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भारतीय राजनीति

नागरिकता अधिनियम की धारा 6A

  • 19 Oct 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायलय, नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A, NGO, वर्ष 1985 का असम समझौता, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, 

मेन्स के लिये:

नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की विशेषताएँ, असम समझौते से संबंधित मुद्दे, नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के निहितार्थ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायलय ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है, जो असम में रहने वाले बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की अनुमति प्रदान करता है, तथा इसे बंधुत्व के प्रस्तावना मूल्य से जुड़ा एक वैध कानून माना है।

  • न्यायालय के अनुसार, बंधुत्व के सिद्धांत का प्रयोग असमिया नागरिकों के एक समूह के लिये चुनिंदा रूप से नहीं किया जा सकता, जबकि दूसरे समूह को "अवैध आप्रवासी" करार दिया जा सकता है।
  • याचिकाकर्त्ता NGO ने न्यायालय में तर्क दिया कि धारा 6A अवैध आप्रवासियों को प्रवेश देकर और उनकी जनसांख्यिकी में बदलाव करके असमिया लोगों के अपनी राजनीतिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखने के अधिकार को खतरे में डालती है।

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या है?

  • बहुमत के साथ निर्णय:
    • संवैधानिक वैधता की पुनः पुष्टि: न्यायालय ने फैसला सुनाया कि धारा 6A संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 का उल्लंघन नहीं करती है, जिसमें पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से आने वाले प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने के लिये 26 जनवरी, 1950 की तिथि निर्धारित की गई है।
      • धारा 6A अनुवर्ती तिथि से लागू होती है, अतः यह पूर्वर्ती संवैधानिक प्रावधानों से अलग कार्य करती है।
      • 24 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है। क्योंकि पाकिस्तानी सेना ने 26 मार्च, 1971 को पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेशी राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाने के लिये ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया था।
      • न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता यह साबित करने में असफल रहे कि धारा 6A के कारण असमिया लोगों की अपनी संस्कृति की रक्षा करने की क्षमता प्रभावित हुई है।
        • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान पहले से ही असम के सांस्कृतिक और भाषाई हितों की रक्षा करते हैं।
    • संघ की शक्ति: संसद ने अनुच्छेद 246 और संघ सूची की प्रविष्टि 17 से प्राप्त शक्तियों के तहत धारा 6A को अधिनियमित किया, जो नागरिकता, प्राकृतिककरण और विदेशियों से संबंधित है।
      • असम का विशेष नागरिकता कानून अनुच्छेद 14 (समानता) का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि राज्य की प्रवासी स्थिति शेष भारत से भिन्न थी।
    • मामले की पहचान: न्यायालय ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि असम बांग्लादेश से लगातार हो रहे प्रवास के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है।
      • इस बात पर ज़ोर दिया गया कि एक राष्ट्र सतत् विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए तथा संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करते हुए आप्रवासियों और शरणार्थियों को एक साथ समायोजित कर सकता है।
  • उत्तरदायित्त्व स्पष्ट करना: इस बात पर बल दिया गया कि इस स्थिति के लिये केवल धारा 6A को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिये।
    • वर्ष 1971 के बाद बांग्लादेश से आए आप्रवासियों का समय पर पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने में सरकार की विफलता इसका एक प्रमुख कारण थी।
  • व्यवस्था की आलोचना: न्यायालय ने पाया कि असम में अवैध आप्रवासियों की पहचान करने हेतु ज़िम्मेदार वर्तमान तंत्र और न्यायाधिकरण अपर्याप्त हैं।
    • ये प्रणालियाँ धारा 6A और संबंधित कानूनों, जैसे कि आप्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 तथा विदेशी अधिनियम, 1946 के समय पर प्रवर्तन के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
  • निगरानी की आवश्यकता: आव्रजन और नागरिकता कानूनों के प्रवर्तन के लिये न्यायिक निगरानी की आवश्यकता होती है तथा इसे प्राधिकारियों के विवेक पर नहीं छोड़ा जा सकता।
    • न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश से असम में इन कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये एक पीठ गठित करने को कहा।
  • असहमतिपूर्ण राय:
    • असहमतिपूर्ण दृष्टिकोण: असहमतिपूर्ण दृष्टिकोण ने धारा 6A को भावी प्रभाव से असंवैधानिक घोषित कर दिया, तथा इस चिंता को खारिज कर दिया कि विभिन्न जातीय समूह दूसरों के सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों का उल्लंघन करेंगे।
    • अप्रवासन और विकास: असहमति जताते हुए कहा गया कि सतत् विकास और जनसंख्या वृद्धि बिना संघर्ष के साथ-साथ चल सकते हैं। 
      • अंतर्राज्यीय आवागमन पर प्रतिबंध याचिकाकर्त्ताओं की इस दलील को स्वीकार करने के परिणामस्वरूप लगाया जा सकता है कि अप्रवासन से सतत् विकास के स्थानीय अधिकार प्रभावित होते हैं।

नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A क्या है?

