हिंद महासागर में चीन का नया समुद्री-सड़क-रेल लिंक
प्रिलिम्स के लियेबेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, ग्वादर पोर्ट मेन्स के लियेचीन द्वारा विकसित कॉरिडोर का महत्त्व और भारत के लिये इसके निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन के ‘चेंगदू’ शहर को ‘यांगून’ (म्याँमार) के माध्यम से हिंद महासागर तक पहुँच प्रदान करने वाला एक नया समुद्री-सड़क-रेल लिंक शुरू किया गया है।
- यह पश्चिमी चीन को हिंद महासागर से जोड़ने वाला पहला ‘ट्रेड कॉरिडोर’ है।
प्रमुख बिंदु
- नए ‘ट्रेड कॉरिडोर’ के विषय में
- यह नया व्यापार गलियारा मार्ग सिंगापुर, म्याँमार और चीन की लॉजिस्टिक लाइनों को जोड़ता है तथा वर्तमान में हिंद महासागर को दक्षिण-पश्चिम चीन से जोड़ने वाला सबसे सुविधाजनक भूमि और समुद्री चैनल है।
- चीन की योजना म्याँमार के ‘रखाइन प्रांत’ के ‘क्युकफ्यू’ में एक और बंदरगाह विकसित करने की भी है, जिसमें युन्नान (चीन) से सीधे बंदरगाह तक प्रस्तावित रेलवे लाइन शामिल है, लेकिन म्याँमार में सैन्य शासन और अशांति के कारण इसकी प्रगति रुकी हुई है।
- चीन ने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के तहत म्याँमार में इस क्षेत्र को 'सीमा आर्थिक सहयोग क्षेत्र' के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है।
- इस तरह यह क्षेत्र जहाँ एक ओर म्याँमार की आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत होगा, वहीं चीन के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने में भी महत्त्वपूर्ण होगा।
- यह व्यापार गलियारा हिंद महासागर के लिये एक और प्रत्यक्ष चीनी आउटलेट है।
- पहला पाकिस्तान के ‘ग्वादर बंदरगाह’ पर है।
- यह व्यापार मार्ग ‘मलक्का डाइलेमा’ के लिये भी चीन का विकल्प है।
- ‘मलक्का डाइलेमा’ वर्ष 2003 में तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति ‘हू जिंताओ’ द्वारा गढ़ा गया एक शब्द है।
- यह चीन के ‘मलक्का जलडमरूमध्य’ में समुद्री ब्लाकेड के डर को दर्शाता है। चूँकि चीन का अधिकांश तेल आयात ‘मलक्का जलडमरूमध्य’ द्वारा होता है, इसलिये यहाँ एक समुद्री ब्लाकेड चीन की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा सकता है।
- ग्वादर पत्तन के बारे:
- ग्वादर को सुदूर पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में CPEC के हिस्से के रूप में विकसित किया जा रहा है।
- ग्वादर को लंबे समय से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (People's Liberation Army Navy-PLAN) के संचालन हेतु उपयुक्त चीनी बेस के लिये स्थल के रूप में जाना जाता है।
- चीन एक "रणनीतिक मज़बूत बिंदु" अवधारणा का अनुसरण करता है जिसके तहत चीनी फर्मों द्वारा संचालित टर्मिनलों और वाणिज्यिक क्षेत्रों वाले रणनीतिक रूप से स्थित विदेशी बंदरगाहों का उपयोग इसकी सेना द्वारा किया जा सकता है।
- इस तरह के "मज़बूत बिंदु" चीन के लिये हिंद महासागर की परिधि के साथ आपूर्ति, रसद और खुफिया केंद्रों का एक नेटवर्क बनाने की क्षमता प्रदान करते हैं।
- इसे स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स सिद्धांत के रूप में जाना जाता है।
- ग्वादर चीन के लिये तीन कारणों से महत्त्वपूर्ण है:
- पहला CPEC के ज़रिये हिंद महासागर क्षेत्र में सीधा परिवहन संपर्क स्थापित करना है।
- दूसरा कारक यह है कि ग्वादर पश्चिमी चीन को स्थिर करने में मदद करता है, एक ऐसा क्षेत्र जहाँ चीन इस्लामी आंदोलन के प्रति संवेदनशील महसूस करता है।
- इसके अलावा ग्वादर महत्त्वपूर्ण होर्मुज़ जलडमरूमध्य (फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ने वाले) से सिर्फ 400 किमी. दूर है, जिसके माध्यम से चीन द्वारा 40% तेल का आयात किया जाता है।
- भारत के लिये निहितार्थ:
- बंगाल की खाड़ी में चीन का आर्थिक दाँव और यह नया व्यापार गलियारा इस क्षेत्र में एक बड़ी समुद्री उपस्थिति तथा नौसैनिक जुड़ाव का प्रतीक है, जो बदले में चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स को मज़बूती प्रदान करता है।
- इस व्यापार गलियारे और चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के अलावा चीन, चीन-नेपाल आर्थिक गलियारे (CNEC) की भी योजना बना रहा है जो तिब्बत को नेपाल से जोड़ेगा।
- परियोजना के समापन बिंदु गंगा के मैदान की सीमाओं को स्पर्श करेंगे।
- इस प्रकार तीन गलियारे भारतीय उपमहाद्वीप में चीन के आर्थिक और साथ ही रणनीतिक उदय को दर्शाते हैं।
- भारत द्वारा चीन को प्रतिसंतुलित करने हेतु उठाए गए कदम:
स्रोत: द हिंदू
भूजल संरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:हरित क्रांति, राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद, न्यूनतम समर्थन मूल्य, यूनेस्को मेन्स के लिये:भूजल की कमी का कारण और इसके प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
भारत सिंचाई के लिये मुख्य रूप से भूजल पर निर्भर है और यह भूजल की कुल वैश्विक मात्रा के एक बड़े हिस्से का उपयोग कर रहा है। भारत में लगभग 70% खाद्य उत्पादन नलकूपों (सिंचाई के लिये प्रयुक्त कुएँ) की मदद से किया जाता है।
- हालांँकि भूजल पर यह अत्यधिक निर्भरता भूजल संकट को जन्म दे रही है। भूजल संरक्षण हेतु एक समग्र कार्ययोजना की आवश्यकता है।
प्रमुख बिंदु
- यूनेस्को की विश्व जल विकास रिपोर्ट, 2018 के अनुसार, भारत विश्व का सबसे बड़ा भूजल उपयोग करने वाला देश है।
- भारत में सिंचाई के लिये कुओं के निर्माण हेतु किसी मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है और बंद पड़े या सिंचाई में प्रयोग न होने वाले कुओं का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है।
- भारत में प्रतिदिन कई सौ कुओं का निर्माण किया जाता है और जल सूखने पर छोड़े जाने वाले कुओं की संख्या और भी अधिक है।
- राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में भूजल के योगदान को कभी भी मापा नहीं जाता है।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी, जल शक्ति मंत्रालय) के अनुसार, भारत में कृषि भूमि की सिंचाई हेतु हर वर्ष 230 बिलियन मीटर क्यूबिक भूजल का उपयोग होता है, देश के कई हिस्सों में भूजल का तेज़ी से क्षरण हो रहा है।
- भारत में कुल अनुमानित भूजल की कमी 122-199 बिलियन मीटर क्यूबिक की सीमा में है।
- भारत में सिंचाई के लिये कुओं के निर्माण हेतु किसी मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है और बंद पड़े या सिंचाई में प्रयोग न होने वाले कुओं का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है।
- भूजल की कमी का कारण:
- सीमित सतही जल संसाधनों के साथ घरेलू, औद्योगिक और कृषि ज़रूरतों की बढ़ती मांग।
- कठोर चट्टानी भूभाग के कारण सीमित भंडारण सुविधाओं के साथ ही वर्षा की कमी के अतिरिक्त भूजल का नुकसान, विशेष रूप से मध्य भारतीय राज्यों में।
- हरित क्रांति के कारण सूखा प्रवण/पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जल गहन फसलों को उगाने की ज़रूरतों पर बल देना, जिससे भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ।
