कृषि
किसानों के कल्याण में सुधार
- 21 Dec 2024
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:संसदीय स्थायी समिति, अनुदान की मांगें, न्यूनतम समर्थन मूल्य, पीएम-किसान योजना, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, कृषि श्रमिकों के जीवन निर्वाह हेतु न्यूनतम मज़दूरी पर राष्ट्रीय आयोग, खाद्य सुरक्षा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, नाबार्ड, लोकसभा में प्रक्रिया और व्यवसाय संचालन के नियम, मनरेगा, एमएस स्वामीनाथन आयोग। मेन्स के लिये:कृषि संकट: कारण, प्रभाव और आगे की राह। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कृषि, पशुपालन एवं खाद्य प्रसंस्करण पर संसदीय स्थायी समिति (PSC) ने 18वीं लोकसभा में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की अनुदान मांगों (2024-25) पर अपनी पहली प्रस्तुत की है।
- इसके द्वारा किसानों के कल्याण में सुधार के क्रम में कई सिफारिशें की गईं।
PSC द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?
- MSP की विधिक गारंटी: इसने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की विधिक गारंटी प्रदान करने की सिफारिश की।
- MSP के विधिक कार्यान्वयन हेतु एक रोडमैप विकसित करने के साथ यह सुनिश्चित करने पर बल दिया कि केंद्र सरकार सुचारु परिवर्तन के लिये वित्तीय योजना बनाए।
- सरकार द्वारा संसद में फसल-पश्चात ऐसा विवरण प्रस्तुत किया जा सकता है, जिसमें MSP पर फसल बेचने वाले किसानों की संख्या तथा MSP और बाज़ार मूल्य के बीच अंतर का विवरण हो।
- धान अपशिष्ट प्रबंधन: पराली जलाने से रोकने के लिये फसल अवशेषों के प्रबंधन एवं निपटान के लिये किसानों को मुआवज़ा प्रदान करना चाहिये।
- पंजाब के उस प्रस्ताव पर विचार किया जाए जिसमें प्रति एकड़ 2,000 रुपए का बोनस (जिसे केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मिलकर दिया जाएगा) देने का प्रावधान है।
- पीएम-किसान योजना को बढ़ावा देना: पीएम-किसान योजना के अंतर्गत वार्षिक वित्तीय सहायता को 6,000 रुपए से बढ़ाकर 12,000 रुपए किया जाए।
- इसे बँटाईदार किसानों एवं कृषि श्रमिकों तक भी बढ़ाया जा सकता है।
- ऋण राहत: बढ़ते ऋण संकट के साथ आत्महत्याओं को कम करने के लिये किसानों तथा कृषि श्रमिकों के लिये ऋण माफी योजना शुरू की जाए।
- ग्रामीण परिवारों में ऋण पर बढ़ती निर्भरता और बढ़ते बकाया ऋणों पर बारीकी से नज़र रखना।
- बजटीय आवंटन: इसमें कुल केंद्रीय योजना के प्रतिशत के रूप में कृषि के लिये बजटीय आवंटन में निरंतर गिरावट की ओर इशारा किया गया है।
- वर्ष 2021-22 से 2024-25 तक उच्च आवंटन के बावजूद, केंद्रीय योजना परिव्यय हिस्सा वर्ष 2020-21 में 3.53% से घटकर वर्ष 2024-25 में 2.54% हो गया।
- सार्वभौमिक फसल बीमा: समिति ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) स्वास्थ्य बीमा योजना के अनुरूप 2 एकड़ तक के छोटे किसानों के लिये अनिवार्य फसल बीमा का प्रस्ताव रखा है।
- राष्ट्रीय कृषि मज़दूर आयोग: कृषि मज़दूरों के अधिकारों और कल्याण के लिये न्यूनतम जीवन निर्वाह मज़दूरी हेतु राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की जाएगी।
- विभाग का नाम बदलना: कृषि एवं किसान कल्याण विभाग का नाम बदलकर कृषि, किसान और खेत मज़दूर कल्याण विभाग रखना ताकि कृषि मज़दूरों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
नोट: उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने इस दावे को खारिज कर दिया कि उच्च MSP से मुद्रास्फीति बढ़ेगी, उन्होंने कहा, "हम किसानों को जो भी मूल्य देंगे, राष्ट्र को बिना किसी संदेह के पाँच गुना अधिक लाभ होगा।"
कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर संसदीय स्थायी समिति
- परिचय: कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर संसदीय स्थायी समिति संसद को कृषि, पशुपालन तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों से संबंधित नीतियों, कानूनों एवं मुद्दों की समीक्षा व देख-रेख में सहायता करती है।
- इसका गठन लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के नियम 331C के अंतर्गत किया गया है।
- अधिकार क्षेत्र: इसे भारत सरकार के निम्नलिखित मंत्रालयों/विभागों के कामकाज की जाँच और निगरानी का कार्य सौंपा गया है:
- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय
- कृषि एवं किसान कल्याण विभाग
- कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग
- मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय
- पशुपालन और डेयरी विभाग
- मत्स्य विभाग
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय
- सहकारिता मंत्रालय
- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय
- संरचना: इसमें कुल 31 सदस्य होते हैं, जिसमे से लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नामित 21 सदस्य लोकसभा से तथा सभापति द्वारा नामित 10 राज्य सभा से होते हैं।
- समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा समिति के सदस्यों में से की जाती है।
- सदस्यों का कार्यकाल: समिति के सदस्यों का कार्यकाल एक वर्ष से अधिक नहीं होता है।
किसानों के कल्याण पर PSC की सिफारिशों का क्या महत्त्व है?
