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संसद टीवी संवाद

भारतीय अर्थव्यवस्था

इन डेप्थ- PM गति शक्ति: बुनियादी ढाँचे और कनेक्टिविटी में रूपांतरण

  • 28 Oct 2024
  • 23 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, भारतमाला, सागरमाला, अंतर्देशीय जलमार्ग, उड़ान, नवीकरणीय ऊर्जा, हरित ऊर्जा गलियारा, पीएम श्री स्कूल, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY), प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G), पीएम जनमन पोर्टल, विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG), आकांक्षी ज़िले, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP), विश्व बैंक का लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (LPI), RFID-आधारित प्रणाली, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC), गति शक्ति संचार पोर्टल, 5जी सेवाएँ, मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी, ई-कॉमर्स, कार्बन उत्सर्जन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs), इलेक्ट्रिक वाहन (EVs)

मुख्य परीक्षा के लिये:

भारत के लॉजिस्टिक क्षेत्र का महत्त्व और उपलब्धियाँ, भारत के लॉजिस्टिक क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे। 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान की तीसरी वर्षगांठ के उपलक्ष्य में इसकी बुनियादी ढाँचागत प्रगति के साथ भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया गया। 

  • इस पहल से विभिन्न मंत्रालयों और राज्यों में मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी को एकीकृत करने के साथ भारत के बुनियादी ढाँचे और लॉजिस्टिक्स क्षेत्रों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।

पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान की प्रगति क्या रही है?

  • एकीकृत कनेक्टिविटी: पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान को वर्ष 2021 में एक डिजिटल प्लेटफॉर्म के रूप में शुरू किया गया था, जिसे बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की समन्वित योजना एवं निष्पादन हेतु रेलवे और रोडवेज़ जैसे विभिन्न मंत्रालयों को एकीकृत करने के लिये डिज़ाइन किया गया था। 
    • इस पहल का उद्देश्य विभिन्न परिवहन साधनों के माध्यम से लोगों, वस्तुओं और सेवाओं की कनेक्टिविटी में सुधार लाना है, जिससे अंतिम मील तक कनेक्टिविटी बढ़ेगी और यात्रा का समय कम होगा।

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  • प्रमुख एकीकृत योजनाएँ:
    • भारतमाला: एक राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना।
    • सागरमाला: बंदरगाह अवसंरचना और तटीय विकास पर केंद्रित परियोजना।
    • अंतर्देशीय जलमार्ग: नदियों के माध्यम से वस्तुओं की कुशल आवाजाही के लिये।
    • उड़ान: एक क्षेत्रीय हवाई संपर्क योजना।

