पश्चिम एशिया के तनाव के बीच भारत का सामरिक राजनय | 07 Oct 2024

यह संपादकीय 06/10/2024 को द हिंदू बिजनेस लाइन में प्रकाशित "Escalation of West Asia conflict could hurt India" पर आधारित है। यह लेख ईरान और इज़रायल के बीच बढ़ते तनाव पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे भारत को संयम और वार्ता का आह्वान करने के लिये प्रेरित किया जाता है, जबकि इस क्षेत्र में अपने सामरिक हितों पर प्रकाश डाला जाता है। यह इस बात पर बल देता है कि एक व्यापक संघर्ष भारत के आर्थिक हितों, ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

ईरान और इज़रायल, पश्चिम एशियाई क्षेत्र, यमन गृह युद्ध, संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी, नैटान्ज़ परमाणु सुविधा, होर्मुज़ जलडमरूमध्य, फिलिस्तीनी-इज़रायल संघर्ष, अरब स्प्रिंग 2011, खाड़ी सहयोग परिषद, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, इस्लामिक सहयोग संगठन   

मेन्स के लिये:

पश्चिम एशिया से संबंधित मुद्दे जो भारत के हितों को प्रभावित कर रहे हैं, चिंताओं के बावजूद पश्चिमी एशियाई देशों के साथ भारत अपने संबंधों को संतुलित करने के लिये क्या उपाय अंगीकृत कर सकता है। 

ईरान और इज़रायल के बीच बढ़ते तनाव ने एक बार फिर व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष की संभावना के विषय में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। पश्चिम एशियाई क्षेत्र में अपने सामरिक हितों के साथ भारत ने दोनों पक्षों से संयम बरतने एवं  वार्ता और राजनय के माध्यम से संकट का समाधान करने का आग्रह किया है। यद्यपि भारत ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की पेशकश नहीं की है, परंतु उसने दोनों पक्षों के साथ संचार सरणि को संधारित कर रखा है और गाज़ा में  मानवतावादी स्थिति पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है।

हाल के वर्षों में भारत के इज़रायल के साथ संबंध गहरे हुए हैं, जबकि ईरान के साथ उसके संबंधों में सहयोग और तनाव दोनों की झलक मिलती है। व्यापक संघर्ष से भारत के आर्थिक हितों, ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

पश्चिम एशिया में लगातार संघर्ष की स्थिति क्यों बनी रहती है? 

