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भारतीय राजनीति

बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा देने की मांग

  • 13 Jun 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष श्रेणी का दर्ज़ा, बिहार जाति आधारित सर्वेक्षण 2022, योजना आयोग, अनुच्छेद 370,  केंद्र प्रायोजित योजना।

मेन्स के लिये:

विशेष राज्य का दर्ज़ा, SCS की चुनौतियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से राज्य को विशेष श्रेणी का दर्ज़ा दिये जाने की लंबे समय से चली आ रही मांग को दोहराया, जिससे राज्य को केंद्र से मिलने वाले कर राजस्व में वृद्धि होगी।

बिहार विशेष राज्य का दर्ज़ा (SCS) मांग क्यों रहा है?

  • ऐतिहासिक एवं संरचनात्मक चुनौतियाँ: बिहार को महत्त्वपूर्ण आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें औद्योगिक विकास का अभाव एवं सीमित निवेश के अवसर शामिल हैं।
    • राज्य के विभाजन के परिणामस्वरूप उद्योग झारखंड में स्थानांतरित हो गए, जिससे बिहार में रोज़गार एवं आर्थिक विकास की समस्याओं में वृद्धि हुई है।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: राज्य उत्तरी क्षेत्र में बाढ़ तथा दक्षिणी भाग में गंभीर सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहा है।
    • इन आपदाओं की पुनरावृत्ति से कृषि गतिविधियाँ बाधित होती हैं, विशेषकर सिंचाई सुविधाओं के मामले में और साथ जल आपूर्ति भी अपर्याप्त रहती है जिससे आजीविका एवं आर्थिक स्थिरता प्रभावित होती है।
  • बुनियादी ढाँचे का अभाव: बिहार का अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा राज्य के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न करता है, जिसमें अव्यवस्थित सड़क नेटवर्क, सीमित स्वास्थ्य सेवा पहुँच एवं शैक्षणिक सुविधाओं का अभाव आदि चुनौतियाँ शामिल हैं।
  • निर्धनता तथा सामाजिक विकास: बिहार में निर्धनता दर उच्च है तथा यहाँ बड़ी संख्या में परिवार गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।
    • नीति आयोग के एक हालिया सर्वेक्षण से जानकारी प्राप्त होती है कि बिहार, निर्धन राज्यों की श्रेणी में शीर्ष स्थान पर है, जहाँ वर्ष 2022-23 में बहुआयामी निर्धनता 26.59% होंगे, जो राष्ट्रीय औसत 11.28% की तुलना में अत्यधिक है।
    • बिहार की प्रतिव्यक्ति GDP वर्ष 2022-23 के लिये राष्ट्रीय औसत 1,69,496 रुपए की तुलना में मात्र 60,000 रुपए है।
    • राज्य विभिन्न मानव विकास सूचकांकों में भी काफी पीछे है।
  • विकास के लिये वित्तपोषण: SCS की मांग करना दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिये केंद्र सरकार से पर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त करने का एक साधन भी है।
    • बिहार सरकार ने पिछले वर्ष अनुमान लगाया था कि विशेष श्रेणी का दर्ज़ा दिये जाने से राज्य को पाँच वर्षों में 94 लाख करोड़ रुपए गरीब परिवारों के कल्याण पर खर्च करने के लिये अतिरिक्त 2.5 लाख करोड़ रुपए प्राप्त होंगे।

बिहार को SCS मिलने के विरुद्ध क्या तर्क हैं?

  • हालाँकि, कुछ आलोचकों का तर्क है कि बढ़ी हुई धनराशि खराब नीतियों को प्रोत्साहित कर सकती है और अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों को दंडित कर सकती है, क्योंकि धनराशि को गरीब राज्यों में भेज दिया जाएगा।
  • बिहार में ऐतिहासिक रूप से खराब कानून व्यवस्था विकास और निवेश के लिये एक बड़ी बाधा रही है।
  • 14वें वित्त आयोग के अनुसार, केंद्र पहले से ही 32% करों के बजाय 42% कर राज्यों को हस्तांतरित कर रहा है। केंद्र के कोष पर कोई भी अतिरिक्त दबाव संभावित रूप से अन्य राष्ट्रीय योजनाओं और कल्याणकारी उपायों को प्रभावित करेगा।
  • बिहार भारत में सबसे तेज़ी से विकास करने वाले राज्यों में से एक है। 2022-23 में बिहार की सकल घरेलू उत्पाद में 10.6% की वृद्धि हुई, जो राष्ट्रीय औसत 7.2% से अधिक है।
    • पिछले वर्ष वास्तविक रूप से प्रतिव्यक्ति आय में 9.4% की वृद्धि हुई।
  • अधिक धनराशि से अल्पकालिक राहत मिल सकती है, लेकिन दीर्घकालिक विकास शासन और निवेश के माहौल में सुधार पर निर्भर करता है।
  • हालाँकि बिहार SCS के अनुदान के लिये अधिकांश मानदंडों को पूर्ण करता है, लेकिन यह पहाड़ी इलाकों और भौगोलिक रूप से कठिन क्षेत्रों की आवश्यकता को पूरा नहीं करता है, जिसे बुनियादी ढाँचे के विकास में कठिनाई का प्राथमिक कारण माना जाता है।
  • केंद्र सरकार ने 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, जिसमें केंद्र को सिफारिश की गई थी कि किसी भी राज्य को SCS नहीं दिया जाना चाहिये, बार-बार मांगों को अस्वीकार कर दिया है।

अन्य राज्य जो SCS की मांग कर रहे हैं:

  • 2014 में अपने विभाजन के बाद से आंध्र प्रदेश हैदराबाद के तेलंगाना में जाने से होने वाली राजस्व हानि के आधार पर विशेष राज्य का दर्ज़ा देने की मांग कर रहा है।
  • इसके अलावा ओडिशा भी चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं और बड़ी जनजातीय आबादी (लगभग 22%) के प्रति अपनी संवेदनशीलता को उजागर करते हुए SCS का अनुरोध कर रहा है।

विशेष श्रेणी का दर्ज़ा क्या है?

  • परिचय:
    • विशेष श्रेणी का दर्ज़ा (SCS) केंद्र द्वारा भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों के विकास में सहायता के लिये प्रदान किया जाने वाला एक वर्गीकरण है।
    • संविधान SCS के लिये प्रावधान नहीं करता है और यह वर्गीकरण बाद में 1969 में पाँचवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
    • प्रथमतः वर्ष 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को यह दर्ज़ा प्रदान किया गया था। तेलंगाना भारत का नवीनतम राज्य है जिसे यह दर्ज़ा प्राप्त हुआ है।
    • SCS, विशेष स्थिति से भिन्न है जो कि उन्नत विधायी तथा राजनीतिक अधिकार प्रदान करता है, जबकि SCS केवल आर्थिक एवं वित्तीय पहलुओं से संबंधित है।
      • उदाहरण के लिये अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से पहले जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्ज़ा प्राप्त था।
  • दर्ज़ा प्राप्त करने के मापदंड (गाडगिल सिफारिश पर आधारित):
    • पहाड़ी इलाका
    • कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा
    • पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर सामरिक स्थिति
    • आर्थिक तथा आधारभूत संरचना में पिछड़ापन 
    • राज्य के वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति
  • लाभ:
    • अन्य राज्यों के मामले में 60% या 75% की तुलना में केंद्र प्रायोजित योजना में आवश्यक निधि का 90% विशेष श्रेणी के राज्यों को भुगतान किया जाता है, जबकि शेष निधि राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाती है।
    • वित्तीय वर्ष में अव्ययित निधि व्यपगत नहीं होती है और इसे आगे बढ़ाया जाता है।
    • इन राज्यों को उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क, आयकर एवं निगम कर में महत्त्वपूर्ण रियायतें प्रदान की जाती हैं।
    • केंद्र के सकल बजट का 30% विशेष श्रेणी के राज्यों को प्रदान किया जाता है।
  • चुनौतियाँ:
    • संसाधन आवंटन: SCS प्रदान करने के लिये राज्य को अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान करना आवश्यक है, जो केंद्र सरकार के संसाधनों पर दबाव डाल सकता है।
    • केंद्रीय सहायता पर निर्भरता: SCS प्रदत्त राज्य अमूमन केंद्रीय सहायता पर अत्यधिक निर्भर हो जाते हैं, जिससे आत्मनिर्भर होने और स्वतंत्र आर्थिक विकास रणनीतियों की दिशा में उनके प्रयास हतोत्साहित होते हैं।
    • कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: SCS प्रदान किये जाने के बाद भी, प्रशासनिक अक्षमताओं, भ्रष्टाचार अथवा उचित नियोजन की कमी के कारण निधियों का प्रभावी विधि से उपयोग करने में चुनौतियाँ का सामना करना पड़ सकता है।

