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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का दोहन

  • 02 Jan 2025
  • 13 min read

स्रोत: एलएम

प्रिलिम्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, 500-गीगावाट गैर-जीवाश्म, सौर ऊर्जा, ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉपसौर, लघु जल विद्युत, बायोमास ऊर्जा, अपशिष्ट से ऊर्जा, खंडित भूमि स्वामित्व, ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रीन हाइड्रोजन, डिजिटाइज्ड भूमि रिकॉर्ड, ट्रांसमिशन लाइनें

मेन्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने राज्यों से पवन ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये भूमि उपलब्धता को सुगम बनाने पर ज़ोर दिया है। 

वर्तमान पवन ऊर्जा क्षमता 47.95 गीगावाट है, सरकार का लक्ष्य इसे दोगुना करके 100 गीगावाट करना तथा भूमि तक पहुँच बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा लक्ष्य तक पहुँचने के लिये हमारे देश की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

नवीकरणीय ऊर्जा क्या है?

  • नवीकरणीय ऊर्जा: नवीकरणीय ऊर्जा प्राकृतिक, पुनःपूर्ति योग्य स्रोतों जैसे सौर, पवन, जल विद्युत, बायोमास, भू-तापीय और ज्वार से प्राप्त ऊर्जा है। 
    • ये स्रोत सतत् और पर्यावरण के अनुकूल हैं, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है।
  • प्रकार:
    • सौर ऊर्जा: सौर पैनलों या सौर तापीय प्रणालियों का उपयोग करके सूर्य के विकिरण से प्राप्त की जाती है। 
    • पवन ऊर्जा: पवन टर्बाइनों द्वारा पवन की गतिज ऊर्जा को विद्युत् में परिवर्तित करके उत्पन्न की जाती है । 
    • जलविद्युत: प्रवाहित जल (नदियों, बाँधों, झरनों) की ऊर्जा का उपयोग करके उत्पादित।
    • बायोमास ऊर्जा: हीटिंग, विद्युत् और जैव ईंधन के लिये पौधों के अवशेषों और पशु अपशिष्ट जैसे कार्बनिक पदार्थों से निर्मित।
    • भू-तापीय ऊर्जा: विद्युत उत्पादन और प्रत्यक्ष तापन के लिये पृथ्वी की आंतरिक ऊष्मा (गर्म पानी, भाप) से प्राप्त।
    • ज्वारीय एवं तरंग ऊर्जा: विद्युत उत्पन्न करने के लिये समुद्री जल की गति (गुरुत्वाकर्षण खिंचाव या सतही तरंगें) का उपयोग करती है।

नवीकरणीय ऊर्जा में भारत की क्षमता क्या है?

  • सौर ऊर्जा: राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (NISE) के अनुसार, वर्ष में 300 से अधिक ग्रीष्म ऋतू में ऊर्जा की क्षमता 748 गीगावाट है तथा सौर पीवी मॉड्यूल बंजर भूमि के 3% हिस्से को कवर करते हैं।
    • राजस्थान, गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्य सौर ऊर्जा विकास में अग्रणी हैं, जहाँ विशाल सौर पार्क राष्ट्रीय ग्रिड में योगदान दे रहे हैं।
  • पवन ऊर्जा: भारत की पवन ऊर्जा क्षमता 300 गीगावाट से अधिक है, जो मुख्य रूप से तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में केंद्रित है।
    • गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्य तटीय क्षेत्रों में अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाएँ क्षमता में महत्त्वपूर्ण रूप से वृद्धि कर सकती हैं।
  • जल विद्युत: भारत में अनुमानतः 148 गीगावाट से अधिक जल विद्युत क्षमता है, जिसमें से 46 गीगावाट का अभी तक दोहन नहीं हुआ है।
    • लघु जलविद्युत संयंत्र, विशेष रूप से हिमालयी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में (<25 मेगावाट) 20 गीगावाट की क्षमता प्रदान करते हैं।
  • भू-तापीय ऊर्जा: लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और झारखंड भारत के उल्लेखनीय राज्य हैं जहाँ 10 गीगावाट भू-तापीय ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है।
    • पुगा घाटी (लद्दाख) में परियोजनाएँ भूतापीय ऊर्जा की अप्रयुक्त क्षमता को उजागर करती हैं।
  • महासागरीय ऊर्जा: समुद्री जल में ज्वार, लहर और महासागरीय तापीय ऊर्जा संग्रहित होती है। इनमें से, भारत में 40GW तरंग ऊर्जा का दोहन संभव है।