  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और छद्म युद्ध: ईरान और सऊदी अरब के बीच प्रतिद्वंद्विता पश्चिम एशिया में तनाव का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है, जो इस क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करने की दोनों देशों की महत्त्वाकांक्षाओं से प्रेरित है। 
    • यह प्रतिस्पर्द्धा प्रायः विभिन्न संघर्षों में विरोधी पक्षों को समर्थन देने में प्रकट होती है। 
    • उदाहरण के लिये, यमन गृह युद्ध में सऊदी अरब ने ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के विरुद्ध गठबंधन का नेतृत्व किया, जिसके परिणामस्वरूप मानवीय संकट उत्पन्न हुआ तथा संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2015 से वर्ष 2022 के प्रारंभ के बीच 377,000 से अधिक लोगों की मृत्यु की सूचना दी।
    • इन छद्म युद्धों ने क्षेत्रीय शरणार्थी संकट को गहरा झटका दिया है, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी की मार्च 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, 7.2 मिलियन से अधिक सीरियाई अपने ही देश में आंतरिक रूप से विस्थापित हैं, जहाँ 70% आबादी को मानवीय सहायता की आवश्यकता है। 
    • इसके अतिरिक्त, इज़रायल ईरान को उसकी परमाणु महत्त्वाकांक्षाओं और हिज़्बुल्लाह को समर्थन के कारण एक खतरे के रूप में देखता है, जिसके कारण साइबर युद्ध की घटनाएँ होती हैं और सीरिया में ईरानी ठिकानों पर हवाई हमले होते हैं।
      • वर्ष 2022 में, ईरान ने इज़राइल पर अपनी नैटान्ज़ परमाणु सुविधा को नुकसान पहुँचाने का आरोप लगाया। 
      • इज़राइल ने हाल ही में दावा किया कि उसने लेबनान के बेरूत में एक हमले में हिज़्बुल्लाह के एक वरिष्ठ कमांडर को मार गिराया है
        • हाल ही में लेबनान में हुए पेजर हमले के लिये भी कथित तौर पर इज़रायल को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है।
  • धार्मिक संप्रदायवाद और अस्मिता संघर्ष: सुन्नी-शिया विभाजन पश्चिम एशिया में कई संघर्षों का एक प्रमुख कारक है, जो सांप्रदायिक हिंसा और राजनीतिक संघर्षों को उत्प्रेरित करता है। 
    • यहाँ की जनसंख्या में लगभग 85% सुन्नी और 15% शिया हैं तथा ईरान और सऊदी अरब इन गुटों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
    • वर्ष 2003 में अमेरिकी नेतृत्व वाले आक्रमण से लेकर वर्ष 2011 के मध्य तक युद्ध-संबंधी कारणों से इराक में लगभग पाँच लाख लोग मारे गए।
    • बहरीन ने सुन्नी राजशाही द्वारा शिया बहुसंख्यक आबादी पर  दमन के कारण भी तनाव का अनुभव किया है, विशेष रूप से वर्ष 2011 के अरब स्प्रिंग विरोध प्रदर्शनों के बाद से।
      • ये सांप्रदायिक संघर्ष क्षेत्र की अस्थिरता और हिंसा में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • तेल की प्रचुरता और संसाधन नियंत्रण: पश्चिम एशिया में विश्व के लगभग 48% प्रमाणित तेल निक्षेप विद्यमान हैं, जिससे इन संसाधनों पर नियंत्रण एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।
    • तेल पर आर्थिक निर्भरता ने आंतरिक और बाह्य संघर्षों को उत्प्रेरित किया है, जैसे इराक-कुवैत संघर्ष, जो तेल नियंत्रण से प्रेरित था और जिसके कारण खाड़ी युद्ध हुआ। 
    • ओपेक के निर्णय तेल के वैश्विक मूल्यों को आज भी प्रभावित करते हैं। ओपेक+ तेल गठबंधन के सदस्यों ने अक्तूबर 2024 में निर्धारित 180,000 बैरल प्रतिदिन उत्पादन बढ़ाने की योजना को स्थगित कर दिया है, जिससे संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य तेल-उपभोक्ता देशों में संदेह उत्पन्न हो गया है।
    • इसके अतिरिक्त, होर्मुज़ जलडमरूमध्य जैसे सामरिक जलमार्ग तेल पारगमन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। विश्व की कुल तेल खपत का लगभग पाँचवाँ हिस्सा रोज़ाना इस जलडमरूमध्य से होकर गुज़रता है। 
      • इस चोकपॉइंट को बंद करने की ईरान की धमकियों से अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ सैन्य तनाव बढ़ गया है।

