असम समस्या, 35 साल पुराना असम समझौता और इसकी धारा-6

संदर्भ


केंद्र सरकार ने असम समझौते की धारा 6 को लागू करने के लिये एक उच्‍चस्‍तरीय समिति का गठन करने के साथ ही समझौते के कुछ निर्णयों व बोडो समुदाय से जुड़े कुछ मामलों हेतु उपायों को मंज़ूरी दी। यह निर्णय सरकार ने इस तथ्य के मद्देनज़र लिया है कि असम समझौते के 35 वर्षों बाद भी इसकी धारा-6 पूरी तरह से लागू नहीं हो पाई है।

क्यों हुआ था असम समझौता?

  • 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के खिलाफ पाकिस्तानी सेना की हिंसक कार्रवाई शुरू हुई तो वहाँ के लगभग 10 लाख लोगों ने असम में शरण ली।
  • बांग्लादेश बनने के बाद इनमें से अधिकांश वापस लौट गए, लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में बांग्लादेशी असम में ही अवैध रूप से रहने लगे। 
  • 1971 के बाद भी जब बांग्लादेशी अवैध रूप से असम आते रहे, तब स्थानीय लोगों को लगा कि ये लोग उनके संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेंगे।
  • इस तरह जनसंख्या में हो रहे बदलावों ने असम के मूल निवासियों में भाषायी, सांस्कृतिक और राजनीतिक असुरक्षा की भावना उत्पन्न कर दी।
  • इसकी प्रतिक्रयास्वरूप 1978 के आस-पास वहाँ एक आंदोलन शुरू हुआ, जिसका नेतृत्व वहाँ के युवाओं और छात्र संगठनों- ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और ऑल असम गण संग्राम परिषद (AAGSP) के हाथों में था। 
  • इसी समय इस मांग ने भी ज़ोर पकड़ा कि विधानसभा चुनाव कराने से पहले विदेशी घुसपैठियों की समस्या का हल निकाला जाए। 
  • बांग्लादेशियों को वापस भेजने के अलावा आंदोलनकारियों ने 1961 के बाद राज्य में आने वाले लोगों को वापस भेजे जाने या उन्हें कहीं और बसाने की मांग की। इन्हीं मुद्दों को लेकर आंदोलन उग्र होता गया और राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो गई। 
  • 1983 के विधानसभा चुनाव में राज्य की बड़ी आबादी ने मतदान का बहिष्कार किया। इसी दौरान राज्य में आदिवासी, भाषायी और सांप्रदायिक पहचान के नाम पर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। स्थिति इतनी बिगड़ी कि 1984 के आम चुनावों में राज्य के 14 संसदीय क्षेत्रों में चुनाव ही नहीं हो पाए।

क्या है असम समझौता?

  • असम में घुसपैठियों के ख़िलाफ़ वर्ष 1979 से चले लंबे आंदोलन और 1983 की भीषण हिंसा के बाद समझौते के लिये बातचीत की प्रक्रिया शुरू हुई।
  • इसके परिणामस्वरूप 15 अगस्त 1985 को केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ जिसे असम समझौते (Assam Accord) के नाम से जाना जाता है।
  • आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और कुछ अन्य संगठनों तथा भारत सरकार के बीच हुआ यह समझौता ही असम समझौता कहलाता है।
  • असम समझौते के मुताबिक 25 मार्च, 1971 के बाद असम में आए सभी बांग्लादेशी नागरिकों को यहाँ से जाना होगा, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान।
  • इस समझौते के तहत 1951 से 1961 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और मतदान का अधिकार देने का फैसला लिया गया। 
  • इस समझौते के तहत 1961 से 1971 के बीच असम आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।
  • इस समझौते का पैरा 5.8 कहता है कि 25 मार्च, 1971 या उसके बाद असम में आने वाले विदेशियों को कानून के अनुसार निष्कासित किया जाएगा। ऐसे विदेशियों को बाहर निकालने के लिये तात्कालिक एवं व्यावहारिक कदम उठाए जाएंगे।
  • इस समझौते के तहत विधानसभा भंग करके 1985 में चुनाव कराए गए, जिसमें नवगठित असम गण परिषद को बहुमत मिला और AASU के अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत असम के मुख्यमंत्री बने।
  • इस समझौते में असम के आर्थिक विकास के लिये पैकेज भी दिया गया तथा असमिया भाषी लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषायी पहचान सुरक्षित रखने के लिये विशेष कानूनी और प्रशासनिक उपाय किये गए।
  • इसके साथ ही असम समझौते के आधार पर मतदाता सूची में भी संशोधन किया गया। 

NRC का मुद्दा


नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस या नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर है NRC, जिसे सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल करने के लिये बनाया गया है। लेकिन मज़े की बात यह है कि देशभर में केवल असम में ही NRC बनाया गया है। इसे अपडेट करने के नियम तथा प्रावधान नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम, 2003 में दिये गए हैं। NRC को अपडेट करने का काम असम सरकार और भारत सरकार मिलकर कर रहे हैं।

गौरतलब है कि 2005 में 1951 के इस NRC को अपडेट करने का फैसला किया गया, लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ पाया। एक अनुमान के अनुसार, असम में मुसलमानों की आबादी 34 फीसदी से ज़्यादा है और इनमें से 85 फीसदी ऐसे हैं जो बाहर से आकर बसे हैं। इनमें ज़्यादातर बांग्लादेशी हैं, जो अलग-अलग समय में आते रहे और राज्य के विभिन हिस्सों में बसते रहे। बाद में इस मुद्दे को लेकर मामले विभिन्न अदालतों तक गए और 2015 में सभी मामलों को इकट्ठा कर सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में लाया गया। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम में NRC को अपडेट करने का काम किया जा रहा है।

क्या करेगी उच्चस्तरीय समिति?


