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डेली न्यूज़

  • 02 Apr, 2025
  • 27 min read
कृषि

भारत में कपास उत्पादन में गिरावट

प्रिलिम्स के लिये:

कपास, बीटी कपास, आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसल, व्हाइटफ्लाई, पिंक बॉलवार्म, कस्तूरी कॉटन

मेन्स के लिये:

भारत के कपास उत्पादन में चुनौतियाँ, कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

भारत, जो कभी विश्व का सबसे बड़ा कपास उत्पादक और निर्यातक था, कपास उत्पादन में तीव्र गिरावट का सामना कर रहा है, जिसका मुख्य कारण तकनीकी प्रगति का अभाव और नीतिगत निष्क्रियता है।

भारत में कपास उत्पादन में गिरावट के क्या कारण हैं?

  • प्रारंभिक वृद्धि: 1970 के दशक में सी.टी. पटेल और बी.एच. कटारकी जैसे भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित संकर कपास किस्मों ने पैदावार में उल्लेखनीय सुधार किया है।
    • बीटी (बैसिलस थुरिंजिएंसिस) कपास, जिसे वर्ष 2002-03 में प्रवर्तित किया गया था, में अमेरिकन बॉलवर्म जैसे कीटों से सुरक्षा के लिये बैसिलस थुरिंजिएंसिस जीवाणु के जीन का उपयोग किया गया था। 
      • वर्ष 2013-14 तक इसने भारत के 95% से अधिक कपास क्षेत्र को कवर कर लिया, जिससे उपज दोगुनी होकर 566 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई। इससे भारत को वर्ष 2015-16 तक विश्व का शीर्ष कपास उत्पादक और प्रमुख निर्यातक बनने में मदद मिली।
  • सफलता के बाद स्थिरता: बीटी और बोल्गार्ड-II प्रौद्योगिकियों की सफलता के बावजूद, भारत ने वर्ष 2006 के बाद से किसी भी नई आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसल कपास की किस्मों को मंजूरी नहीं दी है।
    • भारतीय संस्थानों द्वारा विकसित व्हाइटफ्लाई और पिंक बॉलवार्म प्रतिरोधी कपास जैसे स्वदेशी नवाचार अभी भी नियामक अनिश्चितता में फंसे हुए हैं। 
    • आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) की मंजूरी के बावजूद बीटी बैंगन पर वर्ष 2010 में लगाई गई रोक ने अन्य GM फसलों के क्षेत्र परीक्षणों को रोकने के लिये एक उदाहरण प्रस्तुत किया, जिससे कपास उत्पादन में सुधार के लिये नई प्रौद्योगिकियों के प्रयोग में बाधा उत्पन्न हुई।
  • संक्रमण: भारत में कपास उत्पादन में गिरावट मुख्य रूप से पिंक बॉलवर्म (PBW) के बढ़ते संक्रमण के कारण है। प्रारंभ में, बीटी कपास ने कीट नियंत्रण में प्रभावी भूमिका निभाई, लेकिन समय के साथ, PBW ने बीटी प्रोटीन के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लिया। 
    • यह कीट अब बुवाई के 40-45 दिन बाद ही फसलों को संक्रमित कर देता है तथा बीजकोषों और पुष्पों को नुकसान पहुँचाता है। 
    • बीटी कपास की विशेष कृषि ने इस प्रतिरोध को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण कपास लिंट की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में महत्त्वपूर्ण कमी आई है।
  • उत्पादन पर प्रभाव: भारत का कपास उत्पादन, जो वर्ष 2013-14 में 39.8 मिलियन गाँठ तक पहुँच गया था, वर्ष 2024-25 तक घटकर 29.5 मिलियन गाँठ हो गई है, और पैदावार 450 किलोग्राम/हेक्टेयर से नीचे गिर गई, जो चीन जैसे वैश्विक राष्ट्रों (1993 किलोग्राम/हेक्टेयर) की तुलना में काफी कम है।

Cotton_India

कपास उत्पादन में गिरावट के संबंध में चिंताएँ क्या हैं?

