श्रीलंका का ऋण संकट और पेरिस क्लब
प्रिलिम्स:श्रीलंका का ऋण संकट और पेरिस क्लब, IMF (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष), ऋण प्रबंधन, एशिया-प्रशांत, रूस का यूक्रेन पर आक्रमण। मेंस:श्रीलंका का ऋण संकट और पेरिस क्लब, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से जुड़े समझौते और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते। |
स्रोत:द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रीलंका, भारत और पेरिस क्लब समूह के साथ प्रारंभिक ऋण पुनर्गठन समझौते पर पहुँचा है, जिससे रुके हुए IMF (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) ऋण कार्यक्रम को पुनर्जीवित करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
- इससे श्रीलंका को, जिसने वर्ष 2022 में अपने ऋणों पर चूक की थी, मार्च 2023 में सहमत 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आईएमएफ ऋण पैकेज की अगली किश्त सुरक्षित करने में मदद मिलेगी।
- जब कोई देश अपने ऋण पर चूक करता है, तो इसका मतलब है कि सरकार अपने ऋणदाताओं के प्रति अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ है। यह विफलता विभिन्न तरीकों से प्रकट हो सकती है और इसके महत्त्वपूर्ण प्रभाव हो सकते हैं।
श्रीलंका का ऋण परिदृश्य:
- श्रीलंका पर लगभग 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी ऋण है, जिसका सबसे बड़ा भाग चीनी ऋणदाताओं का है, जिसमें जापान, भारत और वाणिज्यिक बॉण्डधारक भी बड़े ऋणदाता हैं।
- श्रीलंका को अभी भी वाणिज्यिक बॉण्डधारकों के साथ एक समझौते पर पहुँचना शेष है, जिससे देश की आर्थिक सुधार की प्रगति धीमी हो सकती है।
- मई 2022 में श्रीलंका दो दशकों में अपने ऋणों पर डिफॉल्ट करने वाला एशिया-प्रशांत का पहला देश बन गया, जो घरेलू आर्थिक कुप्रबंधन और कोरोनोवायरस महामारी तथा यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद वैश्विक मुद्रास्फीति में वृद्धि का परिणाम है।
- विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट के कारण आयातित भोजन, ईंधन और दवा की कमी हो गई, द्वीप पर जीवन स्तर कम होने लगा है, जिससे वर्ष 2022 में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए।
पेरिस क्लब:
- परिचय:
- पेरिस क्लब ज़्यादातर पश्चिमी कर्ज़दाता देशों का एक समूह है, जिसकी उत्पत्ति वर्ष 1956 में आयोजित बैठक से हुई है जिसमें अर्जेंटीना पेरिस में अपने सार्वजनिक कर्ज़दाताओं से मिलने हेतु सहमत हुआ था।
- यह स्वयं को एक मंच के रूप में वर्णित करता है जहाँ लेनदार देशों द्वारा सामना की जाने वाली भुगतान कठिनाइयों को हल करने हेतु आधिकारिक कर्ज़दाता बैठक करते हैं।
- इसका उद्देश्य उन देशों हेतु स्थायी ऋण-राहत समाधान खोजना है जो देश अपने द्विपक्षीय ऋण चुकाने में असमर्थ हैं।
- पेरिस क्लब ज़्यादातर पश्चिमी कर्ज़दाता देशों का एक समूह है, जिसकी उत्पत्ति वर्ष 1956 में आयोजित बैठक से हुई है जिसमें अर्जेंटीना पेरिस में अपने सार्वजनिक कर्ज़दाताओं से मिलने हेतु सहमत हुआ था।
- सदस्य:
- सदस्यों में शामिल हैं: ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, आयरलैंड, इज़रायल, जापान, नीदरलैंड, नॉर्वे, रूस, दक्षिण कोरिया, स्पेन, स्वीडन, स्विट्ज़रलैंड, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य।
- ये सभी 22 सदस्य आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) नामक समूह के सदस्य हैं।
- ऋण समझौतों में शामिल:
- इसकी आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, पेरिस क्लब ने 102 अलग-अलग देनदार देशों के साथ 478 समझौते किये हैं।
- वर्ष 1956 के बाद से पेरिस क्लब समझौता ढाँचे के तहत 614 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया गया है।
- हालिया गतिविधि:
- पिछली सदी में पेरिस समूह के देशों का द्विपक्षीय ऋण पर प्रभुत्त्व था, लेकिन पिछले दो दशकों में चीन के दुनिया के सबसे बड़े द्विपक्षीय ऋणदाता के रूप में उभरने के साथ उनका महत्त्व कम हो गया है।
- उदाहरण के लिये श्रीलंका के मामले में भारत, चीन और जापान सबसे बड़े द्विपक्षीय लेनदार हैं।
- श्रीलंका के द्विपक्षीय ऋणों में चीन का 52%, जापान का 19.5% तथा भारत का 12% हिस्सा है।
भारत श्रीलंका को ऋण प्रबंधन और आर्थिक विकास में कैसे सहायता प्रदान कर रहा है?
