डीप टेक स्टार्टअप्स
प्रिलिम्स के लिये:डीप टेक स्टार्टअप्स, डीप टेक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा, क्वांटम कंप्यूटिंग मेन्स के लिये:डीप टेक स्टार्टअप और भारत |
चर्चा में क्यों?
सरकार डीप टेक स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिये डिजिटल इंडिया इनोवेशन फंड लॉन्च करेगी।
डीप टेक:
- परिचय:
- डीप टेक या डीप टेक्नोलॉजी स्टार्टअप व्यवसायों के एक वर्ग को संदर्भित करता है जो मूर्त इंजीनियरिंग नवाचार या वैज्ञानिक खोजों और अग्रिमों के आधार पर नवाचार को बढ़ावा देता है।
- सामान्यतः ऐसे स्टार्टअप कृषि, लाइफ साइंस, रसायन विज्ञान, एयरोस्पेस और हरित ऊर्जा पर काम करते हैं, हालाँकि इन तक ही सीमित नहीं हैं।
- डीप टेक की विशेषताएँ:
- प्रभाव: डीप टेक नवाचार बहुत मौलिक हैं और मौजूदा बाज़ार को बाधित करते हैं या एक नया विकास करते हैं। डीप टेक पर आधारित नवाचार अक्सर जीवन, अर्थव्यवस्था और समाज में व्यापक परिवर्तन लाते हैं।
- समयावधि और स्तर: प्रौद्योगिकी को विकसित करने और बाज़ार में उपलब्धता के लिये डीप टेक की आवश्यक समयावधि सतही प्रौद्योगिकी विकास (जैसे मोबाइल एप एवं वेबसाइट) से कहीं अधिक है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता को विकसित होने में दशकों लग गए और यह अभी भी पूर्ण नहीं है।
- पूंजी: डीप टेक को अक्सर अनुसंधान और विकास, प्रोटोटाइप, परिकल्पना को मान्य करने एवं प्रौद्योगिकी विकास के लिये प्रारंभिक चरणों में पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है।
भारत में डीप टेक स्टार्टअप्स की स्थिति:
- वर्ष 2021 के अंत में भारत में 3,000 से अधिक डीप टेक स्टार्टअप थे, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग (Machine Learning- ML), इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा, क्वांटम कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स आदि जैसी नए युग की तकनीकों में काम कर रहे थे।
- NASSCOM के अनुसार, भारत में डीप टेक स्टार्टअप्स ने वर्ष 2021 में वेंचर फंडिंग में 2.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाए और अब यह देश के समग्र स्टार्टअप परितंत्र का 12% से अधिक हिस्सा है।
- पिछले एक दशक में भारत का डीप टेक इकोसिस्टम 53% बढ़ा है और यह अमेरिका, चीन, इज़रायल एवं यूरोप जैसे विकसित बाज़ारों के बराबर है।
- भारत के डीप टेक स्टार्टअप्स में बंगलूरू की हिस्सेदारी 25-30% है, इसके बाद दिल्ली-एनसीआर (15-20%) और मुंबई (10-12%) का स्थान है।
- डीप टेक स्टार्टअप ड्रोन डिलीवरी और कोल्ड चेन प्रबंधन से लेकर जलवायु कार्रवाई एवं स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
डीप टेक के समक्ष चुनौतियाँ:
- डीप टेक स्टार्टअप्स के लिये वित्तपोषण सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है क्योंकि अभी तक 20% से कम स्टार्टअप्स को वित्तपोषण सुविधा प्राप्त है।
- सरकारी वित्त का कम उपयोग किया जाता है, साथ ही ऐसे स्टार्टअप के लिये घरेलू पूंजी की कमी होती है।
- टैलेंट और मार्केट एक्सेस, रिसर्च गाइडेंस, डीप टेक के बारे में निवेशकों की समझ, कस्टमर एक्विज़िशन एवं लागत उनके सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
संबंधित पहल:
- अटल न्यू इंडिया चैलेंज को नीति आयोग के अटल इनोवेशन मिशन (Atal Innovation Mission- AIM) के तहत लॉन्च किया गया है, जिसका उद्देश्य नवाचार हब, ग्रैंड चैलेंजेस, स्टार्टअप व्यवसाय और अन्य स्व-रोज़गार गतिविधियों विशेष रूप से प्रौद्योगिकी संचालित क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिये एक मंच के रूप में काम करना है।
- वर्ष 2021 में NASSCOM द्वारा शुरू किये गए डीप टेक क्लब (DTC) 2.0 का उद्देश्य उन 1,000 से अधिक फर्मों पर प्रभाव को बढ़ाना है जो AI, ML, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, रोबोटिक्स और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों का लाभ उठा रही हैं।
आगे की राह
- रोडमैप का पुनर्मूल्यांकन:
- भारतीय स्टार्टअप परितंत्र की निरंतर वृद्धि वर्तमान युग की लगातार उभरती नई तकनीकों से प्रेरित है, विभिन्न संगठनों और सरकार को डीप टेक अपनाने के लिये अपने रोडमैप का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
- भविष्य में 5G, सरल एवं सुग्राह्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, क्लाउड-नेटिव तकनीकों, साइबर सुरक्षा जाल और ग्राहक डेटा प्लेटफाॅर्म जैसी तकनीकों का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाएगा। ऐसे कई कारक हैं जो विकासशील भारतीय स्टार्टअप परितंत्र को डीप टेक के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्त्व प्रदान कर सकते हैं।
- CSR बजट उपयोगिता:
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व की सहायता से सामाजिक क्षेत्र को पारंपरिक रूप से लाभ होता रहा है लेकिन हमें रणनीतिक तकनीकों को बनाने के लिये इस विस्तारित कोष का भी लाभ उठाने की आवश्यकता है।
- बड़ी फर्मों को उनके बजट के कुछ अंश का योगदान करने के लिये प्रोत्साहित करके देश की रणनीतिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। इसका उपयोग सरकार विशिष्ट रणनीतिक तकनीकी स्टार्टअप के विकास में कर सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. अटल नवाचार मिशन किसके तहत स्थापित किया गया है? (2019) (a) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग उत्तर: (c) |
स्रोत: पी.आई.बी.