  • आयात पर बढ़ती निर्भरता: कपास का आयात वर्ष 2023-24 में 518.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024-25 में 1.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि निर्यात 729.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 660.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
    • उत्पादन में गिरावट के कारण भारत की व्यापारिक स्थिति परिवर्तित हो गई, आयात निर्यात से अधिक हो गया, जिससे वैश्विक कपास बाज़ार में इसकी पिछली प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त समाप्त हो गई।
  • विरोधाभासी व्यापार और तकनीकी नीतियाँ: राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान जैसे प्रमुख संस्थानों से स्वदेशी GM नवाचारों में देरी हुई है अथवा उनकी उपेक्षा की गई है।
    • यद्यपि GM फसलों के क्षेत्र परीक्षण अवरुद्ध हैं, तथापि भारत ने वर्ष 2021 में GM  सोयामील के आयात की अनुमति दे दी है।
    • GM फसलों पर रोक और विनियामक स्पष्टता के अभाव से कपास क्षेत्र में नवाचार बाधित हुआ है। विनियामक निर्णय वैज्ञानिक जोखिम मूल्यांकन पर आधारित न होकर जन भावना और विधिक हस्तक्षेप पर केंद्रित हो गए हैं।
  • वैश्विक बाज़ारों में छूटे अवसर: अमेरिका और ब्राज़ील जैसे देश, व्यापक स्तर पर जैवप्रौद्योगिकी को अपनाकर, निर्यात के उस क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर रहे हैं, जिस पर पूर्व में भारत का प्रभुत्व था।
    • घरेलू वस्त्र उद्योग वर्तमान में विदेशों से कपास की खरीद कर रहे हैं, जिससे इनपुट लागत बढ़ रही है और प्रतिस्पर्द्धा कम हो रही है।
  • कपास के तेल में गिरावट: कपास के बीज खाद्य तेल उत्पादन में योगदान देते हैं, जिससे यह सरसों और सोयाबीन के बाद भारत में तीसरा सबसे बड़ा वनस्पति तेल स्रोत बन गया है।
    • कपास उत्पादन में कमी से तेल उत्पादन प्रभावित होता है, जिससे भारत की खाद्य तेल आयात पर निर्भरता बढ़ जाती है।

नोट: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के अंतर्गत कपास विकास कार्यक्रम का उद्देश्य प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में कपास उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ावा देना है और इसे वर्ष 2014-15 से कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

भारत में कपास उत्पादन बढ़ाने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • तकनीकी हस्तक्षेप: कीट प्रतिरोधी और उच्च उपज देने वाली GM कपास संकर किस्मों (जैसे, श्‍वेत मक्षी-रोधी और पिंक बॉलवर्म-रोधी किस्में) को शीघ्रता से विनियामक स्वीकृति प्रदान किये जाने की आवश्यकता है।
  • उच्च घनत्व रोपण प्रणाली (HDPS) को बढ़ावा देना: प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की संख्या बढ़ाने और उपज में सुधार करने के लिये कपास उत्पादक राज्यों में HDPS को अपनाने को बढ़ावा देना चाहिये।
  • किसान-केंद्रित विस्तार सेवाएँ: MSP, मौसम, कीट अलर्ट और खरीद लॉजिस्टिक्स पर वास्तविक समय में अपडेट प्रदान करने हेतु कॉट-एली जैसे प्लेटफॉर्मों का विस्तार किये जाने की आवश्यकता है।
  • पश्च फसल और बाज़ार सुधार: वैश्विक बाज़ारों में गुणवत्ता आश्वासन सुनिश्चित करने के लिये क्यूआर-कोड ट्रेसेबिलिटी के साथ “कस्तूरी कॉटन” ब्रांडिंग का विस्तार करने की आवश्यकता है।
    • कपास उत्पादकता के लिये पाँच वर्षीय मिशन (बजट 2025-26 में घोषित) को क्रियान्वित करने की आवश्यकता है, जिससे उपज में वृद्धि हो, संधारणीयता सुनिश्चित हो, तथा अतिरिक्त-लंबे स्टेपल कपास की खेती (जो अपनी बेहतर गुणवत्ता, कोमलता और स्थायित्व के लिये जाना जाता है) को बढ़ावा मिले, जिससे आयात पर निर्भरता कम हो।
    • समग्र क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित करने के लिये कपास क्लस्टरों से जुड़े कताई, बुनाई और परिधान क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. भारत के कपास उत्पादन पर बीटी कपास के प्रभाव की विवेचना कीजिये और इसकी सफलता में अवरोध के कारणों का विश्लेषण कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत की काली कपासी मृदा का निर्माण किसके अपक्षय के कारण हुआ है? (2021)