- ऋण पुनर्गठन में भूमिका:
- भारत ने श्रीलंका को उसके ऋण के पुनर्गठन में सहायता करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एवं ऋणदाताओं के साथ सहयोग करने में भूमिका निभाई है।
- भारत श्रीलंका के वित्तपोषण और ऋण पुनर्गठन के लिये अपना समर्थन पत्र सौंपने वाला पहला देश बन गया।
- कनेक्टिविटी एवं नवीकरणीय ऊर्जा:
- दोनों देश एक संयुक्त दृष्टिकोण पर सहमत हुए हैं जो लोगों से लोगों के बीच कनेक्टिविटी, नवीकरणीय ऊर्जा सहित व्यापक कनेक्टिविटी पर ज़ोर देता है।
- भारतीय कंपनियाँ श्रीलंका के उत्तर-पूर्व में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ विकसित कर रही हैं, जो ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ते सहयोग का संकेत है।
- आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौता (ETCA):
- दोनों देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत करने और विकास को बढ़ावा देने के लिये ETCA की संभावना तलाश रहे हैं।
- बहु-परियोजना पेट्रोलियम पाइपलाइन पर समझौता:
- भारत और श्रीलंका दोनों भारत के दक्षिणी भाग से श्रीलंका तक एक बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन स्थापित करने पर सहमत हुए हैं।
- इस पाइपलाइन का उद्देश्य श्रीलंका को ऊर्जा संसाधनों की सस्ती और विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करना है। आर्थिक विकास तथा प्रगति में ऊर्जा की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए पेट्रोलियम पाइपलाइन की स्थापना पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
- भारत का UPI अपनाना:
- श्रीलंका ने अब भारत की UPI सेवा को अपनाया है, जो दोनों देशों के बीच फिनटेक कनेक्टिविटी बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- व्यापार निपटान के लिये रुपए के उपयोग से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को और मदद मिल रही है। यह श्रीलंका की आर्थिक सुधार तथा वृद्धि में मदद के लिये ठोस कदम है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. "रैपिड फाइनेंसिंग इंस्ट्रूमेंट" और "रैपिड क्रेडिट सुविधा" निम्नलिखित में से किसके द्वारा उधार देने के प्रावधानों से संबंधित हैं? (2022) (a) एशियाई विकास बैंक उत्तर: (b) व्याख्या: रैपिड फाइनेंसिंग इंस्ट्रूमेंट(RFI) त्वरित वित्तीय सहायता प्रदान करता है, यह भुगतान संतुलन आवश्यकताओं का सामना करने वाले सभी सदस्य देशों के लिये उपलब्ध है। RFI को सदस्य देशों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये तथा वित्तीय सहायता को अधिक लचीला बनाने हेतु IMF को एक व्यापक सुधार के हिस्से के रूप में बनाया गया था। रैपिड फाइनेंसिंग इंस्ट्रूमेंट IMF की पूर्ववर्ती आपातकालीन सहायता नीति की जगह लेता है और इसका उपयोग विभिन्न परिस्थितियों में किया जा सकता है। रैपिड