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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 31 May, 2024
  • 22 min read
प्रारंभिक परीक्षा

सिम्पैट्रिक स्पीशीएशन

स्रोत: आई.आई.टी. बॉम्बे

चर्चा में क्यों? 

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (Indian Institute of Technology Bombay- IITB) के एक हालिया अध्ययन ने सिम्पैट्रिक स्पीशीएशन की क्रियाविधि पर प्रकाश डाला है तथा इस पारंपरिक दृष्टिकोण को चुनौती दी है कि नई प्रजातियां तभी विकसित हो सकती हैं, जब आबादी भौगोलिक बाधाओं से अलग-थलग हो (इस प्रक्रिया को एलोपैट्रिक स्पीशीएशन कहा जाता है)।

सिम्पैट्रिक स्पीशीएशन क्या है?

  • परिभाषा: स्पीशीएशन (प्रजातिकरण) तब होता है जब किसी प्रजाति के भीतर एक समूह अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों से अलग होकर अपनी विशिष्ट विशेषताओं का विकास करता है।
    • सिम्पैट्रिक स्पीशीएशन तब होता है जब एक ही भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हुए एक ही पूर्वज प्रजाति (Ancestral species) से एक अन्य नई प्रजाति विकसित होती है।
  • एलोपैट्रिक स्पीशीएशन: परंपरागत रूप से यह माना जाता था कि प्रजातिकरण मुख्य रूप से एलोपैट्रिक स्पीशीएशन के माध्यम द्वारा होता है, यह तब होता है जब एक प्रजाति भौगोलिक बाधाओं के कारण दो अलग-अलग समूहों में विभाजित हो जाती है, जिससे उनके अद्वितीय निवास स्थान या आनुवंशिक विशेषताओं के आधार पर विभिन्न विकास होते हैं।
    • उदाहरण: जब एरिज़ोना में ग्रैंड कैनियन (Grand Canyon) का निर्माण हुआ, तो इसने गिलहरियों और अन्य छोटे स्तनधारियों की आबादी को अलग कर दिया, जिससे एलोपैट्रिक स्पीशीएशन हुआ।
      • परिणामस्वरूप, अब घाटी के उत्तरी और दक्षिणी किनारों पर गिलहरी की दो अलग-अलग प्रजातियाँ निवास करती हैं।
      • इसके विपरीत, पक्षी और अन्य प्रजातियाँ घाटी की बाधाओं से निपटने में सक्षम थीं तथा अलग-अलग आबादियों में विभाजित हुए बिना अंतर-प्रजनन जारी रखने में सक्षम थीं।

स्पीशीएशन के अन्य प्रकार:

  • पेरिपैट्रिक स्पीशीएशन: ये तब होता है जब छोटे समूह बड़े समूह से अलग होकर एक नई प्रजाति का निर्माण करते हैं, जो कि अंतर-प्रजनन को नियंत्रित करने वाली भौतिक बाधाओं के कारण होता है।
    • एलोपैट्रिक प्रजाति से मुख्य अंतर यह है कि पेरिपेट्रिक प्रजाति में, एक समूह दूसरे की तुलना में बहुत छोटा होता है। छोटे समूह के अनोखे लक्षण भविष्य की पीढ़ियों में सामान्य  हो जाते हैं, जो इसे दूसरों से अलग करते हैं।
  • पैरापैट्रिक स्पीशीएशन: यह तब होता है जब एक प्रजाति एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में फैली हुई होती है और व्यक्ति केवल अपने क्षेत्र में रहने वालों के साथ ही शारीरिक संबंध स्थापित करते हैं।
    • पैरापैट्रिक स्पीशीएशन में विभिन्न निवास स्थान विभिन्न प्रजातियों के विकास को प्रभावित करते हैं। ऐसा तब हो सकता है जब पर्यावरण का कोई हिस्सा प्रदूषित हो, जिससे अनोखी प्रजातियाँ उत्पन्न होती हैं, जो भिन्न-भिन्न वातावरणों में जीवित रहने के लिये अनुकूल होती हैं।

अध्ययन के प्रमुख बिंदु हैं?