(a) भूरी वन मृदा
(b) विदरी ज्वालामुखीय चट्टान
(c) ग्रेनाइट और शिस्ट
(d) शेल और चूना-पत्थर

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित विशेषताएँ भारत के एक राज्य की विशिष्टताएँ हैंः (2011)

  1. उसका उत्तरी भाग शुष्क एवं अर्द्धशुष्क है। 
  2. उसके मध्य भाग में कपास का उत्पादन होता है। 
  3. उस राज्य में खाद्य फसलों की तुलना में नकदी फसलों की खेती अधिक होती है।

उपर्युक्त सभी विशिष्टताएँ निम्नलिखित में से किस एक राज्य में पाई जाती हैं?

(a) आंध्र प्रदेश
(b) गुजरात
(c) कर्नाटक
(d) तमिलनाडु

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में अत्यधिक विकेंद्रीकृत सूती वस्त्र उद्योग के कारकों का विश्लेषण कीजिये। (2013)


भारतीय राजव्यवस्था

भारतीयों के लिये दोहरी नागरिकता पर विमर्श

प्रिलिम्स के लिये:

नागरिकता, भारत की विदेशी नागरिकता, विप्रेषण, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, अनुच्छेद 9, भारत को जानें (नो इंडिया) कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

प्रवासी भारतीयों की भूमिका, भारत के लिये दोहरी नागरिकता, नागरिकता पर संवैधानिक प्रावधान

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारतीयों के लिये दोहरी नागरिकता पर पुनः विमर्श शुरू हो गया है। चूँकि विश्व में भारत का प्रवासी समुदाय सबसे बृहद है, इसलिये इस पर पुनः चर्चा की जा रही है कि क्या केवल ओवरसीज़ सिटिजनशिप ऑफ़ इंडिया (OCI) के स्थान पर वास्तविक दोहरी नागरिकता भारत की उभरती हुई प्रवासी नीति और वैश्विक परिवर्तनों के साथ बेहतर रूप से सुमेलित होगी।

नोट: दोहरी नागरिकता से व्यक्तियों को अनेक देशों में विधिक प्रस्थिति प्राप्त होती है, जिससे उन्हें पासपोर्ट, राजनीतिक भागीदारी, वीज़ा छूट और रोज़गार के अधिकार प्राप्त होते हैं।

भारतीयों के लिये दोहरी नागरिकता पर विमर्श क्या है?

