LEAF गठबंधन
प्रिलिम्स के लिये:लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट, ‘लोअरिंग एमिशन बाय एक्सीलरेटिंग फॉरेस्ट फाइनेंस’ मेन्स के लिये:भारत में वनावरण और वन संरक्षण हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट, 2021 में ‘लोअरिंग एमिशन बाय एक्सीलरेटिंग फॉरेस्ट फाइनेंस’ (Lowering Emissions by Accelerating Forest Finance- LEAF) गठबंधन की घोषणा की गई थी।
LEAF गठबंधन उष्णकटिबंधीय वनों की रक्षा हेतु अब तक के सबसे बड़े सार्वजनिक-निजी प्रयासों में से एक है जो उष्णकटिबंधीय वनों (Tropical Forests) की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध देशों को वित्तपोषण हेतु कम-से-कम 1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर जुटाने में सक्षम बनाता है।
प्रमुख बिंदु:
LEAF गठबंधन के बारे में:
- यह अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और नॉर्वे की सरकारों का एक समूह है।
- चूँकि यह एक सार्वजनिक-निजी प्रयास है, अत: इसे बहुराष्ट्रीय निगमों (Transnational Corporations- TNCs) यूनिलीवर पीएलसी (Unilever plc), अमेज़न डॉट कॉम (Amazon.com), नेस्ले (Nestle), एयरबीएनबी (Airbnb) आदि का भी समर्थन प्राप्त है।
- इसमें शामिल होने के इच्छुक देश को गठबंधन द्वारा निर्धारित कुछ पूर्व निर्धारित शर्तों को पूरा करना होगा।
वित्तीय सहायता:
- LEAF के लिये परिणाम-आधारित वित्तपोषण मॉडल (Results-Based Financing Model) का उपयोग किया जाएगा।
- यह मॉडल विश्व स्तर पर पिछले दो दशकों से अमेज़न और उष्णकटिबंधीय जंगलों की रक्षा हेतु स्वदेशी समुदायों, वन्य लोगों, ब्राज़ील तथा अमेरिका के गैर-सरकारी संगठनों एवं अन्य भागीदारों के सहयोग से पर्यावरण रक्षा कोष के माध्यम से कार्य कर रहा है।
- प्रदर्शन को TREES मानक (REDD+ पर्यावरण उत्कृष्टता मानक) के विरुद्ध मापा जाएगा।
महत्त्व:
- निजी नेतृत्व के लिये मंच: लचीले एवं न्यायसंगत भविष्य के लिये शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य निजी क्षेत्र के साहसिक नेतृत्व, सतत निवेश क्षमता और राजनीतिक शक्ति का लाभ उठाने की प्रतिबद्धता के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
- कार्बन सिंक का बढ़ना: उष्णकटिबंधीय वन बड़े पैमाने पर कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं और उनके संरक्षण हेतु निवेश कर सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र अपने कार्बन क्रेडिट का स्टॉक कर सकते हैं।
- यह पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) प्राप्त करने में मदद करेगा।
- REDD+ उद्देश्यों को प्राप्त करना: यह वनों की कटाई और वन क्षरण (REDD+) तंत्र के माध्यम से उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्यों और इन उद्देश्यों हेतु ठोस प्रयास करने की दिशा में एक कदम है।
- विकास बनाम पारिस्थितिक प्रतिबद्धता: ऐसा वित्तीय प्रोत्साहन हेतु महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह विकासशील देशों को वनों की व्यापक स्तर पर कटाई कर उन पर कब्जा करने और वन-निर्भर आबादी हेतु आजीविका के अवसर प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- अन्य वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करता है: वर्ष 2030 तक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय वन क्षति को रोकना वैश्विक जलवायु, जैव विविधता तथा सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ-साथ स्थानीय लोगों एवं अन्य वन समुदायों की भलाई तथा संस्कृतियों को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
वनों की कटाई और वन क्षरण से उत्सर्जन को कम करना
- REDD+ का उद्देश्य वन संरक्षण को प्रोत्साहित करके जलवायु परिवर्तन को कम करना है।
- यह अधिकांश विकासशील देशों के उष्णकटिबंधीय जंगलों में बंद कार्बन के मूल्य का मुद्रीकरण करता है, जिससे इन देशों को जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलती है।
- REDD+ का गठन जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) द्वारा किया गया था।
उष्णकटिबंधीय वन
- उष्णकटिबंधीय वन सघन वितान (कैनोपी) वाले वन हैं जो भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में 28 डिग्री के भीतर पाए जाते हैं।
- ये स्थान बहुत आर्द्र होते हैं जहाँ प्रतिवर्ष या तो मौसमी रूप से या फिर पूरे वर्ष में 200 सेमी. से अधिक वर्षा होती है।
- यहाँ का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस और 35 डिग्री सेल्सियस के बीच समान रूप से उच्च होता है।
- इस तरह के वन एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, मैक्सिको और कई प्रशांत द्वीपों में पाए जाते हैं।
भारतीय परिदृश्य
- भारत का कुल वन क्षेत्र देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.56 प्रतिशत है।
- ‘ग्लोबल फारेस्ट वॉच’ द्वारा किया गया अवलोकन:
- इस बीच भारत में कुल उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्र में 0.38% की गिरावट आई है।
- भारत ने वर्ष 2019 और वर्ष 2020 के बीच उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्र का लगभग 38.5 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र खो दिया, जिससे देश के वृक्षों के आवरण का लगभग 14% का नुकसान हुआ।
- साथ ही इसी अवधि में पूरे देश में वृक्षों के आवरण में 0.67% की कमी भी दर्ज की गई है।
- मिज़ोरम में वन क्षेत्र में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है, जहाँ 47.2 हज़ार हेक्टेयर के वन क्षेत्र का नुकसान रिकॉर्ड किया गया है, इसके बाद मणिपुर, असम, मेघालय और नगालैंड का स्थान है।
वन संरक्षण के लिये उठाए गए कदम
- भारतीय वन नीति, 1952: इस अधिनियम में समग्र वन क्षेत्र को कुल भूमि क्षेत्र के एक- तिहाई तक बढ़ाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- राष्ट्रीय वन नीति, 1988: राष्ट्रीय वन नीति का अंतिम उद्देश्य प्राकृतिक विरासत के रूप में वनों के संरक्षण के माध्यम से पर्यावरण स्थिरता और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना है।
- वर्ष 1988 में राष्ट्रीय वन नीति ने वनों को लेकर वाणिज्यिक दृष्टिकोण में बदलाव करते हुए उनकी पारिस्थितिक भूमिका और भागीदारी प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया।
- क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैम्पा फंड): इसके तहत जब भी वन भूमि को खनन या उद्योग जैसे गैर-वन उद्देश्यों के लिये प्रयोग किया जाता है, तो उपयोगकर्त्ता एजेंसी गैर-वन भूमि के बराबर क्षेत्र में वन रोपण के लिये भुगतान करती है, या जब ऐसी भूमि उपलब्ध नहीं होती है, तो उपयोग की गई वन भूमि के दोगुने क्षेत्र का भुगतान किया जाता है।
- भारतीय वन क्ष्रेत्रों के विनियमन संबंधी विधान