क्रेडिट सुविधा (RCF) कम आय वाले देशों (LIC) की बिना किसी पूर्व शर्त के तत्काल भुगतान संतुलन (BoP) आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, जहाँ एक पूर्ण आर्थिक कार्यक्रम की न तो आवश्यकता है और न ही यह व्यवहार्य है। RCF की स्थापना एक व्यापक सुधार के हिस्से के रूप में की गई थी ताकि वित्तीय सहायता को अधिक लचीला और संकट के समय LIC की विविध ज़रूरतों के अनुरूप बेहतर बनाया जा सके। RCF के तहत तीन क्षेत्र हैं: (i) घरेलू अस्थिरता, आपात स्थिति जैसे स्रोतों की एक विस्तृत शृंखला के कारण तत्काल BoP ज़रूरतों के लिये एक "रेगुलर विंडो", (ii) अचानक, बहिर्जात झटके के कारण तत्काल BoP ज़रूरतों के लिये एक "एक्सोजेनस शॉक विंडो" और (iii) प्राकृतिक आपदाओं के कारण तत्काल BoP ज़रूरतों के लिये एक "लार्ज नेचुरल डिज़ास्टर विंडो" जहाँ क्षति सकल घरेलू उत्पाद के 20% के बराबर या उससे अधिक होने का अनुमान है। प्रश्न. “स्वर्ण ट्रान्श” (रिज़र्व ट्रान्श) निर्दिष्ट करता है: (2020) (a) विश्व बैंक की एक ऋण व्यवस्था उत्तर: (d) प्रश्न. 'वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट' (2016) किसके द्वारा तैयार की जाती है? (a) यूरोपीय केंद्रीय बैंक उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न 1. विश्व बैंक और IMF, जिन्हें सामूहिक रूप से ब्रेटन वुड्स की जुडवाँ संस्था के रूप में जाना जाता है, विश्व की आर्थिक एवं वित्तीय व्यवस्था की संरचना का समर्थन करने वाले दो अंतर-सरकारी स्तंभ हैं। विश्व बैंक और IMF कई सामान्य विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं, फिर भी उनकी भूमिका, कार्य एवं अधिदेश स्पष्ट रूप से भिन्न हैं। व्याख्या कीजिये। (2013) प्रश्न 2. भारत-श्रीलंका के संबंधों के संदर्भ में विवेचना कीजिये कि किस प्रकार आतंरिक (देशीय) कारक विदेश नीति को प्रभावित करते हैं। (2013) प्रश्न 3. 'भारत श्रीलंका का बरसों पुराना मित्र है।' पूर्ववर्ती कथन के आलोक में श्रीलंका के वर्तमान संकट में भारत की भूमिका की विवेचना कीजिये। (2022) |
भारत सरकार और UNLF के बीच शांति समझौता
प्रिलिम्स के लिये:यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF), गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम, 1967, सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SoO) समझौता, विद्रोही समूह, कुकी समूह, इनर लाइन परमिट (ILP), अनुच्छेद 244 (1), अनुच्छेद 244 (2) मेन्स के लिये:पूर्वोत्तर में उग्रवाद से निपटने के लिये शांति समझौते का विश्लेषण |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार और मणिपुर सरकार ने यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये, जो मणिपुर का सबसे पुराना घाटी-आधारित विद्रोही समूह है।
यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) क्या है?
