प्रिलिम्स फैक्ट्स (17 Aug, 2023)



इंडियन फ्लाइंग फॉक्स बैट: टेरोपस गिगेंटस

भारतीय विज्ञान संस्थान और भारतीय वन्यजीव संस्थान के पारिस्थितिक विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में फूलों का रस (Nectar) और फल खाने वाली भारत की सबसे बड़ी चमगादड़ प्रजाति फ्लाइंग फॉक्स बैट (Pteropus giganteus) के विषय में नई जानकारियाँ प्राप्त हुई हैं। 

  • फ्लाइंग फॉक्स बैट रात के समय में विचरण गतिविधि के अतिरिक्त दिन की अवधि का एक बड़ा हिस्सा वातावरण की निगरानी करने में बिताते हुए पाए गए।

अध्ययन के प्रमुख बिंदु: 

  • अध्ययन से पता चला है कि अपने रात्रिचर स्वभाव के विपरीत टेरोपस गिगेंटस दिन के समय में अधिक सतर्क देखे गए हैं, दिन की लगभग 7% अवधि वे किसी भी प्रकार के खतरे का आकलन करने में व्यतीत करते हैं।
  • यह अध्ययन चमगादड़ों की इस प्रजाति की सामाजिक सतर्कता (आस-पास के अन्य जीवों के साथ किसी प्रकार के संघर्ष संबंधी निगरानी) और पर्यावरणीय सतर्कता (आस-पास के जोखिमों के संकेतों पर नज़र रखना) के बीच अंतर-बोध को दर्शाता है
  • इस अध्ययन में पाया गया है कि वृक्षों के बीच चमगादड़ों की स्थानिक स्थिति के आधार पर सतर्कता का स्तर अलग-अलग होता है, जो उनके संबंध में कोर प्रभाव के अनुमान की पुष्टि करता है।
  • इन चमगादड़ों को फूलों का रस और फल खाने वाली प्रमुख प्रजाति के रूप में जाना जाता है, जो  परागणक के रूप में और बीज फैलाव में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, इस प्रकार पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • कीस्टोन प्रजाति (Keystone Species) वह है जो अपनी प्रचुरता के सापेक्ष प्राकृतिक पर्यावरण पर असमान रूप से बड़ा प्रभाव डालती है, एक पारिस्थितिकी तंत्र में कई अन्य जीवों को प्रभावित करती है तथा एक पारिस्थितिक समुदाय में अन्य प्रजातियों के प्रकार और संख्या को निर्धारित करने में सहायता करती है।
  • यह निष्कर्ष इसकी पारिस्थितिक भूमिका के संरक्षण तथा पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र संतुलन को सुनिश्चित करने के लिये टेरोपस गिगेंटस (Pteropus Giganteus) और इसके निवास स्थान की रक्षा करने की तात्कालिकता पर ज़ोर देते हैं।

टेरोपस गिगेंटस के बारे में मुख्य तथ्य:

  • परिचय:
    • टेरोपस गिगेंटस, जिसे आमतौर पर इंडियन फ्लाइंग फॉक्स (Indian Flying Fox) के रूप में जाना जाता है, मूल रूप से भारतीय उपमहाद्वीप की एक उल्लेखनीय चमगादड़ प्रजाति है।
  • संरचना:
    • टेरोपस गिगेंटस की विशेषता इसका बड़ा आकार और लोमड़ी जैसा चेहरा है।
    • आमतौर पर इसके शरीर पर गहरे भूरे या काले रंग के साथ प्राय: एक पीले रंग का आवरण (पेरोपस जीनस का विशिष्ट) देखा जाता है।
    • नर का आकार आमतौर पर मादाओं से बड़ा होता है।
  • भौगोलिक सीमा:
    • टेरोपस गिगेंटस दक्षिण-मध्य एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, पाकिस्तान से चीन तक और सुदूर दक्षिण में मालदीव द्वीप समूह तक पाया जाता है।
  • प्राकृतिक वास:
    • ये जंगलों और दलदलों में पाए जाते हैं। इनके बड़े समूह बरगद, अंजीर और इमली जैसे पेड़ों पर बसेरा करते हैं। इनका बसेरा आमतौर पर पानी के जलाशय के आसपास पेड़ों पर होता है।
  • संरक्षण की स्थिति:
  • नकारात्मक प्रभाव:
    • इंडियन फ्लाइंग फॉक्स को कृमिनाशक माना जाता है, जो फलों के बगीचों को व्यापक स्तर पर नुकसान पहुँचाते हैं, इसलिये कई क्षेत्रों में इन्हें कीट कहा जाता है। इन्हें बीमारी फैलाने के लिये भी ज़िम्मेदार माना जाता है, विशेषकर निपाह वायरस (Nipah virus), जो मनुष्यों में बीमारी और मृत्यु का कारण बनता है।

