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डेली न्यूज़

  • 03 Jun, 2023
  • 54 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रोज़गार कार्य समूह की तीसरी बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की G20 अध्यक्षता, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था, संयुक्त राष्ट्र

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

चर्चा में क्यों?

भारत की G20 अध्यक्षता के तहत जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड स्थित अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) मुख्यालय में रोज़गार कार्य समूह ( Employment Working Group- EWG) की तीसरी बैठक आयोजित की जा रही है।

  • यह बैठक, जो कि ILO के वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के साथ संरेखित है, G20 सदस्य देशों, अतिथि देशों एवं अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development- OECD), अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा संघ ( International Social Security Association- ISSA), विश्व बैंक सहित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाती है।

प्रमुख बिंदु  

  • प्राथमिक क्षेत्र: 
    • भारत की प्रेसीडेंसी में वर्ष 2023 में EWG के लिये तीन प्राथमिक क्षेत्रों की पहचान की गई है:
      • वैश्विक कौशल अंतराल को संबोधित करना: यह क्षेत्र वैश्विक कार्यबल में प्रचलित कौशल अंतराल की पूर्ति करने और रोज़गार क्षमता बढ़ाने की रणनीति विकसित करने पर केंद्रित है।
      • गिग, प्लेटफॉर्म इकॉनमी और सामाजिक सुरक्षा: कार्य की विकसित प्रकृति को देखते हुए गिग और प्लेटफॉर्म इकॉनमी कामगारों के लिये सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
        • गिग और प्लेटफॉर्म इकॉनमी एक आधुनिक कार्य व्यवस्था को संदर्भित करती है, जहाँ लोग डिजिटल प्लेटफॉर्म या एप के माध्यम से अल्पकालिक, स्वतंत्र या मांग आधारित (ऑन-डिमांड) कार्य करते हैं।
        • इसकी विशेषता कार्य का अस्थायी और लचीलापन है, जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से सुविधा प्रदान करता है और ग्राहकों को सेवा प्रदाताओं (गिग कामगारों के रूप में) को जोड़ता है।
      • सामाजिक सुरक्षा का स्थायी वित्तपोषण: यह क्षेत्र सामाजिक सुरक्षा पहलों का समर्थन करने और श्रमिकों के लिये सुरक्षा जाल प्रदान करने हेतु स्थायी वित्तपोषण मॉडल के महत्त्व पर बल देता है
  • बैठक के चरण:  
    • EWG बैठक भारत के विभिन्न शहरों में चार अलग-अलग चरणों में आयोजित की गई।
      • पहला चरण फरवरी 2023 में जोधपुर, राजस्थान में आयोजित किया गया था।
      • दूसरा चरण अप्रैल 2023 में गुवाहाटी, असम में आयोजित किया गया।
      • तीसरा चरण जिनेवा में 31 मई से 2 जून 2023 तक आयोजित किया जा रहा है।
      • चौथा और अंतिम चरण जुलाई 2023 में इंदौर, मध्य प्रदेश में आयोजित किया जाएगा। 

रोज़गार कार्य समूह:  

  • परिचय:  
    • रोज़गार कार्य समूह (EWG) G20 ढाँचे के भीतर स्थापित एक फोरम है जो रोज़गार, श्रम बाज़ारों और सामाजिक नीतियों से संबंधित मुद्दों का समाधान करता है।
    • यह चर्चाओं में शामिल होने, अनुभव साझा करने और रोज़गार संबंधी मामलों पर नीतिगत सिफारिशों के लिये G20 सदस्य देशों तथा संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • उद्देश्य: 
    • EWG का मुख्य उद्देश्य रोज़गार सृजन को बढ़ावा देकर श्रम बाज़ार के परिणामों में सुधार करना तथा श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करके समावेशी और सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन:

  • परिचय:  
    • ILO श्रम और रोज़गार मंत्रालय के अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान भागीदारों में से एक है जो EWG को तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करता है।
    • ILO संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जिसका कार्य अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों को स्थापित करके सामाजिक और आर्थिक न्याय को आगे बढ़ाना है।
    • राष्ट्र संघ के तहत अक्तूबर 1919 (वर्साय की संधि) में स्थापित यह संयुक्त राष्ट्र की पहली और सबसे पुरानी विशेष एजेंसी है।
  • सदस्य:
    • ILO की एक त्रिपक्षीय संरचना है जो अपने 187 सदस्य राज्यों से सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाती है।
      • भारत अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का संस्थापक सदस्य है।  
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन:
    • ILO जिनेवा में एक वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन भी आयोजित करता है जो अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों और ILO की व्यापक नीतियों को निर्धारित करता है।
      • इसे अक्सर श्रम की अंतर्राष्ट्रीय संसद के रूप में जाना जाता है।
  • कार्रवाई के साधन: 
    • ILO में कार्रवाई का प्रमुख साधन सम्मेलनों और सिफारिशों के रूप में अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों की स्थापना की गई है।
      • सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ हैं और वे उपकरण हैं, जो उन देशों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी दायित्व बनाते हैं जो उनकी पुष्टि करते हैं।
      • इनकी सिफारिशें गैर-बाध्यकारी हैं और राष्ट्रीय नीतियों एवं कार्यों हेतु दिशा-निर्देश निर्धारित करती हैं।
  • उपलब्धियाँ/कार्य:  
    • 1969 में नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त किया।
      • वर्गों के बीच शांति में सुधार के लिये कार्य।
      • श्रमिकों के लिये सभ्य काम और न्याय सुनिश्चित करना।
      • अन्य विकासशील राष्ट्रों को तकनीकी सहायता प्रदान करना।
  • ILO द्वारा जारी प्रमुख रिपोर्ट:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन 138 और 182 (2018) से संबंधित हैं:

(a) बाल श्रम
(b) वैश्विक जलवायु परिवर्तन के लिये कृषि पद्धतियों का अनुकूलन 
(c) खाद्य कीमतों और खाद्य सुरक्षा का विनियमन 
(d) कार्यस्थल पर लैंगिक समानता

उत्तर: (a) 

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

गोबरधन के लिये एकीकृत पंजीकरण पोर्टल लॉन्च

प्रिलिम्स के लिये:

गोबरधन योजना, बायोगैस/संपीड़ित बायोगैस, मिशन लाइफ

मेन्स के लिये:

गोबरधन का महत्त्व और लाभ, अपशिष्ट से ऊर्जा

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में गोबरधन के लिये एकीकृत पंजीकरण पोर्टल को कचरे को धन में बदलने तथा सर्कुलर इकॉनमी को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार की पहल के एक हिस्से के रूप में लॉन्च किया गया था।

पोर्टल की मुख्य विशेषताएँ:

  • परिचय: 
    • जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग (DDWS) ने बायोगैस/संपीड़ित बायोगैस (CBG) संयंत्रों की स्थापना की सुविधा के लिये यह पोर्टल विकसित किया है।
  • उद्देश्य और कार्यक्षेत्र:
    • यह पोर्टल संपूर्ण भारत के स्तर पर बायोगैस/CBG क्षेत्र में निवेश और भागीदारी का आकलन करने के लिये एकल कोष के रूप में कार्य करता है।
    • यह CBG/बायोगैस संयंत्रों की स्थापना की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है
  • नामांकन: 
    • भारत में बायोगैस/CBG/बायो CNG संयंत्र स्थापित करने का इच्छुक कोई भी सरकारी, सहकारी या निजी संस्था पोर्टल में नामांकन कर सकती है और पंजीकरण संख्या प्राप्त कर सकती है।
      • पंजीकरण संख्या भारत सरकार के मंत्रालयों और विभागों से विभिन्न लाभों एवं सहायता तक पहुँच को सक्षम बनाती है।
    • राज्यों को सलाह दी जाती है कि वे केंद्र सरकार से मौजूदा और आगामी सहायता प्राप्त करने के लिये पोर्टल पर अपने CBG/बायोगैस संयंत्र संचालकों के पंजीकरण को प्राथमिकता दें।
  • लाभ: 
    • हितधारकों की भागीदारी:
      • पोर्टल का शुभारंभ सहकारी संघवाद को प्रदर्शित करता है, जिसमें केंद्रीय मंत्रालयों के हितधारक, केंद्र एवं राज्यों के विभाग इसके विकास और तैनाती में सहयोग कर रहे हैं।
      • केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने 650 से अधिक गोबरधन संयंत्रों और एकीकृत पंजीकरण पोर्टल के माध्यम से अपशिष्ट से धन सृजन में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों पर ज़ोर दिया।
    • व्यापार करने में आसानी:
      • पोर्टल व्यवसाय करने में आसानी सुनिश्चित करता है और बायोगैस/सीबीजी क्षेत्र में निजी कंपनियों से अधिक निवेश आकर्षित करता है।
    • जलवायु कार्यवाही लक्ष्य के साथ संरेखित: 
      • यह भारत के जलवायु कार्यवाही लक्ष्यों के साथ संरेखित है जो स्वच्छ ऊर्जा, ग्रामीण रोज़गार, बेहतर स्वास्थ्य परिणामों को बढ़ावा देता है। इसके साथ सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) और भारत सरकार के मिशन LiFE में भी योगदान देता है।  
    • सुदृढ़ आपूर्ति शृंखला:
      • केंद्र सरकार का उद्देश्य बायोमास एकत्रीकरण, ग्रिड पाइपलाइन कनेक्टिविटी, जैविक खेती प्रथाओं, अनुसंधान एवं विकास और हितधारकों के साथ निरंतर जुड़ाव के माध्यम से CBG/बायोगैस आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करना है।

गोबरधन (GOBARdhan) पहल:

  • परिचय: 
    • गैल्वनाइज़िंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज़ धन (GOBARdhan) भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय की एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
    • वर्ष 2018 में सरकार ने इस योजना को स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण चरण II कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय प्राथमिकता परियोजना के रूप में लॉन्च किया।  
  • उद्देश्य:  
    • गाँवों द्वारा सुरक्षित रूप से अपने मवेशियों के अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट और लंबे समय तक सभी जैविक अपशिष्ट का प्रबंधन करने में सहायता करना।
    • समुदायों का समर्थन करने हेतु विकेंद्रीकृत प्रणालियों का उपयोग करके मवेशियों और जैविक अपशिष्ट को पूंजी में परिवर्तित करना।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में अपशिष्ट के प्रभावी निपटान के माध्यम से पर्यावरणीय स्वच्छता को बढ़ावा देना और वेक्टर जनित रोगों पर अंकुश लगाना।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग के लिये जैविक अपशिष्ट, विशेष रूप से मवेशियों के अपशिष्ट को बायोगैस और उर्वरक में परिवर्तित करना।
  • संभावित लाभ:  
    • प्रभावी बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट प्रबंधन।
    • GHG उत्सर्जन में कमी।
    • कच्चे तेल के आयात में कमी।
    • स्थानीय समुदायों के लिये रोज़गार का अवसर।
    • उद्यमिता को बढ़ावा।
    • जैविक अपशिष्ट से किसानों/स्थानीय ग्रामीण समुदायों के लिये अतिरिक्त आय।
    • जैविक खेती को बढ़ावा।
  • योजना का मॉडल:
    • व्यक्तिगत घरेलू: 
      • यह मॉडल उन परिवारों द्वारा अपनाया जा सकता है जिनके पास तीन (3) या अधिक मवेशी हैं। संयंत्रों से उत्पन्न बायोगैस और घोल का उपयोग घरों में खाना पकाने और खाद के रूप में किया जाता है।
    • समुदाय: 
      • बायोगैस संयंत्र न्यूनतम घरों (5 से 10) के लिये बनाए जा सकते हैं। संयंत्रों का संचालन और प्रबंधन GP/SHG द्वारा किया जा सकता है।  
      • उत्पन्न गैस की आपूर्ति घरों/रेस्तराँ/संस्थानों को की जाएगी और घोल का समुदाय द्वारा कृषि में जैविक खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है या किसानों को बेचा जा सकता है।
    • समूह: 
      • इस मॉडल में एक ग्राम/ग्राम समूह में घरों की संख्या के अनुसार व्यक्तिगत रूप से बायोगैस संयंत्र स्थापित किये जाते हैं।
      • उत्पन्न बायोगैस का उपयोग घरों में किया जाता है और घोल को एक सामान्य स्थान पर एकत्र किया जाता है, जिसे ठोस और तरल रूप में अलग किया जाता है तथा इसे प्रस्फुटित करके जैव उर्वरक के रूप में बेचा जाता है।
    • वाणिज्यिक CBG: 
      • CBG संयंत्र उद्यमियों/सहकारी समितियों/गौशालाओं आदि में स्थापित किये जा सकते हैं।
      • उत्पादित कच्ची बायोगैस को संपीड़ित किया जाता है और इसे वाहनों के ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है या उद्योगों को बेचा जा सकता है।
      • उत्पन्न घोल को जैविक खाद/जैव उर्वरक में परिवर्तित कर किसानों को बेचा जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे और फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्रा का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018) 

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

अंतर-सरकारी वार्ता समिति: UNEP

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर-सरकारी वार्ता समिति, UNEP, UNEA, मिनामाता कन्वेंशन, प्लास्टिक प्रदूषण, EPR

मेन्स के लिये:

अंतर-सरकारी वार्ता समिति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की अंतर-सरकारी वार्ता समिति (INC-2) का दूसरा सत्र  पेरिस, फ्राँस में आयोजित हुआ। 

  • अंतर-सरकारी वार्ता समिति (INC-1) का पहला सत्र वर्ष 2022 में उरुग्वे में संपन्न हुआ।
  • INC-2 का उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिये वैश्विक समझौते पर वार्ता के लिये मंच प्रदान करना है ताकि पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियों और मानवता को रैखिक प्लास्टिक अर्थव्यवस्था के गंभीर प्रभावों से बचाया जा सके।

INC-2 बैठक की मुख्य विशेषताएँ: 

  • INC-2 का प्राथमिक एजेंडा प्रक्रिया के नियमों को अपनाना था। ये नियम विभिन्न पहलुओं जैसे कि बातचीत की प्रक्रिया, निर्णय लेने की प्रक्रिया (सर्वसम्मति या मतदान) और निर्णय लेने के लिये अधिकृत संस्थाओं को नियंत्रित करते हैं।
  • पिछली INC-1 बैठक के दौरान नियम 37 का एक हिस्सा, जिसमें कहा गया था कि "प्रत्येक सदस्य के पास एक वोट होगा," को असहमति का संकेतक मानते हुए कोष्ठक में रखा गया था।
    • कोष्ठक वाले हिस्से में अब मिनामाता अभिसमय के प्रावधान शामिल हैं जो क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठनों (जैसे यूरोपीय संघ) को अपने सदस्य राज्यों की ओर से मतदान करने की अनुमति देता है। हालाँकि सदस्य राज्यों को मतदान के दौरान या समिति के भाग के रूप में उपस्थित होना चाहिये।
  • भारत ने लगातार नियम 38 को कोष्ठक में रखने पर ज़ोर दिया है, जिसमें कहा गया है, "समिति सभी मामलों पर आम सहमति से समझौते तक पहुँचने का हरसंभव प्रयास करेगी। 
    •  यदि आम सहमति तक पहुँचने के सभी प्रयास समाप्त हो गए हैं और कोई समझौता नहीं हुआ है, तो अंतिम उपाय के रूप में उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
  • OEWG (ओपन-एंडेड वर्किंग ग्रुप) के गठन से मूल मामलों पर संपर्क समूहों में चर्चा शुरू होने में देरी हुई है।
    • UNEA प्रस्ताव 5/14 में सभा ने बातचीत के लिये आधार तैयार करने हेतु एक तदर्थ ओपन-एंडेड वर्किंग ग्रुप (OEWG) को अनिवार्य कर दिया।

अंतर-सरकारी वार्ता समिति (INC): 

  • परिचय: 
    • INC की स्थापना फरवरी 2022 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA-5.2) के 5वें सत्र में हुई थी।
    • वर्ष 2024 के अंत तक वार्ता को पूरा करने की महत्त्वाकांक्षा के साथ समुद्री पर्यावरण सहित प्लास्टिक प्रदूषण पर एक अंतर्राष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी उपकरण विकसित करने के लिये एक ऐतिहासिक संकल्प (5/14) को अपनाया गया था।
  • आवश्यकता: 
    • प्लास्टिक प्रदूषण का तेज़ी से बढ़ता स्तर एक गंभीर वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दे का प्रतिनिधित्व करता है जो सतत् विकास के पर्यावरणीय, सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य आयामों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
    • आवश्यक हस्तक्षेपों के अभाव में जलीय पारिस्थितिक तंत्र में प्रवेश करने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा वर्ष 2016 में लगभग 9–14 मिलियन टन प्रतिवर्ष से बढ़कर वर्ष 2040 तक अनुमानित 23–37 मिलियन टन प्रतिवर्ष हो सकती है।
  • उद्देश्य: 
    • कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते के तहत देशों से अपेक्षा की जाएगी कि वे साधन के उद्देश्यों में योगदान करने के लिये देश-संचालित दृष्टिकोणों को दर्शाते हुए राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं को विकसित, कार्यान्वित और अद्यतन करें।
    • उनसे प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम, कमी और उन्मूलन की दिशा में काम करने तथा क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का समर्थन करने के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं को बढ़ावा देने की उम्मीद की जाएगी।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा:

  • यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का शासी निकाय है।
  • यह पर्यावरण पर दुनिया की सर्वोच्च स्तर की निर्णय लेने वाली संस्था है।
  • यह सभा 193 संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से बनी है और वैश्विक पर्यावरण शासन को आगे बढ़ाने हेतु प्रत्येक दो वर्ष में बैठक करती है।
  • इसे जून 2012 में सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान बनाया गया था, जिसे RIO+20 भी कहा जाता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति

प्रिलिम्स के लिये:

राज्यपाल, कुलपति, अध्यक्ष, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, केंद्रीय विश्वविद्यालय   

मेन्स के लिये:

राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति और आगे बढ़ने के मुद्दे। 

चर्चा में क्यों?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच 10 वरिष्ठ प्रोफेसरों को राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों के अंतरिम कुलपति के रूप में नियुक्त करने को लेकर खींचतान सामने आई है।

  • पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ने प्रोफेसरों की नियुक्तियों से इनकार करने का आग्रह किया और इस पर कानूनी राय मांगी।

विश्वविद्यालयों में राज्यपाल और राष्ट्रपति की भूमिका:

  • राज्य विश्वविद्यालय: 
    • राज्य विश्वविद्यालयों में राज्य का राज्यपाल उस राज्य के विश्वविद्यालयों का पदेन कुलाधिपति होता है।
    • जबकि राज्यपाल के रूप में वह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से कार्य करता है। कुलाधिपति के रूप में वह मंत्रिपरिषद के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और विश्वविद्यालय के सभी मामलों पर स्वयं निर्णय लेता है।
    • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) विनियम, 2018 के अनुसार, एक विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति सामान्य रूप से कुलाधिपति द्वारा विधिवत गठित खोज सह चयन समिति द्वारा अनुशंसित तीन से पाँच नामों के पैनल से की जाती है।
    • जहाँ राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम और UGC विनियम, 2018 के बीच गतिरोध होता है तो UGC विनियम, 2018 प्रबल होगा तथा राज्य कानून प्रतिकूल होगा। 
      • अनुच्छेद 254(1) के अनुसार, यदि किसी राज्य के कानून का कोई प्रावधान संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधान के विरुद्ध है जिसे संसद समवर्ती सूची के किसी विषय पर अधिनियमित करने के लिये सक्षम है तो संसदीय कानून राज्य के कानून पर प्रभावी होगा।
  • केंद्रीय विश्वविद्यालय: 
    • केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 (Central Universities Act, 2009) और अन्य विधियों के तहत भारत का राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालय का कुलाधिपति होगा।
    • केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में नाममात्र का प्रमुख होने के साथ ही राष्ट्रपति दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने जैसी सीमित भूमिका का निर्वाह करता है, इसके साथ ही राष्ट्रपति द्वारा आगंतुक/विज़िटर की भी नियुक्ति की जाती है।
    • कुलपति को भी केंद्र सरकार द्वारा गठित खोज और चयन समितियों (Search and Selection Committees) द्वारा चुने गए नामों के पैनल से विज़िटर द्वारा नियुक्त किया जाता है। 
    • किसी आगंतुक को दिये गए पैनल से असंतुष्ट होने की स्थिति में नए नामों के सेट की मांग करने का अधिकार है।
    • अधिनियम में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति को कुलाधिपति के रूप में विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक पहलुओं के निरीक्षण के लिये अधिकृत जानकारी प्राप्त करने का अधिकार होगा।

