प्रारंभिक परीक्षा
सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड स्कीम 2023-24
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक के परामर्श से भारत सरकार ने वर्ष 2023-24 के लिये सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (SGB) की किश्तों को जारी करने का निर्णय लिया है।
- पहली SGB योजना नवंबर 2015 में सरकार द्वारा स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के तहत शुरू की गई थी जिसका उद्देश्य भौतिक सोने की मांग को कम करना और घरेलू बचत का एक हिस्सा वित्तीय बचत के रूप में स्थानांतरित करना था ताकि उसे सोने की खरीद के लिये इस्तेमाल किया जा सके।
योजना संबंधी प्रमुख विवरण:
वस्तु |
विवरण |
जारीकर्त्ता |
भारत सरकार की ओर से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया जाता है। |
पात्रता |
SGB की बिक्री निवासी व्यक्तियों, HUF (हिंदू अविभाजित परिवार), ट्रस्टों, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थानों के लिये प्रतिबंधित होगी। |
अवधि |
SGB की अवधि 8 वर्ष की होगी, जिसमें 5वें वर्ष के बाद समय से पहले भुनाने का विकल्प होगा। |
न्यूनतम सीमा |
न्यूनतम अनुमेय निवेश की सीमा एक ग्राम सोना होगा। |
अधिकतम सीमा |
सदस्यता की अधिकतम सीमा प्रति वित्तीय वर्ष व्यक्तियों के लिये 4 किलोग्राम, HUF के लिये 4 किलोग्राम और ट्रस्टों के लिये 20 किलोग्राम तथा धर्मार्थ संस्थाओं के लिये सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित (अप्रैल-मार्च) होगी। |
संयुक्त धारक |
संयुक्त धारक के मामले में 4 किलोग्राम की निवेश सीमा पहले आवेदक पर ही लागू होगी। |
निर्गमन मूल्य |
इंडिया बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन लिमिटेड द्वारा प्रकाशित 999 शुद्धता वाले सोने की क्लोज़िंग प्राइस के सामान्य औसत के आधार पर SGB की कीमत भारतीय रुपए में तय की जाएगी। |
बिक्री के चैनल |
SGB अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (लघु वित्त बैंकों, भुगतान बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर), स्टॉक हाल्डिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SHCIL), क्लियरिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (CCIL) और नामित डाकघरों (जैसा भी अधिसूचित किया जाए) तथा मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों अर्थात् नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड एवं बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज से सीधे या एजेंटों के ज़रिये बेचे जाएंगे। |
ब्याज़ दर |
निवेशकों को निवेश के आरंभिक मूल्य (अंकित मूल्य या घोषित मूल्य) पर 2.50 प्रतिशत प्रतिवर्ष की नियत दर पर अर्द्धवार्षिक रूप से देय होगा। |
संपार्श्विक |
SGB को ऋणों के लिये संपार्श्विक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। |
कर उपचार |
आयकर अधिनियम, 1961 के उपबंधों के अनुसार, SGB पर ब्याज कर देना होगा। किसी व्यक्ति को SGB के मोचन से प्राप्त पूंजी लाभ कर पर छूट दी गई है। |
व्यापार योग्यता |
SGB स्टाक एक्सचेंजों में व्यापार योग्य होंगे। |
SLR पात्रता |
केवल ग्रहणाधिकार/बंधक/गिरवी रखने की प्रक्रिया के माध्यम से बैंकों द्वारा अर्जित SGB की गणना सांविधिक नकदी अनुपात में की जाएगी। |
इंडिया बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन लिमिटेड (IBJA):
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- यह अपने सदस्यों को सर्राफा व्यापार को बढ़ावा देने और विनियमित करने, विवादों को हल करने, कीमती धातुओं के मूल्यांकन के लिये एक तटस्थ मंच प्रदान करने तथा सरकारी विभागों के साथ संवाद करने में सहायता करता है।
- IBJA का ज़ावेरी बाज़ार, मुंबई में अपना एक भवन है, जहाँ से यह सर्राफा और आभूषण उद्योग संबंधी विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. सरकार की 'संप्रभु स्वर्ण बॉण्ड योजना (Sovereign Gold Bond Scheme)' और 'स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (Old Monetization Scheme)' का/के उद्देश्य क्या है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
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स्रोत: पी.आई.बी.
