अंतर्राष्ट्रीय संबंध
7वाँ भारत-जर्मनी अंतर-सरकारी परामर्श
- 29 Oct 2024
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारत-जर्मनी अंतर-सरकारी परामर्श, सतत् विकास लक्ष्य, भारत-जर्मन डिजिटल वार्ता, उभरती डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ, डिजिटल कृषि, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS), राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR), न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड, नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य, UNFCCC COP21 पेरिस, भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौता, निवेश संरक्षण समझौता, P-75I पनडुब्बी। मेन्स के लिये:बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत-जर्मनी संबंधों का महत्त्व। |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री और जर्मनी के संघीय चांसलर ने नई दिल्ली में भारत-जर्मनी अंतर-सरकारी परामर्श (7वें IGC) के 7वें दौर की सह-अध्यक्षता की।
- "नवाचार, गतिशीलता और स्थिरता के साथ मिलकर आगे बढ़ना" के आदर्श वाक्य के तहत, इसने प्रौद्योगिकी, नवाचार, जलवायु कार्रवाई तथा रणनीतिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया।
- इससे पहले, जर्मनी ने भारत को एक विशेष दर्जा दिया है, जिससे सैन्य खरीद के लिये त्वरित मंजूरी मिल सकेगी।
भारत-जर्मनी बैठक के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- जर्मनी का "भारत पर ध्यान" दस्तावेज़: इसमें एक खाका प्रस्तुत किया गया है कि किस प्रकार भारत और जर्मनी सहयोग करके "वैश्विक कल्याण के लिये एक शक्ति" बन सकते हैं, जैसे नवाचार तथा प्रौद्योगिकी नेतृत्व, सतत् विकास लक्ष्य आदि पर साझेदारी।
- कुशल भारतीयों के लिये वीज़ा: जर्मनी ने कुशल भारतीय कार्यबल के लिये वीज़ा की संख्या 20,000 से बढ़ाकर 90,000 करने का निर्णय लिया है।
- डिजिटल और प्रौद्योगिकी साझेदारी: दोनों देशों ने नवाचार को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेट शासन, तकनीकी विनियमन, अर्थव्यवस्था के डिजिटल परिवर्तन, उभरती डिजिटल प्रौद्योगिकियों, डिजिटल कृषि, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) के लिये एक कार्य योजना को अंतिम रूप दिया।
- महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियाँ: दोनों ने महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों, नवाचार और कौशल विकास में नवाचार एवं प्रौद्योगिकी साझेदारी रोडमैप में रेखांकित प्राथमिकताओं की पुष्टि की।
- आपदा न्यूनीकरण: आपदा न्यूनीकरण और संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ाने के लिये भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) तथा राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
- अंतरिक्ष सहयोग: न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड तथा जर्मनी स्थित रिमोट सेंसिंग कंपनी (GAF AG ) ने ओशनसैट - 3 और रीसैट - 1A (RISAT- 1A) उपग्रहों से डेटा के प्रसंस्करण के लिये जर्मनी के न्यूस्ट्रेलिट्ज़ में अंतर्राष्ट्रीय ग्राउंड स्टेशन को अपग्रेड करने पर सहमति व्यक्त की।
- हरित एवं सतत् भविष्य: दोनों पक्षों ने नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) पर संयुक्त रूप से कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिसमें विकासशील देशों के लिये प्रति वर्ष कम से कम 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की व्यवस्था करने का आह्वान किया गया है।
- दोनों पक्षों ने भारत-जर्मनी ग्रीन हाइड्रोजन रोडमैप का उद्घाटन किया, जो भारत में सतत् शहरी गतिशीलता को बढ़ावा देता है।
- भारत-यूरोपीय संघ सामरिक साझेदारी: दोनों ने भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद का समर्थन किया तथा भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे सहित कनेक्टिविटी पहलों को आगे बढ़ाने के प्रयासों का समन्वय किया।