आगे की राह:

  • निष्पक्षता एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के क्रम में SCS प्रदान करने के मानदंडों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। 
  • वर्ष 2013 में केंद्र सरकार द्वारा गठित रघुराम राजन समिति ने SCS के बजाय निधियों के हस्तांतरण के संदर्भ में 'बहु-आयामी सूचकांक' पर आधारित एक नई पद्धति का सुझाव दिया, जिसके माध्यम से राज्य के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने पर पुनर्विचार किया जा सकता है। 
  • आत्मनिर्भरता के साथ आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा देने के क्रम में केंद्र सरकार पर राज्यों की निर्भरता को कम करने वाली नीतियों को लागू करना चाहिये। इसके साथ ही राज्यों के राजस्व स्रोत में विविधता लाने पर बल देना चाहिये। 
  • विश्लेषकों का सुझाव है कि सतत् आर्थिक विकास के लिये बिहार में विधि के शासन की आवश्यकता है। 
  • राज्यों को व्यापक विकास योजनाएँ बनाने के क्रम में प्रोत्साहित करने हेतु अन्य कदम उठाए जाने की आवश्यकता है जैसे: 
    • शिक्षा में सुधार: प्रारंभिक बाल्यावस्था विकास (ICDS केंद्र), शिक्षक प्रशिक्षण एवं शिक्षण पद्धति में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने से संबंधित RTE फोरम की सिफारिशों पर ध्यान देने के साथ अधिक संवादात्मक तथा प्रौद्योगिकी आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
    • कौशल विकास एवं रोज़गार सृजन: बिहार के युवाओं के कौशल विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता है। व्यवसायों को आकर्षित करने तथा रोज़गार सृजन हेतु SIPB (सिंगल-विंडो इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ संबंधित कौशल पहलों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: समग्र विकास हेतु बेहतर बुनियादी ढाँचे का होना बहुत आवश्यक है। बाढ़ एवं सूखे से निपटने के लिये बेहतर सिंचाई प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच संपर्क स्थापित करने, निवेश आकर्षित करने तथा कृषि व्यापार को बढ़ावा देने के लिये एक मज़बूत परिवहन नेटवर्क विकसित करना चाहिये।
    • महिला सशक्तीकरण एवं सामाजिक समावेशन: लैंगिक समानता एवं सामाजिक स्तरीकरण के संदर्भ में बिहार विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है। विधियों के बेहतर प्रवर्तन एवं सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं की शिक्षा, कौशल विकास तथा वित्तीय समावेशन पर ध्यान देना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्ज़ा (SCS) देने के क्रम में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। ये चुनौतियाँ देश के राजकोषीय संघवाद एवं विकास उद्देश्यों को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

Q. केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का निर्णयन करने की भारत के सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति किसके अंतर्गत आती है। (2014)

(a) सलाहकार क्षेत्राधिकार
(b) अपीलीय क्षेत्राधिकार
(c) मूल क्षेत्राधिकार
(d) रिट क्षेत्राधिकार

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. क्षेत्रवाद की बढ़ती भावना अलग राज्य की मांग हेतु महत्त्वपूर्ण कारक है। चर्चा कीजिये। (2013)

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