भारतीय समाज
भारत में बढ़ती जनसंख्या की चुनौतियाँ
- 01 Jul 2019
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संदर्भ
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्ट्स 2019: हाइलाइट्स (The World Population Prospects 2019: Highlights) नामक एक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार वर्ष 2027 तक चीन को पछाड़ते हुए भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा।
क्या खास है रिपोर्ट में?
एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2019 में भारत की आबादी लगभग 1.37 बिलियन और चीन की 1.43 बिलियन है। वर्ष 2050 तक भारत की कुल आबादी 1.64 बिलियन के आँकड़े को पार कर जाएगी। तब तक वैश्विक जनसंख्या में 2 बिलियन लोग और जुड़ जाएंगे और यह वर्ष 2019 के 7.7 बिलियन से बढ़कर 9.7 बिलियन हो जाएगी।
रिपोर्ट में इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि इस अवधि में भारत में युवाओं की बड़ी संख्या मौजूद होगी, लेकिन आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों के अभाव में इतनी बड़ी आबादी की आधारभूत आवश्यकताओं जैसे- भोजन, आश्रय, चिकित्सा और शिक्षा को पूरा करना भारत के लिये सबसे बड़ी चुनौती होगी। उच्च प्रजनन दर, बुजुर्गों की बढ़ती संख्या और बढ़ते प्रवासन को जनसंख्या वृद्धि के कुछ प्रमुख कारणों के रूप में बताया गया है।
- भारत को मध्यवर्ती-प्रजनन समूह (Intermediate-fertility Group) वाले देशों की सूची में शामिल किया गया है, जिनमें विश्व की कुल 40 प्रतिशत जनसंख्या रहती है।
- वर्ष 2019 से वर्ष 2050 के बीच भारत विश्व की कुल जनसंख्या में 273 मिलियन का इज़ाफा करेगा।
जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव
- भारत में जनसंख्या समान रूप से नहीं बढ़ रही है। नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार, संपत्ति तथा धन के आधार पर कुल प्रजनन दर (TFR) में विभिन्नता देखने को मिलती है। यह सबसे निर्धन समूह में 3.2 बच्चे प्रति महिला, मध्य समूह में 2.5 बच्चे प्रति महिला तथा उच्च समूह में 1.5 बच्चे प्रति महिला है। इससे पता चलता है कि समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों में जनसंख्या वृद्धि अधिक देखने को मिलती है।
- जनसंख्या वृद्धि की वज़ह से गरीबी, भूख और कुपोषण की समस्या को प्रभावी ढंग से दूर करने और बेहतर स्वास्थ्य एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में बाधा आती है। इससे सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (SDG) संख्या 1, 2, 3 और 4 प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend)
भारत में युवाओं की एक बहुत बड़ी संख्या ऐसी है जो अकुशल, बेरोजगार सेवाओं और सुविधाओं पर भार जैसा है तथा अर्थव्यवस्था में उनका योगदान न्यूनतम है। किसी भी देश के लिये उसकी युवा जनसंख्या जनसांख्यिकीय लाभांश होती है, यदि वह कुशल, रोज़गारयुक्त और अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाली हो।
बढ़ती आबादी की प्रमुख चुनौतियाँ
- स्थिर जनसंख्या : स्थिर जनसंख्या वृद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम प्रजनन दर में कमी की जाए। यह बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में काफी अधिक है, जो एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
- जीवन की गुणवत्ता : नागरिकों को न्यूनतम जीवन गुणवत्ता प्रदान करने के लिये शिक्षा और स्वास्थ प्रणाली के विकास पर निवेश करना होगा, अनाजों और खाद्यान्नों का अधिक-से-अधिक उत्पादन करना होगा, लोगों को रहने के लिये घर देना होगा, स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति बढ़ानी होगी एवं सड़क, परिवहन और विद्युत उत्पादन तथा वितरण जैसे बुनियादी ढाँचे को मज़बूत बनाने पर काम करना होगा।
- नागरिकों की मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने और बढ़ती आबादी को सामाजिक बुनियादी ढाँचा प्रदान करके समायोजित करने के लिये भारत को अधिक खर्च करने की आवश्यकता है और इसके लिये भारत को सभी संभावित माध्यमों से अपने संसाधन बढ़ाने होंगे।
- जनसांख्यिकीय विभाजन : बढ़ती जनसंख्या का लाभ उठाने के लिये भारत को मानव पूंजी का मज़बूत आधार बनाना होगा ताकि वे लोग देश की अर्थव्यवस्था में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकें, लेकिन भारत की कम साक्षरता दर (लगभग 74 प्रतिशत) इस मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।
- सतत शहरी विकास : वर्ष 2050 तक देश की शहरी आबादी 87.7 मिलियन तक हो जाएगी, जिसके चलते शहरी सुविधाओं में सुधार और सभी को आवास उपलब्ध कराने की चुनौती होगी और इन सभी के लिये पर्यावरण को भी मद्देनज़र रखना ज़रूरी होगा।
- असमान आय वितरण : आय का असमान वितरण और लोगों के बीच बढ़ती असमानता अत्यधिक जनसंख्या के नकारात्मक परिणामों के रूप में सामने आएगा।
बुजुर्गों की संख्या में वृद्धि: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund) द्वारा जारी इंडिया एजिंग रिपोर्ट (India Ageing Report) 2017 के अनुसार, एक ओर जहाँ वर्ष 2015 में भारत की कुल आबादी का 8 प्रतिशत हिस्सा 60 वर्ष की उम्र से अधिक का था, वहीं वर्ष 2050 में यह संख्या 19 प्रतिशत से अधिक होने की संभावना है। बढ़ती जनसंख्या और वृद्ध आश्रितों की अधिक संख्या भारत के समक्ष दोहरी चुनौती के रूप में सामने आएगी और जिसके कारण सभी की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना भारत के लिये और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
क्या किया जा सकता है?
