प्लैंकटन इन्फ्लेशन एवं वर्टिकल माइग्रेशन
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने पाइरोसिस्टिस नोक्टिलुका (जो एक विशिष्ट बायोल्यूमिनसेंट फाइटोप्लैंकटन प्रजाति है, जो अपने प्रवास के दौरान अपने आकार को बढ़ाने में सक्षम है) के वर्टिकल माइग्रेशन का अध्ययन किया।
- यह प्रजाति अपने मूल आकार (कुछ सौ माइक्रोन) से छह गुना तक हो सकती है, जिससे इसकी उत्प्लावन क्षमता बढ़ती है।
फाइटोप्लैंकटन के वर्टिकल माइग्रेशन से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- वर्टिकल माइग्रेशन: कई प्लवक समुद्र की ठंडी धाराओं एवं गहराइयों से सतह तक आते हैं और फिर वापस चले जाते हैं, जिसे वर्टिकल माइग्रेशन कहा जाता है।
- एककोशिकीय फाइटोप्लैंकटन का माइग्रेशन तंत्र (विशेष रूप से बिना तैरने वाले उपांग वाले फाइटोप्लैंकटन) अभी भी काफी हद तक अस्पष्ट है।
- फाइटोप्लैंकटन की घनत्व गतिशीलता: फाइटोप्लैंकटन आमतौर पर समुद्री जल की तुलना में 5% से 10% तक अधिक घनत्व वाले होते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण के लिये सतह के पास बने रहने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
- पाइरोसिस्टिस नोक्टिलुका कोशिकाएँ छोटी पनडुब्बियों की तरह व्यवहार करती हैं जो अपने घनत्व को नियंत्रित करने के साथ समुद्र की सतह पर अपनी स्थिति निर्धारित करने में सक्षम होती हैं।
- बैलूनिंग तंत्र: अनुसंधान दल ने इसमें एक "गुरुत्वाकर्षण मशीन" का उपयोग किया, जिससे समुद्र की गहराई का अनुकरण करते हुए जल के दबाव एवं घनत्व में बदलाव किया जा सके।
- टीम ने पाया कि इन्फ्लेटेड कोशिकाएँ आसपास के समुद्री जल की तुलना में कम सघन थीं, जिससे वे गुरुत्वाकर्षण के बावजूद सतह की ओर तैरने लगीं।
- कोशिका विभाजन के दौरान इन्फ्लेशन: इन्फ्लेशन की प्रक्रिया फाइटोप्लैंकटन के कोशिका चक्र के दौरान स्वाभाविक रूप से होती है।
- जब कोई एकल कोशिका विभाजित होती है, तो रिक्तिका नामक एक आंतरिक संरचना एक लचीले जल टैंक के रूप में कार्य करती है, जो ताज़े जल के ग्रहण के कारण नई कोशिकाओं के फूलने का कारण बनती है।
- इस इन्फ्लेशन से हल्की संतति कोशिकाएँ ऊपर की ओर तैरने लगती हैं तथा पोषक तत्त्वों से समृद्ध सतही जल तक पहुँचती हैं।
- पाइरोसिस्टिस नोक्टिलुका का संपूर्ण कोशिका चक्र लगभग सात दिनों तक चलता है, जो प्रकाश और आवश्यक पोषक तत्त्वों की वर्टिकल खोज से प्रेरित होता है।
प्लवक क्या हैं?