प्रारंभिक परीक्षा
दैतारी ग्रीनस्टोन बेल्ट
हाल ही के एक शोध में सिंहभूम क्षेत्र, भारत में उल्लेखनीय रूप से संरक्षित ज्वालामुखीय और तलछटी चट्टानों का विश्लेषण किया गया, जो 3.5 अरब वर्ष पुराने हैं।
- ये निष्कर्ष भारत के भूगर्भीय इतिहास और दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्रों के साथ इसकी समानता पर प्रकाश डालते हैं।
निष्कर्ष:
- अध्ययन क्षेत्र:
- यह अध्ययन पूर्वी भारत में सिंहभूम क्रेटन में दैतारी ग्रीनस्टोन बेल्ट में लगभग 3.5 अरब वर्ष पहले बनी ज्वालामुखीय और तलछटी चट्टानों पर केंद्रित था।
- ये चट्टानें असाधारण रूप से अच्छी तरह से संरक्षित हैं और पृथ्वी के अतीत की एक झलक पेश करती हैं।
- ग्रीनस्टोन्स की भूगर्भिक संरचना:
- शोधकर्त्ताओं ने पाया कि दैतारी ग्रीनस्टोन बेल्ट दक्षिण अफ्रीका के बार्बरटन और नोंडवेनी क्षेत्रों में पाए जाने वाले ग्रीनस्टोन के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया के पिलबारा क्रेटन में पाए जाने वाले ग्रीनस्टोन के समान भूवैज्ञानिक विशेषताएँ साझा करता है।
- इस प्रकार की समानताओं से इन क्षेत्रों के एक सामान्य भूगर्भीय इतिहास का संकेत मिलता है।
- उप-समुद्री ज्वालामुखी गतिविधि:
- शोध से पता चला है कि 3.5 से 3.3 अरब वर्ष पूर्व उप-समुद्री ज्वालामुखी विस्फोट की घटनाएँ सामान्य बात थीं।
- इन विस्फोटों के कारण सिंहभूम, कापवाल और पिलबारा क्रैटन के ग्रीनस्टोन चट्टानों के भीतर तकियानुमा/पिल्लो लावा (Pillow Lava) संरचनाएँ निर्मित हुईं।
- तकियानुमा/पिल्लो लावा का निर्माण तब होता है जब गर्म पिघला हुआ बेसाल्टिक मैग्मा धीरे-धीरे पानी के नीचे प्रस्फुटित होता है और गोलाकार अथवा गोल तकिये के आकार में तेज़ी से जम जाता है।
- उप-समुद्री तलछटी चट्टानें:
- सिलिकिक ज्वालामुखी के बाद ज्वालामुखीय लावा जलमग्न होने के कारण उप-समुद्री टर्बिडिटी करंट डिपॉज़िट का निर्माण हुआ था।
- ये तलछटी चट्टानें उप-समुद्री वातावरण के संबंध में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं तथा ये लगभग 3.5 बिलियन वर्ष पहले डेट्राइटल U-Pb जिरकोन डेटा का उपयोग करके दिनांकित की गई थीं।
- डेट्राइटल जिरकोन U-Pb भू-कालानुक्रम तलछटी चट्टानों के अध्ययन जैसे कि उद्भव, उत्तराधिकार का सहसंबंध और अधिकतम निक्षेपण उम्र को परिभाषित करने के साथ-साथ पुरापाषाणकालीन पुनर्निर्माण और महाद्वीपीय भूपर्पटी के विकास से संबंधित अध्ययन के लिये एक उपकरण है।
निष्कर्षों का महत्त्व:
- प्राचीन वातावरण को समझना:
- ज्वालामुखीय और तलछटी चट्टानों सहित प्राचीन ग्रीनस्टोन्स का अध्ययन वैज्ञानिकों को प्रारंभिक अवस्था में पृथ्वी पर रहने योग्य वातावरण की अंतर्दृष्टि प्राप्त करने की अनुमति देता है। ये चट्टानें टाइम कैप्सूल के रूप में कार्य करती हैं, जो ग्रह के विकास के बारे में संकेत प्रदान करती हैं।
- भू-वैज्ञानिक प्रक्रियाएँ:
- ये निष्कर्ष विविध ज्वालामुखीय प्रक्रियाओं और प्राचीन महाद्वीपों के भूगर्भिक इतिहास की समझ में योगदान करते हैं।
- भूगर्भीय संबंध:
- भारत, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के भूगर्भीय विशेषताओं के बीच समानताएँ प्रदर्शित करती हैं कि इन क्षेत्रों में 3.5 अरब वर्ष पहले समान भूगर्भीय घटनाएँ हुई थी।
