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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 04 Sep, 2024
  • 21 min read
प्रारंभिक परीक्षा

देशी मवेशी नस्लों के संरक्षण हेतु पहल

स्रोत: द हिंदू 

राष्ट्रीय पशु जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (NIAB) पशुधन क्षेत्र के संरक्षण और सतत् विकास के लिये कई पहलों पर काम कर रहा है।

राष्ट्रीय पशु जैव प्रौद्योगिकी संस्थान

  • राष्ट्रीय पशु जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (National Institute of Animal Biotechnology (NIAB) विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।
  • NIAB का उद्देश्य नवीन और उभरती हुई जैव प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना तथा पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादकता में सुधार के लिये अत्याधुनिक क्षेत्रों में अनुसंधान करना है।
  • इसका मिशन नवीन प्रौद्योगिकी के माध्यम से एक स्थायी और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी पशुधन उद्योग का विकास करना है।
  • संस्थान का अनुसंधान पशु आनुवंशिकी और जीनोमिक्स, ट्रांसजेनिक प्रौद्योगिकी, प्रजनन जैव प्रौद्योगिकी, संक्रामक रोग, जैव सूचना विज्ञान तथा पोषण संवर्द्धन पर केंद्रित है।

देशी मवेशियों की नस्लों के संरक्षण के लिये NIAB की पहल क्या हैं?

  • देशी मवेशियों का आनुवंशिक अनुक्रमण: NIAB द्वारा पंजीकृत मवेशियों की नस्लों के लिये आणविक हस्ताक्षर/मॉलिक्यूलर सिग्नेचर स्थापित करने के लिये नेक्स्ट जेनरेशन सिक्वेंसिंग (NGS) डेटा और जीनोटाइपिंग तकनीक का उपयोग किया जा रहा है।
    • आणविक हस्ताक्षर स्वदेशी मवेशियों की नस्लों की शुद्धता को सटीक रूप से पहचानने और बनाए रखने तथा अद्वितीय आनुवंशिक लक्षणों को संरक्षित करने में मदद करते हैं।
  • टीका विकास (Vaccine Development): NIAB द्वारा पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार और आर्थिक नुकसान को कम करने के लिये ब्रुसेलोसिस जैसी बीमारियों के खिलाफ नेक्स्ट जेनरेशन के टीके विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
  • उन्नत अनुसंधान और मॉडल: NIAB प्राकृतिक और 3D-प्रिंटेड पदार्थों का उपयोग करके ऊतक की मरम्मत तथा दवा वितरण के लिये 'बायो-स्कैफोल्ड' के विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
    • स्कैफोल्ड एक मौलिक पदार्थ है, जिसमें कोशिकाओं और विकास कारकों को एक स्थानापन्न ऊतक बनाने के लिये एम्बेड किया जाता है।
    • तपेदिक दवा स्क्रीनिंग और रोग मॉडलिंग के लिये एक गोजातीय फेफड़े का एक कोशिका-आधारित 3D मॉडल बनाया गया है।
  • स्थायी जैव-अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: NIAB जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा निर्धारित छह विषयगत क्षेत्रों के अनुरूप काम कर रहा है ताकि वैकल्पिक प्रोटीन और संधारणीय जैव-निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक जैव-आधारित चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सके।
  • एंटीबायोटिक्स के विकल्प: NIAB ने स्टैफिलोकोकी, ई. कोली और स्ट्रेप्टोकोकी जैसे बैक्टीरिया को लक्षित करने के लिये एंटीबायोटिक्स के विकल्प के रूप में बैक्टीरियोफेज़ तथा उनके 'लिटिक' प्रोटीन का उपयोग करने की योजना बनाई है।
    • बैक्टीरियोफेज, जिन्हें फेज भी कहा जाता है, वे वायरस हैं जो केवल बैक्टीरिया कोशिकाओं में ही संक्रमित होते हैं और उनमें ही प्रजनन करते हैं। बैक्टीरियोफेज बैक्टीरिया को मारते हैं।
    • फेज लाइटिक प्रोटीन एंजाइम आधारित एंटीबायोटिक दवाओं का एक चिकित्सकीय रूप से उन्नत वर्ग है, जिसे एंजाइमोयटिक्स कहा जाता है।
  • पोषण संबंधी तनाव के लिये बायोमार्कर: पोषण संबंधी तनाव के प्रारंभिक आकलन हेतु एक बायोमार्कर (मेटाबोलाइट और प्रोटीन) विकसित किया गया है, जो मवेशियों की आबादी में उत्पादकता और बाँझपन में कमी ला सकता है।
  • सामुदायिक पहुँच और सतत् कृषि: NIAB सामुदायिक सहभागिता और मिलन (MILAN) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सतत् पशुधन खेती को बढ़ावा देता है, जो नई प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करने के लिये पशुधन किसानों के साथ जुड़ता है।

अगली पीढ़ी का अनुक्रमण (NGS) क्या है?