यौन उत्पीड़न पर राष्ट्रीय महिला आयोग की चिंताएँ
प्रिलिम्स के लिये:यौन उत्पीड़न पर राष्ट्रीय महिला आयोग की चिंताएँ, NCW, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, संरक्षण और निवारण) विधेयक, 2012, संशोधित विधेयक वर्ष 2013 में संसद द्वारा पारित। मेन्स के लिये:राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की पृष्ठभूमि और शासनादेश। |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women- NCW) ने सभी राज्यों से कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न कानून को सख्ती से लागू करने को कहा है।
राष्ट्रीय महिला आयोग की चिंताएँ:
- राष्ट्रीय महिला आयोग ने कोचिंग केंद्रों और शैक्षणिक संस्थानों में यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है तथा कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 एवं उसके तहत स्थापित दिशा-निर्देशों को सख्ती से लागू करने को कहा है।
- हाल के वर्षों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न विश्व भर में महिलाओं के जीवन को प्रभावित करने वाले सबसे अधिक दबाव वाले मुद्दों में से एक बनता जा रहा है।
- NCW को वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों की लगभग 31,000 शिकायतें प्राप्त हुईं, जो कि वर्ष 2014 के बाद सबसे अधिक हैं।
- इनमें करीब 54.5 फीसदी शिकायतें उत्तर प्रदेश से मिलीं। दर्ज शिकायतों की संख्या दिल्ली में 3,004, महाराष्ट्र में 1,381, बिहार में 1,368 और हरियाणा में 1,362 है।
- महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के अंतर्गत घरेलू हिंसा, विवाहित महिलाओं का उत्पीड़न या दहेज उत्पीड़न, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, बलात्कार और यौन शोषण का प्रयास, साइबर अपराध आदि आते हैं।
यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2013:
- भूमिका: सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य 1997 मामले के एक ऐतिहासिक फैसले में 'विशाखा दिशा-निर्देश' दिये।
- इन दिशा-निर्देशों ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (यौन उत्पीड़न अधिनियम) का आधार बनाया।
- तंत्र: अधिनियम कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को परिभाषित करता है और शिकायतों के निवारण के लिये एक तंत्र प्रदान करता है।
- प्रत्येक नियोक्ता के लिये आवश्यक है कि वह प्रत्येक कार्यालय या शाखा में एक आंतरिक शिकायत समिति का गठन करे।
- शिकायत समितियों को साक्ष्य एकत्र करने के लिये दीवानी न्यायालयों की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
- शिकायत समितियों को शिकायतकर्त्ता द्वारा अनुरोध किये जाने पर जाँच शुरू करने से पहले सुलह का प्रावधान करना होता है।
- दंडात्मक प्रावधान: नियोक्ताओं के लिये दंड निर्धारित किया गया है। अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने पर जुर्माना देना होगा।
- बार-बार उल्लंघन के मामले में अधिक दंड और व्यवसाय संचालित करने के लिये जारी लाइसेंस या पंजीकरण को रद्द किया जा सकता है।
- प्रशासन की ज़िम्मेदारी: राज्य सरकार प्रत्येक ज़िलाधिकारी को अधिसूचित करेगी, जो एक स्थानीय शिकायत समिति (Local Complaints Committee- LCC) का गठन करेगा ताकि असंगठित क्षेत्र या छोटे प्रतिष्ठानों में महिलाओं को यौन उत्पीड़न से मुक्त वातावरण में कार्य करने में सक्षम बनाया जा सके।
NCW की पृष्ठभूमि और अधिदेश:
- परिचय:
- राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत NCW को जनवरी 1992 में एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया था।
- प्रथम आयोग का गठन 31 जनवरी, 1992 को श्रीमती जयंती पटनायक की अध्यक्षता में किया गया था।
- आयोग में एक अध्यक्ष, एक सदस्य सचिव और पाँच अन्य सदस्य होते हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष को केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाता है।
- अधिदेश और कार्य:
- यह मिशन महिलाओं को समानता और समान भागीदारी प्रदान करने हेतु उपयुक्त नीति निर्माण, विधायी उपायों आदि के माध्यम से उनको अधिकार प्रदान कर जीवन के सभी क्षेत्रों में सक्षम बनाने की दिशा में प्रयास करता है।
- इसके कार्य हैं:
- महिलाओं के लिये संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करना।
- उपचारात्मक विधायी उपायों की सिफारिश करना।