पक्ष में तर्क

  • सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय: 3.5 करोड़ से ज़्यादा भारतीय विदेश में निवास करते हैं (लगभग 40 भारतीयों में से एक)। भारत वैश्विक स्तर पर विप्रेषण का शीर्ष प्राप्तअकर्त्ता है, जिसे वर्ष 2024 में 129 बिलियन अमरीकी डॉलर प्राप्त हुआ, जो 42 बिलियन अमरीकी डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) अंतर्वाह से कहीं अधिक है।
  • OCI की सीमाएँ: OCI वास्तविक दोहरी नागरिकता नहीं है। इसके अंतर्गत राजनीतिक अधिकार (जैसे, मतदान, राजकीय पद धारण करना) नहीं प्रदान किये जाते अथवा कृषि भूमि के स्वामित्व की अनुमति नहीं प्रदान की जाती। 
    • इसे अधिकार से अधिक विशेषाधिकार के रूप में देखा जाता है, तथा इसे एकपक्षीयता रूप से रद्द किया जा सकता है, जिससे इसकी सुरक्षा कम हो जाती है।
    • विदेशों में रहने वाले कई भारतीयों के अनुसार OCI दर्जे के तहत वह द्वितीय श्रेणी के नागरिक हैं, जिससे भारत के साथ उनका संबंध कमज़ोर होता है।
  • नीतिगत परिवर्तन बिंदु: जन्मसिद्ध नागरिकता को समाप्त करने की अमेरिकी नीति जैसे उपाय प्रवासियों के प्रति अधिक क्लिष्ट होते वैश्विक परिवेश को दर्शाते हैं, जिससे दोहरी नागरिकता की आवश्यकता बढ़ रही है। 
    • इसके अतिरिक्त, कई भारतीय विदेशी देशों में अधिकार सुरक्षित करने के लिये अपनी नागरिकता का त्याग कर रहे हैं, जो भावनात्मक रूप से कठिन कदम है, जिसका समाधान वास्तविक दोहरी नागरिकता से किया जा सकता है।
  • रणनीतिक सहभागिता: वैश्विक स्तर पर एकीकृत भारतीय नागरिकता भारत की सॉफ्ट पावर और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को सुदृढ़ बनाती है, जबकि दोहरी नागरिकता से अधिक प्रवासी निवेश, राजनीतिक विषयों  और सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे वैश्विक भारतीय समुदाय को राष्ट्रीय परिसंपत्ति के रूप में स्थापित करने के सरकार के उद्देश्य को समर्थन मिल सकता है।
  • तुलनात्मक रुझान: अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस और जर्मनी सहित कई देश विशेष सुरक्षा उपायों के साथ दोहरी नागरिकता की अनुमति देते हैं। 
    • उचित विधिक ढाँचे के साथ भारत भी राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किये बिना इस प्रकार कर सकता है।

विपक्ष में तर्क

  • संवैधानिक प्रतिबंध: भारतीय संविधान (अनुच्छेद 9) के अंतर्गत दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं है। विदेशी राष्ट्रीयता प्राप्त करने से भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है।
  • लोकतांत्रिक वैधता: नागरिकता स्वाभाविक रूप से अविभक्त निष्ठा से जुड़ी हुई है। किसी दूसरे राज्य का नागरिक होते हुए भी भारत में दोहरी नागरिकता रखना या पद धारण करना लोकतांत्रिक संप्रभुता का उल्लंघन है।
  • राजनीतिक करणवाद: विशेषज्ञ एक "कंप्रडर वर्ग" (ऐसे व्यक्ति जो भारत के प्रति वास्तविक निष्ठा के बिना व्यक्तिगत या आर्थिक लाभ के लिये दोहरी राष्ट्रीयता का समुपयोजन करते हैं) के बारे में चेतावनी देते हैं।
    • दोहरी नागरिकता से प्रवासी लॉबिंग या वित्तपोषण के माध्यम से घरेलू राजनीति में बाहरी प्रभाव का खतरा बढ़ सकता है।
  • सुरक्षा और सामरिक चिंताएँ: भारत के सख्त नागरिकता ढाँचे के पीछे मूल तर्क विभाजन के बाद नागरिकों को स्पष्ट रूप से सीमांकित करना था।
    • दोहरी नागरिकता की अनुमति देने से सुरक्षा-संवेदनशील मामलों में कानूनी अस्पष्टताएँ उत्पन्न हो सकती हैं, विशेषकर यदि व्यक्ति विदेश में संवेदनशील व्यवसायों में शामिल हो।
  • पर्याप्त मौजूदा ढाँचा: विशेषज्ञों का तर्क है कि OCI कार्यक्रम राजनीतिक अधिकारों के बिना प्रवासी समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करता है, संप्रभुता बनाए रखता है तथा FDI और धन प्रेषण जैसे माध्यमों से आर्थिक सहयोग और योगदान को सक्षम बनाता है, जिससे दोहरी नागरिकता अनावश्यक हो जाती है।

Citizenship

दोहरी नागरिकता के मुद्दे पर मध्यमार्गी सुधार क्या हैं?

  • OCI फ्रेमवर्क को बढ़ाना: अधिक कानूनी स्थिरता और अधिकार प्रदान करना (जैसे, कुछ श्रेणियों के लिये भूमि स्वामित्व, सरल व्यावसायिक नियम)। OCI स्थिति को रद्द करने या अस्वीकार करने में उचित प्रक्रिया और पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
  • सहभागिता तंत्र: भारत स्थानीय शासन स्तर, जैसे पंचायतों, पर OCI के लिये सीमित राजनीतिक भागीदारी की अनुमति देने पर विचार कर सकता है।
    • पंचायत स्तर पर OCI ज्ञान के आदान-प्रदान, निवेश और विकास को बढ़ावा दे सकते हैं, तथा स्थानीय शासन में सुधार के लिये वैश्विक विशेषज्ञता का लाभ उठा सकते हैं।
    • इससे राष्ट्रीय चुनावों में मतदान का अधिकार दिये बिना भी प्रवासी समुदाय की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा। इस तरह का मॉडल संवैधानिक सुरक्षा उपायों के साथ प्रवासी समुदाय के समावेश को संतुलित करता है।
    • इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय स्तर पर, राजनीतिक मताधिकार का विस्तार किये बिना ग्लोबल इंडियन नेटवर्क ऑफ नॉलेज (Global-INK) जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से प्रवासी सलाहकार परिषदों को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिये।
  • सांस्कृतिक पहचान कार्यक्रम: ट्रेसिंग द रूट्स (विदेश मंत्रालय की पहल जो भारतीय मूल के व्यक्तियों (PIO) को भारत में अपने पूर्वजों का पता लगाने में मदद करती है), भारत को जानो कार्यक्रम, तथा प्रवासी युवाओं के लिये छात्रवृत्ति योजनाओं जैसे कार्यक्रमों के कवरेज़ का विस्तार करना ताकि वे भारतीय विरासत के साथ अपने संबंध को मज़बूत कर सकें।
  • चयनात्मक दोहरी नागरिकता: यदि कभी इसे लागू किया जाए, तो इसे रणनीतिक साझेदार देशों के नागरिकों तक सीमित रखना, तथा उच्च पदों और संवेदनशील भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से बाहर रखना।

निष्कर्ष

जैसे-जैसे विश्व एक-दूसरे से अधिक एकीकृत होते जा रहे हैं, नागरिकता के प्रति भारत का दृष्टिकोण भी विकसित होना चाहिये। OCI अधिकारों को बढ़ाने और मध्यम मार्ग सुधारों को अपनाने से प्रवासी समुदाय के साथ गहन जुड़ाव को बढ़ावा मिल सकता है। एक व्यावहारिक, चरणबद्ध दृष्टिकोण वैश्विक वास्तविकताओं को अपनाते हुए राष्ट्रीय हितों में संतुलन बनाए रखता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में दोहरी नागरिकता को रोकने वाली बाधाओं की जाँच कीजिये। क्या भारत को अपने रुख पर पुनर्विचार करना चाहिये? अपने दृष्टिकोण का औचित्य सिद्ध कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत के संदर्भ मे निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. भारत में केवल एक ही नागरिकता और एक ही अधिवास है।
  2.  जो व्यक्ति जन्म से नागरिक हो, केवल वही राष्ट्राध्यक्ष बन सकता है।
  3.  जिस विदेशी को एक बार नागरिकता दे दी गई है, किसी भी परिस्थिति में उसे इससे वंचित नहीं किया जा सकता।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/कौन-से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. आधार कार्ड का प्रयोग नागरिकता या अधिवास के प्रमाण के रूप में किया जा सकता है।
  2.  एक बार जारी होने के पश्चात् इसे निर्गत करने वाला प्राधिकरण आधार संख्या को निष्क्रिय या लुप्त नहीं कर सकता।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (d)


