परिप्रेक्ष्य: 2024 में भारतीय कूटनीति | 06 Jan 2025
प्रिलिम्स के लिये:ब्रिक्स, एससीओ, जी-20, महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (आईसीईटी), मुद्रा विनिमय समझौता, चाबहार बंदरगाह, चीन की बेल्ट एंड रोड पहल, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी), भारत की पड़ोस-प्रथम नीति, मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए), महत्त्वपूर्ण खनिज, एआई प्रौद्योगिकियाँ, वसुधैव कुटुंबकम, क्वाड, दक्षिण-दक्षिण सहयोग, भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन, आपूर्ति शृंखला लचीलापन, इंडो-पैसिफिक मेन्स के लिये:भारत के सामरिक हितों को सुरक्षित रखने के लिये भारतीय विदेश नीति का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2024 में, भारत के विदेश मंत्री ने देश की विदेश नीति को 'विश्वबंधु' की अवधारणा के रूप में प्रस्तुत किया, जिसका अर्थ है- दुनिया का मित्र।
भारत ने वर्ष 2024 में प्रमुख शक्तियों और पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों को कैसे प्रबंधित किया?
- भू-राजनीतिक अस्थिरता का संदर्भ: वर्ष 2024 में भारत ने एक चुनौतीपूर्ण वैश्विक वातावरण का सामना किया, जिसमें रूस-यूक्रेन युद्ध, मध्य पूर्वी तनाव और अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता प्रमुख थीं।
- यूक्रेन यात्रा: भारत की यूक्रेन यात्रा ने एक तटस्थ लेकिन सिद्धांत आधारित रुख को प्रदर्शित किया, जिसमें वार्ता का समर्थन करते हुए संप्रभुता के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई।
- मानवीय सहायता ने महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के बीच वैश्विक मध्यस्थ के रूप में अपनी भूमिका को मज़बूत किया है।
- भारत-चीन संबंध: एक बड़ी उपलब्धि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैनिकों का पीछे हटना था, जिससे वर्ष 2020 से पूर्व की व्यवस्था बहाल हो गई।
- वर्षों के तनाव के बाद यह एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था और इसके साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा की पुन: बहाली सहित सीमा पार सहयोग को भी नवीनीकरण मिला।
- क्वाड सहयोग और हिंद-प्रशांत रणनीतियों के माध्यम से चीन की मुखरता को संतुलित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
- भारत-बांग्लादेश संबंध: राजनीतिक परिवर्तनों के बावजूद, बांग्लादेश की नई सरकार के साथ भारत की सक्रिय भागीदारी ने द्विपक्षीय संबंधों को सुरक्षित रखा।
- मैत्री पावर प्लांट और व्यापार में निवेश जैसी पहल आर्थिक अंतर-निर्भरता तथा कनेक्टिविटी परियोजनाओं में रणनीतिक सहयोग को रेखांकित करती हैं।
- खाड़ी क्षेत्र में भागीदारी: वर्ष 2024 में, भारत ने भारत-यूएई द्विपक्षीय निवेश संधि (बीआईटी) को लागू करके खाड़ी क्षेत्र में अपनी भागीदारी को मज़बूत किया है, जिससे नीतिगत लचीलापन बनाए रखते हुए मज़बूत निवेशक संरक्षण और मध्यस्थता-आधारित विवाद समाधान सुनिश्चित होगा।
- भारत ने ऊर्जा, व्यापार, निवेश और रणनीतिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए सऊदी अरब, ओमान, कतर तथा बहरीन के साथ खाड़ी संबंधों को आगे बढ़ाया।
- अमेरिका-भारत संबंध: महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकी पहल (आईसीईटी) के माध्यम से महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में साझेदारी का विस्तार हुआ।
- एक हाई-प्रोफाइल मामले में संलिप्तता के आरोपों सहित विवादों ने कूटनीतिक संबंधों को चुनौती दी, फिर भी द्विपक्षीय व्यापार 128 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
- भारत-कनाडा संबंध: खालिस्तानी नेता निज्जर की हत्या में भारतीय अधिकारियों को शामिल करने के आरोपों के कारण कूटनीतिक गतिरोध उत्पन्न हो गया, जिससे 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार वार्ता पर चर्चा बाधित हुई और भारतीय प्रवासियों के साथ संबंध जटिल हो गए।
- श्रीलंका और मालदीव: श्रीलंका के साथ भारत की सक्रिय कूटनीति में बुनियादी ढाँचे और व्यापार में समझौते शामिल थे, जबकि 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर के मुद्रा विनिमय समझौते ने मालदीव की आर्थिक सुधार में सहायता की।
- बहुपक्षीय पहल: वर्ष 2023 में जी-20 के अध्यक्ष के रूप में, भारत ने विकासशील देशों के लिये ऋण राहत को प्राथमिकता दी और सतत् विकास में अपने नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की शुरुआत की।
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) जैसी पहल वैश्विक संपर्क और व्यापार बढ़ाने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- कूटनीतिक कसौटी: गाजा जैसे संघर्षों पर भारत के तटस्थ रुख ने व्यावहारिक हितों के साथ नैतिक स्थिति को संतुलित करने की इसकी रणनीति को उजागर किया।
- इज़रायल और फिलिस्तीन दोनों के साथ संबंधों ने शांति के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।
भारत की विदेश नीति से जुड़ी वैश्विक चुनौतियाँ क्या हैं?