- ट्रैक 1.5 संवाद: अभिकर्त्ताओं ने आपसी दृष्टिकोण की गहन समझ को बढ़ावा देने के लिये थिंक टैंकों और विशेषज्ञों को शामिल करते हुए भारत-जर्मनी ट्रैक 1.5 संवाद के महत्त्व पर बल दिया।
- त्रिकोणीय विकास सहयोग (TDC): अभिकर्त्ताओं ने कैमरून, घाना और मलावी में सफल पायलट परियोजनाओं को आगे बढ़ाने तथा इथियोपिया व मेडागास्कर में कदन्न (Millets) से संबंधित नई परियोजनाएँ शुरू करने पर सहमति व्यक्त की।
- TDC में विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिये दो या दो से अधिक विकासशील देशों के बीच साझेदारी शामिल होती है, जिसे विकसित देश(देशों)/या बहुपक्षीय संगठन(संगठनों) द्वारा समर्थन प्राप्त होता है।
- पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (MLAT): भारत और जर्मनी ने आपराधिक मामलों में MLAT पर हस्ताक्षर किये, जिसका उद्देश्य कानूनी मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा देना है, जिससे भारत तथा जर्मनी की सुरक्षा चुनौतियों का संयुक्त रूप से समाधान करने की क्षमता में वृद्धि होगी।
जर्मनी और भारत एक दूसरे के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
- व्यापारिक संबंध: जर्मनी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
- वित्त वर्ष 2020-21 में द्विपक्षीय व्यापार 21.76 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा, जो मज़बूत व्यापार संबंधों को दर्शाता है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): अप्रैल 2000 से सितंबर 2021 तक 13 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक के निवेश के साथ जर्मनी भारत के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का सातवाँ सबसे बड़ा स्रोत है।
- चूँकि जर्मनी चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करना चाहता है, इसलिये भारत एशिया में व्यापार संबंधों में विविधता लाने के लिये एक प्रमुख साझेदार के रूप में सामने आ रहा है।
- नवीन सहयोग: जर्मन निवेश में ऑटोमोटिव प्रौद्योगिकी और विनिर्माण संयंत्र शामिल हैं, जो कनेक्टेड एवं स्वायत्त प्रौद्योगिकियों जैसे उन्नत क्षेत्रों में सहयोग पर ज़ोर देते हैं।
- ऐसी साझेदारियाँ भारत में नवाचार और कौशल विकास को बढ़ावा देती हैं।
- बाज़ार में प्रवेश में सहायता: "मेक इन इंडिया मिटेलस्टैंड" कार्यक्रम जैसी पहल जर्मन SME को भारतीय बाज़ार में प्रवेश करने में सहायता करती है, जिससे आपसी विकास को बढ़ावा मिलता है।
- वित्तीय सहायता: मुख्य रूप से रियायती ऋण और तकनीकी सहायता के माध्यम से जर्मनी की सहायता, भारत की बुनियादी अवसरंचना एवं सतत् विकास प्रयासों को मज़बूत करती है।
- मुक्त व्यापार समझौते: दोनों देश भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते और निवेश संरक्षण समझौते की दिशा में आगे बढ़ने के लिये प्रतिबद्ध हैं, जिससे व्यापार एवं निवेश प्रवाह में और वृद्धि हो सकती है।
- जर्मनी में भारतीय निवेश: जर्मनी में 213 से अधिक भारतीय कंपनियाँ मुख्य रूप से आईटी और ऑटोमोटिव क्षेत्रों में कार्य करती हैं, जो बढ़ती द्विपक्षीय आर्थिक निर्भरता को दर्शाता है।
- साझा सुरक्षा चिंताएँ: दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन द्वारा उत्पन्न खतरों को पहचानते हैं।
- भारत सक्रिय रूप से हथियारों के आयात पर अपनी निर्भरता कम करने का प्रयास कर रहा है, जिसमें जर्मनी हथियारों के सह-उत्पादन और रक्षा में नवाचार के माध्यम से सहायता कर रहा है, जैसे कि P-75I पनडुब्बी का प्रस्तावित संयुक्त विकास।
- जलवायु पर संयुक्त पहल: साझेदारी की विशेषता जलवायु परिवर्तन पर सहयोग है, विशेष रूप से हरित और सतत विकास के एजेंडे के माध्यम से, जिसके परिणामस्वरूप हरित हाइड्रोजन और ऊर्जा सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने वाले कई समझौते हुए हैं।
- जन संपर्क: युवा शिक्षित भारतीय रोज़गार की तलाश कर रहे हैं, जबकि जर्मनी में कुशल श्रमिकों की उच्च मांग है, जिससे दोनों देशों और उनके युवाओं के लिये संभावित 'जीत-जीत' परिदृश्य उत्पन्न हो रहा है।
भारत-जर्मनी संबंधों में क्या चुनौतियाँ हैं?
