BRICS राष्ट्रों द्वारा वैकल्पिक मुद्रा पर विचार | 05 Dec 2024
प्रिलिम्स के लिये:16वाँ BRICS शिखर सम्मेलन, ग्लोबल साउथ, SWIFT नेटवर्क, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, भारतीय रिज़र्व बैंक, भारत-UAE स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली मेन्स के लिये:वैश्विक व्यापार और वित्त पर डी-डॉलरीकरण का प्रभाव, भारतीय मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरण, भारत से संबंधित और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह एवं समझौते, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
अक्टूबर 2024 में 16वें BRICS शिखर सम्मेलन में BRICS देशों ने व्यापार में स्थानीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने या अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के क्रम में एक नई BRICS मुद्रा के संबंध में चर्चा की।
- इसकी प्रतिक्रिया में अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यदि BRICS देश वैश्विक रिज़र्व मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर के स्थान पर किसी मुद्रा को अपनाते हैं तो उन पर 100% तक आयात शुल्क लगाया जा सकता है।
- भारत ने अमेरिका के साथ मज़बूत आर्थिक संबंधों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराने के साथ इस बात पर बल दिया कि उसका अमेरिकी डॉलर को कमज़ोर करने का कोई लक्ष्य नहीं है।
BRICS देश वैकल्पिक मुद्राओं पर विचार क्यों कर रहे हैं?
- लेन-देन लागत में कमी: स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने से अन्य मध्यस्थ विदेशी मुद्राओं की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी, जिससे लेन-देन लागत कम होने के साथ BRICS देशों के बीच व्यापार और भी अधिक सुलभ हो सकेगा।
- डॉलर का प्रभुत्व: वर्तमान में वैश्विक व्यापार का 90% से अधिक अमेरिकी डॉलर द्वारा होता है। अमेरिकी डॉलर पर अधिक निर्भरता से देश अमेरिकी मौद्रिक नीतियों से काफी प्रभावित होते हैं।
- इससे देशों की अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक अस्थिरता पैदा होने से यह देश अपनी या अन्य मुद्राओं का उपयोग करके अपनी अर्थव्यवस्था पर अधिक नियंत्रण प्राप्त करने हेतु प्रेरित होते हैं।
- कई BRICS देश (विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के देश) डॉलर जैसी प्रमुख मुद्राओं को पाने के लिये संघर्षरत रहते हैं, जिससे उनकी वस्तुओं का आयात करने, ऋण चुकाने एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है।
- स्थानीय मुद्राओं के उपयोग से न केवल इन चुनौतियों से निपटा जा सकेगा बल्कि स्थानीय बाज़ारों के बीच संवृद्धि एवं व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
- राजनीतिक प्रेरणाएँ: स्थानीय मुद्राओं पर विचार करने का एक प्रमुख कारण अमेरिका द्वारा लगाए गए वित्तीय प्रतिबंधों के प्रभाव से बचना है।
- उदाहरण के लिये, अमेरिका ने रूस और ईरान को SWIFT (सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन) नेटवर्क से प्रतिबंधित किया है, जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन की प्रमुख प्रणाली है, जिसके कारण इन देशों को व्यापार बनाए रखने हेतु विकल्प तलाशने पड़े हैं।
- अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम होने से इन देशों को वैश्विक व्यापार में अधिक संप्रभुता प्राप्त होने के साथ बाहरी आर्थिक दबावों के प्रति इनकी संवेदनशीलता में कमी आएगी।
- भू-राजनीतिक कारण: ब्राज़ील और रूस जैसे देश युआन तथा रूबल जैसी मुद्राओं को बढ़ावा देकर (यहाँ तक कि एकीकृत BRICS मुद्रा पर विचार करके) अमेरिकी हस्तक्षेप से बचने हेतु प्रयासरत हैं।
- जैसे-जैसे चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ बढ़ रही हैं, ये कई देशों के लिये प्रमुख व्यापारिक साझेदार बन रहे हैं। यह बदलाव व्यापार हेतु वैकल्पिक मुद्राओं के उपयोग को प्रेरित करता है।