  • अध्ययन में तीन प्रमुख कारकों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जैसे विघटनकारी चयन (जहाँ चरम लक्षणों को प्राथमिकता दी जाती है), यौन चयन (विशिष्ट लक्षणों के आधार पर साथी का चयन) और आनुवंशिक संरचना (जीन लक्षणों को कैसे प्रभावित करते हैं)। शोधकर्त्ताओं ने इन प्रक्रियाओं को समझने के लिये पक्षी आबादी का अनुकरण किया।
  • विघटनकारी चयन: पर्यावरण में संसाधनों का वितरण असमान होने के कारण अधिक विशेषताओं वाले व्यक्तियों की योग्यता मध्यवर्ती विशेषताओं वाले व्यक्तियों की तुलना में अधिक होती है।
    • उदाहरण: छोटी चोंच वाले पक्षी नट्स (Nuts) जैसे खाद्य को भोजन के रूप उपयोग करने में  अधिक कुशल थे, जबकि लंबी चोंच वाले पक्षी फूलों के रस को भोजन के रूप में उपयोग करने में अधिक कुशल थे।
    • शोधकर्त्ताओं ने पाया कि पर्यावरणीय संसाधनों में विविधता के आधार पर चरम लक्षणों को वरीयता देने वाला विघटनकारी चयन, भौगोलिक अलगाव के बिना भी जनसंख्या के भीतर "विभाजन" उत्पन्न कर सकता है।
  • लैंगिक चयन: पारंपरिक धारणा के विपरीत, अध्ययन से पता चलता है कि संसाधन-प्रासंगिक लक्षणों (जैसे, चोंच का आकार) के पक्ष में यौन चयन, पंखों के रंग जैसे मनमाने लक्षणों को नहीं, बल्कि सहानुभूतिपूर्ण प्रजातिकरण को बढ़ावा देता है।
    • स्वेच्छित गुण-आधारित लैंगिक चयन, प्रजाति-उद्भव चयन को जन्म नहीं देता है। अध्ययन में लैंगिक चयन के कारण संभावित रूप से संतान की स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया गया है।
  • आनुवंशिक संरचना: अध्ययन में पाया गया कि आनुवंशिक संरचना सिम्पैट्रिक प्रजाति निर्माण की में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कमज़ोर विघटनकारी चयन (Weak Disruptive Selection) के साथ भी यदि आनुवंशिक संरचना विशेषता परिवर्तन (जैसे, चोंच का आकार) की अनुमति देती है, जिससे नई प्रजातियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • अध्ययन में पाया गया कि आनुवंशिक संरचना सिम्पैट्रिक प्रजाति निर्माण की संभावना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कमजोर विघटनकारी चयन के साथ भी, यदि आनुवंशिक संरचना विशेषता परिवर्तन (जैसे, चोंच का आकार) की अनुमति देती है, तो नई प्रजातियाँ उभर सकती हैं।

Sympatric_Speciation


प्रारंभिक परीक्षा

मोनोसोडियम ग्लूटामेट का उपयोग करके पुनः संयोजक प्रोटीन का उत्पादन

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science- IISc), बंगलूरू के शोधकर्त्ताओं ने मोनोसोडियम ग्लूटामेट (Monosodium Glutamate- MSG) का उपयोग करके पुनः संयोजक प्रोटीन (Recombinant Proteins) का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है।

  • यह प्रगति वैक्सीन एंटीजन, इंसुलिन और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी जैसे आवश्यक पदार्थों के उत्पादन के लिये आवश्यक है।

पुनः संयोजक प्रोटीन क्या हैं?