- साझेदारी में गहराई का अभाव: यद्यपि भारत और जर्मनी वर्ष 2000 से ही सामरिक साझेदार रहे हैं, लेकिन इनके बीच संबंधों को अक्सर निराशाजनक बताया जाता रहा है।
- भारत-फ्राँस संबंधों में गर्मजोशी की तुलना में भारत और जर्मनी की साझेदारी ने जुड़ाव एवं सहयोग का समान स्तर हासिल नहीं किया है।
- भारत और जर्मनी के बीच एक स्वतंत्र द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) की अनुपस्थिति निवेशकों के विश्वास और सुरक्षा को सीमित करती है।
- इससे गहन आर्थिक सहभागिता में बाधा उत्पन्न होती है, क्योंकि जर्मनी निवेश से संबंधित चिंताओं के समाधान के लिये भारत के साथ यूरोपीय संघ के BTIA पर निर्भर है।
- लोकतांत्रिक मूल्यों पर कटाक्ष: भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के विषय में चिंता व्यक्त करने की जर्मनी की प्रवृत्ति ने संघर्ष उत्पन्न कर दिया है।
- भारत में राजनीतिक गिरफ्तारियों पर जर्मनी की टिप्पणी जैसी घटनाओं से नई दिल्ली में नाराजगी उत्पन्न हुई।
- रूस के प्रति मतभेद: यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करने में भारत की अनिच्छा के कारण जर्मनी में निराशा उत्पन्न हुई है, जिसके परिणामस्वरूप एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में जर्मनी के प्रति भारत की धारणा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- सीमित रक्षा सहयोग: भारत के साथ रक्षा सहयोग में शामिल होने के लिये जर्मनी की ऐतिहासिक अनिच्छा, गहन सहयोग में बाधा रही है।
- सार्वजनिक सहभागिता और जागरूकता: जर्मनी में भारत की तुलना में चीन के प्रति अधिक रुचि रही है, जो वित्त पोषण आवंटन और मीडिया कवरेज में परिलक्षित होती है।
- पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण: ग्लोबल साउथ के संबंध में नकारात्मक भाषा वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति और योगदान के प्रति सराहना की कमी को दर्शाती है।
- इस तरह के दृष्टिकोण आपसी सम्मान और सहयोग को कमज़ोर कर सकते हैं।
आगे की राह
- लोकतांत्रिक सहभागिता को बढ़ावा देना: सतत् राजनीतिक संवाद को बढ़ावा देने के लिये नियमित उच्च-स्तरीय बैठकों का कार्यक्रम स्थापित करना।
- ट्रैक 1.5 संवाद का विस्तार करके इसमें व्यापारिक अभिकर्त्ताओं, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों सहित अधिक हितधारकों को शामिल करना।
- रक्षा संबंधों को बढ़ावा देना: सह-उत्पादन समझौतों, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त सैन्य अभ्यासों सहित रक्षा सहयोग के लिये एक संरचित ढाँचा विकसित करना।
- संप्रभुता का सम्मान: बाहरी आलोचना के कारण उत्पन्न टकराव को रोकने के लिये भारत के आंतरिक मामलों में उसकी संप्रभुता को स्वीकार करना और उसका सम्मान करना।
- जर्मनी चर्चाओं में अधिक सहयोगात्मक रुख अपना सकता है तथा भारत के संदर्भ को समझते हुए उसकी चिंताओं का समाधान कर सकता है।
- वैश्विक सहयोग: स्वास्थ्य, सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों पर मिलकर कार्य करना तथा ज़िम्मेदार वैश्विक शक्तियों के रूप में अपनी भूमिका को सुदृढ़ करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: विकसित वैश्विक भू-राजनीति के संदर्भ में भारत और जर्मनी के बीच रणनीतिक साझेदारी का मूल्यांकन कीजिये। |
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