गुरुत्त्वाकर्षण तरंगों के नए स्रोत
प्रिलिम्स के लिये:लीगो, न्यूट्रॉन स्टार-ब्लैकहोल, गुरुत्त्वाकर्षण तरंग मेन्स के लिये:गुरुत्त्वाकर्षण तरंगों की उपयोगिता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लीगो वैज्ञानिक सहयोग (LSC) ने न्यूट्रॉन स्टार-ब्लैकहोल (NS-BH) विलय की एक जोड़ी से गुरुत्त्वाकर्षण तरंगों की खोज की है।
- गुरुत्त्वाकर्षण तरंग संसूचकों के एक वैश्विक नेटवर्क का उपयोग करके इन दो वस्तुओं से प्रतिध्वनियों को लिया गया, जो अब तक का सबसे संवेदनशील वैज्ञानिक उपकरण है।
- अब तक लीगो-वर्गों सहयोग (LVC) केवल ब्लैकहोल या न्यूट्रॉन तारों के जोड़े के बीच टकराव का निरीक्षण करने में सक्षम था। NS-BH विलय एक हाइब्रिड संयोग है।
ब्लैकहोल:
- ब्लैकहोल अंतरिक्ष में एक ऐसी जगह है जहाँ गुरुत्त्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि प्रकाश भी बाहर नहीं निकल पाता है। यहाँ गुरुत्त्वाकर्षण इतना मज़बूत होता है कि पदार्थ छोटे से स्थान में संपीडित हो जाता है।
- गुरुत्त्वाकर्षण तरंगें तब बनती हैं जब दो ब्लैकहोल एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं और विलीन हो जाते हैं।
न्यूट्रॉन तारे:
- न्यूट्रॉन तारों में उच्च द्रव्यमान तारों के संभावित अंत-बिंदुओं में से एक शामिल होता है।
- एक बार जब तारे का कोर पूरी तरह से लोहे में जल जाता है तो ऊर्जा उत्पादन बंद हो जाता है और कोर तेज़ी से ढह जाता है, इलेक्ट्रॉनों और प्रोटॉन को एक साथ संपीडित कर न्यूट्रॉन और न्यूट्रिनो बनाते हैं।
- न्यूट्रॉन अधोपतन दबाव द्वारा समर्थित एक तारे को 'न्यूट्रॉन स्टार' के रूप में जाना जाता है, जिसे पल्सर के रूप में जाना जाता है यदि इसका चुंबकीय क्षेत्र इसके स्पिन अक्ष के साथ अनुकूल रूप से संरेखित हो।
प्रमुख बिंदु:
गुरुत्त्वाकर्षण तरंगों के बारे में:
- ये अंतरिक्ष में अदृश्य तरंगें हैं जो तब बनती हैं जब:
- सुपरनोवा में एक तारा फट जाता है।
- दो बड़े तारे एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं।
- दो ब्लैक होल विलीन हो जाते हैं।
- न्यूट्रॉन स्टार-ब्लैकहोल (NS-BH) विलीन हो जाता है।
- वे प्रकाश की गति (1,86,000 मील प्रति सेकंड) से यात्रा करते हैं और अपने रास्ते में आने वाले किसी भी पदार्थ को संपीडित कर सकते हैं।
- जैसे गुरुत्त्वाकर्षण तरंग अंतरिक्ष-समय के माध्यम से यात्रा करती है, यह इसे एक दिशा में फैलाने और दूसरी दिशा में संपीडित करने का कारण बनती है।
- अंतरिक्ष-समय के उस क्षेत्र पर कब्ज़ा करने वाली कोई भी वस्तु विस्तृत और संकुचित होती है क्योंकि लहर उनके ऊपर से गुज़रती है, हालाँकि बहुत कम, जिसे केवल लीगो जैसे विशेष उपकरणों द्वारा ही पता लगाया जा सकता है।
- सिद्धांत और खोज:
- ये सिद्धांत एक सदी से भी पहले अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने ‘जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी’ में प्रस्तावित किये थे।
- हालाँकि पहली गुरुत्त्वाकर्षण तरंग का पता LIGO ने वर्ष 2015 में ही लगा लिया था।
खोज तकनीक:
- जैसे-जैसे दो सघन और विशाल पिंड एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं, वे करीब आते हैं और अंत में विलीन हो जाते हैं, क्योंकि गुरुत्त्वाकर्षण तरंगों के रूप में ऊर्जा लुप्त हो जाती है।
- गुरुत्वीय तरंग सिग्नल पृष्ठभूमि (Background) शोर के अंदर गहराई में दबे होते हैं जो सिग्नलों की खोज के लिये वैज्ञानिक मैच्ड फिल्टरिंग (Matched filtering) नामक एक विधि का उपयोग करते हैं।
- इस पद्धति में आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत द्वारा भविष्यवाणी की गई विभिन्न अपेक्षित गुरुत्वाकर्षण तरंगों की तुलना डेटा के विभिन्न हिस्सों से की जाती है ताकि एक मात्रा का उत्पादन किया जा सके जो यह दर्शाता है कि डेटा में संकेत (यदि कोई हो) किसी एक तरंग के साथ मेल खाता है।
- जब भी यह मैच (तकनीकी शब्दों में "सिग्नल-टू-शोर अनुपात" या एसएनआर) महत्त्वपूर्ण (8 से बड़ा) होता है, तो एक घटना का पता लगाया जाता है।
- लगभग एक साथ हज़ारों किलोमीटर द्वारा अलग किये गए कई डिटेक्टरों में एक घटना का अवलोकन करने से वैज्ञानिकों का यह विश्वास बढ़ जाता है कि संकेत खगोलीय उत्पत्ति का है।
खोज का महत्त्व:
- एक न्यूट्रॉन तारे की सतह होती है तथा इसमें ब्लैकहोल नहीं होता है। एक न्यूट्रॉन तारा सूर्य के द्रव्यमान के लगभग 1.4-2 गुना है, जबकि ब्लैकहोल बहुत अधिक विशाल है। व्यापक रूप से असमान विलय के बहुत ही रोचक प्रभाव हैं जिनका पता लगाया जा सकता है।
- डेटा का उल्लेख करते हुए कि वे कितनी बार विलय करते हैं, हमें उनकी उत्पत्ति और उनके गठन के बारे में भी प्रमाण मिलेगा।
- ये अवलोकन हमें ऐसे बायनेरिज़ के गठन और सापेक्ष बहुतायत को समझने में मदद करते हैं।
- न्यूट्रॉन तारे ब्रह्मांड में सबसे घने पिंड हैं, इसलिये ये निष्कर्ष हमें अत्यधिक घनत्व पर पदार्थ के व्यवहार को समझने में भी मदद कर सकते हैं।
- न्यूट्रॉन तारे ब्रह्मांड में सबसे सटीक 'घड़ियाँ' भी हैं, यदि वे अत्यंत आवधिक काल का उत्सर्जन करते हैं।
- ब्लैकहोल के चारों ओर घूमने वाले पल्सर की खोज से वैज्ञानिकों को अत्यधिक गुरुत्त्वाकर्षण के तहत प्रभावों की जाँच करने में मदद मिल सकती है।
लीगो वैज्ञानिक सहयोग:
- इसकी स्थापना वर्ष 1997 में हुई थी और वर्तमान में इसमें 100 से अधिक संस्थान तथा पूरे विश्व के 18 देशों के 1000 से अधिक वैज्ञानिक शामिल हैं।
- यह वैज्ञानिकों का एक समूह है जो गुरुत्वाकर्षण तरंगों का प्रत्यक्ष पता लगाने पर ध्यान केंद्रित करता है, उनका उपयोग गुरुत्वाकर्षण के मौलिक भौतिकी का पता लगाने और खगोलीय खोज के उपकरण के रूप में गुरुत्वाकर्षण तरंग विज्ञान के उभरते क्षेत्र को विकसित करने के लिये करता है।
- लीगो वेधशालाएँ: लीगो से संबंधित अध्ययन को हनफोर्ड (वाशिंगटन), लिविंगस्टन (लुइसियाना) और हनोवर (जर्मनी) में स्थित वेधशालाओं में अंजाम दिया जाता है।
- अन्य वेधशालाएँ:
- VIRGO: यह इटली में पीसा के पास स्थित है। इसका सहयोग वर्तमान में बेल्जियम, फ्राँस, जर्मनी, हंगरी, इटली, नीदरलैंड, पोलैंड और स्पेन सहित 14 विभिन्न देशों में 119 संस्थानों के लगभग 650 सदस्यों से है।
- कामिओका ग्रेविटेशनल वेव डिटेक्टर (KAGRA): यह कामिओका, गिफू, जापान में स्थित है। इसकी मेज़बान संस्थान टोक्यो विश्वविद्यालय में स्थित कॉस्मिक रे रिसर्च संस्थान (ICRR) है।
- यह व्यतिकरणमापी (Interferometer ) भूमिगत है और क्रायोजेनिक दर्पणों (Cryogenic Mirror) का उपयोग करता है। इसकी 3 किमी. भुजाएँ हैं।
लीगो-इंडिया प्रोजेक्ट
- लीगो इंडिया वेधशाला (LIGO India Observatory) का कार्य वर्ष 2024 में पूरा होना निर्धारित है और इसे महाराष्ट्र के हिंगोली ज़िले में बनाया जाएगा।
- यह विश्वव्यापी नेटवर्क के हिस्से के रूप में भारत में स्थित एक नियोजित उन्नत गुरुत्वीय लहर (Gravitational Wave) वेधशाला है।
- लीगो परियोजना तीन गुरुत्वीय लहर डिटेक्टरों को संचालित करती है।
- दो वाशिंगटन राज्य (उत्तर-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका) के हनफोर्ड में स्थित हैं और एक लुइसियाना (दक्षिण-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका) के लिविंगस्टन में स्थित है।
- लीगो इंडिया प्रोजेक्ट, लीगो प्रयोगशाला (LIGO Laboratory) और लीगो इंडिया कंसोर्टियम (LIGO-India Consortium) में तीन प्रमुख संस्थानों (प्लाज़्मा अनुसंधान संस्थान, गांधीनगर; आईयूसीएए, पुणे और राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी, इंदौर) के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है।
- इससे आकाशीय स्थानीयकरण (Localisation) में उल्लेखनीय सुधार होगा।
- इससे विद्युत चुंबकीय दूरबीनों का उपयोग करके दूर के स्रोतों के अवलोकन की संभावना बढ़ जाती है जो बदले में हमें अधिक सटीक माप देगा कि ब्रह्मांड कितनी तेज़ी से विस्तार कर रहा है।
स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस
‘हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी’ का 7वाँ संस्करण
प्रिलिम्स के लिये:हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी, रीयूनियन द्वीप मेन्स के लिये:भारत के लिये IONS का महत्त्व और हिंद महासागर क्षेत्र से संबंधित अन्य पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी’ (IONS) के 7वें संस्करण की मेज़बानी फ्रांँसीसी नौसेना द्वारा रीयूनियन द्वीप पर की गई थी।
