विद्या समीक्षा केंद्रों के लिये टोल-फ्री नंबर | उत्तर प्रदेश | 13 Aug 2024
चर्चा में क्यों?
सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के प्रयासों के तहत विद्या समीक्षा केंद्रों के लिये एक टोल-फ्री नंबर प्रणाली लागू करने की तैयारी में है।
मुख्य बिंदु:
- यह टोल-फ्री लाइन फीडबैक एकत्र करने, चिंताओं का समाधान करने तथा अभिभावकों, छात्रों और शिक्षकों से स्कूल शिक्षा संबंधी पूछताछ का समाधान करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करेगी।
- इस पहल से राज्य में प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और समग्र स्कूल स्तर पर छात्रों को सहायता प्रदान करने के लिये सार्वजनिक भागीदारी बढ़ाने तथा शिक्षा प्रणाली को मज़बूत करने की उम्मीद है।
- इसके अतिरिक्त, सभी विद्या समीक्षा केंद्रों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा।
विद्या समीक्षा केंद्र (Vidya Samiksha Kendras- VSK)
- परिचय:
- VSK का उद्देश्य अधिगम के परिणामों में बड़ी उपलब्धि के लिये डेटा और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना है।
- इसमें 15 लाख से अधिक स्कूलों, 96 लाख शिक्षकों और 26 करोड़ छात्रों के डेटा को कवर किया जाएगा तथा शिक्षा प्रणाली की समग्र निगरानी को बढ़ाने के लिये बिग डेटा विश्लेषण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) एवं मशीन लर्निंग का उपयोग करके उनका सार्थक विश्लेषण किया जाएगा, जिससे अधिगम परिणामों में सुधार होगा।
- उद्देश्य:
- समग्र शिक्षा के दायरे में विभिन्न परियोजनाओं/गतिविधियों की वास्तविक समय स्थिति की निगरानी करना।
- नामांकित छात्रों पर नज़र रखना, जिसमें अधिगम के परिणाम, स्कूल छोड़ने वाले छात्र, शिक्षकों और स्कूलों द्वारा अपेक्षित सहायता आदि शामिल हैं।
- क्षेत्र स्तर की शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक गतिविधियों की राज्य स्तर पर निगरानी तथा ट्रैक करना एवं क्षेत्र में प्रशासकों व शिक्षकों को डेटा आधारित निर्णय लेने हेतु सशक्त बनाना।
- स्कूल पारिस्थितिकी तंत्र के हितधारकों के लिये शिकायत निवारण तंत्र हेतु एक केंद्रीकृत सहायता डेस्क स्थापित करना।
- निर्णय लेने और कार्यान्वयन में सुधार के लिये क्षेत्रों की पहचान तथा उनका विश्लेषण करना जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
उत्तराखंड की नदियों में बहीं महिलाएँ | उत्तराखंड | 13 Aug 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड में गंगा और भागीरथी नदियों की तेज़ धारा में तीन महिलाएँ बह गईं।
मुख्य बिंदु:
बिहार में मंदिर में भगदड़ | बिहार | 13 Aug 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार के जहानाबाद ज़िले में स्थित मखदुमपुर स्थित बाबा सिद्धनाथ मंदिर में भगदड़ मचने से कई लोगों की मृत्यु हो गई।
मुख्य बिंदु:
- यह घटना कथित तौर पर मंदिर के प्रवेश द्वार के पास काँवड़ियों और फूल विक्रेताओं के बीच विवाद के कारण हुई।
- स्थानीय अधिकारी घटना के कारणों की जाँच कर रहे हैं तथा पीड़ितों के परिवारों के लिये वित्तीय सहायता की घोषणा की गई है।
भगदड़
- परिचय:
- भगदड़, भीड़ का एक आवेगपूर्ण सामूहिक आंदोलन है जिसके परिणामस्वरूप लोग प्रायः घायल होते हैं और उनकी मृत्यु होती हैं।
- यह प्रायः किसी खतरे की आशंका, भौतिक स्थान की हानि तथा किसी संतुष्टिदायक वस्तु को प्राप्त करने की सामूहिक इच्छा के कारण उत्पन्न होती है।
- प्रकार:
- भगदड़ के दो मुख्य प्रकार हैं: एकदिशात्मक भगदड़ तब होती है जब एक ही दिशा में चलती भीड़ को अचानक परिवर्तन का सामना करना पड़ता है, जो अचानक रुकने जैसी शक्तियों अथवा टूटे हुए अवरोधों जैसी नकारात्मक शक्तियों के कारण उत्पन्न होता है।
- अशांत भगदड़ तब होती है जब भीड़ अनियंत्रित हो और विभिन्न दिशाओं से भीड़ आ जाए।
- भगदड़ में मृत्यु:
- अभिघातजन्य श्वासावरोध: यह सबसे आम कारण है जो वक्ष या ऊपरी पेट के बाहरी दबाव के कारण होता है। यह 6-7 लोगों की मध्यम भीड़ में भी हो सकता है जो एक दिशा में धक्का दे रहे हों।
- अन्य कारण: मायोकार्डियल इन्फार्क्शन (दिल का दौरा), आंतरिक अंगों को प्रत्यक्ष रूप से दमित करने वाली चोटें, सिर की चोटें और गर्दन का संपीड़न।
- भगदड़ के कारण निम्नलिखित प्रकार से मृत्यु हो सकती है:
मध्य प्रदेश में फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट | मध्य प्रदेश | 13 Aug 2024
चर्चा में क्यों?
सूत्रों के अनुसार, मध्य और उत्तर भारत का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट, जो 90 मेगावाट ऊर्जा उत्पन्न करता है, मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में चालू हो गया है।
मुख्य बिंदु
- इस परियोजना का क्रियान्वयन SJVN ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (SGEL) द्वारा किया जा रहा है। यह भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत एक मिनी रत्न श्रेणी 'A' केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (CPSU) है।
- ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट:
नर्मदा नदी
- परिचय:
- नर्मदा नदी (जिसे रीवा के नाम से भी जाना जाता है) उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक पारंपरिक सीमा के रूप में कार्य करती है।
- यह मैकाल पर्वत की अमरकंटक चोटी से अपने उद्गम स्थल से 1,312 किमी. पश्चिम में है। यह खंभात की खाड़ी में बहती है।
- यह महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के कुछ क्षेत्रों के अलावा मध्य प्रदेश के एक बड़े क्षेत्र में बहती है।
- यह प्रायद्वीपीय क्षेत्र की पश्चिम की ओर बहने वाली नदी है जो उत्तर में विंध्य पर्वतमाला और दक्षिण में सतपुड़ा पर्वतमाला के बीच एक दरार घाटी से होकर बहती है।
- सहायक नदियाँ:
- दाहिनी ओर से प्रमुख सहायक नदियाँ हैं- हिरन, तेंदोरी, बरना, कोलार, मान, उरी, हटनी और ओरसांग।
- प्रमुख बाईं सहायक नदियाँ हैं- बर्नर, बंजार, शेर, शक्कर, दूधी, तवा, गंजाल, छोटा तवा, कुंडी, गोई और कर्जन।
- बाँध:
- नदी पर बने प्रमुख बाँधों में ओंकारेश्वर और महेश्वर बाँध शामिल हैं।
राजस्थान की फर्स्ट एविएशन एकेडमी | राजस्थान | 13 Aug 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान के मुख्यमंत्री ने अजमेर ज़िले के किशनगढ़ हवाई अड्डे पर राज्य की पहली उड़ान प्रशिक्षण अकादमी का उद्घाटन किया।
मुख्य बिंदु
- नई अकादमी किशनगढ़ में आर्थिक गतिविधियों के विकास में सहायता करेगी, जो कि संगमरमर और ग्रेनाइट उद्योग के कारण एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र के रूप में उभरा है।
- राज्य में हवाई संपर्क में वृद्धि से पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
- केंद्र ने देश में 21 ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों को मंज़ूरी दी थी और हवाई यात्रियों की संख्या बढ़ाने तथा कम सेवा वाले हवाई मार्गों को उन्नत करके क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने के लिये कदम उठाए थे।
- केंद्र की उड़ान योजना से 1.41 करोड़ से अधिक घरेलू यात्री लाभान्वित हुए।
उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) योजना
- परिचय:
- यह योजना नागर विमानन मंत्रालय (Ministry of Civil Aviation) द्वारा क्षेत्रीय हवाईअड्डे के विकास और क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के लिये शुरू की गई थी।
- यह राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति, 2016 का एक हिस्सा है।
- यह योजना 10 वर्ष की अवधि के लिये लागू है।
- उद्देश्य:
- भारत के सुदूर और क्षेत्रीय क्षेत्रों में हवाई संपर्क में सुधार लाना।
- दूरस्थ क्षेत्रों का विकास करना तथा व्यापार और वाणिज्य एवं पर्यटन विस्तार को बढ़ावा देना।
- आम लोगों को किफायती दरों पर हवाई यात्रा की सुविधा उपलब्ध कराना।
- विमानन क्षेत्र में रोज़गार सृजन।
आदिवासी संपत्तियों पर सुरक्षा शिविर | झारखंड | 13 Aug 2024
चर्चा में क्यों?
