भारत-अमेरिका के मध्य सामरिक साझेदारी | 07 Nov 2024

यह संपादकीय 07/11/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “ What Trump 2.0 means for India and South Asia” पर आधारित है। यह लेख नए अमेरिकी नेतृत्व के तहत विकसित हो रहे भारत-अमेरिका संबंधों को सामने लाता है, जो रक्षा, प्रौद्योगिकी और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग के नए अवसर प्रस्तुत करते हैं, जबकि व्यापार तथा क्षेत्रीय कूटनीति में मौजूद चुनौतियों पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-अमेरिका संबंध, LEMOA, COMCASA, BECA , सिलिकॉन वैलीपुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक, मालाबार अभ्यास, NISAR मिशन, नासा का डीप स्पेस नेटवर्क, चंद्रयान-3, डिजिटल सेवा कर, CAATSA, महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकी पर अमेरिका-भारत पहल। 

मेन्स के लिये:

भारत के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका का महत्त्व, भारत-अमेरिका संबंधों में प्रमुख मुद्दे।  

हाल ही में अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के चुनाव के साथ भारत-अमेरिका संबंध एक नए चरण में प्रवेश कर रहे हैं। द्विपक्षीय संबंध, जो भारत की विदेश नीति का आधार रहा है, रक्षा सहयोग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और ऊर्जा साझेदारी सहित रणनीतिक क्षेत्रों को शामिल करता है। नए अमेरिकी नेतृत्व के तहत, इन संबंधों में विकास के साथ-साथ रक्षा, व्यापार और क्षेत्रीय कूटनीति के क्षेत्रों में भारत के लिये नए अवसर तथा चुनौतियाँ उभरने की संभावना है।

भारत के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका का क्या महत्त्व है? 

