RBI द्वारा स्वर्ण का प्रत्यावर्तन | 04 Nov 2024
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स, विदेशी मुद्रा भंडार, सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड, आयात कवर, बाह्य ऋण, वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल, ट्रेजरी बिल, सरकारी प्रतिभूतियाँ, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ, आरक्षित स्वर्ण निधि, विशेष आहरण अधिकार, रिज़र्व ट्रैन्च स्थिति मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था में स्वर्ण और विदेशी मुद्रा भंडार की भूमिका। |
स्रोत: बीएस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंक ऑफ इंग्लैंड (BoE) और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) से 102 टन स्वर्ण का प्रत्यावर्तन (वापस लाना) किया।
- RBI की "विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट" के अनुसार, सितंबर 2024 में घरेलू स्तर पर रखे गए स्वर्ण की मात्रा 510.46 मीट्रिक टन है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के पास भारत की कुल आरक्षित स्वर्ण निधि 854.73 मीट्रिक टन है।
नोट:
- वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (जून 2024) के अनुसार भारत सॉवरेन गोल्ड होल्डिंग्स के मामले में 8वें स्थान पर है, जबकि अमेरिका इस सूची में शीर्ष पर है।
- भारत की गोल्ड होल्डिंग्स 840.76 मीट्रिक टन है, जो इसके विदेशी मुद्रा भंडार का 9.57% है।
- गोल्ड होल्डिंग्स के मामले में भारत से आगे अन्य देश जर्मनी, इटली, फ्राँस, रूस, चीन और जापान हैं।
भारत स्वर्ण का प्रत्यावर्तन क्यों कर रहा है?
- भू-राजनीतिक जोखिम को कम करना: भारत अपने आरक्षित स्वर्ण निधि को घरेलू स्तर पर बनाए रखना चाहता है, ताकि उसे संभावित विदेशी प्रतिबंधों से बचाया जा सके, जो विदेशों में रखी परिसंपत्तियों तक पहुँच को प्रतिबंधित कर सकते हैं।
- यूक्रेन संघर्ष के दौरान अमेरिका और सहयोगियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस की 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्वर्ण तथा विदेशी मुद्रा भंडार तक पहुँच अवरुद्ध हो गई है।
- बाज़ार में विश्वास में वृद्धि: स्वर्ण को विशेष रूप से उभरते बाज़ारों में एक "सुरक्षित आश्रय" परिसंपत्ति के रूप में देखा जाता है और इसे राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर रखने से वित्तीय प्रणाली में जनता का विश्वास बढ़ जाता है।
- आर्थिक संप्रभुता: भारत की आरक्षित स्वर्ण निधि अब भारत के विदेशी ऋण के 101% से अधिक है, जो भारत की ऋण चुकौती क्षमता में वृद्धि करती है।
- घरेलू वित्तीय बाज़ारों को समर्थन: भारत में स्वर्ण की भौतिक उपस्थिति के कारण RBI के पास घरेलू बाज़ारों में स्वर्ण-समर्थित वित्तीय उत्पादों को समर्थन देने के लिये अधिक लचीलापन है।
- भारत सरकार ने भौतिक स्वर्ण के आयात पर निर्भरता कम करने के लिये सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) जैसी पहल को बढ़ावा दिया है।
- स्वर्ण प्रत्यावर्तन की वैश्विक प्रवृत्ति: पिछले दशक में केंद्रीय बैंकों द्वारा स्वर्ण प्रत्यावर्तन की व्यापक प्रवृत्ति देखी गई है।
- उदाहरण के लिये वेनेज़ुएला ने वर्ष 2011 में अमेरिका और यूरोपीय भंडारों से तथा ऑस्ट्रिया ने वर्ष 2015 में स्वर्ण का प्रत्यावर्तन किया।
- लागत बचत: RBI सामान्यतः बैंक ऑफ इंग्लैंड या फेडरल रिज़र्व जैसी संस्थाओं को उनके स्वर्ण को रखने के लिये बीमा, परिवहन शुल्क, संरक्षक शुल्क और वॉल्ट शुल्क का भुगतान करता है।
- इस स्वर्ण में से कुछ का प्रत्यावर्तन करके RBI इन आवर्ती लागतों को कम कर सकता है।
- आयात कवर में वृद्धि: आयात कवर एक महत्त्वपूर्ण व्यापार संकेतक है, जो विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता को दर्शाता है और विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के साथ-साथ मज़बूत हुआ है।
- वर्तमान विदेशी भंडार 11.8 महीने के आयात को कवर करने के लिये पर्याप्त है।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार
- विदेशी मुद्रा भंडार एक केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्राओं में आरक्षित रखी गई परिसंपत्तियाँ हैं, जिनमें बॉण्ड, ट्रेजरी बिल और अन्य सरकारी प्रतिभूतियाँ शामिल हो सकती हैं।
- भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ, आरक्षित स्वर्ण निधि, विशेष आहरण अधिकार और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ रिज़र्व ट्रैन्च स्थिति शामिल हैं।
- अक्तूबर, 2024 में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति 688.27 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान लगाया गया है।
- इसमें शामिल है:
- 598.24 बिलियन अमरीकी डॉलर की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ (FCA)
- 67.44 बिलियन अमरीकी डॉलर का स्वर्ण
- 18.27 बिलियन अमरीकी डॉलर के विशेष आहरण अधिकार (SDR)
- 4.32 बिलियन अमरीकी डॉलर की रिज़र्व ट्रेंच स्थिति (RTP)।
विदेशी मुद्रा दर प्रबंधन की पृष्ठभूमि
- स्वर्ण मानक (1870-1914): मुद्राएँ सीधे स्वर्ण के मूल्य से जुड़ी हुई थीं। प्रत्येक देश अपनी मुद्रा को सहारा देने के लिये आरक्षित स्वर्ण निधि रखता था। स्थिर विनिमय दरों ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को आसान और पूर्वानुमानित बना दिया।
- ब्रेटन वुड्स प्रणाली (1944-1971): इसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की गई थी और इसकी प्रमुख विशेषताएँ थीं:
- आरक्षित मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर के साथ नियत विनिमय दरें।
- अन्य मुद्राएँ नियत दर पर डॉलर से जुड़ी हुई थीं।
- इसके बदले में अमेरिकी डॉलर 35 अमेरिकी डॉलर प्रति औंस की निश्चित कीमत पर स्वर्ण में परिवर्तित हो सकता था।
- वर्तमान परिदृश्य (विभिन्न व्यवस्थाएँ - वर्ष 1971 के बाद): आपूर्ति और मांग की बाज़ार शक्तियाँ विभिन्न व्यवस्थाओं के साथ विनिमय दरों को निर्धारित करती हैं।
- अस्थायी विनिमय दर: किसी मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा बाज़ार में आपूर्ति और मांग द्वारा निर्धारित होता है। विनिमय दरें निरंतर उतार-चढ़ाव करती रहती हैं एवं आधिकारिक तौर पर किसी अन्य मुद्रा या वस्तु से अधिकीलित या तय नहीं होती हैं।
- अधिकीलित दरें: कोई देश अपनी मुद्रा को किसी एक मज़बूत मुद्रा (जैसे, USD) या विविध मुद्रा समूह से जोड़ता है।
- डॉलरीकरण: कुछ देश अपनी मुद्रा को पूरी तरह से त्याग देते हैं और अमेरिकी डॉलर को अपना लेते हैं (जैसे, इक्वाडोर)।
RBI विदेशों में आरक्षित स्वर्ण निधि का संचय क्यों करता है?
- भू-राजनीतिक जोखिमों को कम करना: कई अंतर्राष्ट्रीय स्थानों पर स्वर्ण रखने से RBI भारत में अपने भंडार के केंद्रित होने के जोखिम को कम करता है।
- लंदन और न्यूयॉर्क जैसे प्रमुख वैश्विक वित्तीय केंद्रों में भंडार जमा करने से यह सुनिश्चित होता है कि किसी भी घरेलू या क्षेत्रीय व्यवधान की स्थिति में परिसंपत्तियाँ सुलभ तथा सुरक्षित रहे।
- अंतर्राष्ट्रीय चलनिधि: लंदन, न्यूयॉर्क और ज्यूरिख जैसे वित्तीय केंद्रों में रखा गया स्वर्ण RBI को वैश्विक बाज़ारों तक तत्काल पहुँच प्रदान करता है।
- ये शहर स्वर्ण व्यापार के लिये प्राथमिक केंद्र हैं, जिससे आवश्यकता पड़ने पर स्वर्ण को तुरंत नकदी में बदलना आसान हो जाता है।
- आर्थिक लचीलापन: अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में आरक्षित स्वर्ण निधि की उपलब्धता भारत को ऋण या अन्य वित्तीय साधनों के लिए संपार्श्विक के रूप में उपयोग करने की अनुमति देती है, जिससे आर्थिक लचीलापन को समर्थन मिलता है तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय दायित्वों को पूरा करने की भारत की क्षमता बढ़ती है।
- विश्वसनीय अभिरक्षक: बैंक ऑफ इंग्लैंड को एक विश्वसनीय अभिरक्षक माना जाता है, जो राष्ट्रीय परिसंपत्तियों की सुरक्षा के लिये जाना जाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (BIS) केंद्रीय बैंकों को अपनी आरक्षित स्वर्ण निधि का प्रबंधन और भंडारण करने के लिये एक स्थापित अंतर्राष्ट्रीय ढाँचा प्रदान करता है।
प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय स्वर्ण तिजोरियों/गोल्ड वॉल्ट में सुरक्षा उपाय क्या हैं?
- बैंक ऑफ इंग्लैंड, UK: यह उन्नत निगरानी प्रणाली, स्थायी वॉल्ट डोर और कड़े प्रवेश नियंत्रण प्रदान करता है।
- BIS, स्विटज़रलैंड: वॉल्ट में अत्याधुनिक सुरक्षा उपाय हैं, जिसमें सशक्त संरचनाएँ, बायोमेट्रिक प्रवेश नियंत्रण और निरंतर निगरानी शामिल है।
- फेडरल रिज़र्व बैंक ऑफ न्यूयॉर्क, USA: सड़क के स्तर से 80 फीट नीचे स्थित वॉल्ट 90 टन के स्टील सिलेंडर में संलग्न है, जो इसे असाधारण रूप से सुरक्षित और संभावित सुरक्षा उल्लंघनों के प्रति सशक्त बनाता है।
निष्कर्ष
भारत द्वारा सोना वापस लाने का निर्णय आर्थिक लचीलेपन और जोखिम न्यूनीकरण की दिशा में बदलाव को दर्शाता है। घरेलू स्तर पर अधिक सोना रखने से भारत भू-राजनीतिक और कस्टोडियल जोखिमों को कम करता है, बाज़ार में विश्वास बढ़ाता है तथा वित्तीय उत्पादों का समर्थन करता है, साथ ही केंद्रीय बैंकों द्वारा स्वर्ण भंडार पर राष्ट्रीय नियंत्रण को मज़बूत करने की वैश्विक प्रवृत्ति के साथ तालमेल बिठाता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: विदेशों में भारत का आरक्षित स्वर्ण निधि रखना उसकी अंतर्राष्ट्रीय तरलता और आर्थिक लचीलेपन में किस प्रकार योगदान देता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न: सरकार की 'संप्रभु स्वर्ण बॉन्ड योजना (Sovereign Gold Bond Scheme)' और 'स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (Gold Monetization Scheme)' का/के उद्देश्य क्या है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न: भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मदसमूह सम्मिलित है? (2013) (a) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विशेष आहरण अधिकार (एस.डी.आर.) तथा विदेशों से ऋण उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न: सोने के लिये भारतीयों के उन्माद ने हाल के वर्षों में सोने के आयात में प्रोत्कर्ष (उछाल) उत्पन्न कर दिया है और भुगतान-संतुलन और रुपए के बाह्य मूल्य पर दबाव डाला है। इसको देखते हुए, स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के गुणों का परीक्षण कीजिये। (2015) |