विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
अंतरिक्ष अन्वेषण संबंधी क्लाइमेट फुटप्रिंट
- 13 Dec 2024
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:पेरिस समझौता, ब्लैक कार्बन, अंतरिक्ष मलबा, पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO), बाह्य अंतरिक्ष संधि 1967, भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र, अंतरिक्ष वस्तुओं की ट्रैकिंग तथा विश्लेषण हेतु नेटवर्क मेन्स के लिये:अंतरिक्ष अन्वेषण का पर्यावरणीय प्रभाव, अंतरिक्ष स्थिरता में भारत की भूमिका, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण नीति के बीच अंतर्संबंध |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अंतरिक्ष अन्वेषण का विस्तार तेज़ी से हो रहा है, लेकिन रॉकेट लॉन्चिंग से लेकर उपग्रह मलबे से इसके पर्यावरणीय प्रभाव को पेरिस समझौता जैसे वैश्विक स्थिरता ढाँचों द्वारा बड़े पैमाने पर अनदेखा किया जाता है। इन बढ़ती चिंताओं को दूर करने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
अंतरिक्ष गतिविधियाँ पर्यावरण को किस प्रकार प्रभावित कर रही हैं?
- रॉकेट उत्सर्जन: रॉकेट प्रक्षेपण से कार्बन डाईऑक्साइड (CO₂), ब्लैक कार्बन और जलवाष्प उत्सर्जित होते हैं। ब्लैक कार्बन CO₂ की तुलना में 500 गुना अधिक प्रभावी ढंग से सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होती है।
- इसके अतिरिक्त, क्लोरीन आधारित रॉकेट प्रोपल्सन ओज़ोन परत को क्षति पहुँचाते हैं, पराबैंगनी (UV) विकिरण को बढ़ाते हैं और वायुमंडलीय परिसंचरण को बाधित करते हैं।
- अंतरिक्ष अपशिष्ट: सितंबर 2024 तक 19,590 उपग्रह प्रक्षेपित किये जा चुके हैं, जिनमें से 13,230 अभी भी कक्षा में मौजूद हैं, इनमें से 10,200 अभी भी कार्यान्वित हैं।
- अंतरिक्ष वस्तुओं का कुल द्रव्यमान 13,000 टन से अधिक है, जो पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में भीड़भाड़ के कारण अंतरिक्ष अपशिष्ट के प्रदूषण में योगदान देता है।
- गैर-कार्यशील उपग्रह और टकरावों से उत्पन्न मलबा अंतरिक्ष अपशिष्ट की बढ़ती समस्या में योगदान दे रहा है तथा अंतरिक्ष को लगातार दुर्गम बना रहा है।
- यह अपशिष्ट रेडियो तरंगों और सेंसर की सटीकता को बाधित कर सकता है, जिससे आपदा ट्रैकिंग, जलवायु निगरानी तथा संचार के लिये महत्त्वपूर्ण प्रणालियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
- उपग्रह निर्माण: उपग्रहों के उत्पादन में ऊर्जा-गहन प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं, जो विशेष रूप से धातुओं और मिश्रित सामग्रियों के उपयोग के माध्यम से, उनके कार्बन फुटप्रिंट में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।
- उपग्रह प्रणोदन प्रणालियाँ कक्षीय समायोजन के दौरान अतिरिक्त उत्सर्जन भी करती हैं। इसके अतिरिक्त उपग्रह पुनः प्रवेश के दौरान दहन हो जाते हैं, जिससे धातुयुक्त "उपग्रह की राख" निकलती है जो वायुमंडलीय गतिशीलता को परिवर्तित कर सकती है और जलवायु को क्षति पहुँचा सकती है।
- उभरते खतरे: अंतरिक्ष खनन, हालाँकि अभी तक शुरू नहीं हुआ है, लेकिन यह पृथ्वी और अंतरिक्ष वातावरण दोनों के लिये संभावित खतरा है।
- कक्ष में औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि से पर्यावरणीय प्रभाव तीव्र हो सकते हैं तथा वर्तमान अंतरिक्ष परिचालनों द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ और भी जटिल हो सकती हैं।
सतत् अंतरिक्ष अन्वेषण संबंधी क्या बाधाएँ हैं?
