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शासन व्यवस्था

शहरी विकास का पुनर्नवीनीकरण : केरल पहल

  • 08 Jan 2024
  • 20 min read

यह एडिटोरियल 05/01/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Breaking new ground the Kerala way” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में शहरीकरण के विभिन्न पहलुओं के बारे में चर्चा की गई है और विचार किया गया है कि शहरीकरण को एक समग्र प्रक्रिया के रूप में समझने में ‘केरल अर्बन कमीशन’ शेष भारत का किस प्रकार नेतृत्व कर सकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

स्मार्ट सिटी, AMRUT मिशन, स्वच्छ भारत मिशन-शहरी, HRIDAY, प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, अपशिष्ट जल उपचार योजना, भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)

मेन्स के लिये:

भारत के शहरी क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ और आवश्यक सुधार, शहरी विकास से संबंधित हालिया पहल।

विश्व की सबसे तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में भारत मुख्य रूप से अपने शहरों द्वारा संचालित है, जिनके बारे में अनुमान है कि वे वर्ष 2030 तक देश की जीडीपी में 70% योगदान दे रहे होंगे। विश्व बैंक ने तेज़ी से बढ़ती शहरी आबादी की मांगों को पूरा करने के लिये अगले 15 वर्षों में 840 बिलियन अमेरिकी डॉलर के उल्लेखनीय निवेश की आवश्यकता का अनुमान लगाया है। यह तीव्र शहरीकरण (urbanization), हालाँकि आर्थिक समृद्धि का वादा करता है, वास-योग्यता या लिवेबिलिटी (liveability) संबंधी चुनौतियाँ भी पेश करता है। बारीकी से जाँच करने पर शहरीकरण के मौजूदा ढाँचे के भीतर अंतर्निहित सीमाओं का पता चलता है, जो सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये रणनीतिक समाधानों की आवश्यकता पर बल देता है। हाल ही में गठित ‘केरल शहरी आयोग’ (Kerala Urban Commission) राज्य में शहरी परिदृश्य में सुधार लाने के लिये प्रतिबद्ध है।

केरल शहरी आयोग

  • ऐतिहासिक क्रम:
    • वर्ष 2024 में केरल शहरी आयोग के गठन की घोषणा चार्ल्स कोरिया (Charles Correa) के नेतृत्व में गठित राष्ट्रीय शहरीकरण आयोग (National Commission on Urbanisation) के 38 वर्षों के अंतराल के बाद इस दिशा में एक उल्लेखनीय प्रगति को इंगित करती है।
    • प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा पहले आयोग के गठन की प्रक्रिया उनकी हत्या के कारण रुकावटों का शिकार हुई, लेकिन इसने भविष्य की शहरी नीतियों के लिये एक आधार तैयार किया।
  • केरल शहरी आयोग का गठन:
    • 12 माह के अधिदेश के साथ केरल शहरी आयोग के गठन का उद्देश्य केरल के शहरीकरण की विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करना है।
    • राज्य की अनुमानित 90% शहरीकृत आबादी के साथ, नवगठित आयोग अगले 25 वर्षों में राज्य के शहरी विकास के लिये एक रोडमैप के निर्माण की मंशा रखता है।
  • केरल शहरी आयोग की भूमिका:
    • केरल शहरी आयोग, एक राष्ट्रीय आयोग नहीं होने के बावजूद, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पंजाब जैसे अन्य अत्यधिक शहरीकृत राज्यों के लिये एक संभावित प्रकाशस्तंभ के रूप में कार्य कर सकता है।
    • यह शहरी चुनौतियों के प्रति व्यापक दृष्टिकोण प्रदर्शित करते हुए उच्च शहरी आबादी से जूझ रहे राज्यों के लिये सीखने के अवसर प्रदान करता है।
  • केरल शहरी आयोग की समकालीन प्रासंगिकता:
    • शहरीकरण पैटर्न की जटिलता को देखते हुए, राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर एक शहरी आयोग आवश्यक समझा जाता है।
    • स्वच्छ भारत मिशन या अमृत (AMRUT) जैसे क्रमिक एवं पृथक दृष्टिकोण (piecemeal approaches) बहुमुखी चुनौतियों का समाधान करने में विफल रहे हैं।
    • एक शहरी आयोग उभरती शहरी वास्तविकताओं के संदर्भ में प्रवासन, बसावट पैटर्न और सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका को बेहतर रूप से समझ पाता है।

केरल शहरी आयोग के गठन की राह कैसे बनी?

  • दुनिया भर में शहरीकरण की चुनौतियाँ:
    • वैश्विक शहरी आबादी बढ़कर 56% हो गई है, जो 1860 के दशक के दौरान महज 5% के आसपास रही थी। जलवायु, भूमि उपयोग और असमानता पर अपने दूरगामी प्रभावों के साथ शहरीकरण पूंजी संचय का एक महत्त्वपूर्ण पहलू बन गया है।
    • शहरों में स्थानिक और लौकिक परिवर्तन देखे गए हैं, जिससे प्रदूषण, आवासन एवं स्वच्छता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।
  • शहरी विकास प्रतिमानों में बदलाव:
    • उत्तर-स्वातंत्र्य युग में भारत ने शहरी विकास के दो अलग-अलग चरणों का अनुभव किया:
      • पहला चरण:
        • नेहरूवादी युग (जिसकी अवधि लगभग तीन दशक रही) ने केंद्रीकृत योजना और मास्टर प्लान पर बल दिया, जिससे विनिर्माण से प्रेरित ग्रामीण-से-शहरी प्रवास (rural-to-urban migration) को बढ़ावा मिला।
        • हालाँकि, यह दृष्टिकोण असंतुलन का शिकार हुआ जिसके परिणामस्वरूप 1990 के दशक में शहरों का निजीकरण हुआ, जहाँ ग्लोबल सिटी मॉडल और परियोजना-उन्मुख विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया।
      • दूसरा चरण:
        • 1990 के दशक में सरकारी स्वामित्व वाले बड़े संगठनों और कंसल्टेंसी फर्मों को सौंपे गए मास्टर प्लान के साथ शहरों का निजीकरण देखा गया।
        • सामाजिक आवासन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा के बजाय रियल एस्टेट पर केंद्रित मॉडल को अपनाया गया, जहाँ शहरों को ज्ञानोदय के स्थानों (spaces of enlightenment) के बजाय ‘विकास के इंजन’ के रूप में बढ़ावा दिया गया।
        • इस युग ने समग्र शहर दृष्टिकोण से परियोजना-उन्मुख विकास की ओर प्रस्थान को चिह्नित किया।
  • शहरों में शासन संबंधी चुनौतियाँ:
    • शहरी शासन को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ 12वीं अनुसूची के तहत शामिल विषय अभी तक शहरी शासन को स्थानांतरित नहीं किये गए हैं। शहरी कार्यों के संचालन के लिये निर्वाचित अधिकारियों के बजाय प्रबंधकों को रखने के संबंध में अभी भी बहस जारी है।
    • 15वें वित्त आयोग ने वित्तीय ढाँचे के केंद्रीकरण की प्रक्रिया में अनुदान को संपत्ति कर संग्रहण में किये गए प्रदर्शन से जोड़ दिया है, जिससे शहरी शासन में जटिलता बढ़ गई है।
  • समग्र समझ की आवश्यकता:
    • शहरी आयोग को क्रमिक एवं पृथक दृष्टिकोण से परे आगे बढ़ते हुए प्रवासन, बसावट पैटर्न और सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका को शामिल करने के साथ शहरीकरण की समग्र समझ पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • स्मार्ट सिटीज़ (SMART CITIES) जैसे दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ वास्तविकताओं को संबोधित करने में विफल रहे हैं, जो एक अधिक व्यापक रणनीति की आवश्यकता को उजागर करते हैं।

शहरीकरण से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • निजी परिवहन और शहरी चुनौतियाँ:
    • सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर निजी परिवहन को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति से सड़कों पर भीड़भाड़, प्रदूषण में वृद्धि और शहरों में अधिक यात्रा समय की स्थिति बनी है।
    • निजी वाहनों पर यह निर्भरता, दहनशील ईंधन के प्रचलित उपयोग के कारण जलवायु परिवर्तन में एक प्रमुख योगदानकर्ता है, जो संवहनीय परिवहन समाधानों की तत्काल आवश्यकता पर बल देती है।
  • मलिन बस्तियों का विकास और शहरी प्रवासन:
    • शहरी क्षेत्रों में वास करने की उच्च लागत, साथ ही ग्रामीण प्रवासियों की बड़ी आमद के कारण अस्थायी आश्रयों के रूप में मलिन बस्तियों का विस्तार हुआ है।
    • विश्व बैंक की रिपोर्ट है कि भारत की कुल शहरी आबादी की 35.2% मलिन बस्तियों में रहती है, जहाँ मुंबई में धारावी को एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती के रूप में चिह्नित किया गया है।
  • शहरीकरण का पर्यावरणीय प्रभाव:
    • शहरीकरण पर्यावरणीय क्षरण का एक प्रमुख कारण है, जहाँ जनसंख्या घनत्व की वृद्धि से हवा और जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
    • निर्माण कार्य हेतु वनों की कटाई एवं भूमि का क्षरण, अनुपयुक्त अपशिष्ट निपटान और अकुशल सीवेज सुविधाएँ प्रदूषण में योगदान करती हैं, जिससे शहरों के समग्र पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
  • अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट’:
    • सघन संरचनाओं, फुटपाथों और सीमित हरित स्थानों की विशेषता रखने वाले शहरी क्षेत्र अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट’ का अनुभव करते हैं।
    • यह परिघटना ऊर्जा लागत बढ़ाती है, वायु प्रदूषण की स्थिति को बदतर करती है और गर्मी से संबंधित बीमारियों एवं मृत्यु दर में योगदान देती है।
    • प्राकृतिक जल निकायों का अतिक्रमण करने वाले नए विकास कार्य शहरी पारिस्थितिकी तंत्र को आगे और बाधित करते हैं।
  • बाढ़ और अवसंरचनात्मक चुनौतियाँ:
    • तीव्र शहरीकरण के साथ-साथ सीमित भूमि उपलब्धता के कारण झीलों, आर्द्रभूमियों और नदियों का अतिक्रमण बढ़ रहा है।
    • इससे प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियाँ बाधित होती हैं, जिससे शहरी बाढ़ (urban flooding) आती है।
    • अपर्याप्त ठोस अपशिष्ट प्रबंधन बाढ़ की समस्या को बढ़ा देता है, जो व्यापक शहरी योजना और अवसंरचनात्मक विकास की आवश्यकता को उजागर करता है।
  • शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies- ULBs) के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ:
    • संविधान में शहरी स्थानीय निकायों के व्यापक कार्यों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है, लेकिन समयबद्ध ऑडिट की कमी तथा उनकी शक्तियों, उत्तरदायित्वों और केंद्र एवं राज्य से प्राप्त धन में असंतुलन से उनके प्रभावी कार्यकरण में बाधा उत्पन्न होती है।
    • यह शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने और शहरी चुनौतियों से निपटने में उनकी क्षमता को बढ़ाने के लिये सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

संबंधित पहलें कौन-सी हैं?

भारत में शहरी सुधार के लिये कौन-से आवश्यक कदम उठाये जाने चाहिये?

केरल शहरी आयोग की तर्ज पर एक नया ‘भारत शहरी आयोग’ (India Urban Commission) स्थापित करने की आवश्यकता है जो सतत/संवहनीय शहरी भूदृश्य के लिये निम्नलिखित सुझावों के कार्यान्वयन को बढ़ावा देगा:

  • हरित अवसंरचना और नवोन्मेषी शहर प्रबंधन:
    • शहरी मुद्दों के कुशल समाधान के लिये हरित अवसंरचना, सार्वजनिक स्थानों के मिश्रित उपयोग और सौर एवं पवन जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को अपनाने की आवश्यकता है।
    • वहनीय और प्रभावी शहर प्रबंधन के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी सहित नवोन्मेषी विचार स्वस्थ एवं अधिक कुशल शहरी स्थानों को आकार दे सकने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • शहरी नियोजन में समाज कल्याण:
    • संगठित शहरी नियोजन लोगों के कल्याण में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शहरी क्षेत्रों और उनके आस-पड़ोस को स्वस्थ, अधिक कुशल स्थानों में बदलने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो सामाजिक विचारों को एकीकृत करता हो।
    • राजस्थान में इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना जैसी योजनाओं का उद्देश्य शहर के विकास के महत्त्वपूर्ण सामाजिक पहलुओं को संबोधित करते हुए शहरी गरीबों को बुनियादी जीवन स्तर प्रदान करना है।
  • हरित गतिशीलता के लिये सार्वजनिक परिवहन का पुनरुद्धार:
    • भारत के शहरी भूदृश्य में हरित गतिशीलता प्राप्त करने के लिये सार्वजनिक परिवहन पर मौलिक पुनर्विचार और उनके पुनर्निर्माण की आवश्यकता है।
    • इसमें ई-बसों का परिचालन, समर्पित बस कॉरिडोर का निर्माण और बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम लागू करना शामिल है।
    • ये उपाय पारिस्थितिक और सामाजिक विचारों पर ध्यान देने के साथ सतत् शहरी विकास में योगदान करते हैं।
  • सतत् विकास में नागरिक भागीदारी:
    • शहरी विकास के प्रचलित आर्थिक दृष्टिकोण को पारिस्थितिक एवं सामाजिक विचारों को शामिल करते हुए एक स्थायी परिप्रेक्ष्य को अवसर देने की आवश्यकता है।
    • स्थानीय स्तर पर सतत् विकास को लोकतांत्रिक बनाने के लिये नागरिकों को सहभागी बजटिंग जैसी पहल के माध्यम से शासन में सक्रिय रूप से भागीदार बनाया जाना चाहिये।
    • स्थानीय रूप से उपयुक्त साधन और अत्यावश्यक मुद्दों का समाधान इस नागरिक-प्रेरित दृष्टिकोण के केंद्र में होंगे।
  • संवहनीयता प्रभाव आकलन (Sustainability Impact Assessments- SIA) की अनिवार्यता:
    • स्थानीय स्तर पर संवहनीयता के एकीकरण को सुनिश्चित करने के लिये किसी भी विकासात्मक गतिविधि से संबंधित अनिवार्य संवहनीयता प्रभाव आकलन (SIA) की आवश्यकता है।
    • यह रणनीतिक मूल्यांकन साधन सुनिश्चित करता है कि शहरी विकास संबंधी निर्णयों में पारिस्थितिक एवं सामाजिक विचारों को व्यवस्थित रूप से शामिल किया गया है जो एक समग्र एवं सतत् दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं।

निष्कर्ष

भारत में शहरीकरण के प्रक्षेपवक्र के लिये व्यापक शहरी सुधारों की आवश्यकता है। तीव्र विकास और संवहनीय अभ्यासों के बीच संतुलन बनाना अत्यावश्यक है। शहरी सुधारों में सामाजिक कल्याण, हरित अवसंरचना, नागरिक भागीदारी और नवोन्मेषी शासन को प्राथमिकता दी जानी चाहिये ताकि ऐसे शहर बनाए जा सकें जो न केवल आर्थिक विकास के केंद्र हों बल्कि समावेशिता और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व के भी उदाहरण बन सकें। वर्तमान में जारी रूपांतरण भारत के लिये अपने शहरी भूदृश्य को विवेकपूर्ण ढंग से आकार देने और इस रूप में भविष्य के लिये प्रत्यास्थी एवं समतामूलक शहरों को बढ़ावा देने का एक अवसर प्रदान करता है।

अभ्यास प्रश्न: सतत् विकास, सामाजिक कल्याण और प्रभावी शासन पर बल देते हुए भारत में शहरीकरण से जुड़ी चुनौतियों और आवश्यक समाधानों की चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 3. 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः (2020)

  1. शहरी क्षेत्रों में श्रमिक उत्पादकता (2004-05 की कीमतों पर प्रति कार्यकर्त्ता रुपए) में वृद्धि हुई, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह घट गई।
  2.  कार्यबल में ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिशत हिस्सेदारी में लगातार वृद्धि हुई।
  3.  ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई।
  4.  ग्रामीण रोज़गार में वृद्धि दर में कमी आई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 3 और 4
(C) केवल 3
(D) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: (B)


मेन्स 

प्रश्न. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारंबारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए  इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने के लिये तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये। (2016)

प्रश्न. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के दौरान, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती है? (2014)

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