- NLF का गठन वर्ष 1964 में हुआ था और यह राज्य के नगा-बहुल एवं कुकी-ज़ोमी प्रभुत्व वाली पहाड़ियों में सक्रिय विद्रोही समूहों से अलग है।
- UNLF उन सात "मैतेई चरमपंथी संगठनों" में से एक है जिन पर केंद्र सरकार ने गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंध लगाया है।
- UNLF भारतीय सीमा/क्षेत्र के भीतर और बाहर दोनों जगह काम कर रहा है।
- ऐसा माना जाता है कि UNLF को शुरुआत में NSCN (IM) से प्रशिक्षण मिला था, जो नगा गुटों में सबसे बड़ा विद्रोही समूह था।
- यह मणिपुर के सभी घाटी क्षेत्रों और कुकी-ज़ोमी पहाड़ी ज़िलों के कुछ गाँवों में संचालित होता है।
- यह एक प्रतिबंधित समूह है, यह अधिकतर म्याँमार की सेना के समर्थन से म्याँमार के सागांग क्षेत्र, चिन राज्य और राखीन राज्य में शिविरों एवं प्रशिक्षण अड्डों से संचालित होता है।
शांति समझौते का उद्देश्य:
- इस समझौते से विशेष रूप से मणिपुर और उत्तर-पूर्व क्षेत्र में शांति के एक नए युग की शुरुआत में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है।
- यह पहला उदाहरण है जहाँ घाटी के एक मणिपुरी सशस्त्र समूह ने भारत के संविधान का सम्मान करने और देश के कानूनों का पालन करने की प्रतिबद्धता जताते हुए हिंसा को त्यागने, समाज की मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया है।
- यह समझौता न केवल यूएनएलएफ और सुरक्षा बलों के बीच शत्रुता को समाप्त करेगा, जिसने विगत पाँच दशक से अधिक समय में दोनों पक्षों के बहुमूल्य जीवन जीने का दावा किया है, बल्कि समुदाय की दीर्घकालिक चिंताओं को दूर करने का अवसर भी प्रदान करेगा।
- यूएनएलएफ की मुख्यधारा में वापसी से घाटी स्थित अन्य सशस्त्र समूहों को भी शांति प्रक्रिया में भाग लेने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
- सहमत ज़मीनी नियमों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये एक शांति निगरानी समिति (पीएमसी) का गठन किया जाएगा।
मणिपुर के अन्य उग्रवादी समूह:
- मणिपुर के कई अन्य विद्रोही समूह हैं कांगलेइपक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए), कांगलेई यावोल कन्ना लूप (केवाईकेएल), पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेइपाक (पीआरईपीएके), नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड - खापलांग (एनएससीएन-के)।
- 2008 में केंद्र सरकार, मणिपुर राज्य और कुकी-ज़ोमी क्षेत्र के विद्रोही समूहों को शामिल करते हुए एक त्रिपक्षीय सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) समझौता स्थापित किया गया था।
सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SoO) संधि क्या है?
- कुकी के साथ SoO समझौते पर वर्ष 2008 में भारत सरकार और मणिपुर व नगालैंड के पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय विभिन्न कुकी आतंकवादी समूहों के बीच युद्धविराम समझौते के रूप में हस्ताक्षर किये गए थे।
- समझौते के तहत कुकी आतंकवादी समूह हिंसक गतिविधियों को बंद करने और निगरानी के लिये निर्दिष्ट शिविरों में सुरक्षा बलों के आने पर सहमत हुए।
- इसके बदले में भारत सरकार कुकी समूहों के खिलाफ अपने अभियान को निलंबित करने पर सहमत हुई।
- संयुक्त निगरानी समूह (JMG) समझौते के प्रभावी कार्यान्वयन की देख-रेख करता है।
- राज्य और केंद्रीय बलों सहित सुरक्षा बल व भूमिगत समूह अभियान शुरू नहीं कर सकते।
विद्रोही समूहों से निपटने के लिये प्रशासनिक व्यवस्थाएँ क्या हैं?
- पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER):
- यह क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास की गति को तेज़ करने के लिये पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास योजनाओं और परियोजनाओं की योजना, कार्यान्वयन और निगरानी से संबंधित मामलों के लिये ज़िम्मेदार है।
- इनर लाइन परमिट (ILP):