स्रोत: द हिंदू


भारत में दलहन उत्पादन

हाल ही में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने भारत में दलहन/दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिये अपनाई जा रही व्यापक रणनीतियों के विषय में राज्यसभा में एक लिखित जवाब में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।

  • इन जानकारियों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission- NFSM)- दलहन के उद्देश्य, जिसमें उत्पादकता में वृद्धि करना तथा कृषि क्षेत्र में धारणीय प्रथाएँ सुनिश्चित करना है, पर प्रकाश डाला गया।

दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु भारत की पहलें:

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-दलहन:
    • परिचय:
      • कृषि और किसान कल्याण विभाग के नेतृत्व में NFSM-दलहन पहल का संचालन जम्मू-कश्मीर और लद्दाख सहित 28 राज्यों तथा 2 केंद्रशासित प्रदेशों में किया जा रहा है।
    • NFSM-दलहन के तहत प्रमुख उपाय:
      • विभिन्न हस्तक्षेपों के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से कृषक वर्गों को सहायता।
      • बेहतर तकनीकों का समूहों में प्रदर्शन।
      • फसल प्रणाली प्रदर्शन।
      • बीज उत्पादन और HYVs/हाइब्रिड का वितरण।
      • उन्नत कृषि मशीनरी/उपकरण।
      • कुशल जल अनुप्रयोग उपकरण।
      • पादप संरक्षण के उपाय।
      • पोषक तत्त्व प्रबंधन/मृदा में सुधार।
      • प्रसंस्करण और फसल कटाई के बाद उपयोग किये जाने वाले उपकरण।
      • फसल प्रणाली आधारित प्रशिक्षण।
      • दालों की नई किस्मों के बीज, मिनी-किट का वितरण।
      • कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा तकनीकी प्रदर्शन।
      • इसके अतिरिक्त दालों के लिये 150 बीज केंद्रों की स्थापना ने गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
        • वर्ष 2016-17 में स्थापना के बाद से इन केंद्रों द्वारा दालों हेतु सामूहिक रूप से 1 लाख क्विंटल से अधिक गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन किया गया है।
  • अनुसंधान और किस्मों के विकास में ICAR की भूमिका:
    • अनुसंधान और किस्मों के विकास के प्रयासों के माध्यम से दलहनी फसलों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) की अहम भूमिका है। इस संदर्भ में ICAR के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:
      • दलहन के क्षेत्र में बुनियादी और रणनीतिक अनुसंधान। राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ सहयोगात्मक अनुप्रयुक्त अनुसंधान।
      • अवस्थिति-विशिष्ट उच्च उपज वाली किस्मों और उत्पादन पैकेजों का विकास।
      • वर्ष 2014 से 2023 की अवधि के दौरान देश भर में व्यावसायिक खेती के लिये दालों की प्रभावशाली 343 उच्च उपज वाली किस्मों और संकर/हाइब्रिड को आधिकारिक मान्यता दी गई है।
  • प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA) योजना:
    • इस व्यापक योजना (वर्ष 2018 में शुरुआत) में तीन घटक शामिल हैं:
      • मूल्य समर्थन योजना (Price Support Scheme- PSS): न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) पर पूर्व-पंजीकृत किसानों से खरीद।
        • वर्ष 2021-22 में लगभग 30.31 लाख टन दालों की खरीद की गई, जिससे 13 लाख से अधिक किसान लाभान्वित हुए।
        • वर्ष 2022-23 (जुलाई 2023 तक) में लगभग 28.33 लाख टन दालों की खरीद से 12 लाख से अधिक किसानों को लाभ हुआ।
      • मूल्य न्यूनता भुगतान योजना (Price Deficiency Payment Scheme- PDPS): इसके तहत मूल्य में अंतर अथवा भिन्नता को देखते हुए किसानों को मुआवज़ा प्रदान किया जाता है।
      • निजी खरीद स्टॉकिस्ट योजना (Private Procurement Stockist Scheme- PPSS): यह योजना खरीद के संदर्भ में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करती है।

