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डेली न्यूज़

  • 01 Jul, 2024
  • 52 min read
भारतीय विरासत और संस्कृति

संगीत प्रणाली का विकास

प्रिलिम्स के लिये:

सामवेद, हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत, उत्तर भारत में मुस्लिम शासक, भक्ति आंदोलन, राग और ताल, सप्तस्वर, घराने, थाट, ख्याल, ठुमरी और तराना

मेन्स के लिये:

भारतीय संगीत प्रणाली, विकास और प्रगति।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए एक अध्ययन में चिंपांजी (Chimps') की लयबद्ध संगीत के साथ नृत्य करने की क्षमता का पता चला है, जो हमारी लय की समझ में विकासवादी संबंध का संकेत देता है। पुरातात्त्विक साक्ष्य, जिसमें पशु की हड्डी से बनी 40,000 वर्ष पुरानी बाँसुरी भी शामिल है, मानव संगीत अभिव्यक्ति की उत्पत्ति के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

हालिया अध्ययन के निष्कर्ष क्या हैं?

  • मनुष्यों में संगीत की उत्पत्ति: इस अध्ययन के अनुसार, मनुष्यों ने संभवतः पुरापाषाण युग के दौरान, लगभग 2.5 मिलियन वर्ष पूर्व, वाणी के विकास के बाद गाना शुरू किया।
    • साक्ष्य बताते हैं कि संगीत वाद्ययंत्र बजाने की क्षमता लगभग 40,000 वर्ष पहले उत्पन्न हुई थी, जिसका उदाहरण सात छेदों वाली पशु की हड्डी से बनी बाँसुरी की खोज है।
  • संगीत स्वर/संकेतन: ऐसा माना जाता है कि भारत में संगीत स्वर ('सा, रे, गा, मा, पा, दा, नि') की उत्पत्ति वैदिक काल (1500-600 ईसा पूर्व) के दौरान हुई थी, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपराओं का आधार बना।
    • संगीत स्वर प्रणालियाँ यूरोप और मध्य पूर्व में लगभग 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व में स्वतंत्र रूप से स्थापित की गईं, जिनमें स्थानबद्ध स्वर ('डू, रे, मी, फा, सोल, ला, टी') का प्रयोग किया गया।
  • भारतीय संगीत प्रणाली का विकास: भारतीय संगीत प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक काल में विकसित हुआ।

प्राचीन काल में भारतीय संगीत का विकास कैसे हुआ?

  • सामवेद में उद्भव: सामवेद का महत्त्व संगीत की दृष्टि से बहुत अधिक है। इससे भारतीय संगीत का उद्भव हुआ। सामवेद के रागों का विकास धार्मिक तथा सांस्कृतिक दोनों प्रकार के गीतों से हुआ।
    • नारद मुनि ने मानवता को संगीत कला से परिचित कराया तथा नाद ब्रह्म का ज्ञान दिया, जो ब्रह्मांड में व्याप्त ध्वनि है।
  • वैदिक संगीत का विकास: प्रारंभ में एकल स्वरों पर केंद्रित वैदिक संगीत में क्रमशः दो और फिर तीन स्वरों को शामिल किया गया।
    • इस विकास के परिणामस्वरूप सात मूल स्वरों (सप्त स्वरों) की स्थापना हुई, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत का आधार बने।
    • वैदिक भजन याग और यज्ञ जैसे धार्मिक अनुष्ठानों का अभिन्न अंग थे, जहाँ उन्हें तार तथा ताल वाद्यों की संगत के साथ गाया एवं नृत्य किया जाता था।
  • प्रारंभिक तमिल योगदान: इलांगो अडिगल और महेंद्र वर्मा जैसे विद्वानों ने प्राचीन तमिल संस्कृति में संगीत संबंधी विचारों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिसका उल्लेख सिलप्पाडी काराम और कुडुमियामलाई शिलालेखों जैसे ग्रंथों में मिलता है।
    • करुणामृत सागर जैसे प्राचीन तमिल ग्रंथों में विभिन्न 'पण' द्वारा प्रदर्शित रागों तथा स्थाई (अष्टक), श्रुतियों और स्वर स्थानों की समझ प्रदान की गई है।

मध्यकाल में भारतीय संगीत का विकास कैसे हुआ?