- भविष्य में सभी के लिये खाद्यान्न सुनिश्चित करने हेतु यह महत्त्वपूर्ण है कि कृषि को लाभकारी बनाया जाए और खाद्यान्नों की कीमतों में बहुत अधिक परिवर्तन न हो अर्थात् कमोबेश वे स्थिर रहें।
- न्यूनतम मासिक आय (Universal Basic Income) को सुरक्षा कवच के रूप में लागू करना भी बड़ी संख्या में बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार के अवसर प्रदान करने में मदद करेगा।
- वन और जल संसाधनों का उचित प्रबंधन करना होगा ताकि उन्हें सतत इस्तेमाल के लिये बचाया जा सके।
- सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) की प्राप्ति किसी भी नीति निर्माण का केंद्रबिंदु होना चाहिये।
- अपेक्षाकृत कम आय और घनी आबादी वाले भारत के उत्तरी राज्यों को दक्षिणी राज्यों से सीख लेते हुए महिलाओं की साक्षरता, स्वास्थ्य और कार्यबल में भागीदारी जैसे कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने होंगे।
- जनसंख्या में कमी, अधिकतम समानता, बेहतर पोषण, सार्वभौमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे सभी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सरकारों और मज़बूत नागरिक सामाजिक संस्थाओं के बीच बेहतर सामंजस्य की आवश्यकता है।
- बढ़ती जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) और किशोरों की बढ़ती आबादी सेवा के नए क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर तलाशने में मदद करेगी।
- AMRUT, स्मार्ट सिटी, मेक इन इंडिया और सतत विकास लक्ष्य जैसी योजनाएँ निश्चित रूप से देश की सामाजिक आधारिक संरचना को बढ़ाने में सहायता करेंगी।
आगे की राह (अन्य संभावित उपाय)
- भारत को स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च बढ़ाना होगा। वर्तमान में यह GDP का केवल 1.3% है। कुल स्वास्थ्य बजट में से परिवार कल्याण (नियोजन) पर मात्र 4% ही खर्च होता है और इसमें से भी केवल 1.5% जन्म में अंतर रखने के उपायों पर खर्च किया जाता है।
- बुजुर्ग होती आबादी के लिये निवेश को बढ़ाना होगा, क्योंकि वर्ष 2050 तक भारत में बुजुर्गों की आबादी वर्तमान से लगभग 10 गुना अधिक तक बढ़ सकती है।
- शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है, न केवल महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये बल्कि प्रजनन क्षमता में गिरावट के लिये भी। बेहतर शिक्षा महिलाओं को परिवार नियोजन के लिये सही निर्णय लेने में मदद करेगी।
- जब तक महिलाएं कार्यबल का हिस्सा नहीं होंगी, कोई भी समाज प्रजनन दर में कमी नहीं ला सकता। ऐसे में प्रभावी नीतियाँ बनाकर कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में कमी को रोकना चाहिये।
- ऐसे कुछ क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। 140 ऐसे ज़िलों की पहचान करना इस दिशा में सरकार द्वारा उठाया गया सही कदम है।
- देश में लैंगिक अनुपात में गिरावट और लड़कियों के प्रति भेदभाव काफी अधिक है। इस मुद्दे पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है ताकि लोग लड़का होने की उम्मीद में अधिक संख्या में बच्चों को जन्म न दें।
- परिवार नियोजन के साथ जोड़कर भारत कई सहस्राब्दी विकास लक्ष्य हासिल कर सकता है। मातृ मृत्यु दर और बाल मृत्यु दर कम करने के लिये परिवार नियोजन एक प्रोत्साहक और निवारक उपाय है।
- जनसंख्या वृद्धि के मुद्दे को न केवल राष्ट्रीय दृष्टिकोण से बल्कि राज्य के दृष्टिकोण से भी देखना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि विभिन्न राज्यों को जनसंख्या वृद्धि को थामने के लिये अलग-अलग कदम उठाने हेतु प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
सरकार सहित राजनेताओं, नीति-निर्माताओं और आम नागरिकों, सभी को साथ मिलकर एक कड़ी जनसंख्या नीति बनानी होगी ताकि देश की आर्थिक विकास दर बढ़ती आबादी के साथ तालमेल कायम रख सके।
अभ्यास प्रश्न: अत्यधिक जनसंख्या भारत जैसे किसी भी विकासशील देश के विकास की राह में बाधक है। तर्क सहित विवेचना कीजिये।