- मिज़ोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के स्वदेशी लोगों की मूल पहचान बनाए रखने के लिये बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है, इनर लाइन परमिट (ILP) के बिना बाहरी लोगों के प्रवेश की अनुमति नहीं है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- इन प्रावधानों के अनुसरण में कार्बी आंगलोंग, खासी पहाड़ी ज़िले, चकमा ज़िले आदि जैसे विभिन्न जातीय समूहों की मांगों को पूरा करने के लिये विभिन्न स्वायत्त ज़िले बनाए गए हैं।
- अनुच्छेद 244 (1) में प्रावधान है कि 5वीं अनुसूची के प्रावधान अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन या नियंत्रण पर लागू होंगे।
- अनुच्छेद 244 (2) में प्रावधान है कि 6वीं अनुसूची के प्रावधान इन राज्यों में स्वायत्त ज़िला परिषद बनाने के लिये असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन या नियंत्रण पर लागू होंगे।
- इन प्रावधानों के अनुसरण में कार्बी आंगलोंग, खासी पहाड़ी ज़िले, चकमा ज़िले आदि जैसे विभिन्न जातीय समूहों की मांगों को पूरा करने के लिये विभिन्न स्वायत्त ज़िले बनाए गए हैं।
निष्कर्ष:
मणिपुर के साथ वृहद पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति लाने के लिये केंद्र और मणिपुर की सरकारों एवं UNLF के मध्य शांति समझौता आवश्यक है। ऐतिहासिक समझौता UNLF को मुख्यधारा में वापस लाकर लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों के समाधान की दिशा में अग्रसर है। जबकि अन्य विद्रोही समूहों के साथ तुलनीय समझौते क्षेत्रीय मुद्दों को हल करने और विकास को बढ़ावा देने के लिये निरंतर प्रयासों का संकेत देते हैं, शांति निगरानी समिति ज़मीनी मानदंडों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाहरी राज्य और गैर-राज्य अभिनेताओं द्वारा उत्पन्न बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण करें, साथ ही इन खतरों से निपटने के लिये उठाए जाने वाले आवश्यक उपायों पर भी चर्चा कीजिये। (2021) |
16वें वित्त आयोग के लिये संदर्भ की शर्तें
प्रिलिम्स के लिये:सोलहवाँ वित्त आयोग, भारत की समेकित निधि, सहायता अनुदान, पंचायतें और नगर पालिकाएँ, सकल राज्य घरेलू उत्पाद, केंद्र प्रायोजित योजनाएँ, धन हस्तांतरण हेतु मानदंड। मेन्स के लिये:16वें वित्त आयोग के लिये संदर्भ की प्रमुख शर्तें, 15वें वित्त आयोग की प्रमुख सिफारिशें। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोलहवें वित्त आयोग के लिये संदर्भ की शर्तों (ToR) को हरी झंडी दे दी है।
- इस आयोग के पास 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होने वाली आगामी 5 वर्ष की अवधि के लिये केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व वितरण के फार्मूले की सिफारिश करने की महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है।
16वें वित्त आयोग के लिये संदर्भ की प्रमुख शर्तें क्या हैं?
- कर आय का विभाजन: संविधान के अध्याय I, भाग XII के तहत केंद्र सरकार और राज्यों के बीच करों के वितरण की सिफारिश करना।
- इसमें कर आय से राज्यों के बीच शेयरों का आवंटन शामिल है।
- सहायता अनुदान के सिद्धांत: भारत की संचित निधि से राज्यों को सहायता अनुदान को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों की स्थापना करना।
- इसमें विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 275 के तहत उस अनुच्छेद के खंड (1) के प्रावधानों में उल्लिखित उद्देश्यों से अलग उद्देश्यों के लिये राज्यों को सहायता अनुदान के रूप में प्रदान की जाने वाली राशि का निर्धारण शामिल है।
- स्थानीय निकायों के लिये राज्य निधि को बढ़ाना: राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के उपायों की पहचान करना।
- इसका उद्देश्य राज्य के अपने वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर, राज्य के भीतर पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिये उपलब्ध संसाधनों को पूरक बनाना है।
- आपदा प्रबंधन वित्तपोषण का मूल्यांकन: आयोग आपदा प्रबंधन पहल से संबंधित वर्तमान वित्तपोषण संरचनाओं की समीक्षा कर सकता है।
- इसमें आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत बनाए गए फंड की जाँच करना और सुधार या बदलाव के लिये उपयुक्त सिफारिशें प्रस्तुत करना शामिल है।
वित्त आयोग क्या है?
- परिचय:
- भारत में वित्त आयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है।
- इसका प्राथमिक कार्य केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण की सिफारिश करना है।
- पंद्रहवें वित्त आयोग का गठन 27 नवंबर, 2017 को किया गया था। इसने अपनी अंतरिम और अंतिम रिपोर्ट के माध्यम से 1 अप्रैल, 2020 से शुरू होने वाली छह वर्षों की अवधि को कवर करते हुए सिफारिशें कीं।
- पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2025-26 तक मान्य हैं।
- भारत में वित्त आयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है।
हस्तांतरण हेतु मानदंड:
मानदंड |
14वाँ वित्त आयोग (2015-20) |
15वाँ वित्त आयोग (2020-21) |
15वाँ वित्त आयोग (2021-26) |
आय दूरी |
50.0 |
45.0 |
45.0 |
क्षेत्र |
15.0 |
15.0 |
15.0 |
जनसंख्या (1971) |
17.5 |
- |
- |
जनसंख्या (2011)# |
10.0 |
15.0 |
15.0 |
जनसांख्यिकी प्रदर्शन |
- |
12.5 |
12.5 |
वनाच्छादन |
7.5 |
- |
- |
वन एवं पारिस्थितिकी |
- |
10.0 |
10.0 |
कर एवं राजकोषीय प्रयास* |
- |
2.5 |
2.5 |
कुल |
100 |
100 |
100 |
नोट : 'जनसंख्या (1971)' पर केवल 14वें वित्त आयोग के लिये विचार किया गया था, जबकि 'जनसंख्या (2011)' और 'कर और राजकोषीय प्रयास' 15वें वित्त आयोग द्वारा पेश किये गए थे। आँकड़े निर्दिष्ट अवधि के दौरान प्रत्येक मानदंड के लिये प्रतिशत में वेटेज दर्शाते हैं।
15वें वित्त आयोग की प्रमुख सिफारिशें:
- केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी: आयोग ने वर्ष 2021-26 की अवधि के लिये केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 41% बनाए रखने का प्रस्ताव रखा, जो 14वें वित्त आयोग द्वारा वर्ष 2015-20 के दौरान आवंटित 42% से थोड़ी कमी प्रदर्शित हुई है।
- इस 1% समायोजन का उद्देश्य केंद्रीय संसाधनों से जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के नवगठित केंद्रशासित प्रदेशों को समायोजित करना है।
- राजकोषीय घाटा एवं ऋण स्तर: आयोग ने सिफारिश की कि केंद्र का लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक अपने राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4% तक सीमित करना है।
- राज्यों के लिये वर्ष 2021-26 की अवधि के भीतर विभिन्न वर्षों के लिये सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के प्रतिशत के रूप में विशिष्ट राजकोषीय घाटे की सीमा की सलाह दी।
- प्रारंभिक चार वर्षों (2021-25) में स्वीकृत उधार सीमा का पूरी तरह से उपयोग नहीं करने वाले राज्य बाद के वर्षों में शेष राशि का उपयोग कर सकते हैं।
- अन्य अनुशंसाएँ:
- रक्षा और आंतरिक सुरक्षा निधि: रिपोर्ट में रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिये एक आधुनिकीकरण निधि (MFDIS) स्थापित करने का सुझाव दिया गया है, जो गैर-व्यपगत और मुख्य रूप से भारत के समेकित निधि और अन्य स्रोतों के माध्यम से वित्त पोषित है।
- केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS): सिफारिशों में वार्षिक CSS आवंटन, तीसरे पक्ष के मूल्यांकन, पारदर्शी फंडिंग पैटर्न तथा अनावश्यक योजनाओं को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने हेतु स्थिर वित्तीय आवंटन के लिये सीमा निर्धारित करना शामिल है।
निष्कर्ष:
अब ToR को मंज़ूरी मिलने के साथ आयोग के लिये अपने जनादेश को शुरू करने के लिये मंच तैयार हो गया है, जो भारत की संघीय संरचना को रेखांकित करने वाले वित्तीय ढाँचे में निर्णायक योगदान देगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2023)
समस्तर कर-अवक्रमण के लिये पंद्रहवें वित्त आयोग ने उपर्युक्त में से कितने को जनसंख्या क्षेत्रफल और आय के अंतर के अलावा निकष के रूप में प्रयुक्त किया? (a) केवल दो उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. तेरहवें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की विवेचना कीजिये जो स्थानीय शासन की वित्त-व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिये पिछले आयोगों से भिन्न हैं। (2013) |
शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर
प्रिलिम्स के लिये:आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय, बेरोज़गारी, श्रम बल भागीदारी दर, श्रमिक जनसंख्या अनुपात, आजीविका और उद्यम के लिये हाशिये पर रहने वाले व्यक्तियों के लिये सहायता, पीएम-दक्ष, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, स्टार्ट-अप भारत योजना, रोज़गार मेला मेन्स के लिये :शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा आयोजित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण ने हाल ही में जुलाई-सितंबर 2023 के आँकड़े जारी किये, जो शहरी क्षेत्रों में भारत की बेरोज़गारी दर को दर्शाते हैं।
हालिया PLFS की प्रमुख विशेषताएँ:
- शहरी बेरोज़गारी दर: शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर 7.2% (जुलाई-सितंबर 2022) से घटकर 6.6% (जुलाई-सितंबर 2023) हो गई।
- पुरुष: यह दर इस समयावधि में 6.6% से घटकर 6% हो गई है।
- महिला: इनकी दर में अधिक सकारात्मक प्रवृत्ति देखी गई, जो दी गई समयावधि में 9.4% से घटकर 8.6% हो गई।
- श्रमिक-जनसंख्या अनुपात: शहरी क्षेत्रों में श्रमिक जनसंख्या अनुपात, जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों का प्रतिशत, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये जुलाई-सितंबर, जो वर्ष 2022 में 44.5% से बढ़कर जुलाई-सितंबर, वर्ष 2023 में 46% हो गया।
- पुरुष: यह दर इस समयावधि के दौरान 68.6% से बढ़कर 69.4% हो गई।
- महिला: इनकी दर इस समयावधि के दौरान 19.7% से बढ़कर 21.9% हो गई।
- श्रम बल भागीदारी दर: शहरी क्षेत्रों में LFPR जुलाई-सितंबर 2022 के 47.9% से बढ़कर जुलाई-सितंबर, 2023 में 49.3% हो गई।
- पुरुष: इनकी दर में इस अवधि के दौरान 73.4% से 73.8% तक मामूली वृद्धि देखी गई।
- महिला: इनकी दर में 21.7% से 24.0% तक अधिक महत्त्वपूर्ण वृद्धि प्रदर्शित की गई।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण क्या है?
- परिचय:
- अधिक नियमित समय अंतराल पर श्रम बल डेटा की उपलब्धता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए NSSO ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण शुरू किया।
- PLFS बेरोज़गारी दर को श्रम बल में बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित करता है।
- PLFS का उद्देश्य:
- केवल 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्प समय अंतराल में प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतक (जैसे श्रमिक जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
- वार्षिक रूप से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में 'सामान्य स्थिति' और CWS दोनों में रोज़गार तथा बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।
संबंधित प्रमुख शर्तें क्या हैं?
- श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): यह 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के उन लोगों के प्रतिशत का प्रतिनिधित्त्व करता है जो या तो कार्यरत हैं या बेरोज़गार हैं लेकिन सक्रिय रूप से कार्य की तलाश में हैं।
- श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR): यह कुल जनसंख्या के भीतर नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत को मापता है।
- बेरोज़गारी दर (UR): यह श्रम बल में बेरोज़गार वाले व्यक्तियों के प्रतिशत को इंगित करता है।
- गतिविधि के संबंध में:
- प्रमुख गतिविधियों स्थिति (PS): वह प्राथमिक गतिविधि जो एक व्यक्ति पर्याप्त अवधि (सर्वेक्षण से पहले 365 दिनों के दौरान) में कर रहा है।
- सहायक आर्थिक गतिविधियों स्थिति (SS): सर्वेक्षण से पहले 365 दिन की अवधि में कम से कम 30 दिनों के लिये सामान्य प्राथमिक गतिविधि के अलावा अतिरिक्त आर्थिक गतिविधियाँ की गईं।
- वर्तमान साप्ताहिक स्थिति(CWS): यह स्थिति सर्वेक्षण तिथि से ठीक पहले पिछले 7 दिनों के दौरान किसी व्यक्ति की गतिविधियों को दर्शाती है।
शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- संरचनात्मक बेरोज़गारी: शहरी क्षेत्रों में प्राय: कार्यबल के पास मौजूद कौशल और उद्योगों द्वारा मांगे जाने वाले कौशल के बीच असमानता का सामना करना पड़ता है।