  • एकीकृत संगीत प्रणाली: 13वीं शताब्दी तक, भारत ने सप्तस्वर (सात स्वर), सप्तक और श्रुति (सूक्ष्म स्वर) जैसे मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित एक सुसंगत संगीत प्रणाली कायम रखी।
  • शब्दों का परिचय: हरिपाल ने हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत शब्दों का निर्माण किया, जो उत्तरी और दक्षिणी संगीत परंपराओं के बीच अंतर को दर्शाते हैं।
  • मुस्लिम शासन का प्रभाव: उत्तर भारत में मुस्लिम शासकों के आगमन के साथ ही भारतीय संगीत ने अरब और फारसी संगीत प्रणालियों के प्रभावों को आत्मसात कर लिया। इस अंतर्क्रिया ने भारतीय संगीत अभिव्यक्ति के दायरे को व्यापक बना दिया।
  • क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि: जबकि उत्तर भारत में सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ, दक्षिण भारत अपेक्षाकृत अलग-थलग रहा, जहाँ मंदिरों और हिंदू राजाओं द्वारा समर्थित शास्त्रीय संगीत के निर्बाध विकास को बढ़ावा मिला।
  • विशिष्ट प्रणालियों का उदय: हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत अलग-अलग प्रणालियों के रूप में विकसित हुए, जिनमें से प्रत्येक वैदिक सिद्धांतों पर आधारित थी, फिर भी उनमें अद्वितीय क्षेत्रीय रस (Flavours) तथा शैलीगत बारीकियाँ प्रदर्शित होती थी।
  • भक्ति आंदोलन का प्रभाव: 7वीं शताब्दी के बाद से भारत में अनेक संत गायकों और धार्मिक कवियों का उदय हुआ, जिनमें कर्नाटक के पुरंदर दास भी शामिल थे, जिन्होंने ताल (लयबद्ध चक्र) को व्यवस्थित किया तथा भक्ति गीत रचनाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
    • इस युग के दौरान रागों का वर्गीकरण स्पष्ट हो गया, जिससे भारतीय शास्त्रीय संगीत को परिभाषित करने वाली संगीत संरचना की नींव रखी गई।
  • विस्तार और परिष्कार: इस युग में रागों, तालों (लयबद्ध चक्रों) और संगीत वाद्ययंत्रों सहित संगीत रूपों की गुणवत्ता तथा मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
  • संगीत शैलियों का उदय: इस अवधि के दौरान ख्याल, ठुमरी और तराना जैसी रचना शैलियों को प्रमुखता मिली, जिसने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विविध प्रदर्शनों की सूची में योगदान दिया।
  • घराने: इस अवधि के दौरान आगरा, ग्वालियर, जयपुर, किराना और लखनऊ जैसे घरानों के रूप में जानी जाने वाली विशिष्ट संगीत परंपराएँ समृद्ध हुई, जिनमें से प्रत्येक ने हिंदुस्तानी संगीत में अद्वितीय शैलीगत तत्त्वों का योगदान दिया।

आधुनिक काल में भारतीय संगीत का विकास कैसे हुआ?

  • महान संगीतकार: उस्ताद अल्लादिया खाँ, पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर और उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ जैसे प्रख्यात संगीतकार 20वीं सदी के हिंदुस्तानी संगीत के प्रतीक के रूप में उभरे तथा अपनी निपुणता और नवीनता से इस परंपरा को समृद्ध किया।
  • संकेतन के माध्यम से संरक्षण: संकेतन प्रणालियों के आगमन ने विभिन्न पीढ़ियों के लिये संगीत रचनाओं के संरक्षण और पहुँच को सुनिश्चित किया, जिससे अमूल्य संगीत विरासत की रक्षा हुई।.
  • हिंदुस्तानी रागों का समेकन: पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने हिंदुस्तानी रागों को 'थाट' प्रणाली के अंतर्गत व्यवस्थित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और साथ ही संगीत शिक्षा एवं प्रदर्शन के लिये एक संरचित आधार तैयार किया।
  • विद्वत्तापूर्ण रचनाएँ: अनेक विद्वत्तापूर्ण संगीत शैलियों जैसे कि कृति, स्वराजति, वर्ण, पद, तिल्लाना, जावली एवं रागमालिका की रचना की गई।
    • संगीत एवं गीतात्मक परिष्कार में विकसित होते हुए इन रचनाओं को प्राचीन ग्रंथों से प्रेरणा मिली।

और पढ़ें: 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय संगीत प्रणाली विभिन्न युगों में किस प्रकार विकसित हुई तथा उन तत्त्वों पर चर्चा करें जिन्होंने इसके आधुनिक स्वरूप के साथ-साथ शास्त्रीय संगीत में इसकी पारंपरिक आधारशिला को विकसित किया। वर्णन कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: मांगणियार नामक लोगों का एक समुदाय किसके लिये प्रसिद्ध है? (2014)

(a) पूर्वोत्तर भारत की मार्शल आर्ट 
(b) उत्तर-पश्चिम भारत की संगीत परंपरा 
(c) दक्षिण भारत के शास्त्रीय गायन संगीत 
(d) मध्य भारत की पिएट्रा ड्यूरा परंपरा

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में संगीत वाद्ययंत्रों को पारंपरिक रूप से किन समूहों में वर्गीकृत किया गया है? (2012)


भारतीय अर्थव्यवस्था

MSME अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव

प्रिलिम्स के लिये:

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, अंतर्राष्ट्रीय MSME दिवस, उद्यम पोर्टल

मेन्स के लिये:

भारत के आर्थिक विकास में MSME क्षेत्र का महत्त्व, MSME में डिजिटलीकरण एवं प्रौद्योगिकी अपनाने की भूमिका, ग्रामीण विकास में MSME की भूमिका

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय MSME दिवस (27 जून), 2024 के अवसर पर, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) ने 'उद्यमी भारत-MSME दिवस' कार्यक्रम का आयोजन किया और साथ ही विलंबित भुगतानों के लिये विवाद समाधान में सुधार के साथ ही MSME क्षेत्र की बदलती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये MSME विकास अधिनियम, 2006 में संशोधन का प्रस्ताव भी रखा।

  • इस कार्यक्रम में केंद्रीय MSME मंत्री द्वारा कई पहलों का शुभारंभ किया गया, जिनमें समाधान पोर्टल का प्रस्तावित उन्नयन, MSME विकास अधिनियम, 2006 में प्रस्तावित संशोधन, टीम पहल (Team Initiative) और यशस्विनी अभियान शामिल हैं।