  • आर्थिक साझेदारी: जनवरी से जुलाई 2024 की अवधि में, अमेरिका ने 72 बिलियन डॉलर से अधिक के द्विपक्षीय वस्तु व्यापार के साथ भारत के शीर्ष व्यापारिक साझेदार के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखी। इस दौरान भारतीय निर्यात में 9.3% की वृद्धि दर्ज की गई, जो 48.2 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया।
    • आर्थिक साझेदारी आईटी सेवाओं से लेकर फार्मास्यूटिकल्स तक विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है, जबकि उभरती प्रौद्योगिकियों और विनिर्माण में विस्तार की महत्त्वपूर्ण संभावनाएँ हैं।
  • सामरिक रक्षा सहयोग: अमेरिका-भारत रक्षा साझेदारी क्रेता-विक्रेता संबंध से विकसित होकर सैन्य हार्डवेयर के सह-विकास और सह-उत्पादन तक पहुँच गई है।
    • यह सहयोग हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करने, आतंकवाद-रोधी प्रयासों को तेज़ करने और खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने तक विस्तृत है।
    • क्वाड साझेदारी ने द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को मज़बूत किया है। 
    • अमेरिका-भारत रक्षा व्यापार वर्ष 2008 में लगभग शून्य से बढ़कर वर्ष 2020 में 20 बिलियन अमेरीकी डॉलर से अधिक हो गया है। साथ ही, भारत ने अमेरिका के साथ सभी चार मूलभूत रक्षा समझौतों (LEMOA, COMCASA, BECA, ISA) पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • प्रौद्योगिकी एवं नवाचार: अमेरिका भारत की तकनीकी प्रगति के लिये महत्त्वपूर्ण बना हुआ है, विशेष रूप से अर्द्धचालक, क्वांटम कंप्यूटिंग और AI में। 
    • अमेरिका-भारत वैश्विक डिजिटल विकास साझेदारी का उद्देश्य एशिया और अफ्रीका में ज़िम्मेदार डिजिटल प्रौद्योगिकी के प्रसार को प्रोत्साहित करना है, जिसमें दोनों देशों के निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता तथा संसाधनों का उपयोग किया जाता है।
      • सिलिकॉन वैली भारतीय तकनीकी प्रतिभा और स्टार्टअप्स के लिये एक प्रमुख केंद्र बनी हुई है। 
  • ऊर्जा सुरक्षा: अमेरिका भारत के लिये एक प्रमुख ऊर्जा साझेदार के रूप में उभरा है, जो पारंपरिक आपूर्तिकर्त्ताओं से बाहर निकलकर ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने में सहायता कर रहा है।
    • इस महीने की शुरुआत में जारी इंटरनेशनल गैस यूनियन (IG) की विश्व LNG रिपोर्ट 2024 के अनुसार, अमेरिका ने भारत को वर्ष 2019 की महामारी-पूर्व अवधि में 1.8 मीट्रिक टन LNG की आपूर्ति की थी, जो वर्ष 2021 में बढ़कर 3.86 मीट्रिक टन हो गई।
    • नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी में सहयोग भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को आगे बढ़ा रहा है।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत, भारत की घरेलू स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखला के विस्तार सहित अन्य परियोजनाओं के समर्थन के लिये अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (IBRD) के माध्यम से 1 बिलियन डॉलर का नया बहुपक्षीय वित्तपोषण जुटाने के लिये सहयोग कर रहे हैं।
  • भू-राजनीतिक संतुलन: अमेरिकी साझेदारी भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने और चीन के क्षेत्रीय प्रभाव का संतुलन बनाने में सहायक साबित हो रही है।
    • क्वाड के माध्यम से हिंद-प्रशांत रणनीति में सहयोग से कूटनीतिक लाभ मिलेगा। 
      • मालाबार अभ्यास, जो वर्ष 1992 में संयुक्त राज्य अमेरिका और भारतीय नौसेना के बीच द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था, एक महत्त्वपूर्ण बहुपक्षीय आयोजन के रूप में विकसित हो गया है।
    • क्वाड पहल ने पाँच वर्षों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये 50 बिलियन डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई।
  • स्वास्थ्य सेवा और फार्मास्यूटिकल्स: कोविड-19 महामारी ने राष्ट्रों के बीच महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा साझेदारी को उजागर किया। 
    • भारत का दवा उद्योग अमेरिकी बाज़ार पर बहुत अधिक निर्भर है, जबकि अमेरिका को सस्ती भारतीय जेनेरिक दवाओं से लाभ मिलता है। 
      • भारतीय फार्मा कंपनियाँ अमेरिका की जेनेरिक दवा मांग का 40% हिस्सा पूरा करती हैं। 
    • भारत-अमेरिका स्वास्थ्य वार्ता जैसी पहलों से रोग निगरानी, ​​महामारी की तैयारी और रोगाणुरोधी प्रतिरोध में ठोस परिणाम सामने आए हैं।
  • अंतरिक्ष सहयोग: नासा-इसरो सहयोग द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार को दर्शाता है। संयुक्त उपग्रह मिशन और अंतरिक्ष अनुसंधान दोनों देशों की अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाते हैं। 
    • वर्ष 2024 के लिये 1.5 बिलियन डॉलर का संयुक्त नासा-इसरो निसार मिशन निर्धारित किया गया है। अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता समझौता उपग्रह डेटा को साझा करने में सक्षम बनाता है।
    • नासा के डीप स्पेस नेटवर्क (DSN) ने चंद्रयान-3 के साथ संचार करने में इसरो की सहायता की।
  • शिक्षा एवं मानव पूंजी: शैक्षिक आदान-प्रदान, ज्ञान के हस्तांतरण के ज़रिए दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंधों का निर्माण करता है।
    • अमेरिका में रहने वाले भारतीय प्रवासी दोनों अर्थव्यवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। अमेरिका में 200,000 से अधिक भारतीय छात्र अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सालाना 7.7 बिलियन डॉलर का योगदान करते हैं। 
      • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2023 में अमेरिका से धन प्रेषण का अग्रणी प्राप्तकर्त्ता भारत ($125 बिलियन) होगा।

