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भारतीय रेलवे में इंटरलॉकिंग प्रणाली

  • 13 Jun 2023
  • 7 min read

ओडिशा के बालासोर ज़िले में विनाशकारी ट्रेन दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिये जाँच चल रही है। इस घटना ने रेलवे द्वारा उपयोग किये जाने वाली इलेक्ट्रॉनिक ट्रैक प्रबंधन प्रणाली के विषय में चिंता जताई है।

  • भारतीय रेल मंत्री ने इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव को दुर्घटना के प्राथमिक कारक के रूप में माना है। 

भारतीय रेलवे में इंटरलॉकिंग प्रणाली:

  • परिचय:  
    • इंटरलॉकिंग प्रणाली एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा तंत्र को संदर्भित करती है जिसका उपयोग ट्रेन की आवाजाही को नियंत्रित करने और रेलवे स्टेशनों एवं जंक्शनों पर सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करने हेतु किया जाता है।
      • यह सिग्नल, पॉइंट (स्विच) और ट्रैक सर्किट का परस्पर एक जटिल नेटवर्क है जो गलत संचालन और टकरावों को रोकने हेतु एक साथ काम करते हैं।
    • इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (EI): यह सिग्नल, पॉइंट और लेवल-क्रॉसिंग गेट को नियंत्रित करने के लिये कंप्यूटर-आधारित प्रणाली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग करता है।
      • पारंपरिक रिले इंटरलॉकिंग प्रणाली के विपरीत EI इंटरलॉकिंग लॉजिक को प्रबंधित करने के लिये सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक घटकों का उपयोग करता है।
      • EI ट्रेन की निर्बाध आवाजाही को सुगम बनाने के लिये सभी घटकों का तालमेल सुनिश्चित करता है।
    • वर्ष 2022 तक भारत में 2,888 रेलवे स्टेशन इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम से लैस थे, जिसमें भारतीय रेलवे नेटवर्क का 45.5% शामिल था।

भारतीय रेलवे नेटवर्क:

  • भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है, इसके माध्यम से सालाना औसतन आठ अरब लोग यात्रा करते हैं।
  • भारतीय रेलवे नेटवर्क 68,000 किमी. से अधिक फैला हुआ है और इसमें 1,02,831 किमी. के रनिंग ट्रैक के साथ 7,000 से अधिक स्टेशन शामिल हैं।
  • 31 मार्च, 2022 तक साइडिंग, यार्ड और क्रॉसिंग सहित ट्रैक की कुल लंबाई 1,28,305 किलोमीटर है। 
  • इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के घटक: 
    • सिग्नल: सिग्नल आगे ट्रैक की स्थिति के आधार पर ट्रेनों को रोकने (लाल), आगे बढ़ने (हरा), या सावधानी बरतने (पीला) हेतु निर्देशित करने के लिये प्रकाश संकेतक का उपयोग करते हैं।
    • पॉइंट: पॉइंट्स ट्रैक्स के मूवेबल सेक्शन होते हैं जो ट्रेनों के पहियों को सीधे या डायवर्ज़िंग पथ की ओर निर्देशित करके लाइन बदलने में सक्षम बनाते हैं।
      • इलेक्ट्रिक पॉइंट मशीनें वांछित स्थिति में पॉइंट स्विच को लॉक और अनलॉक करती हैं।
    • ट्रैक सर्किट: ट्रैक पर लगे इलेक्ट्रिकल सर्किट दो बिंदुओं के बीच ट्रेन की उपस्थिति का पता लगाते हैं, जिससे ट्रेन की आवाजाही की सुरक्षा का निर्धारण होता है।
    • अतिरिक्त घटक: इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, संचार उपकरण और अन्य उपकरण सिग्नलिंग घटकों को नियंत्रित करते हैं तथा दोहरे लॉक एक्सेस कंट्रोल वाले रिले रूम में रखे जाते हैं।
      • एक डेटा लॉगर सभी सिस्टम की गतिविधियों को रिकॉर्ड करता है, जो एक विमान के ब्लैक बॉक्स के समान रिकॉर्डर के रूप में कार्य करता है।
  • प्रणाली की क्रियात्मकता:  
    • कमांड रिसेप्शन और रूट सेटिंग: ऑपरेटरों अथवा स्वचालित नियंत्रण प्रणालियों से इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम को कमांड किया जाता है,  इसके बाद यार्ड से जानकारी एकत्र की जाती है और ट्रेनों के अनुसरण के लिये एक सुरक्षित मार्ग निर्धारित किया जाता है।
    • संरेखण और इंटरलॉकिंग: एक बार मार्ग निर्धारित हो जाने के बाद यह प्रणाली आवश्यक ट्रैक स्विच (बिंदुओं) को संरेखित करती है और वांछित मार्ग के निर्धारण के लिये उपयुक्त स्थिति में सिग्नलिंग उपकरणों को इंटरलॉक करती है।
    • ट्रेन के आगे बढ़ने के लिये सिग्नल: ट्रैक की दिशा और डायवर्ज़िंग ट्रैक पर अवरोधों की अनुपस्थिति के आधार पर ट्रेनों को आगे बढ़ने के लिये सिग्नल अथवा संकेत दिये जाते हैं।
    • यह सुनिश्चित करता है कि ट्रेनें नेटवर्क/संजाल के माध्यम से सुरक्षित और सुचारु रूप से संचालन कर सकें।
    • टकराव की रोकथाम: यह प्रणाली ट्रेनों की उपस्थिति का पता लगाने के लिये ट्रैक सर्किट का उपयोग करती है।
    • इन सर्किटों की निगरानी करके यह प्रणाली कई ट्रेनों को एक ही ब्लॉक अथवा परस्पर विरोधी रास्तों पर चलने से रोकती है, जिससे टकराव के जोखिम में कमी आती है
    • प्वाइंट लॉकिंग: प्वाइंट्स (स्विच) कुछ शर्तों के पूरा होने तक स्थिति में लॉक रहते हैं, जैसे कि ट्रेन ट्रैक के एक विशिष्ट खंड को पार करती है या सिग्नल वापस ले लिया जाता है।
      • यह सुनिश्चित करता है कि बिंदु सही ढंग से संरेखित हैं और ट्रेन की आवाजाही के लिये सुरक्षित हैं।
    • विफलता के संकेत: विफलता या खराबी की स्थिति में सिस्टम ऑपरेटरों या रखरखाव कर्मियों को सचेत करता है।
      • एक सामान्य तरीका लाल बत्ती सिग्नल का उपयोग है जो यह दर्शाता है कि सिस्टम ने एक समस्या का पता लगाया है और आगे का मार्ग स्पष्ट या सुरक्षित नहीं है।
      • यह समस्या को हल करने और सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करने के लिये उचित कार्रवाई करने का संकेत देता है। 

स्रोत: द हिंदू  

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