विक निगरानी प्रणाली के रूप में कार्य करने हेतु सशक्त बनाता है। ये विनियमन यह निर्धारित करने के मानदंडों को भी रेखांकित करते हैं कि कोई विशेष स्वास्थ्य घटनाक्रम अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (PHEIC) का गठन कर रहा है या नहीं।
वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये चुनौतियाँ:
- स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच का अभाव:
- चिकित्सा प्रौद्योगिकी में प्रगति के बावजूद विश्व भर में एक बड़ी आबादी के लिये अभी भी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच की कमी है, विशेषकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में।
- जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ रही है, दीर्घकालिक देखभाल सेवाओं की मांग भी बढ़ रही है, जो अक्सर महँगी होती हैं और पारंपरिक स्वास्थ्य बीमा द्वारा कवर नहीं की जाती हैं।
- अक्षम स्वास्थ्य अवसंरचना:
- सार्वजनिक स्वास्थ्य डेटा और अवसंरचना खंडित है तथा वैश्विक मानक की कमी है जो मौजूदा स्वास्थ्य प्रणालियों की गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता के बारे में एक प्रमुख चिंता का विषय है।
- इसके अलावा अस्पताल के खर्च का एक बड़ा हिस्सा उन निरोध्य चिकित्सा चूकों या संक्रमणों (Preventable Medical Mistakes or Infections) को ठीक करने में व्यय होता है जिसके शिकार लोग अस्पतालों में होते हैं। इसके साथ ही मेडिकल स्टाफ की कमी भी पाई जाती है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य डेटा और अवसंरचना खंडित है तथा वैश्विक मानक की कमी है जो मौजूदा स्वास्थ्य प्रणालियों की गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता के बारे में एक प्रमुख चिंता का विषय है।
- सामर्थ्य और असमानता:
- स्वास्थ्य सेवाएँ महँगी हो सकती हैं और विशेष रूप से निम्न तथा मध्यम आय वाले देशों में कई व्यक्ति बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को वहन करने के लिये संघर्ष करते हैं।
- चिकित्सा प्रौद्योगिकी में प्रगति के बावजूद विश्व स्तर स्वास्थ्य परिणामों में महत्त्वपूर्ण असमानताएँ बनी हुई हैं, खासकर ऐसी आबादी में जो हाशिये पर स्थित है।
- स्वास्थ्यकर्मियों की कमी:
- कई देशों में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र प्रशिक्षित और योग्य स्वास्थ्यकर्मियों की कमी का सामना कर रहा है, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में।
- भारत में प्रति 10,189 लोगों पर 1 सरकारी डॉक्टर है (WHO, के अनुसार प्रति डॉक्टर लोगों का अनुपात- 1:1000होना चाहिए), जो 6,00,000 डॉक्टरों की कमी का संकेत देता है।
- कई देशों में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र प्रशिक्षित और योग्य स्वास्थ्यकर्मियों की कमी का सामना कर रहा है, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में।
- गैर-संचारी रोग:
- गैर-संचारी रोग, जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, कैंसर और मधुमेह तीव्र गति से आम रोग होते जा रहे हैं तथा स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर अनावश्यक बोझ बन रहे हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. टीके के विकास के पीछे मूल सिद्धांत क्या है? टीके कैसे काम करते हैं? भारतीय वैक्सीन निर्माताओं द्वारा COVID-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिये क्या दृष्टिकोण अपनाया गया? (2022) |