सरकार ने पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से ठंडे बस्ते में पड़े असम समझौते को प्रभावी ढंग से लागू करने के उपाय सुझाने के लिये एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है। सरकार ने बोड़ो समुदाय से संबंधित लंबित मुद्दों के समाधान के लिये भी कई कदम उठाने का फैसला किया है।

  • यह समिति असम समझौते की धारा 6 के संदर्भ में संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक  सुरक्षात्‍मक उपायों से संबंधित सिफारिशें देगी।
  • असम समझौते की धारा 6 को लागू करने में 1985 से अब तक किये गये कार्यों के प्रभाव का मूल्‍यांकन करेगी।
  • सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करेगी और असमिया लोगों के लिये असम विधानसभा तथा स्‍थानीय निकायों में आरक्षण के लिये सीटों की संख्‍या का आकलन करेगी।
  • असमी और अन्‍य स्‍थानीय भाषाओं को संरक्षित करने के लिये उपाय सुझाएगी।
  • असम सरकार के तहत रोज़गार में आरक्षण का प्रतिशत तय करने के तरीके सुझाएगी।
  • असमिया लोगों की सांस्‍कृतिक, सामाजिक, भाषायी पहचान व विरासत को सुरक्षित, संरक्षित तथा प्रोत्‍साहित करने के लिये अन्‍य उपायों की आवश्‍यकता का आकलन करेगी।
  • समिति के गठन से असम समझौते को पूरी तरह लागू करने का मार्ग प्रशस्‍त होगा और यह असम के लोगों के लंबे समय से चली आ रही आशाओं को पूरा करेगा।

क्या है बोडोलैंड का मुद्दा?

  • बोडो ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी हिस्से में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति है।
  • 1960 के दशक से ही बोडो अपने लिये अलग राज्य की मांग करते आए हैं।
  • असम में इनकी जमीन पर अन्य समुदायों का आकर बसना और ज़मीन पर बढ़ता दबाव ही बोडो असंतोष की वज़ह है।
  • अलग राज्य के लिए बोडो आंदोलन 1980 के दशक के बाद हिंसक हो गया और तीन धड़ों में बंट गया। पहले का नेतृत्व नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड ने किया, जो अपने लिये अलग राज्य चाहता था। दूसरा समूह बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स है, जिसने अधिक स्वायत्तता की मांग की। तीसरा धड़ा ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन है, जिसने मध्यम मार्ग की तलाश करते हुए राजनीतिक समाधान की मांग की।
  • बोडो अपने क्षेत्र की राजनीति, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधन पर जो वर्चस्व चाहते थे, वह उन्हें 2003 में मिला। तब बोडो समूहों ने हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा की राजनीति में आने पर सहमति जताई।
  • इसी का नतीजा था कि बोडो समझौते पर 2003 में हस्‍ताक्षर किये गए और भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का गठन हुआ।

सरकार ने दी हालिया मंज़ूरी

  • केंद्र सरकार ने असम समझौते पर अमल के अलावा बोडो समुदाय से संबंधित लंबे समय से चले आ रहे मामलों को पूरा करने के विभिन्‍न उपायों को भी मंज़ूरी दी है।
  • बोडो समुदाय में व्याप्त असंतोष के मद्देनज़र केंद्र सरकार ने बोडो म्‍यूजियम-सह-भाषा व सांस्‍कृतिक अध्‍ययन केंद्र की स्‍थापना को मंज़ूरी दी है।
  • कोकराझार में फिलहाल काम कर रहे ऑल इंडिया रेडियो स्‍टेशन व दूरदर्शन केंद्र को आधुनिक बनाया जाएगा।
  • Bodoland Territorial Area Districts (BTAD) से होकर जाने वाली एक सुपरफास्‍ट ट्रेन का नाम अरोनई एक्‍सप्रेस रखने को भी मंज़ूरी दी है।

बोडोलैंड टेरीटोरियल ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट के चार जिलों- कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदालगुड़ी में लगभग 30 फीसदी आबादी बोडो जनजाति की है।

    • राज्‍य सरकार भूमि नीति और भूमि कानूनों के संबंध में आवश्‍यक कदम उठाएगी तथा स्‍थानीय समुदायों के रीति-रिवाजों, परंपराओं और भाषायी रिसर्च और डॉक्यूमेंटेशन के लिये संस्‍थाओं की स्‍थापना करेगी

    असम समझौते की धारा-6


    असम समझौते की धारा-6 में असमियों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और धरोहर के संरक्षण और उसे बढावा देने के लिये उचित संवैधानिक, विधायी तथा प्रशासनिक उपाय करने का प्रावधान है। समिति इन प्रावधानों को लागू करने के लिये 1985 से अब तक उठाए गए कदमों की समीक्षा करेगी।

    राज्य में असमिया बनाम बाहरी का मुद्दा कोई नया नहीं है, बल्कि देश की आज़ादी के बाद से यह वहाँ के ज्वलंत मुद्दों में सबसे ऊपर रहा है। वर्तमान में चर्चा में रहने वाला NRC यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस इसी मुद्दे की देन है। असमिया बनाम बाहरी का मुद्दा तब भी इतना प्रबल था कि देश में असम ही एकमात्र राज्य था जहाँ 1951 की जनगणना के बाद NRC बनाया गया था।