भारत में दालों का उत्पादन:

  • भारत विश्व भर में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक (वैश्विक उत्पादन का 25%), उपभोक्ता (वैश्विक खपत का 27%) और आयातक (14%) है।
  • खाद्यान्न के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में दालों की हिस्सेदारी लगभग 20% है और देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में इसका योगदान लगभग 7-10% है।
  • हालाँकि दालें ख़रीफ और रबी दोनों सीज़न में उगाई जाती हैं, दालों के कुल उत्पादन में रबी सीज़न में उत्पादित दालों का योगदान 60% से अधिक है।
  • शीर्ष पाँच दाल उत्पादक राज्य हैं- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में दालों के उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. उड़द की खेती खरीफ और रबी दोनों फसलों में की जा सकती है।
  2. कुल दाल उत्पादन का लगभग आधा भाग केवल मूँग का होता है।
  3. पिछले तीन दशकों में, जहाँ खरीफ दालों का उत्पादन बढ़ा है, वहीं रबी दालों का उत्पादन घटा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

  • भारत में सर्दियों (रबी) में उगाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण दलहनी फसलें चना, मसूर, लैथिरस, मटर और राजमा हैं। हालाँकि मूँग, उड़द और लोबिया वसंत तथा बरसात दोनों मौसमों में उगाए जाते हैं।
  • उड़द एक ऊष्म मौसम वाली फसल है और इसके उचित विकास के लिये 600 से 1000 मिमी. तक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र सबसे अनुकूल होते है। इसकी खेती मुख्य रूप से अनाज-दलहन फसल प्रणाली में मृदा के पोषक तत्त्वों को संरक्षित करने तथा विशेष रूप से चावल की खेती के बाद मृदा की नमी का उपयोग करने के लिये किया जाता है। चूँकि इसे सभी मौसमों में उगाया जा सकता है, उड़द की खेती (खासकर प्रायद्वीपीय भारत में) अधिकांशतः या तो रबी या रबी मौसम के अंत में की जाती है। अतः कथन 1 सही है।
  • अर्थशास्त्र और सांख्यिकी निदेशालय के अनुसार, वर्ष 2018-19 में दलहन उत्पादन का आँकड़ा इस प्रकार था; तूर (15.34%), चना (43.29%), मूँग/हरा चना (10.04%), उड़द/काला चना (13.93%),  मसूर (6.67%) और अन्य दालें (10%)। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा तीसरे अग्रिम आकलन और भारतीय उद्योग परिसंघ की वर्ष 2010 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1951 से वर्ष 2008 तक दालों का उत्पादन 45 प्रतिशत तथा पिछले दशक में 2009-10 और 2020-21 के बीच 65 प्रतिशत बढ़ा है।
  • हालाँकि खरीफ सीज़न की दालों (अरहर, उड़द और मूँग) का उत्पादन, जो भारत की कुल दालों का लगभग 40 प्रतिशत है, रबी सीज़न की दालों (चना और मसूर) की तुलना में कम रहा है।
  • नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 1980 में खरीफ दालों का उत्पादन वार्षिक 8.7 प्रतिशत की दर से बढ़ा, किंतु 1990 तक यह गिरकर -6.6 प्रतिशत रह गया। रबी दालों के उत्पादन में भी 5.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि देखी गई थी लेकिन 1990 में गिरकर यह -3.2 प्रतिशत रह गया। अगले दशक में इसमें सुधार हुआ और 2000 के बाद इसमें 4.2 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने लगी।
  • इस प्रकार पिछले तीन दशकों में खरीफ और रबी सीज़न दोनों की दालों के उत्पादन में वृद्धि हुई है। इसलिये कथन 3 सही नहीं है। अतः विकल्प (A) सही उत्तर है।

स्रोत: पी.आई.बी.