भारत में पवन ऊर्जा सहित नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • भूमि की कमी और उपयोग संबंधी संघर्ष: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र, विशेष रूप से पवन ऊर्जा क्षेत्र को मुख्यतः सघन आबादी वाले या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में भूमि और आदर्श पवन ऊर्जा स्थलों तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • किसान और स्थानीय समुदाय पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये भूमि पुनः आबंटित करने के प्रति प्रतिरोधी हैं।
    • गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में उपयुक्त भूमियों का समेकन करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है, जहाँ भूमि प्रायः विभिन्न मालिकों के बीच विभाजित होती है।
  • वित्तपोषण और निवेश संबंधी मुद्दे: पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये पर्याप्त अग्रिम पूंजी की आवश्यकता होती है। लाभ में अनिश्चितता और लंबी पुनर्भुगतान अवधि निजी निवेशकों को हतोत्साहित करती है।
  • ग्रिड एकीकरण और कटौती: पवन ऊर्जा की अस्थायी प्रकृति और मौसमी पवन प्रतिरूप आपूर्ति अस्थिरता का कारण बनते हैं, तथा पीक सीजन के दौरान ग्रिड कटौती से लाभप्रदता कम हो जाती है।
  • उच्च गुणवत्ता वाली साइटों की कमी: पवन ऊर्जा के दृष्टिकोण से अनुकूलतम स्थान पहले से ही अधिग्रहीत हैं, जिसके कारण नई परियोजनाओं को कम व्यवहार्य क्षेत्रों में स्थापित करने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है।
  • अनुमोदन में विलंब और नीतिगत अंतराल: पवन ऊर्जा परियोजनाओं को पर्यावरण, वन्यजीव और वन संबंधी मंजूरी प्राप्त करने में लंबे समय तक विलंब का सामना करना पड़ता है।
    • लगातार वित्तीय प्रोत्साहन या दीर्घकालिक नीतियों का अभाव निवेशकों का विश्वास कम करता है।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा की चुनौतियाँ: उच्च स्थापना लागत, उन्नत प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं और सीमित सरकारी समर्थन के कारण अपतटीय पवन ऊर्जा की क्षमता का अभी तक दोहन नहीं हो पाया है।

नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये भारत की पहल क्या है?

आगे की राह

  • भूमि तक पहुँच में सुधार: अप्रयुक्त सरकारी भूमि के अधिग्रहण के लिये पारदर्शी नीतियाँ स्थापित करना तथा डिजिटल भूमि अभिलेखों और नामित नवीकरणीय क्षेत्रों के माध्यम से प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना। 
    • दोहरे उपयोग वाली परियोजनाओं को बढ़ावा देना, जहाँ भूमि उपयोग को अनुकूलतम बनाने के लिये सौर फार्म कृषि या चरागाह के साथ-साथ मौजूद हों।
  • ट्रांसमिशन अवसंरचना को मज़बूत करना: नवीकरणीय परियोजनाओं को मांग केंद्रों से जोड़ने के लिये हरित ऊर्जा गलियारों के विकास में तेज़ी लाना।
    • विद्युत उत्पादन को स्थिर करने और परिवर्तनशीलता को कम करने के लिये ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना में तेज़ी लाना और हाइब्रिड प्रणालियों (सौर+पवन+भंडारण) में निवेश करना।
  • नीतियों में सामंजस्य स्थापित करना: राज्य-स्तरीय असंगतियों को दूर करने के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा नीति तैयार करना। 
    • निवेश आकर्षित करने के लिये कर छूट, ब्याज सब्सिडी और प्रदर्शन-आधारित पुरस्कार जैसे दीर्घकालिक प्रोत्साहन प्रदान करना।
    • सब्सिडी देकर और आयात पर निर्भरता कम करके "मेक इन इंडिया" के तहत सौर पैनलों और पवन टर्बाइनों के स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करना।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करना: अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं का संचालन करना तथा विकास को बढ़ावा देने के लिये विशेष उपकरणों पर आयात शुल्क कम करते हुए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • वित्तपोषण और अनुसंधान एवं विकास: किफायती वित्तपोषण उपलब्ध कराने के लिये हरित बैंकों की स्थापना करना तथा कार्यकुशलता में सुधार और लागत कम करने के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान में निवेश करना।
  • पर्यावरणीय स्थिरता और कौशल विकास: संपूर्ण पर्यावरणीय आकलन सुनिश्चित करना, ऊर्जा घटकों के पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना और सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम आयोजित करना। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के विस्तार में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं, तथा वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन लक्ष्य को पूरा करने के लिये इनका समाधान कैसे किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा सरकार की एक योजना 'उदय'(UDAY) का उद्देश्य है? (2016)
(a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्टअप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
(b) वर्ष 2018 तक देश के हर घर में विद्युत पहुँचाना।
(c) कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को समय के साथ प्राकृतिक गैस, परमाणु, सौर, पवन और ज्वारीय विद्युत संयंत्रों से बदलना।
(d) विद्युत वितरण कंपनियों के बदलाव और पुनरुद्धार के लिये वित्त प्रदान करना।

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. परंपरागत ऊर्जा की कठिनाइयों को कम करने के लिये भारत की ‘हरित ऊर्जा पट्टी’ पर लेख लिखिये।(2013)

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