- परिचय: प्लवक ऐसे सूक्ष्म जीव हैं जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में प्रमुख भूमिका निभाते हैं तथा संपूर्ण समुद्री खाद्य जाल के आधार के रूप में कार्य करते हैं।
- किसी जीव को प्लवक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है यदि वह ज्वार-भाटे और धाराओं द्वारा बहता है तथा इसमें इन बलों के विरुद्ध तैरने की क्षमता नहीं होती है।
- प्लवक के प्रकार:
- फाइटोप्लैंकटन: यह पौधे (जो प्रकाश संश्लेषण करते हैं) की तरह जीव होते हैं जो सूर्य के प्रकाश को ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं और ऑक्सीजन का उत्पादन करने तथा कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में महत्त्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिये, साइनोबैक्टीरिया, नील-हरित शैवाल, डायटम, डाइनोफ्लैजलेट्स।
- फाइटोप्लैंकटन जीवित रहने के लिये अपने पर्यावरण पर फॉस्फेट, नाइट्रेट और कैल्शियम जैसे पोषक तत्त्वों के लिये निर्भर रहते हैं।
- ज़ूप्लैंकटन: इनमें सूक्ष्म जंतु (जैसे क्रिल और समुद्री घोंघे) तथा जेलीफ़िश शामिल हैं। उदाहरण के लिये, रेडियोलेरियन, फोरामिनिफेरान, निडेरियन, क्रस्टेशियन, कॉर्डेट और मोलस्क।
- फाइटोप्लैंकटन: यह पौधे (जो प्रकाश संश्लेषण करते हैं) की तरह जीव होते हैं जो सूर्य के प्रकाश को ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं और ऑक्सीजन का उत्पादन करने तथा कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में महत्त्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिये, साइनोबैक्टीरिया, नील-हरित शैवाल, डायटम, डाइनोफ्लैजलेट्स।
- प्लवक का आकार: प्लवक का आकार सूक्ष्म जीवों से लेकर क्रस्टेशियन और जेलीफ़िश जैसी बड़ी प्रजातियों तक भिन्न हो सकता है।
- समुद्री खाद्य जाल में भूमिका: फाइटोप्लैंकटन समुद्री खाद्य जाल का आधार हैं तथा विभिन्न समुद्री जीवों को पोषण प्रदान करते हैं।
- जंतुप्लवक मुख्य रूप से पादपप्लवक पर निर्भर रहते हैं और बदले में यह बड़े समुद्री जीवों का भोजन बनते हैं, जिससे इनकी खाद्य शृंखला में प्रमुख भूमिका रहती है।
- उदाहरण के लिये क्रिल हंपबैक, राइट और ब्लू व्हेल के आहार का एक प्रमुख घटक है।
- प्रवास पैटर्न: दिन के समय, ज़ूप्लैंकटन शिकारियों से बचने के लिये गहरे पानी में चले जाते हैं लेकिन रात में ये फाइटोप्लैंकटन से भोजन प्राप्त करने के लिये सतह पर आ जाते हैं।
- इस प्रक्रिया को पृथ्वी पर सबसे बड़ा प्रवास माना जाता है; इस क्रम में इतने अधिक जंतु प्रवास करते हैं कि इसे अंतरिक्ष से देखा जा सकता है।
- आवास: प्लवक खारे और मीठे जल दोनों पारिस्थितिक तंत्रों में मिलते हैं।
- साफ जल में आमतौर पर कम प्लवक होते हैं जबकि गंदा जल (कीचड़युक्त) अक्सर प्लवक से समृद्ध होता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न. जीवों के निम्नलिखित प्रकारों पर विचार कीजिये- (2021) 1. कॉपिपोड उपर्युक्त में से कौन-से जीव महासागरों की आहार शृंखलाओं में प्राथमिक उत्पादक हैं? (a) 1 और 2 उत्तर:(b) प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा एक आहार शृंखला का सही क्रम है? (2014) (a) डायटम-क्रस्टेशियाई-हेरिंग उत्तर: (a) |
बिश्नोई, काला हिरण और चिंकारा
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान को वर्ष 1998 में कथित तौर पर काले हिरण (एंटीलोप सर्विकाप्रा ) का शिकार करने के लिये बिश्नोई समुदाय की आलोचना का सामना करना पड़ा।
बिश्नोई समुदाय के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- परिचय:
- बिश्नोई, मुख्य रूप से एक हिंदू संप्रदाय (ऐतिहासिक रूप से अंग्रेज़ों ने उन्हें मुस्लिम के रूप में वर्गीकृत किया था) है, जो पश्चिमी राजस्थान के थार रेगिस्तान में रहते हैं।
