निर्यात केंद्र के रूप में ई-कॉमर्स | 20 Jun 2024
प्रिलिम्स के लिये:व्यापारिक निर्यात, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM), ई-कॉमर्स, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, उपभोक्ता संरक्षण, डेटा गोपनीयता, बौद्धिक संपदा, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021, उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम 2020, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति मेन्स के लिये:ई-कॉमर्स निर्यात नीति का महत्त्व |
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय ने नई सरकार के लिये 100 दिन का एजेंडा रोडमैप जारी किया है, जिसमें निर्यात हेतु ई-कॉमर्स का उपयोग करने की योजना शामिल है। भारत ने वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापारिक निर्यात का लक्ष्य रखा है, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सीमा पार ई-कॉमर्स को एक प्रमुख रणनीति के रूप में पहचाना है।
ई-कॉमर्स में 100 दिवसीय एजेंडा क्या है?
- 100 दिवसीय एजेंडा: ऑनलाइन निर्यात को समर्थन देने के लिये ई-कॉमर्स हब विकसित करने का कार्यक्रम सरकार के 100 दिवसीय एजेंडे का मुख्य फोकस है।
- वाणिज्य विभाग, शुल्क मुक्त रिटर्न और तीव्र सीमा शुल्क निकासी के लिये राजस्व विभाग के साथ मिलकर काम करता है।
- आर्थिक संभावना: वर्ष 2023 में सीमा पार ई-कॉमर्स व्यापार लगभग 800 बिलियन अमेरिकी डॉलर का होगा और अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
- चीन का ई-कॉमर्स निर्यात लगभग 350 बिलियन अमरीकी डॉलर का है, जबकि भारत का ऑनलाइन माध्यम से निर्यात केवल 2 बिलियन अमरीकी डॉलर का है।
- रिटर्न लॉजिस्टिक्स चुनौती: ई-कॉमर्स में लगभग 25 प्रतिशत वस्तुओं का पुनः आयात किया जाता है, जिससे इन वस्तुओं के लिये शुल्क मुक्त आयात आवश्यक हो जाता है।
- इन वस्तुओं को शुल्क-मुक्त दर्जा प्रदान करना चुनौतीपूर्ण है।
ई-कॉमर्स क्या है?
- परिचय: ई-कॉमर्स में इंटरनेट के माध्यम से सामान और सेवाएँ खरीदना तथा बेचना शामिल है। वर्ष 2023 तक, भारत वैश्विक स्तर पर आठवें सबसे बड़े ई-कॉमर्स बाज़ार के रूप में स्थान रखता है।
- ई-कॉमर्स में गतिविधियों का एक व्यापक दायरा शामिल है, जिसमें उत्पादों की खरीद-बिक्री की सुविधा प्रदान करने वाले ऑनलाइन खुदरा प्लेटफॉर्म से लेकर सुरक्षित और सुविधाजनक वित्तीय लेन-देन को सक्षम करने वाली डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ शामिल हैं।
- वर्गीकरण:
- बाज़ार आधारित मॉडल: इसमें ई-कॉमर्स इकाई खरीदारों और विक्रेताओं को जोड़ने के लिये एक IT प्लेटफॉर्म प्रदान करती है, जिसका उदाहरण अमेज़न तथा फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियाँ हैं।
- इन्वेंटरी-आधारित मॉडल: इसमें ई-कॉमर्स इकाई का स्वामित्व होता है तथा वह अपनी इन्वेंटरी से वस्तुओं और सेवाओं को सीधे उपभोक्ताओं को बेचती है, जैसा कि मिंत्रा (Myntra) एवं नाइका (Nykaa) जैसे प्लेटफॉर्मों के मामले में देखा गया है।
- ई-कॉमर्स के इन्वेंट्री आधारित मॉडल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति नहीं है।
- वर्तमान स्थिति: भारत के ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ने एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है, वित्त वर्ष 2023 में सकल व्यापारिक मूल्य (GMV) 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, जो वर्ष 2022 की तुलना में 22% की वृद्धि को दर्शाता है।
- विगत सात वर्षों में भारतीय खिलौनों के निर्यात में लगभग 30% के चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के हिसाब से वृद्धि हुई है।
- वित्त वर्ष 2022-23 में, सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) ने 2011 बिलियन अमरीकी डॉलर का अपना अब तक का सबसे अधिक सकल व्यापारिक मूल्य हासिल किया।
- वर्ष 2023 तक भारत में ई-कॉमर्स क्षेत्र का मूल्य 70 बिलियन अमरीकी डॉलर है, जो देश के कुल खुदरा बाज़ार का लगभग 7% है।
