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जैव विविधता और पर्यावरण

व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • 17 May 2024
  • 22 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), सौर पराबैंगनी (UV) विकिरण, वेक्टर-जनित रोग, एग्रोकेमिकल, हीट स्ट्रेस, वायु प्रदूषण, वनाग्नि, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, UNFCCC पार्टियों का 28वाँ सम्मेलन (COP28)

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और इसका मानव स्वास्थ्य और सुरक्षा पर प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन  ने 'व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव' रिपोर्ट प्रकाशित की।

जलवायु परिवर्तन श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है?

    • जलवायु परिवर्तन के कारण पहले ही विश्व के सभी क्षेत्रों में श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
    • श्रमिक उन लोगों में शामिल हैं जो जलवायु परिवर्तन के खतरों से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, फिर भी अक्सर उनके पास काम जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है, भले ही स्थितियाँ खतरनाक हों।
    • यह रिपोर्ट OSH पर जलवायु परिवर्तन के छह प्रमुख प्रभावों से संबंधित महत्त्वपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करती है, जिन्हें उनकी गंभीरता और श्रमिकों पर उनके प्रभावों की भयावहता के लिये चुना गया था:

    जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संबंधी जोखिम

    उच्च जोखिम वाले श्रमिकों के उदाहरण

    स्वास्थ्य पर प्रभाव

    प्रतिक्रियाएँ व प्रगति

    अत्यधिक गर्मी

    कृषि, पर्यावरणीय वस्तुओं और सेवाओं (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन), निर्माण, अपशिष्ट संग्रहण, आपातकालीन मरम्मत कार्य, परिवहन, पर्यटन तथा खेल क्षेत्र के श्रमिक।

    हीट स्ट्रेस, हीटस्ट्रोक, रबडोमायोलिसिस (मांसपेशियों में खिंचाव), हीट सिंकोप, हीट क्रैम्प्स, हीट रैश, हृदय रोग, किडनी की तीव्र चोट, क्रोनिक किडनी रोग, शारीरिक चोट।

    सामान्य OSH में कार्यस्थल स्तर पर अनुकूल उपायों के लिये अधिकतम तापमान सीमा और दिशा-निर्देश शामिल हैं।

    सरल, स्व-गति, जलयोजन, मशीनीकरण और वस्त्र शामिल हैं।

    UV विकिरण

    निर्माण और कृषि, लाइफगार्ड, माली, डाक कर्मचारी और डॉक वर्कर सहित बाहरी श्रमिक।

    सनबर्न, त्वचा कैंसर, कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली आदि।

    व्यावसायिक रोगों की ILO सूची के अनुरूप, कुछ देशों ने सौर UV  विकिरण से होने वाली बीमारियों को अपनी राष्ट्रीय सूची में शामिल किया है।

    चरम मौसम की घटनाएँ

    चिकित्सा कर्मी, अग्निशामक, अन्य आपातकालीन कर्मचारी, सफाई में शामिल निर्माण श्रमिक, कृषि और मछली पकड़ने वाले श्रमिक।

    श्वसन और हृदय संबंधी रोग, चोटें एवं असामयिक मृत्यु।

    कुछ सामान्य OSH कानून में संकट की स्थितियों के लिये आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाओं की आवश्यकता होती है, जिसमें प्राकृतिक आपदाएँ शामिल हैं, लेकिन ये काफी व्यापक हैं और नई चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान नहीं करती हैं।

    कार्यस्थलीय वायु प्रदूषण

    बाह्य कर्मचारी, परिवहन कर्मचारी, अग्निशामक आदि।

    फेफड़ों का कैंसर, श्वसन रोग, हृदय रोग।

    वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय अधिकतर समग्र जलवायु परिवर्तन शमन या सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों में एकीकृत हैं।

     


