भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के आर्थिक विकास के दृष्टिकोण पर विचार
- 05 Mar 2025
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यह एडिटोरियल 04/03/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Battle for growth: On India’s economic trajectory” पर आधारित है। यह लेख वित्त वर्ष 24-25 की तीसरी तिमाही में 6.2% GDP वृद्धि को दर्शाता है, जो 6.5% के लक्ष्य से कम है, जिसमें प्राथमिक क्षेत्र अग्रणी हैं जबकि विनिर्माण और सेवाओं को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
प्रिलिम्स के लिये:FMCG, ई-कॉमर्स, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), ONDC, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ, ग्रीन हाइड्रोजन, NSSO (राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय), राजकोषीय घाटा, नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन मेन्स के लिये:भारत के आर्थिक विकास के दृष्टिकोण को आकार देने वाले प्रमुख चालक, भारत की सतत आर्थिक वृद्धि में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ। |
वित्त वर्ष 2024-25 की तीसरी तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि दर मामूली 6.2% दर्ज की गई, जो सरकार के पूरे वार्षिक लक्ष्य 6.5% से कम है, जिसमें प्राथमिक क्षेत्रों ने प्रदर्शन को आगे बढ़ाया जबकि विनिर्माण और सेवा क्षेत्र कमज़ोर दिखे। साथ ही, स्टील और फार्मास्यूटिकल्स पर संभावित अमेरिकी टैरिफ जैसी वैश्विक बाधाएँ विशेष रूप से भारत के निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करती हैं। इन चुनौतियों के बावजूद, अर्थव्यवस्था जटिल वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच अनुकूली विकास की क्षमता प्रदर्शित करती है।
भारत के आर्थिक विकास के परिदृश्य को आयाम देने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं?
- मज़बूत घरेलू मांग और उपभोग अनुकूलन: भारत का बड़ा उपभोक्ता आधार, बढ़ती मध्यम वर्गीय संपत्ति और शहरीकरण मांग को बढ़ावा दे रहे हैं, विशेष रूप से FMCG, ई-कॉमर्स एवं ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में।
- उच्च कृषि उत्पादन और सरकारी सहायता योजनाओं के कारण ग्रामीण उपभोग बढ़ता जा रहा है, जबकि बढ़ती प्रयोज्य आय से शहरी मांग को लाभ मिल रहा है।
- उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2025 की तीसरी तिमाही में निजी उपभोग व्यय में 6.9% की वृद्धि हुई (Deloitte रिपोर्ट), जबकि ग्रामीण मांग में उछाल आया, क्योंकि अप्रैल-जून 2024 में FMCG की बिक्री 4% बढ़ी।
- सरकार के नेतृत्व में बुनियादी अवसंरचना को बढ़ावा और पूंजीगत व्यय: नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (NIP), गति शक्ति और भारतमाला के तहत बड़े पैमाने पर सार्वजनिक बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ आर्थिक गतिविधि, रोज़गार और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा दे रही हैं।
- बजट में पूंजीगत व्यय के आवंटन में वृद्धि ( ₹11.21 लाख करोड़) से लॉजिस्टिक्स, परिवहन और शहरी बुनियादी अवसंरचना में सुधार हुआ है, जिससे निजी निवेश में वृद्धि हुई है।
- वित्त वर्ष 2020-वित्त वर्ष 2024 के बीच पूंजीगत व्यय 38.8% CAGR (आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25) की दर से बढ़ा।
- बजट 2025-26 में 12 लाख रुपए तक आय पर कोई आयकर नहीं लगाने का प्रस्ताव रखा गया है, जिससे लोगों की शुद्ध प्रयोज्य आय में वृद्धि होगी तथा वे अधिक मांग उत्पन्न कर सकेंगे।
- आयुष्मान भारत जैसी योजनाएँ ---> स्वास्थ्य देखभाल व्यय में कमी ---> लोगों की जेब में अधिक पैसा जिससे अधिक मांग उत्पन्न होगी।
- बजट में पूंजीगत व्यय के आवंटन में वृद्धि ( ₹11.21 लाख करोड़) से लॉजिस्टिक्स, परिवहन और शहरी बुनियादी अवसंरचना में सुधार हुआ है, जिससे निजी निवेश में वृद्धि हुई है।
- बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था और फिनटेक विस्तार: भारत में डिजिटल भुगतान, फिनटेक नवाचार और ई-गवर्नेंस के तेज़ी से अंगीकरण से वित्तीय समावेशन, व्यावसायिक दक्षता एवं कर अनुपालन में वृद्धि हो रही है।
- यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), ONDC और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) ने वित्तीय सेवाओं तक अभिगम का विस्तार किया है, जिससे नकदी पर निर्भरता कम हुई है।
- भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था इसकी आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता के रूप में उभरी है, जो सत्र 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद का 11.74% हिस्सा रही।
- जनवरी 2025 में UPI लेनदेन रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच गया, जिसमें 16.99 बिलियन से अधिक लेन-देन और ₹23.48 लाख करोड़ मूल्य थे।
- विनिर्माण और वैश्विक आपूर्ति शृंखला पुनर्गठन: उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ, और उच्च-मूल्य विनिर्माण (इलेक्ट्रॉनिक्स, अर्द्धचालक, EV) पर ध्यान केंद्रित करने से भारत के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिल रहा है।
- बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता ला रही हैं, जिससे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोटिव उत्पादन का केंद्र बन रहा है।
- PLI योजना ने 1.46 लाख करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित किया है, जिससे 9.5 लाख नौकरियाँ उत्पन्न हुई हैं।
- वित्त वर्ष 2023 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 23.6 बिलियन डॉलर रहा, जिसमें मोबाइल फोन का हिस्सा 11.1 बिलियन डॉलर या 43% था।
- भू-राजनीतिक पुनर्संरेखण और लाल सागर तथा स्वेज नहर में व्यापार व्यवधान (चाइना प्लस वन रणनीति) के कारण कंपनियाँ अपनी आपूर्ति शृंखलाओं को जोखिम मुक्त करने के लिये प्रेरित हो रही हैं तथा विकल्प के रूप में भारत को प्राथमिकता दे रही हैं।
- बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता ला रही हैं, जिससे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोटिव उत्पादन का केंद्र बन रहा है।
- सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व और IT समुत्थानशीलन: सेवा क्षेत्र भारत का विकास इंजन बना हुआ है, जिसका नेतृत्व IT, वित्त, पर्यटन और रियल एस्टेट कर रहे हैं।
- AI, डिजिटल सेवाओं और फिनटेक नवाचारों के उदय ने भारतीय IT विशेषज्ञता की वैश्विक मांग बढ़ा दी है।
- वैश्विक सेवा निर्यात, विशेषकर सॉफ्टवेयर और बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) में भारत का प्रभुत्व स्थिर विदेशी मुद्रा प्रवाह एवं रोज़गार सुनिश्चित करता है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 के अप्रैल-नवंबर के दौरान भारत का सेवा निर्यात 12.8% बढ़ा, जो वित्त वर्ष 2024 में 5.7% था।
- ऊर्जा परिवर्तन और हरित विकास पहल: नवीकरणीय ऊर्जा, विद्युत गतिशीलता और ग्रीन हाइड्रोजन के लिये भारत का प्रयास इसकी आर्थिक प्रगति को नया आकार दे रहा है।
- रिकॉर्ड सौर एवं पवन ऊर्जा क्षमता वृद्धि, EV अंगीकरण और नेट-शून्य प्रतिबद्धताओं के साथ, हरित अर्थव्यवस्था औद्योगिक व तकनीकी परिवर्तन का प्रमुख चालक बन रही है।
- अक्तूबर 2024 तक, नवीकरणीय ऊर्जा आधारित बिजली उत्पादन क्षमता 203.18 गीगावाट है, जो देश की कुल स्थापित क्षमता का 46.3% से अधिक है।
- इसके अलावा, वर्ष 2030 तक भारत का लक्ष्य 8 बिलियन डॉलर का हरित हाइड्रोजन बाज़ार बनाना है।
- राजकोषीय और मौद्रिक स्थिरता: भारत की विवेकपूर्ण राजकोषीय नीतियाँ, लक्षित सामाजिक व्यय और मुद्रास्फीति नियंत्रण उपाय व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करते हैं।
- GST और डिजिटलीकरण के माध्यम से बेहतर कर अनुपालन के साथ-साथ RBI के स्थिर मौद्रिक रुख ने राजकोषीय दृष्टिकोण को दृढ़ किया है।