स्थानीय मुद्राओं में व्यापार
- चीन का दृष्टिकोण: चीन ने द्विपक्षीय मुद्रा स्वैप समझौतों के माध्यम से अपनी मुद्रा के उपयोग को बढ़ावा दिया है, जैसा कि इथियोपिया के साथ चीन के व्यापार में देखा गया है।
- द्विपक्षीय मुद्रा स्वैप समझौते का आशय दो केंद्रीय बैंकों के बीच एक वित्तीय अनुबंध से है जिसके तहत एक मुद्रा की एक निश्चित राशि को दूसरी मुद्रा की समान राशि के साथ विनिमय किया जाता है।
- चीन के वस्तु विनिमय व्यापार मॉडल के तहत अफ्रीकी देशों के साथ स्थानीय मुद्राओं के बदले वस्तुओं के आदान-प्रदान को प्राथमिकता देकर पारंपरिक मुद्राओं का उपयोग हतोत्साहित होता है।
- इन मुद्राओं का उपयोग उन देशों से सामान खरीदने के लिये किया जाता है, जिन्हें वापस चीन को निर्यात कर दिया जाता है, जिससे इसके मुद्रा अंतर्राष्ट्रीयकरण प्रयासों को समर्थन मिलता है।
- दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीका की मुद्रा (दक्षिण अफ्रीकी रैंड) का नामीबिया, बोत्सवाना, लेसोथो और एस्वातिनी द्वारा अपनी मुद्राओं के साथ उपयोग करने से न केवल आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलता है बल्कि इन देशों की अमेरिकी डॉलर या यूरो पर निर्भरता भी कम होती है।
- भारत-रूस: अमेरिकी प्रतिबंधों की प्रतिक्रिया में भारत और रूस द्वारा अपनी स्थानीय मुद्राओं (रुपए एवं रूबल) को प्रोत्साहन देने के साथ 90% द्विपक्षीय व्यापार अब इन मुद्राओं या वैकल्पिक मुद्राओं में किया जाता है।
अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता में कमी से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- चीनी प्रभुत्व: अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम होने से चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभुत्व को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं। चीन वैश्विक व्यापार में, खासतौर पर रूस और अन्य ब्रिक्स देशों के साथ, युआन के इस्तेमाल को बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है।
- BRICS में, चीन की प्रमुख अर्थव्यवस्था असंगत प्रभाव उत्पन्न कर सकती है, जो संभावित रूप से भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे अन्य सदस्यों के हितों को प्रभावित कर सकती है, जो बहुध्रुवीय वित्तीय प्रणाली चाहते हैं।
- कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: BRICS मुद्रा या स्थानीय मुद्राओं को अपनाने में चुनौतियाँ हैं, जैसा कि भारत-रूस व्यापार में देखा गया है, जहाँ अमेरिकी प्रतिबंधों से संबंधित बैंकिंग चिंताएँ बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन को प्रभावित करती हैं।
- BRICS की कई मुद्राओं का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे स्थानीय मुद्राओं के साथ व्यापार की प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
- जो देश आयात की तुलना में निर्यात अधिक करते हैं, उन्हें व्यापार के लिये विदेशी मुद्राएँ संचित करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है, जिससे स्थानीय मुद्राओं का उपयोग कठिन हो जाता है।
- तरलता संबंधी मुद्दे: अमेरिकी डॉलर का व्यापक रूप से उपयोग (तरलता का अधिक होना) किया जाता है। वैकल्पिक मुद्राएँ उतनी तरलता प्रदान नहीं कर सकती हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करना अधिक कठिन हो जाएगा।
- अस्थिरता और विनिमय दर जोखिम: डॉलर से दूर जाने के दौरान, देशों को विनिमय दर में अस्थिरता का अनुभव हो सकता है।
- यह बात खासतौर पर उन देशों के लिये है, जिनके वित्तीय बाज़ार पूर्णत: स्थापित नही हैं। ऐसी अस्थिरता वाणिज्य, निवेश और पूंजी प्रवाह को बाधित कर सकती है, जिससे आर्थिक अनिश्चितता और बढ़ सकती है।
BRICS आयात पर 100% अमेरिकी टैरिफ के संभावित प्रभाव क्या हैं?
- वैश्विक व्यापार पर प्रभाव: ऐसे टैरिफ BRICS देशों को इंट्रा-ब्लॉक व्यापार को बढ़ाने के लिये मज़बूर कर सकते हैं, जिससे डी-डॉलराइज़ेशन में तेज़ी आएगी।
- गैर-अमेरिकी बाज़ारों में आयात विविधीकरण से वैश्विक व्यापार प्रणालियों पर अमेरिकी प्रभाव कम हो सकता है।
- इससे ऑस्ट्रेलियाई डॉलर, चीनी युआन (रेनमिनबी) और अन्य गैर-परंपरागत आरक्षित मुद्राओं में वृद्धि हो सकती है, जो बहुध्रुवीय वैश्विक वित्तीय प्रणाली की ओर क्रमिक कदम को दर्शाता है।
- इस परिवर्तन से अमेरिकी ‘फाइनेंशियल लीवरेज’ कम हो जाता है, लेकिन उभरती मुद्राओं के बीच प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि हो सकती है।
- इससे ऑस्ट्रेलियाई डॉलर, चीनी युआन (रेनमिनबी) और अन्य गैर-परंपरागत आरक्षित मुद्राओं में वृद्धि हो सकती है, जो बहुध्रुवीय वैश्विक वित्तीय प्रणाली की ओर क्रमिक कदम को दर्शाता है।
- अमेरिका पर प्रभाव: BRICS देशों से आयात पर 100% टैरिफ लगाने से आयात की लागत में वृद्धि होने के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचेगा।
- अमेरिका में व्यापार मार्गों में बदलाव देखने को मिल सकता है, जिससे आयात संभवतः तीसरे पक्ष के देशों में स्थानांतरित हो सकता है। इससे घरेलू विनिर्माण में वृद्धि किये बिना अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिये लागत बढ़ सकती है।
- BRICS देश अमेरिकी वस्तुओं पर अपने टैरिफ लगाकर जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं, जिससे व्यापार तनाव मेमे वृद्धि होगी तथा वैश्विक व्यापार गतिशीलता प्रभावित होगी।
- अमेरिकी आर्थिक प्रभुत्व व्यापार में डॉलर की केंद्रीय भूमिका से उत्पन्न हुआ है। वैकल्पिक मुद्राओं को अपनाने से इसका वित्तीय प्रभाव कम हो सकता है, जिससे अमेरिका को विविधतापूर्ण वैश्विक प्रणाली को अपनाने के लिये मज़बूर होना पड़ सकता है।
क्षेत्रीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने हेतु भारत ने कौन-सी पहल की हैं?
- रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण: वर्ष 2022 में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये, विशेष रूप से रूस जैसे देशों के साथ भारतीय रुपए में चालान और भुगतान की अनुमति प्रदान की गई।
- यह कदम अमेरिकी प्रतिबंधों के जवाब में उठाया गया था, जिसका उद्देश्य डॉलर पर निर्भरता कम करना था।
- UPI जैसी डिजिटल भुगतान प्रणालियों का उद्देश्य रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना है।
- द्विपक्षीय व्यापार समझौते: भारत सक्रिय रूप से द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर संवाद कर रहा है, जिसमें स्थानीय मुद्राओं के उपयोग के प्रावधान शामिल हैं, जैसे कि भारत-यूएई स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली।
- यह रणनीतिक कदम आर्थिक स्वायत्तता बढ़ाने और अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है।
- विदेशी मुद्रा भंडार: RBI यूरो और येन जैसी अन्य प्रमुख मुद्राओं को शामिल करके अपने विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता ला रहा है, तथा अमेरिकी डॉलर के हिस्से को कम कर रहा है।
आगे की राह:
- भारत की संतुलित कूटनीति: भारत ने अमेरिकी डॉलर को कमज़ोर न करने का निर्णय लिया है। हालाँकि भारत को सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) को अपनाने के साथ यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) के अंतर्राष्ट्रीयकरण जैसी पहलों को बढ़ावा देना जारी रखना चाहिये।
- इसके अलावा भारत को BRICS देशों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वित्तीय सुधार उसके दीर्घकालिक आर्थिक हितों के अनुरूप हों। इसके साथ ही BRICS देशों में भारतीय निर्यात को प्रोत्साहित करके व्यापार असंतुलन को दूर करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
- डिजिटल भुगतान समाधान: मुद्रा मांग को कुशलतापूर्वक संतुलित करने, लागत कम करने और स्थानीय मुद्रा व्यापार की सफलता सुनिश्चित करने के लिये एक विश्वसनीय, डिजिटल भुगतान प्रणाली आवश्यक है।
- वृद्धिशील प्रगति: जटिलताओं को देखते हुए, क्रमिक दृष्टिकोण सबसे अधिक व्यवहार्य प्रतीत होता है। देशों को स्थानीय मुद्राओं में कुछ व्यापार करके शुरुआत करनी चाहिये, धीरे-धीरे सिस्टम का विस्तार करने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे और विश्वास का निर्माण करना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: वैश्विक वित्त को नया आकार प्रदान करने में BRICS की भूमिका पर ध्यान केंद्रित करते हुए 'डी-डॉलराइज़ेशन' के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। भारत के लिये चुनौतियों और अवसरों का मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015) (a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना उत्तर: (c) प्रश्न. BRICS के रूप में ज्ञात देशों के समूह के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |