पेरिस समझौते के नौ वर्ष | 16 Dec 2024

प्रिलिम्स के लिये:

पेरिस समझौता, UNFCCC, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), क्योटो प्रोटोकॉल बनाम पेरिस समझौता, जलवायु वित्त, साझा लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियाँ (CBDR), विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) रिपोर्ट, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ), लघु द्वीपीय विकासशील राज्य (SIDS)

मेन्स के लिये:

पेरिस समझौते की उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ, वैश्विक जलवायु वित्त संबंधी मुद्दे और उनका निवारण

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

12 दिसंबर, 2015 को अंगीकृत पेरिस समझौते के नौ वर्ष पूर्ण होने के साथ इसकी संवीक्षा की जा रही है।

  • वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के बावजूद, हालिया रुझान जलवायु परिवर्तन का शमन करने में इसकी प्रभावहीनता को उजागर करते हैं। पिछले नौ वर्षों में, वैश्विक उत्सर्जन में 8% की वृद्धि हुई है और अनुमानतः वर्ष 2024 में पहली बार यह पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ऊपर 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से अधिक हो जाएगा।

पेरिस समझौता क्या है?

  • परिचय:
    • यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत विधिक रूप से बाध्यकारी वैश्विक समझौता है जिसका अंगीकार वर्ष 2015 (COP 21) में किया गया था।
    • इसका उद्देश्य तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की महत्त्वाकांक्षा के साथ जलवायु परिवर्तन का शमन करना और वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित रखना है।
    • इसने क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लिया जो जलवायु परिवर्तन के शमन हेतु एक पूर्व समझौता था।
    • पेरिस समझौते के अंतर्गत, प्रत्येक देश को हर पाँच वर्ष में अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) प्रस्तुत करना और उसे अद्यतन करना होता है, जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने तथा जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की उनकी योजनाओं की रूपरेखा होती है।
      • NDC, देशों द्वारा अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल कार्य करने हेतु की गई प्रतिज्ञाएँ हैं।
  • उपलब्धियाँ:
    • वैश्विक सहमति और समावेशिता: ऐसा प्रथमतः है जब, लगभग सभी राष्ट्र, विकसित, विकासशील और अल्प विकसित, एक सार्वभौमिक ढाँचे के तहत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये प्रतिबद्ध हैं, जहाँ सभी देश राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के माध्यम से योगदान करते हैं, जिससे वैश्विक भागीदारी और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
    • विकासशील देशों के लिये वित्तीय सहायता: विकसित देशों ने विकासशील देशों को शमन और अनुकूलन में सहायता देने के लिये 2020 तक प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने का संकल्प लिया है, जिसमें कमज़ोर देशों के लिये सतत् विकास को सक्षम बनाने के लिये वर्ष 2020 के बाद वित्तीय प्रतिबद्धताओं को बढ़ाने का प्रावधान भी शामिल है।
    • समानता और विभेदित ज़िम्मेदारियाँ: राष्ट्रीय परिस्थितियों के आधार पर प्रतिबद्धताओं को संतुलित करने के लिये "साझा लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियाँ (CBDR)” के UNFCCC सिद्धांत को शामिल किया गया, जिससे विकासशील और अल्प विकसित देशों के लिये निष्पक्षता सुनिश्चित हुई।
  • आलोचना: विश्व  विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की वर्ष 2022 की स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता अपने एजेंडे को पूरा करने में अप्रभावी रहा है।
    • समझौते पर हस्ताक्षर के बाद, पिछले आठ वर्ष (2015-2022) लगातार वैश्विक स्तर पर सबसे गर्म वर्ष रहे हैं।
      • यदि पिछले तीन वर्षों में ला नीना मौसम घटना नहीं घटी होती, तो स्थिति और भी संकटपूर्ण हो सकती थी, जिसका मौसम प्रणाली पर शीतलन प्रभाव पड़ता है।
    • वर्तमान राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) प्रतिबद्धताएँ वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये अपर्याप्त हैं, जिसमें 2.5-2.9 डिग्री सेल्सियस का अनुमान है तथा लक्ष्यों एवं वास्तविक कार्यान्वयन के बीच अंतर के कारण वर्ष 2030 तक उत्सर्जन और भी अधिक हो सकता है।
    • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वर्ष  2015 का पेरिस समझौता पर्याप्त नहीं है तथा इसके पूरक के रूप में जीवाश्म ईंधन संधि की आवश्यकता है।
    • यद्यपि कई देशों में एनडीसी और आपदा जोखिम न्यूनीकरण योजनाएँ लागू हैं, फिर भी उनकी पर्याप्तता एवं कार्यान्वयन प्रभावशीलता अलग-अलग हैं।
      • उदाहरण के लिये, जबकि यूरोपीय संघ के एनडीसी यूरोपीय ग्रीन डील की तरह सुदृढ़ लक्ष्य और कार्यान्वयन को दर्शाते हैं, दक्षिण अफ्रीका जैसे देश कोयले पर निर्भरता तथा  सीमित संसाधनों के कारण प्रभावी कार्यान्वयन के लिये संघर्ष करते हैं।

UNFCCC 

पेरिस समझौते पर विकसित, विकासशील और अल्पविकसित देशों के अलग-अलग दृष्टिकोण क्या हैं?

पहलू

विकसित देश

विकासशील देश

अल्प-विकसित देश (LDCs)

एनडीसी के प्रति दृष्टिकोण

लचीलेपन के लिये स्वैच्छिक एनडीसी का पक्ष लें।

स्वैच्छिक एनडीसी की अपर्याप्त एवं असमान बताते हुए आलोचना करना।

मज़बूत वैश्विक कार्रवाई के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं की मांग करना।

जलवायु वित्त

कम औद्योगिकीकृत देशों पर अधिक ज़िम्मेदारी डालने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।

विकसित देशों से पर्याप्त एवं समय पर वित्तीय सहायता का समर्थन करना।

वादा किये गए वित्तपोषण में विलंब और अपर्याप्तता से निराशा, विशेष रूप से अनुकूलन और हानि एवं क्षति के लिये।

प्रौद्योगिकी हस्तांतरण

सीमित, बाज़ार-आधारित प्रौद्योगिकी साझाकरण का समर्थन करना।

हरित अर्थव्यवस्थाओं में परिवर्तन के लिये सुलभ एवं किफायती प्रौद्योगिकी की मांग करना।

महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों तक पहुँच की कमी पर प्रकाश डालना, जिससे उनकी भेद्यता वृद्धि होती है।

ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी

ऐतिहासिक उत्सर्जन जवाबदेही से आगे बढ़ने का प्रयास करना।

विकसित देशों को जवाबदेह ठहराने के लिये "साझा लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों" (CBDR) के सिद्धांत पर परिचर्चा करना।

वैश्विक कार्रवाई में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये ऐतिहासिक उत्सर्जन को संबोधित करने के महत्त्व पर ज़ोर देना।

अनुकूलन हेतु आवश्यकताएँ

अनुकूलन की अपेक्षा शमन रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना।

वर्तमान और भविष्य के जलवायु प्रभावों से निपटने के लिये शमन एवं अनुकूलन दोनों पर ज़ोर देना।

गंभीर कमज़ोरियों, विशेषकर समुद्र-स्तर में वृद्धि और चरम मौसमी घटनाओं के कारण अनुकूलन को प्राथमिकता देना।

लॉस एंड डैमेज

मुआवज़ा या क्षतिपूर्ति देने में अनिच्छा प्रदर्शित करना।

हानि और क्षति से निपटने के लिये मज़बूत तंत्र की स्थापना का समर्थन करना।

उनके अस्तित्त्व को संकट में डालने वाले अपरिवर्तनीय जलवायु प्रभावों के लिये तत्काल कार्रवाई और क्षतिपूर्ति की मांग करना।

पेरिस समझौते के कार्यान्वयन में कमियों को दूर करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • एनडीसी को सुदृढ़ और लागू करना: एनडीसी को तापमान लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिये समय-समय पर समीक्षा के साथ कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाना, साथ ही यह सुनिश्चित करना कि विकसित देश अपने ऐतिहासिक उत्सर्जन एवं वित्तीय क्षमता को दर्शाते हुए उच्च शमन लक्ष्य को  अपनाएँ।
  • जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना: जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिये एक बाध्यकारी वैश्विक ढाँचा स्थापित करना, स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन के लिये विकासशील देशों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करना तथा नवीकरणीय ऊर्जा निवेशों को प्राथमिकता देने के लिये जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को समाप्त करना।
  • जलवायु वित्त को बढ़ावा देना: विकसित देशों को वर्ष 2035 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वार्षिक जलवायु वित्त लक्ष्य को पार करना होगा, कमज़ोर देशों के लिये अनुकूलन और लॉस एंड डैमेज वित्तपोषण पर ध्यान केंद्रित करना होगा तथा कार्बन कर एवं विमानन कर जैसे नवीन तंत्रों को लागू करना होगा।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना: किफायती प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करना, प्रशिक्षण और अनुसंधान के माध्यम से तकनीकी क्षमता का निर्माण करना तथा टिकाऊ नवाचार एवं  परिनियोजन के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना।
  • अनुकूलन और जोखिम न्यूनीकरण पर ध्यान केंद्रित करना: आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीति विकसित करना, लचीले बुनियादी ढाँचे में निवेश करना तथा जलवायु-प्रेरित चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करना।
  • न्यायसंगत कार्यान्वयन और जवाबदेहिता: सीबीडीआर को बहाल करके समानता को बनाए रखना , एनडीसी और वित्त के लिये पारदर्शी जवाबदेहिता स्थापित करना तथा गैर-अनुपालन के लिये दंड के साथ अनुपालन के लिये प्रोत्साहन को लागू करना।
  • वैश्विक सहयोग में वृद्धि: बाकू में COP29 के हालिया घटनाक्रमों के मद्देनजर, एकीकृत वैश्विक कार्रवाई को सुविधाजनक बनाने के लिये बहुपक्षीय संस्थाओं को मज़बूत करने और गैर-अनुपालन के लिये जवाबदेहिता सुनिश्चित करने वाले मज़बूत विधिक ढाँचे की स्थापना की आवश्यकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: पेरिस समझौते की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये और इसके कार्यान्वयन में चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आइ० पी० सी० सी०) ने वैश्विक समुद्र-स्तर में 2100 ईस्वी तक लगभग एक मीटर की वृद्धि का पूर्वानुमान लगाया है। हिंद महासागर क्षेत्र में भारत और दूसरे देशों में इसका क्या प्रभाव होगा? (2023)

प्रश्न 2. ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) की चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022)

प्रश्न 3. संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के पक्षकारों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? (2021)