उत्तराखंड Switch to English
वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम-II (VVP-II)
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वित्त वर्ष 2024-25 से 2028-29 के लिये केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम-II (VVP-II) को मंजूरी दी।
मुख्य बिंदु
- योजना के बारे में:
- यह योजना 'सुरक्षित, संरक्षित और जीवंत भूमि सीमाओं' के लिये विकसित भारत@2047 के दृष्टिकोण का समर्थन करती है।
- यह उत्तरी सीमा (जो पहले से ही VVP-I के अंतर्गत आती है) को छोड़कर, अंतर्राष्ट्रीय भूमि सीमाओं (ILB) से सटे ब्लॉकों में गाँवों के व्यापक विकास पर केंद्रित है।
- कुल परिव्यय: 6,839 करोड़ रुपए।
- कार्यान्वयन अवधि: वित्त वर्ष 2028-29 तक।
- कवर किये गए राज्य/संघ राज्य क्षेत्र:
- अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, जम्मू-कश्मीर (UT), लद्दाख (UT), मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल।
- उद्देश्य:
- रणनीतिक सीमावर्ती गाँवों में बेहतर जीवन स्थितियाँ सृजित करना।
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निवासियों को पर्याप्त आजीविका के अवसर प्रदान करना।
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समृद्ध और सुरक्षित अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को सुनिश्चित करना।
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संवेदनशील क्षेत्रों में सीमापार अपराध को नियंत्रित करना।
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सीमावर्ती आबादी को राष्ट्रीय मुख्यधारा के साथ एकीकृत करना।
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ग्रामीणों को सीमा सुरक्षा बलों की 'आँख और कान' के रूप में सेवा करने में सक्षम बनाना, जिससे आंतरिक सुरक्षा बढ़े।
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VVP-II के अंतर्गत प्रमुख प्रावधान:
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व्यक्तिगत गाँवों या ग्राम समूहों में बुनियादी ढाँचे का विकास।
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सहकारी समितियों, स्वयं सहायता समूहों (SHG) आदि के माध्यम से मूल्य शृंखला विकास।
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स्थानीय समुदायों को शामिल करने और उन्हें सशक्त बनाने के लिये सीमा-विशिष्ट आउटरीच गतिविधियाँ।
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स्मार्ट कक्षाओं सहित शिक्षा के बुनियादी ढाँचे की स्थापना।
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स्थानीय अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक दृश्यता को बढ़ावा देने के लिये पर्यटन सर्किटों का विकास।
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सीमावर्ती क्षेत्रों में विविध एवं स्थायी आजीविका अवसरों के लिये परियोजनाओं का कार्यान्वयन।
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-
कार्यान्वयन दृष्टिकोण:
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ग्राम कार्य योजनाएँ : सहयोगात्मक रूप से विकसित, राज्य, गाँव और सीमा-विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप.
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सड़क संपर्क: PMGSY-IV के माध्यम से (ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन)
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उच्चाधिकार प्राप्त समिति (कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में): कार्यान्वयन दिशा-निर्देशों में छूट देने के लिये
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संतृप्ति केंद्रित (विषयगत क्षेत्र)
- कार्यक्रम का उद्देश्य विभिन्न योजनाओं को एक साथ लाकर यह सुनिश्चित करना है कि चयनित गाँवों के सभी व्यक्तियों और परिवारों को मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिले।
- इसकी योजना इन क्षेत्रों के सभी गाँवों को चार बुनियादी सेवाओं से पूर्णतया कवर करने की भी है:
- सभी मौसमों के लिये सड़क संपर्क
- दूरसंचार कनेक्टिविटी
- टेलीविज़न कनेक्टिविटी
- विद्युतीकरण
- प्रौद्योगिकी का उपयोग
- एकीकृत योजना और ट्रैकिंग के लिये पीएम गति शक्ति प्लेटफॉर्म जैसे डिजिटल उपकरणों द्वारा समर्थित कार्यान्वयन


राजस्थान Switch to English
रेलवे स्टेशनों पर सौर ऊर्जा स्थापना में राजस्थान अग्रणी
चर्चा में क्यों ?