- बिश्नोई समुदाय, जिसकी स्थापना वर्ष 1451 ई. में जन्मे गुरु जम्भेश्वरजी द्वारा दिये गए 29 सिद्धांतों के आधार पर की गई थी, यह समुदाय वन्यजीवों, विशेषकर काले हिरणों और चिंकारा के संरक्षक हैं।
- इनमें से आठ सिद्धांत जीवित प्राणियों के प्रति करुणा और जैवविविधता की रक्षा पर ज़ोर देते हैं।
- अपने 29 सिद्धांतों के अतिरिक्त, गुरु जांभोजी ने 120 कथन या शब्दों का एक समूह की भी रचना की।
- बिश्नोई समुदाय की पर्यावरण के प्रति सजगता प्रकृति के लिये उनके ऐतिहासिक बलिदानों से उपजी हैं, जिनमें वर्ष 1730 का खेजड़ी नरसंहार भी शामिल है।
- वर्ष 1730 के खेजड़ी नरसंहार में, अमृता देवी के साथ 363 बिश्नोईयों ने महाराजा अभय सिंह (जोधपुर के महाराजा) के सैनिकों से खेजड़ी के पेड़ों की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। समुदाय ने शिकारियों और अवैध शिकारियों से थार के वन्यजीवों की भी रक्षा की है।
- संरक्षण:
- राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र में वन्यजीव बिश्नोई समुदायों के आसपास स्थित हैं, जहाँ समुदाय द्वारा सक्रिय रूप से वनस्पतियों और जीवों की रक्षा की जाती है।
- बिश्नोई समुदाय विशेष रूप से काले हिरण, चिंकारा, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और खेजड़ी वृक्ष संरक्षण है।
काला हिरण कौन हैं?
- परिचय:
- काले हिरण (Antilope cervicapra) है, जिसे ‘भारतीय मृग’ (Indian Antelope) के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत और नेपाल में मूल रूप से स्थानिक मृग की एक प्रजाति है।
- ये राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और अन्य क्षेत्रों (संपूर्ण प्रायद्वीपीय भारत) में व्यापक रूप से पाए जाते हैं।
- ये घास के मैदानों में सर्वाधिक पाए जाते हैं अर्थात् इसे घास के मैदान का प्रतीक माना जाता है।
- कृष्णमृग एक दैनंदिनी मृग (Diurnal Antelope) है अर्थात् यह मुख्य रूप से दिन के समय ज़्यादातर सक्रिय रहता है।
- मान्यता: इसे पंजाब, हरियाणा और आंध्र प्रदेश का राज्य पशु घोषित किया गया है।
- सांस्कृतिक महत्त्व: यह हिंदू धर्म में पवित्रता का प्रतीक है क्योंकि इसकी त्वचा और सींग को पवित्र वस्तु माना जाता है। बौद्ध धर्म में यह सफलता (गुडलक) का प्रतीक है।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 अनुसूची
- IUCN स्थिति: कम चिंताजनक
- CITIES: परिशिष्ट III
- चिंताएँ:
- आवास विखंडन, वनों की कटाई, प्राकृतिक आपदाएँ, अवैध शिकार।
- संबंधित संरक्षित क्षेत्र:
- वेलावदार ब्लैकबक अभयारण्य- गुजरात
- प्वाइंट कैलिमेर वन्यजीव अभयारण्य- तमिलनाडु
- ताल छापर अभयारण्य- राजस्थान
चिंकारा क्या हैं?
- चिंकारा, या भारतीय गज़ेल (गज़ेला बेनेट्टी), एक सुंदर मृग प्रजाति है जो भारत, पाकिस्तान और ईरान की मूल निवासी है।
- संबंधित संरक्षित क्षेत्र: मेलघाट टाइगर रिज़र्व (महाराष्ट्र)।
- संरक्षण स्थिति:
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972: अनुसूची I
- IUCN स्थिति: कम चिंताजनक
- CITIES: परिशिष्ट III
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय अनूप मृग (बारहसिंगा) की उस उपजाति, जो पक्की भूमि पर फलती-फूलती है और केवल घासभक्षी है, के संरक्षण के लिये निम्नलिखित में से कौन-सा संरक्षित क्षेत्र प्रसिद्ध है? (2020) (a) कान्हा राष्ट्रीय उद्यान उत्तर: (a) |
ज्वालामुखी विस्फोट और आयनमंडलीय विक्षोभ
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक नए अध्ययन से टोंगा ज्वालामुखी विस्फोट और भारतीय उपमहाद्वीप पर भूमध्यरेखीय प्लाज़्मा बुलबुले (EPB) के निर्माण के बीच संबंध का पता चला है।
- टोंगा ज्वालामुखी दक्षिण प्रशांत महासागर में एक पनडुब्बी ज्वालामुखी है।
अध्ययन की मुख्य बातें क्या हैं?