  • NGS एक नई तकनीक है, जिसका उपयोग DNA और RNA अनुक्रमण तथा भिन्नता/उत्परिवर्तन का पता लगाने के लिये किया जाता है।
  • NGS बहुत कम समय में सैकड़ों-हज़ारों जीनों या संपूर्ण जीनोम को अनुक्रमित कर सकता है।
  • इसमें DNA विखंडन, बड़े पैमाने पर समानांतर अनुक्रमण, जैव सूचना विज्ञान विश्लेषण तथा भिन्नता/उत्परिवर्तन समीक्षा और व्याख्या शामिल है।
  • NGS को व्यापक समानांतर अनुक्रमण या गहन अनुक्रमण के रूप में भी जाना जाता है।

भारत में BioE3 नीति और जैव प्रौद्योगिकी क्या है?

  • अगस्त 2024 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रस्ताव ‘BioE3 (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोज़गार के लिये जैव प्रौद्योगिकी) नीति’ को मंज़ूरी दी।
  • BioE3 को जैव-विनिर्माण को बढ़ाने के लिये अभिकल्पित किया गया है, जो विभिन्न क्षेत्रों में ईंधन योजक जैसे जैव आधारित उत्पादों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • यह एक वृत्ताकार जैव-अर्थव्यवस्था के माध्यम से 'नेट जीरो' कार्बन अर्थव्यवस्था और मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिये जीवनशैली) को प्राप्त करने जैसे राष्ट्रीय उद्देश्यों का समर्थन करता है।
  • यह अनुसंधान एवं विकास नवाचार और उद्यमिता पर ध्यान केंद्रित करता है, जैव विनिर्माण तथा  जैव-AI केंद्रों की स्थापना करता है एवं भारत के जैव प्रौद्योगिकी कार्यबल का विस्तार करना चाहता है।
  • स्वास्थ्य देखभाल परिणामों में सुधार के लिये प्रेसिजन बायोथेराप्यूटिक्स (सटीक चिकित्सा) BioE3 नीति के मुख्य विषयों में से एक है।

पशुधन क्षेत्र के विकास के लिये सरकारी योजनाएँ क्या हैं?

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  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

Q.1 भारत की निम्नलिखित फसलों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. लोबिया
  2.  मूंग 
  3.  अरहर

उपर्युक्त में से कौन-सा/से दलहन उपयोग दलहन, चारा और हरी खाद के रूप में प्रयोग होता है/होते हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न .वर्तमान में वैज्ञानिक गुणसूत्र पर जीन या डीएनए अनुक्रमों की व्यवस्था या सापेक्ष स्थिति निर्धारित कर सकते हैं। यह ज्ञान हमें कैसे लाभ पहुँचाता है? (2011)

  1. पशुधन की वंशावली जानना संभव है।
  2. सभी मानव रोगों के कारणों को समझना संभव है।
  3. रोग प्रतिरोधी पशु नस्लों को विकसित करना संभव है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


रैपिड फायर

नामीबिया में माँस के लिये वन्यजीवों को मारने की योजना

स्रोत: इकनोमिक टाइम्स

नामीबिया सरकार देश में भयंकर सूखे और भुखमरी के संकट के कारण भोजन के लिये 83 हाथियों सहित 723 वन्यजीवों को मारने की योजना बना रही है। इस कदम का उद्देश्य भोजन उपलब्ध कराना तथा संसाधनों की कमी के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना है। 

  • यह योजना नामीबिया के नागरिकों के लाभ के लिये प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने के संवैधानिक जनादेश के अनुरूप है। 
    • नामीबिया बढ़ते मानव-वन्यजीव संपर्क को कम करने के लिये भी कार्य कर रहा है, जो सूखे के दौरान और भी बढ़ जाता है क्योंकि दोनों ही जल तथा वनस्पति की तलाश में होते हैं।

नामीबिया:

  • नामीबिया एक दक्षिणी अफ्रीकी देश है, जिसकी पश्चिमी सीमा अटलांटिक महासागर द्वारा बनाई गई है। यह अंगोला और जाम्बिया के साथ अपनी उत्तरी सीमाएँ साझा करता है, जबकि बोत्सवाना इसके पूर्व में स्थित है तथा दक्षिण अफ्रीका इसके पूर्वी व दक्षिणी दोनों क्षेत्रों की सीमाएँ बनाता है। 
  • नामीबिया को उप-सहारा अफ्रीका में सबसे शुष्क देश माना जाता है। यह वैश्विक स्तर पर सबसे कम घनी आबादी वाले देशों में से एक है। 
  • वर्ष 1884 में जर्मन साम्राज्य ने इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्से पर औपनिवेशिक शासन स्थापित किया, जिसका नाम जर्मन दक्षिण पश्चिम अफ्रीका रखा गया। 
  • नामीब, कालाहारी, सक्सुलेंट कारू और नामा कारू रेगिस्तान नामीबिया में स्थित हैं। 
  • ज़ाम्बेजी, ओकावांगो तथा कुनेने नामीबिया की महत्त्वपूर्ण नदियाँ हैं।

और पढ़ें: मानव-वन्यजीव संघर्ष


रैपिड फायर

औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 का नियम 170

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आयुष मंत्रालय की इस बात के लिये आलोचना की कि उसने राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकारियों को औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 की अवहेलना करने का निर्देश दिया है, जिसे आयुष उत्पादों के भ्रामक विज्ञापनों को रोकने के लिये बनाया गया है।

  • आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के विज्ञापन को विनियमित करने के लिये नियम 170 को वर्ष 2018 में प्रस्तुत किया गया था, जिसके तहत निर्माताओं को राज्य लाइसेंसिंग अधिकारियों से अनुमोदन तथा एक विशिष्ट पहचान संख्या प्राप्त करना आवश्यक था।
    • इस नियम का उद्देश्य आयुष उत्पाद विज्ञापनों में झूठे या बढ़ा-चढ़ाकर दावे करने, अश्लील सामग्री रखने या सरकारी निकायों का उल्लेख करने से रोकना है।
    • नियम के अनुसार निर्माताओं को पाठ्य संदर्भ, औचित्य, संकेत, सुरक्षा, प्रभावशीलता और गुणवत्ता जैसे विवरण प्रस्तुत करने होंगे।
  • 1 जुलाई 2024 को आयुष मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर राज्य अधिकारियों को नियम 170 की अनदेखी करने का निर्देश दिया। यह निर्देश आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड (ASUDTAB) द्वारा मई 2023 में की गई सिफारिश के बाद आया, जिसमें नियम को छोड़ने की सिफारिश की गई थी क्योंकि भ्रामक विज्ञापनों से निपटने के लिये औषधि और चमत्कारिक उपचार अधिनियम, 1954 में संशोधन पर विचार किया जा रहा था।
    • ASUDTAB एक विशेषज्ञ निकाय है जो आयुष औषधियों के विनियमन से संबंधित कार्यों की सिफारिश करता है।

और पढ़ें: भारत में भ्रामक विज्ञापनों का विनियमन


रैपिड फायर

कृषि अवसंरचना कोष का विस्तार

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को वित्तीय सुरक्षा और ऋण पात्रता में सुधार करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु 1 लाख करोड़ रुपए के कृषि अवसंरचना कोष (AIF) की सीमा का विस्तार किया।

  • AIF अब “सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण हेतु व्यवहार्य परियोजनाओं” के अंतर्गत आने वाली बुनियादी अवसंरचना के निर्माण के लिये योजनाओं के सभी पात्र लाभार्थियों को अनुमति देगा, इससे विकास, उत्पादकता, कृषि आय और समग्र कृषि स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।  
    • FPO के लिये वित्तीय सहायता को शामिल करने हेतु इसे पुनर्कल्पित किया जाएगा ताकि उनकी वित्तीय सुरक्षा और ऋण-योग्यता बढ़ाई जा सके।
  • AIF: AIF जुलाई 2020 में शुरू की गई एक वित्तपोषण सुविधा है।
    • इसका उद्देश्य किसानों, कृषि-उद्यमियों, स्वयं सहायता समूहों (SHG), संयुक्त देयता समूहों (JLG) आदि जैसे किसान समूहों और कई अन्य लोगों को पूरे देश में फसल-उपरांत प्रबंधन, बुनियादी अवसंरचना का निर्माण करने तथा सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों का निर्माण करने हेतु व्यापक वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • FPO: FPO किसानों के एक समूह द्वारा गठित कानूनी संस्थाएँ हैं, जिनके समान हित और लक्ष्य होते हैं।
    • वे सहकारी समितियों, कंपनियों, ट्रस्टों या सोसायटियों जैसे विभिन्न कानूनी रूपों के तहत पंजीकृत हैं। उनका उद्देश्य छोटे व सीमांत किसानों को उनकी उपज और सौदेबाजी की शक्ति को एकत्र करके वित्त एवं बाज़ार तक बेहतर पहुँच प्रदान करना है।
    • वे अपने सदस्यों को तकनीकी सहायता, इनपुट आपूर्ति, मूल्य संवर्धन और गुणवत्ता आश्वासन भी प्रदान करते हैं।