- यह एक द्विवार्षिक आयोजन है, जिसकी कल्पना भारतीय नौसेना ने वर्ष 2008 में की थी।
प्रमुख बिंदु
परिचय
- ‘हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी’ (IONS) एक स्वैच्छिक और समावेशी पहल है, जो समुद्री सहयोग को बढ़ाने व क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये हिंद महासागर क्षेत्र के तटीय राज्यों की नौसेनाओं को एक साथ लाता है।
- यह प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध एक प्रभावी प्रतिक्रिया तंत्र और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) सुनिश्चित करने का भी कार्य करता है।
- ‘हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी’ (IONS) की अध्यक्षता भारत (2008-10), संयुक्त अरब अमीरात (2010-12), दक्षिण अफ्रीका (2012-14), ऑस्ट्रेलिया (2014-16), बांग्लादेश (2016-18) और इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान (2018-21) द्वारा की गई है।
- फ्रांँस ने जून 2021 में दो वर्षीय कार्यकाल के लिये अध्यक्षता ग्रहण की है।
सदस्य देश:
- IONS में 24 सदस्य राष्ट्र शामिल हैं जो हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region- IOR) क्षेत्र की सीमा पर मौजूद हैं तथा 8 पर्यवेक्षक देश शामिल हैं।
- सदस्यों को भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर निम्नलिखित चार उप-क्षेत्रों में बाँटा गया है:
- दक्षिण एशियाई समुद्र तट: बांग्लादेश, भारत, मालदीव, पाकिस्तान, सेशेल्स, श्रीलंका और यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र)।
- पश्चिम एशियाई समुद्र तट: ईरान, ओमान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात।
- पूर्वी अफ्रीकी समुद्र तट: फ्रांँस (रीयूनियन), केन्या, मॉरीशस, मोज़ाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका और तंजानिया।
- दक्षिण-पूर्व एशियाई और ऑस्ट्रेलियाई समुद्र तट: ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्याँमार, सिंगापुर, थाईलैंड और तिमोर-लेस्ते।
भारत के लिये महत्त्व:
- IONS इस क्षेत्र में भारत की तीन महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करता है:
- हिंद महासागर के तटवर्ती राज्यों के साथ संबंधों को मज़बूत और गहरा करना।
- शुद्ध सुरक्षा प्रदाता (Net Security Provider) होने की अपनी नेतृत्व क्षमता और आकांक्षाओं को स्थापित करना।
- IOR में नियम-आधारित और स्थिर समुद्री व्यवस्था के भारत के दृष्टिकोण को पूरा करना।
- यह भारत को मलक्का जलडमरूमध्य (Straits of Malacca) से होर्मुज़ (Hormuz) तक अपने प्रभाव क्षेत्र को मज़बूत करने में मदद करेगा।
- IONS का उपयोग इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति को प्रतिसंतुलित करने के लिये किया जा सकता है।
IOR से जुड़े अन्य महत्त्वपूर्ण समूह/पहल:
- हिंद महासागर रिम एसोसिएशन: हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) की स्थापना वर्ष 1997 में हुई थी।
- इसका उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र के भीतर क्षेत्रीय सहयोग और सतत् विकास को मज़बूत करना है।
- हिंद महासागर आयोग: हाल ही में भारत को हिंद महासागर आयोग के पर्यवेक्षक के रूप में अनुमोदित किया गया है, यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में बेहतर सागरीय-अभिशासन (Maritime Governance) की दिशा में कार्य करता है।
- क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (SAGAR): इसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था।
- सागर के माध्यम से भारत अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ आर्थिक एवं सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करना चाहता है और उनकी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं के निर्माण में सहायता करना चाहता है।
- एशिया अफ्रीका विकास गलियारा: वर्ष 2016 में भारत और जापान द्वारा जारी संयुक्त घोषणा में एशिया अफ्रीका विकास गलियारा (Asia Africa Growth Corridor- AAGC) का विचार उभरा था।
- AAGC को विकास और सहयोग परियोजनाओं, गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचे तथा संस्थागत कनेक्टिविटी, क्षमता व कौशल बढ़ाने जैसे लोगों की भागीदारी के चार स्तंभों पर खड़ा किया गया है।