- ज्वालामुखी विस्फोट और अंतरिक्ष की जलवायु: टोंगा विस्फोट से आयनमंडलीय विक्षोभ उत्पन्न हुआ, जिससे अंतरिक्ष में जलवायु परिघटनाएँ बढ़ी हैं, जो उपग्रह संकेतों को प्रभावित करती हैं।
- वायुमंडलीय गुरुत्व तरंगें: विस्फोट से प्रबल वायुमंडलीय गुरुत्व तरंगें उत्पन्न हुईं, जो ऊपरी वायुमंडल में फैल गईं, जिससे EPB के निर्माण के लिये अनुकूल आयनमंडलीय परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गईं।
- वायुमंडलीय गुरुत्व तरंगें तब निर्मित होती हैं जब उत्प्रवाह वायु को ऊपर की ओर दबाव देती है, जबकि गुरुत्वाकर्षण उसे वापस नीचे आकर्षित करता है।
- प्लाज़्मा अस्थिरता: प्लाज़्मा बुलबुले, शाम के समय आयनमंडलीय पूर्व दिशा में विद्युत क्षेत्र में वृद्धि का पता चला, जो विस्फोट के कारण आयनमंडलीय विक्षोभ का संकेत देता है।
भूमध्यरेखीय प्लाज़्मा बुलबुले (EPB) से संबंधित मुख्य बातें क्या हैं?
- EPB: यह आयनमंडलीय परिघटना है, जो प्लाज़्मा अस्थिरता के माध्यम से उत्पन्न होती हैं, विशेष रूप से भूमध्यरेखीय आयनमंडल में।
- EPB आयनमंडल में क्षीण प्लाज़्मा के वे क्षेत्र हैं, जो सूर्यास्त के बाद चुंबकीय भूमध्य रेखा के पास निर्मित होते हैं।
- EPB भूमध्यरेखीय आयनमंडल में उत्पन्न होते हैं, लेकिन पृथ्वी के भूमध्य रेखा से 15° उत्तर और दक्षिण तक वैश्विक आयनमंडल को प्रभावित करते हुए फैल सकते हैं।
- रेडियो तरंग संचरण पर प्रभाव: जैसे ही रेडियो तरंगें आयनमंडल से होकर गुजरती हैं, EPB से संबंधित अनियमितताएँ उन्हें बिखेर सकती हैं, जिससे सिग्नल में गिरावट आ सकती है।
- यह उन संचार प्रणालियों के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय है जो उच्च आवृत्ति रेडियो तरंगों पर निर्भर हैं, जैसे उपग्रह संचार और जी.पी.एस. आदि।
- मौसमी और क्षेत्रीय परिवर्तनशीलता: EPB शीत अयनांत (21 या 22 दिसंबर) के दौरान सबसे अधिक होते हैं और ग्रीष्म अयनांत (21 जून) के दौरान सबसे कम होते हैं।
टोंगा ज्वालामुखी से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- स्थान: यह पश्चिमी दक्षिण प्रशांत महासागर में, टोंगा साम्राज्य के मुख्य बसे हुए द्वीपों के पश्चिम में स्थित है।
- भूविज्ञान: यह टोफुआ आर्क के साथ 12 पुष्टिकृत पनडुब्बी ज्वालामुखियों में से एक है, जो बड़े टोंगा-केरमाडेक ज्वालामुखी आर्क का एक भाग है।
- टोंगा-केरमाडेक आर्क का निर्माण इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के नीचे प्रशांत प्लेट के क्षेपण के परिणामस्वरूप हुआ।
- यह रिंग ऑफ फायर का एक हिस्सा है ।
- पनडुब्बी ज्वालामुखी: यह जल के नीचे स्थित ज्वालामुखी है, जिसमें दो छोटे निर्जन द्वीप, हंगा-हापाई और हंगा-टोंगा शामिल हैं।
आयनमंडल:
- यह क्षोभमंडल या समतापमंडल की तरह एक अलग परत नहीं है। इसके बजाय आयनमंडल मेसोस्फीयर, थर्मोस्फीयर और एक्सोस्फीयर को ओवरलैप करता है।
- यह वायुमंडल का एक सक्रिय भाग है तथा यह सूर्य से अवशोषित ऊर्जा के आधार पर बढ़ता और संकुचित होता है।
- यह एक विद्युत चालक क्षेत्र है, जो रेडियो संकेतों को पृथ्वी पर वापस भेजने में सक्षम है।
- इस प्रकार बनने वाले विद्युत आवेशित परमाणुओं और अणुओं को आयन कहा जाता है, जिससे आयनमंडल को यह नाम मिला है।
और पढ़ें: टोंगा ज्वालामुखी का मौसम पर प्रभाव
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2013)
उपर्युक्त में से कौन-से पृथ्वी के पृष्ठ पर गतिक परिवर्तन लाने के लिये ज़िम्मेदार हैं? (a) केवल 1, 2, 3 और 4 उत्तर: (d) |
शहरी भूमि अभिलेख पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने "शहरी भूमि अभिलेखों के सर्वेक्षण -पुनःसर्वेक्षण में आधुनिक तकनीकों के उपयोग" पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया।
- इसने डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) के तहत भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
- 100 से अधिक शहरों/कस्बों में शहरी भूमि रिकॉर्ड बनाने के लिये राष्ट्रीय भू-स्थानिक ज्ञान-आधारित शहरी आवास भूमि सर्वेक्षण (नक्शा) नामक एक पायलट कार्यक्रम प्रारंभ किया गया।
- भूमि अभिलेख विनिर्माण में ड्रोन और 3D इमेजरी के साथ एरियल फोटोग्राफी के उपयोग पर प्रकाश डाला गया है।
- DILRMP (पूर्ववर्ती राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम) एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जो 1 अप्रैल, 2016 से प्रभावी है, इसका 100% वित्तपोषण केंद्र द्वारा किया जाता है।
- इसका उद्देश्य एक आधुनिक, व्यापक और पारदर्शी रिकॉर्ड प्रबंधन प्रणाली विकसित करना है।
- DILRMP के अंतर्गत नवीन पहलों में शामिल है:
- विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (ULPIN) या भू-आधार (भू-निर्देशांक के आधार पर प्रत्येक भूमि पार्सल के लिये 14 अंकों की अल्फा-न्यूमेरिक विशिष्ट आईडी)
- राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली (NGDRS) या ई-पंजीकरण (कार्यों/दस्तावेज़ों के पंजीकरण हेतु एक समान प्रक्रिया अपनाना)।
अधिक पढ़ें: भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण
छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों ने 28 नक्सलियों को मार गिराया
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में 28 माओवादियों को मार गिराया।
- मूल:
- यह आंदोलन स्थानीय ज़मींदारों के खिलाफ विद्रोह के रूप में शुरू हुआ, जिन्होंने भूमि विवाद को लेकर किसानों पर आक्रमण किया और अब इसे माओवादी के रूप में जाना जाता है और भारत में इसे नक्सलवादी भी कहा जाता है।
- उद्देश्य:
- वे सशस्त्र क्रांति के माध्यम से सरकार को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं, ताकि माओवादी सिद्धांतों पर आधारित साम्यवादी राज्य की स्थापना की जा सके, राज्य को दमनकारी माना जा सके तथा सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक शिकायतों का समाधान किया जा सके।
- प्रभावित राज्य:
- लाल गलियारा (Red Corridor) भारत के मध्य, पूर्वी और दक्षिणी भागों का वह क्षेत्र है जहाँ गंभीर रूप से नक्सलवाद-माओवादी विद्रोह देखने को मिलते हैं।
- छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और केरल राज्य वामपंथी उग्रवाद (LWE) से प्रभावित माने जाते हैं ।
- सरकारी योजना:
- 'नियद नेल्लानार' योजना: यह बस्तर में सुरक्षा शिविरों के माध्यम से 5 किलोमीटर के भीतर के गाँवों को सुविधाएँ और लाभ प्रदान करती है।