MSME के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: 
    • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSMEs) ऐसे व्यवसाय हैं जो वस्तुओं एवं पण्यों (कमोडिटी) का उत्पादन, प्रसंस्करण और संरक्षण करते हैं।
  • वर्गीकरण:

MSME _classification

  • भारत में MSME विनियमन: 
    • लघु उद्योग मंत्रालय तथा कृषि एवं ग्रामीण उद्योग मंत्रालय को वर्ष 2007 में विलय कर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय बनाया गया।
      • यह मंत्रालय MSME को समर्थन देने तथा उनके विकास में सहायता के लिये नीतियाँ विकसित करता है और साथ ही कार्यक्रमों को भी सुगम बनाने के साथ कार्यान्वयन की निगरानी भी सुनिश्चित करता है।
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 MSME को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों पर ध्यान देता है, MSME के लिये एक राष्ट्रीय बोर्ड की स्थापना करता है तथा साथ ही यह "उद्यम" की अवधारणा को परिभाषित करता है एवं MSME की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये केंद्र सरकार को सशक्त बनाता है।
  • MSME क्षेत्र का महत्त्व:
    • वैश्विक स्तर पर:
      • संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, MSME का योगदान वैश्विक व्यवसायों में 90%, नौकरियों में 60% से 70% से अधिक तथा वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में आधा हिस्सा है।
    • भारत के स्तर पर:
      • GDP में योगदान और रोज़गार सृजन: MSMEs वर्तमान में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 30% का योगदान देते हैं, जो आर्थिक विकास को गति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
        • उद्यम पंजीकरण प्रणाली से प्राप्त जानकारी के आधार पर MSME मंत्रालय के पास 200 मिलियन से अधिक पंजीकृत नौकरियाँ तथा 46 मिलियन से अधिक MSME हैं (जो चीन के 140 मिलियन के बाद दूसरे स्थान पर है)।
      • निर्यात संवर्द्धन: वर्तमान में  MSME भारत के कुल निर्यात में लगभग 45% का योगदान करते हैं।
        • भारतीय हस्तशिल्प क्षेत्र, (जिसमें लघु उद्योगों और कारीगरों का प्रभुत्व है) देश के निर्यात के लिये अत्यधिक लाभदायक है और साथ ही इसका विश्वव्यापी बाज़ार है।
      • विनिर्माण उत्पादन में योगदान: MSME देश के विनिर्माण उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, विशेष रूप से खाद्य प्रसंस्करण, इंजीनियरिंग एवं रसायन जैसे क्षेत्रों में।
      • ग्रामीण औद्योगीकरण एवं समावेशी विकास: MSME ग्रामीण औद्योगीकरण को आगे बढ़ाने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
        • लघु-स्तरीय इकाइयों से युक्त खादी तथा ग्रामोद्योग क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने और स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने में सहायक रहा है।
      • नवाचार एवं उद्यमिता: चूंकि छोटे उद्यमों को आमतौर पर बदलती बाज़ार स्थितियों के साथ समायोजन करना तथा नई वस्तुओं अथवा सेवाओं को लॉन्च करना आसान लगता है, इसलिये MSME क्षेत्र नवाचार एवंर उद्यमशीलता को बढ़ावा देता है।

अंतर्राष्ट्रीय MSME दिवस 2024

  • यह दिवस MSME के महत्त्व एवं अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को मान्यता देने के लिये प्रतिवर्ष 27 जून को मनाया जाता है।
  • MSME दिवस 2024 की थीम:
    • इस वर्ष की थीम: ‘विभिन्न संकटों के समय में सतत् विकास में तेज़ी लाने और गरीबी उन्मूलन के लिये सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम आकार के उद्यमों (MSME) की शक्ति एवं लचीलेपन का लाभ उठाना’ (‘leveraging the power and resilience of Micro-, Small and Medium-sized Enterprises (MSMEs) to accelerate sustainable development and eradicate poverty in times of multiple crises)
  • इतिहास एवं महत्त्व:
    • अप्रैल 2017 में, संयुक्त राष्ट्र ने 27 जून को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम दिवस के रूप में घोषित किया।
    • इस दिवस का उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में MSME की पूर्ण क्षमता का उपयोग करने के लिये राष्ट्रीय क्षमताओं में वृद्धि करना है।

MSME विकास अधिनियम, 2006 में प्रस्तावित प्रमुख संशोधन क्या हैं?