- पैलियोग्राफिक भौगोलिक स्थिति:
- आगे के अध्ययन उस समय के दौरान इन प्राचीन महाद्वीपों की पैलियो-भौगोलिक स्थिति पर प्रकाश डाल सकते हैं और प्लेट विवर्तनिकी से संबंधित सिद्धांतों में योगदान कर सकते हैं।
स्रोत: द हिंदू
प्रारंभिक परीक्षा
भारत में सार्वभौमिक पहुँच हेतु सुसंगत दिशा-निर्देश और स्थान संबंधी मानक
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा बनाए गए भारत में सार्वभौमिक पहुँच के लिये सुसंगत दिशा-निर्देश और स्थान संबंधी मानक- 2021 को RPwD (संशोधन) नियम, 2023 में संशोधित किया गया है।
भारत में सार्वभौमिक पहुँच हेतु सुसंगत दिशा-निर्देश और स्थान संबंधी मानक- 2021:
- यह भारत में दिव्यांग व्यक्तियों (PwD) के लिये भौतिक वातावरण, परिवहन, सूचना एवं संचार और अन्य सुविधाओं तथा सेवाओं को सुलभ बनाने हेतु नियमों और मानकों का एक समूह है।
- या वर्ष 2016 में जारी दिशा-निर्देश में दिव्यांग व्यक्तियों और बुजुर्गों के लिये बाधा मुक्त वातावरण निर्मित करने हेतु संशोधित सामंजस्यपूर्ण दिशा-निर्देशों और स्थान संबंधी मानक है।
- पहले दिशा-निर्देश बाधा मुक्त वातावरण बनाने के लिये थे लेकिन अब सार्वभौमिक पहुँच पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- ये दिशा-निर्देश केवल दिव्यांग व्यक्तियों (Persons with Disabilities- PwD) हेतु ही नहीं हैं, बल्कि सरकारी भवनों के निर्माण से लेकर शहरों की मास्टर-प्लानिंग तक परियोजनाएँ बनाने में शामिल लोगों के लिये भी हैं।
- इन दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन हेतु आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) नोडल मंत्रालय है।
भारत में पीडब्ल्यूडी से संबंधित विधायी ढाँचा:
- भारत ने वर्ष 2007 में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UN Convention on the Rights of Persons with Disabilities- CRPD) की पुष्टि की और दिसंबर 2016 में दिव्यांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम को पारित किया जो वर्ष 2017 में लागू हुआ।
- RPwD अधिनियम, 2016 के अनुसार, 21 प्रकार की विकलांगताओं को मान्यता दी गई है।
- PwD अधिनियम, 2016 की धारा 40 के अनुसार, केंद्र सरकार मुख्य आयुक्त (PwD हेतु) के परामर्श से दिव्यांग व्यक्तियों के लिये नियम बनाती है, जिसमें उचित प्रौद्योगिकियों एवं प्रणालियों तथा शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में जनता को प्रदान की जाने वाली अन्य सुविधाओं और सेवाओं सहित भौतिक पर्यावरण, परिवहन, सूचना एवं संचार हेतु पहुँच के लिये मानक निर्धारित किये जाते हैं।
- इसके तहत "सुगम्य भारत अभियान" (एक्सेसिबल इंडिया कैंपेन) जैसी कई पहलें की जा रही हैं।
- अन्य पहलें:
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत लाखों विकलांग व्यक्तियों का घर है। कानून के तहत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. क्या निःशक्त व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में अभीष्ट लाभार्थियों के सशक्तीकारण और समावेशन की प्रभावी क्रियाविधि को सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिये।(2017) |
स्रोत: पी.आई.बी.
