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  • 07 Jul 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    “वर्साय की संधि” जिस पर शांति की संधि के रूप में हस्ताक्षर किये गए, ने प्रतिकूल तरीके से एक और महान युद्ध के लिये मंच तैयार किया। परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • शांति के लिये जानी जाने वाली इस संधि की पृष्ठभूमि लिखिये।

    • इसके परिणामों का संक्षिप्त परिचय दीजिये और बताइये कि यह जर्मनी के लिये क्यों कठोर थी।

    • हिटलर व नाजी पार्टी के उदय का विवरण दीजिये।

    • यह संधि द्वितीय विश्वयुद्ध के लिये उत्तरदायी थी, इसके पक्ष में निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    वर्साय की संधि को जून 1919 में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में शांति स्थापना के उद्देश्य से की गयी। यह संधि मित्र राष्ट्रों द्वारा जर्मनी के साथ की गई महत्त्वपूर्ण संधि थी। यह संधि पूर्णरूप से मित्र राष्ट्रों के हितों के संवर्द्धन एवं जर्मन हितों के बलिदान पर आधारित थी।

    प्रमुख बिंदु:

    इस संधि को निम्नलिखित कारणों से ‘शांति के आज्ञा पत्र’ के रूप में देखा जा सकता है-

    • जर्मनी को नि:शस्त्रीकरण हेतु बाध्य किया गया। इस संधि के तहत जर्मन सेना की अधिकतम संख्या 1 लाख तय कर दी गई और जर्मनी के प्रधान सैनिक कार्यालय को समाप्त कर दिया गया।
    • इस संधि में जर्मनी के अधिकार वाले क्षेत्रों को मित्र राष्ट्रों के अधीन करने का प्रावधान किया गया। प्रशांत महासागर क्षेत्र में स्थित द्वीपों, अफ्रीका में स्थित जर्मन उपनिवेशों आदि को मित्र राष्ट्रों के संरक्षण में रखा गया।
    • जर्मनी और उसके सहयोगी देशों को युद्ध शुरू करने का एकमात्र दोषी ठहराया गया।
    • युद्ध में मित्र राष्ट्रों को हुई क्षति की भरपाई करने के लिये जर्मनी को क्षतिपूर्ति का दायित्व सौंपा गया। युद्ध काल में जर्मनी द्वारा फ्रांँस के लोहे एवं कोयले का भरपूर उपयोग किया गया, इसी आधार पर लोहे एवं कोयले की खानों से समृद्ध जर्मनी का सार क्षेत्र आगामी 15 वर्षों के लिये फ्राँस को दे दिया गया।

    वर्साय की संधि: मूल्यांकन

    • आरोपित संधि: इस संधि की शर्तें तैयार करने में जर्मनी की कोई भूमिका नहीं थी, जर्मनी को सिर्फ इस पर हस्ताक्षर करने की भूमिका मिली थी। अत: जर्मनवासी इसे थोपी हुई मानते थे।
    • अपमानजनक प्रावधान: जर्मनी को आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर करते हुए उसके संसाधनों पर दूसरे राष्ट्रों का स्वामित्व स्थापित कर दिया गया। जर्मनी की सैन्य शक्ति को समाप्त प्राय बना दिया गया। किसी स्वाभिमानी राष्ट्र के लिये इन कठोर शर्तों को स्वीकार करना असंभव था।
    • प्रतिशोधात्मक संधि: संधि के प्रावधानों की कठोरता से यह निष्कर्ष निकलता है कि यह संधि शांति स्थापना के उद्देश्य से कहीं अधिक विजेता राष्ट्रों के अपने स्वार्थों की पूर्ति और अपनी पुरानी शत्रुता का प्रतिशोध लेने के उद्देश्य से प्रेरित थी।
    • आत्मनिर्णय के सिद्धांत का पालन नहीं: विल्सन के आत्मनिर्णय के सिद्धांत के अनुसार, एक जाति, एक भाषा और संस्कृति के लोगों को अपना राज्य बनाने की स्वतंत्रता होगी। किंतु, इसका पालन भी जर्मनी के संदर्भ में नहीं किया गया। जर्मन जनता को जर्मनी से पृथक अन्य राष्ट्रों के अधीन रखा गया जिससे जर्मन असंतोष को बढ़ावा मिला।
    • वर्साय की संधि वैचारिक संघर्ष के रूप: वर्साय की संधि में तीन लोगों- क्लिमेंशू, विल्सन और लॉयड जॉर्ज के विचारों का संघर्ष झलकता है।
    • वर्साय की संधि एवं द्वितीय विश्वयुद्ध: इस संधि प्रत्यक्ष रूप से द्वितीय विश्वयुद्ध के लिये ज़िम्मेदार थी। इस संधि का उद्देश्य यूरोप में स्थायी शांति की स्थापना करना था। परंतु इसके मूल में विद्यमान विषाक्त बीज मात्र 20 वर्षों के भीतर ही फूट पड़ा और द्वितीय विश्वयुद्ध के रूप में विश्व के महाविनाश का कारण बना।

    वर्ष 1919 में जर्मनी असहाय था, अत: उसने वर्साय की कठोर संधि को मजबूरी में स्वीकार कर लिया। वर्ष 1935-36 में नि:शस्त्रीकरण संबंधी वर्साय संधि की शर्तों की सभी मर्यादाओं को हिटलर ने भंग कर दिया।

    निष्कर्ष:

    वर्साय संधि की यूरोप में शांति स्थापना व जर्मनी पर नियंत्रण करने में असफल रही क्यूंकि हिटलर के नेतृत्व में जर्मनी का पुनः सैन्यकरण हुआ जो द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बना।

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