- शिकायतों के निवारण को सुगम बनाना।
- महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देना।
- इसने बड़ी मात्रा में शिकायतें प्राप्त की हैं और त्वरित न्याय प्रदान करने हेतु कई मामलों का स्वत: संज्ञान में लिया है।
- इसने बाल विवाह, प्रायोजित कानूनी जागरूकता कार्यक्रमों, पारिवारिक महिला लोक अदालतों के मुद्दे को उठाया और निम्नलिखित कानूनों की समीक्षा की:
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961
- गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994
- भारतीय दंड संहिता 1860
महिलाओं के कल्याण हेतु प्रमुख कानूनी ढाँचा:
- संवैधानिक सुरक्षा:
- मौलिक अधिकार:
- यह सभी भारतीयों को समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14), राज्य द्वारा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं [अनुच्छेद 15 (1)] और महिलाओं के पक्ष में राज्य द्वारा किये जाने वाले विशेष प्रावधान [अनुच्छेद 15(3)] की गारंटी देता है।
- मौलिक कर्तव्य:
- यह सुनिश्चित करता है कि अनुच्छेद 51(A) के अंतर्गत महिलाओं की गरिमा के लिये अपमानजनक व्यवहार प्रतिबंधित है।
- मौलिक अधिकार:
- विधायी संरचना:
- महिला अधिकारिता योजनाएँ:
- बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना
- वन स्टॉप सेंटर योजना
- उज्ज्वला: तस्करी की रोकथाम और व्यावसायिक यौन शोषण के पीड़ितों के बचाव, पुनर्वास व पुन: एकीकरण के लिये एक व्यापक योजना।
- स्वाधार गृह
- नारी शक्ति पुरस्कार
- महिला पुलिस वालंटियर्स
- महिला शक्ति केंद्र (एमएसके)
- निर्भया फंड।
आगे की राह
- कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम को लेकर जे.एस. वर्मा समिति (J.S. Verma Committee) की सिफारिशों को लागू करने की आवश्यकता है:
- रोज़गार न्यायाधिकरण: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम में एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) के बजाय एक रोज़गार न्यायाधिकरण की स्थापना की जानी चाहिये।
- स्वयं की प्रक्रिया बनाने की शक्ति: शिकायतों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करने के लिये समिति ने प्रस्ताव दिया कि न्यायाधिकरण को एक दीवानी अदालत के रूप में कार्य नहीं करना चाहिये, लेकिन प्रत्येक शिकायत से निपटने हेतु उसे अपनी स्वयं की प्रक्रिया का चयन करने की शक्ति दी जानी चाहिये।
- अधिनियम के दायरे का विस्तार: घरेलू कामगारों को अधिनियम के दायरे में शामिल किया जाना चाहिये।
- समिति ने कहा कि किसी भी तरह के 'अवांछनीय व्यवहार' को शिकायतकर्त्ता की व्यक्तिपरक धारणा से देखा जाना चाहिये, जिससे यौन उत्पीड़न की परिभाषा का दायरा व्यापक हो सके।
- वर्तमान भारत में महिलाओं की भूमिका में लगातार वृद्धि हो रही है तथा राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की भूमिका का विस्तार समय की आवश्यकता है।
- इसके अलावा राज्य आयोगों को भी अपने दायरे का विस्तार करना चाहिये।
- महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा समानता, विकास, शांति के साथ-साथ महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों की पूर्ति में एक बाधा बनी हुई है।
- कुल मिलाकर सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) का वादा- ‘किसी को पीछे नहीं छोड़ना’, महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को समाप्त किये बिना पूरा नहीं किया जा सकता है।
- महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का समाधान केवल कानून के तहत न्यायालयों में ही नहीं किया जा सकता है बल्कि इसके लिये एक समग्र दृष्टिकोण और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदलना आवश्यक है।
- इसके लिये कानून निर्माताओं, पुलिस अधिकारियों, फोरेंसिक विभाग, अभियोजकों, न्यायपालिका, चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग, गैर-सरकारी संगठनों, पुनर्वास केंद्रों सहित सभी हितधारकों को एक साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ अभिनव उपाय सुझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2014) |
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:बाजरा और इसका महत्त्व, UNEP, FAO, खाद्य सुरक्षा मेन्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 और इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारत ने अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 को 'जन आंदोलन' बनाने के साथ-साथ भारत को 'वैश्विक पोषक अनाज हब (Global Hub for Millets)' के रूप में स्थापित करने के दृष्टिकोण को साझा किया है।
अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष:
- परिचय:
- वर्ष 2023 में अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष (International Year of Millets- IYM) मनाने के भारत के प्रस्ताव को वर्ष 2018 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा अनुमोदित किया गया था तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में घोषित किया है।
- इसे संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्ताव द्वारा अपनाया गया और इसका नेतृत्व भारत ने किया तथा 70 से अधिक देशों ने इसका समर्थन किया।
- उद्देश्य:
- खाद्य सुरक्षा और पोषण में पोषक अनाज/बाजरा/मोटे अनाज के योगदान के बारे में जागरूकता का प्रसार करना।
- पोषक अनाज के टिकाऊ उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार के लिये हितधारकों को प्रेरित करना।
- उपर्युक्त दो उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये अनुसंधान और विकास एवं विस्तार सेवाओं में निवेश बढ़ाने पर ध्यान देना।
पोषक अनाज/बाजरा/मोटे अनाज:
- परिचय:
- पोषक अनाज एक सामूहिक शब्द है जो कई छोटे-बीज वाले फसलों को संदर्भित करता है, जिसकी खेती खाद्य फसल के रूप में मुख्य रूप से समशीतोष्ण, उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों व शुष्क क्षेत्रों में सीमांत भूमि पर की जाती है।
- भारत में उपलब्ध कुछ सामान्य फसलों में बाजरा रागी (फिंगर मिलेट), ज्वार (सोरघम), समा (छोटा बाजरा), बाजरा (मोती बाजरा) और वरिगा (प्रोसो मिलेट) शामिल हैं।
- इन अनाजों के प्रमाण सबसे पहले सिंधु सभ्यता में पाए गए और ये भोजन के लिये उगाए गए पहले पौधों में से थे।
- लगभग 131 देशों में इसकी खेती की जाती है, यह एशिया और अफ्रीका में लगभग 60 करोड़ लोगों के लिये पारंपरिक भोजन है।
- भारत दुनिया में बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक है।
- यह वैश्विक उत्पादन का 20% और एशिया के उत्पादन का 80% हिस्सा है।
- वैश्विक वितरण:
- भारत, नाइजीरिया और चीन विश्व में बाजरा के सबसे बड़े उत्पादक हैं, जिनका वैश्विक उत्पादन में 55% से अधिक की हिस्सेदारी है।
- कई वर्षों तक भारत बाजरा का एक प्रमुख उत्पादक था। हालाँकि हाल के वर्षों में अफ्रीका में बाजरे के उत्पादन में प्रभावशाली रूप से वृद्धि हुई है।
- महत्त्व:
- उच्च पोषण से युक्त:
- बाजरा अपने उच्च प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और लौह तत्त्व जैसे खनिजों के कारण गेहूँ एवं चावल की तुलना में कम खर्चीला तथा पौष्टिक रूप से बेहतर है।
- बाजरा कैल्शियम और मैग्नीशियम से भी भरपूर होता है। उदाहरण के लिये रागी को सभी अनाजों में सबसे अधिक कैल्शियम स्रोत के रूप में जाना जाता है।
- बाजरा पोषण सुरक्षा प्रदान करता है और विशेष रूप से बच्चों एवं महिलाओं के बीच पोषण की कमी के खिलाफ ढाल के रूप में कार्य करता है। इसमें उपस्थित उच्च लौह तत्त्व भारत में महिलाओं की प्रजनन अवस्था के दौरान तथा शिशुओं में एनीमिया के उच्च प्रसार को रोकने में सक्षम हैं।
- ग्लूटेन मुक्त तथा कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स
- बाजरा जीवनशैली की समस्याओं जैसे कि मोटापा और मधुमेह जैसी स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में मदद करता है क्योंकि वे ग्लूटेन मुक्त होते हैं और उनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है (खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट की एक सापेक्ष रैंकिंग इस आधार पर होती है कि वे रक्त में शर्करा के स्तर को किस प्रकार प्रभावित करती हैं)।
- उन्नत उपज वाली फसल:
- बाजरा प्रकाश-संवेदी होता है (फूलों के लिये विशिष्ट प्रकाश काल की आवश्यकता नहीं होती) तथा जलवायु परिवर्तन के लिये सवेदनशील भी है। बाजरा बहुत कम या बिना किसी बाहरी रखरखाव के खराब मिट्टी में भी बढ़ सकता है।
- बाजरा पानी की कम खपत करता है तथा सूखे की स्थिति में असिंचित परिस्थितियों में बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी बढ़ने में सक्षम होता है।
