शासन व्यवस्था
पूर्वोत्तर भारत: विकास, क्षमता और संभावनाएँ
- 29 Aug 2020
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संदर्भ:
हाल ही में प्रधानमंत्री ने एक वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से मणिपुर के लिये 'जल जीवन मिशन’ के अंतर्गत ‘मणिपुर जल आपूर्ति परियोजना’ (Manipur Water Supply Project) की आधारशिला रखी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत में देश के विकास का नेतृत्व करने की क्षमता है और शेष भारत से पूर्वोत्तर राज्यों के संपर्क को बेहतर बनाने के लिये आधुनिक अवसंरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है। पूर्वोत्तर भारत के राज्य पूर्वी एशिया से देश के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधों का प्रवेश द्वारा रहे हैं और यह भविष्य में पूर्वी एशिया के साथ व्यापार, यात्रा और पर्यटन को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
पृष्ठभूमि:
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वर्तमान समस्याएँ:
- भौगोलिक स्थिति:
- स्वतंत्रता से पूर्व पूर्वोत्तर भारत के राज्य कोलकाता और चट्टोग्राम (बांग्लादेश) के माध्यम से शेष भारत से जुड़े हुए थे, गौरतलब है कि ये दोनों शहर इस क्षेत्र के साथ देश के प्रमुख व्यावसायिक केंद्र थे।
- पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के विभाजन के पश्चात जल मार्ग बाधित होने से अगरतला और कोलकाता के बीच की दूरी 550 किमी (लगभग) से बढ़कर लगभग 1600 किमी. हो गई।
- देश की स्वतंत्रता के बाद पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) के विभाजन के कारण शेष भारत से पूर्वोत्तर राज्यों का संपर्क टूट गया, जो इस क्षेत्र के आर्थिक, राजनीतिक और स्थानीय पहचान से जुड़े संकट का एक बड़ा कारण माना जाता है।
- स्वतंत्रता से पूर्व पूर्वोत्तर भारत के राज्य कोलकाता और चट्टोग्राम (बांग्लादेश) के माध्यम से शेष भारत से जुड़े हुए थे, गौरतलब है कि ये दोनों शहर इस क्षेत्र के साथ देश के प्रमुख व्यावसायिक केंद्र थे।
- सांस्कृतिक विविधता:
- ध्यातव्य है कि देश के इस भाग में बहुत से अलग-अलग जन जातीय समुदाय निवास करते हैं, इनमें से अधिकांश समुदायों की भाषा, बोली और संस्कृति भी भिन्न है।
- ये समुदाय अपनी संस्कृति और पहचान को लेकर बहुत ही संवेदनशील है, जो इस क्षेत्र के सामुदायिक तनाव का एक बड़ा कारण रहा है।
- ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान इस क्षेत्र को अलग-थलग रखे जाने और देश के विभाजन से इस क्षेत्र के समुदायों के बीच असुरक्षा की भावना को बल मिला जिसने इन समुदायों के बीच मतभेदों को और अधिक बढ़ा दिया।
पूर्वोत्तर भारत का महत्त्व:
- पूर्वोत्तर भारत के राज्य प्राकृतिक संसाधनों के मामले में बेहद संपन्न हैं। देश का यह हिस्सा सबसे घने वन्य-क्षेत्रों में से एक है।
- इस क्षेत्र में उपलब्ध खनिज तेल और गैस के भंडार तथा नदियों का मज़बूत तंत्र ऊर्जा की दृष्टि से इस अत्यंत महत्त्वपूर्ण बनता है।
- साक्षरता, समाज में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भी पूर्वोत्तर के राज्यों का प्रदर्शन देश के अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर रहा है।
- साक्षरता दर (वर्ष 2011)- मिजोरम: 91.3% (अधिकतम), अरुणांचल प्रदेश: 65.4% (न्यूनतम)
- एक्ट ईस्ट नीति (Act East Policy):
- केंद्र सरकार द्वारा एक्ट ईस्ट की नीति के तहत तीन ‘C’ (Commerce, Culture and Connectivity) अर्थात वाणिज्य, संस्कृति और संपर्क को मज़बूत करने पर विशेष बल दिया गया है।
- यह क्षेत्र पूर्वी भारत के पारंपरिक घरेलू बाज़ार के साथ पूर्व में स्थित बांग्लादेश और नेपाल जैसे सीमावर्ती देशों के बाज़ारों तक पहुँच के कारण रणनीतिक महत्त्व रखता है।
- भौगोलिक दृष्टि से यह क्षेत्र दक्षिण पूर्वी एशिया के बाज़ारों तक भारत की पहुँच के लिये एक प्रवेश द्वार का कार्य कर सकता है।
सरकार के प्रयास:
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चुनौतियाँ:
- अपर्याप्त अवसंरचना और निवेश कमी:
- इस क्षेत्र में लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता और भौगोलिक चुनौतियों के कारण आधुनिक औद्योगिक ज़रूरतों के अनुरूप पर्याप्त अवसंरचना विकास नहीं हो पाया है।
- सीमित विकास और मज़बूत आपूर्ति श्रृंखला के अभाव में इस क्षेत्र में उद्योगों का संचालन बहुत ही खर्चीला हो गया है।
- राजनीतिक अस्थिरता और आवश्यक संसाधनों (परिवहन के साधन, ऊर्जा आदि) के आभाव में पूर्वोत्तर राज्यों में निजी क्षेत्र के निवेश की भारी कमी रही है।
- नीतियों का क्रियान्वयन:
- सरकार द्वारा घोषित परियोजनाओं का समयबद्ध तरीके से क्रियान्वयन न होना इस क्षेत्र के विकास की प्रमुख बाधाओं में से एक है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2005 में ‘नॉर्थ-ईस्ट विज़न-2020’ (North-East Vision-2020) जारी किया गया था, इसके तहत क्षेत्र की कमियों और चुनौतियों को रेखांकित करने पर विशेष बल दिया गया
- साथ ही इस पहल के तहत पूर्वोत्तर में विकास के ऐसे संभावित क्षेत्रों की पहचान करने पर ज़ोर दिया गया, जिन पर विशेष ध्यान देकर पूर्वोत्तर राज्यों को राष्ट्रीय स्तर की औसत विकास दर तक पहुँचाया जा सके।
- परंतु वर्तमान में भी पूर्वोत्तर के राज्यों और देश के अन्य प्रमुख राज्यों के आर्थिक विकास दर में बड़ा अंतर बना हुआ है।
समाधान:
- वर्तमान में क्षेत्र की युवा पीढ़ी की जागरूकता, शिक्षा स्तर और देश के अन्य हिस्सों से उनका संपर्क बेहतर हुआ है और उनकी सामाजिक अपेक्षाएँ भी पिछली पीढ़ी से भिन्न रही हैं। ऐसे में युवा पीढ़ी को विकास के अवसर उपलब्ध करा कर क्षेत्र की स्थिरता और विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है।
- भौगोलिक संपर्क:
- पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा और स्थिरता के लिये इस क्षेत्र में बेहतर सांस्कृतिक और भौगोलिक संपर्क मज़बूत करना बहुत ही आवश्यक है।
- हाल के वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा पूर्वी एशिया के देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने पर विशेष ध्यान दिया गया है।
- पूर्वोत्तर के विकास के लिये इस क्षेत्र की प्राकृतिक और ऐतिहासिक संरचना का अध्ययन बहुत ही आवश्यक होगा, इस क्षेत्र के विकास हेतु अन्य क्षेत्रीय राज्यों (जैसे- उत्तरी बंगाल और उत्तरी बिहार के कुछ हिस्से आदि) के बाज़ारों के बीच संपर्क मार्ग को मज़बूत करना होगा।
- उदाहरण के लिये- पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे इस क्षेत्र को जोड़ने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग:
- पूर्वोत्तर राज्यों की भौगोलिक स्थिति और जैव विविधता देश के अन्य राज्यों से भिन्न है, अतः इस क्षेत्र के विकास हेतु अन्य राज्यों की विकास योजनाओं को थोपने के स्थान पर प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित सतत विकास को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- उदाहरण के लिये इस क्षेत्र में बाँस की कई प्रजातियाँ बहुतायत मात्रा में पाई जाती हैं। बाँस का प्रयोग फर्नीचर बनाने के साथ जैव-ईंधन बनाने में भी किया जा सकता है।
- गौरतलब है कि देश में कुल बाँस उत्पादन का दो-तिहाई (2/3) इन्हीं राज्यों से आता है।
- जल प्रबंधन:
- पूर्वोत्तर भारत की नदियों में प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध रहता है, ऐसे में इस क्षेत्र के विकास में प्राकृतिक जल का सदुपयोग बहुत ही आवश्यक है।
- भारत में उपलब्ध कुल जल संसाधनों में से 34% इसी क्षेत्र में पाया जाता है ।
- इस क्षेत्र में बेहतर जल प्रबंधन और बाढ़ जैसी समस्याओं से निपटने के लिये एक मज़बूत नीति का निर्माण किया जाना चाहिये।
- एक मज़बूत जल प्रबंधन नीति इस क्षेत्र में स्वच्छ पानी और विकास योजनाओं से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने के साथ देश के पारिस्थितिकी तंत्र को स्थिरता प्रदान करने में सहायक होगी।
- पूर्वोत्तर भारत की नदियों में प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध रहता है, ऐसे में इस क्षेत्र के विकास में प्राकृतिक जल का सदुपयोग बहुत ही आवश्यक है।
- विकास और संस्कृति का संतुलन:
- इस क्षेत्र के लोगों को अपनी संस्कृति और परम्परों से बहुत अधिक लगाव है, इस क्षेत्र के कई समुदायों के लोग आधुनिक परिवर्तनों को अपनी संस्कृति पर हस्तक्षेप की तरह देखते हैं।
- ऐसे में सरकार को बिना पारंपरिक व्यवस्था में हस्तक्षेप किये इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के साथ लोगों तक विकास योजनाओं का लाभ पहुँचाने का प्रयास करना चाहिये।
- उदाहरण के लिये- वर्ष 2018 में ‘अरुणाचल प्रदेश (भूमि निपटान और रिकॉर्ड) (संशोधन) विधेयक’ लागू किया गया, इसके तहत लोगों को अपनी भूमि के स्वामित्त्व का प्रमाण-पत्र दिया गया जिससे वे इसे कोलैटरल (Collatreal) के रूप में प्रयोग करते हुए ऋण प्राप्त कर सकेंगे।
सतत विकास:
- पूर्वोत्तर भारत की एक बड़ी आबादी देश के अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर अंग्रेजी बोल और समझ सकते हैं, ऐसे में इस कौशल का सदुपयोग करते हुए सेवा क्षेत्र (Service Sector) से जुड़े रोजगारों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश बड़ी संख्या में अन्य देशों की कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे सेवा क्षेत्र के रोजगारों (जैसे- सूचना प्रौद्योगिकी या कॉल सेंटर आदि से संबंधित) के अवसरों को अपने नागरिकों के लिये लाने में सफल रहा है।
आगे की राह:
- पिछले कुछ वर्षों में पूर्वोत्तर राज्यों में शांति और स्थिरता में लगातार सुधार देखने को मिला है, ऐसे में इस क्षेत्र में निवेश की संभावनाएँ भी बढ़ी हैं।
- पूर्वोत्तर भारत प्राकृतिक संसाधनों के मामले में देश के सबसे समृद्ध क्षेत्रों में से एक है, अतः यहाँ उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर प्रबंधन इस क्षेत्र के सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।
- सरकार को योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और उन्हें निर्धारित समयसीमा में पूरा करने पर विशेष ध्यान देना चाहिये तथा यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पात्र लोगों को योजनाओं का पूरा लाभ मिल सके।
- पूर्वोत्तर राज्यों से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने की पहल के प्रारंभिक चरण के तहत बीबीआईएन (BBIN) अर्थात् ‘बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल’ उप समूह के तंत्र को मज़बूत किया जाना चाहिये जिसे आगे चलकर क्षेत्र के अन्य देशों तक बढ़ाया जा सकता है।
- हाल ही में भारत और बांग्लादेश के बीच एक समझौते के तहत बांग्लादेश के चट्टोग्राम बंदरगाह से होते हुए कोलकाता और अगरतला के बीच जल और सड़क मार्ग के माध्यम से वस्तुओं की ढुलाई की सेवा शुरू की गई है।
- साथ ही दोनों देशों के द्वारा ‘अंतर्देशीय जल पारगमन और व्यापार पर प्रोटोकॉल’ (Protocol on Inland Water Transit and Trade- PIWT & T) के तहत 6 मौजूदा ‘पोर्टस ऑफ कॉल’ (Ports of Call) के अलावा पांच अतिरिक्त बंदरगाह जोड़े गए हैं।
अभ्यास प्रश्न: पूर्वोत्तर भारत में विकास की धीमी गति के कारणों पर चर्चा करते हुए वर्तमान परिवेश में पूर्वोत्तर भारत में विकास की संभावनाओं और इस दिशा मे सरकार के प्रयासों पर प्रकाश डालिये।