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 17 अगस्त, 2023

रेल मंत्रालय की 7 मल्टी-ट्रैकिंग परियोजनाओं को CCEA की मंज़ूरी

आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (Cabinet Committee on Economic Affairs- CCEA) ने रेल मंत्रालय की सात परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है।

  • मल्टी-ट्रैकिंग के प्रस्तावों से परिचालन में आसानी होगी तथा भीड़भाड़ कम होगी, जिससे भारतीय रेलवे (Indian Railways) के सबसे व्यस्त खंडों पर आवश्यक ढाँचागत विकास सुनिश्चित होगा।
  • 9 राज्यों के 35 ज़िलों को कवर करने वाली परियोजनाएँ मौजूदा भारतीय रेलवे नेटवर्क को 2339 किलोमीटर तक विस्तारित करेंगी तथा इन राज्यों के लोगों के लिये लगभग 7.06 करोड़ मानव-दिवस रोज़गार सृजित करेंगी।
    • ये खाद्यान्न, उर्वरक, कोयला, सीमेंट, फ्लाई-ऐश, लोहा तथा तैयार स्टील, क्लिंकर, कच्चे तेल, चूना पत्थर, खाद्य तेल आदि जैसी विभिन्न वस्तुओं के परिवहन के लिये आवश्यक मार्ग प्रदान करेंगे।
  • ये परियोजनाएँ जलवायु लक्ष्यों को बढ़ावा देने, क्षेत्रीय आत्मनिर्भरता तथा एक बहुमुखी कार्यबल बनाने, रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने के साथ संरेखित हैं।
  • ये परियोजनाएँ पीएम-गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान (PM-Gati Shakti National Master Plan) का परिणाम है, जो एकीकृत योजना के माध्यम से लोगों, वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये निर्बाध कनेक्टिविटी की सुविधा प्रदान करती है।

पारस्परिक मान्यता व्यवस्था को कैबिनेट की मंज़ूरी 

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC), राजस्व विभाग, भारत सरकार तथा ऑस्ट्रेलियाई सरकार के ऑस्ट्रेलियाई सीमा बल को सम्मिलित करने वाले गृह मामलों के विभाग के बीच पारस्परिक मान्यता व्यवस्था (MRA) को मंज़ूरी दे दी है।

  • इस महत्त्वपूर्ण समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के लाइसेंस प्राप्त और विश्वसनीय निर्यातकों को सीमा शुल्क के माध्यम से उत्पादों की त्वरित निकासी में पारस्परिक पहुँचाना है।
    • MRA व्यापार सुविधा में सुधार करते हुए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सुरक्षा को बढ़ावा देता है क्योंकि यह विश्व सीमा शुल्क संगठन के मानकों के सुरक्षा ढाँचे के अनुरूप है।
    • इस व्यवस्था का उद्देश्य ऑस्ट्रेलियन ट्रस्टेड ट्रेडर प्रोग्राम और भारतीय अधिकृत आर्थिक ऑपरेटर कार्यक्रम को पारस्परिक मान्यता के तहत लाकर भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूत करना है।

टिटिकाका झील 

टिटिकाका झील जलवायु परिवर्तन और सूखे के कारण गंभीर खतरे का सामना कर रही है। यह दक्षिण अमेरिका की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है

  • यह झील बोलीविया और पेरू के बीच की सीमा पर स्थित है, इसका जल स्तर लगभग रिकॉर्ड निचले स्तर तक गिर गया है।
  • वर्षा की कमी और बढ़ते तापमान के कारण वाष्पीकरण में वृद्धि की वजह से इस झील का प्रवाह और आयतन कम हो गया है। 
  • इसके परिणामस्वरूप नावें फँस जाती हैं तथा मछलियों की आबादी कम हो गई है। 
  • यह झील पौधों और जानवरों की 500 से अधिक प्रजातियों का वास स्थल है, जिनमें से कुछ स्थानिक और लुप्तप्राय हैं।

