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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त अंतरिक्ष अभ्यास की आवश्यकता

  • 14 Sep 2022
  • 16 min read

यह एडिटोरियल 08/09/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Time for a Joint Space Exercise” लेख पर आधारित है। इसमें बाह्य अंतरिक्ष के सैन्यीकरण एवं शस्त्रीकरण और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

हाल के वर्षों में न केवल बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण में वैज्ञानिक एवं खगोलीय सफलता देखी गई है, बल्कि नागरिक एवं सैन्य उद्देश्यों की एक विस्तृत शृंखला के लिये अंतरिक्ष के उपयोग में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

अंतरिक्ष और सैन्य बल के बीच सहक्रियात्मक दृष्टिकोण का विकास हो रहा है। सेना का प्रक्षेपण स्थल एवं समुद्र तक ही सीमित नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन तथा रूस जैसे देश एक-दूसरे पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिये बाह्य अंतरिक्ष के सैन्यीकरण एवं शस्त्रीकरण (Militarisation and Weaponization) के साथ बाह्य अंतरिक्ष पर हावी होने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।

बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) विश्व के देशों को पृथ्वी की कक्षा में ‘परमाणु हथियार या सामूहिक विनाश के किसी अन्य प्रकार के हथियारों को ले जाने वाले किसी भी पिंड’ को स्थापित करने से निषिद्ध करती है।

अंतरिक्ष का अनियंत्रित एवं अविनियमित शस्त्रीकरण और सैन्यीकरण न केवल अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिये बल्कि संचार, नेविगेशन, प्रसारण और रिमोट सेंसिंग जैसी महत्त्वपूर्ण नागरिक अंतरिक्ष-आधारित अवसंरचनात्मक सेवाओं के लिये भी गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकता है ।

बाह्य अंतरिक्ष का सैन्यीकरण

  • परिचय:
    • अंतरिक्ष के सैन्यीकरण में अंतरिक्ष युद्ध (space warfare) क्षमताओं के विकास के लिये बाह्य अंतरिक्ष में हथियार एवं सैन्य प्रौद्योगिकी की तैनाती और उनका विकास करना शामिल है।
    • अंतरिक्ष युद्ध वह युद्ध है जो बाह्य अंतरिक्ष में यानी वायुमंडल के बाहर लड़ा जाएगा। इसमें शामिल हैं:
      • भूमि-से-अंतरिक्ष युद्ध (Ground-to-Space Warfare): पृथ्वी से उपग्रहों पर हमला करना।
      • अंतरिक्ष-से-अंतरिक्ष युद्ध (Space-to- Space Warfare): उपग्रहों द्वारा उपग्रहों पर हमला।
      • हालाँकि इसमें तकनीकी रूप से अंतरिक्ष-से-भूमि युद्ध (Space-to-Ground Warfare) शामिल नहीं है, जहाँ कक्ष में स्थापित पिंड पृथ्वी पर हमले करेंगे।
  • सैन्यीकरण का वैश्विक परिदृश् :
    • फ्राँस: फ्राँस ने वर्ष 2021 में अपना पहला अंतरिक्ष सैन्य अभ्यास एस्टरएक्स (AsterX) आयोजित किया।
    • चीन: पृथ्वी की निचली कक्षा में अपने तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन (Tiangong Space Station) का निर्माण करने के साथ ही चीन वर्ष 2024 तक सीस-लूनर स्पेस (भू-समकालिक कक्षा से परे क्षेत्र) में चंद्रमा पर अपनी स्थायी उपस्थिति स्थापित करने की उम्मीद कर रहा है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका ने अपनी युद्ध क्षमताओं को प्रबल करने के लिये ‘स्पेस फोर्स’ नामक नया सैन्य विभाग गठित किया है।

बाह्य अंतरिक्ष संधि 1967:

  • बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty), जिसे औपचारिक रूप से ‘चंद्रमा और अन्य आकाशीय निकायों सहित बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण और उपयोग में राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों पर संधि’ (Treaty on Principles Governing the Activities of States in the Exploration and Use of Outer Space, including the Moon and Other Celestial Bodies) के रूप में जाना जाता है, एक संधि है जिसने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की नींव रखी है।
    • भारत भी बाह्य अंतरिक्ष संधि का एक पक्षकार है।
  • यह संधि विश्व के देशों को परमाणु हथियार या सामूहिक विनाश के किसी अन्य हथियार को पृथ्वी के चारों ओर की कक्षा में तैनात करने से निषिद्ध करती है।
    • इसके अलावा यह चंद्रमा जैसे अन्य आकाशीय पिंडों या बाह्य अंतरिक्ष में कहीं भी ऐसे हथियारों की तैनाती और उपयोग को प्रतिबंधित करती है। संधि के सभी पक्षकार अंतरिक्ष के केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अनन्य उपयोग पर परस्पर सहमति रखते हैं।

अंतरिक्ष के सैन्यीकरण पर भारत का रुख:

  • वर्तमान परिदृश्यों में बदलती ध्रुवीयता: भारत में ऐतिहासिक रूप से अंतरिक्ष इसकी असैन्य अंतरिक्ष एजेंसी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के एकमात्र क्षेत्राधिकार के अंदर रहा है। भारत ने अंतरिक्ष सुरक्षा के प्रति सदैव शांतिवादी दृष्टिकोण बनाए रखा है और अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण एवं सैन्यीकरण का विरोध करता है।
    • पिछले एक दशक से बाह्य अंतरिक्ष के प्रति भारत का दृष्टिकोण बदल रहा है और अब यह राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं से अधिक प्रेरित हो रहा है। नैतिकता-प्रेरित नीति के अनुपालन के बजाय भारत अब बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
      • हालाँकि भारत ने अभी भी निःशस्त्रीकरण की अपनी नीति का त्याग नहीं किया है, लेकिन उसने अनुभव किया है कि उसकी निष्क्रियता और बाह्य अंतरिक्ष में समकालीन प्रगति की अनदेखी उसे अपनी अंतरिक्ष आस्ति पर कई खतरों के लिये असुरक्षित या भेद्य बना सकती है।
  • हाल का परिदृश्य: चीनी खतरों पर नज़र रखते हुए हाल ही में भारत ने अपने पहले सिमुलेटेड स्पेस वारफेयर अभ्यास ‘इंडस्पेसएक्स' (IndSpaceX) का आयोजन किया और उसी वर्ष एक उपग्रह-प्रतिरोधी हथियार (मिशन शक्ति) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
    • इसके साथ ही त्रि-सेवा रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (Defence Space Agency-DSA) की स्थापना के साथ सेना को स्थायी रूप से असैन्य अंतरिक्ष की छाया से दूर कर दिया गया है।
      • भारत ने रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (Defence Space Research Agency- DSRA) की भी स्थापना की है जो DSA के लिये अंतरिक्ष आधारित हथियार विकसित करने में मदद करेगी। अंतरिक्ष को भी एक सैन्य डोमेन के रूप में उतना ही महत्त्व प्रदान किया गया है जितना कि थल, जल, वायु और साइबर क्षेत्र को प्राप्त है।
    • वर्ष 2020 में भारत सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी अभिकर्त्ता को प्रोत्साहित करने के लिये अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत एक स्वतंत्र नोडल एजेंसी ‘IN-SPACe’ के निर्माण को भी मंज़ूरी प्रदान की।

बाह्य अंतरिक्ष को खतरा पहुँचाती प्रमुख चुनौतियाँ

  • चीन का बढ़ता प्रभाव: चीनी अंतरिक्ष उद्योग अन्य देशों की तुलना में अधिक तेज़ी से विकसित हो रहा है। इसने अपने स्वयं के नेविगेशन सिस्टम ‘BeiDou’ के सफल लॉन्च के साथ अंतरिक्ष क्षेत्र में एक मज़बूत उपस्थिति दर्ज की है ।
    • इस बात की प्रबल संभावना है कि चीन के बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI) के भागीदार देश चीनी अंतरिक्ष क्षेत्र में योगदान देंगे या इसमें शामिल होंगे, जिससे चीन की वैश्विक स्थिति और मज़बूत होगी।
  • अंतरिक्ष मलबों में वृद्धि: बाह्य अंतरिक्ष अभियानों में वृद्धि से अंतरिक्ष का मलबा भी बढ़ रहा है। यह भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों को प्रभावित कर सकता है क्योंकि जिस उच्च गति पर पिंड पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं, अंतरिक्ष मलबे के एक छोटे से टुकड़े के साथ भी टकराव एक अंतरिक्ष यान को नुकसान पहुँचा सकता है।
    • अंतरिक्ष के मलबे ओज़ोन रिक्तीकरण या क्षय का भी कारण बन सकते हैं।
  • जासूसी-आधारित उपग्रहों की वृद्धि: अंतरिक्ष प्रमुख शक्तियों के बीच प्रभुत्व के लिये युद्ध का मैदान बनता जा रहा है। अंतरिक्ष में तैनात उपग्रहों का लगभग पाँचवाँ हिस्सा सेना से संबंधित है और जिनका उपयोग जासूसी के लिये किया जाता है। यह वैश्विक शांति और सुरक्षा हेतु एक गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
  • वैश्विक भरोसे में कमी का विस्तार: बाह्य अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण के लिये उभरती हथियारों की दौड़ दुनिया भर में अनिश्चितता, संदेह, प्रतिस्पर्द्धा और आक्रामकता का माहौल पैदा कर सकती है जिससे युद्ध भड़क सकता है।
    • यह वैज्ञानिक अन्वेषणों और संचार सेवाओं से संलग्न उपग्रहों के साथ उपग्रहों की पूरी शृंखला को भी जोखिम में डाल देगा।
  • ऑर्बिटल स्लॉट पर एकाधिकार बढ़ने की संभावना: कोई भी देश जो एक सैन्य उपग्रह तैनात करता है, वह अपने ऑर्बिटल स्लॉट और रेडियो फ्रीक्वेंसी का खुलासा करने से हिचकिचाता है, क्योंकि उसे भय होता है कि इस तरह की जानकारी का इस्तेमाल किसी विरोधी/शत्रु द्वारा उपग्रह को ट्रैक करने के लिये किया जा सकता है, जिसके बाद वे इस पर हमला कर सकते हैं या इसके सिग्नल को जाम कर सकते हैं। इस प्रकार इस बात की प्रबल संभावना है कि भविष्य में ऑर्बिटल स्लॉट एकाधिकार के शिकार होंगे।
  • बाह्य अंतरिक्ष का बढ़ता व्यावसायीकरण: इंटरनेट सेवाओं के ट्रांसमिशन और अंतरिक्ष पर्यटन (जेफ बेज़ोस) के लिये निजी उपग्रह अभियानों के माध्यम से बाह्य अंतरिक्ष का व्यावसायीकरण बढ़ रहा है।
    • ‘Axiom Space’ ने स्पेसएक्स (SpaceX) के क्रू ड्रैगन कैप्सूल के माध्यम से वर्ष 2022 में अंतरिक्ष में अपना पहला पूरी तरह से निजी वाणिज्यिक मिशन लॉन्च किया।