- भारत में लगभग 800 मिलियन लोग इंटरनेट के ग्राहक हैं, जिसमें लगभग 350 मिलियन परिपक्व ऑनलाइन उपयोगकर्त्ता सक्रिय ट्रांजेक्शन में शामिल हैं।
- भविष्य की संभावना: भारतीय ई-कॉमर्स उद्योग के वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- आगामी सात वर्षों में थर्ड-पार्टी लॉजिस्टिक्स प्रदाताओं द्वारा लगभग 17 बिलियन नौवहन प्रबंधित किये जाने का अनुमान है।
- यह संयुक्त राज्य अमेरिका को पीछे छोड़कर विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ई-कॉमर्स का अनुमानित बाज़ार है।
- भारत में ई-रिटेल बाज़ार के वर्ष 2028 तक 160 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक जाने का अनुमान है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में ई-कॉमर्स उद्योग का महत्त्व:
- रोज़गार प्रदाता: भारत में ई-कॉमर्स क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से MSME, वस्त्र, चमड़ा, कृषि (किसान) एवं शिल्प कौशल जैसे विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त रोज़गार के अवसर प्रदान करता है।
- इसके अतिरिक्त, यह लॉजिस्टिक्स, पैकेजिंग, परिवहन, भंडारण और विज्ञापन सहित आगे के लिंकेज का समर्थन करता है, जो आर्थिक विकास तथा रोज़गार सृजन में योगदान देता है।
- फैशन, किराना और सामान्य वस्तुओं का भारतीय ई-कॉमर्स बाज़ार पर हावी होने का अनुमान है, जो वर्ष 2027 तक बाज़ार हिस्सेदारी के लगभग दो-तिहाई हिस्से को अधिग्रहीत कर लेगा, जो भारत के खुदरा परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण विकास क्षेत्र के रूप में इस क्षेत्र के उभार को रेखांकित करता है।
- वैश्विक बाज़ारों में भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना: ई-कॉमर्स ने भारतीय निर्माताओं और विक्रेताओं को अपने उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शित करने में सक्षम बनाया है, जिससे वैश्विक बाज़ारों में उनकी पहुँच तथा जोखिम बढ़ा है।
- औद्योगिक रिपोर्टों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत से ई-कॉमर्स निर्यात लगभग 49 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
- निर्यात वृद्धि को बढ़ावा देना: ई-कॉमर्स के उदय ने भारत की निर्यात क्षमता को काफी हद तक बढ़ा दिया है, जिससे भारतीय व्यवसायों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में प्रवेश करने के लिये एक मंच मिला है। भारतीय रिज़र्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, प्रमुख निर्यात गंतव्यों में अमेरिका, यूएई, चीन, हाॅन्गकाॅन्ग और कई यूरोपीय देश शामिल हैं।
- सेवा वितरण में कुशलता आना: इससे ऑनलाइन शिक्षा, टेलीमेडिसिन तथा पेशेवर परामर्श जैसी सेवाएँ अधिक सुलभ हो गई हैं।
- उद्योगों के अनुमानों के अनुसार, भारत में ऑनलाइन शिक्षा क्षेत्र के वर्ष 2020-2025 के बीच लगभग 20% की CAGR से बढ़ने का अनुमान है।
- लॉजिस्टिक्स एवं आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में रूपांतरण: राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति जैसी सरकारी पहलों से वस्तुओं का वितरण सुलभ होने से लॉजिस्टिकल दक्षता के साथ लागत-प्रभावशीलता को बढ़ावा मिला है।
भारत में ई-कॉमर्स से संबंधित विभिन्न नियामक ढाँचे:
- कराधान से संबंधित: भारत में कार्यरत ई-कॉमर्स संस्थाएँ आयकर अधिनियम, 1961 के अंतर्गत कराधान के अधीन हैं। भारत में ई-कॉमर्स लेन-देन पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) लगाया जाता है।
- डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस एग्रीमेंट के अंतर्गत कराधान समझौते, अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन को सुविधाजनक बनाते हैं।
- व्यवसाय विनियमन: भारत में B2B (व्यवसाय से व्यवसाय) ई-कॉमर्स क्षेत्र, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति तथा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) द्वारा शासित होता है, जिससे विदेशी निवेश एवं व्यावसायिक संरचना को नियंत्रित किया जाता है।
- ई-कॉमर्स को प्रभावित करने वाले अतिरिक्त विनियमों में कंपनी अधिनियम 2013, भुगतान एवं निपटान अधिनियम 2007, भुगतान तंत्र पर RBI विनियम तथा लेबलिंग और पैकेजिंग नियम शामिल हैं।
- डेटा और संबंधित मुद्दे: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) के द्वारा इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध, डिजिटल हस्ताक्षर तथा साइबर अपराध की रोकथाम सहित ई-कॉमर्स के विभिन्न पहलुओं को विनियमित किया जाता है।
- आईटी अधिनियम की धाराओं (84A और 43A) द्वारा संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा या जानकारी को विनियमित करने वाली संस्थाओं पर दायित्व आरोपित किया जाता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 द्वारा ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों सहित डिजिटल मीडिया मध्यस्थों हेतु नवीन नियम प्रस्तुत किये गए हैं।
भारत में ई-कॉमर्स क्षेत्र से संबंधित सरकारी पहल:
- राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति
- FDI नीति
- ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC)
- उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020
- डिजिटल इंडिया पहल
ई-कॉमर्स निर्यात क्षेत्र में विभिन्न चुनौतियाँ तथा आगे की राह क्या है?
चुनौतियाँ |
आगे की राह |
1. रसद और आपूर्ति शृंखला की अक्षमताएँ: भारत में रसद और आपूर्ति शृंखला अवसंरचना अभी भी विकसित हो रही है, जिसके कारण अक्षमताओं के साथ-साथ उच्च लागतें उत्पन्न हो रही हैं, जो निर्यात प्रतिस्पर्द्धा में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं। |
1. लॉजिस्टिक्स अवसंरचना में निरंतर निवेश: डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, आधुनिक भंडारण सुविधाएँ एवं निर्बाध मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी जैसे निवेश। स्वचालन, IoT एवं डेटा एनालिटिक्स जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाने से आपूर्ति शृंखला संचालन को अनुकूलित किया जा सकता है। |
2. सीमा-पार व्यापार सुविधा में चुनौतीयाँ: सीमा पार व्यापार प्रक्रियाओं में जटिलताएँ, जैसे सीमा शुल्क निकासी, दस्तावेज़ीकरण तथा भुगतान गेटवे, ई-कॉमर्स निर्यात में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं। |
2. WTO के अंतर्गत ई-कॉमर्स: सीमा पार व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये WTO नियमों के तहत ई-कॉमर्स को विनियमित करने के लिये WTO ई-कॉमर्स अधिस्थगन (1998) को अद्यतन करने की आवश्यकता है। (WTO, ई-कॉमर्स अधिस्थगन इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क वसूलने पर प्रतिबंध लगाता है)। |
3. साइबर सुरक्षा: ई-कॉमर्स वेबसाइटें साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील होती हैं, जिससे संवेदनशील जानकारी का नुकसान हो सकता है और साथ ही व्यवसाय की प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। |
3. एक सशक्त डेटा गोपनीयता नेटवर्क का विकास करना: ई-कॉमर्स निर्यात के लिये एक सशक्त डेटा नेटवर्क महत्त्वपूर्ण है और भारत को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों में विश्वास पैदा करने के लिये मज़बूत साइबर सुरक्षा उपाय विकसित करने तथा उपभोक्ता जागरूकता अभियान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। |
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत के निर्यात क्षेत्र में ई-कॉमर्स की भूमिका का परीक्षण करें तथा देश की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने हेतु इसकी क्षमता को अधिकतम करने के लिये क्या रणनीतियाँ अपनायी जानी चाहिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. अप्रवासी सत्त्वों द्वारा दी जा रही ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं पर भारत द्वारा 6% समकरण कर लगाए जाने के निर्णय के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न."चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के उद्भव ने सरकार के अभिन्न अंग के रूप में ई-गवर्नेंस की शुरुआत की है"। विचार-विमर्श कीजिये। (2020) |