- इससे जल की पुनः पूर्ति किये बिना ज़मीन से पानी को बार-बार पंप करने से भूजल की मात्रा में त्वरित कमी आती है।
- पानी की अधिक खपत वाली फसलों के लिये बिजली और उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सब्सिडी।
- लैंडफिल, सेप्टिक टैंक, भूमिगत गैस टैंक से रिसाव और उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से भूजल संसाधनों की क्षति तथा कमी के कारण होने वाला जल प्रदूषण।
- बिना किसी हर्जाने के भूजल का अपर्याप्त विनियमन भूजल संसाधनों के अधिक उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
- वनों की कटाई, कृषि के अवैज्ञानिक तरीके, उद्योगों के रासायनिक अपशिष्ट, स्वच्छता की कमी से भी भूजल प्रदूषण होता है, जिससे यह अनुपयोगी हो जाता है।
- भूजल की समस्या और महिलाओं पर इसका प्रभाव:
- महिलाएँ सिंचित कृषि में कृषि श्रम शक्ति का बड़ा हिस्सा होती हैं लेकिन इस प्रकार के निवेश में उनकी कोई निर्णायक भूमिका नहीं होती है।
- इसके अलावा भूमि के अपने अधिकार, प्राकृतिक संसाधनों और बैंकों तक पहुँच में कमी, उनके पास इस अन्याय से लड़ने के लिये आवश्यक कानूनी समर्थन नहीं है।
- हालाँकि महिलाएँ भूजल संकट से पहले उत्तरदाताओं के रूप में उभरी हैं और पीने के पानी की कमी को दूर करने, वैकल्पिक आजीविका खोजने तथा कृषि एवं परिवार के जल निर्वहन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- भूजल संरक्षण हेतु सरकारी पहल:
आगे की राह:
- भूजल संरक्षण में महिलाओं की बढ़ती भूमिका:
- फसल योजनाओं, पानी की मांग और ‘क्रॉप फुटप्रिंट’ पर महिलाओं का निर्णय पुरुषों से अलग है।
- चिपको आंदोलन के दौरान महिलाओं और पुरुषों द्वारा विपरीत मूल्यों पर आधारित प्रदर्शन किया गया। महिलाओं ने पर्यावरण की रक्षा में मदद करने के लिये पेड़ों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध से कम की मांग नहीं की, जबकि उनके पुरुष समकक्षों ने आजीविका के बदले नियंत्रित ‘लॉगिंग’ को स्वीकार किया।
- चिपको आंदोलन ने महिला समूहों को सामाजिक न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिलाओं के खिलाफ अपराध और अन्य स्थानीय मुद्दों से जुड़ी रोजमर्रा की चिंताओं पर बोलने तथा अधिकारियों का सामना करने के लिये प्रेरित किया।
- विनियमित पंपिंग:
- अनुमोदित फसल योजना के आधार पर प्रत्येक खेत के लिये भूजल पंपिंग को सीमित करना।
- नदी बेसिन तक की विभिन्न इकाइयों में वार्षिक भूजल लेखा परीक्षा आयोजित करना।
- स्थानीय शासन का प्रवर्तन:
- ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र को फिर से स्थापित करने, स्थानीय संस्थानों को मज़बूत करने और स्थानीय शासन का प्रयोग करने से भूजल संरक्षण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- पूरी मूल्य शृंखला के प्रबंधन हेतु ज़िम्मेदार महिलाओं की समान भागीदारी के साथ गाँवों में छोटे किसानों को पंजीकृत निकायों के रूप में संगठित करना।
स्रोत- डाउन टू अर्थ
ई-कॉमर्स नियमों के मसौदे पर पुनर्विचार
प्रिलिम्स के लिये:ई-कॉमर्स नियम- 2021, उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम- 2020, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स’ मेन्स के लिये:ड्राफ्ट ई-कॉमर्स नियम- 2021 के प्रमुख प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
उद्योगों और सरकार के कुछ वर्गों की आलोचना के बीच उपभोक्ता मामलों का विभाग ई-कॉमर्स नियम, 2021 के मसौदे से संबंधित कुछ प्रावधानों पर पुनर्विचार कर रहा है।