- पड़ोसियों के साथ संबंध: क्षेत्रीय आर्थिक और राजनीतिक संवेदनशीलताओं को संतुलित करते हुए, चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आक्रामकता तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती आक्रामकता का प्रबंधन करने के लिये रणनीतिक स्पष्टता की आवश्यकता है।
- वास्तविक नियंत्रण रेखा पर समाधान के बावजूद, दक्षिण एशिया में चीन की पहुँच, विशेष रूप से नेपाल और पाकिस्तान में निवेश के माध्यम से, के कारण भारत को अपनी क्षेत्रीय उपस्थिति को मज़बूत करने की आवश्यकता थी।
- डीप स्टेट की भूमिका: दक्षिण एशियाई पड़ोसियों को प्रभावित करने वाले बाहरी प्रभाव महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
- बांग्लादेश में राजनीतिक परिवर्तन और अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले, राजनीतिक अशांति तथा भारत विरोधी भावना को बढ़ा रहे हैं, जो भारत की पड़ोस-प्रथम नीति को चुनौती दे रहे हैं ।
- रूस-यूक्रेन युद्ध: यद्यपि भारत ने रूस से महत्त्वपूर्ण मात्रा में तेल आयात किया, लेकिन बढ़ते वैश्विक ध्रुवीकरण के बीच तटस्थता बनाए रखना उसकी कूटनीति का परीक्षण था।
- अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता: अमेरिकी प्रशासन की व्यापार शुल्क और आव्रजन नीतियों ने आईटी जैसे भारतीय क्षेत्रों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कीं, जबकि दोनों शक्तियों के साथ संबंधों को प्रबंधित करने के लिये सावधानीपूर्वक संतुलन की आवश्यकता थी।
- मध्य पूर्व संघर्ष: खाड़ी क्षेत्र में अस्थिरता, जहाँ भारत के 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापारिक संबंध हैं, ने मज़बूत राजनयिक हस्तक्षेप की आवश्यकता को उजागर किया है।
- कनाडा विवाद: हाल ही में खालिस्तान मुद्दे से जुड़े आरोपों के कारण जवाबी कूटनीतिक कार्रवाइयाँ हुईं, जिससे आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान बाधित हुआ।
- इससे कनाडा में रहने वाले 700,000 से अधिक भारतीय प्रवासियों के साथ संबंध खराब हो गए।
- आंतरिक आलोचना: गाजा प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र के मतदान में अनुपस्थिति के कारण भारत के मानवाधिकारों के प्रति दृष्टिकोण में असंगति के लिये आलोचना की गई।
- आर्थिक दबाव: ब्रिटेन और यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) में देरी के कारण भारत की व्यापार विस्तार क्षमता सीमित हो गई।
- दक्षिण एशिया में पाकिस्तान और भारत जैसे देशों की आर्थिक कमज़ोरी ने क्षेत्रीय आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों पर दबाव डाला।
- तकनीकी और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: साइबर सुरक्षा एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभरी है, भारत को डिजिटल क्षेत्र में बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
- महत्त्वपूर्ण खनिजों और एआई प्रौद्योगिकियों के लिये साझेदारी ने तकनीकी सीमाओं को सुरक्षित करने के बढ़ते महत्त्व पर प्रकाश डाला।
वर्ष 2025 और उसके बाद के लिये भारत की विदेश नीति की प्राथमिकताएँ क्या हैं?