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 16 जून, 2023
जूली लद्दाख (हैलो लद्दाख)
नौसेना के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लद्दाख में युवाओं एवं नागरिक समाज के साथ संबंध मज़बूत बनाने हेतु भारतीय नौसेना ने आउटरीच कार्यक्रम के माध्यम से "जूली लद्दाख" (हैलो लद्दाख) की शुरुआत की। इस पहल का उद्देश्य पूर्वोत्तर और तटीय राज्यों में नौसेना के सफल प्रयासों से अनेक उद्देश्यों को प्राप्त करना है। सबसे पहले, यह "आज़ादी का अमृत महोत्सव" के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ मनाने का प्रयास करता है। दूसरा, इसका उद्देश्य लद्दाख के छात्रों में अग्निपथ योजना सहित भारतीय नौसेना में कैरियर के अवसरों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। इसके अतिरिक्त कार्यक्रम का प्रयास युवाओं को भारतीय नौसेना में शामिल होने के लिये प्रेरित करना तथा महिला अधिकारियों और उनके जीवनसाथी को शामिल करके नारी शक्ति का प्रदर्शन करना है।
और पढ़ें… अग्निपथ योजना
U.S. और पापुआ न्यू गिनी सुरक्षा समझौता
प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के उद्देश्य से एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका ने पापुआ न्यू गिनी के साथ एक ऐतिहासिक सुरक्षा समझौता किया है। यह समझौता अमेरिकी सेना को पापुआ न्यू गिनी में ठिकानों को विकसित एवं संचालित करने की अनुमति देता है, रणनीतिक बंदरगाहों और हवाई अड्डों तक पहुँच प्रदान करता है, जिसमें मानुस द्वीप पर लोम्ब्रम नौसेना बेस तथा पोर्ट मोरेस्बी में सुविधाएँ शामिल हैं। लोम्ब्रम नौसेना बेस का द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विभिन्न देशों के लिये छावनी के रूप में ऐतिहासिक महत्त्व है तथा गहरे जल की बंदरगाह क्षमताएँ प्रदान करता है। अमेरिका द्वारा इस बेस को सुरक्षित करने का उद्देश्य क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति को पछाड़ना और प्रशांत क्षेत्र में अपनी रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करना है। सुरक्षा समझौते को पापुआ न्यू गिनी के भीतर समर्थन एवं आलोचना दोनों का सामना करना पड़ा है। पापुआ न्यू गिनी की स्वायत्तता के लिये संभावित समझौतों तथा राष्ट्र द्वारा निर्धारित किये जाने वाले लक्ष्य के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गई हैं। जैसा कि देश स्वयं को वाशिंगटन और बीजिंग के बीच एक राजनयिक रस्साकशी के केंद्र में पाता है, इसके समृद्ध प्राकृतिक संसाधन तथा रणनीतिक स्थान इसे दोनों शक्तियों के लिये एक मूल्यवान संपत्ति बनाते हैं। यह समझौता दक्षिण प्रशांत में चीन के सैन्य ठिकानों का मुकाबला करने हेतु वाशिंगटन की व्यापक रणनीति का हिस्सा है, विशेष रूप से ताइवान की रक्षा के संबंध में।
और पढ़ें…….. प्रशांत द्वीपीय देशों में चीन का विस्तार
जैव उत्तेजक
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार जैव उत्तेजक के पंजीकरण के लिये मसौदा दिशा-निर्देश जारी करती है। किसी भी जैव उत्तेजक का निर्माण या आयात करने वाले व्यक्ति के लिये यह अनिवार्य है कि वह ऐसे जैव उत्तेजक को उर्वरक (अकार्बनिक, जैविक या मिश्रित) नियंत्रण संशोधन आदेश 2021 की अनुसूची VI के तहत सूचीबद्ध करे, जिसे FCO संशोधन आदेश भी कहा जाता है। जैव उत्तेजक पदार्थ, सूक्ष्मजीव या उनके संयोजन हैं जो पौधों में शारीरिक प्रक्रियाओं को बढ़ाते हैं, जिससे पोषक तत्त्वों की वृद्धि, उपज, पोषण दक्षता, फसल की गुणवत्ता और तनाव सहनशीलता में सुधार होता है। वे सीधे पोषक तत्त्व प्रदान किये बिना पौधों की प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करने का काम करते हैं। जैव उत्तेजक कीटनाशकों या पौधों के विकास नियामकों से भिन्न होते हैं जो कीटनाशक अधिनियम, 1968 के अंतर्गत आते हैं। जैव उत्तेजक के कुछ उदाहरणों में पौधों के हार्मोन, विटामिन, एंज़ाइम, ह्यूमिक अम्ल, शर्करा, मछली का पायस, प्रोटीन हाइड्रोलाइसेट, समुद्री शैवाल, पौधों के अर्क, चिटोसन और अन्य बायोपॉलिमर, अकार्बनिक यौगिक तथा लाभकारी रोगाणु शामिल हैं। जैव उत्तेजक और उर्वरकों के बीच मुख्य अंतर उपयोग तथा क्रिया तंत्र का है एवं तथ्य यह है कि जीवित सूक्ष्म जीव जैव उत्तेजक में शामिल हैं। जबकि जैव उत्तेजक पौधों की संवृद्धि और स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करते हैं। उर्वरकों का उपयोग मुख्य रूप से मिट्टी को आवश्यक पोषक तत्त्वों से संपृक्त करने के लिये किया जाता है, जो पादप संवर्द्धन हेतु आवश्यक होते हैं।
शनि के चंद्रमा एन्सेलेडस पर फाॅस्फोरस
वैज्ञानिकों ने शनि के चंद्रमा एन्सेलेडस पर जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण तत्त्व फॉस्फोरस की खोज की है। विगत अध्ययनों में एन्सेलेडस पर बर्फ के कणों में खनिज और कार्बनिक यौगिक पाए गए थे, लेकिन अभी तक वैज्ञानिकों को फॉस्फोरस की जानकारी नहीं थी। यह खोज नासा के कैसिनी अंतरिक्ष यान द्वारा वर्ष 2004 से वर्ष 2017 तक विशाल ग्रह, उसके छल्लों तथा उसके चंद्रमाओं की 13 वर्ष की खोज के दौरान एकत्रित आँकड़ों की समीक्षा पर आधारित थी। फॉस्फोरस DNA और RNA संरचना की एक मूलभूत इकाई है, जो पृथ्वी पर जीवन के सभी रूपों में विद्यमान कोशिकीय झिल्लियों एवं ऊर्जा-वाहक अणुओं का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। यह नई खोज एन्सेलेडस को पृथ्वी से परे सौरमंडल में केवल रोगाणुओं के रहने योग्य स्थान के रूप में एक संभावित विकल्प बनाता है। विगत 25 वर्षों में वैज्ञानिकों ने सौरमंडल में बर्फ की सतही परत के नीचे महासागरों के साथ रहने योग्य स्थानों की खोज की है, जिसमें बृहस्पति का चंद्रमा यूरोपा, शनि का सबसे बड़ा चंद्रमा टाइटन भी शामिल है।