स्रोत: पी.आई.बी
भारत के विनिर्माण क्षेत्र का संकुचन: PMI
प्रिलिम्स के लिये:क्रय प्रबंधक सूचकांक, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक मेन्स के लिये:नीतिगत निर्णयन में क्रय प्रबंधक सूचकांक का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
आईएचएस मार्किट इंडिया (IHS Markit India) के सर्वेक्षण के अनुसार, विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Managers' Index- PMI) जून में घटकर 48.1 पर आ गया, यह मई में 50.8 था, जो संकुचन से विकास को अलग करते हुए 50 के स्तर से नीचे चला गया।
- भारत की विनिर्माण गतिविधि जून में 11 महीनों में पहली बार संकुचित हुई क्योंकि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर और सख्त नियंत्रण उपायों ने मांग को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया तथा कारखाने के आदेशों, उत्पादन, निर्यात एवं खरीद की मात्रा में संकुचन को प्रभावित किया।
प्रमुख बिंदु:
- PMI एक सर्वेक्षण-आधारित प्रणाली है जो उत्तरदाताओं को पिछले माह की तुलना में प्रमुख व्यावसायिक चर के संदर्भ में उनकी धारणा में बदलाव के बारे में बताती है।
- PMI का उद्देश्य कंपनी के नीति निर्माताओं, विश्लेषकों और निवेशकों को वर्तमान एवं भविष्य की व्यावसायिक स्थितियों के बारे में जानकारी प्रदान करना है।
- विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों हेतु इसकी गणना अलग से की जाती है तथा फिर एक समग्र सूचकांक भी बनाया जाता है।
- PMI में 0 से 100 तक की संख्याएँ अंकित होती हैं।
- सूचकांक में 50 से अधिक अंक अर्थव्यवस्था के विस्तार को, जबकि इससे नीचे का स्कोर संकुचन की स्थिति को दर्शाता है।
- 50 का स्कोर किसी बदलाव को नहीं दर्शाता है।
- यदि पिछले माह का PMI चालू माह के PMI से अधिक है, तो यह अर्थव्यवस्था के संकुचन को दर्शाता है।
- सामान्यत: इसे हर माह की शुरुआत में जारी किया जाता है, इसलिये इसे आर्थिक गतिविधि का एक अच्छा अग्रणी संकेतक माना जाता है।
- IHS मार्किट द्वारा दुनिया भर में 40 से अधिक अर्थव्यवस्थाओं के लिये ‘क्रय प्रबंधक सूचकांक’ का संकलन किया जाता है।
- IHS मार्किट विश्व भर की अर्थव्यवस्थाओं के प्रमुख उद्योगों और बाज़ारों हेतु सूचना, विश्लेषण और समाधान प्रस्तुत करने वाली एक अग्रणी वैश्विक कंपनी है।
- चूँकि औद्योगिक उत्पादन, विनिर्माण और सकल घरेलू उत्पाद से संबंधित आँकड़े काफी देर से प्राप्त होते हैं, ऐसे में PMI प्रारंभिक स्तर पर सूचित निर्णय लेने में मदद करता है।
- यह औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) से अलग है, जो अर्थव्यवस्था में गतिविधि के स्तर को भी मापता है।
- PMI की तुलना में IIP अधिक व्यापक औद्योगिक क्षेत्र को कवर करता है।
- हालांँकि मानक औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की तुलना में PMI अधिक गतिशील है।
स्रोत: द हिंदू
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के छह वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:डिजिटल इंडिया कार्यक्रम और इससे संबंधित भारतीय पहल मेन्स के लिये:डिजिटल इंडिया कार्यक्रम : इसका महत्त्व तथा उपलब्धियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम (Digital India Programme) के छह वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक आभासी कार्यक्रम को संबोधित किया।
प्रमुख बिंदु:
संबोधन के मुख्य बिंदु:
- भारत का टेकेड (India's Techade): भारत के सिद्ध तकनीकी कौशल के साथ संयुक्त डेटा और जनसांख्यिकीय लाभांश देश के लिये बड़े अवसर प्रस्तुत करता है और आने वाला दशक भारत का टेकेड यानी ‘तकनीक का दशक’ होगा।
- डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की विभिन्न योजनाओं पर प्रकाश डाला गया:
- दीक्षा (Diksha): इसका संक्षिप्त रूप नॉलेज शेयरिंग के लिये डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर है। यह शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय डिजिटल अवसंरचना के रूप में कार्य करता है। देश भर के सभी शिक्षक उन्नत डिजिटल तकनीक से लैस होंगे।