आगे की राह

  • अंतरिक्ष युद्ध के लिये क्षमता निर्माण: अंतरिक्ष के चौथे युद्धक्षेत्र में परिणत होते जाने के साथ भारत को पर्याप्त अनुसंधान और विकास के माध्यम से अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • देश की शांति को भंग करने का उद्देश्य रखने वाले किसी भी मिसाइल हमले पर सक्षम प्रतिक्रिया दे सकने के लिये काली/KALI (Kilo Ampere Linear Injector) को डिज़ाइन किया जा रहा है।
    • इसके साथ ही यह उपयुक्त समय है कि भारत-अमेरिका संयुक्त अंतरिक्ष सैन्य अभ्यास का आयोजन किया जाए जो भारत की रक्षा साझेदारी को एक नई कक्षा में ले जाएगा।
      • भारत और अमेरिका अक्तूबर 2022 में औली, उत्तराखंड में ‘युद्ध अभ्यास’ के 18वें संस्करण में भाग लेंगे।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये वैश्विक बाज़ार को आकर्षित करना: लागत-प्रतिस्पर्द्धी विश्वस्तरीय उत्पादों और सेवाओं को दोहराने के लिये भारत स्थानीय बाज़ार स्थितियों (प्रतिभा पूल, निम्न श्रम लागत, इंजीनियरिंग सेवा आदि) का लाभ उठा सकता है।
    • सर्वाधिक लागत-प्रभावी और पहले प्रयास में ही सफलता पाने वाले ‘मंगलयान’ अभियान जैसी उपलब्धियाँ एक ब्रांड-निर्माण अभ्यास के रूप में कार्य कर सकती हैं जो वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत के एकीकरण में मदद करेगी।
  • अंतरिक्ष परिसंपत्ति सुरक्षा अवसंरचना का विकास: भारत को अपनी अंतरिक्ष परिसंपत्तियों (मलबे और अंतरिक्ष यान सहित) की प्रभावी ढंग से रक्षा करने के लिये विश्वसनीय और सटीक ट्रैकिंग क्षमताओं की आवश्यकता है।
    • इसलिये यह आवश्यक है कि इस महत्त्वपूर्ण क्षमता को स्वदेशी रूप से विकसित किया जाए, क्योंकि सटीक ट्रैकिंग लगभग हर कल्पनीय अंतरिक्ष कार्रवाई का एक आवश्यक अंग होती है।
    • भारतीय उपग्रहों के लिये मलबे और अन्य खतरों का पता लगाने के लिये अंतरिक्ष में एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में प्रोजेक्ट नेत्रा (Project NETRA) इस दिशा में एक सराहनीय कदम है।
  • ‘ग्लोबल कॉमन’ का ‘ग्लोबल गवर्नेंस’: बाह्य अंतरिक्ष एक साझा विरासत है और इसकी परिसंपत्तियों पर प्रत्येक मानव का एक समान अधिकार है। आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्थाएँ अंतरिक्ष संपत्तियों पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।
    • ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, टेलीकॉम नेटवर्क और पूर्व-चेतावनी प्रणाली एवं मौसम पूर्वानुमान दुनिया भर में शासन के लिये महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
    • एक अनियंत्रित सैन्यीकरण इन सुविधाओं को विनष्ट कर देगा, इसलिये वैश्विक बहुपक्षीय मंचों पर इस मुद्दे की निगरानी करना और हथियारों की दौड़ को रोकने तथा मौजूदा प्रणाली में मौजूद किसी भी कानूनी अंतराल को भरने के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी साधनों को विकसित करना महत्त्वपूर्ण है।

अभ्यास प्रश्न: बाह्य अंतरिक्ष के सैन्यीकरण को ध्यान में रखते हुए अंतरिक्ष और सेना के बीच बढ़ते तालमेल का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

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