    प्रशासनिक नियंत्रण, जैसे घूर्णनशील कार्य भूमिकाएँ, प्रभावी हो सकती हैं।

    वेक्टर-जनित रोग

    बाह्य श्रमिक जैसे किसान, भू-स्वामी, निर्माण श्रमिक आदि।

    मलेरिया, लाइम रोग, डेंगू शिस्टोसोमियासिस, लीशमैनियासिस, चगास रोग और अफ्रीकी ट्रिपैनोसोमियासिस व अन्य रोग।

    श्रमिकों को वेक्टर जनित रोगों से बचाने वाला कानून मुख्य रूप से जैविक खतरों को कवर करने वाले कानून में शामिल है।


    विशेष रूप से श्रमिकों के लिये सुरक्षा उपायों के संबंध में बेहद सीमित शोध मौजूद है।

    एग्रोकेमिकल

    कृषि, वृक्षारोपण, रासायनिक उद्योग, वानिकी, कीटनाशक बिक्री।

    विषाक्तता, कैंसर, न्यूरोटॉक्सिसिटी, अंतःस्रावी व्यवधान, प्रजनन संबंधी विकार, हृदय रोग, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (COPD)

    कुछ देशों ने व्यावसायिक रोग सूची में कीटनाशकों से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को मान्यता दी है। व्यावसायिक जोखिम सीमा (OEL) के संबंध में सीमित कानून है और आज तक अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों (HHP) की कोई सामंजस्यपूर्ण, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमत सूची नहीं है।

    श्रमिक अधिक जोखिम में क्यों हैं?

    • वर्ष 2011 और 2020 के बीच पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 19वीं सदी के अंत के औसत तापमान से 1.1°C अधिक था।
    • श्रमिक, विशेष रूप से बाहर काम करने वाले, अक्सर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के संपर्क में आने वाले पहले व्यक्ति होते हैं। वे लंबे समय तक और अधिक तीव्रता से प्रभावित हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप लंबे समय में ज्ञात व्यावसायिक खतरों और जोखिमों की व्यापकता और गंभीरता में वृद्धि हो सकती है, और नए जोखिम भी सामने आ सकते हैं।
    • उन्हें अक्सर ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है जिनसे आम जनता बचने का प्रयास कर सकती है।
      • महिला श्रमिक: महिलाओं की नौकरी की भूमिकाओं, जैसे कि निर्वाह कृषि और विभिन्न जीवन चरणों के दौरान जोखिम में वृद्धि हो सकती है; गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं में हाइपरटेंशन/उच्च रक्तचाप, गर्भपात तथा मृत बच्चे का जन्म शामिल हैं।
      • पुरुष श्रमिक: वे भारी शारीरिक श्रम करने की अधिक संभावना रखते हैं, उदाहरण के लिये निर्माण और कृषि क्षेत्र में अक्सर गर्म परिस्थितियों में उन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अधिक खतरा होता है।
      • युवा श्रमिक: उन्हें अक्सर कृषि, निर्माण और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में अत्यधिक गर्म परिस्थितियों में कार्य करना पड़ता है तथा कार्य के दौरान वरिष्ठ वयस्कों की तुलना में उन्हें अधिक दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उनमें परिपक्वता, कौशल, प्रशिक्षण एवं अनुभव की कमी हो सकती है।
      • वरिष्ठ वयस्क श्रमिक: धीमी चयापचय, कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली और बढ़ती बीमारी के बोझ के कारण वे तनाव सहन करने में कम सक्षम होते हैं।
      • दिव्यांग श्रमिक: वे गरीबी और कम शैक्षिक उपलब्धि जैसे सामाजिक जोखिम कारकों की असमान रूप से उच्च दर का अनुभव करते हैं, जिसका परिणाम चरम मौसम की घटनाओं या जलवायु-संबंधी आपात स्थितियों के दौरान खराब स्वास्थ्य के रूप में देखा जाता है।
      • पहले से मौजूद स्वास्थ्य स्थितियों वाले श्रमिक: जलवायु परिवर्तन के जोखिम पहले से मौजूद स्वास्थ्य स्थितियों को और बढ़ा सकते हैं, जिनमें मधुमेह एवं हृदय, गुर्दे तथा श्वसन संबंधी पुरानी बीमारियाँ शामिल हैं।
      • प्रवासी श्रमिक: वे अक्सर उच्च जोखिम वाले शारीरिक श्रम की मांग वाले व्यवसायों में नियोजित होते हैं, उदाहरण के लिये फसल कटाई श्रमिकों के रूप में और भाषा की बाधा के कारण OSH प्रक्रियाओं तथा प्रशिक्षण सामग्रियों को समझने में असमर्थ हो सकते हैं।
      • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल श्रमिक: वित्तीय चिंताओं के कारण अनौपचारिक श्रमिक, काम बंद करने में असमर्थ हो सकते हैं, भले ही चरम जलवायु घटनाओं से उनके स्वास्थ्य को खतरा हो।