  • MSME विकास अधिनियम, 2006: यह देश में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के संवर्द्धन एवं विकास हेतु एक रूपरेखा प्रदान करता है।
    • उद्देश्य:
      • MSMEs के संवर्द्धन और विकास को सुगम बनाना। 
      • MSMEs की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना। 
      • MSMEs को ऋण, विपणन सहायता एवं अन्य सहायक सेवाओं तक आसान पहुँच प्रदान करना। 
      • MSMEs क्षेत्र में उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा देना।
  • प्रस्तावित प्रमुख संशोधन:
    • भुगतान तीव्र बनाना: MSMEs के लिये समाधान पोर्टल को शिकायत ट्रैकर से अपग्रेड करके पूर्ण विकसित ऑनलाइन विवाद समाधान प्लेटफॉर्म के रूप में बदलने का प्रस्ताव है।
      • इससे MSMEs को ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने, प्रतिक्रया प्राप्त करने तथा मध्यस्थता में भाग लेने का अधिकार मिलने से भुगतान में तीव्रता आएगी।
    • MSME के प्रतिनिधित्व को मज़बूत बनाना: MSME से संबंधित राष्ट्रीय बोर्ड में सभी राज्य सचिवों के रूप में प्रतिनिधि शामिल होंगे, जिससे बेहतर नीति-निर्माण को बढ़ावा मिलने के साथ MSME से संबंधित चुनौतियों का समाधान हो सकेगा।
    • पूर्व के अधिनियम का आधुनिकीकरण: वर्ष 2006 के MSMEs अधिनियम को लगातार विलंबित भुगतान एवं MSMEs क्षेत्र में उभरती नवीन आवश्यकताओं एवं समकालीन मुद्दों को हल करने के क्रम में अद्यतन करने की आवश्यकता है। संबंधित संशोधनों का उद्देश्य इस क्षेत्र के विकास के लिये अधिक उत्तरदायी कानूनी ढाँचे का विकास करना है।

MSME मंत्रालय द्वारा घोषित प्रमुख पहल:

  • MSME व्यापार सक्षमता एवं विपणन (TEAM) पहल: इसका उद्देश्य ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) पर 5 लाख सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को शामिल करना है। 
    • इसके तहत सरकार द्वारा ऑनबोर्डिंग, कैटलॉगिंग, खाता प्रबंधन, लॉजिस्टिक्स, पैकेजिंग सामग्री एवं डिज़ाइन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना शामिल है। 
    • इसमें आधे लाभार्थी महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यम होंगे। 
  • यशस्विनी अभियान: यह महिलाओं के स्वामित्व वाले अनौपचारिक सूक्ष्म उद्यमों को औपचारिक रूप देने एवं महिला स्वामित्व वाले उद्यमों के संदर्भ में क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, सहायता एवं सलाह प्रदान करने के क्रम में जन जागरूकता अभियानों की एक शृंखला है। 
    • इसमें MSME मंत्रालय द्वारा अन्य केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों, राज्य सरकारों तथा महिला उद्योग संघों के सहयोग से अभियान आयोजित करना शामिल है।
  • सरकार की MSME पहल के 6 स्तंभ:
    • मज़बूत आधार तैयार करना: यह स्तंभ व्यवसायों को औपचारिक बनाने तथा ऋण तक आसान पहुँच सुनिश्चित करने पर केंद्रित है, जो MSME की संवृद्धि एवं स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • बाज़ार पहुँच का विस्तार: सरकार का लक्ष्य MSME की घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच बढ़ाने के साथ उन्हें ई-कॉमर्स अपनाने को प्रोत्साहित करना है।
    • तकनीकी परिवर्तन: यह स्तंभ MSME क्षेत्र में उत्पादकता तथा दक्षता को बढ़ावा देने के क्रम में आधुनिक तकनीक का लाभ उठाने पर बल देता है।
    • कार्यबल को कुशल बनाना: कौशल स्तर को बढ़ाना तथा सेवा क्षेत्र में डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना, जो MSME के लिये उभरते बाज़ार के साथ तालमेल बनाए रखने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
    • परंपरागत के साथ वैश्विक मानदंडों को अपनाना: सरकार खादी एवं ग्रामोद्योग जैसे पारंपरिक उद्योगों की वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने हेतु कदम उठाएगी।
    • उद्यमियों को सशक्त बनाना: यह स्तंभ MSME क्षेत्र में समावेशी विकास को बढ़ावा देते हुए महिलाओं एवं कारीगरों के बीच उद्यम निर्माण को बढ़ावा देने को प्राथमिकता देने पर केंद्रित है।

MSME से संबंधित सरकारी पहल:

MSMEs के समक्ष चुनौतियाँ:

  • वित्त और ऋण तक सीमित पहुँच: MSME को अक्सर औपचारिक वित्तपोषण एवं ऋण सुविधाएँ प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी संवृद्धि और विस्तार में बाधा आती है।
    • केवल 16% MSME की ही औपचारिक ऋण तक पहुँच है, जिसके कारण कई MSME ऋण हेतु अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं।
  • तकनीकी अभाव: तकनीकी प्रगति और डिजिटल बुनियादी ढाँचे के सीमित होने से इनकी नवाचार तथा  प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता सीमित होती है।
    • अनुसंधान एवं विकास सुविधाओं तक सीमित पहुँच तथा उद्योग 4.0 तकनीकों को अपनाने में चुनौतियों से इनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता सीमित हो जाती है।
  • बाज़ार पहुँच और प्रतिस्पर्द्धा: MSME को सीमित बाज़ार पहुँच के साथ बड़े पैमाने के उद्यमों से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जिससे इनकी लाभप्रदता में कमी आती है।
  • कुशल श्रम की कमी: कुशल श्रम प्राप्त करना तथा प्रतिभा का प्रबंधन करना, इनके समक्ष एक प्रमुख मुद्दा है, जिससे इनके संचालन की गुणवत्ता तथा दक्षता प्रभावित होती है।
    • एसोचैम की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत में 23 मिलियन श्रमिकों का कौशल अंतराल है, जिससे एमएसएमई के लिये योग्य कर्मचारी ढूँढना मुश्किल हो रहा है, जिसका उत्पादकता और नवाचार पर प्रभाव पड़ रहा है
  • आर्थिक भेद्यता: MSME विशेष रूप से आर्थिक मंदी और बाज़ार में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हैं, जो उनकी स्थिरता तथा विकास की संभावनाओं को काफी प्रभावित कर सकता है।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत में लगभग 21% MSME आर्थिक प्रभाव के कारण स्थायी रूप से बंद हो गए, जिससे वे आर्थिक मंदी के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए।
  • कच्चे माल की कमी: MSME को कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और थोक खरीद के लिये सीमित वित्तीय क्षमता से जूझना पड़ रहा है।
    • यह विशेष रूप से छोटे वस्त्र इकाइयों के लिये चुनौतीपूर्ण है, जिन्हें अक्सर कपास की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लाभ मार्जिन और प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर असर पड़ता है।
  • वर्तमान मुकदमा प्रणाली की समस्याएँ: महँगी कानूनी प्रक्रिया के कारण छोटे व्यवसायों के लिये न्याय प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
    • वर्तमान प्रणाली विवादों को निपटाने में बहुत अधिक समय लेती है, जिससे छोटे व्यवसायों की वित्तीय कठिनाइयाँ और बढ़ जाती हैं।
    • समाधान पोर्टल केवल विश्लेषण के लिये जानकारी प्रदान करता है तथा विवादों को सीधे सुलझाने में मदद नहीं करता है।

आगे की राह

  • वित्तीय सशक्तीकरण और पहुँच: लक्षित योजनाओं, संपार्श्विक छूट और उद्यम पूंजी, देवदूत निवेशकों तथा पीयर-टू-पीयर ऋण प्लेटफॉर्मों जैसे वैकल्पिक वित्तपोषण विकल्पों को बढ़ावा देने के माध्यम से औपचारिक ऋण तक पहुँच में वृद्धि करना।
  • डिजिटल परिवर्तन और बाज़ार विस्तार: डिजिटल साक्षरता तथा तकनीकी कौशल प्रदान करना, ई-कॉमर्स एकीकरण को सुविधाजनक बनाना, डिजिटल बुनियादी ढाँचे में निवेश को सब्सिडी देना तथा उप-ठेके के लिये बड़े उद्यमों के साथ संबंध स्थापित करना।
  • विनियामक सुधार और कौशल: विनियमों को सरल बनाना, एकल खिड़की मंज़ूरी प्रणाली को लागू करना, विनियामक प्रभाव आकलन करना, उद्योग की ज़रूरतों के अनुरूप लक्षित कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करना तथा सभी स्तरों पर उद्यमिता शिक्षा को बढ़ावा देना।
    • सफल उद्यमियों को प्रेरक MSME मालिकों से जोड़ने के लिये मेंटरशिप कार्यक्रम स्थापित करना।
  • बुनियादी ढाँचा, जोखिम प्रबंधन और नीति जागरूकता: MSME के विकास के लिये विश्वसनीय बिजली, परिवहन तथा संचार बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करना।

बीमा योजनाओं जैसी जोखिम प्रबंधन रणनीतियाँ विकसित करना तथा लचीलेपन में सुधार के लिये उत्पाद/बाज़ार विविधीकरण को प्रोत्साहित करना।

वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और गुणवत्ता वृद्धि: गुणवत्ता प्रबंधन प्रणालियों को अपनाने को बढ़ावा देना और निर्यातोन्मुख MSME क्लस्टर विकसित करना वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता तथा गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।

उदाहरण के लिये शून्य दोष शून्य प्रभाव प्रमाणन योजना ने एमएसएमई को गुणवत्ता सुधारने और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में मदद की है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में MSME के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और इन चुनौतियों से निपटने में सरकार की पहल का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.1 विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल की है/हैं? (2012)

  1. राष्ट्रीय निवेश तथा विनिर्माण क्षेत्रों की स्थापना
  2. 'एकल खिड़की मंज़ूरी' (सिंगल विंडों क्लीयरेंस) की सुविधा प्रदान करना
  3. प्रौद्योगिकी अधिग्रहण और विकास कोष की स्थापना

नीचे दिये गए कोड का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न2. सरकार के समावेशित वृद्धि लक्ष्य को आगे ले जाने में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कार्य सहायक साबित हो सकता/सकते है/हैं? (2011)

  1.  स्व-सहायता समूहों (सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स) को प्रोत्साहन देना।  
  2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को प्रोत्साहन देना।
  3. शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू करना।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न 3. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023) 

  1. 'सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (एम.एस.एम.ई.डी) अधिनियम, 2006 के अनुसार, जिनका संयंत्र और मशीनरी में निवेश 15 करोड़ से 25 करोड़ रुपए के बीच है, वे 'मध्यम उद्यम' हैं।  
  2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को दिये गए सभी बैंक ऋण प्राथमिकता क्षेत्रक के अधीन अर्ह हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न1. “ सुधारोत्तर अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती  गई है।” कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हाल ही में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न. 2 सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं, पर भारत सीधे कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


