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भूगोल

प्रतिपूरक वनीकरण

  • 10 Jan 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

वन सलाहकार समिति

मेन्स के लिये:

वन सलाहकार समिति द्वारा प्रारंभ की गई प्रतिपूरक वनीकरण संबंधी योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वन सलाहकार समिति (Forest Advisory Committee) ने गैर-सरकारी एजेंसियों की प्रतिपूरक वनीकरण के लिये वृक्षारोपण करने की ज़िम्मेदारी को कमोडिटी (Commodity) के रूप में पूर्ण करने संबंधी एक योजना प्रारंभ करने की अनुशंसा की है।

मुख्य बिंदु:

  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 [Forest (Conservation) Act, 1980] के प्रावधानों के तहत जब भी खनन या अवसंरचना विकास जैसे गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये वन भूमि का उपयोग किया जाता है तो बदले में उस भूमि के बराबर गैर-वन भूमि अथवा निम्नीकृत भूमि के दोगुने के बराबर भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण करना होता है।
  • परंतु वन सलाहकार समिति द्वारा प्रतिपूरक वनीकरण को कमोडिटी के रूप में अनुमति प्रदान किये जाने से यह हरित कार्यकर्त्ताओं (Green Activists) के बीच चिंता का विषय बन गया है।
  • वन सलाहकार समिति द्वारा 19 दिसंबर, 2019 को एक बैठक के दौरान ‘ग्रीन क्रेडिट योजना’ (Green Credit Scheme) पर चर्चा की गई तथा इसको प्रारंभ करने का प्रस्ताव रखा गया।
  • इसे पहली बार गुजरात सरकार द्वारा विकसित किया गया था परंतु वर्ष 2013 से इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) से अनुमति नहीं मिली है।

ग्रीन क्रेडिट स्कीम:

  • प्रस्तावित योजना निजी कंपनियों और ग्रामीण वन समुदायों को भूमि की पहचान करने तथा वृक्षारोपण की अनुमति देती है।
  • यदि वृक्षारोपण में वन विभाग के मानदंडों को पूरा किया जाता है तो तीन वर्षों के बाद उस वन भूमि को प्रतिपूरक वनीकरण के रूप में माना जाएगा।
  • ऐसे उद्योग जिन्हें प्रतिपूरक वनीकरण के लिये वन भूमि कीआवश्यकता है, उन्हें वृक्षारोपण करने वालीं इन निजी कंपनियों से संपर्क करना होगा, तथा उन्हें इसका भुगतान करना होगा।
  • उसके बाद इस भूमि को वन विभाग को हस्तांतरित किया जाएगा और इसे वन भूमि के रूप में दर्ज किया जाएगा।
  • इन वन भूमियों को तैयार करने वाली कंपनियाँ अपनी परिसंपत्तियों का व्यापार करने के लिये स्वतंत्र होंगी।
  • वर्ष 2015 में भी निम्नीकृत भूमि के लिये सार्वजनिक निजी भागीदारी के माध्यम से एक ग्रीन क्रेडिट योजना प्रारंभ करने की अनुशंसा की गई थी, परंतु इसे भी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से स्वीकृति नहीं मिल सकी।

ग्रीन क्रेडिट योजना के संभावित लाभ:

  • इस योजना के माध्यम से पारंपरिक वन क्षेत्र में रह रहे लोगों के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों को भी वृक्षारोपण हेतु प्रोत्साहन मिलेगा।
  • यह योजना ‘सतत विकास लक्ष्यों’ (Sustainable Development Goals) और ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान’ (Nationally Determined Contributions) जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सहायता करेगी।

ग्रीन क्रेडिट योजना से संबंधित समस्याएँ:

  • यह बहु उपयोगी वन क्षेत्रों के निजीकरण की समस्या उत्पन्न करती है।
  • वन भूमि के निजीकरण से एकल स्वामित्त्व वाले वन भूखंडों का निर्माण होगा जबकि वन संपदाओं पर सभी समान रूप से आश्रित हैं।
  • इस योजना में वनों का सामाजिक एवं पारिस्थितिक महत्त्व न मानते हुए उन्हें एक वस्तु के रूप में माना गया है।

भारत द्वारा वनीकरण के लिये किये गए अन्य प्रयास:

स्रोत- द हिंदू

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