2 अप्रैल 2025 को लोकसभा में केंद्रीय रेल मंत्री के वक्तव्य के अनुसार कि राजस्थान सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना करने वाला देश में अग्रणी राज्य बन गया है।
मुख्य बिंदु
- राजस्थान में 275 रेलवे स्टेशनों पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किये गए हैं, जो देश में सबसे अधिक हैं।
- वर्ष 2014-15 से 2019-20 के बीच 73 स्टेशन और 2020-21 से फरवरी, 2025 के बीच 200 और स्टेशन जोड़े गए।
- भारतीय रेलवे की अक्षय ऊर्जा योजना:
- भारतीय रेलवे ने 2025-26 तक 100% विद्युतीकरण प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।
- रेलवे का उद्देश्य 2030 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जक बनना है।
- इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये रेलवे अपनी ऊर्जा की आवश्यकता को अक्षय ऊर्जा के माध्यम से पूरा करेगा, जिसमें सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा का मिश्रण होगा।
- रेलवे अपनी अक्षय ऊर्जा की मांग को विभिन्न स्वतंत्र बिजली उत्पादकों के साथ दीर्घकालिक बिजली खरीद समझौतों के माध्यम से पूरा करेगा।
- रेलवे अपने स्टेशनों की छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाएगा और अपनी खाली भूमि का उपयोग करेगा।
- भारतीय रेलवे 2030 तक अपनी खाली भूमि पर 20 गीगावाट सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का लक्ष्य रखता है।
- रेलवे स्टेशनों पर सौर ऊर्जा संयंत्र:
- शीर्ष 5 राज्य:
- राजस्थान - 275
- महाराष्ट्र – 270
- पश्चिम बंगाल - 237
- उत्तर प्रदेश - 204
- आंध्र प्रदेश -198
- शीर्ष 5 राज्य:
सौर ऊर्जा
- परिचय:
- सौर ऊर्जा, सूरज से प्राप्त एक नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है, जिसे सीधे सूर्य के प्रकाश को इलेक्ट्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करके प्राप्त किया जाता है। सौर पैनल और सौर तापीय संयंत्रों के माध्यम से इसे बिजली उत्पादन, हीटिंग और उपकरणों को ऊर्जा प्रदान करने में किया जाता है।
- लाभ:
- सौर ऊर्जा की उपलब्धता पूरे दिन बनी रहती है विशेष रूप से उस समय भी जब विद्युत ऊर्जा की मांग सर्वाधिक होती है।
- सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करने वाले उपकरणों की अवधि अधिक होती है और उनके रखरखाव की भी कम आवश्यकता होती है।
- पारंपरिक ताप विद्युत उत्पादन (कोयले द्वारा) के विपरीत सौर ऊर्जा से प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न नहीं होती है तथा स्वच्छ विद्युत ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है।
- देश के लगभग सभी हिस्सों में मुफ्त सौर ऊर्जा की प्रचुरता है।
- सौर ऊर्जा के उपयोग में विद्युत के तार एवं ट्रांसमिशन का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती


छत्तीसगढ़ Switch to English
बस्तर पण्डुम महोत्सव
चर्चा में क्यों?