आंतरिक सुरक्षा

मादक पदार्थों पर UNODC की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC), विश्व ड्रग रिपोर्ट 2024, कैनबिस, NDPS अधिनियम, NCB, अनिवासी भारतीय (NRI), गोल्डन क्रिसेंट और गोल्डन ट्राइंगल, मादक पदार्थों के दुरुपयोग पर नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष, मादक पदार्थों की मांग में कमी के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना

मेन्स के लिये:

मादक पदार्थों से संबंधित चुनौतियाँ, मादक पदार्थों के दुरुपयोग की समस्या और संबंधित पहल।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime- UNODC) ने विश्व ड्रग रिपोर्ट 2024 जारी की, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ परिदृश्य में बढ़ती चिंताओं की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया गया।

रिपोर्ट की प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • मादक पदार्थों का बढ़ता उपयोग:
    • वर्ष 2022 में दुनिया भर में मादक पदार्थों के उपयोगकर्त्ताओं की संख्या 292 मिलियन तक पहुँच गई, जो पिछले दशक की तुलना में 20% की वृद्धि दर्शाती है।
  • मादक पदार्थ वरीयता:
    • 228 मिलियन उपयोगकर्त्ताओं के साथ कैनबिस सबसे लोकप्रिय मादक पदार्थ है, इसके बाद ओपिओइड्स, एम्फेटामाइन्स, कोकेन और एक्स्टसी का स्थान है।
  • उभरते संकट: रिपोर्ट में नाइटाजेन के बारे में चेतावनी दी गई है, जो सिंथेटिक ओपिओइड का एक नया वर्ग है जो फेंटेनाइल से भी अधिक प्रभावशाली है।
    • ये पदार्थ, विशेष रूप से उच्च आय वाले देशों में, ओवरडोज से होने वाली मौतों में वृद्धि से जुड़े हैं।
  • उपचार अंतराल:
    • मादक पदार्थों के उपयोग से संबंधित विकारों से पीड़ित 64 मिलियन लोगों में से केवल 11 में से एक को ही उपचार मिल पाता है।
  • उपचार में लिंग असमानता:
    • रिपोर्ट में उपचार की उपलब्धता में लैंगिक अंतर का उल्लेख किया गया है। मादक पदार्थों के उपयोग से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित 18 में से केवल एक महिला को ही उपचार मिल पाता है, जबकि सात में से एक पुरुष को ही उपचार मिल पाता है।
  • भारत में ड्रग का उपयोग:
    • नशे की लत में फँसे लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) के आँकड़ों के अनुसार, देश में इस समय करीब 10 करोड़ लोग विभिन्न नशीले पदार्थों के आदी हैं।
    • गृह मंत्रालय के अनुसार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब वर्ष 2019 और 2021 के बीच तीन वर्षों में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS एक्ट) के तहत दर्ज सबसे अधिक FIR वाले शीर्ष तीन राज्य हैं।

विश्व में प्रमुख मादक पदार्थ उत्पादक क्षेत्र कौन-से हैं?

  • गोल्डन क्रीसेंट: इसमें अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान शामिल हैं, जो अफीम उत्पादन तथा वितरण का एक प्रमुख वैश्विक केंद्र है।
    • इसका प्रभाव जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे भारतीय राज्यों पर प्रदर्शित होता है।
  • गोल्डन ट्राइंगल: यह लाओस, म्याँमार तथा थाईलैंड के मध्य स्थित है जो हेरोइन उत्पादन के लिये कुख्यात है (म्याँमार वैश्विक हेरोइन का 80% उत्पादन करता है)।
    • तस्करी के मार्ग लाओस, वियतनाम, थाईलैंड और भारत से होकर गुज़रते हैं।

Opiates_Consumer_Market

भारत में मादक पदार्थों के सेवन में योगदान देने वाले कारक क्या हैं?

  • गरीबी, बेरोज़गारी एवं  पलायनवाद: निम्न आय वर्ग के लोग गरीबी, बेरोज़गारी तथा  निकृष्ट जीवन स्थितियों जैसी कठोर वास्तविकताओं से अस्थायी रूप से बचने के लिये सस्ती, आसानी से उपलब्ध मादक पदार्थों का उपयोग करते हैं।
    • चेन्नई में आयोजित एक झुग्गी पुनर्वास कार्यक्रम में बताया गया कि 70% वयस्क मादक पदार्थों का उपयोग करने वालों में गरीबी से संबंधित तनाव एक प्रमुख कारण है।
  • साथियों का दबाव और सामाजिक प्रभाव: वयस्क पार्टियों में कूल दिखने के लिये मादक पदार्थों का प्रयोग करते हैं। युवा उन मशहूर हस्तियों या सोशल मीडिया के प्रभावशाली लोगों की नकल करते हैं जो मादक पदार्थों के उपयोग को फैशन के रूप में पेश करते हैं।
    • वर्ष 2023 साइबर अपराध इकाई की जाँच में पता चला कि एक नेटवर्क गोवा में फार्मा पार्टियों का विज्ञापन करने के लिये इंस्टाग्राम का उपयोग कर रहा था, जिसमें 100,000 से अधिक संभावित उपस्थित लोग शामिल थे।
  • कानूनी व्यवस्था की खामियाँ: संगठित अपराध गिरोह कानूनी व्यवस्था की खामियों का लाभ उठाते हैं, जैसे कि कमज़ोर सीमा नियंत्रण, ताकि वे ड्रग्स की तस्करी कर सकें। वे प्राय: अफ्रीका और दक्षिण एशिया से व्यापार मार्गों का दुरुपयोग करके मादक पदार्थों की तस्करी करते हैं।
    • वर्ष 2023 में, सीमा सुरक्षा बल ने भारत-पाकिस्तान सीमा पर 35% मादक पदार्थ की जब्त किये  है, जो इन मार्गों के माध्यम से अवैध मादक पदार्थों के प्रवाह को नियंत्रित करने में चल रही चुनौतियों पर प्रकाश डालता है।