- कम राजकोषीय घाटा, बढ़ते कर राजस्व और बेहतर सार्वजनिक वित्त प्रबंधन ने निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है।
- वित्त वर्ष 2025 में राजकोषीय घाटा घटकर सकल घरेलू उत्पाद का 4.9% रहने की उम्मीद है, जो पिछले अनुमान 5.1% से कम है।
- वित्त वर्ष 2025 में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 4.9% हो गई, जबकि खाद्य मुद्रास्फीति 8.4% पर चुनौती बनी हुई है।
- कर सुधार: कर सुधार, विशेषकर वस्तु एवं सेवा कर (GST), जिसने अप्रत्यक्ष कर संरचना को सरल बना दिया है और लागत कम कर दी है।
- उदाहरण के लिये, ऑटोमोबाइल पर कर की दर, जो पहले 28% से 45% के बीच थी, अब GST द्वारा 18-28% तक कम हो गई है, जिससे वाहन अधिक किफायती हो गए हैं।
- इसके अतिरिक्त, GST ने कराधान के व्यापक प्रभाव को समाप्त कर दिया है, जिससे वस्तुओं की समग्र लागत में और कमी आई है।
- इन सुधारों से उपभोक्ता मांग को बढ़ावा मिला है और व्यावसायिक दक्षता में सुधार हुआ है, जिससे भारत की आर्थिक गति को बढ़ावा मिला है।
भारत की सतत् आर्थिक वृद्धि में बाधा बनने वाली प्रमुख चुनौतियाँ
- वैश्विक व्यापार बाधाएँ एवं निर्यात पर निर्भरता से उत्पन्न जोखिम भारत की निर्यात वृद्धि को भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार नीतियों में बदलाव तथा अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा लागू संरक्षणवादी नीतियों के कारण गंभीर जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है।
- स्वेज नहर तथा लाल सागर जैसे प्रमुख शिपिंग मार्गों में व्यवधान तथा भारतीय वस्तुओं पर बढ़ते टैरिफ से व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता में कमी आ सकती है।
- उदाहरण के लिये, अमेरिका द्वारा भारतीय दवा उद्योग पर 25% आयात शुल्क लगाने की योजना बनाई गई है, जिससे वार्षिक निर्यात में अरबों डॉलर का प्रभाव पड़ सकता है।
- स्वेज नहर व्यवधान के कारण जहाज़ों को केप ऑफ गुड होप के माध्यम से पुनः मार्ग परिवर्तित करना पड़ा, जिससे माल भाड़े की लागत 20% तक बढ़ गई, परिणामस्वरूप आयातित मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई।
- सुस्त निजी निवेश और पूंजी निर्माण: सरकार के नेतृत्व में बुनियादी अवसंरचना पर खर्च के बावजूद, नीति अनिश्चितता, वैश्विक आर्थिक मंदी और सतर्क निवेशक भावना के कारण निजी क्षेत्र का निवेश धीमा बना हुआ है।
- सकल स्थिर पूंजी निर्माण (GFCF) की वृद्धि धीमी हो गई है, जो कमज़ोर कारोबारी विश्वास का संकेत है।
- विनिर्माण क्षेत्र की जैविक विस्तार के बजाय सरकारी प्रोत्साहनों पर निर्भरता, अधिक स्थिर निवेश वातावरण की आवश्यकता को उजागर करती है।
- वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में GFCF की वृद्धि धीमी होकर 5.4% हो गई।
- मुद्रास्फीति संबंधी दबाव और खाद्य मूल्य अस्थिरता: हालाँकि मुख्य मुद्रास्फीति में कमी आई है, लेकिन अस्थिर खाद्य कीमतें अभी भी चुनौती बनी हुई हैं, जिसके लिये अनियमित मानसून, आपूर्ति शृंखला की बाधाएँ एवं भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ जिम्मेदार हैं।
- वैश्विक ऊर्जा और वस्तुओं की बढ़ती कीमतें मुद्रास्फीति नियंत्रण प्रयासों को और जटिल बना रही हैं।
- अस्थिर खाद्य मुद्रास्फीति उपभोक्ता विश्वास को प्रभावित कर सकती है , तथा मौद्रिक नीति के लचीलेपन को सीमित कर सकती है।
- प्याज, टमाटर और दालों की कमी के कारण खाद्य मुद्रास्फीति 8.4% पर उच्च स्तर (आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25) पर बनी हुई है। उच्च लॉजिस्टिक्स लागत से कीमतें और बढ़ जाती हैं।
- उच्च बेरोज़गारी और रोज़गारविहीन वृद्धि: आर्थिक विस्तार के बावजूद, रोज़गार सृजन अपर्याप्त बना हुआ है, विशेष रूप से विनिर्माण और औपचारिक क्षेत्रों में।
- स्वचालन और AI के बढ़ते उपयोग के कारण पारंपरिक उद्योगों में नौकरियाँ खत्म हो रही हैं, जबकि कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा कम वेतन वाली अनौपचारिक नौकरियों में लगा हुआ है।