- सुरक्षा संबंधी व्यय (SRE) योजना: इसमें वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों को प्रशिक्षण और अनुग्रह राशि जैसी सुरक्षा लागतों को शामिल किया गया है।
और पढ़ें: वामपंथी उग्रवाद
हाइपरयूनिफॉर्मिटी
स्रोत: पी.आई.बी
शोधकर्त्ताओं ने पदार्थ की हाल ही में खोज की गई विचित्र अव्यवस्थित अवस्था के उभरते गुण के पीछे के तंत्र का पता लगाया है जिसे "हाइपरयूनिफॉर्मिटी" के रूप में जाना जाता है।
- हाइपरयूनिफॉर्मिटी: यह कुछ विषम माध्यम की एक विशेषता है जिसमें लंबी-तरंगदैर्घ्य रेंज में घनत्व में उतार-चढ़ाव शून्य हो जाता है।
- हाइपरयूनिफॉर्म अव्यवस्थित सामग्रियों को विभिन्न प्रारूपों में देखा गया है जैसे कि क्वासिक्रिस्टल, ब्रह्मांड की वृहद स्तरीय संरचनाएँ, नरम और जैविक आधारित इमल्शन और कोलाइड्स आदि।
- हाइपरयूनिफॉर्मिटी के पीछे का तंत्र:
- हाइपरयूनिफॉर्म सिस्टम में, घनत्व में न्यूनतम उतार-चढ़ाव एक संरक्षण नियम के परिणामस्वरूप होता है जो कण की गतिशीलता को सीमित करता है, जो प्रणाली के आकार के बढ़ने के साथ न्यून द्रव्यमान में उतार-चढ़ाव को व्यक्त करता है।
- तरल पदार्थ के क्रांतिक बिंदु से तुलना:
- हाइपरयूनिफॉर्म पदार्थ, द्रव के क्रांतिक बिंदुओं के विपरीत होता है, जहाँ द्रव्यमान में उतार-चढ़ाव भिन्न होते हैं और क्रांतिक रंग परिवर्तन का कारण बनते हैं।
- हाइपरयूनिफॉर्म पदार्थ में द्रव्यमान में उतार-चढ़ाव को न्यूनतम किया जाता है, जिससे वह क्रिस्टल, अनाकार ठोस और द्रव के बीच स्थित हो जाता है।
- हाइपरयूनिफॉर्म पदार्थों के संभावित अनुप्रयोग:
- हाइपरयूनिफॉर्म पदार्थों में अद्वितीय विशेषता होती है तथा इसके तकनीकी और जैविक अनुप्रयोगों की संभावना होती है, जिसमें डेटा संचरण और सेलुलर कार्यों को नियंत्रित करने के लिये ऊर्जा-कुशल फोटोनिक उपकरण शामिल हैं।
4वीं परमाणु ऊर्जा संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
हाल ही में भारत ने विशाखापत्तनम के शिप बिल्डिंग सेंटर (SBC) में अपनी चौथी परमाणु ऊर्जा संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी लॉन्च की।
- इसमें पनडुब्बी में लगभग 75% स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है और यह पनडुब्बी 3,500 किलोमीटर तक मार करने वाली K-4 बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस है। जिन्हें ऊर्ध्वाधर प्रणालियों के माध्यम से प्रक्षेपित किया जाता है।
- अन्य तीन परमाणु ऊर्जा संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियाँ INS अरिहंत, INS अरिघाट और आईएनएस अरिदमन हैं।
- रूसी अकुला श्रेणी की एक परमाणु ऊर्जा संचालित अटैक सबमरीन वर्ष 2028 में लीज़ पर सेना में शामिल होने वाली है।
- आईएनएस चक्र, अकुला श्रेणी का जहाज़ है, जिसे वर्ष 2012 में रूस से लीज़ पर लिया गया था।
- सरकार ने फ्राँसीसी नौसेना समूह के सहयोग से मझगाँव डॉकयार्ड में तीन और उन्नत डीजल अटैक सबमरीन (पनडुब्बियों) के निर्माण की योजना बनाई है।
- एक परमाणु पनडुब्बी प्रणोदन के लिये एक परमाणु रिएक्टर का उपयोग किया जाता है, जो असीमित क्षमता और स्थिरता प्रदान करती है। जिसका संचालन केवल ‘फ्यूल’ आपूर्ति, चालक दल के परिश्रम और रखरखाव पर निर्भर करता है।
और पढ़ें: भारत की पनडुब्बी क्षमता