'कूसिना माने' पहल के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना

कर्नाटक की 'कूसिना माने' पहल, जिसे वर्ष 2023-24 के बज़ट में पेश किया गया है, यह महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी को बढ़ाने और लैंगिक असमानताओं को दूर करने की दिशा में एक प्रगतिशील विकास का प्रतीक है।

  • इस पहल का उद्देश्य 4,000 ग्राम पंचायतों में बाल देखभाल केंद्र स्थापित करना है, जो मनरेगा के तहत कामकाज़ी माताओं और आसपास के अन्य लोगों की सहायता करेगा।
  • यह बच्चों की देखभाल के उत्तरदायित्व को पुनर्वितरित करके संभावित रूप से निरंतर रोज़गार और अपस्किलिंग को सक्षम करके महिलाओं के समक्ष आने वाले "तीन गुने बोझ" को संबोधित करता है।
  • यह 'मातृत्व दंड' के मुद्दे को संबोधित करेगा, जिसे महिलाओं के श्रम बल से पृथक रहने का मूल कारण माना जाता है।

और पढ़ें… मनरेगा, लैंगिक असमानता

यूक्रेन के अनाज व्यापार में सुलिना चैनल की महत्त्वपूर्ण भूमिका

  • रात में ड्रोन हमलों के परिणामस्वरुप रूस ने यूक्रेन की डेन्यूब नदी के किनारे स्थित बंदरगाहों और अनाज भंडारण स्थलों पर हमले करने का निर्देश दिया है।
    • यूक्रेन, जिसे "ब्रेडबास्केट ऑफ यूरोप" के रूप में जाना जाता है,की अर्थव्यवस्था कृषि उत्पादों के निर्यात पर काफी निर्भर करती है।
  • डेन्यूब नदी यूरोप की दूसरी सबसे लंबी नदी है जो दस देशों से होकर बहती है और इस क्षेत्र के लिये एक प्रमुख परिवहन मार्ग एवं प्राकृतिक संसाधन दाता के रूप में काम करती है।
  • ब्लैक सी ग्रेन पहल समझौते से रूस के हाल ही में अलग होने के बाद, यूक्रेन ने अनाज ले जाने के लिये डेन्यूब डेल्टा को अपने नए मार्ग के रूप में अपनाया।
  • सुलिना चैनल इस "नए" व्यापार मार्ग का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। यह डेन्यूब नदी की 63 किमी लंबी शाखा है जो महत्त्वपूर्ण यूक्रेनी बंदरगाहों को काला सागर से जोड़ती है। यह चैनल पूरी तरह से रोमानिया की सीमा के अंदर है।

और पढ़ें…रूस-यूक्रेन संघर्ष  

भारत और WHO डिजिटल स्वास्थ्य पर वैश्विक पहल शुरू करेंगे:

  • भारत सरकर और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) गुजरात के गांधीनगर में चल रहे G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान डिजिटल स्वास्थ्य पर वैश्विक पहल की शुरुआत करेंगे।
  • यह वैश्विक पहल स्वास्थ्य डेटा को एक साथ लाने, स्वास्थ्य प्लेटफार्मों को जोड़ने एवं विश्व में डिजिटल स्वास्थ्य में निवेश पर केंद्रित है।
  • शिखर सम्मेलन का लक्ष्य एक महत्त्वपूर्ण अंतरिम मेडिकल काउंटरमेज़र (MCM) स्थापित करना भी है। इसमें भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों में तैयार रहने के लिये 'नेटवर्क का नेटवर्क दृष्टिकोण' शामिल है।
  • विश्वव्यापी डिजिटल प्लेटफॉर्म के तीन मुख्य भाग होंगे:
    • एक निवेश ट्रैकर।
    • एक आस्क ट्रैकर (यह पता लगाने के लिये कि विभिन्न लोगों को किन उत्पादों और सेवाओं की आवश्यकता है।)
    • मौजूदा डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफार्मों का एक संग्रह।
  • डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार और समाधान सार्वभौमिक स्वास्थ्य अभिसरण में सहायता करेंगे तथा साथ ही स्वास्थ्य सेवा वितरण में भी सुधार करेंगे।

और पढ़ें… राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन