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भारतीय अर्थव्यवस्था

एक अवसर के रूप में भारत का व्यापार घाटा

  • 22 Nov 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

व्यापार घाटा, जनजाति, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI), पूंजी खाता, चालू खाता, मेक इन इंडिया, बजट घाटा, भुगतान संतुलन, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs), पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, राष्ट्रीय रसद नीति (NLP), यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म (ULIP), लॉजिस्टिक्स डेटा बैंक, ग्लोबल वैल्यू चेन, प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI), एक्सपोर्ट हब के रूप में ज़िले

मेन्स के लिये:

व्यापार हित से जुड़े लाभ और चुनौतियाँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, भारत का व्यापार घाटा विनिर्माण की कमी का संकेत नहीं है बल्कि यह सेवाओं में मज़बूती के साथ निवेश के रूप में भारत के आकर्षण का प्रतीक है।

भारत के व्यापार घाटे की स्थिति क्या है?

  • व्यापार घाटा का आशय किसी देश द्वारा अपने निर्यात की तुलना में अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करना ह। यह उस राशि को दर्शाता है जिससे एक निश्चित अवधि में आयात का मूल्य निर्यात के मूल्य से अधिक होता है।
  • भारत का व्यापार परिदृश्य:
    • समग्र व्यापार घाटा: 121.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 23) से घटकर 78.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 24) हो गया।
    • सेवा व्यापार: वित्त वर्ष 2024 में सेवा निर्यात 339.62 बिलियन अमेरिकी डॉलर और सेवा व्यापार अधिशेष 162.06 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
      • विश्व सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 0.5% (1993) से बढ़कर 4.3% (2022) हो गई, जिससे भारत वैश्विक स्तर पर 7वाँ सबसे बड़ा सेवा निर्यातक बन गया।
    • वाणिज्य वस्तु (Merchandise) निर्यात: यह 776 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 23) रहा। वाणिज्य वस्तु व्यापार घाटा 264.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 23) से घटकर 238.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 24) रह गया।
    • चालू खाता घाटा (CAD): 67 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 2023 में GDP का 2%) से घटकर 23.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 2024 में GDP का 0.7%) रह गया।
    • पूंजी खाता अधिशेष: विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) द्वारा संचालित शुद्ध प्रवाह 58.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 23) से बढ़कर 86.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 24) हो गया।

क्यों भारत का व्यापार घाटा एक कमज़ोरी नहीं है?

  • सेवाओं में मज़बूती: भारत सेवाओं में वैश्विक अग्रणी है और उसने विशेष रूप से IT और फार्मास्यूटिकल्स में प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ अर्जित किया है जिसके कारण वह वस्तुओं में व्यापार घाटा सहने में सक्षम है। 
    • सेवाओं में निर्यात अधिशेष से भारत अपनी अर्थव्यवस्था को अस्थिर किये बिना अधिक वस्तुओं का आयात करने में सक्षम होता है।
  • निवेश गंतव्य: भारत में विदेशी निवेश आकर्षित होने के परिणामस्वरूप पूंजी खाता अधिशेष होने से चालू खाता घाटा संतुलित होता है। 
    • इसलिए, चालू खाता घाटा भारत की निवेश आकर्षित करने की रणनीति का स्वाभाविक परिणाम है।
  • प्रतिस्पर्द्धी निर्यात: जब किसी देश का व्यापार घाटा बढ़ता है तो उसकी मुद्रा पर दबाव पड़ने से वह अन्य मुद्राओं की तुलना में कमज़ोर हो जाती है। 
    • अवमूल्यित मुद्रा देश के निर्यात को सस्ता बनाती है तथा विदेशी बाज़ारों में यह प्रतिस्पर्धी होने से निर्यात गतिविधि को बढ़ावा मिलता है।
  • संतुलित चालू खाता घाटा: भारत ने सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 2% के बराबर चालू खाता घाटा को संतुलित माना है। 
    • घाटे का यह स्तर देश की आर्थिक स्थिरता के लिए तत्काल खतरा पैदा नहीं करता, जब तक कि पूंजी प्रवाह घाटे के अनुरूप हो।
  • तुलनात्मक लाभ: भारत का व्यापार घाटा विनिर्माण में अकुशलता का संकेत नहीं है बल्कि यह तुलनात्मक लाभ के सिद्धांत पर आधारित है।
    • तुलनात्मक लाभ का अर्थ है कि भारत उन चीजों का निर्यात करता है जिनमें वह सर्वश्रेष्ठ (जैसे सेवाएँ) है तथा उन वस्तुओं का आयात करता है जिनके उत्पादन में उसकी स्थिति कम बेहतर है।
  • विनिर्माण में वृद्धि: चालू खाता घाटा से विनिर्माण उत्पादन में वृद्धि की संभावना में बाधा नहीं आती है। 
    • मेक इन इंडिया पहल को समर्थन देने के लिए आयातित मशीनरी और इंजीनियरिंग सामान से भारतीय अर्थव्यवस्था में विनिर्माण विस्तार को बढ़ावा मिलता है।
  • उच्च उपभोग क्षमता: वस्तुओं और सेवाओं का आयात करके कोई देश अपने नागरिकों को उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान कर सकता है जिसमें वे भी शामिल हैं जो स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं हैं या जिनका घरेलू स्तर पर उत्पादन अधिक महंगा है तथा जिनसे जीवन स्तर को बेहतर हो सकता है।
  • आर्थिक लचीलापन: जब घरेलू उत्पादन मांग को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं होता है, तो आयात से इस कमी को पूरा किया जा सकता है, जिससे आर्थिक व्यवधानों को रोका जा सकता है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि उपभोक्ताओं और व्यवसायों को उनकी ज़रूरत की वस्तुओं तक पहुँच मिलती रहे।
  • आर्थिक एकीकरण: व्यापार घाटा वैश्विक आर्थिक एकीकरण को दर्शाता है, जो उद्योगों और उपभोक्ताओं को समर्थन देने वाले आयातों तक पहुँच को सक्षम बनाता है।

व्यापार घाटे के नुकसान क्या हैं?

  • आर्थिक संप्रभुता की हानि: निरंतर व्यापार घाटा विदेशी राष्ट्रों को घरेलू संपत्ति खरीदने (अवसरवादी अधिग्रहण) का मौका देता है, जिससे प्रमुख क्षेत्रों पर नियंत्रण खोने का ज़ोखिम होता है और बाहरी प्रभावों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है। उदाहरण के लिये, भारतीय कंपनियों का अवसरवादी अधिग्रहण।
  • उच्च बेरोज़गारी: खुली अर्थव्यवस्था में निरंतर व्यापार घाटे के कारण घरेलू व्यवसाय सस्ते आयातों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में असमर्थ हो सकते हैं, जिससे नौकरियाँ खत्म हो सकती हैं और आर्थिक स्थिरता आ सकती है।
  • दोहरे घाटे की परिकल्पना: व्यापार घाटा प्रायः बजट घाटे से जुड़ा होता है, क्योंकि जब आयात को कवर करने के लिये निर्यात अपर्याप्त होता है, तो सरकार अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिये ऋण ले सकती है।
  • विऔद्योगीकरण: लगातार घाटे के कारण घरेलू विनिर्माण और औद्योगिक क्षेत्रों में गिरावट आ सकती है, क्योंकि घरेलू उद्योगों को सस्ते या उच्च गुणवत्ता वाले आयातों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में संघर्ष करना पड़ता है।
  • भुगतान संतुलन संकट: यदि व्यापार घाटे को ऋण लेकर वित्तपोषित किया जाता है, तो विदेशी निवेशकों का अचानक विश्वास खत्म होने से भुगतान संतुलन संकट उत्पन्न हो सकता है, जैसा कि वर्ष 1991 में भारत के साथ हुआ था।

संतुलित व्यापार के लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?

  • निर्यात ऋण सहायता: बैंकों को किफायती और पर्याप्त निर्यात ऋण प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित करना, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिये, ताकि विदेशी बाज़ारों में बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था और प्रतिस्पर्द्धात्मकता हासिल की जा सके।
  • लॉजिस्टिक्स अवसंरचना: कम लागत पर घरेलू विनिर्माण को समर्थन देने के लिये लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में परिचालन को सुव्यवस्थित करने, लागत को कम करने और दक्षता बढ़ाने के लिये PM गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP) जैसी पहलों का लाभ उठाना।
    • NLP का लक्ष्य वर्ष 2030 तक लॉजिस्टिक्स लागत को मौजूदा 13-14% से घटाकर सकल घरेलू उत्पाद का 8% तक लाना है।
  • मुक्त व्यापार समझौते (FTA): यह सुनिश्चित करना कि FTA आवश्यक आयातों के लिये बेहतर शर्तें प्रदान करें, जिससे देश घरेलू मांग को लागत प्रभावी ढंग से पूरा कर सके।
  • GVC भागीदारी: वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC) में शामिल होकर, भारतीय कंपनियाँ अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखलाओं का हिस्सा बन सकती हैं, व्यापक ग्राहक आधार तक पहुँच प्राप्त कर सकती हैं और निर्यात मात्रा में वृद्धि कर सकती हैं।
  • घरेलू विनिर्माण: उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का विस्तार और निर्यात केन्द्रों (DEH) के रूप में ज़िलों को मज़बूत करने की पहल से घरेलू विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है तथा व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • उच्च मूल्य व्यापार: उच्च मूल्य वाली वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात में वृद्धि से प्रति इकाई निर्यात पर अधिक राजस्व उत्पन्न होने से भारत के व्यापार घाटे को कम किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, टाटा मोटर्स और महिंद्रा इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियाँ उच्च मूल्य वाले इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) का निर्यात, सौर पैनल जैसी नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का निर्यात बढ़ा सकती हैं।
  • निर्यात में विविधता: रक्षा उपकरण, एयरोस्पेस और नवीकरणीय ऊर्जा (सौर पैनल, पवन टर्बाइन) जैसे क्षेत्रों में निर्यात का विस्तार करके, भारत अधिक राजस्व सृजन सुनिश्चित कर सकता है और व्यापार घाटे को कम कर सकता है।
  • स्वच्छता और पादप स्वच्छता संबंधी बाधाओं का समाधान: कीटनाशक अवशेष सीमा, संगरोध आवश्यकताओं और पशु स्वास्थ्य नियमों जैसी बाधाओं का समाधान करके, भारत अमेरिका जैसे उच्च आय वाले देशों में नए बाज़ार खोल सकता है और अपने निर्यात को बढ़ा सकता है, जिससे व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिल सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के व्यापार घाटे में योगदान देने वाले कारकों पर चर्चा कीजिये तथा इसे दूर करने के उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न: भुगतान संतुलन के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन चालू खाता प्रदर्शित करता है/गठन करता है?(2014)

  1. व्यापार संतुलन 
  2. विदेशी संपत्ति
  3. अदृश्य का संतुलन
  4. विशेष आहरण अधिकार 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: C


प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-से पूँजीगत लेखा की रचना करते हैं?

  1. विदेशी ऋण
  2. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
  3. निजी प्रेषित धन
  4. पोर्टफोलियो निवेश

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) 1, 2 और 3
(b) 1, 2 और 4
(c) 2, 3 और 4
(d) 1, 3 और 4

उत्तर: B 


मेन्स

प्रश्न: सोने के लिये भारतीयों के उन्माद ने हाल के वर्षों में सोने के आयात में प्रोत्कर्ष (उछाल) उत्पन्न कर दिया है और भुगतान-संतुलन और रुपए के बाह्य मूल्य पर दबाव डाला है। इसको देखते हुए, स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के गुणों का परीक्षण कीजिये। (2015)

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