- वित्तीय स्थिरता: कानूनी रूप से बाध्यकारी MSP से किसानों के लिये वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित होगी, आत्महत्याओं में कमी आएगी, बाज़ार में अस्थिरता कम होगी, ऋण का बोझ कम होगा तथा किसानों के समग्र मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा।
- खाद्य सुरक्षा: कानूनी रूप से गारंटीकृत MSP व्यापक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के साथ संरेखित है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि खाद्यान्न स्थिर मूल्यों पर उपलब्ध हों, जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सहायता मिलती है।
- पर्यावरणीय स्थिरता: पराली जलाने से निपटने के लिये उपकरण खरीदने हेतु किसानों को मुआवज़ा प्रदान करने से पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- फसल अवशेष जलाने से उत्तरी भारत में शीतकाल में वायु प्रदूषण और भी बदतर हो जाता है, क्योंकि कई किसान प्रभावी फसल अवशेष प्रबंधन उपकरण खरीदने में असमर्थ हैं।
- कल्याण में समावेशिता: कृषि विभाग का नाम बदलकर इसमें "कृषि मज़दूरों" को शामिल करना, न केवल भूमि-स्वामी किसानों बल्कि कृषि में समस्त हितधारकों के कल्याण पर व्यापक ध्यान को दर्शाता है।
अनुदान की मांगें
- संवैधानिक आधार: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-113 में यह प्रावधान है कि भारत की संचित निधि पर प्रभारित व्ययों को छोड़कर, भारत की संचित निधि से व्यय अनुमानों को अनुदानों की मांग के रूप में लोकसभा में प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
- प्रभारित व्यय सूचनात्मक प्रयोजन के लिये प्रस्तुत किये जाते हैं, लेकिन उन पर मतदान नहीं होता।
- उद्देश्य: विभिन्न सेवाओं पर व्यय के लिये अनुदानों की मांगों को लोकसभा द्वारा अनुमोदन हेतु प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें राजस्व और पूंजीगत खाते (ऋण सहित) दोनों शामिल होते हैं।
- प्रत्येक मंत्रालय/विभाग के लिये एक मांग: सामान्यतः प्रत्येक मंत्रालय/विभाग द्वारा एक मांग प्रस्तुत की जाती है।
- हालाँकि, बड़े मंत्रालयों/विभागों के लिये एक से अधिक मांगें प्रस्तुत की जा सकती हैं।
- भारित व्यय का समावेशन: यदि व्यय का कोई भाग संचित निधि पर 'भारित' है, तो उसे अनुदानों की मांग में स्पष्ट रूप से इटैलिक में दर्शाया जाता है।
- हालाँकि, इस भाग पर मतदान नहीं होता है।
किसानों को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- MSP का अधूरा वादा: किसान उत्पादन की व्यापक लागत (C2+50%) का 1.5 गुना वैधानिक MSP की मांग कर रहे हैं, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है।
- अनुशंसित दर पर MSP की गारंटी के बिना, किसानों को वित्तीय अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है, जिससे संकट और आत्महत्याएँ बढ़ रही हैं।
- उत्पादन की बढ़ती लागत: उर्वरकों, बीजों, कीटनाशकों, डीजल, पानी और बिज़ली की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, जिससे किसानों की लाभप्रदता पर दबाव पड़ रहा है।
- ऋण बोझ: वर्ष 2022-23 की नाबार्ड ग्रामीण वित्तीय समावेशन के अनुसार ऋण लेने वाले ग्रामीण परिवारों का प्रतिशत 2016-17 में 47.4% था जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 52% हो गया।
- इओसके साथ ही ग्रामीण परिवारों की आय में 57.6% (2016-22) की वृद्धि हुई लेकिन व्यय में 69.4% की वृद्धि हुई, जो दर्शाता है कि आय वृद्धि से अधिक व्यय में बढ़ोतरी हुई।
- सार्वजनिक निवेश में कमी: सिंचाई और बिजली में सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश में कटौती के कारण लागत में वृद्धि हुई है और परियोजनाएँ अधूरी रह गईं, जिससे किसानों की सिंचाई और वहनीय बिजली की पहुँच में बाधा उत्पन्न हो रही है।
- इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) से किसानों की आवश्यकताओं की पर्याप्त रूप पूर्ति नहीं हो पाई है तथा कई राज्यों ने इससे अलग होने का निर्णय लिया है, क्योंकि कथित तौर पर यह किसानों की बजाय बीमा कम्पनियों को लाभ पहुँचाने पर केंद्रित है।
- कृषि विकास में गिरावट: 2023-24 में कृषि की विकास दर (अनंतिम अनुमान) घटकर 1.4% रह गई, जो गत सात वर्षों में सबसे कम है जबकि गत चार वर्षों में औसत वार्षिक विकास दर 4.18% रही थी।
- मनरेगा के लिये अपर्याप्त धनराशि: वर्तमान सरकार की मनरेगा के लिये अपर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराने की आलोचना की गई है, जिसके कारण कार्य दिवसों की संख्या घटकर मात्र 42 रह गई है।
- कृषीतर ऋतुओं के दौरान मनरेगा कार्य की अनुपलब्धता किसानों की आजीविका के लिये खतरा बन जाती है।
- भूमि अधिग्रहण: "भूमि का स्वामित्व किसान के पास" से "भूमि का स्वामित्व कॉर्पोरेट के पास" की ओर स्थानांतरित होने को लेकर चिंता बढ़ रही है, जो भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 का उल्लंघन है।
- खनन एवं अन्य उद्देश्यों के लिये जनजातीय समुदायों से बिना किसी प्रतिकर के उनकी भूमि पर अधिग्रहण किया जा रहा है।
आगे की राह
- C2+50% पर सांविधिक MSP: सरकार को एम.एस. स्वामीनाथन आयोग द्वारा अनुशंसित C2+50% पर सांविधिक MSP लागू करने के लिये स्पष्ट प्रतिबद्धता व्यक्त करनी चाहिये।
- एकमुश्त ऋण संबंधी छूट: एकमुश्त ऋण अधित्यजन से किसानों को तत्काल राहत मिलेगी, आत्महत्याओं की रोकथाम होगी तथा कृषि में पुनर्निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
- फसल बीमा में सुधार: नियमित सूखा, बाढ़, बेमौसम वर्षा और ओलावृष्टि को देखते हुए, PMFBY से अलग एक व्यापक फसल बीमा योजना होनी चाहिए।
- मनरेगा का विस्तार: मनरेगा के लिये वित्त पोषण में वृद्धि, कार्यदिवसों की संख्या बढ़ाकर कम से कम 200 करना तथा दैनिक मजदूरी को 600 रुपए करना, ग्रामीण परिवारों को अनुपयुक्त कृषि अवधि के दौरान आय को स्थिर बनाए रखने में मदद करेगा।
- प्रगतिशील कराधान: कृषि सुधारों के लिये आवश्यक संसाधन जुटाने हेतु आयकर स्लैब में संशोधन किया जाना चाहिये।
- कृषि नीतियों की समीक्षा: सरकार को किसानों के बजाय कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता देने वाली नीतियों को संशोधित करना चाहिये तथा किसानों, कृषि श्रमिकों और ग्रामीण समुदायों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: कृषि क्षेत्र में समावेशी विकास सुनिश्चित करने और किसानों की आत्महत्याओं की रोकथाम हेतु आवश्यक प्रमुख नीतिगत परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त में से किनके न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने की है? (a) 1, 2, 3 और 7 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न: धान-गेहूँ प्रणाली को सफल बनाने के लिये कौन-से प्रमुख कारक उत्तरदायी हैं? इस सफलता के बावजूद, यह प्रणाली भारत में अभिशाप कैसे बन गई है? (2020) प्रश्न: न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) से आप क्या समझते हैं? न्यूनतम समर्थन मूल्य कृषकों का निम्न आय फंदे से किस प्रकार बचाव करेगा? (2018) प्रश्न: राष्ट्रीय व राजकीय स्तर पर कृषकों को दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायताएँ कौन-कौन सी हैं? कृषि आर्थिक सहायता व्यवस्था का उसके द्वारा उत्पन्न विकृतियों के संदर्भ में आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (2013) |