    जलवायु परिवर्तन श्रमिकों के स्वास्थ्य और उत्पादकता को कैसे प्रभावित कर रहा है?

    • अत्यधिक गर्मी:
      • उच्च तापमान में कार्य करना उत्पादन क्षमता को कम कर सकता है क्योंकि अधिक गर्मी श्रमिकों की क्षमता में कमी के साथ कार्य की गति को धीमी कर सकती है।
      • अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक दुनिया भर में कुल कामकाजी घंटों का 2.2% उच्च तापमान के कारण नष्ट हो जाएगा, जिससे 80 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर उत्पादकता की हानि होगी।
      • हीट स्ट्रेस के कारण वर्ष 2030 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2,400 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी आने का अनुमान है।
    • पराबैंगनी (UV) विकिरण:
      • कार्य-संबंधी UV विकिरण-प्रेरित त्वचा कैंसर के आर्थिक प्रभाव को मापना कठिन है, जिसके अधिक हानिकारक प्रभाव पड़ने की आशंका है।
      • उदाहरण के लिये कनाडा में व्यावसायिक गैर-मेलेनोमा त्वचा कैंसर के मामलों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लागत 28.9 मिलियन कनाडाई डॉलर अनुमानित है।
    • चरम मौसम की घटनाएँ:
      • चरम मौसम की घटनाओं के वित्तीय प्रभावों में बुनियादी ढाँचे और इमारतों को नुकसान, श्रम उत्पादकता में कमी, कम खपत और निवेश तथा वैश्विक व्यापार प्रवाह में व्यवधान शामिल हैं।
      • अत्यधिक गर्मी और बाढ़ प्रमुख परिधान उत्पादन केंद्रों को खतरे में डाल रही है, फैशन संबंधी उत्पादों के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण चार देशों में वर्ष 2030 तक निर्यात आय में 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी और 10 लाख संभावित नौकरियों के खोने का खतरा है।
    • कार्यस्थल पर वायु प्रदूषण:
      • बाहरी वायु प्रदूषण के वित्तीय निहितार्थ, जिसमें श्रम उत्पादकता, स्वास्थ्य व्यय और कृषि फसल की पैदावार पर प्रभाव शामिल हैं, के कारण वैश्विक आर्थिक लागत बढ़ने का अनुमान है जो धीरे-धीरे वर्ष 2060 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 1% तक बढ़ जाएगी।
      • वैश्विक वायु प्रदूषण से संबंधित स्वास्थ्य देखभाल लागत वर्ष 2015 के 21 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2060 में 176 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है।
    • वेक्टर जनित रोग:
      • स्थानिक वेक्टर-जनित रोग अफ्रीका और एशिया और प्रशांत क्षेत्र के कई क्षेत्रों में दीर्घकालिक आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभावों से जुड़ा हुआ है।
      • कुछ व्यापक आर्थिक अध्ययनों में पाया गया है कि अत्यधिक स्थानिक देशों में मलेरिया आर्थिक विकास को प्रति वर्ष एक प्रतिशत से अधिक कम करने के लिये ज़िम्मेदार हो सकता है।
    • एग्रोकेमिकल :
      • अनुमान है कि प्रतिवर्ष अनजाने, तीव्र कीटनाशक विषाक्तता (Unintentional, Acute Pesticide Poisoning- UAPP) के 385 मिलियन मामले देखे जाते हैं और 44% किसान प्रतिवर्ष कीटनाशक की विषाक्तता का शिकार होते हैं।
      • कीटनाशक विषाक्तता के कारण प्रतिवर्ष 300,000 से अधिक मौतें होती हैं।