मादक पदार्थों की तस्करी के संदर्भ में भारत के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ:

  • सीमा की संवेदनशीलता एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम: इससे भारत-म्याँमार सीमा (जो दुर्गम इलाकों और घने जंगलों से घिरी हुई है) पर सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • भारत से होकर अवैध नशीली दवाओं का प्रवाह, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये जोखिम है।
  • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में गरीबी, बेरोज़गारी तथा निरक्षरता के कारण मादक पदार्थों  से संबंधित आपराधिक गतिविधियों में स्थानीय लोग संलिप्त रहते हैं।
    • कुछ स्थानीय जनजातियाँ एवं निवासी आर्थिक आवश्यकता या गलत सहानुभूति के कारण इस प्रक्रिया में भागीदार बन सकते हैं।
  • वैश्विक मादक पदार्थों आपूर्ति के केंद्र: गोल्डन क्रिसेंट एवं गोल्डन ट्राइंगल क्षेत्र, सामूहिक रूप से विश्व की लगभग 90% मादक पदार्थों की आपूर्ति करते हैं।
    • भारत की इन क्षेत्रों से निकटता नशीली दवाओं की तस्करी के जोखिम को बढ़ाती है।
  • तस्करी की विकसित होती तकनीकें: इससे कानून प्रवर्तन हेतु नवीन चुनौतियाँ प्रस्तुत होती हैं। पंजाब में हाल की घटनाओं में सीमा-पार मादक पदार्थों  एवं हथियारों की तस्करी के लिये ड्रोन के इस्तेमाल को देखा गया।
  • उभरता हुआ कोकीन बाज़ार: भारत कोकीन का लोकप्रिय गंतव्य बन गया है, जो दक्षिण अमेरिकी कार्टेल द्वारा नियंत्रित है। इन कार्टेलों ने जटिल नेटवर्क स्थापित किये हैं जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, हाॅन्गकाॅन्ग तथा विभिन्न यूरोपीय देशों के अनिवासी भारतीय (NRIs)
    • भारत के स्थानीय ड्रग डीलर एवं गैंगस्टर। 

स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985

  • यह अधिनियम मादक औषधि और मनोदैहिक पदार्थों के विनिर्माण, परिवहन और उपभोग को नियंत्रित करता है। 
  • इस अधिनियम के तहत कुछ अवैध गतिविधियों के वित्तपोषण जैसे कि भांग की खेती एवं मादक औषधि का विनिर्माण के साथ उनसे संबंधित व्यक्तियों को शरण देना एक प्रकार का अपराध है। 
  • इस अपराध के दोषी पाए जाने वाले व्यक्तियों को 10 से 20 वर्ष के कठोर कारावास के साथ कम-से-कम 1 लाख रुपए के ज़ुर्माने से दंडित किया जाएगा। 
  • यह मादक पदार्थों तथा मनोदैहिक पदार्थों के अवैध व्यापार से अर्जित या उपयोग की गई संपत्ति को ज़ब्त करने का भी प्रावधान करता है।
  • यह कुछ मामलों (जब कोई व्यक्ति बार-बार अपराधी पाया जाता है) में मृत्युदंड का भी प्रावधान करता है।
  • इस अधिनियम के तहत वर्ष 1986 में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का भी गठन किया गया था।

मादक पदार्थों के खतरे से निपटने हेतु पहल: 

  • प्रोजेक्ट सनराइज़: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ते HIV के प्रसार से निपटने हेतु विशेष रूप से मादक पदार्थों के इंजेक्शन का प्रयोग करने वाले लोगों में इसके प्रयोग को रोकने हेतु  'प्रोजेक्ट सनराइज़' (Project Sunrise) को शुरू किया गया था।
  • नशा मुक्त भारत: सरकार द्वारा ‘नशा मुक्त भारत अभियान’ (Nasha Mukt Bharat Abhiyan) की घोषणा की गई है जो सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों पर केंद्रित है।
  • नार्को-समन्वय केंद्र: नवंबर 2016 में नार्को-समन्वय केंद्र (Narco-Coordination Centre- NCORD) का गठन किया गया और राज्य में ‘नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो’ की मदद के लिये ‘वित्तीय सहायता योजना’ का पुनरुद्धार किया गया।
  •  ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली: नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को एक नया सॉफ्टवेयर विकसित करने हेतु धनराशि उपलब्ध कराई गई है अर्थात् ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली (Seizure Information Management System- SIMS), जिससे ड्रग अपराधों एवं अपराधियों का ऑनलाइन डेटाबेस तैयार हो सकेगा।
  • राष्ट्रीय ड्रग दुरुपयोग सर्वेक्षण: सरकार AIIMS के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर (National Drug Dependence Treatment Centre) की मदद से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से भारत में मादक पदार्थों के दुरुपयोग के आकलन हेतु एक राष्ट्रीय ड्रग सर्वेक्षण (National Drug Abuse Survey ) भी कर रही है।