- शिक्षा प्रणाली रोज़गार बाज़ार की ज़रूरतों के अनुरूप नहीं है, जिससे अकुशल या अल्प-कुशल श्रमिकों की अधिकता हो जाती है।
- तेज़ी से तकनीकी प्रगति और अर्थव्यवस्था में बदलाव के कारण पारंपरिक उद्योगों में गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप कई शहरी श्रमिकों का रोज़गार चला गया है, जिनके पास उभरते क्षेत्रों के लिये आवश्यक कौशल की कमी है।
- अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: शहरी आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जिसमें कम वेतन, नौकरी की असुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा लाभों की कमी शामिल है।
- यह क्षेत्र अक्सर मौसमी उतार-चढ़ाव का अनुभव करता है, जिससे रोज़गार के अवसर असंगत होते हैं।
- औपचारिक रोज़गार के अवसरों की कमी के कारण कई श्रमिकों को ऐसी नौकरियाँ स्वीकार करने के लिये मजबूर होना पड़ता है जो उनके कौशल स्तर से कम हैं, जिससे मानव संसाधनों का कम उपयोग होता है।
- IMF के अनुसार, भारत में रोज़गार हिस्सेदारी के मामले में असंगठित क्षेत्र 83% कार्यबल को रोज़गार देता है।
- इसके अलावा अर्थव्यवस्था में 92.4% अनौपचारिक श्रमिक हैं (बिना किसी लिखित अनुबंध, सवैतनिक अवकाश और अन्य लाभों के)।
- जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ: शहरों में तेज़ी से शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि ने रोज़गार सृजन को पीछे छोड़ दिया है, जिससे श्रम बाज़ार पर बोझ बढ़ गया है और बेरोज़गारी दर बढ़ गई है।
- ग्रामीण से शहरी प्रवास के कारण अक्सर शहरों में श्रम की अत्यधिक आपूर्ति हो जाती है, जिससे प्रवासी आबादी के बीच बेरोज़गारी दर में वृद्धि होती है, जिससे शहरी गरीबी और बढ़ जाती है।
- साख मुद्रास्फीति: शैक्षिक योग्यताओं पर अत्यधिक ज़ोर देने से ऐसी स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं जहाँ व्यक्ति उपलब्ध नौकरियों के लिये अत्यधिक योग्य हो जाते हैं, जिससे अल्परोज़गार या बेरोज़गारी हो जाती है।
रोज़गार संबंधी सरकार की पहल:
- आजीविका और उद्यम के लिये सीमांत व्यक्तियों हेतु समर्थन" (स्माइल)
- पीएम-दक्ष (प्रधानमंत्री दक्षता और कुशलता संपन्न हितग्राही)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई)
- स्टार्ट अप इंडिया स्कीम
- रोज़गार मेला
- इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना- राजस्थान
आगे की राह
- सुधारवादी शिक्षा: प्रासंगिक कौशल प्रदान करने के लिये पाठ्यक्रम को अद्यतन करके व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ज़ोर देकर और रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिये आजीवन सीखने को बढ़ावा देकर शिक्षा को वर्तमान बाज़ार की मांगो के साथ संरेखित करना।
- स्टार्टअप इकोसिस्टम सपोर्ट: वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके नौकरशाही बाधाओं को कम कर और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने के लिये मेंटरशिप कार्यक्रमों की पेशकश करके स्टार्टअप के लिये अनुकूल माहौल को बढ़ावा देना।
- रोज़गारोन्मुख नीतियाँ: ऐसी नीतियाँ बनाना और लागू करना जो रोज़गार सृज़न को बढ़ावा दें, जिसमें बुनियादी ढाँचे में निवेश, उद्योग-अनुकूल नियम और रोज़गार पैदा करने वाले व्यवसायों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन शामिल हैं।
- सृज़नात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: सांस्कृतिक उद्योगों, कला और रचनात्मक क्षेत्रों में निवेश करना, सांस्कृतिक उद्यमिता के माध्यम से रोज़गार उत्पन्न करने के लिये कारीगरों, कलाकारों और शिल्पकारों का समर्थन करना।
- हरित स्थल और शहरी कृषि: शहरों के भीतर शहरी कृषि और हरित स्थानों को बढ़ावा देना, खेती, बागवानी और संबंधित पर्यावरण-अनुकूल गतिविधियों में रोज़गार पैदा करना।
- हरित क्षेत्र में रोज़गार पैदा करने के लिये सतत् प्रथा, भूनिर्माण और शहरी वानिकी में प्रशिक्षण प्रदान करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यत अर्थ है कि: (2013) (a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धति का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023) |