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  • केंद्रीय मंत्रालय और राज्य की भागीदारी: पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान में 44 केंद्रीय मंत्रालय और 36 राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश (UTs) शामिल हैं। 
    • इसके तहत आँकड़ों की सटीकता और उचित समन्वय सुनिश्चित करने के लिये आठ प्रमुख बुनियादी ढाँचा मंत्रालयों एवं 15 सामाजिक क्षेत्र मंत्रालयों के लिये मानक संचालन प्रक्रियाएँ (SOPs) स्थापित की गई हैं तथा अधिक मंत्रालयों और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को भी इसमें शामिल किया जा रहा है।
  • उल्लेखनीय उपलब्धियाँ: इस पहल में पीएम गति शक्ति के सिद्धांतों का पालन करते हुए विभिन्न मंत्रालयों में 15.39 लाख करोड़ रुपए की 208 प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का मूल्यांकन किया गया है।
    • अंतिम स्थान सर्वेक्षण (FLS) के पूरा होने की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि (वित्त वर्ष 2022 में 449 FLS पूरे किये गए जबकि वित्त वर्ष 2021 में यह संख्या केवल 57 थी) हुई है।
    • इसके अतिरिक्त रेल मंत्रालय के तीन आर्थिक गलियारों  (ऊर्जा, खनिज और सीमेंट गलियारे, उच्च यातायात घनत्व गलियारे तथा रेल सागर) के अंतर्गत 434 रेलवे परियोजनाओं का मूल्यांकन किया गया है एवं उन्हें PMO के साथ साझा किया गया है
    • उत्तर प्रदेश सरकार ने पहुँच पोर्टल के माध्यम से वंचित क्षेत्रों में नए स्कूलों के लिये स्थानों की पहचान करने के क्रम में राज्य मास्टर प्लान (SMP) पोर्टल का उपयोग किया।
  • सड़क परिवहन: सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) ने गति शक्ति प्लेटफॉर्म का उपयोग करके 8,891 किलोमीटर से अधिक सड़कों की योजना बनाई है।
  • रेलवे: रेल मंत्रालय ने राष्ट्रीय मास्टर प्लान के तहत 27,000 किलोमीटर से अधिक रेलवे लाइनों की योजना बनाई है। 
  • पेट्रोलियम और गैस: पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoPNG) ने विस्तृत रूट सर्वेक्षण (DRS) प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक DRS प्रणाली का उपयोग करके रिपोर्ट तैयार करने में लगने वाला समय छह और नौ महीने से घटकर केवल एक दिन रह गया है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: 'ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर' के माध्यम से लेह (लद्दाख) को कैथल (हरियाणा) से जोड़ने वाली 13 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना के तहत अंतर-राज्यीय संचरण के लिये इष्टतम संरेखण प्राप्त किया गया, जिससे हरित ऊर्जा क्षमता को बढ़ावा मिला।
  • गोवा में आपदा प्रबंधन: इस राज्य ने अमोना नदी के किनारे बाढ़-प्रवण क्षेत्रों के लिये आपदा प्रबंधन योजना विकसित करने के लिये गति शक्ति मंच का उपयोग किया।
    • शिक्षा: स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग ने ज़िला-विशिष्ट कौशल प्रशिक्षण के लिये पीएम श्री स्कूलों को स्थानीय उद्योगों से जोड़ने के लिये राष्ट्रीय मास्टर प्लान पोर्टल का उपयोग किया।
  • स्वास्थ्य सेवा: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इंटरनेट छाया क्षेत्रों का मानचित्रण करने और नई स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये स्थानों की पहचान करने के लिये इस मंच का उपयोग किया।
  • कौशल विकास: कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने आर्थिक क्लस्टरों के निकट नए प्रशिक्षण संस्थानों के लिये उपयुक्त स्थानों की पहचान की।
  • ग्रामीण विकास: ग्रामीण विकास मंत्रालय ने बेहतर परिसंपत्ति नियोजन के लिये प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) और प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) जैसी योजनाओं को एकीकृत किया है।
  • जनजातीय मामले: जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) के लिये बुनियादी ढाँचे की कमी की पहचान करने के लिये पीएम जनमन पोर्टल का उपयोग किया।
  • ज़िला मास्टर प्लान (DMP) पोर्टल: ज़िला मास्टर प्लान (DMP) पोर्टल के विकास के माध्यम से इस पहल को ज़िला स्तर तक भी बढ़ाया जा रहा है। 
    • यह मंच ज़िला प्राधिकारियों को सहयोगात्मक बुनियादी ढाँचा नियोजन, अंतराल की पहचान एवं योजना कार्यान्वयन में सहायता करेगा। 
    • इस पोर्टल का बीटा संस्करण 28 आकांक्षी ज़िलों के लिये शुरू किया गया है और सितंबर 2024 में इन ज़िलों को उपयोगकर्ता खाते प्रदान किये गए हैं। 

लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये अन्य प्रमुख पहल क्या हैं?

  • यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म (ULIP): ULIP एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जिसके तहत निर्बाध डेटा विनिमय की सुविधा के लिये 10 मंत्रालयों में 33 लॉजिस्टिक्स-संबंधित प्रणालियों को एकीकृत किया जाना शामिल है। 
    • इससे एंड-टू-एंड कार्गो ट्रैकिंग को सक्षम बनाने के साथ लॉजिस्टिक्स संचालन में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है। ULIP पर 930 से अधिक निजी कंपनियाँ पंजीकृत हैं जिनमें बेहतर समन्वय के लिये कई लाइव एप्लीकेशन शामिल हैं।
  • लॉजिस्टिक्स डेटा बैंक (LDB): LDB एक RFID-आधारित प्रणाली है जिसके तहत वास्तविक समय में कंटेनरीकृत कार्गो की आवाजाही पर नज़र रखने के साथ बंदरगाहों, रेलवे और राजमार्गों पर EXIM वस्तुओं के परिवहन की दृश्यता मिलती है। 
    • इस प्रणाली से पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है और हितधारक अपनी आपूर्ति शृंखलाओं की निगरानी एवं अनुकूलन करने में सक्षम होते हैं।
  • मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क (MMLPs): सरकार ने परिवहन के विभिन्न साधनों के बीच निर्बाध स्थानांतरण की सुविधा के लिये MMLPs के विकास की पहल की है।
    • इन पार्कों को वस्तु ढुलाई के केन्द्र के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जहाँ एक ही छत के नीचे भंडारण, गोदाम और मूल्यवर्धित सेवाएँ उपलब्ध होंगी।
  • समर्पित माल गलियारा (DFC): भारत वस्तु परिवहन की गति और दक्षता बढ़ाने के लिये डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) विकसित कर रहा है।
    • पश्चिमी और पूर्वी DFC को मौजूदा रेल नेटवर्क पर भीड़भाड़ कम करने तथा विशेष रूप से भारी उद्योगों के लिये तेज और अधिक विश्वसनीय माल ढुलाई उपलब्ध कराने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • LEADS (विभिन्न राज्यों में लॉजिस्टिक्स सुगमता): LEADS सर्वेक्षण राज्यों को उनके लॉजिस्टिक्स पारिस्थितिकी तंत्र की दक्षता के आधार पर रैंक प्रदान करता है।
    • यह बुनियादी ढाँचे और सेवाओं में सुधार के लिये राज्यों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करता है, जिससे रसद प्रदर्शन में समग्र सुधार होता है।
  • गति शक्ति संचार पोर्टल: दूरसंचार अवसंरचना के क्रियान्वयन के लिये आवश्यक राइट ऑफ वे (RoW) अनुमोदन को सुचारू बनाने के लिये गति शक्ति संचार पोर्टल का शुभारंभ किया गया।
    • इस पहल से मोबाइल टावरों और फाइबर नेटवर्क की स्थापना में तेजी आई है, जो डिजिटल लॉजिस्टिक्स समाधानों के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • 5G रोलआउट: भारत भर में 5G सेवाओं की तीव्र तैनाती (पहले वर्ष में 13 करोड़ से अधिक ग्राहकों के साथ) वास्तविक समय ट्रैकिंग, स्वायत्त वाहन तैनाती और रसद संचालन की दक्षता को बढ़ाएगी। 
    • सरकार ने डिजिटल कनेक्टिविटी में सुधार के लिये ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में 41,000 से अधिक मोबाइल टावरों को मंज़ूरी दी है।

भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • उच्च रसद लागत: भारत की रसद लागत वैश्विक मानकों की तुलना में काफी अधिक है, जिससे इसके उत्पाद कम प्रतिस्पर्द्धी हो जाते हैं। 
    • जापान और जर्मनी जैसे देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 8-10% लॉजिस्टिक्स पर खर्च करते हैं लेकिन भारत की लॉजिस्टिक्स लागत 13-14% के बीच है, जिससे भारतीय वस्तुओं की लागत संरचना पर काफी प्रभाव पड़ता है।

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  • असंगठित बाजार: भारत में लॉजिस्टिक्स क्षेत्र का 90% से अधिक हिस्सा असंगठित है, जिसमें अनेक छोटे-छोटे हितधारक अलग-अलग क्षेत्रों में कार्यरत हैं। 
    • इस विखंडन के कारण उन्नत प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करना, सेवाओं को मानकीकृत करना और दक्षता में सुधार करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। 
    • इस क्षेत्र में विभिन्न परिवहन साधनों के बीच विनियमन एवं समन्वय में एकरूपता का अभाव है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, भारतीय लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचा निम्न स्तरीय सड़क की स्थिति, पुराने रेल नेटवर्क एवं भीड़भाड़ वाले बंदरगाहों जैसी बाधाओं से ग्रस्त है। 
    • उदाहरण के लिये, प्रमुख भारतीय बंदरगाहों पर जहाज़ो के लिये औसत टर्नअराउंड समय में सुधार हुआ है लेकिन अभी भी यह वैश्विक बेंचमार्क से पीछे है। इन अक्षमताओं के कारण देरी, उच्च लागत और व्यवसायों के लिये नुकसान होता है।
  • खराब मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी: परिवहन के विभिन्न साधनों जैसे सड़क, रेलवे, वायुमार्ग और जलमार्ग में निर्बाध एकीकरण का अभाव है। 
    • खराब मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी के कारण माल की ढुलाई में अक्षमता बढ़ जाती है। माल ढुलाई का प्रमुख हिस्सा सड़क मार्ग पर निर्भर है, जो देरी और उच्च लागत के लिये प्रवण है, जबकि रेलवे और जलमार्ग का कम उपयोग किया जाता है।
  • अपर्याप्त भंडारण और कोल्ड चेन सुविधाएँ: भारतीय लॉजिस्टिक्स क्षेत्र आधुनिक भंडारण सुविधाओं की कमी (विशेष रूप से टियर-2 और टियर-3 शहरों में) से ग्रस्त है। 
    • इसके अलावा कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर अपर्याप्त बना हुआ है, जिससे खाद्य उत्पादों और फार्मास्यूटिकल्स जैसे जल्दी खराब होने वाले उत्पादों के भंडारण एवं परिवहन पर प्रभाव पड़ रहा है। इससे बर्बादी और लागत बढ़ती है।
  • अंतिम-मील की वितरण चुनौतियाँ: अंतिम-मील तक रसद के वितरण की कुल लागत में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, विशेष रूप से शहरी केंद्रों में जहाँ यातायात भीड़ एवं सीमित पार्किंग से देरी होती है। 
    • ई-कॉमर्स जैसे व्यवसायों के लिये इस अकुशलता का डिलीवरी समय और लागत पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
  • विनियामक जटिलताएँ: यह क्षेत्र केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर विनियामक ढाँचे और अनुमोदनों से प्रभावित है।
    • विशेष रूप से बड़े पैमाने की लॉजिस्टिक्स परियोजनाओं के लिये मंज़ूरी प्राप्त करने में देरी से बुनियादी ढाँचे के विकास में बाधा उत्पन्न होती है। 
    • मंत्रालयों के बीच समन्वय की कमी भी परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी का कारण बनती है।
  • कौशल अंतराल और कार्यबल की कमी: भारत में लॉजिस्टिक्स क्षेत्र सबसे तेज़ी से बढ़ते रोज़गार सृजनकर्ताओं में से एक है फिर भी इसमें कुशल जनशक्ति की कमी है। 
    • आपूर्ति शृंखला प्रबंधन, भंडारण संचालन और तकनीकी दक्षता ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ यह क्षेत्र पिछड़ रहा है। हालाँकि इन कमियों को दूर करने के लिये पहल की गई है, लेकिन इनमें प्रगति धीमी बनी हुई है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: लॉजिस्टिक्स क्षेत्र भारत में कार्बन उत्सर्जन का सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है।
    • सड़क परिवहन माल ढुलाई का प्रमुख साधन है, इसलिये इस क्षेत्र से उत्सर्जन काफी अधिक बना हुआ है। भारत कार्बन तीव्रता को कम करने के लिये प्रतिबद्ध है लेकिन हरित रसद प्रथाओं को अपनाना इस उद्योग के लिये एक चुनौतीपूर्ण है।

आगे की राह 

  • विविध परिवहन समाधानों पर ध्यान: भारत को विविध परिवहन समाधानों के विकास पर बल देने की आवश्यकता है जिनसे सड़क, रेल, वायु और जल नेटवर्क निर्बाध रूप से एकीकृत हो सके। 
  • इसके लिये समर्पित माल गलियारों, अंतर्देशीय जलमार्गों और बंदरगाह बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये निरंतर निवेश की आवश्यकता है।
  • तकनीकी एकीकरण को बढ़ावा देना: लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को आपूर्ति श्रृंखला दृश्यता में सुधार, परिचालन को सुव्यवस्थित करने और लागत को कम करने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और ब्लॉकचेन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाना चाहिये।
    • नियामक ढाँचे को सुव्यवस्थित करना: सरकार को लॉजिस्टिक्स परियोजनाओं के लिये एकल खिड़की मंज़ूरी शुरू करनी चाहिये और राज्यों के बीच नियमों में सामंजस्य स्थापित करना चाहिये।
      • विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने से बुनियादी ढाँचे का विकास तेज़ी से होगा और लॉजिस्टिक्स लागत कम होगी।
    • शीत श्रृंखला अवसंरचना में सुधार: सरकार को शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं की समय पर और सुरक्षित डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिये शीत भंडारण सुविधाओं एवं प्रशीतित परिवहन में निवेश को बढ़ावा देना चाहिये।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना: लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी महत्त्वपूर्ण है। वेयरहाउसिंग, कोल्ड स्टोरेज और परिवहन इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • कौशल विकास और कार्यबल प्रशिक्षण: सरकार को आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, भंडारण संचालन और डिजिटल लॉजिस्टिक्स पर ध्यान केंद्रित करते हुए कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिये। व्यावसायिक प्रशिक्षण को मज़बूत करने और प्रमाणन कार्यक्रम से मौजूदा कौशल अंतराल को कम करने में मदद मिलेगी।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: भारत के जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये लॉजिस्टिक्स उद्योग में हरित प्रथाओं को अपनाना आवश्यक है। 
  • इसमें अंतिम मील तक डिलीवरी के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के उपयोग को बढ़ावा देना, वस्तु परिवहन के लिये हरित गलियारे विकसित करना तथा गोदामों और लॉजिस्टिक्स केंद्रों में स्वच्छ ऊर्जा को अपनाने को प्रोत्साहित करना शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न: 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह नीति आयोग का अंग है।
  2.  वर्तमान में इसके पास `4,00,000 करोड़ रुपए का कोष है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. गति शक्ति योजना को संयोजकता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकार और निजी क्षेत्र के मध्य सतर्क समन्वय की आवश्यकता है। विवेचना कीजिये। (2022)

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