जैव विविधता और पर्यावरण
गंगा में सबसे ज़्यादा बैक्टीरियोफेज
- 20 Apr 2019
- 3 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय द्वारा गठित आयोग के अंतर्गत किये गए एक अध्ययन के अनुसार गंगा के ‘अद्वितीय गुणों’ की जाँच में नदी के पानी में जीवाणुरोधी गुणों वाले जीवों का अनुपात काफी अधिक पाया गया है।
प्रमुख बिंदु
- अध्ययन के अनुसार, भारत की दूसरी नदियों में भी जीवाणुरोधी गुणों वाले जीव उपस्थित हैं लेकिन गंगा में विशेषकर इसके ऊपरी हिमालयी हिस्सों में ये अधिक है।
- वर्ष 2016 में ‘गंगा नदी के विशेष गुणों को समझने के लिये जल की गुणवत्ता और तलछट के आकलन' हेतु अध्ययन शुरू किया गया था।
- अध्ययन कार्य का संचालन नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग और अनुसंधान संस्थान (NEERI), द्वारा किया गया।
- NEERI टीम को भागीरथी (गंगा की एक सहायक नदी) और गंगा में ‘रेडियोलॉजिकल, माइक्रोबायोलॉजिकल और जैविक’ मापदंडों के लिये पानी की गुणवत्ता का आकलन करने का काम सौंपा गया था।
क्रियाविधि
- मूल्यांकन के तहत पाँच रोगजनक प्रजातियों वाले बैक्टीरिया- एस्चेरिचिया, एंटरोबैक्टर, साल्मोनेला, शिगेला, वाइब्रियो (Escherichia, Enterobacter, Salmonella, Shigella, Vibrio) को गंगा, यमुना और नर्मदा से लिया गया और उनकी संख्या की तुलना नदी के पानी में मौजूद बैक्टीरियोफेज (Bacteriophages) से की गई।
- बैक्टीरियोफेज एक प्रकार के वायरस हैं जो बैक्टीरिया को मारते हैं।
- गंगा नदी के सैम्पल में लगभग 1,100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज थे, जबकि यमुना और नर्मदा से प्राप्त नमूनों में 200 से कम प्रजातियाँ पाई गईं।
- हालाँकि, इन बैक्टीरियोफेज की संख्या नदी के विस्तार के साथ व्यापक रूप से भिन्न है। जैसे कि माना से हरिद्वार तथा बिजनौर से वाराणसी की अपेक्षा गोमुख से टिहरी तक के क्षेत्र में 33% ज्यादा बैक्टीरियोफेज थे।
निष्कर्ष
ब्रिटिश औपनिवेशिक वैज्ञानिकों द्वारा लगभग 200 साल पहले बताया गया था कि गंगा में अद्वितीय सूक्ष्मजीव जीवन हो सकता है। यह अध्ययन नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकों और ज्ञान का उपयोग करके इन गुणों की पुष्टि करता है।