- ई-नाम (eNAM): इसे 14 अप्रैल, 2016 को राज्यों में कृषि उपज बाज़ार समितियों (APMCs) को जोड़ने वाले अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पोर्टल के रूप में लॉन्च किया गया था।
- ई-संजीवनी (eSanjeevani): यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का एक टेलीमेडिसिन सेवा मंच है।
- डिजीबुनाई (DigiBunai): यह बुनकरों को डिजिटल कलाकृति बनाने और करघे में लोड की जाने वाली साड़ी के डिज़ाइन विकसित करने में सहायता करता है। DigiBunai™ जैक्वार्ड और डॉबी वीविंग के लिये अपनी तरह का पहला ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर है।
- प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना (PM SVANidhi scheme): केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय’ (Ministry of Housing and Urban Affairs- MoHUA) द्वारा छोटे दुकानदारों और फेरीवालों (Street Venders) को आर्थिक सहयोग प्रदान करने हेतु ‘प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (The Pradhan Mantri Street Vendor’s AtmaNirbhar Nidhi- PM SVANidhi) या पीएम स्वनिधि नामक योजना की शुरुआत की। यह सड़क पर सामान विक्रेताओं के माध्यम से डिजिटल लेनदेन को प्रोत्साहित करता है।
- कोविड-19 के दौरान डिजिटल समाधान: संपर्क अनुरेखण एप, आरोग्य सेतु।
- डिजिटल इंडिया कार्यक्रम: इसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था। कार्यक्रम को कई महत्त्वपूर्ण सरकारी योजनाओं जैसे- भारतनेट, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और स्टैंडअप इंडिया, औद्योगिक गलियारों आदि के लिये समर्थ बनाया गया है।
- दृष्टि क्षेत्र:
- प्रत्येक नागरिक के लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर एक उपयोगिता के रूप में;
- मांग पर शासन और सेवाएँ;
- नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण।
- उद्देश्य:
- भारत को एक ज्ञान भविष्य के लिये तैयार करना।
- परिवर्तन को साकार करना अर्थात् आईटी (इंडियन टैलेंट) + आईटी (इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी = आईटी (इंडिया टुमोरो) को वास्तविक रूप देना।
- परिवर्तन को सक्षम करने के लिये प्रौद्योगिकी को केंद्रीय बनाना।
- एक शीर्ष कार्यक्रम बनाना जो कई विभागों तक पहुँचे।
- डिजिटल इंडिया के 9 स्तंभ:
- ब्रॉडबैंड हाईवे
- मोबाइल कनेक्टिविटी तक सार्वभौमिक पहुँच
- पब्लिक इंटरनेट एक्सेस कार्यक्रम
- ई-गवर्नेंस : प्रौद्योगिकी के माध्यम से सरकार में सुधार
- ई-क्रांति : सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी
- सभी के लिये सूचना
- इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण
- नौकरियों के लिये आईटी
- अर्ली हार्वेस्ट कार्यक्रम
- महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ:
- डिजिटल भुगतान: एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) की शुरुआत ने देश के हर हिस्से में डिजिटल भुगतान के लाभों की शुरुआत की।
- भुगतान और लेनदेन के मामले में UPI समृद्ध व्यवसायियों से लेकर मामूली रेहड़ी-पटरी वालों तक सभी की मदद कर रहा है।
- यह कई निजी अभिकर्त्ताओं को डिजिटल भुगतान का विकल्प प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित करता है जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बदल दिया है।
- व्यवसायों के संचालन को आसान बनाना: इलेक्ट्रॉनिक ग्राहक पहचान प्रणाली (e-KYC), इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ भंडारण प्रणाली (DigiLocker) और इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रणाली (eSign) व्यवसायों व उनके संचालन को सुव्यवस्थित करने में मदद के लिये पेश किया गया था।
- जैम ट्रिनिटी से परे: सिस्टम में खामियों को दूर करने हेतु JAM (जन धन, आधार और मोबाइल) ट्रिनिटी को एक सरल कदम के रूप में शुरू किया गया। यह कोविड टीकाकरण अभियान को सशक्त बनाता है जिसके चलते भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरा ऐसा देश बन गया है जिसने 20 करोड़ टीके लगाए।
- डिजिटल भुगतान: एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) की शुरुआत ने देश के हर हिस्से में डिजिटल भुगतान के लाभों की शुरुआत की।
आगे की राह:
- इसके सफल कार्यान्वयन के रास्ते में कई प्रकार की बाधाएंँ हैं, जैसे- डिजिटल निरक्षरता, खराब बुनियादी ढांँचा, इंटरनेट की धीमी गति, विभिन्न विभागों के मध्य समन्वय की कमी, कराधान से संबंधित मुद्दे आदि। कार्यक्रम की पूरी क्षमता का उपयोग करने हेतु इन चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।
- चूँकि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम ने छह वर्ष पूरे कर लिये हैं इसलिये यहाँ छह ठोस रणनीतिक कदम दिये जा रहे हैं जो भारत की सफलता की कहानी में योगदान देने तथा पांँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के सपने को पूरा करने हेतु डिजिटल 4.0 के लिये नए डिजिटल राष्ट्र के निर्माण में सहायता कर सकते हैं:
- वैज्ञानिक सोच का समावेश, जहांँ धारणा/सोच नीति को संचालित नहीं करती है।
- डेटा तक पहुंँच और उपकरणों की कम लागत, विशेष रूप से स्मार्टफोन।
- उच्च गति प्रौद्योगिकी और निर्बाध कनेक्टिविटी (5G, 6G)।
- गुणवत्ता और स्थानीय भाषा सामग्री।
- निवारण, लोकपाल, शिकायत निवारण अधिकारियों हेतु निश्चित स्थानों के साथ एक सुरक्षित साइबरस्पेस।
- अक्षय ऊर्जा, बिजली की निर्बाध आपूर्ति, हरित प्रौद्योगिकी और अधिक-से-अधिक सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाना तथा अधिक-से-अधिक विभागों को एक-दूसरे से जोड़ना।
- डिजिटल इंडिया एक सशक्त तकनीकी समाधान है जो वर्षों से बुनियादी ढांँचे के निर्माण में सहायक रहा है और आज यह स्टार्ट-अप, डिजिटल शिक्षा, निर्बाध बैंकिंग एवं भुगतान समाधान, एग्रीटेक, स्वास्थ्य तकनीक, स्मार्ट सिटीज़, शासन तथा खुदरा प्रबंधन जैसे अन्य उभरते क्षेत्रों के आधार के रूप में कार्य कर रहा है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हीट डोम
प्रिलिम्स के लिये:हीट डोम मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन और हीट डोम्स |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रशांत नॉर्थवेस्ट और कनाडा के कुछ हिस्सों में तापमान 47 डिग्री के आसपास दर्ज किया गया, जिससे "ऐतिहासिक" गर्मी की लहर पैदा हुई।
- यह घटना "हीट डोम" (Heat Dome) का परिणाम है।
प्रमुख बिंदु
हीट डोम के विषय में:
- यह घटना तब शुरू होती है जब समुद्र के तापमान में प्रबल परिवर्तन (चढ़ाव या उतार) होता है। संवहन के कारण समुद्र के सतह की गर्म हवा ऊपर उठती है।
- जैसे-जैसे प्रचलित हवाएँ गर्म हवा को पूर्व की ओर ले जाती हैं, वैसे-वैसे जेट स्ट्रीम की उत्तरी शिफ्ट हवा को भूमि की ओर मोड़ देती है, जहाँ यह समाप्त हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप गर्म लहरों का जन्म होता है।
- जेट स्ट्रीम वायुमंडल के ऊपरी स्तरों में तेज़ हवा की अपेक्षा संकीर्ण बैंड (Narrow Band) हैं। जेट धाराओं में हवाएँ पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं लेकिन इनका प्रवाह अक्सर उत्तर और दक्षिण में बदल जाता है।
- पश्चिम से पूर्व की ओर समुद्र के तापमान में यह तीव्र परिवर्तन हीट डोम का कारण है।
- पश्चिमी प्रशांत महासागर के तापमान में पिछले कुछ दशकों में वृद्धि हुई है और यह पूर्वी प्रशांत महासागर के तापमान से अपेक्षाकृत अधिक है।
- हीट डोम बादलों को बनने से भी रोकता है, जिससे सूर्य के अधिक विकिरण धरती तक पहुँच जाते हैं।
- हीट डोम उच्च दबाव क्षेत्र है जो उस बर्तन की तरह होता है जिस पर लगा ढक्कन गर्मी को रोककर रखता है। वर्ष 2021 जैसे ला नीना (La Niña) बनने की संभावना अधिक होती है, जब पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में पानी ठंडा होता है और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में गर्म होता है।
ग्रीष्म लहर (Heat Waves) :
- ग्रीष्म लहर असामान्य रूप से उच्च तापमान की वह स्थिति है, जिसमें तापमान सामान्य से अधिक रहता है। यह दो दिनों से अधिक समय तक रहता है।
- ग्रीष्म लहर मार्च-जून के बीच चलती है परंतु कभी-कभी जुलाई तक भी चला करती है।
- ग्रीष्म लहरें उच्च आर्द्रता वाली और बिना आर्द्रता वाली भी हो सकती हैं तथा यह एक बड़े क्षेत्र को कवर करने की क्षमता रखती हैं, इसकी भीषण गर्मी' बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करती है।
मनुष्यों पर प्रभाव (आर्द्र बल्ब' के तापमान पर):
