भारतीयों में मधुमेह की वृद्धि में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और फास्ट फूड की भूमिका | 09 Oct 2024

प्रारंभिक परीक्षा:

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स, डायबिटिक कैपिटल, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, इंसुलिन, एडवांस्ड ग्लाइकेशन एंड प्रोडक्ट्स, खाद्य प्रसंस्करण, स्वीटनर्स, संतृप्त वसा, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI), उच्च वसा, उच्च शर्करा और नमक (HFSS) वाले खाद्य पदार्थ, सक्षम आंगनवाड़ी, पोषण 2.0 

मुख्य परीक्षा के लिये:

स्वास्थ्य पर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPF) का प्रभाव, स्वस्थ आहार प्रथाओं को बढ़ावा देने के उपाय।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फूड साइंसेज़ एंड न्यूट्रीशन में प्रकाशित एक अध्ययन में भारत में बढ़ते मधुमेह के मामलों में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और फास्ट फूड में पाए जाने वाले एडवांस्ड ग्लाइकेशन एंड प्रोडक्ट्स (AGEs) की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है। 

  • यह क्लिनिकल परीक्षण भारत में अपनी तरह का पहला परीक्षण था और इसका वित्तपोषण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किया गया था।

अध्ययन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • AGEss की भूमिका: AGEs युक्त खाद्य पदार्थों के अधिक सेवन से भारत, विश्व की "मधुमेह राजधानी" के रूप में स्थापित हुआ है जहाँ 101 मिलियन से अधिक लोग इससे प्रभावित हैं।
    • AGEs, ग्लाइकेशन के माध्यम से बनने वाले हानिकारक यौगिक हैं। ग्लाइकेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें उच्च तापमान पर खाना पकाने (जैसे तलने या भूनने) के दौरान शर्करा की प्रोटीन या वसा के साथ अभिक्रिया होती है।
    • AGEs से ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (जो मुक्त कणों और एंटीऑक्सीडेंट के बीच असंतुलन है) को बढ़ावा मिलता है जिससे सूजन आने के साथ कोशिका क्षति होती है।
  • मधुमेह के प्रति संवेदनशीलता:  समय के साथ अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPF) रक्त शर्करा में वृद्धि का कारण बनते हैं।
    • इनमें फाइबर की मात्रा कम और कैलोरी की मात्रा अधिक होने से वजन और मोटापा बढ़ता है जिससे मधुमेह का जोखिम भी बढ़ जाता है।
  • इंसुलिन संवेदनशीलता पर प्रभाव: AGEs की कम सांद्रता वाले आहार (जिसमें मुख्य रूप से उबालकर या भाप से पकाए गए खाद्य पदार्थ शामिल थे) में उच्च AGEs सांद्रता वाले आहार की तुलना में बेहतर इंसुलिन संवेदनशीलता के साथ इसके प्रभाव के रूप में सूजन का भी कम स्तर देखा गया
    • आहार में AGEss को कम करना, मधुमेह के जोखिम को कम करने के लिये एक व्यवहार्य रणनीति (विशेष रूप से उन लोगों के लिये जिनमें टाइप 2 मधुमेह विकसित होने का उच्च जोखिम है) हो सकती है।

नोट: 

  • भारत में मधुमेह का प्रसार: भारत में मधुमेह का प्रसार वर्ष 2021 में 11.4% था। इसका तात्पर्य है कि लगभग 101 मिलियन भारतीय मधुमेह से पीड़ित थे।
  • भारत में तेजी से हो रहे पोषण परिवर्तन, परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट, वसा और पशु उत्पादों की बढ़ती खपत तथा गतिहीन जीवन शैली के कारण मोटापा एवं मधुमेह की समस्या बढ़ रही है।

अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिये हानिकारक क्यों हैं?

  • संतृप्त वसा, नमक और चीनी: अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ आमतौर पर संतृप्त वसा, नमक और चीनी युक्त होते हैं, जो हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनते हैं।
  • योजकों के नकारात्मक प्रभाव: अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में प्रायः संरक्षक, कृत्रिम रंग, मिठास और पायसीकारी जैसे योजक शामिल हैं। 
    • इन पदार्थों का स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो संभावित रूप से सूजन, आँत संबंधी रोग और चयापचय संबंधी समस्याओं में योगदान देता है।
  • पोषक तत्वों के अवशोषण में परिवर्तन: भोजन को जिस प्रकार से संसाधित किया जाता है, उसका शरीर की प्रतिक्रिया पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
    • उदाहरण के लिये, जब मेवों को पूरी तरह से खाया जाता है, तो उन्हें प्रसंस्कृत करने की तुलना में न्यूनतम वसा अवशोषित होती है और तेल निकलता है, जिससे पोषक तत्व और कैलोरी सेवन में परिवर्तन होता है।
  • स्वास्थ्य पर आँत संबंधी प्रभाव: गट माइक्रोबायोम (Gut microbiome), जो पाचन और प्रतिरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, इन खाद्य पदार्थों में आमतौर पर पाए जाने वाले उच्च स्तर के शर्करा, अस्वास्थ्यकर वसा और योजकों के कारण बाधित हो सकता है।
  • समग्र जीवनशैली पर प्रभाव: जो लोग अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं, वे अन्य अस्वास्थ्यकर व्यवहारों में भी संलग्न हो सकते हैं, जैसे शारीरिक निष्क्रियता या अनियमित भोजन पैटर्न आदि।

खाद्य प्रसंस्करण/फूड प्रोसेसिंग के प्रकार क्या हैं?

  • खाद्य प्रसंस्करण: यह अनाज, मांस, सब्जियाँ और फलों जैसे कच्चे कृषि उत्पादों को न्यूनतम अपशिष्ट के साथ अधिक मूल्यवान और सुविधाजनक खाद्य उत्पादों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है।
  • खाद्य प्रसंस्करण के प्रकार:
    • न्यूनतम प्रसंस्कृत: इसमें फल, सब्जियाँ, दूध, मछली, दाल, अंडे, मेवा और बीज़ शामिल हैं, जिसमें कोई अतिरिक्त सामग्री नहीं जोड़ी गई है, इनकी प्राकृतिक अवस्था में न्यूनतम परिवर्तन किया गया है।
    • प्रसंस्कृत सामग्रियाँ: इन्हें अकेले खाने के बजाय अन्य खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है, जैसे नमक, चीनी और तेल।
    • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ: इन्हें कम-से-कम प्रसंस्कृत और घर पर बनाई जा सकने वाली प्रसंस्कृत सामग्री के संयोजन से बनाया जाता है। जैसे, जैम, अचार, पनीर आदि।
    • अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ: ये औद्योगिक रूप से निर्मित खाद्य उत्पाद हैं, जिसमें आमतौर पर ऐसे तत्व शामिल हैं जो घरेलू रसोई में आमतौर पर नहीं पकाए जाते। 
      • इन खाद्य पदार्थों में प्रायः संरक्षक, रंग, स्वाद, पायसीकारी (Emulsifier) और मिठास जैसे योजक शामिल हैं। 
      • इनमें आमतौर पर चीनी, अस्वास्थ्यकर वसा और नमक की मात्रा अधिक होती है, जबकि फाइबर, विटामिन और खनिज कम होते हैं। 
      • "तत्काल" या "रेडी-टू-ईट योग्य" के रूप में विपणन किये जाने वाले खाद्य पदार्थ, साथ ही पहले से पैक किये गए स्नैक्स और जमे हुए भोजन आमतौर पर इस श्रेणी में आते हैं।
      • उदाहरण के रूप में शर्करायुक्त पेय पदार्थ, पैकेज्ड स्नैक्स, इंस्टेंट नूडल्स और रेडी-टू-ईट फूड आदि।

भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड/अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खपत में वृद्धि क्यों हो रही है?

  • शहरीकरण: भारत में तीव्र गति से बढ़ता शहरीकारण, जिसके कारण त्वरित और सुविधाजनक भोजन विकल्पों की आवश्यकता बढ़ रही है। 
    • अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ आसानी से उपलब्ध होते हैं, इन्हें बनाने के लिये न्यूनतम तैयारी की आवश्यकता होती है, जिससे ये व्यस्त व्यक्तियों और परिवारों के लिये आकर्षक बन जाते हैं।
  • आहार संबंधी प्राथमिकताओं में सांस्कृतिक बदलाव: पश्चिमी शैली के आहार की ओर अधिक रुझान बढ़ा है, जिसमें फास्ट फूड, मीठे स्नैक्स और रेडी-टू-ईट फूड का अधिक सेवन शामिल है।
  • कामकाजी महिलाओं की बढ़ती संख्या: अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को पारंपरिक भोजन तैयार करने के लिये समय बचाने वाले विकल्प के रूप में देखा जाता है, जिससे कामकाजी व्यक्तियों को अपने पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन को अधिक आसानी से संतुलित करने में सहायता मिलती है।
  • ताज़े भोजन की उपलब्धता: शहरी क्षेत्रों में ताज़े भोजन की उपलब्धता सीमित हो सकती है।
    • अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ उन लोगों के लिये आसानी से विकल्प उपलब्ध कराकर इस अंतर की आपूर्ति कर सकते हैं, जिन्हें स्वस्थ विकल्पों तक पहुँचने में कठिनाई होती है।
  • आक्रामक विपणन और उपलब्धता: UPF का भारी प्रचार किया जाता है, प्रायः उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिये स्वास्थ्य संबंधी भ्रामक दावे किये जाते हैं। 
    • सेलिब्रिटी विज्ञापन और लक्षित विज्ञापन, विशेष रूप से बच्चों के लिये, इन उत्पादों को और अधिक बढ़ावा देते हैं।
  • स्टेटस सिंबल: यह धारणा बढ़ती जा रही है कि प्रोसेस्ड और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों का सेवन उच्च सामाजिक स्थिति का प्रतीक है।

UPF की खपत को रोकने के लिये क्या सिफारिशें हैं?

  • AGEs की कम सांद्रता वाला आहार: इस प्रकार के आहार को अपनाने की सिफारिश की जाती है, जिसमें फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज और कम वसा वाले डेयरी उत्पाद शामिल हैं।
    • बेकरी और शर्करा युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन कम करना और भोजन में स्टार्च रहित सब्जियाँ शामिल करना।
  • खाना पकाने की विधियाँ: न्यून तापमान वाली विधियों, जैसे उबालने या भाप से पकाने, का उपयोग करके पकाए गए खाद्य पदार्थों को उच्च तापमान विधियों, जैसे तलने या भूनने, से तैयार किये गए खाद्य पदार्थों के स्थान पर उपयोग किया जाना चाहिये।
  • HFSS संबंधी खाद्य पदार्थों की स्पष्ट परिभाषा: भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) को उच्च वसा, चीनी और नमक (HFSS) वाले खाद्य पदार्थों को परिभाषित करना चाहिये, ताकि हानिकारक उत्पादों की पहचान करने में सहायता मिल सके और उनकी बिक्री एवं उपभोग पर विनियमन का मार्गदर्शन किया जा सके।
  • पोषक तत्व आधारित कराधान: अत्यधिक वसा, चीनी और नमक वाले उत्पादों पर उच्च कर लगाने से निर्माताओं को अपने उत्पादों को पुनः तैयार करने तथा स्वास्थ्यवर्द्धक विकल्पों को अधिक किफायती बनाने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
  • PLI योजना में संशोधन: पोषण से संबंधित उत्पादन को समर्थन देने के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना में संशोधन करने से स्वास्थ्यवर्द्धक खाद्य उत्पादों को प्रतिस्पर्द्धात्मक बाज़ार का लाभ मिल सकता है।
  • प्रचार पर प्रतिबंध: HFSS खाद्य पदार्थों के प्रचार को सीमित करने के लिये विपणन नियमों को सख्त किया जाना चाहिये, विशेष रूप से बच्चों को लक्षित करने वाले मीडिया में।
  • नीतियों और कार्यक्रमों को मज़बूत करना: अपर्याप्त पोषण और आहार संबंधी रोगों की दोहरी चुनौतियों को स्पष्ट रूप से लक्षित करने के लिये सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0 जैसी मौज़ूदा पहलों का विस्तार किया जाना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (UPF) के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा कीजिये। इनके उपभोग को हतोत्साहित करने और स्वस्थ आहार पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

एस्पार्टेम एक कृत्रिम स्वीटनर है, जो बाज़ार में बेचा जाता है। इसमें अमीनो अम्ल होते हैं, जबकि अन्य अमीनो अम्ल की तरह कैलोरी प्रदान करता है। फिर भी इसका उपयोग खाद्य पदार्थों में न्यूनतम कैलोरी वाले स्वीटनिंग एजेंट के रूप में किया जाता है। इस उपयोग का आधार क्या है? (2011)

एस्पार्टेम टेबल चीनी जितना ही मीठा होता है, लेकिन टेबल चीनी के विपरीत, यह आवश्यक एंजाइमों की कमी के कारण मानव शरीर में आसानी से ऑक्सीकृत नहीं होता है

जब एस्पार्टेम का उपयोग खाद्य प्रसंस्करण में किया जाता है, तो मीठा स्वाद बना रहता है, लेकिन यह ऑक्सीकरण के प्रति प्रतिरोधी हो जाता है

एस्पार्टेम चीनी जितना ही मीठा होता है, लेकिन शरीर में जाने के बाद यह मेटाबोलाइट्स में परिवर्तित हो जाता है, जिससे कोई कैलोरी नहीं मिलती

एस्पार्टेम टेबल चीनी की तुलना में कई गुना अधिक मीठा होता है, इसलिये एस्पार्टेम की कम मात्रा से बने खाद्य पदार्थ ऑक्सीकरण पर कम कैलोरी प्रदान करते हैं

उत्तर: (d)


मुख्य:

प्रश्न: देश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं? खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करके किसानों की आय में पर्याप्त वृद्धि कैसे की जा सकती है? (2020)