- केंद्रीय गृह मंत्री ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में बस्तर पंडुम महोत्सव को संबोधित किया, जिसमें जनजातीय विरासत का उत्सव मनाया गया तथा नक्सलवाद के उन्मूलन और क्षेत्र के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिये चल रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला गया।
मुख्य बिंदु
- सांस्कृतिक पहचान और बस्तर पंडुम:
- छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र अपनी आदिवासी संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाजों और विविध आदिवासी व्यंजनों के लिये जाना जाता है।
- बस्तर की इस समृद्ध आदिवासी कला और संस्कृति को पुनर्जीवित करने और इसे देश-विदेश के सामने लाने के लिये बस्तर पण्डुम का आयोजन किया गया।
- इस तीन दिवसीय कार्यक्रम के अंतर्गत आदिवासी नृत्य, लोकगीत, आदिवासी नाटक, वाद्य यंत्र, वेशभूषा, आभूषण, शिल्प और व्यंजन सहित सात विधाओं में प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं।
- अगले वर्ष इसे बारह श्रेणियों में मनाया जाएगा और देश भर से आदिवासी लोग इसमें भाग लेंगे।
- छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र अपनी आदिवासी संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाजों और विविध आदिवासी व्यंजनों के लिये जाना जाता है।
- नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई:
- सरकार का लक्ष्य: मार्च 2026 तक नक्सलवाद मुक्त भारत।
- ग्राम प्रोत्साहन योजना: नक्सल मुक्त घोषित गाँवों को विकास निधि के रूप में 1 करोड़ रुपए मिलेंगे।
- शासन एवं विकास पहल:
- जनजातीय पहचान और इतिहास को बढ़ावा देना: जनजातीय उत्पादों के लिये जीआई टैगिंग और "वोकल फॉर लोकल" पहल।
- जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की राष्ट्रीय मान्यता:
- बस्तर के वीर गुण्डाधुर का सम्मान।
- बिरसा मुंडा की जयंती को राष्ट्रीय गौरव दिवस घोषित किया गया।
- 15 नवंबर 2024 को जनजातीय गौरव वर्ष के रूप में 150वीं वर्षगाँठ मनाई गई।


मध्य प्रदेश Switch to English
जल गंगा संवर्द्धन अभियान
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश के नगरीय निकायों के जल-स्रोतों, नदी, तालाबों, कुआँ, बावड़ी के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिये जल गंगा संवर्द्धन अभियान शुरू किया गया।
मुख्य बिंदु
- अभियान के बारे में:
- यह अभियान 30 मार्च 2025 को क्षिप्रा नदी के तट से आरंभ हुआ और 30 जून 2025 तक चलेगा।
- उद्देश्य:
- जल स्रोतों का संरक्षण: जल गंगा अभियान का मुख्य उद्देश्य प्रदेश के जल-संरचनाओं (नदी, तालाब, कुए, बावड़ी आदि) का संरक्षण और पुनर्जीवन करना है।
- इसमें गंदे पानी के नालों को स्वच्छ भारत मिशन-2.0 के अंतर्गत शोधित करने की योजना भी शामिल है।
- जन-भागीदारी को बढ़ावा देना: इस अभियान में नगरीय निकायों द्वारा नागरिकों, विशेष रूप से महिलाओं, की भागीदारी सुनिश्चित करने की कोशिश की जा रही है।
- विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक अवसरों पर आयोजन: अभियान के दौरान गंगा दशहरा (5 जून) और बट सावित्री पूर्णिमा जैसे विशेष दिनों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, पौधारोपण और वृक्षारोपण जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
- इन आयोजनों के माध्यम से जल संरचनाओं और प्रकृति के महत्त्व को उजागर किया जाएगा।
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और संवर्द्धन: इस अभियान में जल संरचनाओं के आसपास हरित क्षेत्र (ग्रीन बेल्ट) बनाने की योजना है और जल संरचनाओं के गहरीकरण के दौरान निकली मिट्टी को किसानों को दिया जाएगा, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सके।
- दिशा-निर्देश और कार्यान्वयन:
- स्वच्छ भारत मिशन-2.0 के तहत जल संरचनाओं में मिलने वाले गंदे पानी के नालों को डायवर्जन के बाद शोधित करना।
- पेयजल सुविधा के लिये शहर के प्रमुख स्थानों पर प्याऊ की व्यवस्था।
- रैन-वॉटर हॉर्वेस्टिंग प्रणाली को कॉलोनियों में स्थापित करना।
- लीकेज सुधारने की व्यवस्था ताकि पानी का अपव्यय न हो।
- जलदूत, जल मित्र और अमृत मित्र तैयार करना।
स्वच्छ भारत मिशन (SBM):
- परिचय
- यह एक वृहत जन आंदोलन है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2019 तक स्वच्छ भारत का निर्माण करना था।
2 अक्टूबर 2014 (गांधी जयंती) के अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन की नींव रखी। यह मिशन सभी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को दायरे में लेता है। - इस मिशन के शहरी घटक का क्रियान्वयन आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा और ग्रामीण घटक का क्रियान्वयन जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
- यह एक वृहत जन आंदोलन है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2019 तक स्वच्छ भारत का निर्माण करना था।
- स्वच्छ भारत मिशन-शहरी:
- चरण 1:
- कार्यक्रम में खुले में शौच (open defecation) का उन्मूलन करना, गंदे शौचालयों को फ्लश शौचालयों में बदलना, हाथ से मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन करना, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और स्वस्थ स्वच्छता अभ्यासों के संबंध में लोगों के व्यवहार में बदलाव लाना शामिल है।
- मिशन 1.04 करोड़ घरों को कवर करने, 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय एवं 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय प्रदान करने और प्रत्येक शहर में एक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधा का निर्माण करने का लक्ष्य रखता है।
- सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के लिये अपेक्षित सहायता के रूप में केंद्र सरकार द्वारा सामुदायिक शौचालय के निर्माण की लागत का 40% तक व्यवहार्यता अंतराल वित्तपोषण (VGF)/एकमुश्त अनुदान के रूप में प्रदान किया जाएगा। SBM दिशानिर्देशों के अनुसार, राज्य/केंद्रशासित प्रदेश उक्त घटक के लिये अतिरिक्त 13.33% प्रदान करेंगे।
- पूर्वोत्तर राज्यों और विशेष श्रेणी के राज्यों को केवल 4% योगदान देना होगा। धन की व्यवस्था शहरी स्थानीय निकाय द्वारा नवोन्मेषी तंत्रों के माध्यम से करनी होगी। सामुदायिक शौचालय की प्रति सीट अनुमानित लागत 65,000 रुपए है।
- चरण 2:
- SBM-U 2.0 में सभी शहरों को ‘कूड़ा मुक्त’ बनाने और ‘अमृत’ (AMRUT) के अंतर्गत शामिल शहरों के अलावा अन्य सभी शहरों में गंदले जल (grey and black water) प्रबंधन को सुनिश्चित करने, सभी शहरी स्थानीय निकायों को ODF+ में परिणत करने तथा 1 लाख से कम आबादी वाले शहरों को ODF++ में परिणत करने की परिकल्पना की गई है, ताकि शहरी क्षेत्रों में सुरक्षित स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
- मिशन ठोस अपशिष्टों के स्रोत पर पृथक्करण, 3Rs (reduce, reuse, recycle) के सिद्धांतों के उपयोग, सभी प्रकार के नगरपालिका ठोस अपशिष्ट के वैज्ञानिक प्रसंस्करण और प्रभावी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिये पुराने डंपसाइटों के उपचार पर ध्यान केंद्रित करता है। वर्ष 2021-22 से 2025-26 की अवधि के लिये SBM-U 2.0 का परिव्यय लगभग 1.41 लाख करोड़ रुपए है।
- चरण 1:


उत्तर प्रदेश Switch to English
सारनाथ मूर्तिकला शैली
चर्चा में क्यों?
थाईलैंड की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थाईलैंड के राजा महा वजिरालोंगकोर्न को सारनाथ शैली में निर्मित ध्यान मुद्रा में बुद्ध की पीतल की प्रतिमा उपहार में दी।
- सारनाथ मूर्तिकला के बारे में:
- उद्भव एवं विकास:
- नामकरण:
- यह शैली सारनाथ में विकसित हुई थी, जहाँ महात्मा बुद्ध ने अपना प्रसिद्ध 'धर्मचक्र प्रवर्तन' (प्रथम उपदेश) दिया था।
- इसके परिणामस्वरूप इस कला शैली को 'सारनाथ शैली' के नाम से जाना गया।
- निर्माण सामग्री:
- प्राचीन काल में मूर्तियों के निर्माण के लिये मुख्यतः बलुआ पत्थर का प्रयोग किया जाता था। किंतु वर्तमान में, पत्थर के साथ-साथ पीतल जैसी धातुओं का भी उपयोग किया जाने लगा है, जिससे मूर्तियों की संरचना और स्थायित्व में सुधार हुआ।
- विशेषताएँ:
- सारनाथ कला की बुद्ध की मूर्तियाँ शांति और ज्ञान की गहरी भावना को व्यक्त करती हैं।
- बुद्ध की मूर्तियों में झुकी हुई आँखें और तीव्र नाक होती है, साथ ही उनके होठों पर एक सौम्य मुस्कान होती है। सारनाथ शैली के बुद्ध का चेहरा अत्यंत कोमल है।
- बुद्ध को धर्मचक्र मुद्रा (शिक्षा मुद्रा) में बैठा हुआ दर्शाया जाता है, जहाँ उनके हाथ धर्म चक्र घुमाने और शिक्षा देने की मुद्रा में होते हैं।
- इन मूर्तियों में अक्सर अभंग मुद्रा को चित्रित किया जाता है, जिसमें बुद्ध का शरीर हल्का झुका होता है, जो गति और सुंदरता का आभास कराता है।
- बुद्ध की मूर्ति के पीछे का प्रभामंडल प्रायः जटिल पुष्प आकृतियों से सुसज्जित होता है, जो मूर्ति की भव्यता और आध्यात्मिक महत्त्व को और भी बढ़ा देता है।


राजस्थान Switch to English
मीनाकारी कला
चर्चा में क्यों?
थाईलैंड की यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने थाईलैंड की प्रधानमंत्री शिनावात्रा के पति, पिटक सुकसावत को मीनाकारी कला से सजाए गए बाघ के रूप वाले कफलिंक उपहार में दिये।
मुख्य बिंदु
- मीनाकारी कला के बारे में:
- मीनाकारी कला विशेष रूप से राजस्थान और गुजरात राज्यों में प्रचलित है।
- यह धातु की सतह पर खनिज पदार्थों को मिलाकर सजाने की कला है।
- इसमें पक्षियों, फूलों और पत्तियों के नाटकीय रूपांकनों को चमकीले रंगों के साथ विभिन्न प्रकार की धातुओं पर चित्रित या अलंकृत किया जाता है।
- इस कला की उत्पत्ति फारस (ईरान) में हुई थी और भारत में यह कला 16वीं सदी में मुगल शासन के साथ आई।
- इस कला में धातु, पत्थर और कपड़ों पर रंग और डिज़ाइन बनाने के लिये काँच के बारीक पाउडर का उपयोग किया जाता है।
- मीनाकारी कला के प्रमुख कलाकारों में कुदरत सिंह को इस कला का जादूगर माना जाता है और उन्हें वर्ष 1968 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- कफलिंक्स की विशेषताएँ
- ये इस कला की समृद्धता को दर्शाते हैं।
- इन कफ़लिंक्स में राजसी बाघ के चेहरे की आकृति साहस और नेतृत्व का प्रतीक है।
- इन्हें उच्च गुणवत्ता वाली चाँदी पर सोने की परत चढ़ाकर तैयार किया गया है और इसमें जीवंत तामचीनी का काम किया गया है, जो भारत की समृद्ध आभूषण परंपराओं को प्रस्तुत करता है।


मध्य प्रदेश Switch to English
मुख्यमंत्री सुगम परिवहन सेवा
चर्चा में क्यों?
मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में मध्य प्रदेश के नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिये मुख्यमंत्री सुगम परिवहन सेवा की शुरुआत को मंजूरी दी गई।
मुख्य बिंदु
- परिवहन सेवा के बारे में:
-
उद्देश्य:
- इस योजना का मुख्य उद्देश्य मध्य प्रदेश के नगरों और ग्रामीण इलाकों में यात्रियों के लिये एक सुविधाजनक, सुरक्षित और सुव्यवस्थित यात्री परिवहन व्यवस्था स्थापित करना है।
- इस योजना के तहत, ग्रामीण और साधारण मार्गों पर बस सेवाओं का विस्तार किया जाएगा, जिससे लोग आसानी से यात्रा कर सकेंगे और उन्हें नियमित, सुरक्षित और सुलभ परिवहन सुविधाएँ उपलब्ध होंगी।
- वित्तीय स्वीकृति और संरचना:
- इस परियोजना के लिये 101 करोड़ 20 लाख रुपए की स्वीकृति दी गई है।
- कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत राज्य स्तर पर एक होल्डिंग कंपनी का गठन किया जाएगा, जो सात संभागीय कंपनियों के नियंत्रण को एकीकृत करेगी।
- रीवा और ग्वालियर के लिये नए क्षेत्रीय कंपनियों का गठन किया जाएगा और इन कंपनियों की निगरानी के लिये त्रि-स्तरीय संरचना का निर्माण होगा।
- संपत्ति और संसाधनों का उपयोग:
- सिटी ट्रांसपोर्ट कंपनियों द्वारा उपयोग में लाई गई चल-अचल संपत्तियाँ, जैसे बस टर्मिनल और बस स्टॉप, होल्डिंग कंपनी द्वारा सामंजस्य से विकसित की जाएंगी।
- नगर निगम और अन्य प्राधिकरणों द्वारा विकसित संपत्तियों का मूल्यांकन किया जाएगा और उनकी राशि का भुगतान परिवहन विभाग द्वारा किया जाएगा।
- नियमों में संशोधन:
- मध्य प्रदेश मोटरयान नियम, 1994 में आवश्यक संशोधन की सैद्धांतिक स्वीकृति दी गई है, ताकि परिवहन से जुड़े नियमों में समायोजन किया जा सके।
- बस संचालन के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल अपनाया जाएगा, जिससे निजी बस ऑपरेटरों को व्यवस्थित रूप से विनियमित किया जाएगा
-
कंपनी अधिनियम, 2013
- कंपनी अधिनियम, 2013 भारत में 30 अगस्त 2013 को लागू हुआ था।
- यह अधिनियम भारत में कंपनियों के निर्माण से लेकर उनके समापन तक सभी स्थितियों में मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।
- कंपनी अधिनियम के तहत नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल’ (NCTL) की स्थापना की गई है।
- उल्लेखनीय है कि कंपनी अधिनियम, 2013 ने ही ‘एक व्यक्ति कंपनी’ (One Person Company) की अवधारणा की शुरुआत की।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल
- PPP परियोजना का अर्थ है किसी भी परियोजना के लिये सरकार या उसकी किसी वैधानिक संस्था और निजी क्षेत्र के बीच हुआ लंबी अवधि का समझौता।
- इस समझौते के तहत शुल्क लेकर ढाँचागत सेवा प्रदान की जाती है। इसमें आमतौर पर दोनों पक्ष मिलकर एक स्पेशल परपज व्हीकल (SPV) गठित करते हैं, जो परियोजना पर अमल का काम करता है।
- आज अवसंरचना के कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों, जैसे- सड़क, रेल, नवीकरणीय ऊर्जा, बंदरगाह, हवाई-अड्डा, पाइपलाइन और शहरी ढाँचागत क्षेत्र आदि में निवेश के लिये PPP मॉडल को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- लाभ-
- PPP मॉडल अपनाने से परियोजनाएँ सही लागत पर और समय से पूरी हो जाती हैं।
- PPP से काम समय से पूरा होने के कारण निर्धारित परियोजनाओं से होने वाली आय भी समय से शुरू हो जाती है, जिससे सरकार की आय में भी बढ़ोतरी होने लगती है।
- परियोजनाओं को पूरा करने में श्रम और पूंजी संसाधन की प्रोडक्टिविटी बढ़ाकर अर्थव्यवस्था की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
- PPP मॉडल के तहत किये गए काम की गुणवत्ता सरकारी काम की तुलना में अच्छी होती है और साथ ही काम अपने निर्धारित योजना के अनुसार होता है।