- जब तक शरीर से पसीने का उत्सर्जन और तीव्र वाष्पन होता रहेगा तब तक शरीर उच्च तापमान में भी ठंडा रहने में सक्षम होगा।
- वेट-बल्ब तापमान (WBT) एक ऐसी सीमा है जो ऊष्मा और आर्द्रता दोनों पर विचार करती है जिसके आगे मनुष्य उच्च तापमान को सहन नहीं कर सकता है।
- WBT से अधिक तापमान ऊष्मा से संबंधित बीमारियों का कारण बन सकता है, जिसमें हीट स्ट्रोक, हीट थकावट, सनबर्न और हीट रैश शामिल हैं। कई बार ये जानलेवा भी साबित हो सकती हैं।
‘हीट डोम’ के प्रभाव:
- बिना एयर कंडीशनर के रहने वाले लोग अपने घरों के तापमान को असहनीय रूप से बढ़ते हुए देखते हैं, जिससे अचानक मृत्यु हो सकती है।
- गर्मी के कारण फसलों को भी नुकसान हो सकता है, वनस्पति सूख सकती है और इसके परिणामस्वरूप सूखा पड़ सकता है।
- प्रचंड गर्मी की लहर से ऊर्जा की मांग में भी वृद्धि होगी, विशेष रूप से बिजली की जिससे इसकी मूल्य दरों में वृद्धि होगी।
- ‘हीट डोम’ जंगल की आग के लिये ईंधन के रूप में भी काम कर सकते हैं, जो हर साल अमेरिका में बहुत सारे भूमि क्षेत्र को नष्ट कर देता है।
जलवायु परिवर्तन और ‘हीट डोम्स’:
- मौसम वैज्ञानिक अधिक भीषण गर्मी की लहरों के संबंध में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर प्रकाश डालते रहे हैं।
- वर्ष 2017 के NOAA (नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन) सर्वेक्षण के अनुसार, 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से औसत अमेरिकी तापमान में वृद्धि हुई है।
- हालाँकि वैज्ञानिक आमतौर पर जलवायु परिवर्तन को किसी भी समकालीन घटना से जोड़ने से सावधान रहते हैं।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
LEAF गठबंधन
प्रिलिम्स के लिये:लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट, ‘लोअरिंग एमिशन बाय एक्सीलरेटिंग फॉरेस्ट फाइनेंस’ मेन्स के लिये:भारत में वनावरण और वन संरक्षण हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट, 2021 में ‘लोअरिंग एमिशन बाय एक्सीलरेटिंग फॉरेस्ट फाइनेंस’ (Lowering Emissions by Accelerating Forest Finance- LEAF) गठबंधन की घोषणा की गई थी।
LEAF गठबंधन उष्णकटिबंधीय वनों की रक्षा हेतु अब तक के सबसे बड़े सार्वजनिक-निजी प्रयासों में से एक है जो उष्णकटिबंधीय वनों (Tropical Forests) की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध देशों को वित्तपोषण हेतु कम-से-कम 1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर जुटाने में सक्षम बनाता है।
प्रमुख बिंदु:
LEAF गठबंधन के बारे में:
- यह अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और नॉर्वे की सरकारों का एक समूह है।
- चूँकि यह एक सार्वजनिक-निजी प्रयास है, अत: इसे बहुराष्ट्रीय निगमों (Transnational Corporations- TNCs) यूनिलीवर पीएलसी (Unilever plc), अमेज़न डॉट कॉम (Amazon.com), नेस्ले (Nestle), एयरबीएनबी (Airbnb) आदि का भी समर्थन प्राप्त है।
- इसमें शामिल होने के इच्छुक देश को गठबंधन द्वारा निर्धारित कुछ पूर्व निर्धारित शर्तों को पूरा करना होगा।
वित्तीय सहायता:
- LEAF के लिये परिणाम-आधारित वित्तपोषण मॉडल (Results-Based Financing Model) का उपयोग किया जाएगा।
- यह मॉडल विश्व स्तर पर पिछले दो दशकों से अमेज़न और उष्णकटिबंधीय जंगलों की रक्षा हेतु स्वदेशी समुदायों, वन्य लोगों, ब्राज़ील तथा अमेरिका के गैर-सरकारी संगठनों एवं अन्य भागीदारों के सहयोग से पर्यावरण रक्षा कोष के माध्यम से कार्य कर रहा है।
- प्रदर्शन को TREES मानक (REDD+ पर्यावरण उत्कृष्टता मानक) के विरुद्ध मापा जाएगा।
महत्त्व:
- निजी नेतृत्व के लिये मंच: लचीले एवं न्यायसंगत भविष्य के लिये शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य निजी क्षेत्र के साहसिक नेतृत्व, सतत निवेश क्षमता और राजनीतिक शक्ति का लाभ उठाने की प्रतिबद्धता के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
- कार्बन सिंक का बढ़ना: उष्णकटिबंधीय वन बड़े पैमाने पर कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं और उनके संरक्षण हेतु निवेश कर सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र अपने कार्बन क्रेडिट का स्टॉक कर सकते हैं।
- यह पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) प्राप्त करने में मदद करेगा।