भारत-अमेरिका संबंधों में प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • व्यापार तनाव: टैरिफ, बाज़ार पहुँच और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित निरंतर व्यापार विवाद द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों पर दबाव बना रहे हैं।
    • भारत की संरक्षणवादी नीतियाँ और अमेरिका की अधिक बाज़ार पहुँच की मांग के बीच टकराव उत्पन्न हो रहा है।
    • डिजिटल सेवा कर और डेटा स्थानीयकरण नीतियाँ विवादास्पद बनी हुई हैं। 
    • वर्ष 2023-24 में भारत का अमेरिका के साथ 36.74 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष है जो अमेरिका के लिये चिंता का विषय है। 
    • विशेष 301 रिपोर्ट में भारत को नियमित रूप से 'प्राथमिकता निगरानी' सूची में रखा गया है, इसमें अमेरिकी बौद्धिक संपदा हितधारकों के लिये बौद्धिक संपदा संरक्षण, प्रवर्तन और बाज़ार तक पहुँच से संबंधित चल रही चिंताओं पर ज़ोर दिया गया है।
  • सामरिक स्वायत्तता बनाम गठबंधन अपेक्षाएँ: भारत की स्वतंत्र विदेश नीति, विशेष रूप से रूस, फिलिस्तीन और ईरान के संबंध में, अमेरिकी सामरिक उद्देश्यों के साथ तनाव उत्पन्न करती है। 
    • गठबंधन जैसे व्यवहार की अमेरिकी अपेक्षाएँ भारत के सर्व-संगठन दृष्टिकोण से टकराती हैं।
    • रूस से रक्षा खरीद विवाद का विषय बनी हुई है।
  • डेटा गोपनीयता और डिजिटल गवर्नेंस: डेटा गोपनीयता और डिजिटल गवर्नेंस के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण व्यावसायिक अनिश्चितताएँ उत्पन्न करते हैं।
    • भारत की डेटा स्थानीयकरण आवश्यकताएँ अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों के संचालन को प्रभावित करती हैं। डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स के लिये अलग-अलग मानक बाज़ार पहुँच को प्रभावित करते हैं। 
    • भारत के डेटा स्थानीयकरण नियम भारत में अधिकांश अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों के परिचालन को प्रभावित करते हैं। 
  • वीज़ा और आव्रजन मुद्दे: H-1B वीज़ा पर प्रतिबंध भारतीय IT क्षेत्र और पेशेवरों को प्रभावित करते हैं। 
    • वीज़ा अवधि से अधिक समय तक रहने और आव्रजन धोखाधड़ी के बारे में अमेरिकी चिंताओं के कारण कठोर नीतियाँ बनाई गई हैं। वर्क परमिट में देरी से व्यावसायिक संचालन प्रभावित होता है। 
    • भारत की शीर्ष सात IT सेवा कंपनियों ने पिछले 8 वर्षों में H-1B वीज़ा के उपयोग में 56% की गिरावट देखी है।
    • अमेरिकी नागरिकता एवं आव्रजन सेवा (USCIS) की रिपोर्ट के अनुसार, 10 लाख से अधिक भारतीय ग्रीन कार्ड के लिये इंतज़ार कर रहे हैं और उनमें से कुछ को वार्षिक कोटा तथा प्रति देश सीमा के कारण 50 साल तक की लंबी प्रतीक्षा अवधि का सामना करना पड़ रहा है।
  • चीन कारक: चीन के उदय के प्रबंधन के विभिन्न दृष्टिकोण रणनीतिक अनिश्चितताएँ उत्पन्न करते हैं। 
    • अमेरिका ने कहा है कि वह चीन के प्रति अपनी नीति को अलगाव से जोखिम कम करने की ओर ले जा रहा है। इंडो-पैसिफिक में भारतीय भूमिका के बारे में अमेरिका की अपेक्षाएँ कभी-कभी भारत की क्षमताओं और हितों से अधिक होती हैं। चीन पर आर्थिक निर्भरता दोनों देशों के रणनीतिक विकल्पों को प्रभावित करती है। 
    • तनाव के बावजूद, वर्ष 2023 में भारत-चीन व्यापार 136.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
  • जलवायु परिवर्तन एवं ऊर्जा नीति: जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रतिबद्धताओं और ज़िम्मेदारियों पर असहमति बनी हुई है। 
    • अमेरिका का दबाव, जो तेज़ी से बदलाव की ओर इशारा करता है, भारत की विकासात्मक ज़रूरतों से टकरा रहा है। विशेष रूप से, ऊर्जा सुरक्षा के संदर्भ में चिंताएँ जलवायु नीति के संरेखण में बाधा उत्पन्न कर रही हैं।
    • भारत ने हाल ही में विकसित देशों (अमेरिका सहित) ने अनुरोध किया है कि वे वर्ष 2025 से विकासशील देशों को जलवायु वित्त के रूप में प्रतिवर्ष कम-से-कम 1 ट्रिलियन डॉलर उपलब्ध कराएँ। इसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों से निपटने के लिये आवश्यक कार्रवाई को समर्थन देना है।
  • कृषि और खाद्य सुरक्षा: कृषि सब्सिडी और बाज़ार पहुँच पर विवाद व्यापार संबंधों को प्रभावित करते हैं। GM फसलों तथा खाद्य मानकों के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। 
    • कृषि मुद्दों पर WTO विवाद से द्विपक्षीय संबंधों में तनाव
    • अमेरिका सहित विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने वर्ष 2022-23 के लिये भारत की 48 अरब डॉलर की कृषि इनपुट सब्सिडी पर सवाल उठाए हैं।
    • हालाँकि सरसों का तेल भारतीय भोजन का अभिन्न अंग है, लेकिन इसमें मौजूद इरुसिक एसिड के कारण अमेरिका जैसे कई स्थानों पर इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

भारत एवं अमेरिका अपनी साझेदारी को और सशक्त बनाने के लिये किन संभावनाओं पर विचार कर सकते हैं?

  • रक्षा प्रौद्योगिकी साझेदारी 2.0: अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करने वाली पुनर्जीवित रक्षा साझेदारी दोनों देशों के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवसर का प्रतिनिधित्व करती है। 
    • युद्ध में AI और हाइपरसोनिक्स में विशेषज्ञता वाले संयुक्त अनुसंधान केंद्रों की स्थापना से तकनीकी संप्रभुता के लिये आधार तैयार होगा। 
    • फास्ट-ट्रैक अनुमोदन तंत्र रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को गति दे सकता है, जिससे नौकरशाही संबंधी रुकावटें कम होंगी। इसके अतिरिक्त, भारत में संयुक्त उत्पादन सुविधाओं का निर्माण "मेक इन इंडिया" के उद्देश्यों से समानता रखता है, जिससे स्वदेशी उत्पादन और सामरिक स्वायत्तता को बढ़ावा मिल सकता है।
    • यह बढ़ी हुई साझेदारी स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ावा देते हुए पारंपरिक रक्षा आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता को कम कर सकती है।
  • रणनीतिक आपूर्ति शृंखला लचीलापन: महामारी के बाद दुनिया में लचीली आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण अनिवार्य हो गया है। 
    • महत्त्वपूर्ण खनिजों और दुर्लभ मृदा तत्त्वों के लिये वैकल्पिक आपूर्ति मार्ग विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, क्योंकि भारत अमेरिका के नेतृत्व वाले खनिज सुरक्षा नेटवर्क में शामिल हो रहा है, जिससे एकल-स्रोत वाले देशों पर निर्भरता कम होगी।
    • भारत में संयुक्त सेमीकंडक्टर विनिर्माण पहल से वैश्विक चिप की कमी दूर हो सकती है और चीन पर निर्भरता कम हो सकती है, साथ ही उच्च-कुशल रोज़गार का सृजन भी हो सकता है। 
    • चीन से स्थानांतरित होने वाली अमेरिकी कंपनियों के लिये समर्पित औद्योगिक पार्क निवेश को सुविधाजनक बनाएंगे, जबकि मानकीकृत आपूर्ति शृंखला सुरक्षा प्रोटोकॉल विश्वसनीयता सुनिश्चित करेंगे। 
  • ऊर्जा सुरक्षा सहयोग: ऊर्जा क्षेत्र द्विपक्षीय सहयोग के लिये महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। 
    • दीर्घकालिक LNG आपूर्ति समझौते, जो स्थिर मूल्य निर्धारण तंत्र के तहत होते हैं, भारत के लिये ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत कर सकते हैं, जबकि अमेरिकी आपूर्तिकर्त्ताओं को भारतीय बाज़ार में बेहतर पहुँच प्रदान कर सकते हैं।
    • संयुक्त नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ, विशेष रूप से सौर और हरित हाइड्रोजन, जलवायु लक्ष्यों का समर्थन करेंगी। 
    • संयुक्त ऊर्जा भंडारण अनुसंधान और उत्पादन सुविधाएँ महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों को पूरा करेंगी, जबकि स्वच्छ ऊर्जा स्टार्टअप फंड नवाचार को बढ़ावा देंगे।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था ढाँचा: डिजिटल सहयोग द्विपक्षीय संबंधों के लिये एक सीमा का प्रतिनिधित्व करता है। 
    • डेटा गोपनीयता और सीमा पार डेटा प्रवाह के लिये सामान्य मानक विकसित करने से उपभोक्ता हितों की रक्षा करते हुए डिजिटल व्यापार को सुविधाजनक बनाया जा सकेगा। 
    • डिजिटल सुरक्षा उत्पादों के लिये संयुक्त प्रमाणन प्रणाली साइबर सुरक्षा को बढ़ाएगी। 
    • द्विपक्षीय फिनटेक विनियामक सैंडबॉक्स वित्तीय सेवाओं में नवाचार को बढ़ावा दे सकता है।
  • स्वास्थ्य सेवा साझेदारी में वृद्धि: महामारी के बाद, स्वास्थ्य सेवा सहयोग ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
    • संयुक्त वैक्सीन विकास और उत्पादन सुविधाओं से वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा को मज़बूती मिल सकती है, साथ ही यह भारत की फार्मास्युटिकल क्षमताओं का उपयोग करके वैश्विक ज़रूरतों को पूरा करने में भी सहायक होगा।