- इससे पहले उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 के प्रावधानों को अधिसूचित और प्रभावी बनाया था।
- इसके अलावा उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने अपने ‘ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स’ (ONDC) परियोजना के लिये एक सलाहकार समिति नियुक्त करने के आदेश जारी किये हैं, जिसका उद्देश्य "डिजिटल एकाधिकार" को रोकना है।
- यह ई-कॉमर्स प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाने की दिशा में बढ़ रहा है, इस प्रकार एक ऐसा मंच तैयार किया जा रहा है जिसका उपयोग सभी ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं द्वारा किया जा सकता है।
प्रमुख बिंदु
- ड्राफ्ट ई-कॉमर्स नियम 2021 के प्रमुख प्रावधान:
- अनिवार्य पंजीकरण: उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के साथ ई-कॉमर्स संस्थाओं के लिये अनिवार्य पंजीकरण कराना आवश्यक है।
- ई-कॉमर्स इकाई का मतलब ऐसे व्यक्तियों से है जो इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स के लिये डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक सुविधा या प्लेटफॉर्म के मालिक हैं, उसका संचालन या प्रबंधन करते हैं।
- फ्लैश बिक्री सीमित करना: पारंपरिक ई-कॉमर्स फ्लैश बिक्री पर प्रतिबंध नहीं है। केवल विशिष्ट ‘फ्लैश’ बिक्री या ‘बैक-टू-बैक’ बिक्री की अनुमति नहीं है जो ग्राहक की पसंद को सीमित करती है, कीमतों में वृद्धि करती है और एक समान प्रतिस्पर्द्धा पर रोक लगाती है।
- अनुपालन अधिकारी: ई-कॉमर्स साइटों को मुख्य अनुपालन अधिकारी (CCO) और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ चौबीसों घंटे समन्वय हेतु एक व्यक्ति की नियुक्ति सुनिश्चित करने के लिये भी निर्देशित किया जाता है।
- संबंधित पक्षों को प्रतिबंधित करना: पक्षपातपूर्ण व्यवहार की बढ़ती चिंताओं के समाधान हेतु नए नियमों में यह सुनिश्चित करने का प्रस्ताव है कि किसी भी संबंधित पक्ष को 'अनुचित लाभ' के लिये किसी भी उपभोक्ता जानकारी (ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से) का उपयोग करने की अनुमति नहीं है।
- मूल देश हेतु शर्त: संस्थाओं को अपने मूल देश के आधार पर माल की पहचान करनी होगी और ग्राहकों के लिये खरीदारी से पूर्व चरण में एक पारदर्शी तंत्र स्थापित करना होगा।
- घरेलू विक्रेताओं को "उचित अवसर" प्रदान करने हेतु आयातित सामानों के विकल्प भी पेश करने होंगे।
- साइबर सुरक्षा से संबंधित मुद्दों की रिपोर्ट करना: सभी ई-कॉमर्स संस्थाओं को साइबर सुरक्षा से संबंधित मुद्दों सहित कानून के उल्लंघन की जांँच करने वाली अधिकृत सरकारी एजेंसी द्वारा किये गए किसी भी अनुरोध पर 72 घंटों के भीतर जानकारी प्रदान करनी होगी।
- अनिवार्य पंजीकरण: उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के साथ ई-कॉमर्स संस्थाओं के लिये अनिवार्य पंजीकरण कराना आवश्यक है।
- ड्राफ्ट नियमों से संबंधित प्रमुख मुद्दे:
- 'संबंधित पार्टी' की परिभाषा: मसौदा नियम में कहा गया है कि किसी भी ई-कॉमर्स इकाई की संबंधित पार्टियों को सीधे उपभोक्ताओं को बिक्री हेतु विक्रेता के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता है।
- 'संबंधित पार्टी' की इस "व्यापक परिभाषा" में संभावित रूप से सभी संस्थाएंँ शामिल हो सकती हैं जैसे कि रसद, किसी भी संयुक्त उद्यम आदि में शामिल।