मुख्य परीक्षा

ऊर्जा सांख्यिकी भारत 2025

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अपनी वार्षिक ऊर्जा सांख्यिकी भारत 2025 रिपोर्ट जारी की है, जिसमें विभिन्न ऊर्जा स्रोतों में ऊर्जा भंडार, क्षमता, उत्पादन और खपत पर महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान किया गया है।

ऊर्जा सांख्यिकी भारत 2025 रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • ऊर्जा आपूर्ति और खपत के रुझान: वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति (TPES) में वर्ष 2023-24 में 7.8% की वृद्धि हुई। TPES किसी देश की कुल उपलब्ध ऊर्जा है, जिसमें घरेलू उत्पादन और आयात, निर्यातित ऊर्जा (घटाया हुआ) और अंतर्राष्ट्रीय परिवहन उपयोग शामिल है।
    • प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत 14,682 मेगाजूल (MJ) (वर्ष 2014-15) से बढ़कर 18,410 MJ (वर्ष 2023-24) हो गई, जिसकी CAGR (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) 2.55% है, जो कुशल ऊर्जा पहुँच और उन्नत जीवन स्तर का संकेत है।
    • औद्योगिक क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है, जिसकी मांग वर्ष 2014-15 में 2.42 लाख KToE से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 3.12 लाख KToE हो गई है।

TPES

  • नवीकरणीय ऊर्जा वृद्धि: भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता लगभग 21 लाख मेगावाट है, जिसमें पवन ऊर्जा (55%) का सर्वाधिक योगदान है और इसके बाद सौर तथा व्यापक जल विद्युत परियोजनाएँ हैं।
    • भारत की संस्थापित नवीकरणीय विद्युत क्षमता वर्ष 2015 में 81,000 मेगावाट थी जो वर्ष 2024 में बढ़कर लगभग 2 लाख मेगावाट हो गई, जबकि नवीकरणीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन 2 लाख गीगावाट घंटा (वर्ष 2014-15) से बढ़कर 3.7 लाख गीगावाट घंटा (वर्ष 2023-24) हो गया।

India's_ Renewable _Energy

  • राज्यवार नवीकरणीय ऊर्जा सांख्यिकी:
    • राजस्थान (20.3%), महाराष्ट्र (11.8%), गुजरात (10.5%), और कर्नाटक (9.8%) की कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में 50% से अधिक हिस्सेदारी है।

भारत ऊर्जा की बढ़ती मांग की पूर्ति हेतु क्या उपाय कर रहा है?

पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये: अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भारत के उपाय

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा सरकार की एक योजना 'उदय'(UDAY) का उद्देश्य है? (2016)

(a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्टअप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
(b) वर्ष 2018 तक देश के हर घर में विद्युत पहुँचाना।
(c) कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को समय के साथ प्राकृतिक गैस, परमाणु, सौर, पवन और ज्वारीय विद्युत संयंत्रों से बदलना।
(d) विद्युत वितरण कंपनियों के बदलाव और पुनरुद्धार के लिये वित्त प्रदान करना।

उत्तर: (d)


मेन्स: 

प्रश्न. परंपरागत ऊर्जा की कठिनाईयों को कम करने के लिये भारत की ‘हरित ऊर्जा पट्टी’ पर एक लेख लिखिये। (2013)


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