  • धारा 6A:
    • इसे वर्ष 1985 के असम समझौते के बाद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 1985 के भाग के रूप में अधिनियमित किया गया था।
    • यह विधेयक 1 जनवरी, 1966 से पहले बांग्लादेश से असम में प्रवेश करने वाले प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है।
      • जो लोग 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच भारत में आए, उन्हें कुछ निर्धारित प्रक्रियाओं तथा शर्तों को पूरा करने के बाद नागरिकता प्रदान की जा सकती है।
      • हालाँकि, यह धारा 25 मार्च, 1971 के बाद असम में आये प्रवासियों को नागरिकता प्रदान नही करती है।
  • असम समझौता: 
    • असम समझौता केंद्र सरकार, असम राज्य सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता था। इसका उद्देश्य बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों के प्रवेश को रोकना था।
    • धारा 6A को असम समझौते के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों की नागरिकता को संबोधित करने के लिये एक विशेष प्रावधान के रूप में अधिनियमित किया गया था।
      • यह प्रावधान वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से पहले बड़े पैमाने पर हुए प्रवास के मुद्दे को संबोधित करता है। 
      • इसमें 25 मार्च, 1971 (बांग्लादेश के गठन का दिन) के बाद असम में प्रवेश करने वाले विदेशियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने का प्रावधान है।
      • धारा 6A का लागू होना इस महत्त्वपूर्ण अवधि के दौरान असम के सामने आई विशिष्ट ऐतिहासिक और जनसांख्यिकीय चुनौतियों को दर्शाता है।

इस निर्णय के निहितार्थ क्या हो सकते हैं?

  • आप्रवासी मान्यता: धारा 6A को बरकरार रखते हुए, निर्णय बांग्लादेश से आए आप्रवासियों (25 मार्च, 1971 से पहले असम में प्रवेश करने वाले) को कानूनी संरक्षण और नागरिकता अधिकार प्रदान करता है।
    • इससे बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में विस्थापित हुए लोगों की सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता मज़बूत होती है।
  • असमिया पहचान संरक्षण: बहुमत के साथ न्यायालय द्वारा इस धारणा को खारिज कर दिया गया कि आप्रवासियों की उपस्थिति स्वचालित रूप से असमिया लोगों के सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों का उल्लंघन करती है।
    • इसका तात्पर्य यह है कि जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के बावजूद, असमिया समुदाय के अधिकार मौजूदा संवैधानिक सुरक्षा प्रावधानों (अनुच्छेद 29 (1)) के माध्यम से संरक्षित हैं, किसके तहत उन्हें अपनी पहचान बनाए रखने की अनुमति प्राप्त है।
  • जनसांख्यिकीय बदलाव पर दबाव: आलोचकों के अनुसार, असम की सांस्कृतिक पहचान और वित्तीय संसाधन खतरे में हैं, क्योंकि निरंतर अप्रवासन के कारण राज्य के जनसांख्यिकीय संतुलन पर दबाव पड़ रहा है।
    • इससे स्थानीय स्तर पर  सख्त अप्रवासन कानूनों की मांग या यहाँ तक ​​कि सांस्कृतिक संरक्षण के लिये राजनीतिक सक्रियता को भी बढ़ावा मिल सकता है।
  • संसाधन आवंटन: आप्रवासी नागरिकता और इसके साथ आने वाले संसाधनों तथा अधिकारों के लिये पात्र बने रहेंगे, जिससे असम के पहले से ही सीमित आर्थिक संसाधनों पर दबाव और बढ़ सकता है
    •  इसके लिये समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने तथा आर्थिक असमानताओं को रोकने के लिए अधिक मज़बूत नीतियों की आवश्यकता हो सकती है।
  • अप्रवासन कानूनों पर दबाव: निर्णय में अप्रवासन कानूनों के अधिक प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता पर बल दिया गया है, विशेष रूप से वर्ष 1971 की निर्धारित तिथि के बाद प्रवेश करने वाले अवैध अप्रवासियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने पर। 
  • बांग्लादेश संबंध: वर्ष 1971 के बाद के प्रवासियों को भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता न देने से, इस निर्णय से बांग्लादेश के साथ तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि इसे भारत द्वारा इन प्रवासियों के लिये अपने पड़ोसी पर ज़िम्मेदारी डालने के रूप में देखा जा सकता है, जिससे संभावित रूप से राजनयिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो सकता है।
    • इस निर्णय से सीमा प्रबंधन, प्रवासन नियंत्रण और सुरक्षा पर क्षेत्रीय सहयोग प्रभावित हो सकता है, तथा भारत-बांग्लादेश संबंध जटिल हो सकते हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: नागरिकता अधिनियम की धारा 6A पर सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले का असम पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिये। यह फैसला मानवीय चिंताओं और स्थानीय विकास चुनौतियों के बीच किस तरह संतुलन स्थापित करता है?


  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. केवल एक नागरिकता और एक निवास स्थान का प्रावधान है। 
  2. एक नागरिक जन्म से ही राज्य का मुखिया बन सकता है। 
  3. एक बार नागरिकता प्राप्त करने वाले विदेशी को किसी भी परिस्थिति में इससे वंचित नहीं किया जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1
(B) केवल 2
(C) 1 और 3
(D) 2 और 3

उत्तर: (A)

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