- द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: वर्ष 2025 और उसके बाद के लिये भारत की विदेश नीति का उद्देश्य वसुधैव कुटुंबकम (विश्व एक परिवार है) के सिद्धांत को मूर्त रूप देना है, जैसा कि इसके नेतृत्व द्वारा परिकल्पित है।
- यह बहुपक्षीय संलग्नता और साझेदारी के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, समावेशिता, आतंकवाद-रोधी कूटनीति तथा सतत् वैश्विक विकास को बढ़ावा देने के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- अमेरिका और क्वाड: चीन की हिंद-प्रशांत महत्त्वाकांक्षाओं का सामना करने के लिये अमेरिका के साथ तकनीकी तथा रक्षा साझेदारी को गहरा करना एवं क्वाड को मज़बूत करना है।
- अमेरिका में भारतीय मूल के नीति-निर्माताओं का समर्थन प्राप्त करने से रक्षा, प्रौद्योगिकी और आव्रजन में रणनीतिक संरेखण बढ़ सकता है, जिससे हिंद-प्रशांत साझेदारी में भारत की स्थिति मज़बूत होगी तथा द्विपक्षीय सहयोग में वृद्धि होगी।
- रूस-भारत सहयोग: विशेष रूप से भारत-रूस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के संदर्भ में, रक्षा के अलावा ऊर्जा, विनिर्माण और प्रौद्योगिकी को भी शामिल करते हुए संबंधों का विस्तार करना है।
- यूरोप संबंध: व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने के लिये यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ रुके हुए एफटीए को पुनर्जीवित करना है।
- खाड़ी संप्रभु निधियों के साथ सहभागिता: सभ्यताओं के संवाद की पहल से खाड़ी के संप्रभु धन कोषों से भारत के महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे, नवीकरणीय ऊर्जा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे द्विपक्षीय संबंध और अधिक प्रगाढ़ होंगे।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: वर्ष 2025 और उसके बाद के लिये भारत की विदेश नीति का उद्देश्य वसुधैव कुटुंबकम (विश्व एक परिवार है) के सिद्धांत को मूर्त रूप देना है, जैसा कि इसके नेतृत्व द्वारा परिकल्पित है।
- क्षेत्रीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करना
- भारत की सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा के लिये मज़बूत क्षेत्रीय कूटनीति तथा रणनीतिक तैयारी आवश्यक है।
- बांग्लादेश: विकास साझेदारी को बढ़ावा देते हुए सीमा सुरक्षा और अल्पसंख्यक चिंताओं को दूर करने के लिये नए नेतृत्व के साथ कार्य करना।
- आर्थिक सहायता और सुरक्षा सहयोग के माध्यम से श्रीलंका, भूटान, मालदीव के साथ संबंधों को मज़बूत करना।
- बहुपक्षीय मंचों में वैश्विक नेतृत्व
- जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक सुधार सहित वैश्विक चुनौतियों पर चर्चा को आकार देने के लिये जी-20, ब्रिक्स तथा एससीओ में भारत की अग्रणी पहल।
- भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन जैसी पहलों के माध्यम से दक्षिण-दक्षिण सहयोग को आगे बढ़ाना, विशेष रूप से अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के साथ।
- आर्थिक और तकनीकी फोकस
- आपूर्ति शृंखला का लचीलापन बढ़ाना और वैश्विक व्यापार ढाँचों में एकीकरण करना।
- डिजिटल और तकनीकी साझेदारी को बढ़ावा देना, एआई, महत्त्वपूर्ण खनिजों और उभरती प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स: प्रश्न. 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी' शब्द अक्सर समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में प्रकट होता है: (2016)
उत्तर: (B) मेन्स:प्रश्न1. भारत-श्रीलंका संबंधों पर चर्चा करें कि घरेलू कारक विदेश नीति को कैसे प्रभावित करते हैं? (2013) प्रश्न2: परियोजना 'मौसम' को भारत सरकार की अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों की सुदृढ़ करने की एक अद्वितीय विदेश नीति पहल माना जाता है। क्या इस परियोजना का एक रणनीतिक आयाम है? चर्चा कीजिये। (2015) |