- इसके कारण न केवल अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी विदेशी कंपनियों के लिये बल्कि घरेलू कंपनियों के लिये भी अपने विभिन्न ब्रांडों जैसे 1mg, नेटमेड्स, अर्बन लैडर आदि को अपने सुपर-एप्स पर बेचना मुश्किल होगा।
- निवर्तन (Fall-back) देयता पर मुद्दा: उद्योग के खिलाड़ियों ने तर्क दिया है कि एक तरफ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) नीति अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर बेची गई सूची पर नियंत्रण रखने से रोकती है।
- दूसरी ओर नियमों ने निवर्तन देयता की अवधारणा को पेश किया जो ई-कॉमर्स फर्मों को उत्तरदायी बनाती है, यदि कोई विक्रेता अपने प्लेटफॉर्म पर लापरवाह आचरण के कारण सामान या सेवाएँ देने में विफल रहता है जिससे ग्राहक को नुकसान होता है।
- अधिकार क्षेत्र से बाहर: नीति आयोग ने चिंता जताई है कि मसौदा नियमों में कई प्रावधान उपभोक्ता संरक्षण के दायरे से बाहर थे।
- यह उपभोक्ता मामलों के विभाग की "ओवररीच" की धारणा को प्रदर्शित करता है।
- कड़े नियमों का मामला: कुछ प्रस्तावित प्रावधान जैसे- अनुपालन अधिकारी होना, कानून प्रवर्तन अनुरोधों का पालन करना आदि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ) नियम, 2021 के नक्शेकदम (Footsteps) पर चलते हैं।
- इन IT नियमों को कई उच्च न्यायालयों में कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- इस प्रकार के नियम सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर अधिक-से-अधिक निरीक्षण करने की सरकार की बढ़ती इच्छा को दर्शाते हैं।
- 'संबंधित पार्टी' की परिभाषा: मसौदा नियम में कहा गया है कि किसी भी ई-कॉमर्स इकाई की संबंधित पार्टियों को सीधे उपभोक्ताओं को बिक्री हेतु विक्रेता के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ‘सैंड और डस्ट’ तूफान का जोखिम
प्रिलिम्स के लिये‘सैंड और डस्ट’ तूफान, चक्रवात. एरोसोल मेन्स के लिये‘सैंड और डस्ट’ तूफानों का प्रभाव और इनसे निपटने संबंधी सुझाव |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 500 मिलियन से अधिक लोग एवं तुर्कमेनिस्तान, पाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान तथा ईरान की पूरी आबादी का लगभग 80% से अधिक हिस्सा ‘सैंड और डस्ट’ तूफानों के कारण मध्यम से उच्च स्तर की खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में हैं।
- पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्वी तुर्की, ईरान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में अत्यधिक सूखे की स्थिति के कारण 2030 के दशक में रेत और धूल भरी आँधी के तूफान का प्रभाव काफी अधिक बढ़ सकता है।
प्रमुख बिंदु
- ‘सैंड और डस्ट’ तूफान
- परिचय
- शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में रेत और धूल भरी आँधी प्रायः मौसम संबंधी एक महत्त्वपूर्ण खतरा है।
- यह आमतौर पर ‘थंडरस्टॉर्म’ या चक्रवात से जुड़े मज़बूत दबाव ग्रेडिएंट के कारण होता है, जो एक विस्तृत क्षेत्र में हवा की गति को बढ़ाते हैं।
- क्षोभमंडल (पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे निचली परत) में लगभग 40% एरोसोल हवा के कटाव के कारण धूल के कण के रूप में मौजूद होते हैं।
- मुख्य स्रोत:
- इन खनिज धूलों के मुख्य स्रोत- उत्तरी अफ्रीका, अरब प्रायद्वीप, मध्य एशिया और चीन के शुष्क क्षेत्र हैं।
- तुलनात्मक रूप से ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका काफी कम योगदान देते हैं, हालाँकि व्यापक दृष्टि से वे भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