- REDD+ उद्देश्यों को प्राप्त करना: यह वनों की कटाई और वन क्षरण (REDD+) तंत्र के माध्यम से उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्यों और इन उद्देश्यों हेतु ठोस प्रयास करने की दिशा में एक कदम है।
- विकास बनाम पारिस्थितिक प्रतिबद्धता: ऐसा वित्तीय प्रोत्साहन हेतु महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह विकासशील देशों को वनों की व्यापक स्तर पर कटाई कर उन पर कब्जा करने और वन-निर्भर आबादी हेतु आजीविका के अवसर प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- अन्य वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करता है: वर्ष 2030 तक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय वन क्षति को रोकना वैश्विक जलवायु, जैव विविधता तथा सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ-साथ स्थानीय लोगों एवं अन्य वन समुदायों की भलाई तथा संस्कृतियों को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
वनों की कटाई और वन क्षरण से उत्सर्जन को कम करना
- REDD+ का उद्देश्य वन संरक्षण को प्रोत्साहित करके जलवायु परिवर्तन को कम करना है।
- यह अधिकांश विकासशील देशों के उष्णकटिबंधीय जंगलों में बंद कार्बन के मूल्य का मुद्रीकरण करता है, जिससे इन देशों को जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलती है।
- REDD+ का गठन जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) द्वारा किया गया था।
उष्णकटिबंधीय वन
- उष्णकटिबंधीय वन सघन वितान (कैनोपी) वाले वन हैं जो भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में 28 डिग्री के भीतर पाए जाते हैं।
- ये स्थान बहुत आर्द्र होते हैं जहाँ प्रतिवर्ष या तो मौसमी रूप से या फिर पूरे वर्ष में 200 सेमी. से अधिक वर्षा होती है।
- यहाँ का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस और 35 डिग्री सेल्सियस के बीच समान रूप से उच्च होता है।
- इस तरह के वन एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, मैक्सिको और कई प्रशांत द्वीपों में पाए जाते हैं।
भारतीय परिदृश्य
- भारत का कुल वन क्षेत्र देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.56 प्रतिशत है।
- ‘ग्लोबल फारेस्ट वॉच’ द्वारा किया गया अवलोकन:
- इस बीच भारत में कुल उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्र में 0.38% की गिरावट आई है।
- भारत ने वर्ष 2019 और वर्ष 2020 के बीच उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्र का लगभग 38.5 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र खो दिया, जिससे देश के वृक्षों के आवरण का लगभग 14% का नुकसान हुआ।
- साथ ही इसी अवधि में पूरे देश में वृक्षों के आवरण में 0.67% की कमी भी दर्ज की गई है।
- मिज़ोरम में वन क्षेत्र में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है, जहाँ 47.2 हज़ार हेक्टेयर के वन क्षेत्र का नुकसान रिकॉर्ड किया गया है, इसके बाद मणिपुर, असम, मेघालय और नगालैंड का स्थान है।
वन संरक्षण के लिये उठाए गए कदम
- भारतीय वन नीति, 1952: इस अधिनियम में समग्र वन क्षेत्र को कुल भूमि क्षेत्र के एक- तिहाई तक बढ़ाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- राष्ट्रीय वन नीति, 1988: राष्ट्रीय वन नीति का अंतिम उद्देश्य प्राकृतिक विरासत के रूप में वनों के संरक्षण के माध्यम से पर्यावरण स्थिरता और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना है।
- वर्ष 1988 में राष्ट्रीय वन नीति ने वनों को लेकर वाणिज्यिक दृष्टिकोण में बदलाव करते हुए उनकी पारिस्थितिक भूमिका और भागीदारी प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया।
- क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैम्पा फंड): इसके तहत जब भी वन भूमि को खनन या उद्योग जैसे गैर-वन उद्देश्यों के लिये प्रयोग किया जाता है, तो उपयोगकर्त्ता एजेंसी गैर-वन भूमि के बराबर क्षेत्र में वन रोपण के लिये भुगतान करती है, या जब ऐसी भूमि उपलब्ध नहीं होती है, तो उपयोग की गई वन भूमि के दोगुने क्षेत्र का भुगतान किया जाता है।
- भारतीय वन क्ष्रेत्रों के विनियमन संबंधी विधान