  • परिचय: 
    • पुनः संयोजक प्रोटीन वे प्रोटीन होते हैं जिन्हें प्रयोगशाला में जीवाणु, विषाणु या स्तनधारी कोशिकाओं में प्रोटीन के लिये कोडिंग जीन डालकर तैयार किया जाता है।
  • उत्पादन: 
    • आमतौर पर, इन प्रोटीनों का उत्पादन बड़े बायो रिएक्टरों में एक विशिष्ट यीस्ट की कोशिकाओं का उपयोग करके किया जाता है, जिसमें एक विशेष प्रमोटर होता है, जिसे अल्कोहल ऑक्सीडेज़ (Alcohol Oxidase- AOX) प्रवर्तक (Promoter) कहा जाता है।
    • AOX प्रमोटर को मेथनॉल द्वारा सक्रिय करके बड़ी मात्रा में पुनः संयोजक प्रोटीन का उत्पादन किया जा सकता है।
      • इस प्रक्रिया में लक्ष्य जीन को AOX प्रमोटर के निकट लाया जाता है, यीस्ट को ग्लूकोज़ या ग्लिसरॉल के साथ मिश्रित किया जाता है और फिर प्रोटीन संश्लेषण शुरू करने के लिये मेथनॉल मिलाया जाता है।
  • मेथनॉल से जुड़े जोखिम: 
    • यह अत्यधिक ज्वलनशील और खतरनाक है, जिसके लिये कड़े सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है। यह हाइड्रोजन पेरोक्साइड जैसे हानिकारक उपोत्पाद भी उत्पन्न कर सकता है, जो यीस्ट कोशिकाओं में ऑक्सीडेटिव तनाव उत्पन्न कर सकता है या पुनः संयोजक प्रोटीन को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • मोनोसोडियम ग्लूटामेट (MSG)- एक सुरक्षित विकल्प:
    • MSG, यीस्ट जीनोम में एक भिन्न प्रमोटर को सक्रिय कर सकता है, जो फॉस्फोइनोलपाइरूवेट कार्बोक्सीकाइनेज़ (phosphoenolpyruvate carboxykinase- PEPCK) नामक एंज़ाइम के लिये कोड के रूप में कार्य करता है, जिससे मेथनॉल-प्रेरित प्रक्रिया के समान प्रोटीन उत्पादन होता है तथा इससे कोई जोखिम नहीं होता।
    • MSG पारंपरिक मेथनॉल-प्रेरित विधि की तुलना में अधिक सुरक्षित और पर्यावरण की दृष्टि से अधिक अनुकूल है। दूध, अंडे, शिशु आहार पूरक, न्यूट्रास्यूटिकल्स एवं औषधीय यौगिकों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण प्रोटीन का बायोटेक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है।

मेथनॉल:

  • यह सबसे सरल अल्कोहल है (जिसे वुड अल्कोहल या मिथाइल अल्कोहल भी कहा जाता है) जिसका रासायनिक सूत्र CH3OH है। यह रंगहीन, अस्थिर तरल के रूप में दिखाई देता है जिसमें हल्की मीठी तीखी गंध होती है और यह जल के साथ पूरी रूप से विलेय है।
    • मेथनॉल ज्वलनशील, हल्का और ज़हरीला होता है तथा इसके सेवन से व्यक्ति को अंधापन हो सकता है।
  • मेथनॉल को सर्वप्रथम रॉबर्ट बॉयल द्वारा पृथक किया गया था और अब इसे उत्प्रेरक की उपस्थिति में कार्बन मोनोऑक्साइड गैस तथा हाइड्रोजन के प्रत्यक्ष संयोजन से तैयार किया जाता है।
    • इसका उपयोग आमतौर पर प्रयोगशाला में विलायक के रूप में और इथेनॉल के निर्माण में विकृतीकरण योजक के रूप में किया जाता है।
  • मेथनॉल के विभिन्न उपयोग हैं, जिनमें पॉलिमर, हाइड्रोकार्बन का उत्पादन तथा आंतरिक दहन इंजन के लिये ईंधन के रूप में उपयोग करना शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: प्राय: समाचारों में आने वाला Cas9 प्रोटीन क्या है? (2019)

(a) लक्ष्य-साधित जीन संपादन (टारगेटेड जीन एडिटिंग) में प्रयुक्त आण्विक कैंची
(b) रोगियों में रोगजनकों की ठीक से पहचान करने के लिये प्रयुक्त जैव संवेदक
(c) एक जीन जो पादपों को पीड़क-प्रतिरोधी बनाता है
(d) आनुवंशिक रूप से रूपांतरित फसलों में संश्लेषित होने वाला एक शाकनाशी पदार्थ

उत्तर: (a)


रैपिड फायर

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने मुस्लिमों के लिये ओबीसी कोटा रद्द किया

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत मुसलमानों सहित कई समुदायों को आरक्षण प्रदान करने वाले पश्चिम बंगाल सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है। 

  • वर्ष 2013 में पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के अतिरिक्त) (रिक्तियों और पदों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 को अधिसूचित किया गया था, जिसके तहत 77 समुदायों (75 मुस्लिम समुदायों सहित) को अधिनियम की अनुसूची I में शामिल किया गया था।
  • कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने पाया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य सरकार द्वारा आरक्षण प्रदान करने के लिये धर्म “एकमात्र” आधार रहा है, जो संविधान के अनुच्छेद 16 व पूर्व में न्यायालय द्वारा दिये गए आदेशों के तहत निषिद्ध है।
  • न्यायालय ने विशेष रूप से इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) के ऐतिहासिक निर्णय का हवाला दिया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने स्थापित किया था कि आरक्षण के प्रयोजनों के लिये ओबीसी श्रेणियों की पहचान और पदनाम केवल धार्मिक संबद्धता के आधार पर नहीं हो सकता।
  • अन्य राज्यों में भी समान धर्म-आधारित आरक्षण:
    • केरल: अपने 30% ओबीसी कोटे के अंतर्गत 8% मुस्लिम कोटा प्रदान करता है।
    • तमिलनाडु और बिहार: अपने ओबीसी कोटे में मुस्लिम जाति समूहों को भी शामिल करते हैं।
    • कर्नाटक: 32% ओबीसी कोटे के अंतर्गत मुसलमानों के लिये 4% उप-कोटा था।
    • आंध्र प्रदेश: पिछड़े मुस्लिम समुदाय को 5% आरक्षण कोटा प्रदान करता है।

और पढ़ें: आंध्र प्रदेश में मुसलमानों के लिये आरक्षण का मुद्दा


रैपिड फायर

भारत के विकास हेतु ADB की प्रतिबद्धता

स्रोत: इकॉनोमिक्स टाइम्स

एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank- ADB) ने विभिन्न विकास परियोजनाओं और पहलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए वर्ष 2023 में भारत को 2.6 बिलियन अमेरीकी डाॅलर का सॉवरेन ऋण (Sovereign Lending) (दुनिया भर के देशों के लिये वित्तपोषण का महत्त्वपूर्ण स्रोत) देने की प्रतिबद्धता जताई है।

  • वर्ष 2023 में ADB के पोर्टफोलियो ने भारत की प्राथमिकताओं के साथ अपने पोर्टफोलियो को संरेखित किया, जो संरचनात्त्मक परिवर्तन, रोज़गार सृजन, बुनियादी ढाँचे, हरित विकास (नवीकरणीय ऊर्जा), शहरीकरण, उद्योग, विद्युत और जलवायु समुत्थानशीलता एवं समावेशिता पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • भारत के राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम को बढ़ावा देने हेतु अतिरिक्त धनराशि को स्वीकृति दी गई, जिसमें विशाखापत्तनम-चेन्नई औद्योगिक गलियारे के लिये विशेष समर्थन शामिल है।
  • सतत् विकास पर बैंक का ज़ोर सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) को प्राप्त करने और निर्धनता उन्मूलन के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
  • ADB एक बहुपक्षीय विकास बैंक है जिसकी स्थापना वर्ष 1966 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक विकास और सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
    • इसका मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में है और इसके 68 सदस्य हैं। इसका संचालन बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा किया जाता है और इसका वित्तपोषण सदस्यों के योगदान, उधार से प्राप्त आय और ऋण चुकौती के माध्यम से किया जाता है।

और पढ़ें: भारत और एशियाई विकास बैंक ने उत्तराखंड के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किये, हिमाचल प्रदेश को एशियाई विकास बैंक (ADB) ऋण


रैपिड फायर

FMCG उद्योग में भ्रामक पद्धति

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

फास्ट मूविंग कंज़्यूमर गुड्स (Fast Moving Consumer Goods- FMCG) को ऐसे पैकेज-बंद वस्तुओं के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिनकी नियमित रूप से और छोटे अंतरालों पर उपभोग या बिक्री होती है।

  • FMCG कंपनियाँ बिक्री बढ़ाने और मुनाफा बनाए रखने के लिये अक्सर उपभोक्ताओं की कीमत पर विभिन्न भ्रामक रणनीतियाँ अपनाती हैं। इनमें शामिल हैं:
  • शृंकफ्लेशन (Shrinkflation): यह किसी उत्पाद की कीमत कम किये बिना उसके आकार या मात्रा को कम करने की पद्धति है जो अक्सर मुद्रास्फीति के दौरान होती है।
  • मुद्रास्फीतिजनित मंदी (Skimpflation): यह कीमत को स्थिर रखते हुए कम गुणवत्ता वाले कच्चे माल का उपयोग करने या सेवाओं को कम करने की प्रथा है।
  • भ्रामक पैकेजिंग: इसमें कंटेनरों में कम सामान भरकर कीमतें समान रखने की प्रथा है।
  • भ्रामक मूल्य निर्धारण रणनीतियाँ: छूट देने से पूर्व कृत्रिम रूप से कीमतें बढ़ा देना और लोकप्रिय उत्पादों के कम संशोधित संस्करणों को प्रीमियम आइटम के रूप में बेचना।
  • हालाँकि, ये तरीके अवैध नहीं हैं, लेकिन वे उपभोक्ताओं को निराश करती हैं, साथ ही यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 और अन्य नियमों, जो कच्चे माल तथा वज़न की स्पष्ट लेबलिंग को अनिवार्य करते हैं, का सख्ती से पालन किया जाए।

और पढ़ें: शृंकफ्लेशन, भ्रामक खाद्य विज्ञापनों को कम करना


रैपिड फायर

वर्ष 2024 में वैश्विक बेरोज़गारी दर में गिरावट की संभावना

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation- ILO) ने वर्ष 2024 के लिये अपने वैश्विक बेरोज़गारी पूर्वानुमान को संशोधित किया है।

  • यह संशोधन मुख्य रूप से चीन, भारत तथा उच्च आय वाले देशों में इस वर्ष अब तक अपेक्षा से कम बेरोज़गारी दर के कारण किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) को उम्मीद है कि 2024 में वैश्विक बेरोजगारी दर 4.9% होगी, मूल रूप से पूर्वानुमान के बाद कि इस वर्ष बेरोजगारी बढ़कर 5.2% हो जाएगी।
  • समग्र सुधार के बावजूद, श्रम बाज़ारों में असमानताएँ बनी हुई हैं तथा विशेष रूप से निम्न आय वाले देशों में महिलाएँ इससे प्रभावित हैं।
  • रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में 183 मिलियन लोग बेरोज़गार हैं, जबकि बिना नौकरी वाले लेकिन काम करना चाहने वाले लोगों की संख्या 402 मिलियन है।
  • ILO अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा देने के लिये संयुक्त राष्ट्र की एक कार्यकारी एजेंसी है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के एक भाग के रूप में की गई थी, जिसके तहत प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हुआ था और यह 1946 में संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी बन गई।
    • जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित इस संगठन के 187 सदस्य देश हैं (भारत इसका संस्थापक सदस्य है) और यह एक त्रिपक्षीय संगठन के रूप में कार्य करता है, जो सरकारों, नियोक्ताओं तथा श्रमिकों को एक साथ लाती है, ताकि श्रम मानकों को निर्धारित किया जा सके।
    • ILO संयुक्त राष्ट्र विकास समूह का भी सदस्य है, जिसका लक्ष्य सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना है।

और पढ़ें: भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024: ILO


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