- विनियमन का अभाव: अंतरिक्ष गतिविधियाँ पेरिस समझौते जैसे समझौतों के अंतर्गत नहीं आती हैं, जिससे उत्सर्जन और मलबा वृहत स्तर पर अनियंत्रित रह जाता है।
- स्पष्ट दिशा-निर्देशों के अभाव में, उपग्रहों और मलबे में तीव्र वृद्धि के कारण कक्षाएँ अतिसंकुलित हो गई हैं, जिससे भविष्य के मिशन अधिक महँगे और जोखिमपूर्ण हो गए।
- यद्यपि बाह्य अंतरिक्ष संधि, 1967 के अंतर्गत ज़िम्मेदारीपूर्ण उपयोग पर ज़ोर दिया गया है लेकिन इसमें पर्यावरणीय संधारणीयता के लिये आबद्धकर प्रावधानों का अभाव है।
- 2019 में, बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति (COPUOS) ने अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक संधारणीयता के लिये 21 स्वैच्छिक दिशा-निर्देशों को अंगीकार किया।
- हालाँकि आबद्धकर विनियमों का अभाव और परस्पर विरोधी राष्ट्रीय तथा वाणिज्यिक प्राथमिकताएँ इन दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करती हैं, जिससे अंतरिक्ष संधारणीयता के लिये एकीकृत दृष्टिकोण हासिल करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- अंतरिक्ष का वाणिज्यिक दोहन: इसमें अंतरिक्ष से संबंधित प्रौद्योगिकियों और सेवाओं के माध्यम से राजस्व उत्पन्न करना शामिल है, जैसे कि क्षुद्रग्रहों से अंतरिक्ष संसाधनों की पुनर्प्राप्ति, वाणिज्यिक अंतरिक्ष स्टेशनों का विकास और लाभ-केंद्रित कंपनियों द्वारा संचालित अंतरिक्ष पर्यटन की पेशकश, संधारणीयता प्रयासों को कमज़ोर कर सकती है।
- उच्च लागत: अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये संधारणीय प्रौद्योगिकियों का विकास और कार्यान्वयन महँगा है।
- इसमें मलबे के शमन, ईंधन के सतत् विकल्प और दीर्घकालिक मिशन से संबंधित लागतें शामिल हैं, जिनमें से सभी के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है।
- अंतरिक्ष में संधारणीयता प्राप्त करने के उद्देश्य से मलबे का अपसारण करने हेतु उन्नत प्रौद्योगिकियों, कुशल प्रणोदन प्रणालियों और लंबी अवधि के मिशनों के लिये जीवन सहायक प्रणालियों की आवश्यकता होती है।
- इनमें से कई प्रौद्योगिकियाँ अभी भी विकास के चरण में हैं और इनमें पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है।
- डेटा-साझाकरण मुद्दे: सुरक्षा तथा वाणिज्यिक हित प्रायः वास्तविक समय में उपग्रह और मलबे की ट्रैकिंग में बाधा उत्पन्न करते हैं, जो समन्वित अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन के लिये आवश्यक है।
अंतरिक्ष संधारणीयता में भारत की क्या स्थिति है?
- निजी क्षेत्र की भागीदारी: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) की औपचारिक स्थापना से निजी कंपनियों की भूमिका को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- अग्निकुल, स्काईरूट और ध्रुव स्पेस जैसे स्टार्टअप संधारणीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन तथा प्रौद्योगिकियाँ विकसित कर रहे हैं।
- मनस्तु स्पेस टेक्नोलॉजीज ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन को आईबूस्टर ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम सौंप दिया है।
- इस प्रणाली में कक्षा उत्थान और डीऑर्बिटिंग जैसे सुरक्षित, लागत प्रभावी उपग्रह संचालन के लिये हाइड्रोजन पेरोक्साइड आधारित ईंधन का उपयोग किया जाता है।
- अंतरिक्ष मलबा प्रबंधन: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की नेटवर्क फॉर स्पेस ऑब्जेक्ट्स ट्रैकिंग एंड एनालिसिस (NETRA) परियोजना का उद्देश्य अंतरिक्ष मलबे को ट्रैक करना, अंतरिक्ष परिसंपत्तियों की सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान करना तथा जोखिमों का प्रबंधन करने में मदद करना है।
- यह पहल जोखिमों का प्रबंधन करने और केसलर सिंड्रोम को रोकने में मदद करती है, जहाँ टकराव से अधिक मलबा उत्पन्न होता है।
- भारत ने वर्ष 2022 में हस्ताक्षरित एक समझौते के अंतर्गत अंतरिक्ष पिंड अनुवीक्षण पर भी अमेरिका के साथ सहयोग किया है।
- इन-ऑर्बिट सर्विसिंग: ISRO, पुनः ईंधन भरने और अन्य सेवाओं के लिये उपग्रहों को डॉक करने के लिये स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (SPADEX) विकसित कर रहा है, जिससे उपग्रहों का जीवनकाल और मिशन लचीलापन बढ़ेगा।
बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति
- COPUOS की स्थापना वर्ष 1958 में हुई थी, वर्ष 1957 में पहले कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक-I के प्रक्षेपण के बाद। प्रारंभ में इसे एक तदर्थ अंतर-सरकारी समिति के रूप में बनाया गया था, बाद में इसे वर्ष 1959 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एक स्थायी निकाय बना दिया गया। भारत 18 संस्थापक सदस्यों में से एक था।
- COPUOS मानवता के लाभ के लिये अंतरिक्ष के अन्वेषण और उपयोग की देखरेख करता है तथा शांति, सुरक्षा एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की समीक्षा करता है, अंतरिक्ष अनुसंधान को प्रोत्साहित करता है तथा बाह्य अंतरिक्ष से संबंधित कानूनी मुद्दों का समाधान करता है।
- भारत और COPUOS:
- भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम के. साराभाई ने वर्ष 1968 में बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण और शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूनिस्पेस-I) के उपाध्यक्ष और वैज्ञानिक अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
- वर्ष 2021 में भारत को बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता पर नवीन कार्य समूह का अध्यक्ष चुना गया।
आगे की राह
- तकनीकी नवाचार: एलन मस्क के स्पेसएक्स द्वारा विकसित पुन: प्रयोज्य रॉकेट, अपशिष्ट और लागत को कम करते हैं। ग्रीन हाइड्रोजन और जैव ईंधन प्रक्षेपण में उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।
- विद्युत प्रणोदन छोटे मिशनों के लिये तो कुशल है, लेकिन भारी भार वाले कार्यों के लिये उपयुक्त नहीं है।
- परमाणु प्रणोदन एक संभावित विकल्प प्रस्तुत करता है, लेकिन पृथ्वी के वायुमंडल में दुर्घटना की स्थिति में इससे परमाणु विकिरण प्रदूषण का खतरा बना रहता है।
- कक्षीय मलबे को कम करना: जापान के लिग्नोसैट जैसे जैवनिम्नीकरणीय उपग्रह, जिनके घटक पुनः प्रवेश पर विघटित हो सकते हैं, जिससे अंतरिक्ष अपशिष्ट का संचय कम हो जाता है।
- मौजूदा अपशिष्ट को साफ करने के लिये रोबोटिक आर्म्स और लेजर जैसी स्वायत्त अपशिष्ट निष्कासन (ADR) प्रौद्योगिकियों में निवेश आवश्यक है।
- उपग्रहों को LEO से भूस्थिर कक्षा (GEO) या उच्चतर कक्षाओं में भेजने से पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश का जोखिम कम हो सकता है तथा LEO में अपशिष्ट संचयन न्यूनतम हो सकता है।
- वैश्विक यातायात प्रबंधन: वास्तविक समय में उपग्रह की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिये एक वैश्विक प्रणाली से टकराव के जोखिम में कमी आएगी और सुरक्षित कक्षीय उपयोग सुनिश्चित होगा।
- डेटा साझाकरण प्रतिरोध पर नियंत्रण और सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ विश्वास का निर्माण करना प्रभावी अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- नीति और शासन: बाह्य अंतरिक्ष संधि के साथ स्थिरता लक्ष्यों को संरेखित करना और COPUOS के अंतर्गत बाध्यकारी समझौते प्रस्तुत करना, अंतरिक्ष में पर्यावरणीय उत्तरदायित्व लागू करने के लिये आवश्यक है।
- सरकारें स्थायी अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा देने के लिये उत्सर्जन सीमा, अपशिष्ट शमन को लागू कर सकती हैं और सब्सिडी एवं ज़ुर्माने के माध्यम से हरित प्रौद्योगिकियों के लिये प्रोत्साहन दे सकती हैं।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सरकारों और निजी संस्थाओं के बीच सहयोग सतत् प्रौद्योगिकियों के वित्तपोषण के लिये महत्त्वपूर्ण है। साझा जवाबदेही ढाँचे अंतरिक्ष में स्थिरता के लिये पारस्परिक ज़िम्मेदारी सुनिश्चित करते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: अंतरिक्ष अन्वेषण के पर्यावरणीय प्रभाव की जाँच कीजिये। स्थिरता के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न 1. भारत की अपना स्वयं का अंतरिक्ष केंद्र प्राप्त करने की क्या योजना है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को यह किस प्रकार लाभ पहुँचाएगी? (वर्ष 2019) प्रश्न 2. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016) प्रश्न 3. भारत के तीसरे चंद्रमा मिशन का मुख्य कार्य क्या है जिसे इसके पहले के मिशन में हासिल नहीं किया जा सका? जिन देशों ने इस कार्य को हासिल कर लिया है उनकी सूची दीजिये। प्रक्षेपित अंतरिक्ष यान की उपप्रणालियों को प्रस्तुत कीजिये और विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के ‘आभासी प्रक्षेपण नियंत्रण केंद्र’ की उस भूमिका का वर्णन कीजिये जिसने श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण में योगदान दिया है। (2023) |