कुलाधिपति की भूमिका:

  • विश्वविद्यालय के संविधान के अनुसार, कुलाधिपति (VC) को 'विश्वविद्यालय का प्रमुख शैक्षणिक और कार्यकारी अधिकारी' माना जाता है।
  • विश्वविद्यालय के प्रमुख के रूप में उससे विश्वविद्यालय के कार्यकारी और अकादमिक सहयोग के बीच एक 'सेतु' के रूप में कार्य करने की अपेक्षा की जाती है।
  • इस अपेक्षित भूमिका को सुविधाजनक बनाने के लिये विश्वविद्यालयों को हमेशा अकादमिक उत्कृष्टता और प्रशासनिक अनुभव के अलावा मूल्यों, व्यक्तित्व की विशेषताओं और अखंडता वाले व्यक्तियों की तलाश रहती है।
  • राधाकृष्णन आयोग (1948), कोठारी आयोग (1964-66), ज्ञानम समिति (1990) और रामलाल पारिख समिति (1993) की रिपोर्टों में समय-समय पर होने वाले बहुप्रतीक्षित परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता एवं प्रासंगिकता को बनाए रखने में कुलपति की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।
  • वह न्यायालय, कार्यकारी परिषद, अकादमिक परिषद, वित्त समिति और चयन समितियों का पदेन अध्यक्ष होगा और कुलाधिपति की अनुपस्थिति में डिग्री प्रदान करने के लिये विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करेगा।
  • यह देखना कुलपति का कर्त्तव्य होगा कि अधिनियम, विधियों, अध्यादेशों और विनियमों के प्रावधानों का पूरी तरह से पालन किया जाए तथा उसे इस कर्तव्य के निर्वहन के लिये आवश्यक शक्ति प्राप्त होनी चाहिये।

कुलपति की नियुक्ति को लेकर कई भारतीय राज्यों के सीएम और राज्यपालों के बीच मतभेद:

  • हाल ही में तमिलनाडु विधानसभा ने दो विधेयक पारित किये, जो 13 राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों (VC) की नियुक्ति में राज्यपाल की शक्ति को स्थानांतरित करने का प्रावधान करते हैं। 
  • राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को सभी राज्य-संचालित विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति बनाने की मांग करने वाला पश्चिम बंगाल का एक विधेयक वर्ष 2022 में विधानसभा द्वारा पारित किया गया था (अभी भी राज्यपाल की सहमति के लिये लंबित है)।
  • महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड और राजस्थान राज्यों के कानून राज्य एवं राज्यपाल के बीच सहमति की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

आगे की राह

  • समय आ गया है कि सभी राज्य राज्यपाल को सचिव के रूप में रखने पर पुनर्विचार करें।
  • हालाँकि उन्हें विश्वविद्यालय की स्वायत्तता की रक्षा के वैकल्पिक साधन भी खोजने चाहिये ताकि सत्ताधारी दल विश्वविद्यालयों के कामकाज़ पर अनुचित प्रभाव न डालें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत के किसी राज्य की विधानसभा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) 

  1. वर्ष के प्रथम सत्र के प्रारंभ में राज्यपाल सदन के सदस्यों के लिये रूढ़िगत संबोधन करता है।
  2. जब किसी विशिष्ट विषय पर राज्य विधानमंडल के पास कोई नियम नहीं होता, तो उस विषय पर वह लोकसभा के नियम का पालन करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c) 

व्याख्या:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 176(1) में यह व्यवस्था है कि राज्यपाल प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र के प्रारंभ में एक साथ एकत्रित हुए दोनों सदनों को संबोधित करेगा और विधानमंडल को सूचित करेगा एवं विधायिका को उसके सम्मन के कारणों के बारे में सूचित करेगा। अत: कथन 1 सही है।  
  • अनुच्छेद 208 राज्य विधानमंडलों में प्रक्रिया के नियमों से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि: 
  • किसी राज्य के विधानमंडल का कोई सदन इस संविधान के प्रावधानों, इसकी प्रक्रिया और अपने कार्य के संचालन के अधीन विनियमन के लिये नियम बना सकता है।
  • जब तक खंड (1) के तहत नियम नहीं बनाए जाते, तब तक प्रक्रिया के नियम और स्थायी आदेश इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले संबंधित प्रांत के विधानमंडल के संबंध में लागू होते हैं, ऐसे संशोधनों के अधीन राज्य के विधानमंडल के संबंध में प्रभावी होंगे और जैसा कि विधानसभा के अध्यक्ष या विधानपरिषद के अध्यक्ष, जैसा भी मामला हो, द्वारा किया जा सकता है।
  • इसलिये जब औपनिवेशिक काल से राज्य विधानमंडल में किसी विशेष विषय पर कोई नियम नहीं होता है, तो राज्य विधानसभाएँ लोकसभा के नियमों का पालन करती हैं। अत: कथन 2 सही है।