सिटीज़न की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के बाद छत्तीसगढ़ और झारखंड में अधिकांश सुरक्षा शिविर आदिवासियों की निजी या सामुदायिक संपत्तियों पर उनकी सहमति के बिना तथा मौजूदा कानूनों का गंभीर उल्लंघन करते हुए स्थापित किये गए हैं।
मुख्य बिंदु
- छत्तीसगढ़ और झारखंड में आदिवासी समुदायों की सहमति के बिना स्थापित अर्द्धसैनिक शिविरों का प्रसार, जिनका उद्देश्य आदिवासियों के जीवन तथा संवैधानिक अधिकारों की कीमत पर खनन कार्यों एवं कॉर्पोरेट हितों को सुविधाजनक बनाना है।
- शिविरों के विरुद्ध शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक विरोध को नज़रअंदाज़ किया गया है या लाठीचार्ज, स्थलों को जलाने और प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी जैसे क्रूर तरीकों का इस्तेमाल करके दबा दिया गया है।
- इनमें से अधिकांश शिविर ऐसे क्षेत्रों में स्थापित किये गए हैं, जो वर्तमान में संधारणीय खनन प्रबंधन योजना 2018 के अनुसार संरक्षण या खनन निषेध क्षेत्र में आते हैं।
- रिपोर्ट में कानून का सम्मान करने और मानव अधिकारों के उल्लंघन को समाप्त करने के लिये पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 तथा वन अधिकार अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन का आह्वान किया गया है।3
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996
- परिचय:
- PESA अधिनियम 1996 में “पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करने के लिये” अधिनियमित किया गया था।
- संविधान के भाग IX में अनुच्छेद 243-243ZT शामिल हैं, जिसमें नगर पालिकाओं और सहकारी समितियों से संबंधित प्रावधान हैं।
- प्रावधान:
- अधिनियम के तहत, अनुसूचित क्षेत्र वे हैं जो अनुच्छेद 244(1) में संदर्भित हैं, जिसमें कहा गया है कि पाँचवीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा अन्य राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों पर लागू होंगे।
- पाँचवीं अनुसूची में इन क्षेत्रों के लिये अनेक विशेष प्रावधान किये गये हैं।
- दस राज्य- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना ने पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्रों को अधिसूचित किया है, जो इनमें से प्रत्येक राज्य के कई ज़िलों को (आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से) कवर करते हैं।
वन अधिकार अधिनियम, 2006
- वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 को वन में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को वन भूमि पर औपचारिक रूप से वन अधिकारों तथा कब्ज़े को मान्यता देने एवं प्रदान करने के लिये पेश किया गया था, जो इन वनों में पीढ़ियों से निवास कर रहे हैं, भले ही उनके अधिकारों को आधिकारिक तौर पर दस्तावेज़ित नहीं किया गया हो।
- इसका उद्देश्य औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक भारत की वन प्रबंधन नीतियों के कारण वन-निवासी समुदायों द्वारा झेले गए ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करना था, जो वनों के साथ उनके दीर्घकालिक सहजीवी संबंधों को स्वीकार करने में विफल रहे।
- इसके अतिरिक्त, अधिनियम का उद्देश्य वनवासियों को वन संसाधनों तक पहुँच और उनका स्थायी उपयोग करने, जैवविविधता तथा पारिस्थितिकी संतुलन को बढ़ावा देने एवं उन्हें गैरकानूनी बेदखली व विस्थापन से बचाने के लिये सशक्त बनाना था।