    • दोनों देशों को जोड़ने वाली टेलीमेडिसिन अवसंरचना दूर-दराज़ के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की पहुँच में सुधार कर सकती है। 
    • उष्णकटिबंधीय और उभरते रोगों पर केंद्रित संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रम वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करेंगे। 
  • जलवायु कार्रवाई सहयोग: जलवायु परिवर्तन सार्थक द्विपक्षीय सहयोग का अवसर प्रस्तुत करता है। 
    • एक संयुक्त कार्बन व्यापार तंत्र दोनों देशों को आर्थिक अवसर उत्पन्न करते हुए अपने उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्य को पूरा करने में मदद कर सकता है। 
    • द्विपक्षीय हरित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण रूपरेखा से स्वच्छ प्रौद्योगिकी अपनाने में तेज़ी आएगी। 
    • संयुक्त जलवायु-लचीली अवसंरचना परियोजनाएँ व्यावहारिक समाधान प्रदर्शित कर सकती हैं। 
  • शैक्षिक और अनुसंधान एकीकरण: शिक्षा साझेदारी को पारंपरिक छात्र विनिमय कार्यक्रमों से आगे बढ़ने की आवश्यकता है। 
    • AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और जैव प्रौद्योगिकी जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में संयुक्त डिग्री कार्यक्रम भविष्य के उद्योगों के लिये विशेषज्ञ कार्यबल तैयार करेंगे।
    • महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकी (IECT) पर अमेरिकी-भारत पहल के तहत उभरती प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करने वाले उत्कृष्टता अनुसंधान केंद्र स्थानीय चुनौतियों का समाधान करते हुए नवाचार को बढ़ावा दे सकते हैं। 
  • सामरिक क्षेत्रीय सहयोग: क्षेत्रीय सहयोग को उभरते हिंद-प्रशांत गतिशीलता के अनुकूल होना चाहिये। 
    • संयुक्त बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ रणनीतिक स्थानों पर कनेक्टिविटी को बेहतर बनाएंगी, साथ ही चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के विकल्प भी प्रदान करेंगी। 
    • जापान, ऑस्ट्रेलिया और फ्राँस जैसे देशों के साथ त्रिपक्षीय साझेदारी से सहक्रियात्मक लाभ उत्पन्न हो सकते हैं।
    • संयुक्त समुद्री सुरक्षा ढाँचा मुक्त नौवहन और व्यापार प्रवाह सुनिश्चित करेगा। 
  • सांस्कृतिक और सॉफ्ट पावर एक्सचेंज: सांस्कृतिक संबंधों को संस्थागत ढाँचे की आवश्यकता है। संयुक्त मीडिया उत्पादन प्लेटफॉर्म साझा मूल्यों को प्रतिबिंबित करने वाली सामग्री तैयार करेंगे। 
    • दोनों देशों में पारंपरिक ज्ञान संरक्षण के कार्यक्रम सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करेंगे। 
    • द्विपक्षीय खेल विकास पहल (जैसे- हाल ही में अमेरिका में आयोजित ICC T20 विश्व कप 2024) से अधिक युवा जुड़ेंगे। 

निष्कर्ष: 

भारत और अमेरिका के रिश्ते एक बहुआयामी साझेदारी हैं जिनमें कई संभावनाएँ हैं। हालाँकि कुछ चुनौतियाँ मौजूद हैं, रक्षा, प्रौद्योगिकी और व्यापार जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण अवसर हैं। व्यापार विवादों का समाधान करके, रणनीतिक मुद्दों पर विश्वास बढ़ाकर तथा वैश्विक समस्याओं पर सहयोग करके, दोनों देश अपनी साझेदारी को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकते हैं, जिससे न केवल दोनों देशों को लाभ होगा, बल्कि वैश्विक व्यवस्था में भी सकारात्मक योगदान मिलेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न: सामरिक, आर्थिक और तकनीकी सहयोग के मामले में भारत के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका का क्या महत्त्व है? इस साझेदारी में विकास के संभावित क्षेत्रों एवं चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

Q. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज करने में विफल होना है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019)