अतः विकल्प (c) सही है।


प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. किसी राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में कोई आपराधिक कार्यवाही संस्थापित नहीं की जाएगी। 
  2. किसी राज्य के राज्यपाल की परिलब्धियाँ और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किये जाएंगे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361 भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल को कुछ प्रतिरक्षा प्रदान करता है:
  • राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में कोई आपराधिक कार्यवाही जारी नहीं रखी जाएगी। अतः कथन 1 सही है।
  • राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल की गिरफ्तारी या कारावास की कोई प्रक्रिया उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय से जारी नहीं की जाएगी।
  • राष्ट्रपति या राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में उसके द्वारा व्यक्तिगत हैसियत से किये गए किसी कृत्य के संबंध में कोई सिविल कार्यवाही संस्थापित नहीं की जाएगी। हालाँकि दो महीने का नोटिस देने के बाद कार्यालय में प्रवेश करने से पहले या बाद में किये गए अपने व्यक्तिगत कृत्यों के संबंध में कार्यकाल के दौरान उसके खिलाफ दीवानी कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
  • अनुच्छेद 158 कहता है कि राज्यपाल की परिलब्धियों और भत्तों को उसके कार्यकाल के दौरान कम नहीं किया जाएगा। अतः कथन 2 सही है। 
  • अत: विकल्प (c) सही है।

मेन्स

प्रश्न. क्या उच्चतम न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)

प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (2022) 

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

पीएम स्वनिधि योजना

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम स्वनिधि योजना, आत्मनिर्भर भारत अभियान, शहरी स्थानीय निकाय

मेन्स के लिये:

सूक्ष्म वित्त, इसका महत्त्व और संबंधित पहल

चर्चा में क्यों? 

प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि (Prime Minister Street Vendor’s AtmaNirbhar Nidhi- PM-SVANidhi) योजना के अंतर्गत 1 जून, 2020 को आरंभ होने के बाद से तीन वर्षों में स्ट्रीट वेंडर्स को 46.54 लाख से अधिक सूक्ष्म कार्यशील पूंजी ऋण वितरित किये गए हैं। 

  • कुल 46,54,302 ऋण वितरित किये गए। इन ऋणों में से अब तक लगभग 40% (18,50,987) का भुगतान किया जा चुका है

पीएम स्वनिधि योजना:

  • परिचय: 
    • यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है अर्थात् यह आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित योजना है, इसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
      • कार्यशील पूंजी ऋण की सुविधा उपलब्ध कराना
      • नियमित पुनर्भुगतान को प्रोत्साहित करना 
      • डिजिटल लेन-देन हेतु पुरस्कृत करना
    • क्रमशः 10,000 रुपए और 20,000 रुपए के पहले एवं दूसरे ऋण के अलावा 50,000 रुपए तक के तीसरे सावधि ऋण की शुरुआत की गई है।
    • यह ऋण संपार्श्विक या कोलेट्रल के बिना प्रदान किया जाएगा।
  • ऋण देने वाली एजेंसियाँ: 
  • पात्रता:
    • राज्य और केंद्रशासित प्रदेश:
      • यह योजना केवल उन्हीं राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लाभार्थियों के लिये उपलब्ध है, जिन्होंने स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका का संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन) अधिनियम, 2014 के तहत नियम और योजना अधिसूचित की है।
      • हालाँकि मेघालय, जिसका अपना स्टेट स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट है, के लाभार्थी भाग ले सकते हैं।
    • स्ट्रीट वेंडर्स: 
      • यह योजना शहरी क्षेत्रों में वेंडिंग कार्य में लगे सभी स्ट्रीट वेंडर्स के लिये उपलब्ध है।
        • इससे पहले यह योजना 24 मार्च, 2020 को या उससे पहले वेंडिंग में लगे सभी स्ट्रीट वेंडर्स के लिये उपलब्ध थी।
  • जल्दी चुकौती के लाभ:
    • ब्याज सब्सिडी:
      • ऋण की समय पर/जल्दी चुकौती पर छह मासिक आधार पर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से लाभार्थियों के बैंक खातों में 7% प्रतिवर्ष की ब्याज सब्सिडी जमा की जाएगी।
      • क्रेडिट सीमा विस्तार:
      • इस योजना में ऋणों के समय पर/जल्दी चुकौती पर ऋण सीमा में वृद्धि का प्रावधान है, अर्थात् यदि कोई स्ट्रीट वेंडर समय पर या उससे पहले किश्तों का भुगतान करता है, तो वह अपना क्रेडिट स्कोर विकसित कर सकता है जो उसे अधिक राशि के सावधि ऋण के लिये पात्र बनाता है।
    • जल्‍द चुकौती पर कोई पेनल्टी न होना:
      • समय से पहले ऋण चुकाने पर कोई पेनल्टी नहीं लगेगी।
      • जल्‍द चुकौती (या पुनर्स्थापन) निर्धारित समय से पहले ऋण या उधार की निकासी है।
      • कई बैंक और ऋणदाता समय से पहले ऋण चुकाने पर पेनल्टी वसूलते हैं।
    • डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा:   
      • यह योजना कैश बैक के माध्यम से स्ट्रीट वेंडर्स द्वारा किये जाने वाले मासिक डिजिटल हस्तांतरण को प्रोत्साहित करती है।
    • पारदर्शिता: 
      • प्रभावी वितरण एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के दृष्टिकोण के अनुरूप योजना को एंड-टू-एंड समाधान के साथ संचालित करने के लिये वेब पोर्टल/मोबाइल एप के साथ एक डिजिटल प्लेटफॉर्म हेतु विकसित किया जा रहा है।
        • यह प्लेटफॉर्म क्रेडिट प्रबंधन के लिये SIDBI के उद्यमी मित्र (UdyamiMitra) पोर्टल और MoHUA के पैसा (PAiSA) पोर्टल के साथ स्वचालित रूप से ब्याज सब्सिडी को प्रशासित करने के लिये वेब पोर्टल/मोबाइल एप को एकीकृत करेगा।
    •  वित्तीय समावेशन: 
      • यह विक्रेताओं को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में एकीकृत करने में मदद करेगा।
  • क्षमता निर्माण पर ध्यान:
    • MoHUA राज्य सरकारों के सहयोग से पूरे देश में सभी हितधारकों एवं सूचना, शिक्षा व संचार (IEC) गतिविधियों के लिये क्षमता निर्माण और वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम का शुभारंभ करेगा
  • शहरी स्थानीय निकायों (ULB) की भूमिका:
    • ULB लाभार्थी को लक्षित करना और कुशल तरीके से उन तक पहुँच सुनिश्चित करके योजना के कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

स्ट्रीट वेंडर/हॉकर: 

  • कोई भी व्यक्ति जो किसी सड़क, फुटपाथ आदि में अस्थायी, निर्मित संरचना से या एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर दैनिक उपयोग के सामान, वस्तु, खाद्य पदार्थ या माल बेचने तथा जनता को सेवाएँ देने में लगा हुआ है।
  • उनके द्वारा आपूर्ति की जाने वाली वस्तुओं में सब्जियाँ, फल, रेडी-टू-ईट स्ट्रीट फूड, चाय, पकौड़े, ब्रेड, अंडे, कपड़ा, वस्त्र, कारीगर उत्पाद, किताबें/स्टेशनरी आदि शामिल हैं और सेवाओं में नाई की दुकानें, मोची, पान की दुकानें, कपड़े धोने की सेवाएँ आदि शामिल हैं ।
  • भारत में लगभग 49.48 लाख स्ट्रीट वेंडर्स की पहचान की गई है।
    • उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 8.49 लाख स्ट्रीट वेंडर्स हैं, इसके बाद मध्य प्रदेश का स्थान है जहाँ स्ट्रीट वेंडर्स की संख्या 7.04 लाख है।
    • दिल्ली में स्ट्रीट वेंडर्स की संख्या केवल 72,457 है।
    • सिक्किम में कोई भी स्ट्रीट वेंडर नहीं है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

मेन्स:

प्रश्न. क्या लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुश्चक्र को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिये। (2021) 

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यस्था में वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार कैसे कम हुए? क्या बढ़ती हुई अनौपचारिकता देश के विकास के लिये हानिकारक है? (2016) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना

प्रिलिम्स के लिये:

सहकारी क्षेत्र, खाद्य सुरक्षा, प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS), अंतर-मंत्रालयी समिति, भारतीय खाद्य निगम, ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंक, केंद्रीय बजट 2023-24  

मेन्स के लिये:

प्राथमिक कृषि साख समितियाँ (PACS)

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लगभग 1 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ "सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना" की स्थापना के लिये अपनी मंज़ूरी दे दी है।

  • इस पहल का उद्देश्य फसल के नुकसान पर अंकुश लगाना, किसानों द्वारा मजबूरन बिक्री को रोकना और देश की खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करना है।  

अनाज भंडारण योजना से संबंधित प्रमुख विशेषताएँ:

  • परिचय:  
    • यह योजना खाद्य सुरक्षा को सशक्त करने, अपव्यय को कम करने और किसानों को सशक्त बनाने के लिये प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (Primary Agricultural Credit Societies- PACS) के स्तर पर गोदामों एवं अन्य कृषि संबंधी अवसंरचनाओं के निर्माण पर केंद्रित है।
      • इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना का उद्देश्य भारत में कृषि भंडारण सुविधाओं से संबंधित बुनियादी ढाँचे की कमी को दूर करने के लिये तीन मंत्रालयों द्वारा वर्तमान में चलाई जा रही आठ योजनाओं को अभिसारित करना है।
      • सहकारिता मंत्रालय (Ministry of Cooperation) कम-से-कम 10 चयनित ज़िलों में एक पायलट परियोजना लागू करेगा।
  • अंतर-मंत्रालयी समिति:
    • सहकारिता मंत्री की अध्यक्षता में एक अंतर-मंत्रालयी समिति (IMC) का गठन किया जाएगा, जिसमें कृषि और किसान कल्याण, उपभोक्ता मामले, खाद्य तथा सार्वजनिक वितरण एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री तथा संबंधित सचिव शामिल होंगे। 

  • औचित्य: 
    • सहकारिता मंत्रालय ने सहकारी समितियों की क्षमता का लाभ उठाने और उन्हें "सहकार-से-समृद्धि" (समृद्धि के लिये सहयोग) की दृष्टि के साथ संरेखित करते हुए सफल व्यावसायिक उद्यमों में बदलने के लिये अन्न भंडारण योजना विकसित की है।
    • यह योजना PACS स्तर पर गोदामों, कस्टम हायरिंग सेंटर और प्रसंस्करण इकाइयों सहित कृषि-बुनियादी ढाँचे की स्थापना पर केंद्रित है।
      • भारत में 13 करोड़ से अधिक किसानों की सदस्यता वाली 1,00,000 से अधिक PACS हैं।
      • कृषि और ग्रामीण परिदृश्य में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए यह योजना विकेंद्रीकृत भंडारण क्षमता और अन्य आवश्यक बुनियादी ढाँचे का निर्माण करके PACS को सशक्त बनाने का प्रयास करती है।
      • यह परिवर्तन PACS की आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाएगा और भारतीय कृषि क्षेत्र के विकास में योगदान देगा।
  • लाभ:  
    • अवसंरचना की कमी को दूर करना: इस योजना का उद्देश्य देश में कृषि भंडारण अवसंरचना की कमी को दूर करने हेतु PACS के स्तर पर गोदामों की स्थापना करना है।
    • PACS गतिविधियों का विविधीकरण: PACS को राज्य एजेंसियों या भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) हेतु खरीद केंद्रों, उचित मूल्य की दुकानों के रूप में कार्य करने एवं कस्टम हायरिंग केंद्रों तथा सामान्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना सहित विभिन्न गतिविधियों को करने का अधिकार होगा।
      • यह विविधीकरण किसान सदस्यों की आय में वृद्धि करेगा। 
    • खाद्यान्न की बर्बादी में कमी: स्थानीय स्तर पर विकेंद्रीकृत भंडारण क्षमता का निर्माण करके (योजना का उद्देश्य अनाज की बर्बादी को कम करना है) बेहतर खाद्य सुरक्षा में योगदान देना है।
    • डिस्ट्रेस सेल को रोकना: यह योजना किसानों को विभिन्न विकल्प प्रदान करती है, फसलों की संकटपूर्ण बिक्री को रोकती है और उन्हें अपनी उपज के लिये बेहतर मूल्य प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।
    • लागत में कमी: PACS स्तर पर भंडारण सुविधाओं की स्थापना से खरीद केंद्रों और उचित मूल्य की दुकानों तक खाद्यान्न की परिवहन लागत में काफी कमी आएगी।

प्राथमिक कृषि साख समितियाँ क्या हैं?

  • PACS देश में लघु-अवधि सहकारी ऋण (STCC) संरचना का सबसे निचला स्तर है, जिसका नेतृत्त्व राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंक (SCB) करते हैं।
    • SCB से क्रेडिट का हस्तांतरण ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंकों (District Central Cooperative Banks- DCCB) को किया जाता है, जो ज़िला स्तर पर काम करते हैं। ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंक PACS के साथ काम करते हैं, साथ ही ये सीधे किसानों से जुड़े हैं।
  • पहला PACS वर्ष 1904 में स्थापित किया गया था। वे अल्पावधि ऋण देने में शामिल हैं। फसल चक्र की शुरुआत में किसान अपने बीज, उर्वरक आदि की आवश्यकता को पूरा करने के लिये ऋण प्राप्त करते हैं।
  • केंद्रीय बजट 2023-24 ने अगले पाँच वर्षों में 63,000 PACS के कंप्यूटरीकरण के लिये 2,516 करोड़ रुपए की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य उनके संचालन में अधिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाना व अपने व्यवसाय में विविधता लाने और अधिक गतिविधियों को करने में सक्षम बनाना है।

  UPSC सिविल सेवा, परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

 प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. कृषि क्षेत्र को अल्पकालीन साख प्रदान करने के संदर्भ में ‘ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंक (DCCBs)’ ‘अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों’ एवं ‘क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों’ की तुलना में अधिक ऋण देते हैं।
  2.  डी.सी.सी.बी. (DCCBs) का एक सबसे प्रमुख कार्य ‘प्राथमिक कृषि साख समितियों’ को निधि उपलब्ध कराना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर:(b)


प्रश्न. भारत में 'शहरी सहकारी बैंकों' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2021)  

  1. उनका पर्यवेक्षण और विनियमन राज्य सरकारों द्वारा स्थापित स्थानीय बोर्डों द्वारा किया जाता है। 
  2. वे इक्विटी शेयर और वरीयता शेयर जारी कर सकते हैं। 
  3. उन्हें 1966 में एक संशोधन के माध्यम से बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के दायरे में लाया गया था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 1 और 3   
(d) 1, 2 और 3  

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न . "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर ऋण संगठन का कोई भी ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।" - अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन पर चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्त संस्थाओं को किन बाधाओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है?” (2014) 

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस


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