- बाजरा में कम कार्बन और वाटर फुटप्रिंट होते हैं (चावल के पौधों को उगाने के लिये बाजरे की तुलना में कम-से-कम 3 गुना अधिक पानी की आवश्यकता होती है)।
- उच्च पोषण से युक्त:
सरकार द्वारा की गई संबंधित पहलें:
- पोषण सुरक्षा के लिये गहन बाजरा संवर्द्धन (INSIMP) के माध्यम से पहल:
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि: सरकार ने बाजरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की है, जो किसानों के लिये एक बड़े मूल्य प्रोत्साहन के रूप में है।
- इसके अलावा उपज के लिये स्थिर बाज़ार प्रदान करने हेतु सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मोटे अनाज को शामिल किया है।
- इनपुट सहायता: सरकार ने किसानों की सहायता हेतु बीज किट का प्रावधान शुरू किया है तथा किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से मूल्य शृंखला का निर्माण किया है और बाजरा की बिक्री का समर्थन किया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. ‘गहन कदन्न संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय रुपए का मूल्यह्रास
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रुपए का अवमूल्यन , मुद्रा मूल्यह्रास, मुद्रास्फीति, मूल्यह्रास बनाम अवमूल्यन, अभिमूल्यन बनाम मूल्यह्रास मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था पर भारतीय रुपए के मूल्यह्रास का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए में लगभग 10% की गिरावट आई और रुपया वर्ष 2022 में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली एशियाई मुद्रा थी।
- यह गिरावट मुख्य रूप से विश्व के कई हिस्सों में मंदी और मुद्रास्फीति की आशंकाओं तथा रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच सुरक्षित निवेश अपील पर अमेरिकी मुद्रा में वृद्धि के कारण थी।
वर्ष 2022 में रुपए का प्रदर्शन:
- वर्ष के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 83.2 के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया। रुपए की तुलना में अन्य एशियाई मुद्राओं का मूल्यह्रास कुछ हद तक कम रहा।
- वर्ष के दौरान चीनी युआन, फिलीपीन पेसो और इंडोनेशियाई रुपिया में लगभग 9% गिरावट आई। दक्षिण कोरियाई वाॅन और मलेशियाई रिंगिट में क्रमशः लगभग 7% और 6% की गिरावट आई।
- हालाँकि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने रुपए का बचाव करने के लिये विदेशी मुद्रा बाज़ार में बड़ा हस्तक्षेप किया। वर्ष 2022 की शुरुआत से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 70 अरब डॉलर की गिरावट आई है। 23 दिसंबर, 2022 तक यह 562.81 अरब डॉलर था।
- भंडार में थोड़ी कमी देखी गई है, लेकिन केंद्रीय बैंक अब फिर से अपने भंडार को बढ़ाना शुरू कर रहा है जो अनिश्चितता के समय में बफर के रूप में कार्य करेगा।
पूंजी बहिर्वाह का कारण:
- अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने मुद्रास्फीति के खिलाफ अपनी लड़ाई में वर्ष 2022 में आक्रामक रूप से ब्याज़ दरों में 425 आधार अंक (BPS) की वृद्धि की। इससे अमेरिका एवं भारत के बीच ब्याज़ दरों में अंतर बढ़ गया तथा निवेशकों ने घरेलू बाज़ार से पैसा निकाल लिया और उच्च ब्याज़ दरों का लाभ प्राप्त करने के लिये अमेरिकी बाज़ार में निवेश करना शुरू कर दिया।
- वर्ष 2022 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय बाज़ारों से 1.34 लाख करोड़ रुपए निकाले जो अब तक का सबसे अधिक वार्षिक शुद्ध बहिर्वाह है।
- उन्होंने रुपए पर दबाव डालते हुए वर्ष 2022 में शेयर बाज़ारों से 1.21 लाख करोड़ रुपए और ऋण बाज़ार से 16,682 करोड़ रुपए निकाले।
- रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के कारण FPI निकासी में काफी बढ़ोतरी हुई, जबकि वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण अंतर्वाह और कठिन हो गया।
भारतीय रुपए के अवमूल्यन का प्रभाव:
- सकारात्मक प्रभाव:
- सैद्धांतिक रूप से कमज़ोर रुपए को भारत के निर्यात को बढ़ावा देना चाहिये लेकिन अनिश्चितता और कमज़ोर वैश्विक मांग के माहौल में रुपए के मूल्य में बाहरी गिरावट उच्च निर्यात में परिवर्तित नहीं हो सकती है।
- नकारात्मक प्रभाव:
- यह आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम उत्पन्न करता है और केंद्रीय बैंक के लिये ब्याज़ दरों को रिकॉर्ड स्तर पर लंबे समय तक बनाए रखना मुश्किल बना सकता है।