- परिचय
- प्रभाव
- नकारात्मक
- बिजली संयंत्रों पर प्रभाव:
- वे ऊर्जा की बुनियादी अवसंरचना में हस्तक्षेप कर सकते हैं, बिजली ट्रांसमिशन लाइनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं और बिजली की कटौती हेतु उत्तरदायी हो सकते हैं।
- इनके कारण भारत, चीन और पाकिस्तान में क्रमशः 1,584 GWh , 679 GWh और 555 GWh ऊर्जा का नुकसान हुआ है।
- परिणामस्वरूप भारत को प्रतिवर्ष 782 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।
- पीने योग्य जलस्रोतों पर प्रभाव
- ‘हिमालय-हिंदूकुश पर्वत शृंखला’ और तिब्बती पठार, जो एशिया में 1.3 बिलियन से अधिक लोगों के लिये ताज़े पानी के स्रोत हैं, में धूल का जमाव काफी अधिक होता है, जो इन्हें प्रदूषित करता है।
- बर्फ पिघलने की दर में वृद्धि:
- हिमनदों पर धूल का जमाव खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा उत्पादन, कृषि, जल तनाव और बाढ़ सहित कई मुद्दों के माध्यम से समाज पर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष प्रभावों के साथ बर्फ के पिघलने की दर को बढ़ाकर वार्मिंग प्रभाव उत्पन्न करता है।
- कृषि (Farm land) पर:
- धूल के जमाव ने तुर्कमेनिस्तान, पाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान में कृषि भूमि के बड़े हिस्से को प्रभावित किया है।
- इस धूल के अधिकांश भाग में नमक की मात्रा अधिक होती है जो इसे पौधों के लिये विषाक्त बनाती है।
- यह उपज को कम करता है जिससे सिंचित कपास और अन्य फसलों के उत्पादन के लिये खतरा पैदा होता है।
- धूल के जमाव ने तुर्कमेनिस्तान, पाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान में कृषि भूमि के बड़े हिस्से को प्रभावित किया है।
- सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) पर:
- ये 17 संयुक्त राष्ट्र-अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) में से 11 को सीधे प्रभावित करते हैं:
- गरीबी को सभी रूपों में समाप्त करना, भुखमरी को समाप्त करना, अच्छा स्वास्थ्य एवं कल्याण, सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा, सभ्य कार्य तथा आर्थिक विकास, जलवायु कार्रवाई आदि।
- ये 17 संयुक्त राष्ट्र-अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) में से 11 को सीधे प्रभावित करते हैं:
- बिजली संयंत्रों पर प्रभाव:
- सकारात्मक:
- वे निक्षेपण के क्षेत्रों में पोषक तत्त्व बढ़ा सकते हैं और वनस्पति को लाभ पहुँचा सकते हैं।
- जल निकायों पर जमा धूल उनकी रासायनिक विशेषताओं को बदल सकती है, जिससे सकारात्मक और प्रतिकूल दोनों तरह के परिणाम सामने आ सकते हैं।
- आयरन को ले जाने वाले धूल के कण महासागरों के कुछ हिस्सों को समृद्ध कर सकते हैं, फाइटोप्लैंकटन (Phytoplankton) संतुलन में सुधार कर सकते हैं और समुद्री खाद्य जाल (Food Webs) को प्रभावित कर सकते हैं।
- नकारात्मक
- सुझाव:
- इनके प्रभाव काफी गंभीर हैं और इस प्रकार वे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नीति-निर्माताओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण उभरते मुद्दे का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- सदस्य राज्यों को रेत और धूल भरे तूफान के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव की गहरी समझ हासिल करने, प्रभाव-आधारित फोकस के साथ एक समन्वित निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करने तथा जोखिमों को कम करने के लिये सबसे अधिक जोखिम वाले भौगोलिक क्षेत्रों के कार्यों में समन्वय पर विचार करते हुए अपने संयुक्त कार्यों को रणनीतिक बनाने की आवश्यकता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारत में मगरमच्छ की प्रजाति
प्रिलिम्स के लिये:अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 मेन्स के लिये:मगरमच्छ के संरक्षण हेतु प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ओडिशा के केंद्रपाड़ा ज़िले ने भारत का एकमात्र ऐसा ज़िला होने का गौरव प्राप्त किया है जहाँ मगरमच्छ की तीनों प्रजातियाँ- घड़ियाल (Gharial), खारे पानी के (Salt-Water) मगरमच्छ और मगर (Mugge) पाई जाती हैं।
प्रमुख बिंदु
- मगर या मार्श मगरमच्छ:
- विवरण:
- यह अंडा देने वाली और होल-नेस्टिंग स्पेसीज़ (Hole-Nesting Species) है जिसे खतरनाक भी माना जाता है।
- आवास:
- यह मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित है जहाँ यह मीठे पानी के स्रोतों और तटीय खारे जल के लैगून एवं मुहानों में भी पाई जाता है।
- भूटान और म्याँमार में यह पहले ही विलुप्त हो चुका है।
- खतरा:
- आवासों का विनाश और विखंडन एवं परिवर्तन, मछली पकड़ने की गतिविधियाँ तथा औषधीय प्रयोजनों हेतु मगरमच्छ के अंगों का उपयोग।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट: सुभेद्य
- CITES: परिशिष्ट- I
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
- एस्टुअरीन या खारे पानी का मगरमच्छ:
- परिचय:
- यह पृथ्वी पर सबसे बड़ी जीवित मगरमच्छ प्रजाति है, जिसे विश्व स्तर पर एक ज्ञात आदमखोर (Maneater) के रूप में जाना जाता है।
- निवास:
- यह मगरमच्छ ओडिशा के भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुंदरवन तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाया जाता है।
- यह दक्षिण-पूर्व एशिया और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है।
- संकट:
- अवैध शिकार, निवास स्थान की हानि और प्रजातियों के प्रति शत्रुता।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची: कम चिंतनीय
- CITES: परिशिष्ट- I (ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और पापुआ न्यू गिनी की आबादी को छोड़कर, जो परिशिष्ट- II में शामिल हैं)।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
- घड़ियाल:
- विवरण:
- इन्हें गेवियल भी कहते हैं, यह एक प्रकार का एशियाई मगरमच्छ है और अपने लंबे, पतले थूथन के कारण अन्य से अलग होते हैं जो कि एक बर्तन (घड़ा) जैसा दिखता है।
- घड़ियाल की आबादी स्वच्छ नदी जल का एक अच्छा संकेतक है।
- इसे अपेक्षाकृत हानिरहित, मछली खाने वाली प्रजाति के रूप में जाना जाता है।
- आवास:
- यह प्रजाति ज़्यादातर हिमालयी नदियों के ताज़े पानी में पाई जाती है।
- विंध्य पर्वत (मध्य प्रदेश) के उत्तरी ढलानों में चंबल नदी को घड़ियाल के प्राथमिक आवास के रूप में जाना जाता है।
- अन्य हिमालयी नदियाँ जैसे- घाघरा, गंडक नदी, गिरवा नदी, रामगंगा नदी और सोन नदी इसके द्वितीयक आवास हैं।
- खतरा:
- अवैध रेत खनन, अवैध शिकार, नदी प्रदूषण में वृद्धि, बाँध निर्माण, बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने का कार्य और बाढ़।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- CITES: परिशिष्ट- I
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
- संरक्षण के प्रयास:
- ओडिशा ने महानदी नदी बेसिन में घड़ियालों के संरक्षण के लिये 1,000 रुपए के नकद पुरस्कार की घोषणा की है।
- मगरमच्छ संरक्षण परियोजना 1975 में विभिन्न राज्यों में शुरू की गई थी।