आगे की राह

  • व्यापक रणनीति: जागरूकता बढ़ाने हेतु समुदाय-आधारित कार्यक्रमों के लिये UNODC द्वारा अनुशंसित रोकथाम, उपचार और कानूनी प्रवर्तन शामिल हैं।
    • रोकथाम:
      •  राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) तथा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय समीक्षा एवं परामर्श में 'मादक पदार्थों और मादक द्रव्यों के दुरुपयोग को रोकने के साथ ही अवैध तस्करी से निपटने के लिये संयुक्त कार्य योजना' पर ध्यान केंद्रित किया गया।
      • मीडिया अभियान कमज़ोर आबादी को लक्षित कर रहे हैं।
      • स्कूलों एवं कार्यस्थलों में शीघ्र हस्तक्षेप की रणनीतियाँ।
    • उपचार:
      • लोगों को मादक पदार्थों के उपयोग से बचने में सहायता प्रदान करने के लिये जानकारी एवं क्षमताएँ विकसित करना। ये पहल, जो सीधे-सादे "जस्ट से नो (Just Say No)" अभियान से परे हैं, में शामिल हैं:
        • मादक पदार्थों के प्रभावों और जोखिमों के बारे में सटीक जानकारी।
        • सहकर्मी दबाव एवं तनाव से निपटने की रणनीतियाँ।
        • निर्णय लेने के कौशल तथा आत्म-सम्मान का निर्माण।
        • व्यापक पुनर्प्राप्ति सहायता सेवाएँ प्रदान करना।
        • मादक पदार्थों के दुरुपयोग के उपचार से जुड़े कलंक को मनोचिकित्सा सहायता द्वारा कम करना।
    • कानूनी प्रवर्तन:
      • मादक पदार्थों के शिपमेंट को रोकने के लिये सीमा सुरक्षा को मज़बूत करना।
      • एजेंसियों (इंटरपोल) तथा देशों (गोल्डन क्रीसेंट तथा गोल्डन ट्राइंगल) के बीच खुफिया जानकारी साझा करने में सुधार करना।
      • उच्च स्तरीय मादक पदार्थ तस्करों और उनके वित्तीय नेटवर्क को लक्ष्य बनाना।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग:
    • स्कूलों में मादक पदार्थों तथा मादक द्रव्यों के सेवन के बारे में जागरूकता के लिये त्रैमासिक गतिविधियाँ संचालित करने हेतु नया पोर्टल 'प्रहरी' लॉन्च किया जाएगा।
      • एक ऑनलाइन रिपोर्टिंग प्रणाली विकसित करना जहाँ मादक पदार्थों के दुरुपयोग एवं तस्करी गतिविधियों की रिपोर्ट की जा सके। मादक पदार्थों की तस्करी के नेटवर्क की पहचान करने और उन पर नज़र रखने के लिये बिग डेटा, एनालिटिक्स एवं AI का उपयोग करना।
  • मानवीय दृष्टिकोण:3
    • मादक पदार्थों से संबंधित मामलों से निपटने में दंडात्मक उपायों की सीमाओं को देखते हुए, अधिक सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिये कानून में संशोधन की आवश्यकता है।
    • जब मादक पदार्थों के उपयोग को मानवाधिकारों और सार्वजनिक स्वास्थ्य के नज़रिये से देखा जाता है, तब व्यसन से प्रभावित लोगों के प्रति समझ तथा करुणा को बढ़ावा मिलता है।
    • संसाधनों को कारावास से पुनर्वास की ओर पुनर्निर्देशित करने से व्यक्तियों तथा समुदायों में बेहतर परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: मादक पदार्थों की तस्करी की चुनौतियाँ, विशेष रूप से भारत जैसे क्षेत्रों में, सीमा प्रबंधन के मुद्दों के साथ कैसे जुड़ी हुई हैं और इन जटिलताओं को दूर करने के लिये क्या रणनीतियाँ अपनाई जा रही हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन [यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशनअगेंस्ट करप्शन (UNCAC)] का 'भूमि, समुद्र और वायुमार्ग से प्रवासियों की तस्करी के विरुद्ध एक प्रोटोकॉल' होता है।  
  2. UNCAC अब तक का सबसे पहला विधितः बाध्यकारी सार्वभौम भ्रष्टाचार-विरोधी लिखत है।  
  3. राष्ट्र-पार संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन [यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन अगेंस्ट ट्रांसनेशनल क्राइम (UNTOC) की विशिष्टता ऐसे एक विशिष्ट अध्याय का समावेशन है, जिसका लक्ष्य उन संपत्तियों को उनके वैध स्वामियों को लौटाना है, जिनसे वे अवैध तरीके से ले ली गई थीं।  
  4. मादक द्रव्य और अपराध विषयक संयुक्त राष्ट्र कार्यालय [यूनाइटेड नेशन्स ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC)] संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों द्वारा UNCAC तथा UNTOC दोनों के कार्यान्वयन में सहयोग करने के लिये अधिदेशित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. विश्व के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उत्पादक राज्यों से भारत की निकटता ने भारत की आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन विदेश भेजने और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या प्रतिरोधी उपाय किये जाने चाहिये? (2018)


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