- भारत अपनी घरेलू तेल आवश्यकता के दो-तिहाई से अधिक की पूर्ति आयात के माध्यम से करता है।
- भारत खाद्य तेलों के शीर्ष आयातक देशों में से एक है। एक कमज़ोर मुद्रा आयातित खाद्य तेल की कीमतों को और अधिक बढ़ाएगी तथा उच्च खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा देगी।
वर्ष 2023 हेतु रुपए का परिदृश्य:
- भले ही निकट भविष्य में रुपए का परिदृश्य कमज़ोर रहने वाला है, स्थानीय मुद्रा में मूल्यह्रास लंबे समय के लिये नहीं रहने वाला है क्योंकि भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रुप में उभर रहा है।
- हालाँकि यूएस फेड की टर्मिनल ब्याज़ दर का अनुमान लगाया गया था, लेकिन उनकी मौद्रिक नीति के संबंध में सख्ती को अनिश्चितकाल तक नहीं रखा जा सकता है।
- (यूएस फेड) सख्ती खत्म होने के साथ परिस्थितियों में बदलाव निश्चित रूप से अपेक्षित है।
मुद्रा का अधिमूल्यन और अवमूल्यन:
- लचीली विनिमय दर प्रणाली (Floating Exchange Rate System) में बाज़ार की ताकतें (मुद्रा की मांग और आपूर्ति) मुद्रा का मूल्य निर्धारित करती हैं।
- मुद्रा अधिमूल्यन: यह किसी अन्य मुद्रा की तुलना में एक मुद्रा के मूल्य में वृद्धि है।.
- सरकार की नीति, ब्याज़ दर, व्यापार संतुलन और व्यापार चक्र सहित कई कारणों से मुद्रा के मूल्य में वृद्धि होती है।
- मुद्रा अधिमूल्यन किसी देश की निर्यात गतिविधि को हतोत्साहित करता है क्योंकि विदेशों से वस्तुएँ खरीदना सस्ता हो जाता है, जबकि विदेशी व्यापारियों द्वारा खरीदी जाने वाली देश की वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं।
- मुद्रा अवमूल्यन: यह एक लचीली विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्य में गिरावट है।
- आर्थिक बुनियादी संरचना, राजनीतिक अस्थिरता या जोखिम से बचने के कारण मुद्रा अवमूल्यन हो सकता है।
- मुद्रा मूल्यह्रास देश की निर्यात गतिविधि को प्रोत्साहित करता है क्योंकि इससे वस्तु और सेवाएँ खरीदना सस्ता हो जाता है।
अवमूल्यन और मूल्यह्रास:
- हालाँकि इन्हें लागू करने के तरीके में अंतर है।
- सामान्य तौर पर अवमूल्यन और मूल्यह्रास प्रायः एक-दूसरे के स्थान पर उपयोग किये जाते हैं।
- इन दोनों का एक ही प्रभाव है- मुद्रा के मूल्य में गिरावट जो आयात को अधिक महँगा बनाती है, और निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाती है।
- अवमूल्यन तब होता है जब किसी देश का केंद्रीय बैंक अपनी विनिमय दर को एक निश्चित या अर्द्ध-स्थिर विनिमय दर के रूप में कम करने का निर्णय लेता है।
- मूल्यह्रास तब होता है जब एक मुद्रा के मूल्य में अस्थायी विनिमय दर के कारण गिरावट होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. भारतीय रुपए के अवमूल्यन को रोकने के लिये सरकार/RBI द्वारा निम्नलिखित में से कौन सा सबसे संभावित उपाय नहीं है? (2019) (a) गैर-आवश्यक वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाना और निर्यात को बढ़ावा देना। उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: किसी मुद्रा के अवमूल्यन का प्रभाव यह होता है कि वह आवश्यक रूप से:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियों की हाल की घटनाएँ भारत की समष्टि आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार से प्रभावित करेंगी? (मुख्य परीक्षा, 2018) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
वर्षांत समीक्षा-2022: अंतरिक्ष विभाग
प्रिलिम्स के लिये:इसरो, चंद्रयान-2 मिशन, 50वाँ PSLV प्रक्षेपण, वन वेब, प्रक्षेपण यान मार्क 3, IAD, आत्मनिर्भर, उन्नति, युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम। मेन्स के लिये:अंतरिक्ष विभाग की प्रमुख उपलब्धियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत अंतरिक्ष विभाग की वार्षिक समीक्षा, 2022 जारी की गई।
अंतरिक्ष विभाग की प्रमुख उपलब्धियाँ:
- प्रमुख मिशन: वर्ष 2014 से अब तक कुल मिलाकर 44 अंतरिक्ष यान मिशन, 42 प्रक्षेपण यान मिशन और 5 प्रौद्योगिकी प्रदर्शक सफलतापूर्वक पूरे किये गए हैं।
- चंद्रयान-2 मिशन: वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था।
- यह अनुसंधान समुदाय के लिये महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक डेटा प्रदान कर रहा है।
- 50वाँ PSLV प्रक्षेपण:
- दिसंबर 2019 में PSLV-C48/RISAT-22BR1 का प्रक्षेपण वर्कहॉर्स लॉन्च वाहन PSLV का 50वाँ प्रक्षेपण था।
- RISAT-2BR1 सीमा पर चौबीसों घंटे निगरानी कर घुसपैठ पर रोक लगाएगा।
- इसरो सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल ऑपरेशंस मैनेजमेंट (IS4OM):
- जुलाई 2022 में विज्ञान मंत्रालय ने इसरो सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेन्ड ऑपरेशंस मैनेजमेंट (IS4OM) को राष्ट्र को समर्पित किया।
- यह एक ऐसी सुविधा है जिसकी कल्पना राष्ट्रीय विकास के लिये बाहरी अंतरिक्ष के सतत् उपयोग के लाभों को प्राप्त करते हुए सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु समग्र दृष्टिकोण के साथ की गई है।
- प्रक्षेपण यान मार्क 3 (Launch Vehicle Mark- LVM):
- LVM 3/वन वेब इंडिया-1 मिशन को अक्तूबर 2022 में सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया।
- इस लॉन्च के साथ LVM 3 आत्मनिर्भरता का उदाहरण है और वैश्विक वाणिज्यिक लॉन्च सेवा बाज़ार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्म्कता को बढ़ाता है।
- इंटीग्रेटेड मेन पैराशूट एयरड्रॉप टेस्ट (IMAT):
- गगनयान कार्यक्रम के हिस्से के रूप में नवंबर 2022 में बबीना फील्ड फायर रेंज (BFFR), झाँसी, उत्तर प्रदेश में क्रू मॉड्यूल डिक्लेरेशन सिस्टम का इंटीग्रेटेड मेन पैराशूट एयरड्रॉप टेस्ट (IMAT) सफलतापूर्वक किया गया था।
- इन्फ्लेटेबल एरोडायनामिक डिसेलेरेट:
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने भविष्य के मिशनों के लिये कई अनुप्रयोगों के साथ एक गेम चेंजर- इन्फ्लेटेबल एरोडायनामिक डिसेलेरेटर (IAD) के साथ नई तकनीक का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया।
- IAD के पास विभिन्न प्रकार के अंतरिक्ष अनुप्रयोगों जैसे- रॉकेट चरणों की पुनर्प्राप्ति, मंगल या शुक्र पर पेलोड उतारने और मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशनों के लिये अंतरिक्ष पर्यावास बनाने की बड़ी क्षमता है।
- ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV)-C54:
- PSLV-C54 ने नवंबर 2022 में भारत-भूटान सैट (INS-2B) सहित आठ नैनो-उपग्रहों के साथ सफलतापूर्वक EOS-06 उपग्रह लॉन्च किया।
- नए उपग्रह का प्रक्षेपण भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक की भूटान के विकास के लिये ICT और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सहित उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की योजना का समर्थन करने के भारत के प्रयासों का हिस्सा है।
- चंद्रयान-2 मिशन: वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था।
- शैक्षणिक सहायता, क्षमता निर्माण और आउटरीच:
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी ऊष्मायन केंद्र (STIC):
- वर्ष 2018 से अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये देश के कुछ प्रमुख स्थानों पर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी ऊष्मायन केंद्र (STIC) स्थापित किये गए हैं।
- इस पहल के अंतर्गत वर्तमान में नौ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सेल (STC) शैक्षणिक संस्थानों में काम कर रहे हैं, छह अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी ऊष्मायन केंद्र (STIC) और छह क्षेत्रीय अंतरिक्ष शैक्षणिक केंद्र (RACS) संचालित हैं।
- सतीश धवन अंतरिक्ष विज्ञान केंद्र:
- हाल ही में सतीश धवन अंतरिक्ष विज्ञान केंद्र की स्थापना इसरो/डीओएस (ISRO/DoS) और केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू द्वारा संयुक्त रूप से की गई थी।
- इसरो द्वारा यूनिस्पेस नैनोसेटेलाइट असेंबली और प्रशिक्षण:
- जून 2018 में भारत द्वारा असेंबली एकीकरण और परीक्षण (AIT) पर हैंड्स-ऑन प्रशिक्षण तथा सैद्धांतिक शोध के संयोजन द्वारा नैनो उपग्रहों के विकास पर क्षमता निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘इसरो द्वारा यूनिस्पेस नैनोसेटेलाइट असेंबली एवं प्रशिक्षण’ (उन्नति-UNNATI) की घोषणा की गई।
- युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम:
- वर्ष 2019 में इसरो ने सरकार के “जय विज्ञान, जय अनुसंधान” वाले दृष्टिकोण के अनुरूप “युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम” या “युवा विज्ञानी कर्यक्रम” (YUVIKA) नामक एक वार्षिक विशेष कार्यक्रम की शुरुआत की।
- कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बाह्य अंतरिक्ष के आकर्षक क्षेत्र में युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिये अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष विज्ञान और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों पर बुनियादी ज्ञान प्रदान करना है।
- स्पेसटेक इनोवेशन नेटवर्क (SpIN):
- दिसंबर 2022 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और सोशल अल्फा ने स्पेसटेक इनोवेशन नेटवर्क (SpIN) लॉन्च करने के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये जो बढ़ते अंतरिक्ष उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र के लिये नवाचार और उद्यम विकास हेतु भारत का पहला समर्पित मंच है।
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी ऊष्मायन केंद्र (STIC):
- सुधार और उद्योगों की भागीदारी में बढ़ोत्तरी:
- न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL):
- वर्ष 2019 में न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) को भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्त्व वाले उपक्रम/ केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (CPSE) के रूप में शामिल किया गया
- इसका उद्देश्य भारतीय उद्योगों में अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिये उच्च प्रौद्योगिकी विनिर्माण आधार को बढ़ाने और घरेलू तथा वैश्विक खरीदारों की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के उत्पादों एवं सेवाओं का व्यावसायिक रूप से दोहन करने में सक्षम बनाना है।
- GSAT-24 संचार उपग्रह जो कि NSIL का पहला मांग संचालित मिशन है, को जून 2022 में फ्रेंच गुयाना के कौरौ से लॉन्च किया गया था।
- भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe):
- भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने के लिये निजी कंपनियों को समान अवसर प्रदान करने हेतु IN-SPACe लॉन्च किया गया था।
- यह इसरो और अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भाग लेने या भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के बीच एकल-बिंदु इंटरफेस के रूप में कार्य करता है।
- भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA):
- ISpA भारतीय अंतरिक्ष उद्योग की सामूहिक अभिव्यक्ति बनेगा। ISpA का प्रतिनिधित्त्व प्रमुख घरेलू और वैश्विक निगमों द्वारा किया जाएगा जिनके पास अंतरिक्ष एवं उपग्रह प्रौद्योगिकियों में उन्नत क्षमताएँ हैं।
- पहला निजी लॉन्चपैड और मिशन नियंत्रण केंद्र:
- नवंबर 2022 में पहले निजी लॉन्चपैड और मिशन नियंत्रण केंद्र की स्थापना SDSC, शार के इसरो परिसर में मेसर्स अग्निकुल कॉसमॉस प्राइवेट लिमिटेड, चेन्नई द्वारा की गई।
- भारतीय अंतरिक्ष नीति- 2022:
- भारतीय अंतरिक्ष नीति- 2022 को अंतरिक्ष आयोग द्वारा मंज़ूरी प्रदान की गई। इस नीति के लिये उद्योग समूहों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया, अंतर-मंत्रालयी परामर्श के साथ ही अधिकार प्राप्त प्रौद्योगिकी समूह द्वारा समीक्षा की गई और यह आगे की अनुमोदन प्रक्रिया के अंतर्गत है।
- आपदा प्रबंधन:
- बाढ़ की निगरानी, बाढ़ग्रस्त राज्यों के बाढ़ ज़ोखिम क्षेत्र एटलस का निर्माण, बाढ़ पूर्व चेतावनी मॉडल का विकास करना, कई दैनिक पहचान और वनाग्नि के प्रसार, चक्रवात ट्रैक (cyclone track) का पूर्वानुमान, भूकंप की तीव्रता तथा भूस्खलन, भूकंप एवं भूस्खलन के कारण हुए नुकसान का आकलन आदि।
- कोविड-19 संबंधी सहायता:
- कोविड-19 महामारी के दौरान मैकेनिकल वेंटिलेटर और मेडिकल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर जैसे उपकरणों को विकसित किया गया तथा प्रौद्योगिकियों को भारतीय उद्योगों में स्थानांतरित किया गया।
- न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL):
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न.1 अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संदर्भ में हाल ही में खबरों में रहा "भुवन" (Bhuvan) क्या है? (2010) (A) भारत में दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये इसरो द्वारा लॉन्च किया गया एक छोटा उपग्रह उत्तर: (C) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016) इसरो द्वारा प्रक्षेपित मंगलयान:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019) प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016) |