  • औपनिवेशिक विरासत और कृत्रिम सीमाएँ: पश्चिम एशिया में औपनिवेशिक विरासत, विशेष रूप से साइक्स-पिकॉट समझौते ने मनमानी सीमाएँ स्थापित कीं, जिनमें नृजातीय और जनजातीय विभाजनों की उपेक्षा की गई, जिसके परिणामस्वरूप दीर्घकालिक अस्थिरता उत्पन्न हुई। 
    • इसके परिणामस्वरूप समुदाय राष्ट्रीय सीमाओं के पार विभाजित हो गए और उन्हें एकीकृत राष्ट्रीय अस्मिता के अभाव में बहुजातीय राज्यों में रहने के लिये बाध्य होना पड़ा। 
    • स्वायत्तता के लिये कुर्द संघर्ष इस मुद्दे का उदाहरण है, क्योंकि कुर्द तुर्की, सीरिया, इराक और ईरान में स्वतंत्रता चाहते हैं, जिसे इराक में वर्ष 2017 के जनमत संग्रह द्वारा प्रकट किया गया था, जिसका पड़ोसी देशों द्वारा विरोध किया गया था। 
    • फिलिस्तीनी-इज़रायल संघर्ष की जड़ें भी ब्रिटिश शासनादेश में हैं, जिसके कारण जारी विवादों के परिणामस्वरूप लाखों लोग विस्थापित हो रहे हैं।
      • सितंबर 2024 तक स्थिति काफी खराब हो चुकी है, इज़रायल की घेराबंदी के कारण 83% खाद्य सहायता गाज़ा तक नहीं पहुँच पा रही है।
  • सत्तावादी शासन और राजनीतिक दमन: कई पश्चिम एशियाई देशों में सत्तावादी शासन है, जिसमें राजशाही और सैन्य तानाशाही शामिल हैं, जिसके कारण व्यापक असंतोष तथा राजनीतिक दमन होता है। 
    • वर्ष 2011 में अरब स्प्रिंग ने महत्त्वपूर्ण विद्रोहों को जन्म दिया, परंतु कई शासनों ने क्रूर दमनात्मक कार्रवाइयों के साथ प्रतिउत्तर दिया। 
    • मार्च 2024 तक, रूस के समर्थन से, असद शासन ने उत्तर-पश्चिमी सीरिया में हमले किये हैं, जिसके परिणामस्वरूप 500 से अधिक नागरिक हताहत हुए हैं और 120,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। 
    • मानवाधिकार संगठनों ने अनेक दुर्व्यवहारों का दस्तावेज़ीकरण किया है, जो इस क्षेत्र में लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के लिये संघर्ष को और अधिक स्पष्ट करता है।
  • विदेशी हस्तक्षेप और सैन्य उपस्थिति: तेल और क्षेत्रीय स्थिरता में अपने सामरिक हितों के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका ने पश्चिम एशिया में महत्त्वपूर्ण सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है। 
    • वर्ष 2001 से अमेरिका अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में संघर्षों में शामिल रहा है, जिसके प्रायः अनपेक्षित परिणाम सामने आते हैं, जिससे स्थानीय लोगों में असंतोष उत्पन्न होता है। 
    • सामूहिक विध्वंस के हथियारों को नष्ट करने और लोकतंत्र को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इराक पर वर्ष 2003 में किया गया आक्रमण, लंबे समय तक अस्थिरता, सांप्रदायिक हिंसा और ISIL जैसे चरमपंथी समूहों के उदय का कारण बना। 
    • जून 2019 के अंत में, ईरान ने होर्मुज़ जलडमरूमध्य में एक अमेरिकी ग्लोबल हॉक ड्रोन को निष्प्रभावी करके नीचे गिरा डाला तथा अमेरिकी राष्ट्रपति ने साइबर हमले और नए प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया।

पश्चिम एशिया के मुद्दों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? 

  • ऊर्जा सुरक्षा और तेल आयात: पश्चिम एशिया भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो इसके कच्चे तेल के आयात का 60% से अधिक आपूर्ति करता है। 
    • वर्ष 2022-23 में इराक रूस के बाद भारत को दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। इस क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता के कारण प्रायः तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ सकता है। 
    • ब्रेंट क्रूड आयल की कीमतें 80-85 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रही हैं, जिससे भारत की आयात लागत और मुद्रास्फीति प्रभावित हो रही है। 
      • इन जोखिमों को कम करने के लिये भारत सक्रिय रूप से अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता ला रहा है, जिसमें रूस, अमेरिका और लैटिन अमेरिका के साथ समझौते शामिल हैं।
    • भारत पहले ही पश्चिम एशियाई संघर्षों के प्रभावों को अनुभव कर चुका है, क्योंकि इस क्षेत्र से कच्चे पेट्रोलियम आयात में इसकी हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2022 में 34% से घटकर वित्त वर्ष 2023 में 30.9% और वित्त वर्ष 2024 में लगभग 23% हो गई है।
  • प्रवासी भारतीयों से प्राप्त विप्रेषण: पश्चिम एशिया में 80 लाख से अधिक संख्या में प्रवासी भारतीय धन विप्रेषण का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। 
    • वर्ष 2021 में, भारत को लगभग 87 बिलियन अमरीकी डॉलर का विप्रेषण प्राप्त हुआ, जिसमें से लगभग 50% खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों से प्राप्त हुआ।
    • सऊदी अरब में "सऊदीकरण" नीति के कारण उत्पन्न आर्थिक मंदी इन विप्रेषणों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है तथा केरल जैसे राज्यों के उन परिवारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है जो इस आय पर बहुत अधिक निर्भर हैं। 
    • कोविड-19 महामारी के कारण अनेक भारतीय कामगारों को घर लौटना पड़ा और यद्यपि स्थिति सामान्य हो गई है, परंतु जारी क्षेत्रीय संघर्षों के कारण नौकरी की स्थिरता और विप्रेषण प्रवाह को खतरा बना रह सकता है।
  • व्यापार संबंध और आर्थिक प्रभाव: खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यापार साझेदारों में से एक है। 
    • वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान भारत-GCC द्विपक्षीय व्यापार 161.59 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा। भारत का निर्यात 56.3 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा। 
    • क्षेत्रीय अस्थिरता के कारण व्यापार संबंधों में कोई भी व्यवधान भारत के निर्यात क्षेत्र और खाड़ी में खाद्य आपूर्ति पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। 
    • इसके अतिरिक्त, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के साथ भारत के व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते का उद्देश्य व्यापार में वृद्धि करना है, परंतु भू-राजनीतिक तनावों के कारण इसमें बाधा आ सकती है।
  • समुद्री सुरक्षा और व्यापार मार्ग: होर्मुज़ जलडमरूमध्य और बब अल-मन्देब जैसे सामरिक समुद्री मार्ग भारत के व्यापार तथा ऊर्जा आयात के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • इन जलमार्गों पर समुद्री डकैती या राज्य प्रायोजित हमलों से भारत की व्यापार सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। 
    • होर्मुज़ जलडमरूमध्य एक महत्त्वपूर्ण चोकपॉइंट बना हुआ है। अप्रैल 2024 में ईरान द्वारा इज़राइल से जुड़े एक मालवाहक पोत को ज़ब्त करना, जिसमें 17 भारतीय नागरिक सवार थे, इस स्थिति में भारत की भागीदारी को रेखांकित करता है।
  • आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा: पश्चिम एशिया में अस्थिरता ISIS, अल-कायदा और हिज्बुल्लाह जैसे चरमपंथी संगठनों के लिये आधार का निर्माण करता है, जो कभी-कभी भारत सहित दक्षिण एशिया से रंगरूटों की भर्ती करते हैं।
    • FATF की हालिया रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर में ISIS और अलकायदा से संबंधित समूहों से भारत के लिये आतंकवादी खतरे पर प्रकाश डाला गया है।
  • सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध: भारत और पश्चिम एशिया के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध द्विपक्षीय संबंधों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं:
    • भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी (लगभग 200 मिलियन) का निवास स्थान है, जिससे पश्चिम एशिया में विकास, विशेष रूप से इस्लामी पवित्र स्थलों के संबंध में, घरेलू महत्त्व का हो गया है।
  • भू-राजनीतिक संरेखण और महाशक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता: पश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव, विशेष रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से, भारत के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहा है, विशेषकर तब जब चीन, ईरान और सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को सुदृढ़ कर रहा है।
    • क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव, जिसका उदाहरण मार्च 2023 में ईरान-सऊदी अरब के बीच संबंधों में मध्यस्थता है, भारत के सामरिक हितों के लिये चुनौती है।
    • जुलाई 2022 से I2U2 समूह (भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका) में भारत की भागीदारी इसकी पश्चिम एशिया नीति में एक नए चरण का प्रतीक है, परंतु इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के प्रतिद्वंद्वी देशों के साथ सामंजस्य को संतुलित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है। 

चिंताओं के बावजूद पश्चिमी एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने के लिये भारत क्या उपाय कर सकता है? 

  • सामरिक स्वायत्तता और गुटनिरपेक्षता का अंगीकरण: भारत को सऊदी अरब, ईरान, इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात जैसे प्रमुख अभिकर्ता देशों के साथ सुदृढ़ द्विपक्षीय संबंधों को संवर्द्धित करके पश्चिम एशियाई संघर्षों में अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुरक्षण करना चाहिये।
    • किसी भी विशेष गुट के साथ प्रत्यक्ष गठबंधन से बचकर भारत क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता में उलझे बिना उससे निपट सकता है। 
    • ईरान-सऊदी अरब प्रतिद्वंद्विता और इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष जैसे संवेदनशील मुद्दों पर निरंतर तटस्थ रुख अपनाने से भारत की छवि एक शांति-प्रवर्तक राष्ट्र और सभी संबंधित पक्षों के लिये एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में और अधिक सुदृढ़ होगी।
  • आर्थिक और ऊर्जा संबंधों का सुदृढ़ीकरण: यद्यपि पश्चिम एशिया भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण बना हुआ है, फिर भी देश को किसी एक क्षेत्र पर निर्भरता कम करने के लिये  अपने ऊर्जा आयात में विविधता लाने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमताओं को बढ़ाने से समय के साथ पश्चिम एशियाई तेल पर निर्भरता कम करने में सहायता मिलेगी। 
      • GCC देशों के साथ व्यापार और निवेश संबंधों को सुदृढ़ करना आवश्यक है तथा महत्त्वपूर्ण लाभ के लिये प्रौद्योगिकी, रक्षा और आधारिक संरचना जैसे नए क्षेत्रों का अन्वेषण करना आवश्यक है। 
    • भारत-UAE व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) में व्यापार को संवर्द्धित करने की क्षमता है तथा अन्य GCC देशों के साथ इसी प्रकार के समझौते भारत के आर्थिक हितों का संरक्षण करने में सहायक हो सकते हैं। 
  • राजनयिक संपर्क और बहुपक्षीय सहयोग का विस्तार: भारत को पश्चिम एशियाई देशों के साथ नियमित उच्च स्तरीय संपर्क के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करना जारी रखना चाहिये। 
    • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC), इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) (पर्यवेक्षक के रूप में) और क्वाड (जिसमें भारत, इज़रायल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका शामिल हैं) जैसे क्षेत्रीय बहुपक्षीय मंचों में सक्रिय भागीदारी से एक रचनात्मक क्षेत्रीय अभिकर्त्ता के रूप में भारत की भूमिका सुदृढ़ होगी, जिससे समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद-निरोध जैसे मुद्दों पर सहयोग संभव होगा। 
    • इसके अतिरिक्त, I2U2 फोरम (भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका) का लाभ उठाकर खाद्य सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सहयोग को सुविधाजनक बनाया जा सकता है । 
  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग वर्द्धन: होर्मुज़ जलडमरूमध्य जैसे चोकपॉइंट्स के सामरिक महत्त्व को देखते हुए, भारत को हिंद महासागर और अरब सागर में अपनी नौसैनिक उपस्थिति को सुदृढ़ करना चाहिये। 
    • ओमान, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका के साथ संयुक्त अभ्यास के माध्यम से नौसैनिक सहयोग बढ़ाने से इन महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों के संरक्षण में भारत की क्षमता बढ़ सकती है।
    • पश्चिम एशियाई देशों के साथ द्विपक्षीय रक्षा समझौतों का विस्तार करना, संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण, खुफिया जानकारी साझा करना और आयुधों की बिक्री पर ध्यान केंद्रित करना महत्त्वपूर्ण होगा। 
    • सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इज़रायल जैसे देशों के साथ आतंकवाद-रोधी सहयोग को सुदृढ़ करना, विशेष रूप से खुफिया जानकारी साझा करने, साइबर सुरक्षा और कट्टरपंथ-रोधी प्रयासों में, चरमपंथी समूहों से संभावित खतरों को कम कर सकता है एवं भारत की आंतरिक सुरक्षा को बढ़ा सकता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा पहल को प्राथमिकता: पश्चिम एशियाई संघर्षों से उत्पन्न होने वाले जोखिमों को कम करने के लिए, भारत को अपनी सामरिक पेट्रोलियम रिजर्व (SPR) क्षमता का विस्तार करना चाहिये।
    • भारत की दृष्टि मैंगलोर में एक नए सामरिक कच्चे तेल के निक्षेप पर है। यह तेल आपूर्ति में व्यवधान के विरुद्ध एक मध्यवर्तन प्रदान करेगा, जैसा कि वर्ष 2019 में सऊदी तेल सुविधा हमलों के दौरान हुआ था। 
    • स्वच्छ ऊर्जा में क्षेत्र की बढ़ती रुचि को देखते हुए, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं पर पश्चिम एशियाई देशों के साथ सहयोग करना आवश्यक है। 
    • संयुक्त अरब अमीरात के साथ सौर ऊर्जा पर संयुक्त पहल या सऊदी अरब के साथ हाइड्रोजन ईंधन परियोजनाएँ अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के तहत भारत के लक्ष्यों के अनुरूप होंगी तथा इसकी ऊर्जा विविधीकरण कार्यनीति में योगदान देंगी।
  • सांस्कृतिक राजनय और लोगों के मध्य संबंधों को प्रोत्साहन: पश्चिम एशिया में 80 लाख से अधिक भारतीय रहते हैं, इसलिये भारत को उनके कल्याण, विशेष रूप से श्रम सुधारों के संबंध में वकालत जारी रखनी चाहिये।
    • राजनयिक मिशनों को भारतीय श्रमिकों के अधिकारों का रक्षण तथा आवश्यकता पड़ने पर सुरक्षित प्रत्यावर्तन सुनिश्चित करने के लिये मेज़बान सरकारों के साथ सक्रिय रूप से संपर्क करना चाहिये।
    • सांस्कृतिक उत्सवों और कार्यक्रमों का आयोजन (जैसे IPL नीलामी 2025 सऊदी अरब में आयोजित होने की संभावना है) क्षेत्र में सॉफ्ट पावर का निर्माण करने और सद्भावना को संवर्द्धित करने में सहायता कर सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, भारत पश्चिम एशिया के छात्रों के लिये तकनीकी प्रशिक्षण और शैक्षिक छात्रवृत्ति प्रदान कर सकता है, जिससे उच्च शिक्षा और कौशल विकास के गंतव्य के रूप में इसकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी, लोगों के बीच दीर्घकालिक संबंध संवर्द्धित होंगे और क्षेत्र में सद्भावना का विकास होगा।

निष्कर्ष: 

पश्चिम एशिया में भारत के सामरिक हितों के लिये क्षेत्रीय तनावों की जटिलताओं का समाधान करने के लिये संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। भारत के लिये मुद्दा आधारित राजनय और बहुपक्षीय सहयोग को प्राथमिकता देना आवश्यक होगा ताकि वह संघर्ष से ग्रस्त इस क्षेत्र में एक स्थिर शक्ति के रूप में उभर सके, जिससे क्षेत्रीय शांति और स्थिरता में योगदान करते हुए अपने राष्ट्रीय हितों का संरक्षण कर सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

Q. पश्चिम एशिया प्रायः निरंतर भू-राजनीतिक उथल-पुथल का क्षेत्र रहा है। इस निरंतर अस्थिरता के पश्च में निहित कारकों का विश्लेषण कीजिये और स्पष्ट कीजिये कि भारत इस क्षेत्र के साथ अपने संबंधों में कैसे संतुलित दृष्टिकोण को संधारित कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. दक्षिण-पश्चिमी एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक फैला नहीं है?

(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इज़राइल

उत्तर: b


प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद "टू-स्टेट सोल्यूशन" किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है ?

(a) चीन
(b) इज़राइल
(c) इराक
(d) यमन

उत्तर: b


मेन्स

प्रश्न. "भारत के इज़राइल के साथ संबंधों ने हाल में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।" विवेचना कीजिये। (2018)