और पढ़ें: कृषि अवसंरचना कोष, किसान उत्पादक संगठन


रैपिड फायर

ज़ाइक्लोन बी

स्रोत: द हिंदू 

3 सितंबर, 1941 को नाज़ियों ने पोलैंड के ऑशविट्ज़ यातना शिविर में यहूदियों को मारने के लिये पहली बार ज़ाइक्लोन बी का प्रयोग किया। 

  • ऑशविट्ज़ नाज़ी जर्मनी का एक यातना शिविर था जिसमें लगभग दस लाख यहूदियों की व्यवस्थित तरीके से हत्या की गई थी। 
    • यहूदियों को भूखा रखा गया, उनसे तब तक कार्य करवाया गया जब तक उनकी मृत्यु नहीं हो गई और ज़ाइक्लोन बी जैसी ज़हरीली गैसों का प्रयोग करके गैस चैंबर के परिसर में मार दिया गया। 

ज़ाइक्लोन बी का परिचय : 

  • ज़ाइक्लोन बी हाइड्रोजन साइनाइड (HCN) का व्यावसायिक नाम है। 
  • इसे जर्मनी में वर्ष 1920 के दशक की शुरुआत में कीटनाशक और कृंतकनाशक के रूप में विकसित किया गया था। 
  • इसे नीले रंग के छर्रों के रूप में उत्पादित किया गया था, जो वायु  के संपर्क में आने पर बेहद ज़हरीली गैस में बदल जाते थे। 
  • इस वातावरण में साँस लेने से लाल रक्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन का आदान-प्रदान अवरुद्ध हुआ और कोशिकीय श्वसन बाधित हो गया जिससे पीड़ितों के आंतरिक दम घुटने की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • ज़ाइक्लोन बी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कुख्यात हो गया था। वर्ष 1916 में फ्राँस और वर्ष 1918 में इटली एवं संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इसका प्रयोग किया था।

और पढ़ें: होलोकॉस्ट और द्वितीय विश्व युद्ध


रैपिड फायर

सौर चुंबकीय क्षेत्र अनुसंधान

स्रोत: पी.आई.बी.

हाल ही में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics- IIA) के खगोलविदों ने सौर वायुमंडल की विभिन्न परतों पर चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करके सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करने का एक नया तरीका खोजा है। खगोलविदों ने IIA के कोडईकनाल टॉवर टनल टेलीस्कोप से प्राप्त डेटा का उपयोग करके ऐसा किया है।

  • शोध विवरण: अध्ययन में सक्रिय सनस्पॉट क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें कई अम्ब्रे (गहरा केंद्रीय क्षेत्र) और एक पेनुम्ब्रा (बाहरी हल्का क्षेत्र) सहित जटिल विशेषताएँ शामिल हैं।
    • अवलोकन हाइड्रोजन-अल्फा रेखा और कैल्शियम II रेखा का उपयोग करके किये गए। ये रेखाएँ सौर वायुमंडल में विभिन्न ऊँचाइयों पर चुंबकीय क्षेत्र के स्तरीकरण का अनुमान लगाने में मदद करती हैं।
    • महत्व: यह निष्कर्ष सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के बारे में हमारी समझ को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण हैं तथा सौर चुंबकीय परिघटनाओं का अधिक विस्तार से पता लगाने के लिये भविष्य के अध्ययनों हेतु मंच तैयार करते हैं।
  • कोडईकनाल टॉवर टनल टेलीस्कोप: यह तीन दर्पण आधारित सौर दूरबीन है, जिसका स्वामित्व और संचालन भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के पास है।
    • ब्रिटिश खगोलशास्त्री जॉन एवरशेड ने पहली बार वर्ष 1909 में भारत के कोडईकनाल वेधशाला में एवरशेड प्रभाव देखा था।
      • एवरशेड प्रभाव एक ऐसी घटना है, जो सूर्य के धब्बों की सतह पर गैस के प्रवाह का वर्णन करती है।
  • सौर वायुमंडल के बारे में: सौर वायुमंडल चुंबकीय क्षेत्रों के माध्यम से परस्पर जुड़ी परतों से बना है। ये क्षेत्र ऊर्जा और द्रव्यमान को स्थानांतरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो "कोरोनल हीटिंग समस्या" को हल करने में मदद करता है तथा सौर हवा को चलाता है।
    • कोरोनाल हीटिंग समस्या सौर भौतिकी में एक रहस्य है, जिसमें यह समझना शामिल है कि सूर्य का कोरोना (सूर्य के वायुमंडल की सबसे बाहरी परत) उसके नीचे की परतों की तुलना में अधिक गर्म क्यों है।

अधिक पढ़ें: कोरोनल मास इजेक्शन


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