    वैश्विक स्तर पर श्रमिकों और कार्यस्थलों की सुरक्षा हेतु क्या पहलें की गई हैं?

    • जापान: जापान में हीटस्ट्रोक की रोकथाम 14वीं राष्ट्रीय व्यावसायिक दुर्घटना रोकथाम योजना 2023-27 के लक्षित परिणामों में से एक है, जिसमें दो विशिष्ट संकेतक हैं:
      • वेट बल्ब ग्लोब तापमान (Wet Bulb Globe Temperature- WBGT) मूल्य के आधार पर हीट स्ट्रेस को संबोधित करने वाले प्रतिष्ठानों की संख्या में वृद्धि।
      • हीटस्ट्रोक से होने वाली मृत्यु की बढ़ी हुई दर में कमी।

    श्रमिकों की भलाई में सुधार के लिए बेल्जियम की राष्ट्रीय कार्य योजना 2022-27 में कहा गया है कि बहुत अधिक तापमान में काम करने के लिए काम के संगठन के तकनीकी निवारक उपायों और श्रमिकों को पीपीई उपलब्ध कराने के लिए समायोजन की आवश्यकता होती है।

    • बेल्जियम: श्रमिकों के कल्याण में सुधार हेतु बेल्जियम की राष्ट्रीय कार्य योजना 2022-27 में कहा गया है कि बहुत अधिक तापमान में काम करने वाले श्रमिकों को PPE उपलब्ध कराने की आवश्यकता होती है।
    • फ्राँस: फ्राँस में कार्यस्थल पर गंभीर और घातक चोटों की रोकथाम के लिये राष्ट्रीय योजना 2022-25 में कहा गया है कि गर्मी के तनाव से मृत्यु दर और गंभीर चोटों की निगरानी ज्ञान में सुधार करने और उन परिस्थितियों की बेहतर समझ हासिल करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण उपाय है जिनमें गंभीर और घातक गर्मी से संबंधित चोटें शामिल हैं।
    • स्पेन: कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य हेतु स्पेनिश रणनीति 2023-27 पर्यावरणीय परिवर्तनों से सबसे अधिक प्रभावित गतिविधियों में कामकाजी परिस्थितियों में सुधार और नियंत्रण के लिये कार्रवाई करती है।
    • चीन: जब बाहरी तापमान 40 डिग्री सेल्सियस (हीटस्ट्रोक रोकथाम पर प्रशासनिक उपाय 2012) से अधिक हो जाए तो काम बंद कर देना चाहिये।
    • दक्षिण अफ्रीका: यदि औसत प्रतिघंटा WBGT 30°C से अधिक हो तो नियोक्ताओं को हीट स्ट्रेस को कम करने के लिये कदम उठाने चाहिये।

    श्रमिकों और कार्यस्थलों की सुरक्षा के लिये भारत द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं?

    • भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने गृह मंत्रालय के सहयोग से अत्यधिक गर्मी की स्थिति में भारतीय कार्यबल की सुरक्षा के लिये "कार्य योजना की तैयारी हेतु राष्ट्रीय दिशा-निर्देश - हीट वेव की रोकथाम और प्रबंधन" प्रकाशित किया।
    • ये दिशा-निर्देश निम्नलिखित के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं:
      • श्रमिकों को शिक्षित करना;
      • उचित जलयोजन सुनिश्चित करना;
      • कार्य अनुसूचियों को विनियमित करना;
      • आवश्यक चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करना;
      • श्रमिकों को उच्च तापमान के अनुकूल बनाना।
    • यह अनुशंसा की जाती है कि अधिक शारीरिक श्रम वाले कार्यों को दिन के ठंडे समय में किया जाना चाहिये और अत्यधिक तापमान की अवधि के दौरान कार्य अवकाश की आवृत्ति तथा अवधि बढ़ा दी जानी चाहिये।
    • गर्भवती श्रमिकों और अंतर्निहित चिकित्सीय स्थितियों वाले श्रमिकों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
    • अंत में यह सलाह दी जाती है कि कर्मचारी साँस लेने वाले उपकरण, हल्के रंग के कपड़े और टोपी पहनें या छतरियों का उपयोग करें।
    • फैक्टरी अधिनियम, 1948 के अनुसार, फैक्टरी वर्करूम में वेट बल्ब ग्लोब तापमान (WBGT) 30°C से अधिक नहीं होना चाहिये।

    ILO की सिफारिशें क्या हैं?

    • अत्यधिक गर्मी:
      • यदि संभव हो तो नियोक्ताओं को गर्म परिस्थितियों में काम करने की आवश्यकता को समाप्त कर देना चाहिये।
      • हवा को वाष्पीकरण द्वारा ठंडा किया जा सकता है, उदाहरण के लिये वेंटिलेशन के अलावा या पानी के स्प्रे द्वारा
    • पराबैंगनी (UV) विकिरण:
      • जब आवश्यक हो, श्रमिकों को उचित कपड़ों और व्यक्तिगत सुरक्षा, जैसे सनस्क्रीन मरहम या लोशन और आँखों की सुरक्षा से सुरक्षित रखें।
      • कार्य को व्यवस्थित कर श्रमिकों को धूप के संपर्क में कम-से-कम रखना।
    • चरम मौसम की घटनाएँ:
      • नियोक्ताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कार्यस्थल पर आपात स्थिति में सभी लोगों की सुरक्षा के लिये आवश्यक जानकारी, आंतरिक संचार और समन्वय सुनिश्चित  किया जाए।
      • आपातकालीन रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया प्रक्रियाओं में सभी सदस्यों को प्रासंगिक जानकारी एवं प्रशिक्षण प्रदान करना।
    • कार्यस्थल वायु प्रदूषण:
      • नए संयंत्र या डिज़ाइन या स्थापना प्रक्रियाओं पर लागू या मौजूदा संयंत्र या प्रक्रियाओं में शामिल तकनीकी उपायों द्वारा कार्य वातावरण को वायु प्रदूषण, शोर या कंपन जैसे किसी भी खतरे से मुक्त रखा जाए।
    • वेक्टर जनित रोग:
      • कार्य वातावरण में जैविक खतरों का प्रभावी प्रबंधन, जिसके दायरे में रोग के जैविक वैक्टर या ट्रांसमीटर शामिल हैं।
    • एग्रोकेमिकल:
      • सुनिश्चित करना कि कर्मचारी एक सीमा से अधिक रसायनों के संपर्क में न आएँ।
      • ऐसे रसायनों और प्रौद्योगिकी का चयन करना जो जोखिम को समाप्त या न्यूनतम करे।

    निष्कर्ष:

    जलवायु परिवर्तन वैश्विक स्तर पर श्रमिकों के लिये गंभीर जोखिम पैदा करता है, खुले वातावरण में कार्य में संलग्न श्रमिकों को अत्यधिक तापमान और मौसमी घटनाओं के बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ता है। जापान, बेल्जियम तथा भारत आदि विभिन्न देश अपनी पहलों में श्रमिकों के स्वास्थ्य एवं कल्याण की रक्षा हेतु सक्रिय उपायों के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कार्यस्थल पर सुरक्षा व उत्पादकता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने हेतु व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता पर जोर देता है।

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