- कौशल विकास और श्रम बाज़ार सुधारों के बिना, भारत का जनांकिकीय लाभांश एक दायित्व बन सकता है।
- भारत की बेरोज़गारी दर सत्र 2023-24 में घटकर 3.2% हो गई है, लेकिन श्रम बल भागीदारी अभी भी वैश्विक औसत से नीचे है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में बताया गया है कि भारत की तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या का 65% हिस्सा 35 वर्ष से कम आयु वर्ग का है, लेकिन उनमें से अधिकांश के पास आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिये आवश्यक कौशल का अभाव है।
- इसमें यह भी अनुमान लगाया गया है कि केवल 51.25% युवा ही रोज़गार योग्य माने जाते हैं।
- कमज़ोर औद्योगिक विकास और विनिर्माण बाधाएँ: भारत का विनिर्माण क्षेत्र कम उत्पादकता, उच्च रसद लागत और महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये आयात पर निर्भरता जैसी संरचनात्मक चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- वैश्विक मांग में मंदी, भूमि अधिग्रहण, श्रम कानूनों और बुनियादी अवसंरचना में घरेलू बाधाओं के कारण औद्योगिक विस्तार सीमित हो रहा है।
- यद्यपि PLI योजनाओं ने विशिष्ट क्षेत्रों को बढ़ावा दिया है, लेकिन व्यापक औद्योगिक विकास असमान बना हुआ है।
- वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में विनिर्माण वृद्धि दर घटकर 2.2% रह गई। भारत की लॉजिस्टिक्स लागत GDP के 13-14% पर बनी हुई है।
- वैश्विक मांग में मंदी, भूमि अधिग्रहण, श्रम कानूनों और बुनियादी अवसंरचना में घरेलू बाधाओं के कारण औद्योगिक विस्तार सीमित हो रहा है।
- वित्तीय क्षेत्र की कमज़ोरियाँ और ऋण जोखिम: जबकि भारत के बैंकिंग क्षेत्र में सुधार हुआ है, उच्च असुरक्षित ऋण, फिनटेक जोखिम और NBFC में संभावित परिसंपत्ति गुणवत्ता के मुद्दे चिंता का विषय बने हुए हैं।
- वित्त वर्ष 2024 तक तीन वर्षों में असुरक्षित व्यक्तिगत ऋण और क्रेडिट कार्ड उधार क्रमशः 22% एवं 25% की CAGR से बढ़े, जिससे चूक के बारे में चिंता बढ़ गई।
- डिजिटल डिवाइड और असमान प्रौद्योगिकी प्रवेश: तीव्र डिजिटल विकास के बावजूद, डिजिटल बुनियादी अवसंरचना तक पहुँच असमान बनी हुई है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
- सीमित डिजिटल साक्षरता, अपर्याप्त इंटरनेट कनेक्टिविटी और साइबर सुरक्षा खतरे फिनटेक एवं डिजिटल गवर्नेंस के लाभों में बाधा डालते हैं।
- NSSO (राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय) के आँकड़े उल्लेखनीय असमानता दर्शाते हैं: ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 24% परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा है, जबकि शहरों में यह सुविधा 66% है।
- इसके अलावा, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस धोखाधड़ी जैसे साइबर धोखाधड़ी के मामलों में वित्त वर्ष 2024 में 85% की वृद्धि हुई, जिससे सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उजागर हुईं।
- मध्य की कमी: MSME जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में ऋण सुलभता कम बनी हुई है, जबकि उपभोक्ता ऋण में अत्यधिक वृद्धि वित्तीय स्थिरता के बारे में चिंता उत्पन्न करती है।
- मुद्रा ऋण जैसी सरकारी पहलों के बावजूद, कई छोटे व्यवसायों को किफायती वित्तपोषण तक पहुँच नहीं मिल पा रही है, जबकि बड़ी कंपनियों और उपभोक्ता ऋण के लिये बेहतर ऋण अवसर उपलब्ध हैं।
- निवेश बैंक एवेंडस कैपिटल की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में MSME वर्तमान में 530 बिलियन डॉलर के ऋण अंतराल का सामना कर रहे हैं तथा भारत में 63 मिलियन छोटे व्यवसायों में से केवल 14% के पास ऋण तक पहुँच है।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय चुनौतियाँ: भारत जलवायु जोखिमों जैसे कि चरम मौसम, जल की कमी और बढ़ते प्रदूषण स्तर के प्रति अत्यधिक सुभेद्य है।
- बार-बार सूखा और बाढ़ कृषि को प्रभावित करते हैं, जबकि कोयले पर अत्यधिक निर्भरता के कारण ऊर्जा परिवर्तन के प्रयासों में भी बाधाएँ आती हैं।
- आर्थिक विकास को स्थिरता के साथ संतुलित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
- भारत की कोयला निर्भरता अभी भी उच्च बनी हुई है, तथा 65,290 मेगावाट क्षमता के सुपरक्रिटिकल कोयला संयंत्र प्रचालन में हैं।
- वित्त वर्ष 2016-2022 के दौरान जलवायु अनुकूलन व्यय सकल घरेलू उत्पाद के 3.7% से बढ़कर 5.6% हो गया, जो संसाधनों का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण विचलन है।
- भारत की कोयला निर्भरता अभी भी उच्च बनी हुई है, तथा 65,290 मेगावाट क्षमता के सुपरक्रिटिकल कोयला संयंत्र प्रचालन में हैं।
भारत अपनी आर्थिक वृद्धि की संभावना को बनाए रखने के लिये क्या कदम उठा सकता है?
- घरेलू मांग और खपत को मज़बूत करना: लक्षित कर राहत, ग्रामीण रोज़गार कार्यक्रम और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से प्रयोज्य आय में वृद्धि करके घरेलू खपत को बनाए रखा जा सकता है।
- MSME और परिवारों तक ऋण अभिगम बढ़ाने से क्रय शक्ति एवं मांग आधारित विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- प्रसंस्कृत खाद्य, वस्त्र और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे मूल्यवर्द्धित क्षेत्रों को बढ़ावा देने से रोज़गार सृजित होंगे और उपभोक्ता आधार का विस्तार होगा।
- कृषि आपूर्ति शृंखलाओं, शीत भंडारण अवसंरचना और गोदाम को मज़बूत करने से खाद्य मुद्रास्फीति की अस्थिरता कम होगी।
- उपभोक्ता संरक्षण कानूनों और डिजिटल साक्षरता को मज़बूत करने से ई-कॉमर्स एवं फिनटेक में विश्वास बढ़ सकता है।
- निजी निवेश और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना: भूमि अधिग्रहण कानूनों, श्रम संहिताओं और पर्यावरण मंजूरी को सरल बनाने से अनुपालन बोझ कम होगा तथा व्यापार करने में आसानी होगी।
- इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स से आगे बढ़कर ग्रीन हाइड्रोजन, सेमीकंडक्टर एवं सटीक विनिर्माण जैसे उभरते क्षेत्रों को शामिल करने के लिये उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का विस्तार करने से औद्योगिक विस्तार को बढ़ावा मिलेगा।
- उच्च तकनीक और पूंजी-प्रधान उद्योगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को प्रोत्साहित करने से घरेलू विनिर्माण क्षमताएँ मज़बूत होंगी।
- बुनियादी अवसंरचना और रसद दक्षता को मज़बूत करना: नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (NIP), गति शक्ति और भारतमाला में तेज़ी लाने से मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी बढ़ेगी तथा रसद लागत कम होगी।
- शहरी परिवहन नेटवर्क का विस्तार, उच्च गति रेल गलियारा और बंदरगाह आधुनिकीकरण से व्यापार प्रतिस्पर्द्धा में सुधार होगा।
- हरित परियोजनाओं और विकेंद्रीकृत ऊर्जा ग्रिडों के लिये प्रोत्साहन के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना को मज़बूत करने से सतत् विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
- राज्य स्तर पर पूंजीगत व्यय आवंटन का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने से परियोजना कार्यान्वयन में तेज़ी आएगी।
- डिजिटल परिवर्तन और नवाचार को बढ़ावा देना: 5G रोलआउट, AI-संचालित स्वचालन और क्लाउड कंप्यूटिंग बुनियादी अवसंरचना को बढ़ावा देने से सेवाओं एवं विनिर्माण में दक्षता बढ़ेगी।
- डिजिटल कॉमर्स के लिये ओपन नेटवर्क (ONDC) और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) का विस्तार करने से छोटे व्यवसायों एवं स्टार्टअप्स के लिये समान अवसर उपलब्ध होंगे।
- कर प्रोत्साहन और विश्वविद्यालय-उद्योग साझेदारी के माध्यम से AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और बायोटेक में अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करने से तकनीकी नेतृत्व को बढ़ावा मिलेगा।
- व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता और निर्यात विविधीकरण को बढ़ाना: यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और ASEAN जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर वार्ता करने से बाज़ार पहुँच में सुधार होगा व टैरिफ बाधाएँ कम होंगी।
- इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और प्रीसीज़न इंजीनियरिंग जैसे उच्च मूल्य वाले क्षेत्रों के लिये निर्यात प्रोत्साहन को मज़बूत करने से भारत के वैश्विक व्यापार में वृद्धि होगी।
- बंदरगाह की दक्षता में सुधार, सीमा शुल्क डिजिटलीकरण तथा रसद लागत में कमी लाने से लेन-देन की लागत और व्यापार में विलंब में कमी आएगी।
- रणनीतिक साझेदारों के साथ रुपया व्यापार तंत्र का विस्तार करने से विदेशी मुद्रा जोखिम कम होगा तथा आर्थिक कूटनीति मज़बूत होगी।
- रोज़गार और कौशल विकास अंतराल की पूर्ति करना: प्रशिक्षुता कार्यक्रमों, व्यावसायिक प्रशिक्षण और उद्योग-अकादमिक सहयोग का विस्तार, कार्यबल कौशल को उभरते उद्योग की मांगों के साथ संरेखित करेगा।
- स्किल इंडिया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)- 2020 पहलों को मज़बूत करने से स्नातकों की रोज़गार क्षमता में सुधार होगा तथा संरचनात्मक बेरोज़गारी कम होगी।
- वस्त्र, पर्यटन और निर्माण जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों को बढ़ावा देने से स्थायी रोज़गार के अवसर उत्पन्न होंगे।
- टियर-2 और टियर-3 शहरों में उद्यमशीलता एवं स्टार्टअप इनक्यूबेशन को प्रोत्साहित करने से विकेंद्रित रोज़गार केंद्रों का निर्माण होगा।
- शासन और संस्थागत सुधारों को मज़बूत करना: पारदर्शिता, जवाबदेही और इज़-ऑफ-डूइंग-बिज़नेस बढ़ाने से निवेश आकर्षित होगा तथा निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
- बैंकिंग, कराधान और कॉर्पोरेट प्रशासन में नियामक कार्यढाँचे को सुव्यवस्थित करने से व्यवसायों पर अनुपालन का बोझ कम हो जाएगा।
- राज्यों तक विकेंद्रीकृत शासन और वित्तीय स्वायत्तता का विस्तार करने से ज़मीनी स्तर पर नीति कार्यान्वयन में सुधार होगा।
निष्कर्ष:
अल्पकालिक चुनौतियों के बावजूद भारत का आर्थिक विकास परिदृश्य आशाजनक बना हुआ है। मज़बूत घरेलू मांग, बुनियादी अवसंरचना का विस्तार, डिजिटल परिवर्तन और विनिर्माण वृद्धि प्रगति को गति दे रही है। लक्षित सुधारों को लागू करके, निजी निवेश को मज़बूत करके और नवाचार को बढ़ावा देकर, भारत वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच संधारणीय एवं समावेशी आर्थिक विकास हासिल कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के आर्थिक विकास के दृष्टिकोण को आकार देने वाले प्रमुख चालकों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। वैश्विक और घरेलू अनिश्चितताओं के बीच नीतिगत हस्तक्षेप किस प्रकार संधारणीय एवं समावेशी विकास सुनिश्चित कर सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015) (a) कोयला उत्पादन उत्तर: (b) प्रश्न 2. निरपेक्ष तथा प्रति व्यत्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करतीं, यदि (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है। उत्तर: (c) प्रश्न 3. किसी दिये गए वर्ष में भारत में कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं, क्योंकि (2019) (a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न 1. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइए। औद्योगिक-नीति में हाल में किए गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहांँ तक सक्षम हैं ? (उत्तर 250 शब्दों में दें) (2017) प्रश्न 2. सामान्यत: देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अन्तरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अन्तरित हो गया है। देश में उद्योग के मुक़ाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014) |